मैं जीवन में बहुत चंचल और वाचाल रहना चाहता था… मेरी कविता

मैं जीवन में बहुत चंचल और वाचाल रहना चाहता था।
मैं मेरे जीवन को मेरे हिसाब से जीन चाहता था।
मैं जी भी रहा था…
पर फिर एक ऐसा मोड़ आया, जहाँ
सब कुछ बदल गया, मेरा जीवन बदल गया।
उस मोड़ के कारण मैं धीर गंभीर हो गया।
मैं जीवन को रफ्तार से हराना चाहता हूँ।
अब मैं कुछ पाना चाहता हूँ।

One thought on “मैं जीवन में बहुत चंचल और वाचाल रहना चाहता था… मेरी कविता

  1. पाने की ललक में जब कोई कवि जाने लगता है
    मूल ग्रन्थ से वह सब कुछ लडखडाने लगता है |
    जीने का अधिकार सभी को सदा मिला नियत है
    फिर भी मनचाहे मन को जो भी भरमाने लगते हैं|
    शास्त्र समाज लोक लाज धर्म कर्म भुलाने लगते हैं
    मानवतावादी दुनिया में बरबस बल खाने लगते हैं | |

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