ओहो सावन का इंतजार नहीं करना पड़ता है
आजकल बरसात को,
जब चाहे बरस जाती हो बरसात
और किसी अपने की सर्द यादें दिला जाती हो,
भीगी बरसातों में तुम
कहीं खोयी खोयी सी अपने ही अंदाज में,
भिगाती हुई खुद को
बरसात भी तुमको भिगोने का आनंद लेती है,
सिसकियाँ आँहें भरते हुए लोग
और तुम बेपरवाह बरसात को लूटती रहती हो,
हर मौसम सावन है तुम्हारे लिये
क्योंकि तुमसे मिलने के लिये बरसात भी तरसती है।
[कल औचक बरसात के मूड में सुबह लिखी गई, एक रचना]
वाह! बहुत खूब!!
औचक बरसात की भौचक रचना… सुंदर !
कविता और बरसात का कोई ठिकाना नहीं। पता नहीं, कब उतर आए।
बरसात की बूंदों सी भीगी कविता …..
ये औचक मूड हमेशा बन जाया करे तो रचना तो पढने को मिले। बधाई।
वाह क्या खूब लिखी है…………ऐसा औचक मूड रोज बने।
बहुत सुंदर.
रामराम.
बेहतरीन प्रयास,आभार.
कविता तो अच्छी है पर मैं मुंबई में ही हूँ, बर्षा कब हुई?
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हम यहाँ नहीं थे, सुना है जमकर बरसात हुयी।
बरसात भी तुमको भिगोने का आनंद लेती है
वाह क्या सोच है…एक अच्छी रचना के लिए बधाई स्वीकारें…
नीरज