शब्दों से मेरा जीवन जीवन्त है
नहीं तो सुनसान रात्रि के
शमशान की सन्नाटे की गूँज है
सन्नाटे की सांय सांय में
जीवन भी कहीं सो चुका है
शमशान जाने को समय है
पूरी जिंदगी मौत से डरते हैं
शमशान जाने से डरते हैं
पर एक दिन मौत के बाद
सबको वहीं उसी सन्नाटे में
जाना होता है,
जहाँ रात को सांय सांय
हवा अपना रुख बदलती है
जहाँ रात को उल्लू भी
डरते हैं,
जहाँ पेड़ों पर भी
नीरवता रहती है
मैं जाता हूँ तो मुझे
मेरे शब्द जीवित कर देते हैं
क्योंकि शब्दों से मेरा जीवन जीवन्त है।
बहुत खूब विवेक जी । शब्दों की महिमा अपरम्पार है ।
क्योंकि शब्दों से मेरा जीवन जीवन्त है। दिल को छू गयी बहुत बहुत बधाई
शब्द बार बार हमको अपने अस्तित्व में वापस ले जाते हैं।
बहुत सुन्दर विवेक जी …. सुन्दर अभिव्यक्ति….
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
सत्य का बोध कराती रचना।
कल (19/7/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट देखियेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
सुंदर रचना