मेरी चाहतें ….. रोज उठना ना पड़ता, रोज नहाना न पड़ता…, रोज खाना ना पड़ता…, काश कि बुशर्ट भी पेंट जैसी ही होती…, जिससे प्रेस जल्दी होती.. ।

    रोज रात को सोने के बाद …. सुबह उठना क्यों पड़ता है … कितना अच्छा होता कि …. रोज उठना ना पड़ता, रोज नहाना न पड़ता…, रोज खाना ना पड़ता…, रोज पानी ना भरना पड़ता, रोज बस मीठी नींद के आगोश में रहते…, रोज सुबह की सैर पर नहीं जाना पड़ता…, रोज ऑफ़िस न जाना पड़ता…, सप्ताहांत सप्ताह में एक की जगह दो होते…

    ऐसी मेरी चाहें तो अनगिनत हैं पर कभी पूरी नहीं होती हैं, सब सपना सा है, दो दिन सप्ताहांत पर आराम करने के बाद सोमवार को ऑफ़िस जाना जान पर बन आता है, कि हाय ये सोमवार इतनी जल्दी क्यों आ गया, हमने ऐसा कौन सा पाप किया था, कि ये ऑफ़िस में हर सोमवार को आना पड़ता है।

    शुक्रवार को तो मन सुबह से प्रसन्न होता रहता है कि बेटा बस आज और काम करना है फ़िर तो दो दिन आराम, अहा !!! कितना मजा आयेगा।

    पर चाहतें भला कब किसकी पूरी हुई हैं, ये पंखा देखो न कितनी आवाज करता है…, सोचने में विघ्न डालता है…, बंद कर दो तो पसीना सर्र से बहने लगता है…, काश कि मैं अभी कहीं ठंडे प्रदेश में छुट्टियाँ काट रहा होता…, वहाँ की वादियों को देखकर मन में सुकून काट रहा होता…, रोज ये चिल्लपों सुनकर तंग आ गया हूँ…, क्यों पेंट पर जल्दी प्रेस (इस्त्री) हो जाती है …., और बुशर्ट पर समय क्यों लगता है…, काश कि बुशर्ट भी पेंट जैसी ही होती…, जिससे प्रेस जल्दी होती.. । इस्त्री की जगह कोई ऐसी मशीन होती कि उसमें कपड़े डालो तो धुल भी जाये और इस्त्री होने के बाद बिल्कुल तह बन कर अपने आप बाहर आ जाये …, और अपने आप अलमीरा में जम जायें।

    चाहतों का कोई अंत नहीं है…, अभी दरवाजे पर दस्तक हुई है … शायद अखबार आया है…, तीन तीन अखबार और मैं इत्ती सी जान…, काश कि इन अखबारों को पढ़ना न पड़ता…, कोई अखबार का काढ़ा आता … हम उसे पी जाते और उसका ज्ञान अपने आप दिमाग में चला जाता…, पर ऐसा नहीं है… इसलिये हम चले अखबार बांचने और आप जाओ टिप्पणी बक्से में टीपने, और पसंद का चटका लगाने…।

12 thoughts on “मेरी चाहतें ….. रोज उठना ना पड़ता, रोज नहाना न पड़ता…, रोज खाना ना पड़ता…, काश कि बुशर्ट भी पेंट जैसी ही होती…, जिससे प्रेस जल्दी होती.. ।

  1. अखबारो को पढने का एक नायाब तरीक मै इस्तेमाल करता हू.. आप भी ट्राई करे:

    सर के नीचे रखकर सो जाये… जब सोकर उठेगे सब कुछ आपके दिमाग के भीतर होगा..

    * यह आईडिया टाम एन्ड जेरी कार्टून के एक एपीसोड से इन्सपार्यड है.. 🙂

  2. विवेक जी जीवन इतना सरल होता तो क्या बात होती..पर इच्छाये अन्नत होती हे कल को अगर आपको ये सुविधा मिल ही गई तो भी कल कोई नई इच्छा होगी..पर आवश्यकता ही आविष्कार की जननी हॆ…प्रवीण पाण्डेय जी की बात को भी नकारा नही जा सकता…

  3. भाईया हमे ठेका दे दो…. आप की जगह हम नहायेगे, हम उठेगे,हम खायेगे वगेरा वगेरा…. आप ने सिर्फ़ बिल अदा करना है… ओर मजे से बिस्तर मै आराम फ़रमाये:)

  4. अरे यार काहे को ऐसे सपने दिखाते हो जो पूरे नहीं होने वाले..या फिर जिसके पूरे होने के आसार नहीं नजर आ रहे हों…

  5. यार आपकी समस्या तो बहुत अजीब है… एक किस्सा याद आया… जब मैं बरेली में था तो मेरे स्कूल में एक सक्सेना जी थे, साल मे केवल दो ही दिन नहाते थे…
    एकदम सेप्टिक टैंक जैसे बदबू मारते थे….

    अभी जान लो भैया किस दिशा में आगे बढना है….
    बन्धु नहाओ… नहीं तो फ़िर सक्सेना जी का फ़ोटो तो मैनें खींच ही दिया है…

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