रोज सुबह उठने के लिये अलार्म की आवाज अच्छी लगती है क्या ?
अलार्म की “किर्र किर्र” किसे अच्छी लगती है, जब हमने सुबह घूमने जाने का निर्णय लिया था तब तो अलार्म दुश्मन जैसा जान पड़ता था कि “हाय” अभी तो मीठी नींद चल ही रही थी, अभी तो सोये ही थे और ये मुआ अलार्म बज पड़ा और जैसे ही अलार्म की किर्र किर्र कान में पड़ती, हम उसका टेंटुआ ऐसा दबाते कि जैसे किसी दुश्मन का दबाते हों, पर ये मुआ अलार्म तो रोज ही बजता जाता है। अगर दुश्मन का टेंटुआ दबाते तो वो शायद ही उठ पाते पर ये अलार्म जान पर ही आ पड़ता है।
अब धीरे धीरे अलार्म की जरुरत खत्म हो गयी है, हमारी जैविक घड़ी अब सक्रिय हो गई है। इसलिये अब अलार्म का “किर्र किर्र” करने का भाने या न भाने का संबंध ही खत्म हो गया है।
अब हमारी तो जैविक घड़ी अपनी सक्रियता से चल रही है, और हम तो अलार्म बजने के पहले ही उठ पड़ते हैं।
आप बताईये अपने अनुभव कि कैसा अनुभव है अलार्म का ….?
हमें भी बताईये विजय पाने की तरकीब हम तो 4.30 का अलार्म लगाते हैं और 7 बजे उठ पाते हैं|
रत्नेश त्रिपाठी
हम तो मोबाइल अलार्म का इस्तेमाल करते हैं…. धूम मचा ले धूम……..मचा ले…….. धूऊऊम ……..यही बजता है….
अलार्म लगाना बन्द,अब कोई अपराधबोध नहीं । जो फरियाना होगा मन से, हम बिना अलार्म क्लॉक फरिया लिया जायेगा ।
हम गृहणियों का जीवन तो अलार्म के बिना चलता ही नहीं…एक दिन ये ना बजे तो बच्चे समय पर स्कूल ना जा पायें,पतिदेव को लंच ना मिलें. नींद समय से हमारी भी खुल जाती है पर अलार्म ना लगाने का रिस्क नहीं लिया जा सकता.
मैने आज तक आलर्म नही लगाया, पता नही क्यो? समय पर अपने आप आंख खुल जाती है,
पहले अलार्म लगाया करती थी पर किर्र-किर्र कभी अच्छी नही लगी…….एक उपाय किया …सोते समय एक बार मन मे सोच लिया कि सुबह कितने बजे उठना है….समय तय किया…..और ये भी कि अलार्म नही लगाया है …..यकीन मानिये हमेशा समय से पहले ही नीद खुल जाती है …..
राम नाम जपना, समय पर जागना. 🙂
आप से ईर्ष्या के सिवाय और क्या कर सकते हैं! 🙁
कमरे की खिड़की पर पर्दा न डालें तो आँख अपने आप सूर्योदय के साथ खुल जाएगी ।
बायोलोजिकल क्लोक तो होता ही है।
डॉ साहेब सही कह रहे हैं.
बड़ा गजब काम कर लिये आप तो!
एक सी घटना और एक सा अनुभव। मेरे साथ भी यही हुआ। शुरू में मोबाइल पर अलार्म लगाया लेकिन अब जैविक घड़ी सही समय पर उठा देती है। ब्ला्गिंग करने वालों को तो घूमना अनिवार्य हो गया है। सारा दिन कम्प्यूटर मोटा कर रहा है।
आज तक हम तो बिना अलार्म के उठे नहीं। चाहे नींद खुल जाए फ़िर भी घड़ी के अलार्म बजाने का इंतजार करते रहते हैं जैसे बचपन में मां की आवाज का इंतजार रहता था बिस्तर छोड़ने से पहले…:)
आप के ब्लोग पर आ कर एक नया शब्द सीख गये जिसका हिन्दी अनुवाद हमें नहीं मालूम था…।सिर्काडियन रिदम मतलब जैविक घड़ी…।वाह
धन्यवाद