आज पापाजी की बहुत याद आ रही है।

आज सुबह से पता नहीं क्यों अतीत में अपने जीवन को झांक रहा था और उस सबमें पापाजी ने क्या किया अपने परिवार और मेरे लिये पता नहीं क्यों यह सब विश्लेषण करने की कोशिश कर रहा था। पर मैं कोई बहुत बड़ा तत्वज्ञानी नहीं कि मैं उस विशाल ह्रदय पिता के कार्यों का विश्लेषण कर सकता, पर हाँ यह बात तो मैं बहुत ही अभिमान के साथ कह सकता हूँ कि आज जो कुछ भी मैं हूँ केवल अपने माता पिता के दिये गये संस्कारों के कारण हूँ। अगर संस्कार नहीं होते तो मैं शायद कहीं ओर होता जो मेरे करीबी ओर मेरे अपने बहुत अच्छे से जानते हैं, जब मैं अपनी राह भटक गया था। परंतु संस्कारों ने मुझे सही राह दिखाई और मुझे गर्त में जाने से बचा लिया।

बचपन की यादों में झांक रहा था तो देखा कि पापाजी सुबह जल्दी उठकर अपनी साईकिल लेकर बैंक के काम से दौरा करने चल दिये हैं उन दिनों में परिवहन की उतनी अच्छी व्यवस्था तो थी नहीं, तो उन्हें एक दिन में तकरीबन ३०-४० किलोमीटर साइकिल चलानी पड़ती थी, अगर कहीं दूर गाँव जाना होता था तो पहले बस के ऊपर साईकिल रखते और फ़िर जहां जिस गाँव में जाना होता वहां साईकिल लेकर चल देते थे। फ़िर देर रात थकेहारे कब में आते थे हमें तो पता ही नहीं चलता था क्योंकि उस समय कोई टी.वी. तो था नहीं, मैं तकरीबन शाम ७-८ बजे के आसपास सो जाता था। कभी कभी दौरा २-३ दिन का भी हो जाता था। बस बचपन का इतना ही मुझे याद है।

पापाजी अपने छह: भाई बहनों में सबसे बड़े हैं, और मैंने उनकी एक बात को और ध्यान से देखा कि जब भी चाचाजी, फ़ूफ़ाजी या कोई ओर घर पर आता वो उनके साथ थोड़ी ही देर समय बिताते और बाकी समय बाहर जाकर पेड़ पौधे के साथ या पानी की टंकी भरने में या कुछ ओर करने में अपने को व्यस्त रखते। वैसे तो सब समझदार हैं पर यह बात मेरे समझ में न आई, पर वक्त ने मुझे बता दिया कि पापाजी क्यों ऐसा करते हैं। बड़ों की इज्जत अपने हाथों में होती है, यही बात मैं उनकी इस बात से सीख पाया। ओर भी बहुत कुछ सीखने को बाकी है जो शायद ऐसे ही जिंदगी की पाठशाला में सीखने को मिलेगा।

यादें तो बहुत हैं पर कहने के लिये शब्द नहीं मिल रहे हैं जब भी शब्द मिलेंगे यादों को पिरोने के लिये वो यादें जरुर कलमबद्ध करुँगा। मुझे गर्व है मेरे पापाजी के ऊपर कि वो मेरे पापा हैं।

10 thoughts on “आज पापाजी की बहुत याद आ रही है।

  1. पापा जी के ऊपर सोचने के बाद श्रद्धा होती है और माता जी के ऊपर श्र्द्धा का तो माहौल हर समय मौजूद रहता है .
    जाकर पिताजी के दर्शन कर आइये ! ऐसी क्या बात है !

  2. हमारी भावुकता हमें आपसी रिश्तों से जोडती है, उनमें कुछ खास ढूंढ़ती है…

    अपने पापा को याद करना, एक नई जिम्मेदारी का अहसास करने जैसा है…अच्छा लगा…

  3. ओह । बेहद भावुक पोस्‍ट ।
    पिता से मैंने रेडियोवाणी पर अपने मन की बहुत सारी बातें कहीं थीं कुछ दिनों पहले ।

  4. @विवेकजी – आपने बिल्कुल बात का मर्म लिख दिया।
    @रवि कुमारजी – केवल भावनाओं के द्वारा ही हम आपस में जुड़े हुए हैं।

    अगले सप्ताहांत हम पापाजी से मिलने जा रहे हैं।

  5. बहुत सुंदर, हमारे पिता जी भी कुछ ऎसे ही थे, पढ कर ऎसा लगा जेसे आप हमारे पिता जी की बात कर रहे है.
    धन्यवाद

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