पारिवारिक समय का कत्ल कर रहे है अंतर्जाल और फ़ेसबुकिया दोस्त (Facebook and Internet are killing family time)

    अभी कुछ समय से अपने ऊपर ही विश्लेषण कर रहा हूँ कि एक बार लेपटॉप पर कुछ थोड़ा सा कार्य लेकर बैठे तो कार्य तो खत्म हो गया, किंतु बाकी का समय फ़ेसबुक, ट्विटर या ब्लॉग पढ़ने में निकल जाता है, और यह समय किस तेजी से भागता है, यह तो सिस्टम ट्रे की घड़ी और सामने दीवार पर लगी घड़ी दोनों बताते रहते हैं।

    वर्षों पहले बचपन की सुनहली तस्वीर सामने आती है, जब न बुद्धुबक्सा था न अंतर्जाल तक पहुँचाने वाला ये तकनीकी यंत्र नहीं था, तब लगभग सभी परिवार अपने आप में बेहद मजबूती से बंधे हुए थे, और सबको एक दूसरे के दुख सुख का अहसास होता था, पता होता था। सामाजिक मूल्यों की परिभाषा अलग होती थी और अब सामाजिक मूल्यों की परिभाषा में बदलाव सहज ही देखा जा सकता है।

    कल फ़ेसबुक पर बहुत सारे दोस्तों को जो कि केवल फ़ेसबुक दोस्त थे, जो इसलिये बना लिये गये थे कि उनके और हमारे कुछ कॉमन दोस्त थे, हटा रहे थे। दोस्तों की इतनी भीड़ देखकर दंग था और उनके द्वारा जारी किये गये स्टेटसों को भी देखकर, कुछ तो केवल अपनी भड़ास ही निकाल रहे थे और कुछ केवल समय का कत्ल कर रहे थे, तो हमने सोचा कि ऐसे समय का कत्ल करने वाले दोस्तों से पीछा छुड़ाना ज्यादा ठीक होगा, ठीक है थोड़ा सा अपना पारिवारिक समय का कत्ल होगा।

    पीछा छुड़ाने से यह फ़ायदा तो होगा जो वाकई में दोस्त हैं उनके दुख सुख में शामिल तो हो सकेंगे उनकी वर्तमान गतिविधियों को देख तो सकेंगे। कल इतने समय फ़ेसबुक पर शायद पहली बार मैंने वक्त गुजारा और देखा कि कुछ लोग तो केवल दोस्त बनाने की होड़ में लगे हैं और सार्वाधिक दोस्त बनाने की होड़ में लगे हैं। केवल अपने मन को तृप्त करने के लिये ?

    समय आ गया है कि थोड़ा अपने समय का कत्ल करके ऐसी चीजों से बचा जाये और बेहतरीन समय प्रबंधन कर परिवार को उचित समय दिया जा सके।

20 thoughts on “पारिवारिक समय का कत्ल कर रहे है अंतर्जाल और फ़ेसबुकिया दोस्त (Facebook and Internet are killing family time)

  1. न जाने कौनसी सामाजिकता पैदा कर रही हैं ये साइट्स …….फेसबुक पर दोस्त 200 और पडौसी कौन है पता नहीं …… सच में समय बर्बादी का जरिया बन गयी हैं…..

  2. समाज से टूटकर सामाजिकता बनाने के यह उपक्रम अबूझ पहेली है, आज के युग की!!

  3. बिल्कुल सहमत हूं, ये देख कर की कैसे लोगों को ब्लॉग या फेसबुक के लिए रोज समय मिल जाता है निश्चित रूप से वो परिवार को दिये जाने वाले समय में कटौती कर रहे है | अपनी कहूँ तो फेसबुक पर किसी भी अजनबी को अपनी लिस्ट में शामिल नहीं किया है बस परिवार और पुराने मित्र ही है जिसने अपनी फोटो आदि शेयर करती हूँ और कभी कदार ही अपनी तरफ से कोई बात लिखती हूँ और ब्लॉग पर भी बेटी के स्कूल और सोने के समय पर ही आती हूँ |

  4. बुराईयाँ /अच्छाईयां हर नयी तकनीक /प्तौद्योगिकी की हैं -यह उन्हें यूज करने वालों पर है कि वे उनका कैसा उपयोग करते हैं !

  5. maine kuch din pehle hi fb pe account open kia hai mera ak collegue hai jo ye dekh kar has raha tha ki : only 6 friends?" maine us se kaha bhaiya dosto ki ginti jada ho isse jada jaruri hai dost ache ho

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