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कार्पोरेट्स में लिंग भेदभाव पर नुक्कड़ नाटक gender discrimination in corporate world

यह नुक्कड़ नाटक अभी ड्रॉफ्ट मोड में है, अभी इसमें कई सुधार किये जाने हैं, अगर आपको लगता है कुछ और भी बिंदु जोड़े जा सकते हैं, तो अवश्य बतायें । (सर्वाधिकार सुरक्षित)

जीवन से

भेदभाव हटाना है, जीवन से भेदभाव हटाना है,

भेदभाव ही

जड़ है काम न होने देने की

जीवन के

कुरूक्षैत्र में एक होकर आगे बढ़ना है,

जीवन में

सबका महत्व एक हो

कोई किसी से

कम न समझा जाये

सबकी दिमागी

ताकतों को समझा जाये

अनंत आकाश को

मिलजुलकर पार करना है

चारों तरफ

घनघोर अंधकार है

हर तरफ

भेदभाव है, भेदभाव है,

भेदभाव है,

भेदभाव है,

भेदभाव है,

भेदभाव है,

इंटरव्यू लेते हुए जाते दो नर (Male) कर्मचारी, आपस में बात करते हुए –

पहला – आज हमें जिस स्किल के लिये इंटरव्यू लेना है, वह नीच (Niche) स्किल है, तो हमें बहुत सी प्रश्नों को गहराई से पूछना होगा।

दूसरा – हाँ वैसे भी हमें नीच स्किल के रिसोर्सेज मिलते किधर हैं, उन्हें कोई न कोई प्रोजेक्ट एकदम से खींच लेता है

पहला – हाँ भई वेटिंग चलती है उनकी तो, तभी तो अब कई दिनों बाद हम रिक्रूटमेंट के लिये इंटरव्यू लेने आये हैं। और दोनों हँसते हुए इंटरव्यू लेने के लिये एक केबिन में जाते हैं।

 

(बाहर इंटरव्यू देने के लिये 2 लोग बैठे हैं) (एक लड़का, एक लड़की, दोनों हाथ में अपने कागजों की फाईल लिये हुए नर्वस हैं, परन्तु अपने आप को कॉन्फीडेन्ट दिखाने की कोशिश कर रहे हैं)

 

इंटरव्यू के लिये पहले लड़की को बुलाया जाता है –

पहला इंटरव्यूर – So You have good experience in the required technology, when you have worked last on this technology.

लड़की – Currently I am working on this technology.

इंटरव्यूर – Tell me about yourself.

लड़की – My name is Reshma Singh, I have been completed my engineering in Computer Science and M.Tech. from Allahabad. I am having experience more than 6 Years and worked deeply in the required technology about 6 years, I have completed 4 project successfully end to end. I am having good understanding on Technical and Functional for this domain. I am good at communication with client and I have managed client directly in my all projects.

 

(कुछ और भी प्रश्न पूछे जाते हैं… जिन्हें हम प्रतीकात्मक रूप से दिखा सकते हैं)

 

इंटरव्यूर – Ok fine, please be seated outside and wait. Please ask other one to come.

लड़का अंदर आता है, और इंटरव्यूर उसे बैठने को कहते हैं।

इंटरव्यूर – your CV shows that you have not much experience in the required technology. When did you worked last on this technology.

लड़का – I have worked enough and 2 Years back I have worked on this technology.

इंटरव्यूर– Tell me about yourself.

लड़का – My name is Ran Vijay Singh, I have completed my engineering in Electronics. I am having 5 Years’ experience, I have worked on the required technology around 2 years, and I have completed 1 project successfully. I am good at communication with client so I can manage client.

 

(कुछ और भी प्रश्न पूछे जाते हैं… जिन्हें हम प्रतीकात्मक रूप से दिखा सकते हैं)

इंटरव्यूर – Ok fine, please be seated outside and wait.

 

दोनों इंटरव्यूर आपस में बात करते हैं –

पहला – तो सर

आपको कौनसा केनडीडेट इस पोजीशन के लिये अच्छा लगा ?

दूसरा – वैसे तो लड़की, जो स्किल हमें चाहिये उसका उसे पूरा पता है और अच्छा खासा अनुभव भी है, कॉन्फीडेन्ट भी है, क्लाईंट को हैंडल भी किया हुआ है, जिसकी हमें बहुत जरूरत है और खास बात कि लड़की का कम्यूनिकेशन बहुत अच्छा है, और एम.टेक. भी है, और स्किल पर अभी भी काम कर रही है।

पहला – हाँ बात तो सही कह रहे हो, लड़के के पास अनुभव भी कम है और उसने इस स्किल पर काम भी दो वर्ष पहले किया था, हाँ बस उसका एक ही प्लस प्वाईंट है कि वह मेल केन्डीडेट है, तो वह नाईट शिफ्ट में भी कम्फर्टेबल होगा।

दूसरा – पर लड़की भी तो नाईट शिफ्ट में आ सकती है, अब यूएस का क्लाईंट है तो उसी के समय से काम भी करना होगा, और वैसे भी 5-6 महीने की ही बात है तब तक हमें इस प्रोजेक्ट के लिये हमें उनके टाईम पर सपोर्ट करना है, उसके बाद के स्टेज के लिये तो हमें अपने भारतीय समय पर ही काम करना है।

पहला – हाँ वह तो है, पर पता नहीं लड़की 6 महीने भी तो नाईट शिफ्ट में आयेगी या नहीं, वैसे भी हमारा प्रोजेक्ट बहुत क्रिटिकल है, और हम ज्यादा छुट्टियाँ अफोर्ड नहीं कर सकते।

दूसरा – पर सर, हम साथ में एक बैकअप भी तैयार कर लेंगे, तो हमें भी कोई परेशानी नहीं होगी, और पीछे से सपोर्ट करने के लिये रेशमा होगी ही। तब तक क्लाईंट भी कम्फर्टेबल हो जायेगा और कॉन्फीडेन्ट भी।

पहला – वह तो है ही, पर हमें शायद लड़के को ही लेना चाहिये कम से कम उसके ज्यादा नाटक नहीं होंगे, उसने भी स्किल पर काम किया हुआ है और धीरे धीरे सीख ही लेगा।

दूसरा – नहीं सर, लड़के को रिक्रूट करना प्रोजेक्ट के लिये बहुत बड़ा रिस्क होगा।

पहला – हाँ मैं भी जानता हूँ पर बताओ कल शादी होगी तब भी उसे छुट्टी चाहिये होगी

दूसरा – सर, वह तो लड़का भी लेगा

पहला – नाईट

शिफ्ट में लड़की की सुरक्षा का भी बड़ा प्रश्न है

दूसरा – सर, वह तो हमारी कंपनी देती ही है, तो उसकी भी कोई समस्या नहीं है।

पहला – फिर शादी के बाद तो आपको पता ही है, बहुत सारी जिम्मेदारियाँ आ जाती हैं और लड़कियाँ ज्यादा छुट्टियाँ लेने लगती हैं।

दूसरा – सर जिम्मेदारियाँ तो लड़के पर आती हैं, वह भी उतनी ही छुट्टी ले सकता है जितनी लड़की ले सकती है।

पहला – तो फिर बताओ क्या करें, लड़की शादी के बाद मेटरनिटी लीव्स पर भी जायेगी।

दूसरा – सर वह तो मौलिक अधिकार है, और हमारी कंपनी की पॉलिसी भी।

 

दोनों प्रतीकात्मक रूप से मौन बहस करते रहते हैं –

 

सूत्रधार कहता है – यह लड़ाई सदियों से चलती आ रही है, हमेशा ही नारी को कम करके आँका गया है, और आदमी भले ही न फिट हो सकता हो पर केवल सुरक्षा और अन्य दूसरे कारणों से हमेशा ही बाजी मारता रहा है, पर हमारी कंपनी जेंडर डिस्क्रिमिनेशन के खिलाफ है और हमेशा ही अच्छे स्किल वाले रिसोर्सेस को ही हायर करती है, हम आज 21 वीं सदी में पहुँचकर भी अगर यही सोचेंगे तो हमारे समाज का कुछ नहीं हो सकता, हम कब अपनी रूढ़िवादी सोच से आगे बढ़ेंगे, कब हम हमारे दिमागों की जंजीरों को तोड़ेंगे और कब हम इस मुक्त गगन के तले प्रकृति की तरह व्यवहार करना सीखेंगे, जैसे प्रकृति स्त्री पुरुष का भेदभाव नहीं करती, वैसे ही हम इंसान कब भेदभाव करना छोड़ेंगे। हमारी कंपनी स्त्री पुरुष को भेदभाव को वैचारिक तौर पर ही खत्म करना चाहते हैं। हमने अपनी सारी पॉलिसियाँ भी अपनी इसी प्रकार से बनाई हैं कि सबको बराबर का अधिकार मिले और जिसके पास स्किल हो वह आगे बढ़े।

 

हम बड़े

तुम बड़े

सब बड़े

जग बड़े

जीवन में

चहुँ और

कहीं भी

कभी भी

न हम भेदभाव

करें

सही को

पहचानें

और आगे बढ़ें

 

जीवन का पेड़ धड़धड़ाती बेपरवाह बहती सी नदी के बीच कहीं बियाबान जंगल में

अपने ही बनाये हुए सपनों के महल में ऐसा घबराया सा घूम रहा हूँ, कब कौन से दरवाजे से मेरे सपनों का जनाजा निकल रहा होगा, भाग भाग कर चाँद तक सीढ़ीयों से चढ़ने की कोशिश भी की, पर मेरे सपनों की छत कांक्रीट की बनी है किसी विस्फोट से टूटती ही नहीं। दम भी घुटता है पर कहीं से निरंतर ही ठंडी बयार आने से हमेशा ही सपनों के सच होने का भरोसा दिला देते हैं। इस जंजाल से निकलने के लिये कई बार छुप्पा में, कभी अक्षरों तो कभी शब्दों के पीछे, पर इन्होंने भी मेरा साथ न दिया, जब कोई और बुलाये तो झट से ये उधर चले गये, कभी मैंने तुम पर इसीलिये ऐतबार न किया।
ढ़ूँढ़ता ही रह जाऊँगा जीवन की कुछ सीढ़ियाँ, कभी सीढ़ियाँ ही टूटी मिलीं तो कभी रास्ते टूटे मिले, कभी छत नहीं मिली और अगर मिली भी तो आसमां में चाँद तारे न मिले, जिसने जैसा आसमां दिखाया बस हमेशा वैसा ही आसमां हमने देखा, हम अपना आसमां कब बनायेंगे, कब हम अपनी छत पर अपनी ही सीढ़ियों से जायेंगे, और कब हम शब्दों को अपना बना पायेंगे, सदियों तक इंतजार करेंगे, पर यह भी सत्य है कि इंतजार से कुछ नहीं मिलता, केवल और केवल हमें यही लगता है कि अपने लिये अपनी दुनिया खुद ही गढ़नी होगी।
जब दुनिया गढ़ने भी बैठे और जिसको हमने उस दुनिया का खुदा बनाने की ठानी, उसने हमारी दुनिया का खुदा बनने के लिये पहले तो राजीनामा कर लिया पर अब वह खुद ही अनिश्चितता के दौर से निकल रहा दिखाई देता, किसी दूसरी दुनिया से आने पर भी वहीं की टीस उसे इस दुनिया को मिटाने पर मजबूर कर रही है। जब खुदा खुद ही खुदी के राह पर निकल पड़े तो जीवन के पेड़ धड़धड़ाती बेपरवाह बहती सी नदी के बीच कहीं बियाबान जंगल में खड़ा दिखाई देता है, जहाँ दूर उसे दुनिया तो दिखती है, दुनिया को वह भी दिखता है, पर नदी नहीं, दुनिया तो इधर से उधर जाने के लिये पुलिया का इस्तेमाल करती है, पेड़ के पास खड़े होकर अपनी शक्ल के साथ कई जगह वाहवाही भी लूटते हैं, पर पेड़ के संघर्ष का कोई भी कहीं भी जिक्र नहीं करता, न उसकी भावनाओं को समझता।
बस खुश हूँ तो यूँ कि कुछ पक्षियों ने मेरी शाख पर घोंसले बना रखे हैं, केवल उनके लिये मैं इस प्रकृति से संघर्षरत हूँ, उनके शाख पर खेलने से जीवन की कुछ चीजों पर पड़े जालों को कभी झाड़ने की जरूरत ही नहीं आन पड़ी, जाले तो तब ही झाड़े जाते हैं जब वस्तु को या तो उपयोग करना हो या वह उपयोगहीन हो गई हो। जीवन में आगे बढ़ने की सीढ़ियाँ अब भी ढ़ूँढ़ रहा हूँ, जब कोई मेरी सीढ़ी को सहारा दे तो शायद मैं ज्यादा जज्बे से बेपरवाह होकर मंजिल पर चढ़ाई कर पाऊँगा, नहीं तो सपनों के महल को भरभराते देर ही कितनी लगती है।

समाज में आवारा हवाओं के रुख

(स्टेज पर हल्की रोशनी और, एक कोने में फोकस लाईट जली होती हैं और खड़ी हुई लड़की बोलती है)
    मैं एक लड़की जिसे इस समाज में कमजोर समझा जाता है, और वहीं पाश्चात्य समाज में लड़की को बराबर का समझ के उसकी सारी इच्छाओं का सम्मान किया जाता है। जब से घर से बाहर निकलना शुरू किया है तब से ही मैंने नजरों में फर्क समझना शुरू कर दिया है, पता नहीं कैसे, शायद भगवान ने लड़कियों को छठी इंन्द्रीय की समझ देकर हमें अच्छी और बुरी नजरों
में फर्क करना सिखाया है। कुछ लोग हमारा दुपट्टा थोड़ा से खिसकने पर भी अपनी बहिन या बेटी मानकर हमें आँखों से ही आगाह कर देते हैं, पर ऐसे लोग समाज ने कम ही बनाये हैं। अधिकतर लोग दुर्दांत भेड़िये होते हैं जिन्हें तो बस अपनी आँखों में लड़की गरम माँस का लोथड़ा लगती है, कब मौका मिले और कब वे उसे उठायें और कच्चा ही खा जायें। लड़की जितनी असुरक्षित बाहर है उतनी ही घर में, जितने भी वहशीपन के किस्से सामने आते हैं, वे जान पहचान वालों के ज्यादा होते हैं।
    कुछ ऐसी ही मेरी कहानी है, जब मैंने घर से निकलना शुरू किया तो एक मजनूँ बाँके लाल ने मेरा पीछा करना शुरू किया, जल्दी ही पता चला कि वह मजनूँ मेरे घर के पास ही दो घर छोड़ कर रहता है। पता नहीं कहाँ से एक पुरानी कहावत याद आ गई, डायन भी सात घर छोड़ती है, पर यह मजनूँ तो तीसरे घर में ही..
    मेरी त्योरियाँ हमेशा चढ़ी ही रहती थीं, जिससे कभी उसकी बात करने की हिम्मत तो नहीं हुई पर मैं अंदर ही अंदर दिल में इतनी घबराती हुई आगे बढ़ती थी जिसे मैं बता नहीं सकती।
    एक दिन वह मजनूँ घर के चौराहे पर ही खड़ा था और मैं अपनी साईकिल से घर की और बड़ी जा रही थी,  मुझे वह पढ़ा लिखा लगता था, सलीके से पहने हुए कपड़ों में जँचता भी था। पर किसी का अच्छा लगना ही तो सबकुछ नहीं होता, मेरा ध्यान तो केवल और केवल पढ़ाई की ओर लगा हुआ था, आखिर किसी और तरफ ध्यान लगाने की न मेरी उम्र थी और न ही कोई वजह।
    मेरी साईकिल को किसी अज्ञात सी शक्ति ने रोका, पता नहीं एकदम क्या हुआ कि मेरी साईकिल रुक गई, जबकि मैंने न ब्रेक लगाया और न ही साईकिल की चैन उतरी थी।
सीन
    आवाज आई – मैं आपको पसंद करने लगा हूँ। तब मेरे ध्यान मेरी साईकिल के हैंडल को पकड़े हुए उसी मजनूँ की तरफ गई। वह मजबूती से मेरी साईकिल का हैंडल पकड़े हुए खड़ा था और मैं उसकी इस हिमाकत से अंदर तक हिल गई, समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूँ । मैं चुपचाप थी और साईकिल को पैडल मारकर आगे जाने की कोशिश करने लगी, पर मेरी साईकिल मेरा साथ नहीं दे रही थी, मैंने अपनी पूरी ताकत बटोरकर उससे कहा मेरी साईकिल छोड़िये और मुझे घर जाने दीजिये, ऐसी बदतमीजी करते हुए क्या आपको शर्म नहीं आती है ?”
    वह बोला – शर्म तो आती है, पर क्या करें ये कमबख्त दिल है कि मानता नहीं, और यह बदतमीजी नहीं, हम तो आपसे मोहब्बत का इजहार कर रहे हैं, जब तक आपको हम बतायेंगे
नहीं आपको पता कैसे चलेगा
    हम घबराते हुए बोले – देखिये हमें ये बकवास नहीं सुननी है, और हमसे फालतू की बातों में हमारा वक्त बरबाद मत कीजिये, हम पढ़ाई करते हैं और हमें आप परेशान कर रहे हैं
(स्टेज पर हल्की रोशनी और एक कोने में फोकस लाईट में लड़की बोलती हुई)
    इस तरह से उस दिन तो हम किसी तरह से अपने आप को बचाकर घर आ गया, घर पर इस घटना का हमने कोई जिक्र नहीं किया, अगर हम घर पर इस घटना का जिक्र करते तो शायद पापा और मम्मी घबरा जाते और उनको हमारी कुछ ज्यादा ही फिक्र हो जाती।
सीन
    शाम को वही लड़का फिर से हमारे घर पर आया हुआ देखकर हमें परेशानी महसूस हुई, वह अपनी बहिन के साथ मम्मी के पास आया हुआ था, उसकी बहिन मम्मी से स्वेटर बुनने की कुछ तरकीबें सीख रही थी। हमने वहीं पर रखे हुए अपने कंप्यूटर को चालू किया और फेसबुक चालू कर अपने स्टेटस देखने लगे।
    वह लड़का हमारे पास आकर बोला अरे वाह आप तो फेसबुक और ट्विटर दोनों का उपयोग करती हैं, आप तो तकनीक के साथ कदम ताल मिलाकर चलती हैं, वैसे हम भी तकनीकी का काफी उपयोग करते हैं, अब जब आप सामाजिक ताने बाने में खुद को व्यस्त रखती हैं तो हमें भी अपने आप को रखना होगा, क्यों नहीं आप हमें फेसबुक पर दोस्त बना लेती हैं, तो आपके विचार हमें पता चलते रहेंगे और हमारे आपको ?”
    हमने कहा जी बहुत बहुत धन्यवाद, हमें अपने विचार केवल अपने दोस्तों तक ही पहुँचाने होते हैं, किसी भी अजनबी को हम अपने विचार बताना पसंद नहीं करते हैं, और खासकर उनको तो बिल्कुल भी नहीं जिन्हें सड़क पर साईकिल का हैंडल पकड़कर लड़कियों को रोकने की आदत हो, अच्छा ये बताओ कि तुमने यह बदतमीजी आज तक कितनी लड़कियों के साथ की है ?”
    वह लड़का बोला आप उसे बदतमीजी का नाम मत दीजिये, वह तो हम केवल आपको अपने दिल का हाल बता रहे थे, कि कैसे हम आपके पीछे पागल हैं और हममें इतनी हिम्मत भी है कि आपको बाजार में रोककर अपने दिल के हाल से रूबरू भी करवा सकते हैं, काश कि आप हमारे दिल के हाल के सुनकर हमारी हालत पर रहम खायें” हमने कहा अपने दिल का हाल उसे सुनाईये जो सुनना चाहता है, हमें न सुनवाईये, अगर हमें ज्यादा परेशान किया तो आपको चप्पलों और लप्पड़ों के साथ अपना भविष्य गुजारना होगा, कहीं ऐसा न हो कि हमारी मोहब्बत में आपका जनाजा निकल जाये, आपकी बेहतरी इसी में है कि आप हमें परेशान न करें और हमारे रास्ते से हमेशा जुदा ही रहें
    वह लड़का बोला चलो हम आपके घर तक तो आ ही गये हैं, धीरे धीरे आपके फेसबुक ट्विटर और दिल तक भी पहुँच ही जायेंगे, देखते हैं कि आप कब हमें अपनाते हैं
(लाईट कम होती है और लड़की पर फोकस होता है, लड़की संवाद कहती है –)
    जी तो मेरा ऐसे कर रहा था कि उसका मुँह वहीं तोड़कर उसे उसकी नानी याद दिला दूँ पर पता नहीं मेरे अंदर की हिम्मत इतनी भी नहीं रही थी कि मैं वहीं बैठी अपनी मम्मी और उसकी बहिन को उस लड़के की बदतमीजी के बारे में बता पाऊँ, पता नहीं ऐसी हिम्मत के लिये लड़कियों को क्या खाना चाहिये, जिससे वक्त रहते कम से कम ऐसे मजनुओं को जबाव तो दे
पायें और अपनी कमजोरी को उनका हथियार न बनने दें।
मैं कमजोर
नहीं हूँ, बहुत हिम्मती हूँ
बस समाज से,
परिवार से, उनके लिये ही डरती हूँ
सारा डर केवल
हमारे हिस्से में क्यों लिखा है
क्यों इन
आवारा हवाओं पर समाज का काबू नहीं है
कब ये आवारा
हवाएँ हमें छूने से परहेज करेंगी
आखिर कब इन
हवाओं का रुख बदलेगा
आखिर कब समाज
की दीवारें इन्हें रोकेंगी
कब ये हवाएँ
साफ होंगी
और कब इन
हवाओं से घुटन खत्म होगी
कब ये हवाएँ
बदलेंगी,
और कब हम
साँस ले पायेंगे ।
    और उसी शाम जब मैं फेसबुक स्टेटस देख रही थी कि एक नये दोस्त का नोटिफिकेशन दिखा, मैं हमेशा दोस्त बनाने के पहले प्रोफाईल की जाँच पड़ताल जरूर कर लेती हूँ, और उस दिन भी की तो देखा, पाया कि वही लड़का है जो मुझे परेशान कर रहा है, मैंने उसे दोस्त नहीं बनाया और तभी मैंने अपने ट्विटर पर एक नया फॉलोअर देखा यह भी वही था, मैंने झट से उस प्रोफाईल को भी ब्लॉक किया। जिंदगी अपनी रफ्तार से चल ही रही थी, कुछ दिन गुजरे ही थे कि मेरी जिंदगी के ठहरे हुए पानी में फिर से किसी ने कंकर मारकर मेरी जिंदगी को उलट पुलट कर दिया। मेरी सहेली ने बताया कि उसी लड़के ने मेरे कुछ फोटो किसी ने फेसबुक पर डाल दिये हैं, बात अब बिगड़ने लगी थी, मैंने निश्चय किया कि मैं अपने मम्मी और पापा को आज सब कुछ बता दूँगी, और फिर बेहतर है कि हम इस समस्या से मिलजुलकर लड़ें।
सीन
    पापा ने उस लड़के को बुलाकर बहुत समझाया बेटा हम और आप बहुत ही सभ्य घरों से ताल्लुक रखते हैं, और क्यों तुम मेरी बेटी को इस तरह से परेशान कर रहे हो, इससे नाहक ही सब परेशान हो रहे हैं और मेरी बेटी भी अपनी पढ़ाई में ध्यान नहीं लगा पा रही है, बहुत ही ज्यादा मानसिक आघात तुमने दे दिया है, हमारी बेटी को हमने बहुत नाजों से पाला है, उसके पढ़लिख कर कुछ बनने के अरमान हैं, और तुम अब उन सपनों को पाने में बाधा बन रहे हो
    उस लड़के ने कहा अंकल जी, मैं तो केवल दोस्ती करना चाह रहा था, कि कोई अच्छा दोस्त हमारा भी हो, हमने तो कभी नहीं चाहा कि हमारे दोस्त के अरमान पूरे न हों, हम भी चाहते
हैं कि उसके सपने पूरे हों, हम कभी भी परेशान नहीं करेंगे
    पापा ने कहा तो फिर मेरी बेटी के जो फोटो तुमने फेसबुक और ट्विटर पर डाल रखे हैं, क्या वह भी परेशान करने के लिये नहीं हैं, मैं तुम्हारी इस हरकत को किस नजरिये से देखूँ
    उस लड़के ने कहा वह तो मैंने केवल इसलिये डाल रखे हैं कि ये नहीं दिखे तो कम से कम मैं फोटो ही देख लूँ और अपने मन को तसल्ली दे दूँ
    पापा ने कहा अब तुम बदतमीजी पर उतर आये हो, एक तो चोरी और ऊपर से सीनाजोरी, अगर तुमने फोटो आज को आज ही नहीं हटाये तो मुझे पुलिस के पास जाना पड़ेगा, जब चार डंडे पड़ेंगे तो अपने आप तुम्हारे नये दोस्त बनाने के अरमान ठंडे पड़ जायेंगे
    उस लड़के ने कहा अरे! अंकल जी आप ना ज्यादा टेन्शन न लिया करो, वैसे  तो अब आपने इतनी बात कर ही दी है तो अब देखिये हम क्या करते हैं, आपकी बेटी के सारे फोटो तो हटा ही देंगे पर साथ ही हम परेशान करना भी बंद कर देंगे, हमें पुलिस की वर्दी से बहुत डर लगता है (व्यंग्य से कहते हुए)
    पापा ने गुस्से में कहा अब अगर मुझे तुम्हारी किसी भी हरकत की खबर लगी तो मैं तुम्हारे साथ क्या करूँगा, तुम्हें पता भी न चलेगा, तो बेहतर है कि आज के बाद कभी भी न घर के पास फटकना और न ही मेरी बेटी के पास” लड़का चला जाता है ।
(सुबह का सीन है, चिड़ियाओं के चहचहाने की आवाज आ रही है – )
    अगले दिन सुबह लड़की साईकिल पर अपने स्कूल का बैग लटकाये हुए जा रही है, तभी अचानक पास जाते स्कूटर पर हेलमेट पहने किसी लड़के ने उसके मुँह पर एक शीशी से तेजाब फेंक दिया।
    मैं जोर से चिल्लाई ये क्या है मेरे मुँह पर, ये जल क्यों रहा है, मुझे मेरे चेहरे पर इतना गर्म झाग क्यों लग रहे हैं, क्या किसी ने मेरे चेहरे पर मिर्ची फेंक दी है या कुछ और.. मेरा पूरा चेहरा जल रहा है.. झुलस रहा है
(स्टेज पर पीछे बहुत सी आग की लहरें दिखाते हैं)
(पीछे से सामूहिक कोलाहल अरे किसी ने तेजाब फेंक दिया है, तभी कोई पहचान गया अरे बिटिया चलो मैं तुम्हें अस्पताल ले चलता हूँ और घर पर भी खबर कर देता हूँ)
    रास्ते भर में यही सोचती रही कि क्यों ये तेजाब मुझ पर फेंका गया और क्यों मेरे लिये ये जलन है किसी को मेरे प्रति, बस बहुत तेज चिल्लाने की इच्छा हो रही थी, फफक फफक कर रोने
की इच्छा हो रही थी, किसी ने मेरे सारे सपनों को क्षणभर में ही कुचल दिया था। कहीं कोई दूर काश मेरे लिये भी कोई सपनीली दुनिया होती जहाँ मैं अपने सारे अरमानों और सपनों को पूरा कर सकती। यह केवल मेरा चेहरा ही नहीं मेरी आत्मा जल रही थी, जल के छलनी छलनी हो रही थी, क्यों ये सब हमें भोगना पड़ता है, किसी ने तेजाब का इस तरह का उपयोग क्यों करना शुरू किया, इतनी जलन कि मेरे चेहरे के रोम रोम से मेरे माँस के पल पल बहने का अहसास और तेज हो रहा था, अंदर तक उस तेजाब की आग भभक रही थी, और चारों तरफ बेचारी लड़की के सांत्वना वाले शब्दों को मैं सुन पा रही थी। ऊफ्फ मेरे चारों तरफ एक अजीब तरह की घुटन हो रही थी, तभी पापा मेरे पास आये और मैं उनके स्पर्श को पाकर ही फफक फफक कर रो पड़ी।
    पापा कह रहे थे बेटी मुझे तुम्हें इस तरह देखकर बहुत ही दुख हो रहा है, पता नहीं किसे हमारे से ऐसी दुश्मनी थी जिसने ये घिनौना काम किया है, ये केवल दिन दो दिन की जलन नहीं है, ये तो पूरे जीवन की पीड़ा है, अभी ये जख्म है, और हर जख्म धीरे धीरे ही सूखता है, मेरी प्यारी बेटी तुम इस जख्म से परेशान न होना, तुम्हें न ही किसी से लड़ने की जरूरत है और न ही किसी की सांत्वना की, मुझे पता है तुम बहुत बहादुर हो और कभी भी किसी से न हारने वाली हो, वीर वही होते हैं जो अपने आप में सिसक लें पर दुनिया को कानों कान खबर न होने दें, दुनिया वाले बस सोचते ही रहें कि आखिर इनके पास इतनी हिम्मत आती कहाँ से हैं, बेटी तुम्हें अपने सारे सपने सच करने हैं, ये तो हमारे लिये जिंदगी की परीक्षा है और हम इस परीक्षा को बहुत अच्छे से उत्तीर्ण करेंगे, बस तुम अपना साहस कम मत होने देना, तुम्हारा परिवार हमेशा ही तुम्हारे साथ है
(स्टेज पर गहन अंधकार है और मंच पर एक कोने में फोकस लाईट जलती है और अपने बारे में बताती है)
    मैं बस उस दिन को अपने जीवन का काला दिन मान कर भूलना चाहती हूँ, पर कभी कोई जख्म भी जीवन में भरा है। हाँ अगर समय की दवा न होती तो नासूर जरूर बन जाता है, पर मैंने अपने जख्मों पर समय का मल्हम कुछ इस तरह से लगाया कि मैं दीन दुनिया को भूल बैठी, हाँ मुझे ठीक होने में काफी समय लगा । काफी लोग सांत्वना भी देते थे, पर मुझे उन लोगों पर हँसी आती थी, कि सांत्वना की जरूरत मुझे नहीं उन्हें खुद को है, काश कि समाज को हम यह भी शिक्षा दे पाते, काश कि हम अपने घर के लड़कों को मानसिक रोगी बनाने से रोक सकते, काश कि ये दर्द और जला हुआ चेहरा जो किसी की शरारत या हिकारत को शिकार हुआ था, न होता ।
(पार्श्व में हल्की रोशनी होती है और ऑनलाईन बिजनेस करते हुए दिखाया जाता है, एक लेपटॉप और कुछ लोग ऑनलाईन ब्रांडिग की प्रेजेन्टेशन उस लड़की को दिखा रहे होते हैं, लड़की का चेहरा रूमाल से ढंका है)
    मैंने अपना पूरा समय और पूरी ऊर्जा अपने सपने अपने अरमानों को पूरा करने में लगा दी, और मैं बहुत ही अच्छे से अपने आप को फाईंनेशियली सैटल कर पाई हूँ, आज मुझे मेरे परिवार पर  गर्व है कि मैं उन्हीं लोगों के कारण अपना खुद का इतना बड़ा ऑनलाईन बिजनेस कर पाई हूँ। बस यहाँ दुख इतना ही है कि कोई मेरे चेहरे को नहीं जानता, मेरे बनाये हुए ब्रांड को जानते हैं। मेरी सफलता की कहानी पूरे समाज की सफलता की कहानी है।

प्रेम केवल जिस्मानी हो सकता है क्या दिल से नहीं ?

प्रेम में अद्भुत कशिश होती है, प्रेम क्या होता है, प्रेम को क्या कभी किसी ने देखा है, प्रेम को केवल और केवल महसूस किया जा सकता है.. ये शब्द थे राज की डायरी में, जब वह आज की डायरी लिखने बैठा तो अनायास ही दिन में हुई बहस को संक्षेप में लिखने की इच्छा को रोक न सका। राज और विनय दोनों का ही सोचना था कि प्रेम केवल जिस्मानी हो सकता है, प्रेम कभी दिल से बिना किसी आकर्षण के नहीं हो सकता है।
 
राज को पता न था कि नियती में उसके लिये क्या लिखा है और एक दिन सामने वाले घर में रहने वाली गुँजन से आँखें चार हुईं, ऐसे तो गुँजन बचपन से ही घर के सामने रहती है, पर आज जिस गुँजन को वह देख रहा था, उसकी आँखों में एक अलग ही बात थी, जैसे गुँजन की आँखें भँवरे की तरह राज के चारों और घूम रही हों और राज को गुँजन ही गुँजन अपने चारों और नजर आ रही थी, गुँजन का यूँ देखना, मुस्कराना उसे बहुत ही अजीब लग रहा था। गुँजन के जिस्म की तो छोड़ो कभी राज ने गुँजन की कदकाठी पर भी इतना ध्यान नहीं दिया था। 
और आज केवल राज को गुँजन की आँखों में वह राज दिख रहा था। बस पता नहीं कुछ होते हुए भी राज बैचेन हो गया था। उसके जिस्म का एक एक रोंया पुलकित हो उठा था। बस बात इतनी ही नहीं थी, अगर वह हिम्मत जुटाकर आगे बड़कर गुँजन को कुछ कहता तो  उसे पता था कि उसके बुलडॉग जैसे 2 भाई उसकी अच्छी मरम्मत कर देंगे।

पतंगों का मौसम चल रहा था, आसमान में जहाँ देखो वहाँ रंगबिरंगी पतंगें आसमान में उड़ती हुई दिखतीं, राज
को ऐसा लगता कि उसका भी एक अलग आसमान है उसके दिल में गुँजन ने रंगबिरंगे तारों से उसका आसमान अचानक ही रंगीन कर दिया है। राज और गुँजन दोनों अच्छे पतंगबाज हैं, वैसे तो प्रेम सब सिखा देता है, गुँजन का समय अब राज के इंतजार में छत पर कुछ ज्यादा ही कटने लगा था, और वह उतनी देर हवा के रुख का बदलने का इंतजार करती जब तक कि राज के घर की और पुरवाई न बहने लगे, जैसे ही पुरवाई राज के घर का रुख करती झट से गुँजन अपनी पतंग को हवा के रुख में बहा देती और राज के घर के ऊपर लगे डिश एँटीना में अपनी पतंग फँसाकर राज की खिड़की में ज्यादा से ज्यादा देर तक झांकने का प्रयत्न करती, ऐसी ही कुछ हालत राज की थी और उसे लगता कि गुँजन की पतंग बस उसकी डिश में ही उलझी रहे और गुँजन ऐसे ही मेरी तरफ देखती रहे। पता नहीं कबमें राज और गुँजन की उलझन डिश और पतंग जैसी होने लगी, दोनों ही आपस में यह उलझन महसूस कर रहे थे।

अब राज को गुँजन के बिना रहा न जाता और वैसा ही कुछ हाल गुँजन का था, आखिरकार राज ने गुँजन को वेलन्टाइन डे पर अपने दिल की बात इजहार करने की ठानी, एक कागज पर बड़े बड़े शब्दों में लिखा
मैं तुमसे प्यार करने लगा हूँ”, और यह कागज राज ने गुँजन की पतंग के साथ बाँध दिया और पतंग को डिश एँटीना से निकालकर छुट्टी दे दी। गुँजन ने फौरन ही पतंग को उतार कर वह संदेश पड़ा, पर फिर से उसने पतंग उड़ाई और राज ने अपनी छत पर वह पतंग पकड़ ली और उसमें गुँजन का संदेश था, मैं भी तुम्हें पसंद करने लगी हूँ, राज ने पतंग के डोर में एक पतंग और बाँधकर छुट्टी दे दी । और प्रेम के खुले आसमान में स्वतंत्र होकर वह दोनों पतंग एक डोरी से बँधी उड़ने लगीं।
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जितना खूबसूरत है प्यार, उतना ही गमगीन भी

    जीवन के तेड़े मेड़े रास्ते रतन को हमेशा से ही पसंद थे, हमेशा ही अपने जीवन में कुछ न कुछ रोमांचक करने की इच्छा इसके जीवन में नये रंग भर देती थी, एक बार कुछ ऐसा करते हुए ही रतन एक खूबसूरत आँखों के बीच फँस गया और जीवन के उस खूबसूरत मोड़ पर पहुँच गया, जिसे दुनिया प्यार के नाम से जानती है।
    तमन्ना नाम था इस नाजनीन का जिसे रतन टूट कर प्यार करने लगा था, और यह हाल केवल रतन का ही नहीं था, यही हाल तमन्ना का भी था, आजकल के युग में जहाँ प्यार के नाम पर
मर्यादाओं को लांघना एक आम बात हो गई है, वहीं इन दोनों के बीच कुछ ऐसा था, जहाँ वे मर्यादाओं की सीमा में रहते और हाथों में हाथ लेकर घंटों तक सुनहरी दुनिया में खोये रहते ।
    दोनों ने अपना जीवन एक दूसरे को समर्पण करने का मन बना लिया, दोनों ने अपने अपने घर पर अपनी पसंद के बारे में बता दिया, रतन के घर पर तो मान गये पर तमन्ना के घरवाले रूढ़िवादी विचारों के थे और लड़की खुद अपने लिये लड़का ढ़ूढ़ना बिल्कुल भी पसंद नहीं आया और सबकुछ ठीक होते हुए भी तमन्ना को रतन की जिंदगी से दूर करने की पुरजोर कोशिश जारी हो गई और तमन्ना अपने परिवार के प्यार के आगे झुककर रतन को भुलाने की कोशिश करने लगी।
    रतन तमन्ना को अपनी न बना पाने के गम से बेहद गमगीन था, और अब न उसे दिन का पता रहता न रात का पता रहता, पता नहीं कब क्या करता, वह स्मार्ट सा दिखने वाला लड़का आज बेतरतीब बालों और बिना शेविंग के इधर इधर घूमता रहता।
    तमन्ना के प्यार पर तरस खाकर उसके घरवालों ने रतन को बुलाकर बात करने का निश्चय किया और रतन को बुलाया गया, तो रतन की हालत देखकर तमन्ना के घरवालों को बहुत ही बुरा लगा, तमन्ना के पापा ने कहा कि अगर तुम केवल इतनी सी कठिनाई से हारकर अपना ये हाल करोगे, अपना ध्यान नहीं रख पाओगे तो जीवन में आने वाली कठिन परिस्थितियों से कैसे सामना करोगे, तो रतन ने तमन्ना के घरवालों को आश्वस्त किया कि अब ऐसा नहीं होगा और अब वह कैसी भी परिस्थिती हो वह उसका सामना करेगा और अपने चेहरे से कुछ भी जाहिर नहीं होने देगा, रोज ही शेविंग करके अपने आप को स्मार्ट रखेगा। इस तरह आखिरकार रतन को तमन्ना का प्यार जीवनभर के लिये मिल ही गया।
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जीवन के प्रति नकारात्मक रुख

    थोड़ा बीमार था, और बहुत कुछ आलस भी था, आखिर रोज रोज शेव बनाना कौन चाहता है, उसकी दाढ़ी के बालों के मध्य कहीं कहीं सफेदी उसकी उम्र की चुगली कर रही थी, वह बहुत सारी बातों से अपने आप को कहीं अंधकार में विषाद से घिरा पाता। कहीं भी उसे न प्यार मिलता और न ही कहीं उसके मन की कोई बात होती था, उसे समझ ही नहीं आता कि क्या यह कमी केवल और केवल उसमें ही है या उससे मिलने वाले लोग उसे जानबूझकर विषाद के सागर में ढकेल रहे हैं। वह दिल से बहुत ही मजबूत पर भावनात्मक रूप से उतना ही कमजोर था। उसने जीवन के बहुत उतार चढ़ाव देखे थे और जीवन की कठिन से कठिन चुनौतियों का सामना बड़ी ही जीवटता से किया और सारी कठिनाईयों का बहुत ही अच्छी तरह से सामना किया था।
    आज उसके अंदर एक भावनात्मक आंदोलन चल रहा था, जिसके कारण वह अपना बिल्कुल भी ध्यान नहीं रख पा रहा था, न उसकी बातों में आत्मविश्वास था और न ही उसमें चुनौतियों से निपटने वाली जीवटता देखी जा सकती थी, उसमें जीवन के प्रति नकारात्मक रुख साफ नजर उसकी खिचड़ी दाढ़ी से ही नजर आ जाता था, शायद वह बड़ी हुई दाढ़ी से अपने चेहरे के नकारात्मक भाव छिपाना चाहता था, जिससे उसके पीछे छिपी नकारात्मकता को कोई पढ़ न सके, और उसे अपनी इस परिस्थिती में रहने का भरपूर मौका मिल सके।
    इसी बीच वह नौकरी भी ढ़ूढ़ रहा था जिसमें वह टेलीफोनिक के लगभग 3 राऊँड बहुत ही अच्छे से निपटा चुका था, और साक्षात्कार लेने वाली कंपनी उसकी तकनीकी ज्ञान की कायल हो चुकी थी। अब बारी थी आमने सामने यानि कि फेस टू फेस साक्षात्कार की, जिसके लिये वह बिल्कुल भी तैयार नहीं था, और उसका आत्मविश्वास डिग रहा था। खैर वह दिन भी आ गया और इंटरव्यू पैनल के सामने वह पहुँच गया, जितना कायल वे लोग उसके टेलीफोनिक साक्षात्कार के थे, उसे बढ़ी हुई दाढ़ी में देखकर कंपनी को लगा कि यह कैसे संभव है कि जो इतना अच्छा साक्षात्कार दे वह खिचड़ी दाढ़ी में खुद को अपने भावी नियोक्ता के सामने प्रस्तुत करे, तो शेविंग के न करने के कारण उसका हो चुका चयन कंपनी को रद्द करना पड़ा।
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बेटी तू कितना भी विलाप कर ले, तुझे मरना ही होगा (नाटक)

माँ और उसकी कोख में पल रही बेटी के मध्य संवाद

 पार्श्व में स्वरघोष के साथ ही बताया जाता है –
( जैसे ही बहु के माँ बनने की सूचना मिली परिवार खुशियों से सारोबार था, परिवार में उत्सव का माहौल था। उनके घर में वर्षों बाद नये सदस्य के परिवार में जुड़ने की सूचना जो मिली थी, परिवार रहता तो आधुनिक माहौल में है, पर उनके विचार रूढ़िवादी हैं, बहु को बहु जैसा ही समझते हैं, जब से बहु घर में आई है तो घर में उनके पति की मम्मी को बहुत ही आराम है, पहले दिन रात घर के काम में खुद तो खटना ही पड़ता था और साथ ही बर्तन साफ करने वाली, पोंछे वाली और कपड़े धोने वाली धोबन सबका ध्यान रखना पड़ता था, अब जब से बेटे की शादी की है, तब से ना खुद काम करने पड़ता है और बर्तन साफ करने वाली, पोंछे वाली और कपड़े धोने वाली धोबन का भी ध्यान नहीं रखना पड़ता है, क्यूंकि बहु तो होती ही घर के काम करने के लिये है, तो अब घर का सारा काम बहु करती है। जैसे सदियों से धरती और सूर्य अपनी धुरी पर घूम रहे हैं वैसे ही औरत घर की धुरी पर घूम रही है, क्या कभी उसके अंतर्मन को किसी ने पढ़ने की कोशिश की, नहीं कम से कम अब तक तो नहीं ।
जब से बेटी के घर में आने की खबर घर वालों को एक अवैधानिक अल्ट्रासाऊंड से मिली है, माँ को कान में केवल एक ही बात सुनाई देती है,  (गूँजती हुई कोरस में आवाज) मार दो, मार दो, मार दो !!! )
मंच के बीचों बीच माँ बैठी है, फोकस लाईट माँ पर आती है..
माँ अपने पेट पर हाथ रखकर अपनी बेटी से संवाद कर रही है..
माँ – बेटी मैं तो तुझे बचाने की पूरी कोशिश कर रही हूँ, परंतु आखिर मैं हूँ तो नारी ही
बेटी – माँ मुझ बचा लो माँ, क्या माँ आप इस धरती की मानस संतानों को समझा नहीं सकतीं कि अगर बेटी ना होगी तो बहु कैसे आयेगी, वंश आगे कैसे बढ़ेगा, ये तो प्रकृति का नियम है, लिंग कोई भी हो पर प्रकृति के प्रति जबाबदेही तो बराबर ही होती है ।
माँ – बेटी मैं तो दुनिया के हर वहशी दरिंदे हत्यारों से तुझको बचाना चाहती हूँ, पर मैं क्या करूँ, आखिर हूँ तो नारी ही, बेबस हूँ, लाचार हूँ, मैंने इस धरती पर अनचाहे ही कितने ही हत्यारों को देखा है, अनमने ढ़ंग से हत्यारे परिवारों के मध्य रही हूँ, इन खौफनाक आँखों को पढ़ते हुए जाने कितने दिन और रातें सहमी सी बिताई हैं, और सबसे काला पक्ष इसका यह है कि इन वीभत्स हत्याओं के पीछे हमेशा ही कोई नारी सर्वोच्च भूमिका निबाह रही होती है। वह एक बार भी अपने खुद को मारने के अहसास को समझ नहीं पाती है।
बेटी – माँ हमने ही तो किसी न किसी भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरू के जन्म दिया था, अगर बेटी को ऐसे ही मारा जाता रहा तो इस दुनिया को बता दो कि इनकी किस्मत बदलने वाले की माँ का कत्ल कोख में ही हो गया, हो सकता है कि तुम्हारी कोख से नहीं पर मेरी कोख से भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरू जन्म ले लें पर अब वे किसी भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरू के आने की प्रतीक्षा न करें, बस वे बेटी को कोख में ही कत्ल करें !!
माँ – बेटी तू लड़की है, अल्ट्रासाऊँड में आ गया है, और तत्क्षण ही मैंने इस परिवार की आँखों में तैरती हुई वह नंगी वहशियानी खून में लिपटी हुई तलवारें देखी थीं, ऐसा लगने लगा है कि मैं अब किसी भी पल माँस के लोथड़ों के मध्य जा सकती हूँ, मैं पल पल केवल यही अहसास कर रही हूँ कि कब साँसें रूकेंगी, कब धड़कन रूकेगी और कब मैं उन नरभक्षियों को शिकार बनूँगी, मैँने पता नहीं कितनी बेटियों को कोख में ही मरते देखा है, ना
आजतक बोल पाई और ना ही अब बोल पाऊँगी।
बेटी – माँ आखिर हूँ तो मैं भी एक संतान ही ना, क्या मुझे वाकई इस रंगीन दुनिया को देखने का, अहसास करने का एक मौका नहीं मिलेगा, क्या आने वाले समय में रक्षाबंधन, भाईदूज जैसे त्यौहार दुनिया के लिये गौण हो जायेंगे । जब लड़की न होगी तो, क्या आने वाले समय में विवाह बंधन होंगे !!
माँ – बेटी तू कितना भी विलाप कर ले, पर यह तो तेरी नियती है, तुझे मरना ही होगा, तुझे मरना ही होगा
कोरस में पार्श्व में आवाज (तुझे मरना ही होगा, तुझे मरना ही होगा)

स्पर्श की संवेदनशीलता (BringBackTheTouch)

    पहले हम लोग एक साथ बड़ा परिवार होता था, पर अब आजकल किसी न किसी कारण से परिवार छोटे होने शुरू हो गये हैं, पहले परिवार में माता पिता का भी एक अहम रोल होता था, परंतु आजकल हम लोग अलग छोटे परिवार होते हैं, और अपनी छोटी छोटी बातों पर ही झगड़ पड़ते हैं, पर पहले परिवार एक साथ रहने पर समझदारी से सारी बातों का निराकरण हो जाता था, छोटे झगड़े बड़ा रूप नहीं लेते थे।
    केशव और कला एक ऐसे ही जोड़े की कहानी है, जब तक वे संयुक्त परिवार के साथ रहे, तब तक जादुई तरीके से उनका जीवन सुखमय था, वे आपस में अंतर्मन तक जुड़े हुए थे। परंतु केशव को अच्छे कैरियर के लिये भारत से दूर विदेशी धरती पर जाना पड़ा, केशव और कला दोनों ही बहुत खुश थे, आखिरकार भारत से बाहर जाने का हर भारतीय दंपत्ति का सपना होता है, जो उनके लिये साकार हो गया था।
    यह पहली बार था जब वे संयुक्त परिवार से एकल परिवार में होकर रहने का अनुभव करने जा रहे थे, पहले पहल दोनों को बहुत मजा आया, परंतु जैसे जैसे दिन निकलते गये, केशव की व्यस्तता बड़ती गई, और कला घर में अकेले गुमसुम सी रहने लगी, केशव भले ही शाम को घर पर होता था, पर हमेशा ही काम में व्यस्त और यही आलम सुबह का भी था। ना ढंग से नाश्ता करना और ना ही भोजन, कला भी क्या बोलती, कई बार बोलने की कोशिश की परंतु, कुछ न कुछ कला को हमेशा बोलने से रोक लेता और कला रोज की भांति अपने में सिमटना शुरू हो जाती।
    हर चीज को किसी एक बिंदु तक ही सहन किया जा सकता है, वैसे ही कला का एकांत था, वह दिन कला और केशव के लिये मानो परीक्षा की घड़ी बनकर आया था, कला केशव के ऑफिस से आते ही उस पर टूट पड़ी, बिफर पड़ी, आखिर मेरे लिये समय कब है, क्या मैं यहाँ केवल और केवल कठपुतली बनकर रहने आई हूँ, मैं भी इंसान हूँ मुझे भी तवज्जो चाहिये, मुझे भी तुमसे बात करने के लिये तुम चाहिये, इस खुली हुई दुनिया में मैं अपने आप को कैद पाती हूँ और घुटन महसूस करती हूँ। केशव कला की बातों को बुत के माफिक खड़ा सुनता रहा, और उसे अपनी गलती का अहसास हुआ, आखिरकार कला का एक एक शब्द सच था, ना उसके पास बात करने का समय था और ना ही कला को कला की बातें महसूस करने के लिये वक्त था।


    कला केशव के सामने फफक फफक कर रो रही थी, केशव धीमे धीमे कला के नजदीक गया और कला को अपनी बाँहों में भरकर गालों से गालों को सटाकर कह रहा था, बस कला मुझे समझ आ गया है कि मैं कहाँ गलत हूँ । अब आज से मेरा समय तुम्हारा हुआ, केशव के स्पर्श से कला का गुस्सा और अकेलापन क्षण भर में काफूर हो गया, स्पर्श के स्पंदन को कला और केशव दोनों ही महसूस कर रहे थे, कला और केशव दोनों ने आगे से अपना समय आपस में बिताने का निश्चय किया।

    ठंड में स्पर्श को बेहतरीन बनाने के लिये पैराशूट का एडवांस बॉडी लोशन बटर स्मूथ वाला उपयोग कीजिये, अमेजन पर यह ऑनलाईन उपलब्ध है ।
    यह कहानी #BringBackTheTouch http://www.pblskin.com/ के लिये हमने लिखी है । स्पर्श को आपस में महसूस करिये, जीवन में नई ऊर्जा मिलेगी।
इस वीडियो में निम्रत और पराम्ब्रता को स्पर्श की संवेदनशीलता को दर्शाते हुए देखिये, आपको स्पर्श के महत्वत्ता पता चलेगी – Watch the video to witness Nimrat and Parambrata #BringBackTheTouch.

जंग .. मेरी कविता.. (विवेक रस्तोगी)

कठिनाईयाँ तो राह में बहुत हैं,
बस चलता चल,
राह के काँटों को देखकर हिम्मत हार दी,
तो आने वाली कौम से कोई तो
उस राह की कठिनाईयों पर चलेगा,
तो पहले हम ही क्यों नहीं,

आने वाली कौम के लिये
और बड़ी
उसी राह की
आगे वाली कठिनाईयाँ छोड़ें,
नहीं तो
वे इन कठिनाईयों को पार करते समय
सोचेंगे, कितने नकारा लोग थे
जो इन साधारण सी बाधाओं को पार
नहीं कर पाये

जो बाधाएँ आज कठिन लगती हैं
वे आने वाले समय में बहुत सरल हो जाती हैं
बेहतर है कि उनके सरल होने के पहले
उन कठिनाईयों से निपट लिया जाये

दिमाग और हौसलों में जंग न लगने देने का
इससे साधारण और कोई उपाय नहीं।

बस तुम्हें… अच्छा लगता है.. मेरी कविता

मुझे पता है तुम

खुद को गाँधीवादी बताते हो,

पूँजीवाद पर बहस करते हो,

समाजवाद को सहलाते हो,

तुम चाहते क्या हो,

यह तुम्हें भी नहीं पता है,

बस तुम्हें

बहस करना अच्छा लगता है ।

जब तक हृदय में प्रेम,

किंचित है तुम्हारे,

लेशमात्र संदेह नहीं है,

भावनाओं में तुम्हारे,

प्रेम खादी का कपड़ा नहीं,

प्रेम तो अगन है,

बस तुम्हें

प्रेम करना अच्छा लगता है ।

आध्यात्म के मीठे बोल,

संस्कारों से पगी सत्यता,

मंदिर के जैसी पवित्रता,

जीवन की मिठास,

जीवन में सरसता,

चरखे से काती हुई कपास,

बस तुम्हें

सत्य का रास्ता अच्छा लगता है।