कुछ गंभीर चिंतन [लेपटॉप, गर्मी, लेखन की विषयवस्तु, ब्लॉगरी, अधूरापन]

      सुबह कुछ लिखने का मन था, लेपटॉप खोला लिखने के लिये तो पता नहीं क्या समस्या उसमें आ गयी है, तो अब मन मारकर अपने बेटे के संगणक पर लिख रहे हैं, क्योंकि जो सुविधाजनक स्थिती हाथों की और टाईपिंग पेड की  होती है, वह संगणक (डेस्कटॉप) पर नहीं।


    गर्मी ऐसी हो रही है कि अच्छे अच्छों के पसीने छुटा दिये हैं, कहीं भी बाहर थोड़ी देर के लिये खड़े हो जाओ, तो शर्ट और बनियान के नीचे से पीठ पर रीढ़ की हड्डी के ऊपर, गर्दन से पसीने की धार बहने लगती है, और पूरे जिस्म पर चिपचिपानी गर्मी से चिलचिलाता पसीना, यहाँ तक कि सुबह नहाकर गुसलखाने से बाहर निकलो तो बाहर निकलते ही पसीने से नहा लो, नहाना न नहाना सब बराबर है। सुबह उठने के बाद की ताजगी पता नहीं कहां खो गई है।

    सुबह मन हुआ कि चलो कुछ इस विषय पर लिखा जाये जो कि सभी के काम आयेगा, परंतु तभी अखबार आ गया, तो उसमें उसी विषय पर जिन दोनों विषयों पर हम लिखने की सोच रहे थे, वही आलेख छपे थे, लगा कि इन अखबार वालों को भी लगता है कि ब्लॉगर्स के लिये लिखने को कुछ छोड़ना नहीं है, वैसे लिखने की तो हम ८-१० दिन से सोच रहे थे, परंतु व्यस्तता के कारण संभव न हो सका।

    अब सोच रहे हैं कि वापस नये सिरे से विषयवस्तु पर सोचा जाये और लिखा जाये, क्योंकि वित्तीय विषयों पर हिन्दी में लेखन बहुत ही कम है, जो कि आम जन को जागरुक बनाये। निवेश के मायने बताये।

    वैसे भी परेशानी बताकर तो आती नहीं है, जो काम हम चाहते हैं कि हो जाये तो अगर आसान काम भी होगा तो भी उसमें इतनी मुश्किलें आयेंगी, कि हम भी सोचेंगे कि वाकई जब समय खराब हो तो छोटी से छोटी मुश्किल भी बड़ी हो जाती है। वैसे एक बात और हम शायद उल्टा सोचते हैं, जब समय खराब होने की बातें कर रहे होते हैं, तो शायद समय अच्छा चल रहा होता है, क्योंकि अगर खराब होता तो बहुत कुछ खराब हो सकता था, परंतु कुछ नहीं हुआ। तो ये सोचकर शांति रखना चाहिये और संतुष्टि से जीवन बिताना चाहिये।

    वैसे भी आज के लेखन के विषय पर जो हमने सोचा था, हम उससे पथभ्रष्ट हो चुके हैं, जो विषय था वो तो मीठे सपनीले सपने के साथ ही खत्म हो गया, जब तक याद था तब तक हमारा निजी संगणक (लेपटॉप) ही नहीं खुला। अब भूल बिसार गये। जल्दी ही कुछ नई रचनाएँ लिखने की जरुरत है, जो हमारी उँगलियों की खुराक है।

    कल ही हमारी श्रीमतीजी ने बोला कि क्या हुआ आज संगणक नहीं खुला और ब्लॉगरी शुरु नहीं हुई, तो हमें अहसास हुआ कि हमारे साथ ही कुछ गलत है, क्यों मन उचाट हुआ जा रहा है, क्यों मन विमुख हुआ जा रहा है, लगता है जिंदगी में कुछ चीजें अधूरी हैं, अधूरेपन का अहसास होता है, इस रिक्तता की पूर्ति कैसे होगी पता नहीं ?

12 thoughts on “कुछ गंभीर चिंतन [लेपटॉप, गर्मी, लेखन की विषयवस्तु, ब्लॉगरी, अधूरापन]

  1. विचारणीय प्रस्तुती ,सही मायने में हमारे गंभीर चिंतन को सही दिशा और दशा देने का माध्यम है ब्लॉग और हमारा गंभीर चिंतन अगर मानवीय सम्बेदनाओं के उत्थान और देश व समाज के कल्याण की दिशा में हो तो ब्लॉग और ब्लोगिंग के महत्व को जन-जन तक पहुँचाया जा सकता है ,हम हप्ते में एक पोस्ट ही लिखें लेकिन कुछ अच्छा लिखे तो रोज की बकवास से तो अच्छा ही रहेगा और सार्थक भी |

  2. अगर खराब होता तो बहुत कुछ खराब हो सकता था, परंतु कुछ नहीं हुआ। तो ये सोचकर शांति रखना चाहिये और संतुष्टि से जीवन बिताना चाहिये।

    -इतना सीख जायें तो क्या बात है!!

  3. खैर रिक्तता तो हमेशा रहती ही है.. अगर ख़त्म हो गई तो या तो संतोषी हो गए.. या फिर हार गए..

  4. अच्छा लगा बाँच कर ………..

    वैसे गर्मी भले ही कितना दुःख देती हो,
    एक आनन्द तो देती ही है….

    पसीना जब हमारे शरीर पर बहता है तो कभी कभी गुदगुदी भी होती है……..

  5. ऐसा है क्या, उम्मस आज कल बढ गयी है… बस इंतज़ार करिए एक सप्ताह और फ़िर मुम्बई में झमाझम बारिश शुरु हो जाएगी।

    लैपटापवा को कौन रोग लग गया, डाक्टर को दिखा दीजिए भाई।

  6. फ़ेंको इस पुराने को, जो इस भरी गर्मी मै साथ छोड गया, अजी नया लेआओ…. ओर फ़टा फ़ट लेख लिख मारो इस मुयी गर्मी पर.. चलिये आज आप ने दिल की भडास निकल ली अच्छा है..-. ओर आगे भू अच्छा ही होगा

  7. ज़िन्दगी मे अधूरेपन का एहसास तभी होता है जब उसमे कुछ बदलाव या हलचल चाहिए… रिक्तता की पूर्ति के लिए कुछ नया करने की सोचिए…

  8. हमें अहसास हुआ कि हमारे साथ ही कुछ गलत है, क्यों मन उचाट हुआ जा रहा है, क्यों मन विमुख हुआ जा रहा है, लगता है जिंदगी में कुछ चीजें अधूरी हैं, अधूरेपन का अहसास होता है, इस रिक्तता की पूर्ति कैसे होगी पता नहीं ?

    arrrr aap ko toh blog addiction ki bimaari ho gayi hai…bahut infectious bimaari hai, jaldi hi koi doctor dhoondhiye….:)

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