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एटीएम कार्ड के बिना एटीएम से पैसे कैसे निकालें (Withdrawl Money from ATM without using ATM Card)

     एटीएम कार्ड के बिना एटीएम से पैसे निकालना अविश्वसनीय सी बात लगती है, परंतु तकनीकी युग में नई तकनीक विस्तार से अब बहुत कुछ संभव हो गया है, और हम इस सुविधा का उपयोग भारत में बहुत ही अच्छी तरह से कर सकते हैं, क्योंकि भारत में अभी भी पैसे एक जगह से दूसरी जगह भेजना एक दुष्कर कार्य की श्रेणी में आता है, हमें जब कुछ पैसे घर या बाहर अपने परिवार या परिचित को भेजने होते हैं, तब खासकर यह सुविधा बहुत ही फायदेमंद है।
 
    इसी वर्ष के आरंभ में बैंक ऑफ इंडिया और इंडसइंड बैंक ने एटीएम कार्ड के बिना एटीएम से पैसे निकालने की यह सुविधा अपने ग्राहकों को दी थी, अभी हाल ही में आईसीआईसीआई बैंक ने भी यह सुविधा अपने ग्राहकों
को दी, हालांकि जितना विज्ञापन और हल्ला आईसीआईसीआई बैंक ने किया उतना बैंक ऑफ इंडिया और इंडसइंड बैंक ने यह सुविधा शुरू करते समय नहीं किया था।
 
 
यह कार्य कैसे करता है –
 
  1. ग्राहक के पास इंटरनेट सुविधा उपलब्ध होना चाहिये
  2. ग्राहक के पास मोबाईल होना चाहिये
  3. ग्राहक को अपने अकाऊँट में लॉगिन करना होता है
  4. ग्राहक को कैश बैनीफीशयरी में अपना या / और जिन्हें पैसे निकालने हैं, उन्हें पंजीकृत करना होगा, जिसमें
    नाम, मोबाईल नंबर, ईमेल एवं पता देना होता है
  5. जब भी आपको पैसे निकालने हैं तो इंटरनेट बैंकिंग में ए.टी.एम. निकास सुविधा में जाकर, बैनीफीशयरी चुनें और रकम का उल्लेख करें
  6. जैसे ही आप कन्फर्म कर देंगे तो बैनीफीशयरी के मोबाईल पर एक कोड आ जायेगा
  7. अब वह बैनीफीशयरी उल्लेखित ए.टी.एम. पर जाकर अपना मोबाईल नंबर, कोड और रकम डालकर पैसे बिना कार्ड के निकाल सकता है
ध्यान रखने की बातें –
 
बैनीफीशयरी रकम को 14 दिन तक निकाल सकता है, अगर बैनीफीशयरी 14 दिन में रकम नहीं निकालता है या गलत सूचना ए.टी.एम. में प्रविष्ट करता है तो रकम वापिस से अकाऊँट में जमा हो जाती है ।
 
कैसे लाभ उठायें –
 
– अगर घर पर पैसे भेजने हों तो अपने माता पिता को बैनीफीशयरी के रूप में पंजीकृत कर लें और  वे आराम से अपने शहर से पैसे निकाल सकते हैं।
– अगर आप कहीं बाहर घूमने जा रहे हैं और साथ में ए.टी.एम. कार्ड रखने का जोखिम नहीं उठाना चाहते हैं तो अपने को बैनीफीशयरी बनाकर इस सुविधा का लाभ उठा सकते हैं।
– अगर आपके पुत्र या पुत्री कहीं दूर रहते हैं तो बैनीफीशयरी में उनको जोड़कर उन्हें सीधे ए.टी.एम. से पैसे निकाल सकते हैं, और उन्हें ए.टी.एम. कार्ड भी नहीं रखना होगा।
 

हेल्थी हार्ट पैकेज और अस्पताल से आई बीमारी (Healthy Heart Package and got Fever)

शनिवार को ह्रदय के लिये हेल्थी हार्ट पैकेज के लिये हमने 2 सप्ताह पहले से ही अस्पताल से बुकिंग करवा रखी थी, 12-14 घंटे खाली पेट आने के लिये कहा गया था और जिस दिन न खाना हो उसी दिन खूब खाने पीने की इच्छा होती है। इस पैकेज में लिपिड प्रोफाइल, ईसीजी, टीएमटी एवं डॉक्टर का परामर्श शामिल था। यह पैकेज गुङगाँव शहर के तथाकथित अच्छे अस्पतालों में शुमार पारस अस्पताल मे था, इसके पहले यही चैकअप 1 वर्ष पहले बैंगलोर में वहाँ के जानेमाने क्लीनिक वीटालाईफ में करवाया था, तो वीटालाईफ ने पूरा चैकअप करनें में लगभग 1 घंटे से भी कम समय लिया थी, हम यहाँ भी यही सोच कर गये थे कि फटाफट चैकअप हो जायेगा, तो अन्य काम निपटा लेंगे।
सुबह 8.45 पर हम पारस अस्पताल में घुसे, अस्पताल की भव्यता देखते हुए लगा कि हमें यहाँ अच्छी सुविधाएँ मिलेंगी, हम जब स्वागतकक्ष पर पहुँचे तो बिना अभिवादन ही, हमें बताया गया कि आपका आज का पैकेज के लिये कोई बुकिंग नहीं है, (अहसान जताते हुए) पर फिर भी हम आपका पैकेज ले रहे हैं, और हमें कहा गया कि आप बेसमेंट वाले तल पर चले जाइये वहाँ केवल जाँच वालों के लिये स्वागत कक्ष है, हम दूसरे स्वागत कक्ष में आये तो उन्होंने एक फॉर्म भरने को दिया गया कि यह रजिस्ट्रेशन फॉर्म है, इस वक्त समय हुआ था लगभग सुबह 9 बजे, और फॉर्म भरने के बाद हमें बैठने के लिये कह दिया गया, हम बैठ गये, लगभग 9.30 बजे एस.एम.एस. आया कि हम अब पारस अस्पताल के रजिस्टर्ड पैशेन्ट (कस्टमर) हो गये हैं। लगभग 10 बजे हमें लिपिड प्रोफाईल के लिय रक्त निकालने के लिये बुलाया गया, हम कहे भई ये दिल्ली है, अभी एक घंटे में तो केवल रक्त की ही जाँच हुई है, अब ईसीजी और टीएमटी में पता नहीं कितना समय ये लोग लगायेंगे, हमें कहा गया कि अब आपके ईसीजी और टीएमटी टेस्ट ऊपर वाले तल पर होंगे।

हम चले ऊपर वाले तल पर, वहाँ पर हर तरफ अफरा तफरी का माहौल था, हम वहाँ के स्वागत कक्ष पर जाकर बोले कि ईसीजी और टीएमटी जाँच कहाँ होंगी तो हम बतायी हुई दिशा के कमरे की और बढ़ चले, वहाँ नर्स ने हमें बैठाकर रक्तचाप जाँचा और रजिस्टर में हमारा नंबर चढ़ाती हुई बोलीं कि आप बैठ जाईये और डॉक्टर से पहले परामर्श कर लीजिये, अब हम कल शाम के भूखे, भूखे पेट आदमी का दिमाग बहुत जल्दी घूमता है, शायद यह बात अस्पताल वालों को पता नहीं, 15 मिनिट बाद ही हम धड़धड़ाते हुए टीएमटी वाले रूम में घुस गये और डॉक्टर से पूछा कि कितना समय लगेगा, तो उन्होंने इत्मिनान से हमारा कागज देखते हुए कहा कि कम से कम 2 घंटे और लगेंगे, और तीन घंटे से कुछ खाया हुआ नहीं होना चाहिये, हमने कहा अब तो 11.30 हो चुके हैं और हमने कल शाम 7 बजे से कुछ नहीं खाया है, तो डॉक्टर बोला कि हम कुछ नहीं कर सकते इतना समय तो लगेगा ही, हमने कहा कि हमें बहुत जोर से भूख लगी है हम तो खाना खाने जा रहे हैं, तो वे बोले कि ठीक है फिर आप 3 बजे दोपहर को आ जाईये, हमने कहा कि वो सब तो ठीक है, यह बताईये कि जब हम सुबह से आये हैं तो पहला नंबर तो हमारा आना चाहिये, आप लोग पैसे तो फाईव स्टार वाले लेते हो और सुविधओं के नाम पर सब गोल, हमने उन्हें बताया कि पिछले वर्ष ही हमने बैंगलोर में यही चैकअप करवाया था पर उनके यहाँ सारा सिस्टम ऑटोमैटिक था, और केवल एक घंटे में सारे चैकअप हो चुके थे, तो बोला कि इसके लिये यह सही जगह नहीं, आप प्रशासन विभाग के पास जाकर बाद करिये।
खैर हम घर के लिये निकले तो एक और आश्चर्य था कि गाड़ी की पार्किंग के लिये 20 रू. शुल्क वसूला गया, पार्किंग शुल्क अस्पताल में यह हमने पहली बार देखा, पता नहीं इस बदलती दुनिया में और क्या क्या देखना बाकी रह गया है, सुविधाओं के नाम पर शुल्क और सुविधाएँ गायब । घर गये जमकर बिरयानी खाई और आराम किया, फिर से 3 बजे अस्पताल पहुँचे तो देखा कि दरवाजे के बीचों बीच जवान डॉक्टर लोग गप्पें हाँक रहे हैं, और आने वाले लोगों को परेशानी हो रही है, हमने तुरंत वहाँ खड़े डॉक्टरों से बोला कि आपको हँसी ठट्ठा करना ही है तो साईड में होकर करिये, यह आपका कॉलिज नहीं है, कि कहीं पर भी खड़े होकर हँसी ठट्ठा करने लग गये, वहीं पास में प्रशासनिक विभाग का कोई बंदा खड़ा था, वह हमें घूर कर देख रहा था, वहीं वे सारे डॉक्टर नजरों को नीचे झुकाकर तत्परता से गायब हो गये।

हमने अपनी बची हुई जाँच ईसीजी और टीएमटी करवाया, ईसीजी के समय पर्दा खिंचा रहने का फायदा भी उठाया और मोबाईल से एक सेल्फी ले लिया, घर आते समय ही दिमाग का सूचना तंत्र शरीर गिरा होने की सूचना दे रहा था, लगा कि सुबह से कुछ ज्यादी ही थकान हो गयी होगी, इसलिये या फिर मर्दानी फिल्म देखकर सर चढ़ गया है, घऱ आकर शाम को हॉलीवुड वाली अवतार आ रही थी, तब जाकर मूड ठीक हुआ, पर हमारे थर्मामीटर ने बताया कि तापमान 99.8 है जो कि सामान्य से ज्यादा था, तो यह हैल्थी हार्ट पैकेज का उपहार था, क्योंकि अस्पताल में हाइजीनिक वातावरण नहीं था।

अब 5 दिन हो गये हैं अभी भी बुखार है, और भी जाँचें करवा ली हैं, सब सामान्य है, केवल वाइरल है, बस दवाई लेकर ऑफिस जा रहे हैं।

फाइनेंशियल बकवास (FinancialBakwas)

हमने यूट्यूब पर फाइनेंशियल बकवास नाम से नया चैनल शुरू किया है, जिसमें पर्सनल फाईनेंस से संबंधित बातों को वीडियो या प्रेजेन्टेशन के माध्यम से बताने का एक प्रयास है ।

अभी तक हमने यहाँ 5 वीडियो अपलोड किये हैं, आप भी देखिये और बताईये कि आगे आप और क्या सुनना चाहते हैं । मैं इस चैनल में मुख्यत: बात करूँगा –
1. म्यूचअल फंड
2. जीवन बीमा
3. मेडीक्लेम
4. दुर्घटना बीमा
5. शेयर बाजार
6. निवेश के तरीके
7. सेवानिवृत्ति की योजना
8. क्रेडिट कार्ड
9. टैक्स में बचत
10. कैसे अच्छे उत्पाद चुनें
11. अपने धन के सही तरीके से कैसे उपयोग करें

एल आई सी या टर्म इन्श्योरेन्स और आवर्ती जमा LIC or Term Insurance and Recurring Deposit in Hindi

 

त्योहारों पर म्यूचयल फंड उपहार में दें Gift Mutual Funds On Festivals (Hindi)

म्यूचअल फंड क्या होता है What is Mutual Fund in Hindi

म्यूचअल फंड योजनाओं के प्रकार हिन्दी में Mutual Fund Type of Schemes In Hindi

म्युचअल फंड योजनाओं के प्रकार एवं संरचना – हिन्दी Types of Mutual Funds and Structure in Hindi

 

रामायण के सीताजी स्वयंवर के कुछ प्रसंग (Some context of Sitaji Swyvamvar from Ramayana)

    आज सुबह रामायण के कुछ प्रसंग सुन रहे थे, बहुत सी बातें अच्छी लगीं और शक भी होता कि वाकई में रामायण में ऐसा लिखा हुआ है या ये अपने मन से ही किसी चौपाई का अर्थ कुछ और बताकर जनता को आकर्षित कर रहे हैं, अगर हमें ये जानना है कि सब बातें सत्य है या नहीं तो उसके लिये रामायण पाठ करना होगा, और उसकी हर गूढ़ बात को समझना होगा, यहाँ जानने से तात्पर्य रामायण सुनाने वाले पर प्रश्न चिह्न लगाना नहीं है बल्कि श्रद्धालुओं को सहज ही सारी बातें स्वीकार करने से है, क्योंकि श्रद्धालुओं को उस ग्रंथ का ज्ञान नहीं है।
 
जो बातें अच्छी लगीं, उसके बारे में –
 
    जब रामजी अपने भाईयों के साथ सीताजी के स्वयंवर में पहुँचे, तो जैसा कि सर्वविदित है कि सीताजी के स्वयंवर में भगवान परशुराम के धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ानी थी, जब जग के सारे राजा धनुष ही नहीं उठा पाये, तो प्रत्यंचा की तो बात दूर की रही, तब रामजी को उनके गूरूजी ने कहा- जाओ राम इस धनुष को उठाओ और तोड़ दो, इस धनुष ने कई सरों को झुका दिया है, इसलिये इस धनुष का टूटना जरूरी है, और भगवान राम ने धनुष को खिलौने की तरह तोड़ दिया।

    धनुष टूटते ही बहुत हो हल्ला हुआ, और स्वयंवर की शर्त के मुताबिक सीताजी को रामजी को वरमाला पहनानी थी, यहाँ पर एक और बात अच्छी लगी कि पहले के जमाने में केवल वरमाला हुआ करती थी और केवल स्त्री ही पुरूष को माला पहनाकर वर लिया करती थी, उस समय आज की तरह वधुमाला को प्रचलन नहीं था, कि वधु भी वर को माला पहनाये, पहले जब स्त्री माला पुरूष के गले में पहनाती थी तो उसे वरमाला या जयमाला कहा जाता था, कई चीजें कालांतर में हमारी सांस्कृतिक व्यवस्था में जुड़ती गईं।

जब सीताजी रामजी की तरफ जयमाला लेकर बढ़ रही थीं तब सीताजी ने मन ही मन प्रार्थना की – प्रभु, कोई ऐसा प्रसंग उपस्थित करें कि मैं आपको जयमाला पहना पाऊँ, तभी सीताजी ने लक्ष्मण की तरफ देखा और आँखों में ही प्रार्थना की कि रामजी लंबे हैं तो कुछ ऐसा उपक्रम करें कि मैं आसानी से रामजी को जयमाला पहना दूँ, लक्ष्मणजी ने आँखों में ही सीता माँ की आज्ञा स्वीकार कर ली और जब सीताजी रामजी के करीब आईं, तभी लक्ष्मणजी रामजी के चरणों में गिर पढ़े, जैसे ही रामजी लक्ष्मणजी को उठाने के लिये झुके, उसी समय सीताजी ने रामजी को जयमाला पहनाकर वरण कर लिया, रामजी ने लक्ष्मणजी से पूछा – लक्ष्मण चरण वंदन का यह भी कोई समय है, तो लक्ष्मणजी का जबाब था – प्रभू, बड़े भैया के चरण वंदन के लिये कोई समय तो निर्धारित नहीं है, चरण वंदना तो दिन में कभी भी और कितनी भी बार की जा सकती है, बात सही है और हमें भी अपने जीवन में यह अपनाना चाहिये।

व्याकुलता – चिंतन

    व्याकुलता इंसान को जितनी जल्दी कमजोर बनाती है, उतनी ही जल्दी व्याकुलता से मन को ताकत मिल जाती है। जब भी कोई दिल दहलाने वाली खबर हमें लगती है, हम व्याकुल हो उठते हैं, मन कराहने लगता है, दिमाग काम करना बंद कर देता है और तत्क्षण हम निर्णय लेने की स्थिती में नहीं होते, मन की स्थिती डांवाडोल हो चुकी होती है, आँखों को वस्तुएँ एक से ज्यादा लगने लगती हैं, क्योंकि उस समय हमने कुछ ऐसे सुन लिया होता है जो कि हम सुनना नहीं चाहते, और हम कुछ बुरा सपने में भी नहीं सोच सकते।
    यह सत्य है कि हमारे मन में कई बार अपनों के ही लिये कुछ बुरे ख्याल मन में आते रहते हैं, और कोई भी इस क़टु सत्य को नकार नहीं सकता है, उस समय हमारा मन सोचता है कि कैसे उस समय उत्पन्न होने वाली परिस्थितियों से निपटा
जायेगा। इन सारी चीजों को सोचते समय हम विचलित नहीं होते, वरन् हम अपने आप को दृढ कर रहे होते हैं।
    जीवन में इस तरह के क्षण हरेक की जिंदगी में आते हैं, जिसे हर व्यक्ति अपने अपने तरीके से अपनी क्षमता के अनुसार संचालित करता है, हमारा दिमाग दो भागों में बँटा होता है, जिसमें बायें तरफ का दिमाग बहुत ही ज्यादा सक्रिय रहता है, जिसमें हम तरह तरह की बातें सोचते रहते हैं, विचारों को बुनते गुनते रहते हैं। वहीं दायीं तरफ का दिमाग हमारे शारीरिक प्रबंधन का कार्य करता है। सोते समय हमारा बायीं तरफ का दिमाग आराम करता है और दायीं तरफ का दिमाग सोते समय बायीं तरफ केदिमाग का कार्य करता है, अधिकतर बीमारियों के उत्पन्न होने की वजह भी बायीं तरफ का दिमाग होता है। व्याकुलता बायें हिस्से से ही नियंत्रित होती लगती है।
    व्याकुलता याने कि वह स्थिती जिसमें कि हमारा काबू हमारे ऊपर नहीं होता है, हम अपना नियंत्रण खो देते हैं, हम ऐसी कोई खबर सुनने के बाद अपने ऊपर किसी को भी हावी हो जाने देते हैं, हमें अगर कोई भी इस समय सहारा देता है खासकर वह जो कि हमारे बहुत नजदीकी हो, जिसका हमारी जिंदगी में बहुत महत्व हो, तो हमारी व्याकुलता कुछ हद तक कम हो जाती है।
ये विचार मैंने अपने अनुभव के आधार पर लिखे हैं ।

माँ की जिंदगी में माइक्रोवेव से आया बदलाव और माइक्रोवेव में वेज बिरयानी

    सब्जी तो बचपन से माँ के हाथ की खाते आ रहे हैं, पहले चूल्हे में लकङी और कोयला जलाकर माँ ताँबे के बर्तन में हाथ में लोहे की गोल फूँकनी से फूँक मारकर धुएं के बीच मेरी मनपसंद सब्जी तरकारी बनाती थी, मेरे बालमन को पहले उस धुएं में बहुत मजा आता था पर जब भी माँ धुएं के कारण खाँसती तो मन खिन्न हो जाता था और मैं खुद वो लोहे की फूँकनी लेकर लकङी और कोयले की आँच को तेज करने में माँ की मदद करता था ।
    कुछ वर्षों बाद स्टोव के साथ माँ की जिंदगी में बदलाव आया, केरोसिन वाला पीतल का स्टोव जिसमें हवा का दबाव बनाकर माचिस से जलाया करते थे, पर चूल्हा रोटी के लिये चलता रहा, सब्जी का स्वाद बदल गया, पहले जो खुश्बू सब्जी में आती थी वो खुश्बू स्टोव की सब्जी में नहीं आती थी, माँ इस नये स्वाद के लिये बेबस थी, कभी शिकायत होती कि केरोसिन की महक खाने में आ जाती है, या कभी कोई स्वाद ही नहीं, माँ ने कई स्टोव बदलवाये पर इतना ज्यादा फर्क नहीं पङा । जीवन अपनी गति से चल रहा था, भाग इसलिये नहीं रहा था क्योंकि सब्जी का स्वाद नहीं बदल रहा था ।
    कुछ समय बाद केरोसिन की जगह एल.पी.जी. ने ले ली, अब माँ के चौके में से चूल्हे की विदाई तय हो चुकी थी, क्योंकि अब गैस के चूल्हे में माँ को दो बर्नर मिल गये थे, अब माँ का चौके में काम कुछ ज्यादा आसान हो गया था, बिना धुएं और केरोसिन की गंध की तकलीफ के बिना खाना बनाना बेहद आसान हो गया था, पर अब चौके के बदलाव ने फिर परेशानी खङा कर दी, चौके में ऊपर तक तेल की चिकनाई पहुँचने
लगी, स्टोव तो घर के बाहर रख देते पर गैस के चूल्हे में यह सुविधा मिलने से रही, तो चिमनी के बारे में समझा गया और चौके में चिमनी लगवा दी गई, सब्जी में सभी ने पहले से ज्यादा स्वाद पाया, रोटी भी चूल्हे के मुकाबले थोङी ठीक थीं, पर धीरे धीरे आदत पङ गई। गैस में भी सब्जी बनाते समय माँ को हमेशा खङी रहना होता था, माँ के पैरों के दर्द ने भी मुझे एहसास दिलवाया।
    और एक दीपावली पर मैं और पापा जाकर माँ के लिये एक माइक्रोवेव ले आये, माँ ने  माइक्रोवेव के बारे में सुन रखा था, पर फिर भी घर में देखकर विस्मित हुई, माइक्रोवेव को घर की डाइनिंग टेबल पर रख लिया गया, माइक्रोवेव के साथ कुछ प्लास्टिक के बर्तन भी आये थे जो कि माइक्रोवेव में खाना पकाने में सक्षम थे, परंतु माँ ने कहा कि अगर सब्जी बनानी है तो प्लास्टिक के बर्तन में तो नहीं बनायेंगे, अब चूँकि स्टील के बर्तन माइक्रोवेव में उपयोग नहीं हो सकते थे तो माँ को बोरोसिल के काँच के बर्तन बेहद पसंद आये, जिन्हें माइक्रोवेव में भी उपयोग में लाया जा सकता था और फ्रिज में भी रखा जा सकता था। माइक्रोवेव में सब्जी बनाने में कम तेल मसालों में भी सब्जी का बेहतरीन स्वाद निखर आया था, सभी को यह स्वाद पसंद आया क्योंकि सब्जी का मौलिक स्वाद अद्भुत था, माँ को अब चौके में खङे रहने की जरूरत खत्म हो चकी थी, अब माँ  डाइनिंग टेबल के सामने कुर्सी पर बैठकर आराम से सब्जी बनाती है। बोरोसिल के बर्तनों के बारे में http://www.myborosil.com/ से ज्यादा जाना जा सकता है ।
    सबसे बेहतरीन स्वादिष्ट व्यंजन है वेज बिरयानी  बोरोसिल का 1.5 ली. वाला गोल काँच का कैसरोल (Round Casserole) , गहरा वाला गोल काँच (Deep Round Casserole) का 2.5 ली. वाला कैसरोल और 1.5 ली. वाला इजी ग्रिप वाला गोल कैसरोल (Easy Grip Round Casserole) की मदद से बिरयानी बनाई जाती है।
    पहले प्याज और लहसुन को बारीक लंबा काटकर गोल काँच के कैसरोल बिना तेल के 5-7 मिनट के लिये माइक्रो करें, प्याज और लहसुन क्रिस्प और सुनहरे रंग के हो जायेंगे। गहरा वाले गोल काँच के कैसरोल में बासमती चावल और पानी 1:2 के अनुपात में कर लें, और लगभग 15 मिनट माइक्रो करें, चावल को अधपका ही रखें, अब इजी ग्रिप वाले गोल कैसरोल में कटी हुई बीन्स, मटर, पनीर, गाजर, शिमला मिर्च थोङे तेल के साथ नमक और मनपसंदीदा बिरयानी मसाला मिला लें, अब लगभग 100 ग्राम पानी डाल लें और लगभग 10 मिनट के लिये माइक्रो करें । गहरे वाले गोल काँच के कैसरोल में से चावल किसी और बर्तन में निकाल लें और अब इसमें क्रिस्प प्याज और लहसुन की परत बिछा लें और चावल का एक तिहाई हिस्सा दूसरी परत के रूप में डाल दें, तीसरी परत के लिये आधी सब्जी की परत बनायें और अब चावल का एक तिहाई हिस्सा चौथी परत के रूप में डाल दें, बची हुई आधी सब्जी की पाँचवी परत बना लें और आखिरी परत के रूप में बचा हुआ एक तिहाई चावल बिछा लें, ऊपर थोङे कच्चे काजू से सजा दें । अब गहरे वाले गोल काँच के कैसरोल को लगभग 10 मिनट के लिये माइक्रो करें । लगभग 40 मिनट में चार लोगों के लिये बिरयानी तैयार है ।

कुतुबमीनार से मेट्रो का रोज का सफर

ऐसे तो रोज ही कई किस्से होते हैं लिखने के लिये, आजकल रोज ही मेट्रो से आना जाना होता है, आते समय अब कुतुबमीनार से मेट्रो बन के चलने के कारण वहीं से अधिकतर आना होता है, सब अपने अॉफिस से थके मांदे निकले हुए दिखते हैं, सब के शक्ल से ही बारह बजे नजर आते हैं ।
हुडा सिटी सेंटर से आने वाली मेट्रो में जबरदस्त भीङ होती है, और जिनको लंबा सफर तय करना होता है वे कुतुबमीनार पर उतरकर, वहीं से बनकर चलने वाली मेट्रो के लिये उतरकर गेट के सामने ही खङे हो जाते हैं, जिससे जो अगली मेट्रो बनकर चलेगी, उसमें बैठने की जगह मिल जायेगी।
 
कुतुबमीनार मेट्रो स्टेशन की और सङक पार करके आना भी अपने आप में एक बङा चैलेन्ज होता है, हालांकि व्यस्त सङक होने के बावजूद भी, स्टेशन की और आने के लिये विशेषत: सिग्नल लगा रखा है। मेट्रो स्टेशन के प्लेटफॉर्म पर जाना भी अच्छी भली कवायद होती है। सुरक्षा का लिये स्कैनिंग मशीन से रोज ही दो बार अपने को और बैग को गुजरना पङता है। फिर आजकल सीढियों की जगह स्केलेटर्स का उपयोग ज्यादा होने लगा है, कई बार तो लिफ्ट का भी बेधङक उपयोग कर लेते हैं।
 
राजीव चौक पर इंसान भेष बदलकर यहाँ थोङी देर के लिये जानवर बन जाता है, वरना वाकई कम जगह में चढना उतरना आसान नहीं है, फिर भी हमें मुँबई लोकल का अनुभव है, उसके आगे मेट्रो के आगे बहुत सोफिस्टिकेटेड लगा, एसी में पसीना नहीं आता और लोकल में हर तरफ इंसानों के पसीने की भिन्न तरह की बदबू झेलना पङती थी । कम से कम यहाँ यह व्यथा तो नहीं है। 
 
शाम को घर तक आते आते गर्मी के मारे थककर बेहाल हो चुके होते हैं, कदम हैं कि उठने का नाम नहीं लेते, और आँखें खुलने में भी थकान महसूस कर रही
होती हैं, जब तक हम सफर को खत्म नहीं कर देते तब तक यह उपक्रम चलता ही रहेगा।

भारत में पहली बार सोशल बैंकिंग जिफि बैंक खाता

    भारत में बैंकों के इतिहास में पहली बार कोटक महिन्द्रा बैंक ने इंडीब्लॉगरों के मध्य सोशल बैंकिंग पर आधारित अपना पहला उत्पाद 23 मार्च को बाजार में उतारा । जिसका नाम जिफि #JIFI दिया गया है । ट्विटर पर इसे #JifiIsHere के टैग से देखा जा सकता है । जिफि खाता खुलवाने के लिए फेसबुक एकाऊँट का होना जरूरी आवश्यकता है। जिफि एकाऊँट का निमंत्रण पाने के लिए ईमेल या फेसबुक लॉगिन का उपयोग करना होता है।
    सोशल बैंकिंग में  बैंक की सारी नई जानकारियाँ जिफि बैंक खाताधारक अपने ट्विटर हैंडल पर सीधे पा सकता हैं, बैंक जिफि ग्राहकों को डाइरेक्ट मैसेज से जानकारी भेजेगी, जिससे जिफि ग्राहक की जानकारी पूर्णरूप से गोपनीय रहेगी । जिफि ग्राहक बैंक को सीधे ट्विट करके अपने खाते की जानकारी ले सकते हैं । तो जिफि ग्राहकों के लिए अपना बैलेंस जानना भी केवल एक ट्विट करने भर की दूरी पर है।
    जिफि ग्राहक अपना एकाऊँट एक्टिवेट करने के बाद अपने ट्विटर हैंडल को जिफि डेशबोर्ड से जोङना है, इस सुविधा का लाभ वे सभी जिफि ग्राहक उठा सकते हैं जिनके पास ट्विटर एकाउँट है।

ट्विटर पर ट्विट करके जिफि ग्राहक  निम्न जानकारियाँ पा सकते हैं

–    बैलेंस जानना, आखिरी तीन ट्रांजेक्शन, पिछले तीन महीने के स्टेटमेंट ईमेल पर मँगाना, किसी चेक के स्टेटस की जानकारी, नई चेकबुक का लिए आवेदन, पास के एटीएम एवं शाखा के बारे में जानकारी, नेट बैंकिंग एवं फोन बैंकिंग का पिन बदलना, ऐसे ही क्रेडिट कार्ड के बारे में जानकारी पा सकते हैं। यहीं पर जिफि ग्राहक अपने रैफेरल और रिवार्ड पॉइंट्स के बारे में भी जान सकते हैं।
    अगर आपका ट्विटर एकाउँट हैक भी हो जाये तो kotakjifi.com पर लॉगिन करके ट्विटर एकाउँट हैंडल हटा दें।
    500 रू. के ऊपर के हर ऑनलाइन ट्रांजेक्शन पर 25 पॉइंट्स मिलेंगे और हर रैफेरल पर 250 सोशल पॉइंट्स मिलेंगे। जिफि ग्राहक मोबाईल एप्प से भी बैंकिंग कर सकते हैं। जिफि बैंक एकाऊँट में सबसे अच्छी बात है कि 25 हजार के ऊपर का बैलेन्स अपने आप फिक्सड डिपोजिट बन जायेगी।
    तो इंतजार किस बात का, kotakjifi.com पर लॉगिन कीजिये और जिफि ग्राहक बनिये ।
    Indiblogger.in को इस बेहतरीन अनुभव का साक्षी बनाने के लिए  धन्यवाद ।

आटा, सब्जी, प्रेमकपल और पुलिसचौकी

कल शाम की बात है, बेटेलाल स्कूल से आ चुके थे तो अचानक गुस्से से आवाज आई “आटा आज भी आ गया ?” “सब्जी आ गई”, हम सन्न !! बेचारे क्या करते, अपने काम में मगन आटे का ध्यान एक सप्ताह से ना था, इधर पास के पंसेरी से १ किलो आटे का पैकेट लाकर थमा देते थे। हम चुपचाप घर से निकले, लिफ़्ट से उतरे, तो घर के सामने का मौसम अचानक से हसीन हो चला था।
सामने ही करीबन ५ लड़के और १ लड़की स्कूल ड्रेस में थे, जिनमें से एक लड़का और एक लड़की साथ साथ थे और लड़की के हाथ में गिफ़्ट भी था, बाकी लड़के उस लड़के से मस्ती कर रहे थे, शायद उसने आज ही प्रपोज किया हो और स्वीकार हो गया हो, फ़िर उन सब लड़कों ने प्रेमकपल वाले लड़के से कुछ पैसे लिये और घर के सामने वाली चाट की दुकान पर पानी बताशे खाने लगे, प्रेमकपल के चेहरे पर अजीब सी खुशी थी, जैसे उनके जन्म जन्म का साथी मिल गया हो, लड़के के बाल कुछ अजीब से आगे से ऊपर की तरफ़ थे, वो भी कोई स्टाईल ही रही होगी, हाँ हमारे बेटेलाल जरूर उस बालों की स्टाईल का नाम बता देते।
हम अपनी बिल्डिंग की पार्किंग में खड़े होकर सभ्यता से यह सब देख रहे थे, पर उन लड़कों को यह अच्छा नहीं लग रहा था, खैर जब हम गाड़ी से चाट वाले के सामने से निकले तो भी वे सब हमें घूर ही रहे थे, यह सब वैसे हमें पहले से ही पसंद नहीं है, जब हम  उज्जैन में थे तब हमारी कालोनी में भी यही राग रट्टा चलता था, फ़िर हमने अपना प्रशासन का डंडा दिखाया तो बस इन लोगों के लिये कर्फ़्यू ही लग गया था।
आटा लेने गये, तो पता चला कि उस पूरी कॉलोनी की बिजली ही सुबह से गायब है, हम पूछे “भैया बिजली आज ही गई है ना ?, कल तो आयेगी”, वो क्या और जो दुकान के अंदर थे वे भी निकलकर हमें देखने लगे, ये कौन एलियन आया है जो अजीब और अहमक सा सवाल पूछ रहा है। खैर वापसी पर याद आया कि सब्जी लेनी है, अब हम सोचे बेहतर है कि घर पर फ़ोन करके पूछ लें “कौन सी सब्जी लायें”, जबाब मिला “कौन कौन सी सब्जी है?”, हम कहे “करेला, शिमला मिर्च, बीन्स, भिंडी, फ़ूलगोभी, पत्तागोभी,बैंगन” हमें कहा गया केवल देल्ही गाजर और टमाटर लाने के लिये, टमाटर का भाव हम बहुत दिनों बाद सुने थे, मतलब कि बहुत दिनों बाद सब्जी लेने गये थे, केवल दस रूपया किलो, हमने सोचा बताओ टमाटर के दाम पर कितनी सियासत हुई, टमाटर महँगी सब्जियों का राजा बन गया था और आज देखो इसकी दशा कोई पूछने वाला नहीं, हेत्तेरेकी केवल दस रूपया !
शाम को घूमने निकले, चार लड़के दो लड़कियाँ एक ही समूह में घूम रहे थे, जिनमें से साफ़ दिख रहा था कि दो प्रेमकपल हैं और बाकी के दो इस समूह के अस्थायी सदस्य हैं, वे दोनों प्रेमकपल सड़क पर ही बाँहों में आपस में ऐसे गुँथे हुए थे, कि अच्छे से अच्छे को शर्म आ जाये, परंतु वो तो अपने घरों से दूर यही कहीं पीजी में रहते हैं, तो उन्हें क्या फ़र्क पड़ता है, फ़िर अगली गली के नुक्कड़ पर ही वे दोनों प्रेमकपल आपस में एक दूसरे की आँखों में झांकते हुए नजर आये, और हँसी ठिठोली कर रहे थे, पर अचानक हमें देखते ही वे सब बोले कि चलो गली के थोड़ा अंदर चलो। हमने सोचा कि आज यही सब इनको अच्छा लग रहा है, कल जब ये जिम्मेदारी लेंगे परिवार की बच्चों की, तब शायद यही सब इनको बुरा लगेगा।

एक अच्छी बात यह हुई है कि पास ही पुलिसचौकी खुल गई है, तो इस तरह की हरकतें पहले बगीचे में होती थीं वे अब चौकी के पीछे की गलियों में होने लगी हैं।

 वैसे ही जब घूमते हुए वापिस घर की और आ रहे थे तब एक दिखने से ही साम्भ्रान्त प्रेमकपल खड़ा था, लड़के की पीठ पर लेपटॉप बैग था और लड़की भी ऑफ़िस वाली ड्रेस में ही थी, शायद लड़की कहीं पास रहती हो और कुछ जरूरी बात करनी हो, बहुत धीमे धीमे से बात कर रहे थे, कितना भी कान लगा लो बातें सुनाई दे ही नहीं सकती थी, पर उनका बात करने का तरीका और कॉलोनी में जिस तरह से वे खड़े थे और बातें कर रहे थे वह शालीन था ।

शादी के १२ वर्ष और जीवन के अनुभव

आज शादी को १२ वर्ष बीत गये, कैसे ये १२ वर्ष पल में निकल गये पता ही नहीं चला, आज से हम फ़िर एक नई यात्रा की और अग्रसर हैं, जैसे हमने १२ वर्ष पूर्व एक नई यात्रा शुरू की थी, जब पहली यात्रा शुरू की थी तब पास कुछ नहीं था, बस कुछ ख्वाब थे और काम करने का हौंसला और अगर बैटर हॉफ़ याने कि जीवन संगिनी आपको समझने वाली मिल जाये, हर चीज में आपका साथ दे तो मंजिलें बहुत मुश्किल नहीं होती हैं।
शादी की १२ सालगिरह में से मुश्किल से आधी हमने साथ बिताई होंगी, हमेशा काम में व्यस्त होने के कारण बहुत कुछ जीवन में छूट सा गया, परंतु हमारी जीवन संगिनी ने कभी इसकी शिकायत नहीं की, हमने जब खुशियों का कारवाँ शुरू किया था, तब हम ये समझ लीजिये खाली हाथ थे और फ़िर जब हमारे आँगन में प्यारी सी किलकारी गूँजी, जिससे जीवन के यथार्थ का रूप समझ में आया।
जीवन यथार्थ रूप में बहुत ही कड़ुवा होता है और मेरे अनुभव से मैंने तो यही पाया है कि यह कड़ुवा दौर सभी की जिंदगी में आता है, बस इस दौर में हम कितनी शिद्दत से इससे लड़ाई करते हैं, यह हमारी सोच, संस्कार और जिद्द पर निर्भर करता है। जीवन के इस रास्ते पर चलते चलते हमने इतने थपेड़े खाये कि अब थपेड़े  अजीब नहीं लगते, यात्रा जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है।
बस जीवन से यही सीखा है कि कितनी भी मुश्किल हो अपने लक्ष्य पर अड़िग रहो, सीधे चलते रहो, मन में प्रसन्नता रखो, धीरज रखो । जीवन इतना भी कठिन नहीं है कि इससे पार ना पा सकें, और खासकर तब और आसान होता है जब हमारी अर्धांगनी उसमें पूर्ण सहयोग करे। जीवन के चार दिन में अगर साथी का सही सहयोग मिलता रहे तो और क्या चाहिये।

आखिरी बात हमेशा अपने वित्तीय निर्णय लेने के पहले अपने जीवनसाथी को अपने निर्णय के बारे में जरूर बतायें, कम से कम इस बहाने घरवाली को हमारे वित्तीय निर्णयों का आधारभूत कारण पता रहता है और उनके संज्ञान में भी रहता है, इससे शायद उनको भी अपने मित्रमंडली में मदद देने में आसानी हो। जीवन और निवेश सरल बनायें, दोनों सुखमय होंगे।