Monthly Archives: October 2010

प्यार में बहुत उपयोगी है ३ जी तकनीक (Use of 3G Technology in Love..)

यह पोस्ट 3G life blogger contest के लिये लिखी गई है, जो कि टाटा डोकोमो द्वारा आयोजित की गई है।
यह पोस्ट इंडीब्लॉगर प्रतियोगिता के लिये लिखी गई है, कृप्या अपनी वोटिंग करें । चटका लगायें।
इसके पहले की पोस्ट भी देखें  – [पति की मुसीबत ३ जी तकनीक से (Problems of Husband by 3 G Technology)] वोट जरुर दीजिये
    क्लास चल रही है, सामने प्रोफ़ेसर अंग्रेजी भाषा में अपना विषय इतिहास धड़ाधड़ पढ़ाये जा रहे हैं, राशि का पूरा ध्यान बोर्ड पर है और अकबर के बारे में पढ़ाया जा रहा, ध्यान लगाकर सुन रही है। साथ ही महत्वपूर्ण बिंदुओं को कॉपी पर नोट भी कर रही है, और संबंधित लाईनों को किताबों में चिन्हित भी कर रही है, तभी उसके मोबाईल में रोशनी आने लगती है और झुप्प से सामने एक बहुत ही जाना पहचाना नंबर और एक प्रिय नाम और फ़ोटो जो उसे बहुत ही पसंद है आने लगता है।
    कितनी बार मना किया है कि जब कॉलेज में हूँ तो फ़ोन न किया करे, पर एक ये हैं कि जब देखो फ़ोन खटखटा देते हैं, मोबाईल को स्टैंड पर लगाकर अपनी डेस्क पर सामने रख दिया और वीडियो कॉल पर एक्सेप्ट का बटन दबा दिया, अब सामने प्रिय दिखाई दे रहा था, और उधर प्रेमी की स्क्रीन पर राशि का चेहरा चमक रहा था। राशि ने मोबाईल म्यूट पर रखा था, कि कहीं कोई स्पीकर की आवाज क्लास में न आये।
    उधर प्रिय राशि को तरह तरह के इशारे करके डिस्टर्ब करने की कोशिश कर रहा था, राशि तरह तरह की मुख मुद्राएँ बनाकर तो कभी अंगूठा दिखाकर उसे चिढ़ा रही थी। पास में बैठी सीमा देखकर मुस्करा रही थी और राशि को बार बार कोहनी मार रही थी। सामने क्लॉस में अकबर जोधाबाई का लेक्चर चल रहा था और यहाँ क्लॉस में बैठी राशि और उससे दूर… बहुत दूर .. ऑफ़िस में बैठे प्रिय का नैन मटक्का चल रहा था।
    प्रिय है कि मानता ही नहीं, अब मैं यहाँ पढ़ाई पर ध्यान दूँ या प्रिय की तरफ़ ?, प्रिय का फ़ोन करने का समय निश्चित नहीं होता है, जब भी देखने की इच्छा हुई, वीडियो कॉल कर दिया। राशि गुस्सा होती तो कहता “अच्छा बाबा एक शब्द नहीं बोलूँगा, न ही चेहरे बनाकर तुमको डिस्टर्ब करूँगा, मैं तो तुमको केवल देखना चाहता हूँ, तुम इस समय मेरे पास नहीं हो सकतीं तो इतनी दूर से मैं देख तो सकता हूँ, आखिर टाटा डोकोमो की 3 G तकनीक का कुछ तो फ़ायदा मैं उठाऊँ”
    एक दो दिन ठीक रहता फ़िर वही तरह तरह के चेहरे बनाकर राशि को दिखाता तो राशि भी मुस्कराकर रह जाती, उधर क्लॉस में प्रोफ़ेसर को लगता कि राशि को विषय में ज्यादा ही रस आ रहा है।
    राशि और प्रिय Tata Docomo 3G तकनीक का अपने प्यार में भरपूर उपयोग कर रहे हैं। ये है 3 G life|
यह पोस्ट 3G life blogger contest के लिये लिखी गई है, जो कि टाटा डोकोमो द्वारा आयोजित की गई है।
यह पोस्ट इंडीब्लॉगर प्रतियोगिता के लिये लिखी गई है, कृप्या अपनी वोटिंग करें । चटका लगायें।

कुछ करना चाहता हूँ केवल अपने लिये … मेरी कविता .. विवेक रस्तोगी

मुक्ति चाहता हूँ

इन सांसारिक बंधनों से

इन बेड़ियों को

तोड़ना चाहता हूँ

रोज की घुटन से

निकलना चाहता हूँ

अब..

जीना चाहता हूँ

केवल अपने लिये

कुछ करना चाहता हूँ

केवल अपने लिये …

पति की मुसीबत ३ जी तकनीक से (Problems of Husband by 3G Technology)

यह पोस्ट 3G life blogger contest के लिये लिखी गई है, जो कि टाटा डोकोमो द्वारा आयोजित की गई है।

फोन पर घंटी बज उठी, तो देखा घरवाली का वीडियो कॉल है, आस पास देखा और अपनी सिगरेट ऐशट्रे में रखकर दोस्तों को बोला कि बस अभी आया, जल्दी से अपने गिलास से आखिरीघूँट  ख़त्म किया और फिर मोबाइल साइलेंट करके चुपके से अपनी टेबल से उठा और वाश रूम की ओर गया, तब तक बहुत सारी घंटिया बज चुकी थी और कॉल मिस कॉल हो गया| कॉल तो अब उसे करना ही था नहीं तो घर पर जाकर सुताई हो जाती कि ऑफिस में इतने व्यस्त थे वह भी रात के ९ बजे, घर पहुँच कर लाखो सवाल दाग दिए जायेंगे इससे अच्छा है कि अभी कॉल कर लिया जाये|

वाशरूम में जाकर मोबाईल में हैन्ड्सफ़्री (कान कौवा) लगाया और उस मिस कॉल को ग्रीन बटन दबाकर घरवाली का नम्बर कालिंग आने लगा, उधर से बीबी का तमतमाया चेहरा देखकर हवा खराब होने लगी, बीबी बोली क्या चिल्लाई फोन क्यों नहीं उठाया तो ये गिरियाया मैं व्यस्त था इसलिए |
उधर से आवाज आई “ओह्ह अच्छा तो अब ये बताओ कि घर कितने बजे तक आओगे या ऑफिस में ही सोने का इरादा है”
बोले “कम कम दो घंटे का काम और पेंडिंग है, फिर आता हूँ ..”
उधर से आवाज आई “ये कौन सी जगह पर हो अभी, पहले कभी इस जगह को देखा नहीं”
बोले “अरे बाबा तुमको तो बस सब जगह याद हो गयी है विडिओ कॉल से देख देखकर, ये दूसरी फ्लोर का वाशरूम है”
उधर से आवाज आई “तुम दुसरे फ्लोर पर क्या कर रहे हो, तुम्हारा ऑफिस तो ४ थे फ्लोर पर है”
बोले “अब क्या तुमको सारी स्टोरी अभी ही सुननी है, चलो अब मै कॉल बंद कर रहा हूँ और ऑफिस से जल्दी से काम ख़त्म होने के बाद आता हूँ |
उफ्फ ये थ्री जी तकनीक, पति के लिये तो बहुत ही खतरनाक साबित होती जा रही है, चैन से दोस्तों के साथ समय भी नहीं बिता सकते|

अकिंचन मन .. न चैट, न बज्ज, न ब्लॉगिंग … मेरी कविता .. विवेक रस्तोगी

अकिंचन मन

पता नहीं क्या चाहता है

कुछ कहना

कुछ सुनना

कुछ तो…

पर

कभी कभी मन की बातों को

समझ नहीं पाते हैं

न चैट, न बज्ज, न ब्लॉगिंग

किसी में मन नहीं लगता

कुछ ओर ही ….

चाहता है..

समझ नहीं आता ..

अकिंचन मन

क्या चाहता है..
(चित्र मेरे मित्र सुनिल कुबेर ने कैमरे में कैद किया)

इंतजार तुम्हारे आने का … मेरी कविता … विवेक रस्तोगी

इंतजार

तुम्हारे आने का

तुम आओगे मुझे पक्का यकीं है

तुमने वादा जो किया है

अब कब आते हो

ये देखना है

तुम आने के पहले इस इंतजार में

कितना सताते हो

ये देखना है

तुम्हारी टोह में बैठे हैं

हर पल

तुम्हारा इंतजार लगा रहता है

बस इतना पक्का यकीं है

कि तुम आओगे

पर ये इंतजार

बहुत मुश्किल होता है।

मशीनी युग में भी मानसिक चेतना जरुरी (Consciousness in the machine age)

    आज के मशीनी युग में हम सभी लोग पूरी तरह से मशीनों पर निर्भर हो चुके हैं, सोचिये अगर बिजली ही न हो तो क्या ये मशीनें हमारा साथ देंगी। या फ़िर वह मशीन ही बंद हो गई हो जिस पर हम निर्भर हों।

    बात है कल कि सुबह ६.२५ की मेरी उड़ान थी चैन्नई के लिये, मैंने मोबाईल में दो अलार्म लगाये एक ३.५० का और एक ४.०० बजे, मेरी चेतन्ती भी थी कि मुझे जल्दी उठना है, इसलिये बारबार में उठकर समय देख रहा था, सुबह ३ बजे एक बार आँख खुली फ़िर सो गया कि अभी तो एक घंटा है। फ़िर अलार्म नहीं बजा पर मानसिक चेतना ने मुझे उठाया कि देखो समय क्या हुआ है, जिस मोबाईल में अलार्म लगाया था वह तो सुप्ताअवस्था में पढ़ा था याने कि बंद था, फ़िर दूसरे मोबाईल में समय देखा तो सुबह के ४.१३ हो रहे थे। हम फ़टाफ़ट उठे और तैयार हो गये पर फ़िर भी अपने निर्धारित समय से १० मिनिट देरी से सारे कार्यक्रम निपट गये, और बिल्कुल ऐन समय पर हवाईअड्डे भी पहुँच गये, सब ठीक हुआ।

    परंतु अगर मानसिक चेतना सजग नहीं करती तो ? सारे कार्यक्रम धरे के धरे रह जाते अगर मोबाईल मशीन के ऊपर पूरी तरह से निर्भर होते। वैसे भी अगर कोई कार्यक्रम पूर्वनिश्चित हो और दिमाग में हो तो शायद हमारे मानस में भी एक अलार्म अपने आप लग जाता है परंतु कई बार यह विफ़ल भी हो जाता है। विफ़ल शायद तभी होता होगा कि हमारा मानस पूरी तरह से सुप्तावस्था में चला जाता होगा और चेतना का अलार्म मानस में दस्तक नहीं दे पाता होगा।

कुछ नये चुटकले (Some new jokes)

टीचर : तुम क्लास में लेट क्यों आए, बाकी सारे तो पहले आ गए थे?
स्टूडेंट : सर झुंड में तो कुत्ते आते हैं, शेर तो हमेशा अकेला ही आता है..

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चिन्टू : वह कौन-सा मज़ाक है, जो विद्यार्थी पहले भी किया करते थे, आज भी करते हैं और क़यामत तक करते रहेंगे…?
मिन्टू : बहुत मस्ती हो गई, यौर… अब कल से सीरियस होकर पढ़ाई करेंगे

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Aalu was in LOVE wid Bhindi. when Aalu proposed Bhindi ( who was egoistic & very proud of her slim figure ) she rejected his proposal, u r such a fatty. AALU took it is as a challange & has so many girfriends,,,,, now Aalu- gobi …Aalu-gosht Aalu qeema Aalu -gajar Aalu -matar Aalu – shimlamirch MORAL (nevre be egoistic in life otherwise u will be left alone like BHINDI

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अध्यापक (चिंटू से) : सांप के ऊपर कोई कविता सुनाओ

चिंटू : इन्सान इन्सान को डस रहा है और सांप बगल में बैठकर हंस रहा है

आधुनिक शिक्षा की दौड़ में कहाँ हैं हमारे सांस्कृतिक मूल्य (Can we save our indian culture by this Education ?)

    क्या शिक्षा में सांस्कृतिक मूल्य नहीं होने चाहिये, शिक्षा केवल आधुनिक विषयों पर ही होना चाहिये जिससे रोजगार के अवसर पैदा हो सकें या फ़िर शिक्षा मानव में नैतिक मूल्य और सांस्कृतिक मूल्य की भी वाहक है।

कैथलिक विद्यालय में जाकर हमारे बच्चे क्या सीख रहे हैं –

यीशु मसीह देता खुशी

यीशु मसीह देता खुशी
करें महिमा उसकी
पैदा हुआ, बना इंसान
देखो भागा शैतान
देखो भागा भागा, देखो भागा भागा
देखो भागा भागा शैतान
देखो भागा भागा, देखो भागा भागा
देखो भागा भागा शैतान

नारे लगाओ, जय गीत गाओ
शैतान हुआ परेशान
ताली बजाओ, नाचो गाओ
देखो भागा शैतान
देखो भागा भागा…

गिरने वालों, चलो उठो
यीशु बुलाता तुम्हें
छोड़ दो डरना
अब काहे मरना
हुआ है ज़िन्दा यीशु मसीह
यीशु मसीह…

झुक जायेगा, आसमां एक दिन
यीशु राजा होगा बादलों पर
देखेगी दुनिया
शोहरत मसीह की
जुबां पे होगा ये गीत सभी के
यीशु मसीह..

कल के चिट्ठे पर कुछ टिप्पणियों में कहा गया था कि धार्मिक संस्कार विद्यालय में देना गलत है, तो ये कॉन्वेन्ट विद्यालय क्या कर रहे हैं, केवल मेरा कहना इतना है कि क्या इन कैथलिक विद्यालयों के मुकाबले के विद्यालय हम अपने धर्म अपनी सांस्कृतिक भावनाओं के अनुरुप नहीं बना सकते हैं ? क्या हमारे बच्चों को यीशु का गुणगान करना और बाईबल के पद्यों को पढ़ना जरुरी है। पर क्या करें हम हिन्दूवादिता की बातें करते हैं तो हमारे कुछ लोग ही उन पर प्रश्न उठाते हैं, जबकि इसके विपरीत कैथलिक मिशन में देखें तो वहाँ ऐसा कुछ नहीं दिखाई देगा।

यहाँ मैं कैथलिक विद्यालयों की बुराई नहीं कर रहा हूँ, मेरा मुद्दा केवल यह है कि जितने संगठित होकर कैथलिक विद्यालय चला रहे हैं, और समाज की गीली मिट्टी याने बच्चों में जिस तेजी से घुसपैठ कर रहे हैं, क्या हम अपने सांस्कृतिक मूल्यों के साथ इन कैथलिक विद्यालयों के साथ स्वस्थ्य प्रतियोगिता नहीं कर सकते।

“हिन्दुत्व” पढ़ाने वाले भारतीय संस्कृति के विद्यालयों की कमी क्यों है, हमारे भारत् में..?

    एक् बात मन में हमेशा से टीसती रही है कि हम लोग उन परिवारों के बच्चों को देखकर ईर्ष्या करते हैं जो कॉन्वेन्ट विद्यालयों में पढ़े होते हैं, वहाँ पर आंग्लभाषा अनिवार्य है, उन विद्यालयों में अगर हिन्दी बोली जाती है तो वहाँ दंड का प्रावधान है। वे लोग अपनी संस्कृति की बातें बचपन से बच्चों के मन में बैठा देते हैं।

    पाश्चात्य संस्कृति से ओतप्रोत ये विद्यालय हमें हमारी भारतीय संस्कृति से दूर ले जा रहे हैं, हमारे भारतीय संस्कृति के विद्यालयों में जहाँ तक मैं जानता हूँ वह हैं केवल “सरस्वती शिशु मंदिर, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा संचालित”, “गोपाल गार्डन, इस्कॉन द्वारा संचालित” ।

    और किसी हिन्दू संस्कृति विद्यालय के बारे में मैंने नहीं सुना है जो कि व्यापक स्तर पर हर जिले में हर जगह उपलब्ध हों। मेरी बहुत इच्छा थी कि बच्चे को कम से कम हमारी संस्कृति का ज्ञान होना चाहिये, आंग्लभाषा पर अधिकार हिन्दुत्व विद्यालयों में भी हो सकता है, इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है गोपाल गार्डन विद्यालय, वहाँ के बच्चों का हिन्दी, संस्कृत और आंग्लभाषा पर समान अधिकार होता है और उनके सामने कॉन्वेन्ट के बच्चे टिक भी नहीं पाते हैं।

    हमारे धर्म में लोग मंदिर में इतना धन खर्च करते हैं, उतना धन अगर शिक्षण संस्थानों में लगाया जाये और पास में एक छोटा सा मंदिर बनाया जाये तो बात ही कुछ ओर हो। राष्ट्रीय स्तर पर इस क्षैत्र में उग्र आंदोलन की जरुरत है। नहीं तो आने वाले समय में हम और हमारे बच्चे हमारी भारतीय संस्कृति भूलकर पश्चिम संस्कृति में घुलमिल जायेंगे।

    याद आती है मुझे माँ सरस्वती की प्रार्थना जो हम विद्यालय में गाते थे, पर आज के बच्चों को तो शायद ही इसके बारे में पता हो –

माँ सरस्वती या कुन्देन्दु- तुषारहार- धवला या शुभ्र- वस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमन्डितकरा या श्वेतपद्मासना |
या ब्रह्माच्युत- शंकर- प्रभृतिभिर्देवैः सदा पूजिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ||

शुक्लांब्रह्मविचारसारपरमा- माद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम् |
हस्ते स्पाटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थितां
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम् ||

अगर हमारे मास्साब को ७,८,१३ के पहाड़े और विज्ञान की मूल बातें न पता हों तो हमारे देश के बच्चों का भविष्य क्या होगा ..!

    खबर है थाणे महाराष्ट्र प्रदेश की (Thane civic teachers flunk surprise test) कि शिक्षा विभाग के सरकारी विद्यालयों में महकमे ने कुछ अध्यापकों से उनके विषय से संबंधित मूल प्रश्न पूछे, जैसे कि ७,८,१३ के पहाड़े और रसायन विज्ञान के मूल सूत्र जो कि वे लगभग पिछले १५-२० वर्षों से बच्चों को पढ़ाते रहे हैं।

    सरकारी महकमा भी सोच रहा होगा कि कैसे नकारा मास्टर लोग हैं हमारे यहाँ के जो नाम डुबाने में लगे हैं। बताईये उन बच्चों का क्या भविष्य होगा जो इन विद्यालयों में इन मास्साब लोगों से पिछले १५-२० वर्षों से पढ़ रहे हैं। चैन की दो वक्त की रोटी मिलने लगे तो क्या मानव को अपने कर्त्तव्य से इतिश्री कर लेना चाहिये।

    इससे अच्छा तो सरकार को विद्यालयों में शिक्षकों को निकालकर नये पढ़े लिखे बेरोजगार नौजवानों को भर्ती कर लेना चाहिये, कम से कम बच्चों के भविष्य पर प्रश्नचिह्न तो नहीं लगेगा। अगर ऐसे मास्साब लोग हमारे विद्यालय में होंगे तो हमें हमारी तरक्की से वर्षों पीछे ढकेलने से कोई नहीं रोक सकता। इसके लिये केवल वे मास्साब ही जिम्मेदार नहीं हैं, जिम्मेदार हैं प्रशासन से जुड़ा हर वह व्यक्ति जो कि बच्चों की शिक्षा के लिये सरकारी महकमे से जुड़े हैं।

   यह स्थिती केवल इसी जिले की नहीं होगी यह स्थिती देश के हर जिले की होगी, इसकी पूरी पड़ताल करनी चाहिये ।

आखिर क्या करना चाहिये ऐसे मास्साबों का ? और क्या होगा हमारे बच्चों का भविष्य ?

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