तिरुपति बालाजी के दर्शन और यात्रा के रोमांचक अनुभव – ३ [चैन्नई से निकले तड़के ३ बजे..] (Hilarious Moment of Deity Darshan at Tirupati Balaji.. Part 3) [Started from Chennai in early morning 3am..]

    हमने अपने होटल को बोल कर टैक्सी आरक्षित कर ली, शनिवार ६ फ़रवरी को, पहले ही हमें बहुत थकान हो रही थी, और फ़िर जब कार्यक्रम बनाया तो पता चला कि अगर तड़के निकलेंगे तो ठीक रहेगा और सब ठीक प्रकार से होगा। हमने सुबह ३ बजे निकलने का कार्यक्रम पक्का किया।

    रात को नींद भी पूरी न हो पाई और फ़िर सुबह उठने की चिंता अलग हमने सुबह ढ़ाई बजे का अलार्म अपने मोबाईल में लगाया और होटल के रिशेप्सन पर भी अलार्म लगवा दिया। कब सोये और कब होटल वाले का फ़ोन आ गया लगा कि उसने गलत टाईम का अलार्म लगा दिया है। जब घड़ी देखी तो पता चला कि समय सुबह के २.२२ हो रहा है और टैक्सी आ चुकी है। हम फ़टाफ़ट तैयार हुए, नहाये (जी हाँ हमारी आदत है कि अगर कहीं भी बाहर जायेंगे तो बिना नहाये हमसे जाते नहीं बनता, इसलिये तड़के नहाये।)।

    हमारे दो सहकर्मी भी हमारे साथ थे, जो कि हमारे सहयात्री भी थे इस यात्रा में। हालांकि हम ५-६ साल पहले एक बार दर्शन करके जा चुके थे इसलिये हमें कुछ कुछ याद था। चैन्नई से बाहर निकलते  ही हमने टैक्सी को मद्रासी ढ़ाबे पर रुकवाया और चाय पी, हमने अपने होटल वाले को विशेष रुप से कहा था कि ड्राईवर को हिन्दी आनी चाहिये और उसे सभी जगह का पता भी होना चाहिये।

    यहाँ चाय बनाने का ढ़ंग भी निराला है, और चाय हमेशा तैयार रहती है, पर हमेशा ताजी, बनी बनायी नहीं। चाय की पत्ती का बर्तन अलग होता है अपने मग्गे जैसा और उसमें एक लंबी से छलनी रखते हैं, जिसमें चाय पत्ती रहती है और मग्गे में पानी जो कि चाय का हो जाता है, अलग से गिलास में शक्कर डालकर थोड़ी से चाय का अर्क इस छलनी में से गिलास में डालते हैं, और फ़िर थोड़ा सा दूध डालकर उसे एक मग से अल्टी पल्टी करते हैं। बस हो गयी चाय तैयार। इतनी सुबह उस ढ़ाबे पर २-३ बड़े बड़े परात भरकर अलग अलग तरह की मिठाईयाँ रखी हुई थीं, हमें बहुत आश्चर्य हुआ कि रात को मिठाई कौन खाता होगा। पर वहाँ तो खाने वाले भी मौजूद थे, तब ड्राईवर बोला कि पास ही इंडस्ट्रियल एरिया है इसलिये यहाँ ये मिठाई है जो कि मजदूर खाते हैं, यहाँ मजदूर उड़ीसा और बिहार से आते हैं।

    खैर चाय पीकर हमने वापिस अपनी यात्रा शुरु की, थोड़ी देर में ही हमें नींद ने अपने आगोश में ले लिया और जब आँख खुली तो देखा कि रेनिगुंटा आ चुका है, जो कि रेल्वे से पहुँचने का स्थान है। सुबह के ६.३० बजे थे, यहाँ से तिरुपति १५ कि.मी. था, वहाँ लगे रास्ते के निर्देशों से पता चला कि यहीं पर २.५ कि.मी. पास ही तिरुपति का विमानतल है। हम आधे घंटे में ही तिरुपति पहुँच गये और फ़िर एक बार चाय पी, कड़क जिससे अपनी आँख पूरी खुल जाये। क्योंकि अब सप्तगिरी का सफ़र शुरु होने वाला था, तिरुमाला का सफ़र, बालाजी का सफ़र।

    तिरुपति में इन छ: सालों में बहुत ही बदलाव आ गया था, जगह जगह बड़ी बड़ी इमारतें, चौड़ी सड़कें, समय के साथ सब कुछ बदल गया। सब इतना व्यावसायिक हो गया है कि दिल बहुत बैचेन हो उठा। केवल इन छ: सालों में इतना कुछ बदल गया। वैसे यही हालत उज्जैन की भी हो गई है, सब व्यावसायिक हो गया है। परंतु हम तो बालाजी के दर्शन करने को आये थे, इसलिये “ऊँ वैंकटेश्वराय नम:” बोलकर आगे बढ़ चले।

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9 thoughts on “तिरुपति बालाजी के दर्शन और यात्रा के रोमांचक अनुभव – ३ [चैन्नई से निकले तड़के ३ बजे..] (Hilarious Moment of Deity Darshan at Tirupati Balaji.. Part 3) [Started from Chennai in early morning 3am..]

  1. आपके यात्रा विवरण की तीनो कडियां पढी .. बहुत ही ज्ञानवर्द्धक हैं .. व्‍यवसायिकता तो हर क्षेत्र में हावी है आजकल .. जिसे शायद रोक पाना भी मुश्किल दिखता है !!

  2. बहुत सुन्दर विवरण।
    मुझे तो अपना तिरुपति जाना याद आता है सन १९८५ का। लम्बी लाइन होने के कारण भगवान को मन ही मन नमस्कार कर चले आये थे।
    वे दर्शन उन्ही को देते हैं – तो तीव्र भावना रखते हों। अन्यथा हमारे जैसे एग्नॉस्टिक बनने लगते हैं।

  3. बहुत ही धैर्य के साथ आप कह रहे है और हम सुन रहे है हम भी कभी जात्येन्गे तो ये सब बडे काम आयेगा.

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