Category Archives: अध्ययन

वैश्वीकरण के दौर में हिन्दी भारतीयों के लिये..

    हिन्दी दिवस हमें क्यों मनाने की जरूरत पड़ी, ये बात समझ से परे है, हमने तो आजतक अंग्रेजी दिवस या किसी और भाषा का दिवस मनाते नहीं देखा । यह ठीक है कि भारत पर कभी ब्रतानिया साम्राज्य शासन किया करता था, परंतु हमने आजाद होने के बाद भी अपनी भाषा का सम्मान वापिस नहीं लौटाया और हम ब्रतानिया साम्राज्य की भाषा पर ही अटके रहे, क्यों ? यह एक बहुत ही विकट प्रश्न है, जिसके लिये हमें गहन अध्ययन की जरूरत है। इसके पीछे केवल राजनैतिक इच्छाशक्ति की ही कमी नहीं कही जा सकती, इसके पीछे भारतीय मानस भी है जो अपनी भाषा में कभी मजबूत नहीं दिखे, जब लगा कि केवल अंग्रेजी भाषा ही सांभ्रात भाषा है तो अपनी भाषा में उन्हें वह सम्मान समाज ने नहीं दिया।

    जब दूसरे देश अपनी भाषा से इतना प्यार करते हैं और अंग्रेजी भाषा को अपने संस्कार और अपने परिवेश में आने की इजाजत ही नहीं देते हैं, तो हम क्यों ऐसा नहीं कर सकते ? ऐसा नहीं है कि अंग्रेजी भाषा ने उन देशों में पैर पसारने की कोशिश नहीं की, कोशिश की परंतु वे लोग कामयाब नहीं हो पाये । अब वैश्वीकरण के युग में भी वे देश अंग्रेजी भाषा को नकारने में लगे हुए हैं, और अपनी भाषा में ही काम करने के लिये दृढ़ हैं, हाँ जमीनी तौर पर कुछ कठिनाइयाँ बेशक आती होंगी, परंतु कम से कम वहाँ की जनता अपनी भाषा में हर सरकारी कार्य को समझती तो है।

    हमारे यहाँ भारत में सबसे पहले तो साक्षरता का यक्ष प्रश्न है, फ़िर अधिकतर सरकारी कार्यों में कार्यकाज की भाषा अंग्रेजी है, और जहाँ पर आम भारतीय जनता को रोज दो चार होना पड़ता है। वे उस भाषा में अपने कागजात बनवाने के लिये मजबूर होते हैं, जो भाषा उनको आती ही नहीं है और किसी ओर के भरोसे वे अपने महत्वपूर्ण कागजारों पर हस्ताक्षर करने को बाध्य होते हैं ।

    हिन्दी कब हमारी आम कामकाज की भाषा बन पायेगी, और वैश्वीकरण का हवाला देने वाले कब समझेंगे कि आधारभूत दस्तावेजों के लिये हमारी खुद की भाषा हमारे देश के लिये उपयुक्त होगी । कम से कम हमारे देश के लोगों को अपने दस्तावेज तो पढ़ने आयें, कामना यही है कि हमारे आधारभूत दस्तावेज तो कम से कम हमारी अपनी हिन्दी भाषा में हों।

म्यूचयल फ़ंड में डाइरेक्ट या रेग्यूलर प्लॉन किसमें निवेश करें ?(Where to Invest Mutual fund Direct or Regular plan)

    म्यूचयल फ़ंड में डाइरेक्ट प्लॉन के जरिये निवेश करना एक अच्छा विकल्प है। पर डाइरेक्ट प्लॉन में तभी निवेश करें जब आपको म्यूचयल फ़ंड के बारे में अच्छी जानकारी है, अगर आपको म्यूचयल फ़ंड के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है तो बेहतर है कि आप डाइरेक्ट प्लॉन ना लें और किसी ब्रोकर, एजेन्ट या डिस्ट्रीब्यूटर से ही प्लॉन लें।
    डाइरेक्ट प्लॉन इसी वर्ष १ जनवरी २०१३ से शुरू हुआ है, और यह इस प्लॉन में निवेश करने वालों के लिये म्यूचयल फ़ंड हाऊस ने अपनी लागत कितनी कम की है और निवेशक को कितना फ़ायदा पहुँचाया है यह भी निकट भविष्य में पता चलेगा । फ़ंड हाऊस के हर म्यूचयल फ़ंड स्कीम में अब दो प्लॉन होंगे । एक तो वही पुराना रेग्यूलर प्लॉन और दूसरा डाइरेक्ट प्लॉन जिनकी एन.ए.वी. भी अलग अलग होंगी। डाइरेक्ट प्लॉन में निवेश करने वाले निवेशक को लंबी अवधि में अच्छा फ़ायदा होने की उम्मीद है, परंतु कितना अंतर होगा यह फ़ंड हाऊस कितनी लागत कम करता है और कितना अधिक फ़ायदा निवेशक को देता है।
    रेग्यूलर प्लॉन और डाइरेक्ट प्लॉन की एन.ए.वी. में अभी केवल .१०% से १.२५% तक का अंतर देखने को मिला है। पर यह अंतर पिछले ७-८ महीने का ही है, अगर फ़ंड हाऊस अपनी लागत कम कर डाइरेक्ट निवेशक को ज्यादा फ़ायदा देंगे तो लंबी अवधि में यह अंतर ३ से ५ प्रतिशत तक हो सकता है । हालांकि फ़ंड हाऊस डिस्ट्रीब्यूटर्स, ब्रोकर और एजेन्टों को खुश करने के लिये ज्यादा फ़ायदा भी डाइरेक्ट निवेशक को नहीं देने वाले हैं, अभी भी जिन निवेशकों ने किसी एजेन्ट के जरिये निवेश कर रखा है वे अपने निवेश को डाइरेक्ट प्लॉन में स्विच कर सकते हैं। निवेशक अधिकतर केवल यह कदम इसी दशा में करता है जब उसे डिस्ट्रीब्यूटर्स, ब्रोकर और एजेन्टों से मदद नहीं मिलती । खैर हमने तो अधिकतर यही देखा है कि अभी हमारे निवेशकों में इतनी जागरूकता नहीं है कि वे खुद जाकर फ़ंड के बारे में समझें, जो भी उनके आसपास उन्हें बेचने आ जाता है तो त्वरित निर्णय में म्यूचयल फ़ंडों की खरीदारी की जाती है।
    रेग्य़ूलर प्लॉन में म्यूचयल फ़ंड  लेने से डिस्ट्रीब्यूटर्स, ब्रोकर और एजेन्टों को उनका कमीशन मिलता है जो कि उनके लिये जरूरी भी है, क्योंकि वे उसी कमीशन की कमाई से निवेशक को सुविधाएँ भी देते हैं जैसे कि पता बदलना, बैंक का बदलना, निवेश को एक फ़ंड से दूसरे फ़ंड में स्विच करना, नामांकित करना, निवेश खाते में बदलाव, फ़ोन नंबर बदलना इत्यादि।
    डाइरेक्ट प्लॉन में म्यूचयल फ़ंड लेने पर निवेशक को खुद ही यह सारे कार्य करने पड़ते हैं, वैसे आजकल यह सुविधा बहुत अच्छी हो गई है, लगभग सभी म्यूचयल फ़ंडों में बहुत सारी सुविधाएँ ऑनलाईन / फ़ोन के द्वारा ही उपलब्ध हैं। अगर फ़िर भी परेशानी है तो इन म्यूचयल फ़ंडों के ग्राहक सेवा पर फ़ोन करके परेशानी सुलझायी जा सकती हैं।

खाद्य सुरक्षा बिल / घोटाला / रेटिंग एजेन्सियाँ / जीडीपी / फ़ायदे

    कोल स्कैम घोटाला २६ लाख करोड़ का हुआ (विश्लेषकों के अनुसार), सरकार (सीएजी) के अनुसार १.८६ लाख करोड़ नंबर सामने आया । नया खाद्य सुरक्षा बिल के लिये जो राशि सरकार ने उजागर की है वह है १.२५ लाख करोड़ रूपये जो कि सरकार के ऊपर भार है, मतलब यह देखिये कि भारत के ६१ करोड़ लोगों के लिये १.२५ करोड़ रूपये भारी पड़ रहे हैं, परंतु कोलगेट घोटाला जो कि इससे कहीं ज्यादा था तब सारी रेटिंग एजेंसियाँ चुप बैठी थीं, तब हमारा जीडीपी पर पड़ने वाला फ़र्क क्या इन रेटिंग एजेंसियों को समझ नहीं आ रहा था । जब जनता के लिये सरकार खर्च कर रही है तो रेटिंग एजेंसियों को लगने लगा कि इससे भारत में कुछ हद तक सुधार की गुंजाइश है तो एकदम से “रेटिंग गिर सकती है” का बयान आ गया।

    हालांकि सरकार का कहना है कि जीडीपी १% तक कम हो सकती है परंतु यह सरकारी आँकड़ा है, अगर सही तरीके से इस आँकड़े को देखा जाये तो यह आँकड़ा ३% के भी ऊपर है, जो कि भारतीय अर्थव्यवस्था पर एक बहुत बड़ा बोझ होगा। क्या रेटिंग एजेन्सियों ने कभी भारत में हुए बड़े घोटालों से होने वाली हानि का आकलन हमारी अर्थव्यवस्था के लिये किया है, अगर नहीं तो वाकई इसके पीछे की वजह जानने वाली है। क्यों हमारे भारत के बड़े बड़े घोटालों का आर्थिक विश्लेषण कर रेटिंग कम नहीं की गई, क्या इसका कुछ हिस्सा इन रेटिंग एजेन्सियों की जेब में भी जाता है ?

    जितने भी बड़े बड़े घोटाले हुए हैं, वे पिछले ९ वर्ष में प्रतिवर्ष ३% जीडीपी के घोटाले हुए हैं, अगर हमारा लक्ष्य ५.२% है तो वह आराम से ३% ज्यादा होता और हम ८.२% के जीडीपी की रफ़्तार से बढ़ रहे होते । रूपये की गिरते साख के चलते यही लक्ष्य ४.८% पर फ़िर से निर्धारित किया गया है। हालांकि जितने भी वित्तीय आँकड़े बताये जाते हैं वे सब एक बहुत बड़े आंकलन पर दिये जाते हैं, जिसकी तह में कोई नहीं जाना चाहता। क्या हमारी अर्थव्यवस्था की वाकई कोई बेलेन्स शीट है। कम से कम हमें पता तो चले कि इतना पैसा अगर टैक्स से सरकारी खजाने में आ रहा है तो वह खर्च किधर हो रहा है।

    सरकारी खजाने के खर्च से जीडीपी पर सीधा असर पड़ता है। अब इस १.२५ लाख करोड़ के खाद्य बिल से कितना फ़ायदा गरीब लोगों को मिलता है, वह तो भविष्य ही बतायेगा, और कितना फ़ायदा इन गरीब लोगों के हाथों में अन्न पहुँचाने वालो को होगा यह भी भविष्य ही बतायेगा। वाकई अन्न गरीबों तक पहुँचता है या फ़िर एक नया खाद्य घोटाले की नींव सरकार ने रखी है।

    परंतु अगर वाकई ईमानदारी से इस योजना को लागू किया जाता है और पूरा का पूरा पैसे का फ़ायदा गरीबों तक पहुँचता है, तो इसके फ़ायदे भी बहुत हैं, यह कुपोषण से लड़ने में मददगार होगा, सरकार पर स्वास्थ्य योजनाओं के मद में किये जाने वाले खर्च में आश्चर्यजनक रूप से कमी आयेगी। स्वास्थ्य सुविधाएँ और भी बेहतर हो सकेंगी, स्तर अच्छा होगा। निम्न स्तर के व्यक्ति भी अच्छे स्वास्थ्य के चलते बेहतर कार्य कर सकेंगे, बुनियादी स्तर की शिक्षा का फ़ायदा ले सकेंगे। अपनी मेहनत करके भारत के विकास में अतुलनीय योगदान दे सकेंगे।

रूपये की विनाशलीला देखने के लिये तैयार हैं ?

    आजकल सब और चर्चा में डॉलर और रूपया है और जब से रूपया १०० रूपया पौंड को पार किया है तब से पौंड भी चर्चा में है। कल ही एक परिचित से बात हो रही थी, तो वे कहने लगे कि हमारे भारत पर तो ब्रिटिश का शासन था फ़िर हमारे ऊपर यह डॉलर क्यों हावी है, हमारे विनिमय तो पौंड में होना चाहिये। हमने उन्हें समझाया कि डॉलर को विश्व में मानक मुद्रा का दर्जा मिला हुआ है, डॉलर से लड़ने के लिये यूरोपीय देशों ने यूरो मुद्रा की शुरूआत की थी, नहीं तो उन्हें सब जगह डॉलर से उस देश की मुद्रा का विनिमय करना पड़ता था। अब उन्हें यूरो मुद्रा का विनिमय यूरोपीय देशों में नहीं करना पड़ता है।

    डॉलर क्यों पटकनी दे रहा है रूपये को, यह समझने की कोशिश करें तो लुब्बा लुआब यह है कि हमने आयात ज्यादा किया और निर्यात कम किया, याने कि विदेशी मुद्रा जो कि मानक मुद्रा डॉलर है वह हमारे खजाने से ज्यादा गई और मानक मुद्रा डॉलर हमारे खजाने में कम आई, खैर इस बात का ज्यादा मायने भी नहीं है क्योंकि डॉलर हमारे रूपये के मुकाबले अभी ओवररेटेड है, अगर वाकई असली दाम इसका देखा जाये तो लगभग २० रूपये होना चाहिये। और डॉलर अभी तीन गुना ज्यादा दाम पर व्यापार कर रहा है।

Rupees vs USD

USD Vs INR

    हमारी जीडीपी याने कि सकल घरेलू उत्पाद लगातार कम होती जा रही है, हमने पिछले ९ वर्षों में  मान लो कि रत्न आभूषण ५०० अरब डॉलर के आयात किये और लगभग ३५० करोड़ के रत्न आभूषण हमने निर्यात किये तो हमें पिछले ९ वर्षों में लगभग १५० करोड़ का विशुद्ध घाटा हुआ है। इसी प्रकार पेट्रोलियम और गैस में जमकर घाटा हुआ है, कुछ अंदरूनी कलह के कारण और कुछ व्यापारिक प्रतिष्ठानों की जिद के कारण । भारत विश्व में उत्पादित सोने और पेट्रोल के बहुत बड़े भाग  का उपयोग करता है।

    स्वतंत्रता के बाद से भारत का रूपया कभी राजनैतिक कारणों से तो कभी व्यापारिक कारणों से तो कभी आर्थिक नीतियों से मात खाता आया है, हमारे भारत के पास बेहतरीन काम करने वाले लोग हैं, बेहतरीन वैज्ञानिक हैं, पर उन्हें भारत के लिये उपयोग करने के लिये ना ही राजनैतिक इच्छाशक्ति है और ना ही आर्थिक जगत की इच्छाशक्ति है। अगर कुछ और बड़ी कंपनियाँ भारत की बाहर व्यापार करने लगें तो डॉलर की नदियों का मुख भारत की और होगा।

    अधिकतर अंतर्राष्ट्रीय कंपनियाँ अपने लाभ का एक बड़ा हिस्सा मानक मुद्रा याने कि डॉलर में विनिमय कर भेज देती हैं। हम भारतवासियों को भी समझना होगा कि हमें घरेलू उत्पादों का ज्यादा उपयोग करना चाहिये, जिन उत्पादों से डॉलर बाहर जा रहा है, उन उत्पादों को उपयोग करने से बचना चाहिये।

    मुद्रा गिरने से हमारे भारत के आर्थिक हालात बेहद खराब हो सकते हैं, इसका सीधा असर बैंक में बड़े बड़े ऋण पर पड़ेगा, बाहर पढ़ने वाले विद्यार्थियों पर पड़ेगा ये दो बड़े भार होंगे हमारी अर्थव्यवस्था पर, वैसे ही राष्ट्रीयकृत बैंकें ४ % से ज्यादा एन.पी.ए. याने कि जो ऋण डूब चुके हैं, से लड़ रही हैं, और अब यह व्यक्तिगत मुश्किलें बड़ाने वाला दौर होगा, अर्थव्यवस्था पर इसका सीधा असर कुछ ही दिनों में दिखना शुरू हो जायेगा, जब पेट्रोलियम पदार्थों के भाव आसमान छूने लगेंगे तो इसका सीधा असर हमारी दैनिक उपयोग की वस्तुओं पर पड़ते देर नहीं लगेगी। जब रूपया ३३% गिर चुका है तो अब पेट्रोलियम के भाव में ३३% की तेजी का अंदाजा लगा ही सकते हैं। सरकार भी कब तक राजनैतिक कारणों से रूपये के गिरने के कारण महँगाई से जनता को बचा पायेगी, और अगर यह भार जनता पर नहीं डाला गया तो भारत के खजाने पर सीधा असर पड़ेगा।

    हमारा कैश इन्फ़्लो तो उतना ही रहने वाला है वह तो डॉलर के महँगे होने से या रूपये के गिरने से ज्यादा नहीं होने वाला है, तो अब भविष्य के संकेत ठीक नहीं है, जितनी बचत अभी तक कर लेते थे, अब वह बचत भी बहुत कम होने वाली है। अभी भी अगर इस पर नियंत्रण नहीं पाया गया तो रूपये की विनाशलीला देखने के लिये तैयार रहना होगा।

घर बैठे, शेयर बाजार से कमायें २५००० से ७५००० रूपये–क्या है यह !! (Earn 25000 to 75000 per month from Share Market, How ?)

    बाजार में कई वर्षों से देख रहे हैं, लोग / कंपनियाँ आती हैं और दावा करती हैं कि एस.एम.एस. और ईमेल के द्वारा हम दिन में इतने कॉल देंगे, और इससे आप शेयर बाजार से बहुत सारा धन कमा सकते हैं । शेयर बाजार में लोग इनके चंगुल में फ़ँस भी जाते हैं, क्योंकि सभी लोग जल्दी से जल्दी धन कमा लेना चाहते हैं। पर अगर किसी से पूछो कि धन कमाकर क्या करेंगे तो उनके पास केवल जबाब होता है कि ऐश करेंगे, ऐश में क्या करेंगे वे नहीं बता पाते हैं।
    हम अपने मुख्य बिंदु पर बात करते हैं, क्या वाकई एस.एम.एस. / ईमेल पर आई टिप्स से पैसा कमाया जा सकता है ? शायद हाँ भी और नहीं भी !! इसका जबाब वाकई बहुत मुश्किल है, बाजार में सबसे मुख्य होता है समय के साथ चलना, जिसने जरा सी भी चूक की, फ़िर भले ही वह एक मिनिट की ही हो, उसे भरपूर घाटा उठाना पड़ सकता है और हो सकता है कि इस गलती से उसे भरपूर फ़ायदा भी मिल जाये।
    एस.एम.एस. में मुख्यत: इक्विटि (Equity) के नाम के साथ खरीदने या बेचने का रेट भेजा जाता है, टार्गेट भेजा जाता है और स्टॉप लॉस भेजा जाता है। लोग केवल टार्गेट पर ध्यान देते हैं स्टॉप लॉस कभी भी नहीं लगाते हैं, कम से कम मैंने तो बहुत ही कम लोगों को स्टॉप लॉस का उपयोग करते देखा है। जो समझदार होते हैं वे इन एस.एम.एस. टिप्स को लेते जरूर हैं, परंतु अपने अनुभव से अपने पैसे को बाजार में लगाते हैं। क्योंकि ये एस.एम.एस. भेजने वाली कंपनियाँ बहुत छोटे छोटॆ अक्षरों में अपने दस्तावेजों में लिखती हैं, कि होने वाली लाभ या हानि की जिम्मेदारी कंपनी की नहीं होगी, यह निवेशक (Investor) का व्यक्तिगत निर्णय है। कंपनी लीगल तरीके से साफ़ बच निकलती हैं।
    आजकल कई कंपनियाँ ट्विटर और फ़ेसबुक पर भी अपडेट कर रही हैं, परंतु जरूरत है अपने अनुभव से ही निवेश करने की, ये कंपनियाँ तो निवेशक (Investor) से मोटी रकम (Charges) वसूलती हैं और अलग हो जाती हैं, परंतु निवेशक (Investor) इनके बिछाये जाल में फ़ँस जाता है। कई समाचार पत्रों में हमने विज्ञापन देखा है कि “घर बैठे, शेयर बाजार से कमायें २५००० से ७५००० रूपये” (Earn 25000 to 50000 per month from Share Market, How ?), परंतु यह इतना आसान भी नहीं है, जितना कि विज्ञापन पढ़ने के बाद लगता है।
    सेबी को अब इन कंपनियों के मोबाईल कॉल और एस.एम.एस. खंगालने की आजादी मिली है, अब देखते हैं कि सेबी कैसे बहुत सारी छद्मवेशी कंपनियों पर क्या कार्यवाही करती है, जो कि बिना किसी विश्लेषण (Analysis) के निवेशकों (Investors) को चूना लगा रही हैं, वैसे भी अगर इन कंपनियों को बाजार की इतनी जानकारी होती है तो खुद ही फ़्यूचर ऑप्शन (Future Options) में पैसा (Fund) लगाकर धन कमा लें, क्यों बाजार में जानकारी बेचें ? कुछ लोग फ़ँस जाते हैं और कुछ लोग इनके चंगुल से बचे रहते हैं ।
    आगे इस बारे में कोई भी कदम उठायें तो सोच समझ कर उठायें, किसी की कॉल १०० प्रतिशत सही नहीं हो सकती, क्योंकि वह बाजार में इतना सारा धन लगाकर किसी भी एक शेयर को ऊपर नीचे नहीं कर सकता है यह केवल और केवल व्यक्तिगत निवेशक (Investor) के लिये जोखिम (Risk) है।

भारत की आधारभूत समस्याएँ और उसके समाधान.. सैनिटरी नैपकीन और पानी

    बहुत दिनों से सोच रहा हूँ रिवर्स माइग्रेशन के लिये, रिवर्स माइग्रेशन मतलब कि अपने आधार पर लौटना, जहाँ आप पले बढ़े जहाँ आपके बचपन के साथीगण हैं,  देशांतर गमन शायद ठीक शब्द हो। लौटकर जाना बहुत बड़ा फ़ैसला नहीं है, पर लौटकर वापिस वहाँ अपना समय किस तरह से समाज के लिये लगायें, यह एक कठिन फ़ैसला है। अभी पिछले दिनों जब मैं अपने कुछ व्यावसायिक मित्रों से अपने गृहनिवास में बात कर रहा था, जब मैंने उनको अपना मन्तव्य बनाया तो एक मित्र ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा “बोस सब उज्जैन वापिस आकर समाज सेवा ही करना चाहते हैं, एक दिन ऐसा आयेगा कि सब समाजसेवक ही होंगे, सेवा करवाने वाले कम”, उस मित्र की बात वाकई बहुत दिलचस्प लगी, अगर इतने लोग सेवा करने वाले उपलब्ध हैं पर कर नहीं पा रहे हैं तो उनको बस एक नई दिशा देने की जरूरत है।
    कुछ समय बाद ही इंडीब्लॉगर ने फ़्रेंकलिन टेंपलटन इन्वेस्टमेन्ट्स के साथ “द इंडिया काँरवा” प्रस्तुत किया जिसमें अपने विचार उन वक्ताओं के लिये देने थे जिन्होंने बिल्कुल सतही तौर पर समाज के साथ काम किया और टेडेक्स गेटवे मुंबई दिसम्बर २०१२ में उन्होंने अपने विचार रखे। उनके विचार सुनकर अपने तो दिमाग के सारे दरवाजे खुल गये, हम सोच रहे थे कि करें क्या ? परंतु यहाँ तो लोग आधारभूत समस्याओं से ही सामना कर रहे हैं, उनके लिये कुछ बड़ा करने से पहले, उनकी आधारभूत समस्याओं को समझा जाये और उस पर कार्य किया जाये।
    अरुनाचलम मुरुगनाथम मेरे लिये नया नाम था, परंतु जब मैंने इनकी कहानी सुनना शुरू कि जो इतनी दिलचस्प थी, कि मैं इनके कार्य करने और कुछ करने की जिद से बहुत प्रभावित हुआ, अरुनाचलम में शुरू से ही कुछ करने की इच्छा थी, जिस तरह से उन्होंने महिलाओं के लिये सैनिटरी नैपकीन का अविष्कार किया, जिससे महिलाएँ अपने खुद के लिये यह आधारभूत सुविधा पा सकें, जिस तरह से उनके किये गये अविष्कार से जितनी बड़ी आबादी को यह लाभ मिल सकेगा, कितने ही लोगों को रोजगार मिल सकेगा, सैनिटरी नैपकीन की बात महिलाएँ तो क्या पुरूष भी दबे शब्दों में बात करते हैं पर अरुनाचलम नें यही बात मंच तक लाई और इसके लिये कार्य कर इतनी महँगी चीज को बिल्कुल ही पहुँच वाले दामों में भारत की महिलाओं को उपलब्ध करवाया।
अरुनाचलम मुरुगनाथम की दिलचस्प यात्रा आप यहाँ सुन सकते हैं।
सिन्थिया कोनिग ने भारत की सबसे आधारभूत समस्या और सबसे भारी समस्या को समझा और उसका एक अच्छा, हल्का सा समाधान भी दिया। जैसा कि हम सब लोग जानते हैं भारत की सबसे बड़ी समस्या है पानी, जो कि सहजता से उपलब्ध नहीं है और जहाँ उपलब्ध है वहाँ से घर लाने में कितने श्रम की जरूरत होती है, आज भी गाँवों में महिलाएँ सिर पर पानी ढो़कर लाती हैं, और पानी बहुत भारी होता है। इसके लिये सिन्थिया कोनिग ने एक रोलर का अविष्कार किया जो कि ड्रम के आकार का है और पानी भरने के बाद उसे आसानी से खींचा जा सकता है, पानी अधिक मात्रा में लाया जा सकता है और सबसे बड़ी बात कि इसकी कीमत गाँव वालों की पहुँच में है मात्र ९७५ – १००० रूपये।
सिन्थिया कोनिक का दिलचस्प व्याख्यान यहाँ सुन सकते हैं, कैसे उन्होंने भारी पानी को हल्का कर दिया।
सुप्रियो दास, अच्छे खासे इंजीनियर थे, परंतु कुछ करने की इच्छाशक्ति ने उन्हें अपने खुद के लिये काम करने के लिये प्रेरित किया, और उन्होंने बहुत सारे अविष्कार भी किये, जिसमें उनका सबसे अच्छा और अधिकतर जनता को फ़ायदा पहुँचाने वाला है, जिम्बा !! जब सुप्रियो दास ने देखा कि हमारे यहाँ केवल अच्छा पीने लायक साफ़ पानी ना मिलने के कारण ही हजारों मौतें रोज हो रही हैं, उन्होंने इसके लिये बहुत शोध किया और पाया कि पर्याप्त मात्रा में क्लोरीन नहीं मिलाया जा रहा है या बहुत ही सस्ता क्लोरीन उपलब्ध ही नहीं है और अगर है भी तो कम या ज्यादा होने से नुकसानदायक है, तब उन्होंने जिम्बा उत्पाद बनाया जो कि पानी के स्रोत पर ही लगा दिया जाता है तो जहाँ से लोग पानी लेते हैं, उन्हें पर्याप्त मात्रा में क्लोरीन मिला हुआ पानी मिल रहा है, जिससे आश्चर्यजनक तरीके से जहाँ भी प्रयोग हुए अच्छे नतीजे मिले और सबसे बड़ी बात कि इस यंत्र में कोई भी ऐसी चीज नहीं लगी कि वह खराब हो सके।
सुप्रियो दास की क्लोरीन की कहानी, कैसे पानी को पीने लायक बनाया
    इन तीन अविष्कारों से मैं बहुत प्रभावित हुआ, अगर कुछ करने की ठान लो तो कुछ भी असंभव नहीं है, बस काम करना है यह सोच हमारी दृढ़ होनी चाहिये।
    यह पोस्ट फ़्रेंकलिन टेंपलटन द्वारा आयोजित टेडेक्स गेटवे मुंबई २०१२ में आयोजित “द इंडिया काँरवा” में कुछ महत्वपूर्ण सामाजिक और आधारभूत समस्यों से प्रेरित होकर लिखी गई है। Franklin Templeton Investments partnered the TEDxGateway Mumbai in December 2012.

मोबाईल की आत्मकथा – निबंध

मैं मोबाईल हूँ आज मैं आपको अपनी आत्मकथा सुनाता हूँ, बहुत लंबी यात्रा करके आज मैंने वर्तमान युग को आधुनिक सुविधाओं से युक्त कर दिया है। आज दुनिया में कोई भी मेरे बिना अपने दैनिक कार्यों की कल्पना नहीं कर सकता है, मैं आज की दुनिया का सबसे तेज संचार व्यवस्था का माध्यम हूँ।

मेरा अविष्कार  वर्ष १९७३ में मोटोरोला के अनुसंधानकर्ता मार्टिन कूपर ने किया था, मार्टिन कूपर को “मोबाईल का पितामह” भी कहा जाता है। मार्टिन कूपर ने ३ अप्रैल १९७३ को बेल प्रयोगशाला के प्रतिद्वन्दी डॉ. एंगेल से पहली बार मोबाईल से फ़ोन पर बात की थी। १९७९ में एन.टी.टी. ने जापान में अपना पहला वाणिज्यिक सेलुलर नेटवर्क स्थापित किया था। १९८१ में पूर्णत: स्वचलित मोबाईल प्रणाली डेनमार्क, फ़िनलैंड, नार्वे और स्वीडन में शुरू हुई थी। फ़िर तो १९८० के मध्य से कई देशों ने मेरी शुरूआत की जैसे ब्रिटेन, मेक्सिको और कनाडा।

वर्ष १९८३ में मोटोरोला ने अमेरिका में 1G नेटवर्क स्थापित किया। उस समय मेरी क्षमता केवल ३० मिनिट बात करने तक ही सीमित थी उसके बाद मुझे १० घंटे चार्ज करना पड़ता था। उस समय बाजार में मेरी बहुत जबरदस्त माँग थी जबकि बैटरी बहुत कम चलती थी, मेरा वजन ज्यादा था और बैटरी कम चलने के कारण बात भी कम हो सकती थी, परंतु फ़िर भी हजारों खरीददार मेरे इंतजार में थे।

वर्ष १९९१ में फ़िनलैंड के रेडियोलिंजा 2G नेटवर्क की शुरूआत की थी, मोबाईल पर एस.एम.एस की शुरूआत वर्ष १९९३ में फ़िनलैंड से हुई थी,  2G सेवा के दस वर्ष बाद 3G सेवा एन.टी.टी. डोकोमो ने जापान में शुरूआत की थी। अब 4G भी सेवा में आ चुका है और 5G परीक्षण के दौर में है।

मोबाईल  से बात की जा सकती है, एस.एम.एस. भेजे जा सकते हैं और अब तो मोबाईल से क्या क्या नहीं किया जा सकता है, अब स्मार्ट फ़ोन का दौर है, अब टच स्क्रीन फ़ोन से संगीत सुन सकते हैं, कैमरे का उपयोग कर सकते हैं, इंटरनेट का उपयोग कर सकते हैं।

अभी मोबाईल बनाने में मुख्य छ: कंपनियाँ हैं सेमसंग, नोकिया, एपल, ZTE, एल.जी., हुवाई ।

आज के इस आधुनिक दौर में मैंने सारी सुविधाएँ दे दी हैं, अब बैंक से पैसे ट्रांसफ़र करने हो तो मोबाईल से किये जा सकते हैं, किसी भी बिल का भुगतान करना हो या ट्रेन, प्लेन का टिकट बुक करना हो वह भी मोबाईल से किये जा सकते हैं। मेरी सुविधाओं में दिन प्रतिदिन उन्नति हो रही है, और नई नई सुविधाओं का उपयोग दुनिया कर पायेगी।

बात करने का बहाना चाहिये तो प्रकृति सबसे अच्छा विषय है

    कल दोपहर का भोजन करने के बाद हमेशा की तरह थोड़ा टहलने निकला था, मौसम सुहाना था, बहुत दिनों बाद मुँबई में धूप देख रहा था, जैसे धरती पर अचानक ही रुपहली सुनहली चादर किसी ने बिछा दी हो, सारी प्रकृति खिलखिला उठी थी, और मैं उसी प्रकृति में अनमना सा चला जा रहा था, मन कहीं दिमाग कहीं और दिल कहीं ओर व्यस्त था, समझ नहीं आ रहा था कि ये सब एक जगह कब आयेंगे, बस अन्मयस्कता पर मुस्कराहट का दामन ओड़े घूम रहा था। बहुत अजीब होता है जब ऐसे किसी ओर चोले को ओड़ना पड़ता है। सारा वातावरण अंजान ही लगता है ।

    लौटते हुए अचानक ही बारिश शुरु हो गई और अचानक ही बारिश ने अपने अंदर सारे विचारों को समा लिया, पहले बारिश का हर तरह से मजा लेते थे, परंतु अब बारिश भी प्रकृति के नियम की मजबूरी लगने लगी है, मुंबई की बारिश भी तेज होती है, पता नहीं होता कि कब कितनी तेज बारिश होगी, इसलिये छाता हमेशा अपने पास रखना पडता है, पर आज नहीं था, खैर बारिश में ही दौड़ते हुए, सीमेंट के फ़र्श में भी गड्डे होते हैं, और वही आजकल के आधुनिक गड्ढे हैं, जिसमें बारिश का पानी भर जाता है और आधुनिक लोग उसी में छप छप कर बारिश का आनंद ले लेते हैं। खैर भीगते भीगते अपनी सीट पर पहुँचे। सबने पूछा अरे पूरे भीग गये, हम केवल मुस्करा दिये.. क्योंकि हमें भी पता था और उनको भी कि पूरे नहीं भीगे हैं अभी १५ मिनिट में बदन की गर्मी से ये बारिश की देन सूख जायेगी।

    अगर किसी से बात करने का बहाना चाहिये तो प्रकृति सबसे अच्छा विषय है, “अरे आज गर्मी बहुत है”, “आज बारिश जबरदस्त है”, “आज बारिश नहीं है, थोड़ा अच्छा लग रहा है”, “आज अच्छी ठंड है”, “कल का मौसम अच्छा था, आज थोड़ा चिपचिपा लग रहा है” इत्यादि। पर कई बार और कई मौकों पर संवाद आगे नहीं बढ़ पाता, सब अपनी अपनी परेशानियों में अपने अंदर ही इतने व्यस्त होते हैं, कि वे प्रकृति का मजा ले ही नहीं पाते।

    आज सुबह उठकर खिड़की से बाहर का ऩजारा देखा बाहर फ़िर से बारिश हो रही है, और इतनी तेज कि बारिश की एक एक बूँद ऊपर से नीचे तक श्रंखलाबद्ध तरीके से गिरती हुई दिखाई दे रही है, बूँदों की लय को देखकर मन रम जाता है, ऐसा लगता है कि ये ऊपर से ही साथ साथ आने की, आगे पीछे चलने की कसमें खाकर आई हों। सामने महाकाली गुफ़ा के जंगल की हरियाली और उसके पीछे पवई की भव्य इमारतें इस दृश्य को और भी विहंगम बना देते हैं। अभी मेरे पास दृश्य को कैद करने के लिये कोई उपकरण नहीं है, नहीं तो यह दृश्य मैं अवश्य कैद करना चाहता था। आज प्रकृति के बीच नहीं जा पाये, मनोरम दृश्य और बहती हुई हवाओं के आज निकट से साक्षी नहीं हो पाये।

कुछ लम्हें.. लिफ़्ट, संवाद, अखबार और समय

    सुनहली सुबह को उठकर नित्यक्रम से निवृत्त होकर, घूमने के लिये प्रकृति के बीच निकल पड़ना, प्रकृति के बीच घूमने का एक अपना ही अलग आनंद होता है, जब मैं अपने अपार्टमेंट के फ़्लेट से बाहर निकलता हूँ तो वहाँ केवल चार फ़्लेट, दो लिफ़्ट और एक सीढ़ियों के दरवाजे होते हुए भी हमेशा सन्नाटा ही पसरा हुआ पाता हूँ, सीढ़ियों से उतरने की सोचता नहीं, क्योंकि आठ माला उतरने से अच्छा है कि लिफ़्ट से ही उतर लिया जाये, वैसे ही आने में भी । कई बार सोचता हूँ कि अगर लिफ़्ट का अस्तित्व ना होता तो मुँबई में क्या केवल चार माले के घर ही होते, तब इतनी सारी बाहर से आई हुई जनता कैसे और कहाँ रहती, परंतु कुछ चीजों ने जिंदगी के कई प्रश्नों को हल कर दिया है।

    अपार्टमेंट से बाहर पहुँचते ही, झट से सुरक्षाकर्मी सलाम ठोंकता है और हम छोटे वाले दरवाजे से होते हुए हाईवे पर आ जाते हैं, दरवाजे के बाहर सीधा हाईवे ही है, सड़क पार एक छोटा सा उद्यान है, जहाँ सुबह लोग अपनी कैलोरी जलाने आते हैं, पर फ़िर भी वहाँ एकांत का सन्नाट पसरा हुआ है, यहाँ पर फ़िर भी लोग सुबह एक दूसरे को देखकर मुस्करा लेते हैं, सुप्रभात, जय राम जी की कह लेते हैं, पर कई शहरों में तो आपस में रोज देखने के बाद भी कभी कोई संवाद ही नहीं होता, संवाद पता नहीं किस घुटन में जीता है, जहाँ आपस में या खुद में ही लगता है कि शायद संवाद मौन है, और मौन ही संवाद है।

    वापिस आकर पसीने में भीगे हुए, ताजा अखबार और दूध की थैली खुद ही दरवाजे से उठाकर लाते हैं,  फ़िर अपने फ़्लेट में डाइनिंग टेबल की कुर्सियों को खींचकर पहले जूते मोजे उतारते हैं और फ़िर रोज की तरह पंखा चालू करना भूल गये होते हैं तो पंखा चालू करके, अपने पसीने पर गर्वित होते हुए अखबार पढ़ने लगते हैं, जैसे पसीना बहाकर पता नहीं किस पर अहसान करके आये हैं। अखबार भी क्या चीज है, जरा से पन्नों में दुनिया भर की खबरें भरी होती हैं, पर खबरें केवल वही होती हैं जो मीडिया हमें पढ़ाना चाहता है, हमारे भारत विकास की खबरें कहीं नहीं हैं, या भारत को विकास की और कैसे अग्रसर कैसे किया जाये, परिचय भी नहीं है जो लोग विकास का कार्य कर रहे हैं, पता नहीं कैसा अखबार है, बस इनमें उन्हीं लोगों का जिक्र है जो कुछ ना कुछ लूट रहे हैं, या लूटने की तैयारी कर रहे हैं। मुझे तो अब इन खबरों से ऊबकाई आने लगती है।

    तैयार होकर ऑफ़िस जाने का समय हो गया है, बारिश में लेदर के जूते पहनने का मन नहीं करता, आखिर महँगे जो आते हैं, बारिश में सैंडल में ही जाना ठीक लगता है, जिसको जो समझना हो समझे । अपार्टमेंट से बाहर निकलते ही फ़िर वही मुंबई की चिल्लपों कहीं मुलुन्ड वाली बस तो कहीं वाशी जाने वाली बस, अब हम जिधर जाते हैं उधर की बस मिलना मुश्किल होता है, तो ऑटो ही पकड़ना होता है और ऑटो पकड़ना भी एक युद्ध ही होता है, जितने भी यात्री वहाँ खड़े होते हैं, सब पहचान के होते हैं और आपस में एक दूसरे को जानते हैं, अगर उसी तरफ़ वे यात्रा कर रहे होते हैं तो खुशी खुशी उन्हें ड्रॉप भी कर देते हैं, पता नहीं मुंबई में ऐसी क्या चीज है जो आदमी को बदल देती है, शायद समय !! क्योंकि समय की सबके पास कमी है और सब अपने समय का सदुपयोग करना चाहते हैं ।

केवल आपने खुद को ही सुरक्षित कर रखा है या परिवार को भी..

    अब आगे मित्र से बात जारी रही, हमने पूछा अब एक बात बताओ कि आपने आपातकाल के लिये क्या व्यवस्था कर रखी है, वह बोला अरे अपने एक इशारे पर सारे काम हो जाते हैं, हमने कहा भई हकीकत की धरातल पर उतर आओ और सीधे सीधे साफ़ शब्दों में बताओ, अगर बीमारी का क्षण आ गया या फ़िर मान लो बीमारी ऐसी है कि चिकित्सालय में भी ना रहना पड़े और चिकित्सक ने घर पर ५०  दिन का आराम बता दिया या मान लो बिस्तर पर एक वर्ष तक रहना पड़ा, उस दिशा में क्या करोगे, क्योंकि आपको वेतन के साथ तो ५० दिन की छुट्टी मिलना मुश्किल है, आप वेतन के साथ ज्यादा दिन की छुट्टी पर नहीं रह सकते, तब आप अपने परिवार का खर्च कैसे उठाओगे ?

family     मित्र ने कहना शुरू किया कि बीमारी के लिये हमने मेडिक्लेम ले रखा है और दूसरी स्थिति के लिये हमने कभी सोचा ही नहीं कि ऐसा भी हो सकता है या यह भी कह सकते हैं कि हमें इस स्थिति से कैसे निपटा जा सकता है हमें पता नहीं। वैसे हमें लगता है कि हमें इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी। हमने कहा भाई परिस्थितियाँ कभी किसी को बताकर इंतजार करवाकर नहीं आतीं, बेहतर है कि हम उन परिस्थितियों का आकलन करके पहले से ही उसकी व्यवस्था करके रख लें, ताकि हम उन परिस्थितियों से बेहतर तरीके से निपट सकें।

     अब मित्र ने कहा कि अच्छा यह बताओ कि कैसे निपटा जा सकता है ? हमने उनसे पूछा कि ये बताओ तुमने मेडिक्लेम कितना ले रखा है, वे बोले हमने अपना मेडिक्लेम २ लाख रूपये का ले रखा है। हमने पूछा और परिवार का मेडिक्लेम, वे बोले नहीं परिवार का मेडिक्लेम नहीं ले रखा है, हमने उनसे कहा कि आपातकाल केवल तभी नहीं आता जब खुद बीमार हों, परिवार का कोई भी सदस्य बीमार हो सकता है तो बेहतर है कि परिवार के लिये एक मेडिक्लेम लो जिसमें सारे सदस्य बीमित हों।

     हमने कहा कि आप कम से कम ५ लाख का फ़ैमिली फ़्लोटरfamily-floaters मेडिक्लेम बीमा लो, आजकल वैसे ५ लाख भी कम पड़ते हैं, पर फ़िर भी आपात स्थिति से निपटने के लिये बहुत हैं, फ़ैमिली फ़्लोटर मेडिक्लेम का फ़ायदा यह है कि परिवार के चारों सदस्य ५ लाख से बीमित हैं और चारों में से कोई भी एक ५ लाख तक फ़ायदा उठा सकता है या फ़िर एक से ज्यादा सदस्य भी, बस चारों सदस्य मिलकर ५ लाख तक का ही चिकित्सकीय व्यय से बीमित हैं और उससे ज्यादा लेना है तो उसके लिये आजकल टॉप अप सुविधा भी उपलब्ध है, जो कि आप हर वर्ष अपने हिसाब से कम ज्यादा कर सकते हैं।

     अब आगे बतायेंगे कि कैसे दूसरी स्थिति से निपटा जाये “चिकित्सक ने घर पर ५० दिन का आराम बता दिया और करना भी जरूरी है, उस दिशा में क्या करोगे ?” क्या आपने भी कभी सोचा है ? तो बताइये ?