“93.5 FM एफ़.एम. बजाते रहो” वाली मलिश्का के कारनामे

कल मैं बहुत दिनों के बाद सडक के रास्ते मुँबई फ़ोर्ट गया था। तो रास्तेभर ९३.५ एफ़ एम वाली मलिश्का के बडे बडे होर्डिंग्स लगे हुये थे। किसी में नौकरानी पोंछा लगा रही है और मालिक अखबार पढ़्ते हुये कनखियों से उसके बाहर झूलते हुये वक्षस्थलों को कामुक निगाहों से देख रहा है, और नीचे मलिश्का का प्रतीकात्मक फ़ोटो लगा था व साथ में लिखा था फ़ोन लगाईये और अपने मन की बात मलिष्का को बताईये जो आपने आज तक किसी से नहीं कही वो मलिश्का को बतायें।

दूसरे होर्डिंग मै एक सभ्य व्यक्ति कार् चला रहा है और् एक लेडी अपने कुत्ते को लेकर घूमने निकली है और अचानक कुत्ता अपनी टाँग उठाकर सूसू कर देता है उस कार के पिछले दरवाजे पर, और कार वाले को बहुत खिन्न मुद्रा में दिखाया है। फ़िर वही मलिष्का नीचे और लिखा था अपने मन की बात बतायें।

इस प्रकार के कई सारे होर्डींग्स वेस्टर्न एक्सप्रेस हाईवे पर और फ़िर एस.वी. रोड सब जगह पटे पड़े हैं। अब आखिर ये मलिश्का सुनना क्या चाहती है अगर आप भी देखेंगे तो इस भौंडेपन और नंगाई को देखकर शायद आपकी भी नजरें झुक जायेंगी। क्या मुँबई वाकई इतनी एडवांस हो गई है, कि ये सब आम बात हो गई है। वैसे तो यहाँ के राजनीतिज्ञ बहुत कुछ बोलते रहते हैं पर इस बात को लेकर कोई बबाल नहीं, आखिर क्यों ?? क्या हमारे समाज में मर्यादा खत्म हो गई है ??

18 thoughts on ““93.5 FM एफ़.एम. बजाते रहो” वाली मलिश्का के कारनामे

  1. दिन ब दिन जटिल होती जा रही जिन्दगी में संवाद के नए तरीके ढूढ़ने पड़ेंगे। मुझे इस प्रयास में बुराई नहीं दिखती।

    छोटी छोटी आम जीवन की बातें और रेडियो पर सुनने को तैयार एंकर! कितना खुल सा जाता है आदमी। इस चैनल ने तो बस एक नई धार पकड़ी है।
    इसे इस नज़रिए से देखें न ।

  2. @गिरिजेशजी – जटिल होती जा रही जिन्दगी में संवाद के कुछ स्वस्थय तरीके ढूँढ़ने होंगे । इस तरह की अश्लीलता और फ़ूहड़पने वाले संवाद हमारी सामाजिक पतन का रास्ता भी हैं।

    छोटी बातें तो ऐसे भी बतायीं जा सकती हैं उसके लिये इतने फ़ूहड़ होर्डिंग्स लगाने की जरुरत तो नहीं है न।

  3. भौंडेपन आम होती जा रही है और मज़े की बात है कि हम आसानी से उसे पचा ही नही रहे है वरन उसको कही न कही प्रोत्साहित भी कर रहे है.

  4. बहुत चिन्ता का विश्य है सन से बडी चिन्ता कि हम लोग इस बुराई को समर्थन दे रहे है आभार्

  5. समय की हवा के साथ बह रहे हैं सभी….वह हवा गटर मे ले जाएगी या बगीचे में ….इस बात से बेखबर हैं…..लेकिन हवा को बाधँना बहुत मुश्किल लगता है..

  6. जी हां पाब्‍ला साहब । मेरा अवलोकन है कि प्रायवेट रेडियो नवधनाढ्य युवाओं के लिए है । जो ली-कूपर, नाइकी और रीबोक के शूज़ पहनते हैं, लीवाइ की जीन्‍स पहनते हैं, डॉमिनो पीत्‍ज़ा खाते हैं, कैफे कॉफी डे में कॉफीज़ पीते हैं, कार में चलते हैं । कैसे सुनिए । ट्रैफिक अपडेट में हमेशा कहा जाता है कार लेकर उधर ना जाएं, प्रेमिका को 'पटाने' के नुस्‍खे बताता है 'लव-गुरू'। गाने बजाते हैं तो वो भी एकदम हाई-बीट्स । बात लंबी हो जाएगी । पर समझ लीजिए कि हज़ारों पॉइंट्स हैं जो साबित करते हैं कि तीस पार के लोगों से इन प्राइवेट एफ एम चैनलों का कोई लेना देना नहीं है ।

  7. बड़े शहरों की बड़ी बाते हैं जी हम कुछ नहीं कह सकते

    वीनस केसरी

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