अभी हम दीवाली की छुट्टियों पर अपने घर उज्जैन गये थे, जिसमें हमारा इंदौर जाने का एक दिन के लिये पहले से प्लान था । इंदौर में हमारे बड़े चाचाजी सपरिवार रहते हैं, तो बस घर की साफ़ सफ़ाई के बाद वह दिन भी आ गया। एक दिन पहले शाम को टेक्सी के लिये फ़ोन कर दिया क्योंकि इंदौर मात्र ५५ कि.मी. है। और चाचीजी से फ़रमाईश भी कर दी कि स्पेशल हमारे लिये दाल बाफ़ले बनाये जायें, ताऊ से पहले ही बात कर ली थी कि हम इंदौर आने वाले हैं तो उन्होंने एकदम कहा कि मिलने जरुर आईयेगा, बहुत ही आत्मीय निमंत्रण था।
कुछ फ़ोटो इंदौर पहुंचने के पहले के –
उज्जैन से इंदौर का फ़ोरलेन का कार्य प्रगति पर है।
सांवेर में नरम और मीठे दाने के भुट्टे और बीच में ऊँटों का कारवां।
हम इंदौर पहुंच गये सुबह ही घर पर परिवार के साथ समय कैसे जाता है पता ही नहीं चला फ़िर हमने ताऊ से बात की तो वे बोले कि कभी भी आ जाइये कोई समस्या नहीं है, हमने ये सोचा था कि वे अपने कार्य में व्यस्त होंगे तो हमें टाइम दे पायेंगे या नहीं।
हम पहुंच गये ताऊ के यहाँ उन्होंने बहुत ही सरल तरीके से हमें अपना घर का पता बता दिया था तो हम बिना पूछताछ के ही सीधे उनके घर पहुंच गये। साथ में थीं हमारी धर्मपत्नीजी भी। ताऊ बोले कि ताई अभी दीवाली की खरीदी करने बाजार गई हैं नहीं तो आपको उनसे भी मिलवाते।
ताऊ ने घर पर ही अपना ओफ़िस बना रखा है, बिल्कुल जैसा सोचा था ताऊ वैसा ही निकला। फ़िर आपस में पहले परिचय हुआ (वो तो पहले से ही था) पर ठीक तरीके से, अपने अपने इतिहास को बताया कि पहले क्या करते थे अब क्या करते हैं।
ब्लोगजगत के बारे में बहुत सी चर्चा हुईं, हाँ उनकी बातों से ये जरुर लगा कि वे ब्लोग के लिये बहुत ही गंभीर रहते हैं और अपनी वरिष्ठता होने के साथ वे बहुत गंभीर भी हैं, अधिकतर ब्लोगर्स के सम्पर्क में रहते हैं और वे अपना सेलिब्रिटी स्टॆटस समझते हैं।
उन दिनों हमने ७ दिन का पोस्ट न लिखने का विरोध करा था, उस पर भी काफ़ी बात हुई वे भी बहुत दुखी थे, बहुत सारे ब्लोगर्स के बारे में बात हुई पर खुशी की बात यह है कि ताऊ केवल हिन्दी ब्लोग की तरक्की चाहते हैं और इसके लिये उनके कुछ सपने भी हैं, जो आने वाले दिनों में साकर करेंगे, सफ़लता के लिये हम कामना करते हैं। ताऊ से अल्प समय के इस मिलन में हमने ताऊ से बहुत सारे गुर सीखे।
इंदौर के ब्लोगर्स के बारे में बात हुई तो ताऊ बोले कि केवल दिलीप कवठेकर जी ही हैं और तो किसी को जानता नहीं। फ़िर दो दिन पहले ही कीर्तिश भट्ट जी से बात हुई “बामुलाहिजा” वाले, वे बोले कि अगर हमें पहले से पता होता तो वे भी मिल लेते क्योंकि वे भी इंदौर में ही रहते हैं।
बस फ़ोटो खींचने का बिल्कुल याद ही नहीं रहा। कुछ दिन पहले अविनाश वाचस्पति जी से बात हुई थी तब उन्होंने याद दिलाया था कि किसी भी ब्लोगर से मिलें एक फ़ोटो जरुर खींच लें भले ही अपने मोबाईल से हो।
ये गलती हमने सुरेश चिपलूनकरजी से मिलने गये तो नहीं दोहराई।
हम सुरेशजी से मिलने पहुंचे तो हमने गॉगल लगा रखा था तो वे हमें पहचान ही नहीं पाये पर गॉगल उतारने पर एकदम पहिचान लिये। गले मिलकर दीवाली की हार्दिक शुभाकामनाएँ दी फ़िर बातचीत का सिलसिला शुरु हुआ।
सुरेश चिपलूनकर जी और मैं विवेक रस्तोगी उनकी कर्मस्थली पर
बात शुरु हुई तो पता चला हमारे बहुत से कॉमन दोस्त और पारिवारिक मित्र हैं । फ़िर बात लेखन के ऊपर हुई तो यही कि प्रिंट मीडिया को तो छापने के लिये कुछ चाहिये और वे चोरी से भी परहेज नहीं करते, और अगर लेखक को कुछ दे भी दिया तो ये समझते हैं कि वे कंगाल हो जायेंगे। हमने बताया कि हम भी पहले ऐसे ही लिखते थे परंतु हालात अच्छॆ न देखकर लिखना ही बंद कर दिया।
फ़िर बात शुरु हुई हमारे ७ दिन के पोस्ट न लिखने के ऊपर तो उनके विचार थे कि ये लोग कभी सुधर ही नहीं सकते इन सबसे अपना मन मत दुखाईये पर हम भी क्या करें हैं तो हम भी हाड़ मास के पुतले ही ना, कोई तो बात दिल को लगेगी ही ना।
सुरेश जी से भी बहुत सारे मुद्दों पर चर्चा हुई, तो उन्होंने कहा कि ब्लोग को एक विचारधारा पर रखकर ही आगे बड़ा जा सकता है, उनकी ये बात सौ फ़ीसदी सत्य है।
ब्लोग की व्यवहारिक कठिनाईयों के बारे में भी बात हुई वे बोले कि कुछ ब्लोगर्स मित्र हैं जो कि तकनीकी मदद करते हैं, क्योंकि हम तकनीकी रुप से उतने सक्षम नहीं हैं।
एग्रीगेटर के बारे में भी बात हुई कि कोई भी फ़्री की चीज पचा नहीं पा रहा है और हमले किये जा रहे हैं।
हमने उन्हें बताया कि हमें उनकी लेखन की कट्टरवादी शैली बहुत पसंद है जो कि राष्ट्रवाद और हिन्दुत्व की अलख हर दिल में जलाती है।
बहुत सारी बातें की फ़िर हमने उनसे विदा ली, बताईये कैसी लगी मुलाकात ताऊ और सुरेश चिपलूनकर से।
ताऊ से मिलाने की तमना तो मेरी भी है देखिये कब पूरी होती है !!!
बहुत सुंदर लगा भाई.
धन्यवाद
बहुत बदिया लगी आपकी ये मुलाकात शुभकामनायें
bahut badhiya lagi yeh mulaqat….. Shri. Suresh ji se milne ki tamanna meri bhi hai…..
पढकर बहुत अच्छा लगा !!
ताऊ की फोटो खिंची नहीं या ताऊ ने खींचने नहीं दी …आज तक किसी भी ब्लॉग पर उनकी तस्वीर नजर नहीं आयी है …
दो महान हस्तियों से मुलाकात की बहुत बधाई ..!!
आप दो धुरँधरों से मिल लिये, बधाई स्वीकारें.
…हमारा तो बैडलक ही ख़राब है !! 😀
इस मुलाकात के लिये बधाई
ताऊ और सुरेश जी से मिलने की तमन्ना तो हमारी भी है। पर देखिए कब उज्जैन इंदौर जाना होता है।
आत्मीय मिलन
दोनों से मिलने की हमारी भी तम्मना है पर पूरी हो नहीं पा रही | ताऊ जी से दो चार बार फोन पर जरुर बात हुई उनसे बात करते तो ऐसा महसूस होता जैसे अपने ही घर के किसी बड़े व्यक्ति से |
विवेक जी, हिंदी ब्लॉग जगत के दो दिग्गजों (ताऊ और सुरेश जी) से मुलाकात .. ये सोच के ही रोमांच का अनुभव कर रहा हूँ …
एक ही कमी रह गई, ताऊ के साथ फोटो .. खैर फिर कभी …
विवेक जी बहुत बहुत धन्यवाद इस मुलाक़ात को हम तक पहुंचाने के लिए …
आ.ताऊ जी तथा सुरेश भाई से मुलाक़ात बढिया रही जी
आपका जवाब नहीं !! आप तीनों को शुभकामना
– लावण्या
दो दिग्गज ब्लागरों से मुलाकात तो बढिया होनी ही थी…लेकिन एक कमी रह गई कि आप ताऊ की तस्वीर नहीं लाए….जरूर ताऊ ने ही तस्वीर के लिए मना कर दिया होगा ।
वाह वाह ये तो यों हुआ गोया आप दो धूमकेतुओं के बीच आ गये थे…और हर तरफ़ चकाचौंध ..बधाई हो जी आपको
nice to know sir !
काश….ताऊ की फोटू खींच जाती…अब लगता है जब ताऊ हमसे मिलेगा तब ही भंडा फोड़ होगा..उसके पहले तो उम्मीद नहीं..सुरेश भाई तो मेरे प्रिय ब्लॉगर हैं..उनके बारे में सुनता हूँ तो उज्जैन जाने की इच्छा बलवति हो जाती है…कमेंट में हमारी उनकी ५६ है..हा हा!!
वैसे सुरेश भाई को लेकर एक अतिश्योक्ति सामने आती है..कि जिनकी कमेंट में नहीं पटती उनकी आपस मे पटती है..क्यूँ सुरेश भाई..क्या बोलते हो.. 🙂
waah bhai aapkaa byoraa dene kaa andaaj wakai bahut pasand aayaa aur taau ke barey me jyadaa janane ko milaa !! good!!
ताऊ ने फ़ोटो खेंचने की मनाही नहीं की थी वो तो यों कह सकते हैं कि हम वाकई में भूल गये थे, अगर हम फ़ोटो की बोलते तो शायद ही वो मना करते । क्यों ताऊ सही बोल रहा हूँ न…
आप भाग्यशाली हैं।
ताऊ ने तो कई बार हमें भी इन्दौर आने का निमन्त्रण दिया है।
देखिए कब सम्भव हो पाता है।
सुरेश जी से भी अवश्य भेंट करेंगे।
बंटवारे का दर्द अब पता चल रहा है।्मध्य प्रदेश से अलग होने के बाद तो जैसे राजधानी भोपाल जाना ही नही होता।पहले साल मे दो-तीन चक्कर हो जाते थे।वो समय रहता तो ताऊ और सुरेश भाऊ से इतनी बार मिलना हो जाता कि वे ही खुद कहते कि बस कर,बस कर अब दूसरों को भी चांस दे।अच्छी लगी मुलाकात देखें महाकाल की हम पर कब कृपा होती है।
ये मुलाकात तो इक बहाना है…
प्यार का सिलसिला बढ़ाना है..
ताऊ से मिलने की अपनी भी बड़ी तमन्ना है…
जय हिंद…
@ उड़न तश्तरी जी,
सब आपकी मेहरबानियाँ हैं जी… हम आपके इंतज़ार में पलक पांवड़े बिछाये बैठे हैं… 🙂 आपसे ही तो ब्लॉगिंग (टिप्पणी) करना सीखा है गुरु… 🙂
अच्छा प्रयास है, किसी भी शहर में यात्रा करते समय वहाँ के ब्लागर से मिलना ही चाहिए।