भीगी बरसातों में तुम… मेरी कविता … विवेक रस्तोगी

ओहो सावन का इंतजार नहीं करना पड़ता है

आजकल बरसात को,

जब चाहे बरस जाती हो बरसात

और किसी अपने की सर्द यादें दिला जाती हो,

भीगी बरसातों में तुम

कहीं खोयी खोयी सी अपने ही अंदाज में,

भिगाती हुई खुद को

बरसात भी तुमको भिगोने का आनंद लेती है,

सिसकियाँ आँहें भरते हुए लोग

और तुम बेपरवाह बरसात को लूटती रहती हो,

हर मौसम सावन है तुम्हारे लिये

क्योंकि तुमसे मिलने के लिये बरसात भी तरसती है।

[कल औचक बरसात के मूड में सुबह लिखी गई, एक रचना]

11 thoughts on “भीगी बरसातों में तुम… मेरी कविता … विवेक रस्तोगी

Leave a Reply to Learn By Watch Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *