तीन निबंध बच्चों के लिये (बालश्रमिकों से छिनता बचपन, एक दिन जब में विकलांगों के शिविर में गया और देश में हजारों अन्नाओं की जरूरत है ।)

बालश्रमिकों से छिनता बचपन
आजकल बाल श्रम कानून की खुलेआम धज्जियां उड़ती दिखाई देती हैं। जिसमें बाल श्रमिकों का बचपन छिनता जा रहा है। पेट की आग शांत करने के लिए बच्चे झूठे बर्तन धो रहे होते हैं। लेकिन बाल श्रमिक को बचाने के लिए कोई भी ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है।
सड़क के किनारे स्थित लाइन होटल, ढाबा व घरों में बाल श्रमिक काम करते देखे जा सकते हैं। ये बच्चे पढ़ लिखकर कुछ कर सके इस दिशा में प्रयास किया जाना जरूरी है। इसके लिए समाज के सभी तबकों को प्रयास करना होगा।
काम करने वाले बाल श्रमिकों की मजबूरी है कि अगर वे काम नहीं करेंगे तो वे भूखे रह जायेंगे और उनके ऊपर आश्रित  छोटे भाई-बहनों की पढ़ाई भी बंद हो जायेगी। अगर किसी भी बाल श्रमिक से बात की जाये तो पता चलता है उनका भी पढ़ने का मन करता है। लेकिन गरीबी के चलते काम करना पड़ रहा है।
बाल श्रमिकों को आठ घंटे से ज्यादा काम करना पड़ता है उसके बाद भी मालिक की झिड़कियां सुननी पड़ती हैं। अधिकांश होटलों पर बाल श्रमिक ही काम करते हैं।
जबकि बच्चों के भविष्य निर्माण के लिए सरकार अनेक योजनाएं चला रही है लेकिन ये योजनाएं बाल श्रमिकों के लिए निरर्थक साबित होती दिख रही हैं। सरकार ने बच्चों को शिक्षा पाने का अधिकार कानून बनाया है।
बाल श्रम अधिनियम तो बनाया गया किंतु उसका कठोरता से पालन करने की आवश्यकता है। बाल श्रमिकों की संख्या आज भी लगातार बढ़ रही है क्योंकि लोगों को भय नहीं है। कानून का प्रभावी कार्यान्वयन के साथ ही बाल श्रमिकों की आजीविका एवं शिक्षा के समुचित प्रबंध होना चाहिये।
एक दिन जब में विकलांगों के शिविर में गया
बीईएमएल ले आऊट के स्थानीय बालाजी मंदिर के पास प्रांगण में गणेश चतुर्थी के उपलक्ष्य में मंदिर समिति और रहवासी संघ द्वारा विकलांगों के लिये शिविर का आयोजन किया गया।
सुबह दस बजे से शाम पाँच बजे तक विकलांग शिविर का समय रखा गया था। वहाँ विभिन्न प्रकार के काऊँटर लगे हुए थे, जिसमें हाथ, पैर कान और आँख के काऊँटर प्रमुख थे।
शिविर का उद्घाटन रहवासी संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ता ने किया और सभी विकलांगों को चिकित्सकों का परिचय करवाया गया।
उद्घाटन के बाद सभी मरीज संबंधित काऊँटर के पास जाकर अपनी चिकित्सकीय जाँच करवाने के लिये चले गये।
जिसमें चिकित्सकों ने तकरीबन 135 चयनित मरीजों की जांच कर उन्हें विकलांग उपकरणों का वितरण किया गया। इस शिविर में कृत्रिम अंग कान की मशीन, पेट बैल्ट, हाथ, पैर, कैलीपर, बैसाखी इत्यादि वितरित किये गए।
देश में हजारों अन्नाओं की जरूरत है
किसन बापट बाबूराव हज़ारे अन्ना हजारे का पूरा नाम है। अन्ना हजारे एक भारतीय समाजसेवी हैं। अधिकांश लोग उन्हें अन्ना हज़ारे के नाम से जानते हैं। सन् १९९२ में भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। सूचना के अधिकार के लिये कार्य करने वालों में वे प्रमुख थे। जन लोकपाल विधेयक को पारित कराने के लिये अन्ना ने १६ अगस्त २०११ से आमरण अनशन आरम्भ किया था।
अन्ना शुरू से ही भ्रष्टाचार के विरूद्ध लड़ते रहे और अन्ना को महाराष्ट्र में जीत भी हासिल हुई, अन्ना ने भ्रष्टाचार और काले धन के मुद्दे पर दिल्ली में हुंकार भरी, पूरा देश अन्ना के साथ खड़ा हो गया। अन्ना ने माँग की संसद में जन लोकपाल विधेयक पेश किया जाये जिससे भ्रष्टाचार के खिलाफ़ लड़ना आसान हो, और भ्रष्टाचारियों को सजा दिलाना आसान हो।
आज हर जगह भ्रष्टाचार हो रहा है, इस भ्रष्टाचार को हटाने के लिये एक नहीं हमें हजारों अन्ना हजारे की जरूरत है। जो कि पूरे ताकत और जोश के साथ भ्रष्टाचार को हटाने का संकल्प लें और भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ फ़ेंके। हमारा प्यारा भारत भ्रष्टाचारियों के हाथ से निकलकर ईमानदार हाथों में जाये। जिससे भारत जल्दी ही विकासशील राष्ट्र से विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में शामिल हो जाये।

 

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