अभी हाल ही में अविनाशजी की एक पोस्ट आयी थी दिल्ली सुधारो। पर हमें लगता है कि उसे होना चाहिये दिल्ली वालों को सुधारो। उस पोस्ट में अविनाशजी ने बताया था कि कैसे दिल्ली के आटो वालों से निपटा जाये मतलब ज्यादा किराया मांगने पर उनकी शिकायत कहाँ की जाये।
अब हमें तो रोज कनाट प्लेस से आटो चालकों से झिकझिक करनी पड़ती है, क्योंकि कोई भी मीटर से चलने को तैयार नहीं होता और अगर मीटर से चलने को कहो तो इस अजीब तरह से हमें देखेगा कि जैसे हम अजायबघर से आये हों, फ़िर वही मोलभाव करो। अब कल का किस्सा बतायें आटो चालकों से झिकझिक कर रहे थे समय था रात के ११.२५ बजे का चूँकि आखिरी मेट्रो जा चुकी थी इसलिये आटो से ही जान पड़ेगा, जितने भी आटो वाले थे सब पूरे डबल पैसे माँग रहे थे और हम वीरता के साथ ईमानदारी (ज्यादा रुपये न देने के लिये) का झंडा लिये करीबन ३०-४० आटो वालों से पूछ चुके थे।
वहाँ पर दिल्ली पुलिस की पीसीआर वैन खड़ी थी, उस पर लिखा था दिल्ली पुलिस की चलती फ़िरती पुलिस चौकी और वो किन बातों पर एक्शन लेते हैं वो तीन बातें क्रमबद्ध तरीके से लिखी हुई थीं। हमने उनसे मदद लेने की कोशिश की तो जबाब मिला ये हमारा काम नहीं है ये ट्राफ़िक पुलिस का काम है। अरे भाई पुलिस तो होती है कानून का पालन करवाने के लिये पर यहाँ तो मामला ही उलट था, हमने भी उनसे पूछा कि देखो भाई वो एक्शन में तीसरे नंबर पर लिखा है कि क्राइम होने पर आप काम आयेंगे तो जबाब मिला कि अरे भाई ये भी कोई क्राइम है तब हमें आभास हुआ कि क्राइम का मतलब भी अलग हो गया है या हमने शायद उनके कार्यकौशलता पर संदेह किया है वे लोग तो वहाँ बंदूकवाले आतंकवादियों से लड़ने के लिये बैठे हैं न कि अपने देश के अंदर होने वाले इस तरह की छोटी छोटी मानसिक आतंकवादी गतिविधियों से लड़ने के लिये।
फ़िर याद आया कि अरे अविनाश भाई ने एक नंबर दिया था ट्राफ़िक पुलिस का, हमने मोबाईल से नंबर डायल किया और उसे शिकायत की तो उसका जबाब सुनकर हमें लगा कि हमारा फ़ोन लगाना उसे पसंद नहीं आया और गलती से फ़ोन उठा लिया है। हमने बताया कि कोई भी आटो वाला तय किराये पर जाने को तैयार नहीं है क्या किया जाये। ज्यादा हील हौल करने पर उधर से डिमांड आयी कि आटो का नंबर बता दीजिये कार्य़वाही की जायेगी तो हमने एक बचकानी सी बात पूछी “तो क्या ३०-४० आटो के नंबर आपको देने पड़ेंगे यहां पर तो कोई भी तय भाव से जाने को तैयार ही नहीं है”, तो उधर से जबाब आया तो क्या हरेक आटो वाले पर कार्यवाही करें क्या, अब मैं क्या जबाब देता क्योंकि वो खुद ही असहाय नजर आया। हमने फ़ोन काट दिया फ़िर १५-२० आटो वालों से पूछा और तय भाव से थोड़ा ज्यादा देकर, मोलभाव कर अपने गंतव्य पहुँच गये।
तो हमें लगा कि दिल्ली सुधारो पर पहले दिल्ली वालों को पहले सुधारो, पुलिस वालों को उनके कार्यक्षैत्र का पता होना चाहिये, खुलेआम लूट को रोकना चाहिये जैसे कि कोल्ड ड्रिंक या बोतलबंद पानी पर पूरे कनाट प्लेस में २ से ३ रुपये ज्यादा लिये जाते हैं, झिकझिक करो तो वो हाकर कहता है कि ये पुलिस वालों को चार्ज देना पड़ता है यहाँ खड़े होने के लिये।
apka lekh bahut mazedar tha aur vicharneey bhi, ki delhi sudhar se pehle to delhi walo ko sudhrane or sudhrane ki bhi jarurate hai, apka lekh padkar aise laga ki apne to man ki baat keh di lekin sir apko ek cheez or bata du ki female ke liye aise cheezo se niptana aur bhi zyada mushkil ho jata hai, lekhin apne jo likha wkay umda likha,
apke agle lekh ka intezaar rahega
सही कह रहे हैं विवेक भाई
दिल्ली वालों को सुधारने पर
दिल्ली अपने आप सुधर जाएगी
पर वो सुखद शाम या सुबह
कभी आएगी या यूं ही धूप
भीषण ताप से तपाएगी।
इतिहास तो यही बताता है कि दिल्ली बसी और उजड़ी तो कई बार है,सुधरी कभी नहीं।
जिस देश का तंत्र काहिल, नेता बईमान और जनता गूंगी हो उसका यही हाल होना ही है:)
एक दूसरे का सहयोग ही इस समस्या का हल है