कालजयी साहित्यकार जयशंकर प्रसाद की प्रसिद्ध रचना “हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती, स्वयम प्रभा समुज्जवला स्वतंत्रता पुकारती॥“

जब हम कालेज में पढ़्ते थे तब जयशंकर प्रसाद की यह प्रसिद्ध रचना बहुत ही अच्छा लगती थी और यह गीत हमारी मित्र मंडली में सबको बहुत पसंद था। चूँकि हम सब मतलब हमारा समूह स्टेज आर्टिस्ट थे, कला से जुड़े थे तो हमारे नाटकों में हम कोशिश करते थे कि हम इसी प्रकार का कोई गीत सम्मिलित करें।

फ़िर जब “चाणक्य” धारावाहिक छोटे पर्दे पर शुरु हुआ तो हमें नई लय के साथ यह गीत मिल गया जो कि आज भी मेरा मनपसंद है और मेरे बेटे का भी।

स्वतंत्रता को प्राप्त करने के लिये उठाने वाले इस गीत को सुनते ही आज भी रगों में खून तेज गति से दौड़ने लगता है। प्रस्तुत है रचना –

हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती, स्वयम प्रभा समुज्जवला स्वतंत्रता पुकारती॥ कोरस
अमर्त्य वीर पुत्र हो दृढ़ प्रतिज्ञ सोच लो, प्रशस्त पुण्य पंथ है बढ़े चलो बढ़े चलो॥ कोरस
असंख्य कीर्ति रश्मियाँ विकिर्ण दिव्य दाह सी, सपूत मातृभूमि के रुको न शूर साहसी॥ कोरस
अराति सैन्य सिंधु में सुबाड्वाग्नि से जलो, प्रवीर हो जयी बनो बढ़े चलो बढ़े चलो॥ कोरस

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9 thoughts on “कालजयी साहित्यकार जयशंकर प्रसाद की प्रसिद्ध रचना “हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती, स्वयम प्रभा समुज्जवला स्वतंत्रता पुकारती॥“

  1. @संजयजी – यह कविता इतनी ही है पर इतनी ही होने पर भी उसके भाव कम नहीं होते। यही तो प्रसाद जी के शब्दों का कमाल है।

  2. सुन्दर… अति सुन्दर!
    और चाणक्य के तो क्या कहने.
    आभार यहाँ प्रस्तुत करने के लिए.

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