भकभकाती गर्मी में …. मेरी कविता ….. विवेक रस्तोगी April 11, 2010Uncategorizedमेरी कविताVivek Rastogi Share this... Facebook Pinterest Twitter Linkedin Whatsappभकभकाती गर्मी में जल रहे हैं तन मन, एसी की सर्दी में इतरा रहा है मन तन, पारदर्शी काँच के प्रतिबिम्ब बिम्बित हो रहे हैं, इस पार सर्दी उस पार गर्मी, काश कि अहसास भी ऐसे ही बिम्बित हो पाते ॥
mausam se ehsaas waah kya kalpna hai…
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मौसम के अहसास को खुद का अहसास -क्या बात है ?
बहुत शानदार कविता……."
अहसास के बिम्ब!
काश की अहसास भी ऐसे ही बिम्बित हो पाते !
बहुत खूब ।