छोटा सा इंटरनेशनल मुंबई ब्लॉगर मिलन, हिन्दी भाषा के विकास पर चिन्तन

    मेरा पन्ना ब्लॉग के जितेन्द्र चौधरी जी कुवैत से मुंबई निजी यात्रा पर आये हुए हैं, तो उनसे थोड़ा सा समय लेकर आज १३ जून २०१० को  एक छोटा सा इंटरनेशनल मुंबई ब्लॉगर मिलन आयोजित किया गया । आयोजन का स्थान था, गोरेगांव पूर्व में फ़िल्म सिटी के सामने जावा ग्राईंड कैफ़े शॉप।

    ब्लॉगर मीट में आमंत्रण तो सभी ब्लॉगर्स को भेजा गया था परंतु अपने निजी कार्यों के चलते और मिलन अलसुबह ९.३० बजे रखने से कुछ ही ब्लॉगर्स आ पाये।

    सबसे पहले देवकुमार झा जी, फ़िर हम विवेक रस्तोगी, फ़िर शशि सिंह जी, फ़िर जीतू भाई (जितेन्द्र चौधरी), अनिल रघुराज जी और अभय तिवारी जी पहुंचे।

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शशि सिंह जी और जीतू भाई की बहुत पहले की दोस्ती है, ये दोनों हिन्दी ब्लॉग जगत के शुरुआती योद्धा हैं। देवाशीष को भी याद किया गया जो कि उनके उसी दौर के मित्र थे, जब कि हिन्दी चिठ्ठा लिखने वाले कुछ ५० ब्लॉगर्स ही होंगे।

    जीतू भाई ने अपने अनुभव साझा किये, हिन्दी ब्लॉगजगत के शुरुआती दिनों के, जब तकनीकी रुप से किसी को भी ज्यादा महारत हासिल नहीं थी और लोगों को चैटिंग कर करके उनकी समस्याएँ हल करके हिन्दी ब्लॉगिंग के लिये उत्साहित किया जाता था, आज तो फ़िर भी ब्लॉगर्स तकनीकी रुप से काफ़ी सक्षम हैं और हिन्दी के लिये बहुत ही ज्यादा तकनीकी समर्थन उपलब्ध है।

बीच में अलबेला खत्री जी का फ़ोन आया, वे मुंबई आये हुए हैं और हमसे मिलने की इच्छा जाहिर की तो हमने बताया कि अभी एक छोटी सी हिन्दी ब्लॉगर मीट हो रही है, और अगर हमें पहले से पता होता तो हम आपको भी सूचित कर देते। जल्दी ही अलबेला खत्री जी से भी मुलाकात होगी।

हिन्दी भाषा और उसके अवरोधों पर विशेष चर्चा की गई, कि हिन्दी भाषा का विकास कैसे हो ?

    हिन्दी के विकास के लिये क्षैत्रिय भाषाओं का विकास होना बहुत जरुरी है, अगर क्षैत्रिय भाषाओं का विकास होता है तो हिन्दी का विकास तो अपने आप ही हो जायेगा। नये शब्दों के लिये जो बोझ हिन्दी के कन्धे पर है वह भी बँट जायेगा, और विकास तीव्र गति से होगा।

    क्षैत्रिय भाषाएँ हिन्दी रुपी वृक्ष की टहनियाँ हैं। बोलियों और भाषाओं की बात की गई। अगर आजादी के समय प्रशासन की भाषा संस्कृत होती तो शायद आज हमारी सर्वमान्य भाषा अंग्रेजी की जगह संस्कृत होती। अंग्रेजी बोलना हमारा मजबूरी हो गया है। हिन्दी का सत्यानाश हिन्दी बोलने वालों ने ही किया है। अब जैसे फ़्रेंच लोगों को देखें तो उन्हें अंग्रेजी आती है परंतु वे फ़्रेंच में ही बात करते हैं, क्योंकि वे अपनी भाषा से प्यार करते हैं, भाषा का सम्मान करते हैं।

    आज अंग्रेजी के मामले में हम हिन्दुस्तानी अंग्रेजों को टक्कर दे रहे हैं, उनसे आगे निकल रहे हैं।

    जीतू भाई ने भाषा के संदर्भ में ही अपना एक यूरोप का मजेदार किस्सा सुनाया, वे अपने दोस्त के साथ ब्रिटिश म्यूजियम घूमने गये थे और एक स्टेच्यू के सामने खड़े होकर मजाक कर रहे थे और कुछ टिप्पणियाँ कर रहे थे, वहीं पास में एक वृद्ध अंग्रेज खड़ा हुआ था उसने अवधी में जबाब दिया, और अवधी के ऐसे शब्दों का उपयोग किया कि हम लोग भी चकरा गये कि अरे अवधी के ये शब्द कैसे बोल पा रहा है, जिन्हें हम भी अच्छॆ से नहीं जानते हैं। तो फ़िर उसने बताया कि मैं भारत में ही पैदा हुआ था और हिन्दी बहुत ही अच्छी भाषा है, हिन्दी बहुत ही मीठी भाषा है और मैं हिन्दी भाषा से बहुत प्रेम करता हूँ वह इतनी अच्छी तरह से हमारी भाषा में बात कर रहा था कि हम चकित थे क्योंकि इतनी अच्छी तरह से तो हमें भी अपनी भाषा पर अधिकार नहीं है। फ़िर तो उसे अंग्रेज से बहुत बातें हुईं।

    जीतू भाई ने एक और किस्सा बताया कि वे जर्मनी में थे और उनके एक मित्र फ़्रेंच और जर्मनी में ही बात करते थे, उन्हें अंग्रेजी भी अच्छी आती थी, पर वे हर जगह फ़्रेंच या जर्मनी में ही बात करते थे, उनसे पूछा तुम अंग्रेजी में बात क्यों नहीं करते हो, तो उसका जबाब सुनकर सन्न रह गया, कि यार ये मेरी भाषा है अगर मैं अपनी मातृभाषा की इज्जत नहीं करुँगा तो कौन करेगा।

    हमें यह महसूस हुआ कि हम लोग अपनी भाषा छोड़कर दूसरी भाषाएँ बोलना शुरु कर देते हैं, तो क्या हम लोग अपनी भाषा की इज्जत नहीं करते हैं। अगर विकल्प न हो तो ठीक है परंतु अगर विकल्प है तो हमें अपनी भाषा में ही बात करनी चाहिये।

    ज्यादा दूर जाने की जरुरत नहीं है, अगर चैन्नई में लोगों को देख लो वे अपनी तमिल भाषा में ही बात करते हैं, अगर आप हिन्दी या अंग्रेजी में बात करेंगे तो बोलेंगे नहीं आती है, परंतु अगर हिन्दी में गाली दे दो तो फ़िर जितनी अच्छी हिन्दी उन्हें आती है, उतनी हमें भी नहीं आती है। वे अपनी भाषा का सम्मान करते हैं।

   जीतू भाई ने मदुरै का अपना एक और किस्सा सुनाया, कि वहाँ ऑटो वाले सब रजनीकांत स्टाईल में गले में रुमाल बांधकर रहते हैं, और हिन्दी नहीं आती है ऐसा बताते हैं, उनकी बात कुछ पैसे को लेकर हुई, और झगड़ा बड़ता गया, पर जैसे ही इनके एक मित्र ने तैश में आकर गाली दी, तो उस ऑटो वाले की धाराप्रवाह हिन्दी सुनकर पसीने आ गये। बोला कि गाली दिया इसलिये हिन्दी में अब बोल रहे हैं, गाली क्यों दिया…।

    हिन्दीभाषी इलाका न होने पर भी इतनी अच्छी तरह से हिन्दी बोलना और समझना कैसे संभव है ? इसका सबसे बड़ा योगदान है, बॉलिवुड का, बॉलिवुड की हिन्दी फ़िल्मों के कारण सभी को हिन्दी अच्छॆ से आती है।

    दुबई में ही देख लीजिये वहाँ अरबी अल्पसंख्यक हैं, वहाँ का ट्रैफ़िक पुलिस वाला अगर गाड़ी को रोकेगा और अगर काला आदमी मिलेगा तो सीधे मलयाली में बात करना शुरु कर देगा, और अगर बोलो नहीं मलयाली नहीं तो हिन्दी में शुरु हो जायेगा, हिन्दी भी नहीं तो अंग्रेजी में बोलने लगेगा।

    हिन्दी भाषा बोलने के तरीके से ही पता चल जाता है कि उस व्यक्ति को कितनी हिन्दी बोलनी आती है, जैसे कोई “भाईसाहब” बोलेगा तो सबके बोलने का तरीका अलग अलग होगा, उससे ही पता चल जायेगा कि हिन्दी कितनी गहराई से आती है।

    सब अपनी मातृभाषा से प्रेम करते हैं और वही बोलना चाहते हैं, पर जहाँ पेट की बात आती है, मजबूरी में दूसरी भाषा सीखनी पड़ती है, केरल में ही देख लीजिये सबको हिन्दी बहुत अच्छे से समझ में आती है। पेट के लिये दूसरी भाषा सीखनी ही पढ़ती है क्योंकि वह मजबूरी है। अंग्रेजी भी हम यहाँ पेट भरने के लिये ही सीखते हैं, न कि अपने शौक से।

    जीतू भाई ने कुवैत का एक उदाहरण बताया कि एक डिपार्टमेंटल स्टोर में गये तो अरबी सबको आती है किसी को नहीं भी आती है, वहाँ पर दुकानदार होगा अरबी, खरीदने वाला होगा हिन्दी,  बीच में सेल्समैन होगा फ़िलिपिनो, तीनों बोलेंगे अपनी अपनी भाषा पर समझा देंगे। शारीरिक भाषा, अगर आप कुछ बोलना चाहो कुछ चाहिये तो आप आराम से समझा सकते हैं, और वो भी समझेगा क्योंकि पेट का सवाल है। और कई बार नहीं भी समझ में आता है तो वहाँ पर सफ़ाई करने वाले होते हैं, अधिकतर बंगाली होते हैं, और उनको अधिकतर सारी भाषाएँ आती हैं, वे समझा देते हैं। लेकिन जहाँ तक की शारीरिक भाषा का सवाल है, सब समझा सकते हैं।

    भाषा से कहीं भी अवरोध नहीं होता है, शारीरिक भाषा से भी इसकी पूर्ती की जा सकती है। हम हमारी भाषा का कितना सम्मान करते हैं, ये हम पर और हमारे समाज पर निर्भर करते हैं।

पुरानी मुंबई ब्लॉगर मिलन की रिपोर्टिंग के लिये यहाँ चटका लगायें।

23 thoughts on “छोटा सा इंटरनेशनल मुंबई ब्लॉगर मिलन, हिन्दी भाषा के विकास पर चिन्तन

  1. भाषा के सरोकारों को लेकर यह मीट कितनी महत्वपूर्ण औरउल्लेखनीय है यह आपकी इतनी अच्छी रिपोर्ट ही बता रही है …
    जीतू जी तो लीजैन्ड्री ब्लॉगर हैं ,उन्होंने मेरी भी एक समस्या तद से सुलझाई थी –
    आभार इस रिपोर्ट के लिए !

  2. छोटा सा इंटरनेशनल मुंबई ब्लॉगर मिलन कितना सार्थक रहा यह हिन्दी के मज़ेदार किस्सों और गंभीर मनन से ही प्रतिबिंबित हो रहा है

    आभार एक दिलचस्प रिपोर्ट के लिए

  3. अपलोगों की मुलाकात के बारे में जानकर बहुत अच्‍छा लगा .. अपनी मातृभाषा से प्‍यार तो होना ही चाहिए .. जीतू जी के अनुभव को जानकर खुशी हुई !!

  4. विवेक जी आपने मुझे भी इस ब्‍लॉगर मीट में आमंत्रित किया था लेकिन सुबह बेहद जल्‍दी यह कार्यक्रम होने से न आ सका। सप्‍ताह में एक रविवार ही मिलता है थोड़ा सुस्‍ताने के लिए अन्‍यथा आप जानते है कि मुंबई हमेशा स्‍पीड में रहती है। ब्‍लॉगर मीट की बेहतर रिपोर्ट पढ़कर आनंद आया।

  5. मातृभाषा से प्‍यार और हिन्दी की दिशा और दशा पर चिन्तन ने इस ब्लोगर मीट को असाधारण बना दिया है.

  6. ब्लॉगर मीट आयोजित कर-कर के लगता है आप "मीट" एक्सपर्ट बन जायेंगे…।

    जिस दिन मुम्बई में अखिल भारतीय ब्लॉगर मीटिंग होगी तो आपको ही आयोजक बनायेंगे… 🙂

  7. हिन्‍दी को विश्‍व भाषा ऐसे इंटरनेशनल हिन्‍दी ब्‍लॉगर मिलन ही बनायेंगे। बहुत बहुत शुभकामनाएं। बाकी उपस्थित हिन्‍दी ब्‍लॉगरों के नजरिए से भी उनके ब्‍लॉगों पर इस मिलन की रिपोर्ट और यदि और चित्र हों तो उनकी भी प्रतीक्षा है। इसका एक समाचार भी बनवाकर वेबपत्रिकाओं और प्रिंट मीडिया में प्रकाशन के लिए अवश्‍य भिजवाएं। आप बहुत सार्थक कर रहे हैं, मेरी शुभकामनाएं सभी के साथ हैं।

  8. बहुत अच्छा लगा इंटरनेश्नल ब्लागर मीट के बारे में पढ़कर और भाषा के की इतनी सार्थक और विस्तृत चर्चा विवरण पढ़कर |

  9. बढ़िया रिपोर्ट है। लगता है यह मिलन बहुत सफल रहा और काम की बातें खूब हुईं।
    घुघूती बासूती

  10. विवेकजी , बाधाई हो इंटरनेशनल मुंबई ब्लॉगर मिलन के सफल आयोजन के लिए ! मुझे अफ़सोस रहेगा की मै पहुच नही पाया ! कारण आप जानते है! जितुभाई से मिलना नही हो सका यह भी संजोग की बात है! आप मुंबई की व्यस्तम क्रियाकलापों के बावजूद इस तरह के आयोजन के लिए समय दे रहे है इस लिए मै आपका अभिनंद करता हु भाई विवेकजी !
    जावा ग्राईंड कैफ़े शॉप गोरेगाव की पुरानी यादे भी आज ताज हो गई । अलबेला खत्रीजी से भी मिलने वाले है आप ! मेरी और से नमस्ते कहना अलबेलाजी को ! शायद सुरत में कभी दर्शन हो जाए खत्रीजी से ! एक बार पुन बधाई !

  11. मजेदार! मीटिंग के किस्से बड़े चकाचक लिखे। जीतेन्द्र तो खलीफ़ा ब्लॉगर हैं। आजकल सक्रिय कम हैं। उनसे मिलना हमेशा खुशनुमा रहता है। यहां शशि सिंह तो ऐसे दिख रहे हैं गोया अपना यू आर एल ही बदल लिये। अभय तिवारी हाफ़ पैन्ट में एकदम उस तरह लग रहे हैं। 🙂

    रिपोर्ट पढ़कर दिल खुश हो गया। 🙂

  12. लगता है मुंबई बॉलीवुड के साथ ब्लॉगवुड का भी हेडक्वार्टर बनता जा रहा है…बढ़िया रिपोर्ट के लिए आभार…

    जय हिंद…

  13. बहुत अच्छा लगा जानकर, ऐसे मिलन और मुलाकातें होती रहनी चाहिए.
    चर्चा भी बहुत सार्थक रही …

  14. एक सकारात्मक ,महत्वर्पूण मिलन . पढ़कर अच्छा लगा, मै नहीं पहुँच पाई इस बात का मलाल है..

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