मुझे तो लगता था कि पुलिस कर पास दंगों से निपटने की बढ़िया रणनीति होती है, और समय समय और उन रणनीतियों का रिव्यू भी होता है, तो पुलिस को इस स्थिति को बहुत अच्छे से निपट लेना चाहिये था। वैश्विक पटल पर दिल्ली पुलिस भी अपने आपमें एक ब्रांड है।
मैं जब दिल्ली में था तब fm पर कई बार लय में सुना था, दिल्ली पुलिस दिल्ली पुलिस आपकी सुरक्षा में।
समझ ही नहीं आया, भरोसा भी न हुआ कि जिस दिल्ली पुलिस के पास राजधानी की सुरक्षा की जिम्मेदारी है, वे अपनी रणनीति में फेल हो गयी? सही बताऊँ तो मानने को दिल ही नहीं करता।
पुलिस के वे सारे वीडियो जो दिख रहे हैं, जिनमें वे दंगाईयो का साथ दे रहे हैं, दिल मानता ही नहीं कि वे पुलिस के लोग हैं। आख़िर पुलिस दंगाईयों का साथ कैसे दे सकती है? हो ही नहीं सकता, खैर यह भी जाँच का विषय है।
अब अगर कोर्ट को आकर दिल्ली पुलिस को कार्यवाही करने को कहा जा रहा है, तो भई सही बात तो यही अब लगती है कि दिल्ली पुलिस से बदला लेना है तो दिल्ली सरकार के अधीन कर दो, सारी दिल्ली पुलिस सुधर जायेगी। क्यों लोग दिल्ली सरकार को कोस रहे थे, जबकि सबको पता है दिल्ली पुलिस केन्द्र सरकार के अधीन है, और अंतत: गृह मंत्री को ही मामला अपने हाथ में लेना पड़ा, वह भी यह कहकर कि दिल्ली पुलिस व्यवस्था को ढंग से सँभाल नहीं पाई, यह ख़ुद दिल्ली पुलिस पर एक दाग़ है।
अगर ऐसी पुलिस के हाथों दिल्ली याने देश की राजधानी की सुरक्षा व्यवस्था है तो खुद ही समझ जायें कि भारत सुरक्षित नहीं है, क्योंकि राजनैतिक सत्ता दिल्ली से ही चलती है, और लंबे दौर इस तरह के चलते रहे तो यही सब नासूर बनकर अर्थव्यवस्था पर गम्भीर संकट बनकर आयेंगे।
किसी को तो ठीक होना जरूरी है, कौन ठीक होगा यह तो भविष्य ही बतायेगा।