दो साल पहले की बात है, हम करोल बाग में एक रेस्त्रां में खाना खा रहे थे, और हमारे पीछे वाली टेबिल पर कुछ छ: लड़के बैठे हुए थे, जो कि मूलत: झारखंड और बिहार के लग रहे थे।
हमने खाना ऑर्डर किया और अपनी बातें करने लगें परंतु ये लड़के अपनी बातें इतनी तेज आवाज में बात कर रहे थे कि हम अपनी बात कर ही नहीं पा रहे थे और वे जिस तरह की बातें कर रहे थे वैसी हमने पहले कभी सुनी भी नहीं थीं, इसलिये चुपचाप हमने उनकी ही बातें सुनने का फ़ैसला ले लिया।
वे बात कर रहे थे सिस्टम की, जी हाँ प्रशासन की, क्या हम यहाँ झक मारने आये हैं समाज के लिये नहीं !!!, आई.ए.एस. बनना है और करोड़ों कमाना है, अरे रुतबा का रुतबा और कमाई की कमाई, किसी कंपनी का सीईओ भी क्या कमाता होता आई.ए.एस. की कमाई के आगे।
बातों में पता लगा कि उनमें से २-३ के पिता आई.ए.एस. हैं, और बाकी २-३ सामान्य लोग हैं परंतु दाँतकाटी दोस्ती लग रही थी उन सबमें, जिनके पिता आई.ए.एस. थे वे कुछ किस्से बता रहे थे कि फ़लाने ने आई.ए.एस. की पोस्टिंग मिलने के २-३ साल के अंदर ही करोड़ रुपया अंदर कर लिया वो भी किस सफ़ाई से, कहीं कोयला खदान की बात हो रही थी कि वहाँ पर किसी परमीशन या ठेके के लिये आई.ए.एस. ने ४० करोड़ की रिश्वत ली थी और मंत्री को पता चल गया तो मंत्री ने कमीशन माँगा तो उस आई.ए.एस. ने उस मंत्री को पैसे देने की जगह पैसा खर्च करके उसको गद्दी से ही हटवा दिया।
फ़िर किसी आई.पी.एस. की बात चली कि ये लोग भी कम नहीं होते हैं, रंगदारी करते हैं और व्यापारियों से एक मुश्त रकम या फ़िर सप्ताह लेते रहते हैं, बस व्यापारी बड़ी मुर्गी होता है।
तभी उनमें से एक आई.ए.एस. का सुपुत्र बोला उसके दूसरे मित्र को जो कि शायद किसान परिवार से था, कि बेटा पढ़ाई कर जम कर और केवल हरे हरे नोटों के सपने देख, और देख कि तेरा रसूख कितना बढ़ जायेगा, लोग सलाम ठोकेंगे, कभी भी करोड़ रुपया अंदर कर सकता है। तो किसान परिवार के लड़के का उत्तर सुनकर तो हम दंग ही रह गये, वो बोला “हमारे पिताजी ने कहा है कि तू केवल पढ़ाई पर ध्यान दे, और ये आई.ए.एस. की परीक्षा पास कर ले, जितना पैसा खर्च होता है ३०-४० लाख रुपया होने दे, तू चिंता मत कर हम खेत खलिहान बेच देंगे घर बेच देंगे, तू आई.ए.एस. बन गया तो ये खर्चा तो कुछ भी नहीं है ये तो निवेश है, इसका दस गुना तुम हमें २-३ साल में कमा कर दे दोगे” !!!
हम हमारे विचारों में खो गये कि ये आई.ए.एस. की परीक्षा और आई.ए.एस. बनने का जुनून तो किसी और दिशा में मुड़ गया है। और ये केवल करोलबाग की ही बात नहीं है, जहाँ आई.ए.एस. की तैयारी कर रहे लोग मिलेंगे, आपको इस तरह की बातें सुनना शायद आश्चर्यजनक न लगे। क्योंकि हमने ये चर्चाएँ कई बार दिल्ली में अलग अलग जगह पर सुनी हैं।
इसलिये अब हमारे सामने यह एक यक्ष प्रश्न है कि इन आई.ए.एस. की इज्जत करें या न करें, और अगर आज के युवा की सोच ही ऐसी होगी परिवार की होगी तो इस राष्ट्र का भविष्य क्या होगा।
विचारना पड़ेगा..
दरअसल इन स्थितियों के मूल कारणों में एक कारण है, जनता इन IAS को अपना सेवक न समझ कर मालिक समझने लगी है / अगर जनता इनको कानूनी भाषा सिखाने और इनके कार्यों का निगरानी रखने लगे तो यह स्थिति उत्पन्न ही नहीं होगी / दरअसल हम जनता के पास बीबी-बच्चों के लिए वक्त है ,सिनेमा टीवी देखने के लिए वक्त है लेकिन देश और समाज पर नजर रखने के लिए वक्त नहीं है / इसलिए एकजुट होइए और देश और समाज के लिए वक्त निकालिए /
आपका लेख अच्छा लगा. खैर आज चाहे कोई भी नौकरी हो सब किसी न किसी तरह पैसा कमाना चाहते है. ये सोच किसी एक की नहीं बहुत से लोगों की है, बस नौकरी लगे और लूटना शुरू. system ही ऐसा हो चला है. कई लोग system को बदल देने की कसम खाते है पर उनको ही पता नहीं चल पाता की वो खुद कब बदल गए. गलती यहाँ होती है कि हम system को एकदम बदल देना चाहते है, अच्छा होगा की पहले खुद को न बदले. शायद एक एक से सौ लोग ऐसे बन जाये तो लोगों की सोच बदले और इन जैसे युवा की तादात कम नज़र आये. खैर ये एक लम्बी चर्चा है, इस मानसिकता के दोषी वो अकेले नहीं बल्कि बहुत से लोग है जिसमें कहीं न कही हम भी शामिल है. बहुत से कारण है
@ honesty project democracy – जनता अगर जाग गई तो फ़िर तो किसी की भी खैर नहीं परंतु साथ कोई आना ही नहीं चाहता ये हमारे समाज की बिडंबना है।
@शोभना चौधरी जी – बिल्कुल सही कहा आपने एक बार system का हिस्सा होने पर मानसिकता वैसी ही हो जाती है, मैं ऐसे कई लोगों से मिल चुका हूँ जो system का हिस्सा होने के पहले इसकी बुराई करते थे और अब उसी में रम गये हैं।
जिसको मौका मिलता है खसोट लेता है । कितना माथा धुनियेगा ।
दुष्यन्त कुमार की पंक्तियाँ ही याद आती हैं ।
गिडगिडाने का यहाँ कोई असर होगा नहीं;
आह भरकर गालियाँ दो, पेट भरकर बद्दुआ ।
सेवा करने जाते हैं
और सेवा ही करते हैं
पर अपनी जेबों की
है कोई शक ?
मेरे ख्याल से आपने यह पोस्ट सिर्फ उन छः को ही देख कर लिखे हैं, जो सिर्फ गलत मानसिकता के साथ गलत माहौल में बड़े हुए हैं.. कुछ और रिसर्च कीजिये और लिखिए, फिर हम अपनी बात कहेंगे.
विवेक सर, एक सच्ची और कडवी बात सामने लानेके लिए शुक्रिया.. आज के हर युवा कि यही मानसिकता है कि कैसे ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाए .. इसे बदलना ही होगा
@PD लीजिए कुछ व्यक्तिगत रिसर्च से सुनिए-
हर साल (हिन्दी माध्यम से) आई ए एस का साक्षात्कार देने वाले छात्र लगभग 200 छात्रों का मार्गदर्शन देने ओर उनका छद्म साक्षातकार लेने का मोका मिलता है, इनमें से औसतन 70-100 का चयन भी हो जाता है। एकाध को छोड़कर इनके वरीयताक्रम होते हैं- 1 IAS 2 IPS 3 IRS बाकी सब ठीक पर सब के सब भारतीय राजस्व सेवा जैसी घनघोर नान क्रिएटिव तथा शुद्ध लिपिकीय सेवा को इतने ऊपर की वरीयता क्यों देते हैं…बताने की आवश्यकता नहीं…. आई आर एस में कमाई बोरों में गिनी जाती है नोटों में नहीं।
अधिकांश अभ्यर्थी पैसे या सता के लिए ही नौकरी में आना चाहते हैं। हॉंलॉंकि जोड़ना चाहुँगा कि कभी कभी वाकई मोटिवेटेउ गंभीर तथा ईमानदार अभ्यर्थियों से भी मिलने का अवसर मिलता है- तब वाकई बहुत अच्छा लगता है।
ये यक्ष प्रश्न है कि फिर देश का क्या होगा ?
खूफिया सूचनाये बेचेंगे ,विदेशों में जाकर बसेंगे ,मानसिकता सिर्फ अधिकारियों की ही नहीं ,जनता की भी दूषित हो चली है ,ताली तो दोनों हाथों से बजती है न
बिलकुल सही तस्वीरे पेश की है…पैसे के साथ प्रतिष्ठा की भी तगड़ी भूख होती है…बिहार में तो लोगों का एक ही सपना होता है…कैसे 'लाल-बत्ती 'वाली गाड़ी में बैठने का मौका मिले..
और पोस्टिंग के बाद तो पैसे लूटने के जुगाड़ शुरू हो ही जाते हैं. रिज़ल्ट आते ही दरवाजे के सामने मोटी रकम लिए लड़कियों के पिता की क्यू अलग लग जाती है.
एकदम सच्ची बात कही विवेक जी ! और ये भी सच है की सबसे ज्यादा I A S बिहार /झारखण्ड से ही निकलते हैं और ये तमगा लगते ही शादी के बाजार में उनकी कीमत करोणों में होती है…देश की सर्वोच्च सेवा के बारे में यह है यूवा सोच, तो बाकी का तो भगवान ही मालिक है.
@PD – ये बातें केवल उन छ: लोगों को सुनकर नहीं लिखी हैं, हमने आगे लिखा भी है जरा ध्यान दीजिये, नहीं तो दिल्ली में जो IAS की तैयारी कर रहे हैं उनकी बातें सुनिये सब साफ़ हो जायेगा।
ये केवल करोलबाग की ही बात नहीं है, जहाँ आई.ए.एस. की तैयारी कर रहे लोग मिलेंगे, आपको इस तरह की बातें सुनना शायद आश्चर्यजनक न लगे। क्योंकि हमने ये चर्चाएँ कई बार दिल्ली
अच्छी घटना को वर्णित किया है, वैसे हम पर तंत्र राज कर रहा है, अनजानें में या जान बूझकर हम सभी इसका एक हिस्सा हैं… हम लोग बचपन से एक कहावत सुनते आएं हैं की अगर खानदान में एक आई ए एस हो गया तो फ़िर तो सात पीढियां मजे मार सकती हैं…
चल रहा है, वैसे यह एक पहलू है… एक और पहलू बताता हूं… मेरे कालेज में मेरा एक मित्र जिसके पिताजी आई ए एस थे, उस ज़मानें में बरेली मंडल के एक जिले में एस डी एम थे, मायावती का खौफ़ किस हद तक था, बता नहीं सकता हूं.. कैसे कैसे चार पैसे के नेताओं के आगे जी हुज़ुरी करना…
बस आज़ाद हिन्दुस्तान के लपुझन्ने हैं यह सब…
लेकिन जिस भी दिन इस आम जनता को थोडी भी अकल आ गई उस दिन इन सब हराम का काने वालो की खेर नही …. वो चाहे आई ए एस आधिकारी हो या कोई नेता, बस एक बार जनता को जागरु होना है
"ये आई.ए.एस. की परीक्षा और आई.ए.एस. बनने का जुनून तो किसी और दिशा में मुड़ गया है।" मुझे तो लगता है कि हमेशा ही ऐसा रहा है ! अक्षरशः सहमत हूँ आपकी बातों से. अपने कई दोस्त तैयारी कर रहे हैं और कई ट्रेनिंग में हैं. जो मोटिवेटेड होते हैं वो भी शायद आगे चलकर बदल जाते हैं.
सिर्फ कुछ लोगों की बातें सुनकर एक आम राय बना लेना ठीक नहीं है. मैं इस बात से सहमत नहीं हू कि आई ए एस बनने की चाह रखने वाले अधिकांश युवा ऐसा ही सोचते हैं. बल्कि मेरी राय इसके विपरीत है.
बात कडवी है मगर दुरुस्त …….विवेक जी मगर मैं यह भी जानना चाहता हूँ कि सिर्फ आई ए एस अफसर ही दोषी क्यों ठहराए जाएँ …….हम सब करप्सन को बढ़ने में कहीं न कहीं दोषी हैं…मैं भी चूँकि इसी सेवा से हूँ तो मेरे लिए यह पोस्ट पढना विचारोत्तेजक रहा.
हमने तो इनकी इज्जत करना कब क छोड़ दिया।
आपने जो भी लिखा ठीक है पर ये कैसे कह दिया की वे लोग बिहार झारखण्ड के लग रहे थे??