Category Archives: विश्लेषण

दौड़ना क्यों (अपने लिये) ?

दौड़ना क्यों (अपने लिये) ?

बहुत अहम सवाल है, आखिर दौड़ना क्यों, सवाल का ऊपर ही जबाब दिया है जी हाँ अपने लिये, और किसी के लिये नहीं केवल अपने लिये। कल रात को हाथ की कलाई और पैर के घुटनों में थोड़ा दर्द था, ये हड्डी वाला दर्द भी हो सकता है, परंतु हमने रात को हाथ पैरों की तेल से मालिश की और सुबह सब ठीक हो गया। रात को ही मन था कि सुबह दौड़ना है भले 4,5,6,7,8,9 या 10 किमी, पर दौड़ना है, लक्ष्य कम से कम 4 किमी का और अधिकतम 10 किमी दौड़ने का निर्धारित किया था ।

दौड़ना क्यों
दौड़ना क्यों

सुबह उठा तो दौड़ने की बिल्कुल इच्छा नहीं थी परंतु फेसबुक पर एक रनर के द्वारा शेयर किया गया फोटो ध्यान आ गया और उसको ध्यान में रखकर दौड़ने के लिये तैयार हो गया। उस फोटो में संदेश था कि क्यों घर में बैठकर बोर हो रहे हो, चलो थोड़ा प्रकृति में और दौड़कर आयें, जिससे शरीर भी ठीक रहे। दौड़ने के लिये बहुत सारे फेक्टर कार्य करते हैं, अगर आप सोशल मीडिया का उपयोग करते हैं तो ट्विटर, फेसबुक, स्त्रावा पर रनर्स को अपना दोस्त बनायें, वे सभी अपने अनुभव साझा करते रहते हैं, जिससे आपको दौड़ने के बारे में बहुत कुछ पता चलता रहेगा और दौड़ने के लिये हमेशा ही तैयार रहेंगे।

अकेले दौड़ना वाकई बहुत मुश्किल कार्य होता है, इसके लिये या तो आप अपने साथ किसी और को भी दौड़ायें, परंतु थोड़े दिनों बाद ही ये युक्ति भी काम नहीं आयेगी, क्योंकि दोनों के दौड़ने की रफ्तार कम ज्यादा होगी तो साथ रहेगा जरूर, परंतु दौड़ नहीं पायेंगे। अपने स्मार्ट फोन का उपयोग करें और साथ में कुछ सुनते जायें, गाने सुनने का शौक है तो गाने सुनते जायें, पॉडकॉस्ट भी डाउनलोड करके सुन सकते हैं। मेरी आदत दौड़ते हुए पॉडकॉस्ट सुनने की है, मुझे लगता ही नहीं कि मैं दौड़ भी रहा हूँ, ऐसा लगता है कि कोई मुझसे बात कर रहा है, या मैं किसी और ही चीज में व्यस्त हूँ, और दौड़ना केवल एक प्रक्रियाभर है। गाने सुनते हुए दौड़ना मेरे लिये बहुत मुश्किल होता है, क्योंकि गाने बदलते रहते हैं और उनके स्वर दौड़ने की प्रक्रिया को बाधित करते हैं। पॉडकॉस्ट अपनी पसंद के डाउनलोड कर सकते हैं, मुझे फाईनेंस, लाईफ स्टाईल, फैक्ट्स, पर्सनलिटी इम्प्रूवमेंट इत्यादि के चैनल बहुत पसंद हैं। मेरा सबसे पसंदीदा चैनल है टैड रेडियो ऑवर।

अपने लिये दौड़ने से आप दिनभर खुश रहते हैं, आपको अपना वजन कम लगने लगता है। भूख खुलकर लगती है, अपने खुद के ऊपर गर्व होने लगता है कि जो अधिकतर जनता नहीं कर सकती वो आप कर सकते हैं। जब किसी कठिन चढ़ाई या घूमने के लिये जाते हैं तो आपका यह स्टेमिना आपके बहुत काम आता है। इस बार मैं घूमने गया तो 4-5 घंटों तक चलने और खड़े होने पर मुझे किसी भी प्रकार से थकान का अनुभव ही नहीं हुआ। रोज कम से कम 35 मिनिट तेज वॉक या दौड़ना चाहिये। चलने की जगह दौड़िये, दौड़ना बहुत आसान है, मेरी पिछली पोस्ट दौड़ना कैसे शुरू करें को पढ़कर समझ सकते हैं कि कैसे दौड़ा जाये। 35 मिनिट इसलिये कि रोज हमें हमारे दिल को जो कि धड़कता है उसकी रफ्तार 140 पल्स तक ले जानी चाहिये, हमारे दिल याने ह्रदय की धड़कने की सामान्य गति 60-100 पल्स प्रति मिनिट होती है। दौड़कर हम कॉर्डियो व्यायाम करते हैं, जिससे दिल अपने भरपूर रफ्तार से धड़कने को परख लेता है, और यह व्यायाम हमें रोज ही करना चाहिये।

दौड़ना शुरू करें, दौड़ना आपके जीवन में खुशियाँ भर देगा।

मरने के पहले और मरने के बाद क्या करना चाहते हो ?

मरने के पहले और मरने के बाद क्या करना चाहते हो ?

मरने के पहले –

है न अजीब सवाल, एक ऐसा सवाल जिसका उत्तर शायद किसी के पास भी तैयार नहीं, मृत्यु हमारे जीवन में कोई बीमारी नहीं है, यह भी जीवन की एक विशेषता है। अंग्रेजी में इसे ऐसे कहना ठीक होगा Death is not a Bug its feature of Life. Continue reading मरने के पहले और मरने के बाद क्या करना चाहते हो ?

दौड़ना कैसे शुरू करें। (How to Start Running)

दौड़ना कैसे शुरू करें। (How to Start Running)

दौड़ना तो हर कोई चाहता है परन्तु सभी लोग लाज शर्म के कारण और कोई क्या कहेगा, इन सब बातों की परवाह करने के कारण दौड़ नहीं पाते हैं। दौड़ना चाहते भी हैं तो कुछ न कुछ बात उनको रोक ही देती है, और दौड़ने के पहले हम तेज चलने लगते हैं, कि ऐसे ही स्टेमिना बनेगा और दौड़ पायेंगे। कई बार हम दौड़ इसलिये नहीं पाते क्योंकि हमें झिझक होती है कि हमारे पास दौड़ने वाले जूते नहीं हैं, टीशर्ट और लोअर नहीं है, दौड़ने का समय नहीं है इत्यादि इत्यादि। यकीन मानिये ये सब बहाने हैं, और अगर आप दौड़ना चाहते हैं तो एक उत्साहवर्धन करने वाले व्यक्ति की और आपके अपने आत्मविश्वास, लगन और मेहनत की कमी है।

मैं लगभग पिछले 10 वर्षों से दौड़ने की कोशिश में लगा हुआ था, परन्तु बहुत सारी चीजों के कारण संभव नहीं हो पाता था, जैसे कि मैं थक जाता हूँ, मैं दौड़ नहीं सकता, मेरी साँस फूल जाती है, मेरे पैर दर्द करने लगते हैं, मेरे पैर सही नहीं पड़ते हैं।

दौड़ना बहुत आसान है, दौड़ने का मतलब यह नहीं है कि लगातार दौड़ना है, थक जायें तो थोड़ा पैदल चल लें या अपने दौड़ने की गति सुविधानुसार धीमी कर लें। लगभग सभी यही समझते हैं कि दौड़ना मतलब कि केवल दौड़ते ही रहना, तो यह गलत भ्रांति है। जो लोग 10,21 या 42 किमी भी दौड़ते हैं वे भी जब तक पूरी तरह से प्रेक्टिस न हो लगातार नहीं दौड़ सकते हैं।

दौड़ना कैसे शुरू करें –

सबसे पहले दौड़ने का मन बनायें और अपने आप को दौड़ने के लिये मानसिक तौर पर तैयार करें। सुबह का समय सबसे बेहतर है दौड़ने के लिये, इसलिये कोशिश करिये कि सुबह जल्दी उठिये और पाँच या साढ़े पाँच बजे तक घर से दौड़ने के लिये निकल जाये। सुबह पंछियों के कलरव को ध्यान से सुनें, जीवन का संगीत सुनाई देगा, सुबह की हवा आपको ताजगी का अहसास करवायेगी।

सौ कदम गिनकर चलें और फिर पचास कदम गिनकर ही दौड़ें, पचास कदम दौड़ने के बाद सौ कदम चलें, ऐसे करके सात दिनों तक यही दोहरायें। सात दिनों में आप पायेंगे कि आप पचास कदम आराम से दौड़ने लगे हैं। एक सप्ताह बाद से याने कि आठ से पंद्रह दिन तक सौ कदम पैदल चलें और सौ कदम दौड़ें याने कि केवल 50 कदम दौड़ने में बढ़ायें। और इसी तरह दौड़ने के कदम हर सप्ताह बढ़ाते जायें, बीच में जब भी आपको लगे कि आपको थकान लग रही हैं, आराम चाहिये, दौड़ते नहीं बन रहा है तो पैदल चलने लग जाइये।

सबसे पहले अपने दिमाग से यह निकाल दें कि दौड़ना मतलब कि दौड़ते ही रहना, जब भी आपको लगे कि आपका शरीर अब दौड़ नहीं पा रहा है तो आप पैदल चलना शुरू कर दें। यह भी ध्यान रखें कि दौड़ने में थकान मतलब कि मानसिक थकान होती है, शारीरिक थकान भी होती है, पर मानसिक थकान आपको थका देती है और कहती है कि बस बहुत हुआ, अब नहीं दौड़ो, जबकि शारीरिक थकान में आपको मानस को मजा आता है, आपका शरीर कहेगा कि बस अब मत दौड़ो पर आपको दौड़ के बाद की थकान से आपको मानस को मजा आयेगा।

जब आप दौड़ना शुरू करेंगे तो यह भी सोचेंगे कि बहुत ही कम लोग दौड़ते हैं, पर यह ध्यान रखें कि जो भी कार्य आप करते हैं या करने की शुरूआत करते हैं, उससे संबंधित गतिविधियाँ दिखाई देने लगती हैं, या लोग दिखने लगते हैं। पहले जब मैंने दौड़ना शुरू किया था, तब केवल मैं अकेला ही दौड़ता हुआ दिखाई देता था, पर मैंने देखा धीरे धीरे बहुत से लोग दौड़ रहे हैं। यह हो सकता है कि पहले मुझे ये लोग दिखाई नहीं देते थे, परंतु अब दिखाई देते हैं। पर अब यह देखकर खुशी होती है कि जो लोग पैदल चलते थे, वे हमें देखकर दौड़ने लगे हैं, यह संख्या एकदम से नहीं बढ़ी, धीरे धीरे बढ़ी, अब कम से कम रोज ही 10 लोगों को दौड़ते हुए देखना सुखद लगता है जो कि पहले पैदल चलते थे।

दौड़ने के पहले क्या करें-

दौड़ने के पहले कुछ हल्का फुल्का व्यायाम कर लें, जिससे शरीर गर्म हो जाये। सुबह उठने के बाद एक या दो केला खा लें, पानी पी लें। बहुत ज्यादा पानी भी न पियें। दौड़ने जाने के पहले ही निवृत्त हो लें। थोड़ा सा एनर्जी ड्रिंक पी लें।

दौड़ते समय क्या करें –

दौड़ते हुए बहुत पसीना निकलता है जिससे शरीर में पानी की कमी हो जाती है, इसलिये दौड़ते समय पानी घूँट घूँट पीते रहें, जिससे शरीर में पानी की कमी न हो। अगर पाँच किमी से ज्यादा दौड़ रहे हैं तो एनर्जी ड्रिंक जरूर पी लें, पारले जी बिस्किट भी खा सकते हैं।

दौड़ने के बाद क्या करें –

दौड़ने के बाद एकदम से रूके नहीं, बैठे नहीं, थोड़ी दूर पैदल चलते रहें या फिर धीमी गति से दौड़कर शरीर को ठंडा होने दें। कूल डाऊन व्यायाम करें, जिससे आपके शरीर की माँसपेशियों को मजबूती मिलेगी और यह आपके शरीर के लिये बहुत अच्छा भी होगा क्योंकि दौड़ने के बाद आपका शरीर गरम होता है और शरीर का हर अंग अपने अधिकतम उपयोग की स्थिती में होता है। खूब पानी पियें और 10-15 मिनिट में ही नाश्ता कर लें। केला जरूर खा लें, इससे आपकी सोडियम की कमी पूरी हो जायेगी, जो कि दौड़ में पसीने के साथ आपके शरीर से निकल गया होता है। 35-40 मिनिट में ही नहा लें।

थकान कैसे दूर करें –

जब लंबी दूरी की दौड़ पूरी करते हैं तो अच्छी खासी थकान हो जाती है, उसके लिये शरीर को आराम की भी जरूरत होती है। आप पैरों की तेल से मालिश कर लें, पैरों को ठंडे पानी में डुबोकर रखें। पैरों को किसी से दबवा लें। जिस दिन सुबह दौड़कर आयें उस दिन दोपहर को 2-3 घंटों की नींद जरूर लें। जिससे पैरों के टूटे हुए टिश्यू को जुड़ने में मदद मिलेगी।

दौड़ने के लिये हमें कठिन व्यायाम भी करने चाहिये, जिससे हमारे हाथ, पैरों, कंधे और जाँघ की माँसपेशियाँ मजबूत हों और वे हमारे दौड़ने में सहायक हों। जब माँसपेशियाँ मजबूत होंगी तो आप तेजी से दौड़ पायेंगे या धीमे धीमे ज्यादा दूरी तक दौड़ पायेंगे।

अभी दौड़ने पर बहुत चर्चा बाकी है, तो आगे इसी विषय पर लिखने की कोशिश जारी रहेगी। अनुभवी लोग अपने सुझाव दें जिससे हम नये दौड़ने वालों के लिये कोई परेशानी न हो।

पेट पर मोटापे का टायर

आजकल हम हमारी दुनिया में आसपास देखेंगे तो पता चलेगा कि अधिकतर मोटे ही हैं, बहुत ही कम लोग होंगे जिनके पेट पर मोटापे का टायर न हों।
 
खान पान हमारा पिछले 50 वर्षों में बदला है, पहले आम आदमी मोटा नहीं होता था, सही बात तो यह है कि मोटे केवल वही होते थे जिनके पास पैसा होता था और खाने पीने का शौक होता था। याने कि राजा रानी वाला खाना, राजसी भोज।
 
और वैसे ही राजसी खाने वालों को ही हाई बीपी, डायबीटीज, कोलोस्ट्रॉल, हार्टअटैक इत्यादि बीमारियाँ होती थीं, इसीलिये इन बीमारियों को कभी अमीरों की बीमारी कहा जाता था।
 
उस समय आम आदमी क्या खाता था, आलू, चावल, शकरकंदी इत्यादि ही खाते थे, जिससे मोटापा नहीं बड़ता था, भाड़ के भुने आलू और शकरकंदी आज भी गाँव देहात में मिल जाते हैं, जो कि बिल्कुल सही भोज है।
 
पर धीरे धीरे इंड्स्ट्रीयलाईजेशन ने पूरे समाज की दिशा ही बदल दी, राजसी भोज वाली चीजें भी आम व्यक्ति अपने भोजन में लेने लग गया, और धीरे धीरे इन 50 वर्षों में राजसी बीमारियाँ आम बीमारियाँ हो गई हैं।
 
अगर हमको ये राजसी बीमारियाँ याने की अमीर लोगों की बीमारियों से बचना है या ठीक रहना है तो हमें पुरानी वाली खुराक पर लौटना चाहिये, वह आज भी उतनी ही कारागार है, जितनी पहले थी।
 
हमें हमारी पीढ़ी को आज से ही खानपान की सही आदतें सिखानी होंगी, नहीं तो वे इन अमीर लोगों की बीमारियों में जल्दी ही घिर जायेंगे।
 
जितनी जल्दी हो सके हमें सबसे पहले अपने मोटापे से मुक्ति पा लेनी चाहिये, उपाय बोलने सुनने में जितना सरल लगता है, व्यवहारिकता में उतना ही कठिन है। हमें प्राकृतिक वस्तुओं का उपभोग करना चाहिये याने कि फल एवं सब्जियों का, अच्छे से धोकर, जरूरत लगे तो उबालकर खाना चाहिये। उबालकर केवल वही सब्जियाँ खानी चाहिये जो लगे कि वे धोकर अच्छे से साफ नहीं होंगी। जैसे कि फूलगोभी, ब्रोकली।
 
कच्ची सब्जियों में मुझे सबसे ज्यादा पसंद है शिमला मिर्च, जी हाँ बहुत ही जबरदस्त स्वाद होता है। एक बार आदत लग गई तो आप कभी भी शिमला मिर्च को कच्चा खाने का मोह त्याग नहीं पायेंगे।
 
#OldisGold #StayHealthy #StarchFood

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रिलायंस जिओ का टेलीकॉम युद्ध

आज सुबह रिलायंस जिओ के प्लॉन समाचार पत्र में पढ़े तो देखकर ही दिमाग चकरघिन्नी हो गया। अब लगा कि रिलायंस जिओ, आईडिया एयरटेल की दुकानों पर भारी पड़ने वाला है, और रिलायंस जिओ का टेलीकॉम युद्ध शुरू हो गया है जो बाकी के सभी ऑपरेटर्स को बहुत भारी पड़ने वाला है, क्योंकि जिओ का सारा इन्फ्रास्ट्रक्चर नया है और उनकी कॉस्ट कम है, और बाकी के लोग हाथी हो चुके हैं। यहाँ तक कि इनके प्लॉन से अब ब्रॉडबैंड कंपनियों तक की बैंड बजने की उम्मीद है।

परसों ही ऑफिस के केन्टीन में लाईन से बैठे मोबाईल ऑपरेटर्स के डेस्कों पर गया और पूछने लगा कि अभी जो प्लॉन है, उससे मेरा काम नहीं चल रहा है। ज्यादा वाला प्लॉन बता दो, जिसमें लोकल और एस.टी.डी. दोनों ज्यादा हों, डाटा जितना है उतना ही चलेगा।

पहली डेस्क वोदाफोन जो अभी मेरा नेटवर्क ऑपरेटर है –

उनके प्लॉन देखे, तो कोई प्लॉन जमा ही नहीं, कहीं न कहीं कोई न कोई ट्रिक, ज्यादा कॉल्स तो डाटा प्लॉन में कमी, और डाटा ज्यादा तो कॉल में कमी। हमने कहा यार तुम लोग तो लूटने में ही लगे हो, और कितना निचोड़ोगे जनता को, Continue reading रिलायंस जिओ का टेलीकॉम युद्ध

बच्चों के शरीर के विकास के लिये न्यूट्रिशियन्स

लगभग सभी माता पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे हरेक चीज में आगे हैं फिर चाहे वह पढ़ाई लिखाई हो या खेल हो। यह बात मुझे अच्छी तरह से तब समझ में आई जब मैं पिता बना। बच्चों को अपनी उम्र के मुताबिक, बच्चों के शरीर के विकास के लिये न्यूट्रिशियन्स सही मात्रा में मिलें, हमें इसका ध्यान रखना जरूरी है। बच्चों का शारीरिक विकास ठीक तरीके से हो रहा है उसके लिये कुछ चीजें बहुत महत्वपूर्ण हैं, जैसे कि शारीरिक विकास के पड़ाव, इन्फेक्शन से लड़ने के लिये इम्यूनिटी (शारीरिक प्रतिरोधक क्षमता) और उम्र के हिसाब से होने वाली सक्रियता। तो बच्चों को चाहिये एक सम्पूर्ण स्वस्थ आहार जो कि शारीरिक क्रियाकलापों की सक्रियता में मदद करे।

एक सम्पूर्ण स्वस्थ आहार जिससे बच्चे को सही मात्रा में कार्बोहाईड्रेट, प्रोटीन्स, फैट्स और विटामिन मिलते हैं। वैसे भी छोटे बच्चों के लिये घर में बना भोजन ही न्यूट्रीशियन्स का मुख्य स्रोत होता है। परंतु आजकल लगभग सभी माता पिता की यही शिकायत होती है कि बच्चा कुछ चुनी हुई चीजें ही खाता है, हमारी आधुनिक जीवन के जीने के तरीका भी बच्चों को चुनी हुई चीजों को खाना सिखलाता है जैसे कि आजकल की भागती दौड़ती जिंदगी में हम जंक फूट, रेडी टू ईट फूड खाते हैं, खाने की क्वालिटी के साथ समझौता करते हैं, मिलावटी खाना खाते हैं, वह सभी चीजें खाते हैं जो नहीं खाना चाहिये और इसी कारण बच्चों को सही मात्रा में न्यूट्रीशियन्स नहीं मिल पा रहे हैं।

बच्चों को सारी चीजें खाने की आदत डालनी चाहिये खासकर घर में बनी चीजों की चाहे जैसे कि रोटी दाल, दाल चावल, दाल खिचड़ी, हरी सब्जियाँ, बिरयानी, दाल बाटी, लिट्टी चोखा। साथ ही बच्चों को ज्यादा कैलोरी वाली चीजें भी खिलानी चाहिये जैसे कि पनीर, मिठाईयाँ, काजू करी, हरेक चीज में घी दीजिये, अंडा पीली बॉल के साथ खाना है। क्योंकि बच्चे ज्यादा खेलते हैं तो उनको ज्यादा कैलोरी की जरूरत भी होती है। आप देख सकते हैं अपने बच्चों को कि वो एक जगह तो बैठेंगे ही नहीं और हमेशा इधर से उधर घूमते ही रहेंगे।

अगर बच्चा खाने में मीनमेख निकालता है तो इसका मतलब भी यही है कि वह कुछ चीजें या तो खाना ही नहीं चाहता है या फिर उनको उस समय खाने से बचना चाहता है। इसके लिये बच्चों को अपने साथ बातों में लगाकर उनको खाना खिलायें, हो सके तो कभी कभार अपने हाथों से खिलायें, प्यार से बात करके खिलायें। हर बार डाँटने या मारने से काम नहीं चलेगा।

एक बात और ध्यान रखें कि केवल खाने से ही सब कुछ बच्चों को नहीं मिल जायेगा, उसके लिये उन्हें कुछ अतिरिक्त चीजें सीमित मात्रा में भी साथ में देनी होंगी, सप्लीमेंट जैसे कि हॉर्लिक्स ग्रोथ + जो कि बच्चों को शारीरिक विकास में न्यूट्रीशियन्स की कमी को पूरा कर भरपूर सहयोग करता है।

पर ध्यान रखें सप्लीमेंट केवल भोजन में न मिलने वाले न्यूट्रीशियन्स की कमियों को पूरा करता है। सप्लीमेंट को भोजन के रूप में नहीं खाया जा सकता है। हमें यह भी नहीं भूलना नहीं चाहिये कि सबसे ज्यादा न्यूट्रीशियन्स घर के खाने में ही मिलते हैं, बाजार के खाने में नहीं मिलते हैं। सप्लीमेंट को हमेंशा डॉक्टर की सलाह से ही लेना ठीक रहता है।

कला, साहित्य और राजनीति

कला, साहित्य और राजनीति तीनों पृथक कलायें हैं परन्तु इसके घालमेल से व्यक्ति सफलता के चरम शिखर तक जा पहुँचता है। संघर्ष हर कोई करता है, योग्यता भी हर किसी में होती है। निसंदेह कुछ लोगों को छोड़कर जो कि अपवाद होते हैं। परन्तु जो केवल एक ही चीज पकड़कर आगे बढ़ता है वह हमेशा ही संघर्ष करता रहता है। यह विचार कुछ लोगों में गफलत जरूर पैदा कर सकता है।

वैसे ही जब मैं किसी एक और विचार को सुन रहा था, जब एक वरिष्ठ साहित्यकार जो कि किसी बड़े सम्मान से नवाजे जा चुके थे और उन्होंने अपना घर पर पार्टी का आयोजन किया, तो सबसे पहले उनके घर पर एक बड़ी साहित्यकारा नेत्री पहुँच गईं, और उन दोनों की गुफ्तगू चल रही थी, साहित्यकार महोदय मद्यपान और धूम्रपान कर रहे थे, और सामने के सोफे पर ही नेत्री बैठी थीं। एक बात हमें बहुत मुद्दे की लगी, जब नेत्री ने कहा कि यह मुकाम आपने बहुत संघर्ष से पाया है, तब साहित्यकार महोदय कहते हैं कि नहीं आप गलत हैं, असल में आज जिस मुकाम पर मैं हूँ केवल अपनी चालाकी के कारण, तो नेत्री जी उनकी बात से असहमत थीं, तो साहित्यकार महोदय ने उनको कहा कि आप क्या सभी लोग असहमत होंगे परंतु सच यही है कि मैं केवल अपनी चालाकी के कारण यहाँ तक पहुँचा। Continue reading कला, साहित्य और राजनीति

डाटसन रेडी गो

डाटसन मेरी पुरानी यादों में है, जब मैं अपने बचपन के दिन याद करता हूँ तो डाटसन का नाम मेरे जहन में आता है जैसे कि कारों में कभी एम्बेसेडर नाम होता था। डाटसन तब बदला जब इसे निसान ने खरीदा और भारत में आने का फैसला किया। डाटसन कार अपनी विलासितापूर्ण कारों के लिये जाना माना नाम था और आज भी जाना जाता है।

हमेशा ही जब भी कम दामों के सेगमेंट में कोई भी कार बाजार में लांच होती है तो मेरे लिये हमेशा ही यह देखने का आकर्षण होता है कि इस नयी कार में ऐसा कौन सा फीचर है जो मेरी कार में नहीं है, और इसी तरह से हम कारों के बारे में जानते हैं और नयी तकनीकों को बेहतरीन तरीके से जान पाते हैं। जब मैंने कार ली थी तब भी मैंने डाटसन लेने की सोची थी, परंतु उस समय कुछ और समस्याओं के चलते में डाटसन की कार नहीं खरीद पाया था।

जब मैंने डाटसन की रेडी गो के बारे में देखा और जाना तो पाया कि कई मायनों में रेडी गो डाटसन की कार अपने आप में इस सेगमेंट में कई कारों को पीछे छोड़ती है। डाटसन रेडी गो कार अपने आप में इस सेगमेंट में पहली कार है जो कि कॉम्पेक्ट अर्बन क्रॉस और हैचबैक दोनों ही विशेषताओं के साथ उपलब्ध करवाई गयी है। डाटसन रेडी गो कार 2.5 लाख से 3.5 लाख के अलग अलग दामों में अलग अलग वेरियेंट में उपलब्ध है।

डाटसन रेडी गो 0.8 लीटर इंजिन, 3 सिलेंडर में है जो कि ईंधन भी कम खाता है और 5 गीयर हैं।

हाई ग्राऊँड क्लियरेन्स –

डाटसन रेडी गो का हाई ग्राऊँड क्लियरेन्स कार को बड़े स्पीड ब्रेकर्स और कच्ची सड़को पर चलना आसान बनाते हैं, कई जगह सड़के के किनारे थोड़े ऊँचे होते हैं जिससे कार में साईड में नीचे की तरफ नुक्सान हो जाता है या तो डैंट पड़ जाता है या फिर स्क्रेच पड़ जाते हैं, तो हाई ग्राऊँड क्लियरेन्स से कार को विशेष सुरक्षा मिलती है।

ड्राईव कम्पयूटर –

लगातार कार के कम्प्यूटर में औसत ईंधन खपत बताता रहता है, कितने किलोमीटर चलने के बाद ईँधन भरवाना पड़ेगा और कितना ईँधन बचा है, यह सब लगातार आँखों के सामने दिखता रहता है।

शिफ्ट इंडिकेटर –

हमेशा ही कार में गियर बदलने के लिये संशय ही रहता है, तो यहाँ कम्प्यूटर ड्राईवर की सहायता के लिये है जिससे कि ड्राईवर को हमेशा ही पता रहेगा कि कब गियर बदलना है, कम्प्यूटर गियर बदलने के लिये ड्राईवर को इंडिकेट कर देता है।

एक और खास विशेषता कार में होनी चाहिये वातानुकुलन याने की ए.सी., ए.सी. को पूरी कार को ठंडा करने की क्षमता रखना चाहिये। मैं हमेशा ही कार के सारे काँच बंद कर हमेशा ही ए.सी. चालू करके कार चलाता हूँ, कई कारों में ए.सी. को ज्यादा पर चलाना पड़ता है तभी कार में बैठी पीछे सीट की सवारी को हवा पहुँच पाती है, परंतु डाटसन रेडी गो में यह ध्यान रखा गया है कि 50 प्रतिशत हवा पीछे सीट पर बैठी सवारी को मिले इसके लिये 89सीसी के कम्प्रेशर का उपयोग किया गया है।

जैसा कि पहले बताया भारत में यह पहली अर्बन क्रॉसओवर कार है तो मुझे यह जानने की और ज्यादा इच्छा है कि यह कार हमें और क्या क्या सुविधाएँ देती है। और उम्मीद करते हैं कि जल्दी ही एक टेस्ट ड्राईव हमें लेने को मिलेगी।

 

Fun. Freedom. Confidence. The ultimate Urban Cross – Datsun redi-GO – the capability of a crossover with the convenience of a hatchback.

हॉर्लिक्स में मौजूद माईक्रो न्यूट्रिशियन

हम हमेशा ही ब्लॉगर मीट के लिये तैयार रहते हैं, इंडीब्लॉगर मीट के तीन चार दिन पहले ही पता चला कि रविवार को विवांता ताज, जो कि महात्मा गाँधी सड़क पर है, रखा गया है। अभी बेटेलाल के विद्यालय की गर्मियों की छुट्टियों के कारण वे भी इस ब्लॉगर मीट में जाने को तैयार थे। हम दोनों ब्लॉगर चल पड़े, ब्लॉगर मीट के लिये घर से, और बिल्कुल समय से 4 बजे पहुँच भी गये।

हॉर्लिक्स ने यह ब्लॉगर मीट इंडीब्लॉगर के साथ रखी थी, जिसका नाम था The Horlicks Immunity Indiblogger Meet और जिसका हैशटैग #Immunity4Growth रखा गया था। जैसे ही हम मीटिंग में पहुँचे तो हमें अनूप और रैने से मिलने का अवसर मिला और जाने पहचाने पुराने ब्लॉगर, जो कि ब्लॉग में और ब्लॉगर मीट में मिलते ही रहते हैं। Continue reading हॉर्लिक्स में मौजूद माईक्रो न्यूट्रिशियन

मरना क्या होता है, अजीब सा प्रश्न है

मरना क्या होता है, अजीब सा प्रश्न है, परंतु बहुत खोज करने वाला विषय भी है क्योकि सबको केवल जीवन का अनुभव होता है, मरने का नहीं। सोचता हूँ कि काश मरने का अनुभव रखने वाले भी इस दुनिया में बहुत से लोग होते तो पता रहता कि क्या क्या तकलीफें होती हैं, जीवन से मरने के दौरान किन पायदानों से गुजरना पड़ता है। जैसे जीवन के दर्द होते हैं, शायद मरने के भी कई दर्द होते होंगे, जैसे हम कहते हैं कि वह तो अपनी किस्मत पैदा होने के साथ ही लिखवा कर लाया है, तो वैसे ही शायद मरने के बाद के भी कुछ वाक्य होते होंगे, कि मरने के समय ही अपनी किस्मत लिखवा कर लाया है।

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