Category Archives: यात्रा

हम कचरा फैलाने में एक नंबर हैं (We indians are great and known for litter)

    कचरा फैलाने के मामले में हम भारतीय महान हैं । और कचरा भी हम इतनी बेशर्मी और बेहयाई से फैलाते हैं जबकि हमें पता है कि यही कचरा हम सबको परेशान कर रहा है इसलिये हम सबको बड़े से बड़े पुरस्कार से सम्मानित किया जाना चाहिये, कम से कम इसकी शुरूआत गली से करनी चाहिये या घर कहना ही बेहतर होगा, जब हमारा घर साफ सुथरा होगा, तभी गली, मोहल्ले, सड़कें और उनके किनारे साफ होंगे।
    हमारे यहाँ घर में कई लोगों की आदत होती है कि रात में या सुबह कचरा घर में कहीं भी डाल दिया कि अब झाड़ू तो लगेगी ही तो साफ हो जायेगा, जबकि दो कदम पर ही कचरापेटी रखी है, वहाँ तक जाने की जहमत नहीं उठायेंगे। वैसे ही हम भारतीयों को नाक बहुत आती है और कुछ लोग तो उसका सेमड़ा भी उदरस्थ करने में माहिर होते हैं, जो उदरस्थ नहीं कर पाते वे सबसे पहले अपने बैठने के स्थान पर नीचे हाथ डालकर वह नाक का सेमड़ा चिपका देंगे या फिर उँगलियों के बीच सेमड़े को इतना घुमायेंगे कि वह कड़क हो जाये और फिर वे आसानी से उसे सम्मान के साथ बिना किसी को बोध हुए कहीं भी फेंक देंगे। इसलिये भी मैं कभी भी सार्वजनिक स्थानों जैसे कि थियेटर, फिल्म हॉल, बस, ट्रेन और हवाईजहाज में अपने हाथ सीट के नीचे ले जाने से कतराता हूँ।
    हमारे घर में कचरापेटी के अलावा भी बहुत सी जगहें कचरा डालने के लिये माकूल महसूस होती हैं, जैसे कि पलंग पर बैठे हैं और टॉफी खा रहे हैं, तो उसका रैपर फेंकने कौन कचरापेटी तक जायेगा, तो टॉफी का रैपर मोड़कर गोली बनाकर वहीं गद्दे के नीचे फँसा दिया, अगर गद्दा उठ पाने की स्थिती में नहीं है तो फिर पलंग के पीछे ही रैपर को सरका दिया, अगर वह जगह भी नहीं है और पास में ही कहीं कोई अलमारी रखी है तो उसके पीछे सरका दिया, वहाँ पर भी जगह नहीं मिली तो आखिरकार सबकी आँख बचाकर कचरा जमीन पर अपनी चप्प्ल या पैर के पास फेंका और धीरे से पलंग के नीचे सरका दिया। यह व्यवहार अपने सार्वजनिक जीवन में लगभग हर जगह देख सकते हैं।
    गुड़गाँव से दिल्ली धौलाकुआँ होते हुए हाईवे से जाते हैं, तो लगता है कि शायद यह सड़क विश्वस्तर की तो होगी ही, पर जब उस पर चलते हुए पुराने ट्रक और बस दिखते हैं जो कि प्रदूषण फैलाते हुए अपनी बहुत ही धीमी रफ्तार से बड़े जाते हैं, इनमें से कई बस ट्रक में से तेल निकल रहा होता है, और कई सभ्य लोग अपनी बड़ी बड़ी गाड़ियों में सफर कर रहे होते हैं, पर अधिकतर ये कार वाले लोग इतने असभ्य हो जाते हैं कि कहीं भी किधर से भी पानी की खाली बोतल फेंक देंगे या फिर कोई चिप्स का पैकेट, इच्छा होती है कि अगर इनके घर का पता मेरे पास होता तो मैं उनको यही कचरा उनके घर पर वापस से सम्मान के रूप में देने जाता, कि भाईसाहब आप अपना यह कचरा कल हाईवे पर छोड़ गये थे।
    यह पोस्ट इंड़ीब्लॉगर के हैप्पी अवर के लिये लिखी गई है, जो कि टाईम्स ऑफ इंडिया के लिये है, ज्यादा कचरा कैसे फैलायें, इसके लिये आप यहाँ भी क्लिक करके देख सकते हैं http://greatindian.timesofindia.com/

कोहरा, डिफॉगर और कोहरे का अहसास

घर की छत से लिया कोहरे का फोटो
    आजकल अपनी सुबह थोड़ी देर से ही हो पाती है, उसके दो कारण हैं एक तो देर रात घर पहुँचना और दूसरा ठंड। जब बारिश होती है तो उस दिन कोहरा थोड़ा कम होता है, पर जबरदस्त कोहरे का आमंत्रण होता है, जब धूप आ जाती है, तो कोहरा कम होने की उम्मीद जग जाती है। कोहरा अकसर नदी नाले और खुली जगह जैसे कि जंगल में ज्यादा होता है, कोहरे में ही सड़क पर बीच में पोती गई सफेद लाईनों का महत्व पता चलता है, अभी तक कम से कम 2-3 बार इन सफेद लाईनों के सहारे ही गाड़ी चलाई है। कोहरा जब जबरदस्त होता है तो हम अपने मोबाईल पर जीपीएस चालू करके कार में लगा लेते हैं, तो कम से कम मोड़ और कहाँ तक पहुँच गये हैं पता चल जाता है। कई बार कोहरे में गाड़ी चलाने पर यह पता ही नहीं चलता कि आप किधर तक पहुँच गये हो।
घर की छत से लिया कोहरे का फोटो
    कोहरे के कारण कई बार हमने ट्विटर और फेसबुक पर डिफॉगर के बारे में जानना चाहा, तो अलग अलग राय मिलीं, पर सबसे अच्छी राय मिली ब्लॉगर मित्र काजल कुमार जी की, कि गाड़ी में हीटर चालू करके रखिये, तो काँच पर कोहरा नहीं जमेगा और आगे पीछे दोनों काँचों को साफ भी रखेगा। थोड़े दिनों पहले करोलबाग गये थे तो वहाँ केवल गाड़ी के काँच की एक दुकान है, वहाँ पूछा तो हमें बताया गया कि डिफॉगर वाला शीशा मिल तो जायेगा पर गाड़ी की वारंटी खत्म हो जायेगी, हमने सोचा कि छोड़ो जो होगा देखेंगे।
     खैर उस काँच वाले ने जाते जाते हमें एक नेक सलाह भी दी कि कोहरे में आप अपनी गाड़ी की डिफॉगर लाईट चालू रखें जिससे कम से कम आपको पाँच मीटर तो साफ दिखेगा, गाड़ी धीमे चलाईयेगा, दोनों तरफ के काँचों को थोड़ा सा खुला रखें और हीटर चालू रखें तो आपको पीछे काँच के डिफॉगर की कमी ही महसूस ही नहीं होगी।
    अब तो कोहरे में गाड़ी चलाने आदत सी हो गई है, तो अब कोहरे के होने और न होने का ज्यादा अंतर नहीं पड़ता है, कोहरे के अपने गणित होते हैं, पहली बार मैंने बिल्कुल बच्चों जैसे गाड़ी का पूरा काँच खोलकर हाथ बाहर निकालकर कोहरे का अहसास किया था, जब हाथ पूरा भीग गया तभी पता चला कि कोहरा क्या होता है, पता नहीं क्यों हर चीज को अनुभव करने की मानव-मन की इच्छा कब पूर्ण होगी।

मेलबोर्न में पर्यटन (Visit Melbourne)

     मेलबार्न आज से तीन वर्ष जाने के कार्यक्रम लगभग तय था, किंतु अंतिम क्षणों में हमारा जाना नहीं हो पाया, तब हमने बहुत सी चीजों को बारे में पता किया था, कि मेलबोर्न में कहाँ फ्लेट लेना है, मेलबोर्न में रहने पर कितना खर्चा आयेगा, मेलबोर्न में भारतीय तरीके का भोजन तैयार करने की सामग्री कहाँ मिलेगी, इत्यादि। साथ ही यह भी पता लगाया था कि क्या क्या चीजें घूमने के लिये हैं, मेलबोर्न में पर्यटक कहाँ कहाँ जाना चाहते हैं।

हमें ये तीन पर्यटन स्थल बहुत ही अच्छे लगे थे, और हम इन जगहों पर घूमने जाना चाहते थे –
Hot air balloon – गर्म गुब्बारे में घूमने का अपना ही मजा है, और बादलों के बीच जब बिना किसी दीवार के हम आसमान में होंगे तो उसका रोमांच जबरदस्त होगा । 

 The Great Ocean Road – यह 220 कि.मी. का जबरदस्त हाईवे है, जिसका अधिकतर रास्ता समुद्र के किनारे बना हुआ है, और कुछ रास्ता घने जंगलों के मध्य से भी गुजरता है, इस पर लंबी ड्राईव का आनंद ही कुछ और होना चाहिये। 

City circle tram – उस समय मैं गूगल की त्रिआयामी मैप सुविधा का लाभ लेकर मेलबोर्न घूमा करता था, जहाँ मेरा ऑफिस होना था, उसके सामने ट्राम की पटरियाँ देखकर सुखद लगा था, कि यह अनुभव भी एक अलग ही तरह का होगा, हमने कभी भी ट्राम में बैठने का आनंद नहीं उठाया था, तो अब उठाना चाहते हैं।
पाठकों आपके लिये एक सवाल जिसके सर्वोत्तम उत्तर को मिलेगा मेलबोर्न पर्यटन केन्द्र की और से  एक गिफ्ट वाऊचर, आज ही बतायें
Which of these places would you want to visit in Melbourne and why?”.

बेटेलाल के साथ छुट्टियों का जादुई अहसास (Magic of my kid on vacations)

    बच्चों केसाथ छुट्टियों पर जाना ही बेहद सुकूनभरा अहसास होता है, और बच्चे छुट्टियों कोअपनी शैतानी और असीमित ऊर्जा से छुट्टियों को यादगार बना देते हैं। बच्चों को कितना भी बोलो पर वे कहीं पर भी और कभी भी चुपचाप नहीं बैठ सकते, पता नहीं उनकी इस असीमित ऊर्जा को स्रोत क्या होता है। बच्चे अपनी मस्ती से छुट्टियों में जादू भर देते हैं और ये यादें हमेशा अंतर्मन में ऐसे रहती हैं कि अभी ही उन्होंने मस्ती की हो। बच्चे वे सब कर लेते हैं, जो हम बड़े झिझक के कारण नहीं कर पाते हैं।
    मैंने कुछ दिनों के लिये छुट्टियों पर गोवा जाने का कार्यक्रम बनाया था, तो हमारे बेटेलाल ने पहले ही अपनी सूचि बनाना शुरू कर दी थी, कि गोवा से क्या क्या लाना है और अपने दोस्तों के साथ मिलकर नेट पर ढ़ूंढ़ते थे कि कहाँ कहाँ घूमना है, कहाँ खाना अच्छा है और कैसे घूमना है। पूरे प्लेन में केवल यही उत्साहीलाल लग रहे थे, कि जैसे गोवा केवल इनके घूमने के लिये ही बनाया हो, और बाकी सब तो झक मारने जा रहे हैं। बेटेलाल की छुट्टियों का उत्साह देखते ही बनता था। मुझसे कैमरे से फोटो खींचना, वीडियो बनाना सब सीख लिया था।
Calangute beach Goa
Evening Snaks at Marriott Goa
Fort Aguada in Goa

 

Goa Marriott Swimming pull
Harsh at Marriott Room Goa

 

on the wall of Marriott of Goa
    गोवा हम रिसॉर्ट में पहुँचे तो वहाँ के स्वागत को देखकर ही अचंभित थे, और जब हमें गोवा की वाईन के बारे में जानकारी दी जा रही थी तो एक बंदा ट्रे में बीयर लेकर आया तो सबसे पहले बीयर हाथ में लेकर चीयर्स करने लगे कि मैं भी बड़ों की कोल्डड्रिंक पियूंगा, तो बेयरे ने कहा कि आप के लिये दूसरी बोतल है आप यह वाली मत लें, तब जाकर हमारी साँसों में साँस आई।
    जब हमें कमरा दिखाया जा रहा था, तो कहने लगे कि हम यहीं रहते हैं, यहाँ कितना अच्छा लग रहा है, तरणताल में पड़े रहो और समुँदर का नजारा देखते रहो, और बेटेलाल कोई भी ट्यूब लेकर तरणताल में मौज करने के लिये उतर पड़ते, हम बाहर से ही देखते रहते तो एक दिन बोले अब अंदर आकर तो देखो कितना मजा आता है, हम तरणताल में उतरे तो वाकई अनुभव मजेदार था।
    अगले दिन समुद्रतट पर घूमने गये थे, तो बेटेलाल बहुत उत्साहित थे, हालांकि मुँबई में रहने के दौरान कई बार समुद्रतट के मजे ले चुके थे, पर हमें बोले कि गोवा की तो बात ही कुछ और है, और कपड़े उतार कर निकर में ही रेत और पानी के मध्य मस्ती के आलम को जबरदस्त माहौल बनाया और कुछ ही देर में अपने ही हमउम्र बच्चों के साथ वहाँ मस्ती का आनंद उठाने लगे। हमने कभी ऐसी मस्ती का माहौल नहीं देखा था, बेटेलाल हमसे उनके साथ आने की जिद करने लगे तो हम भी उनकी मस्ती में सारोबार हो, रेत और समुँदर के पानी में डूब लिये ।
    बेटेलाल को तो बस हर जगह कैसे मजे लें, इसमें विशेषज्ञता हासिल है। और उनकी इसी मस्ती से भारी पल भी मस्ती के रंग में रंग जाते हैं। यह यात्रा और अनुभव क्लबमहिन्द्रा के टैडी
ट्रैवलॉग
के लिये लिखा गया है।

डर के आगे जीत है (Rise above Fear !)

     जीवन संघर्ष का एक और नाम है, जिसमें हमें हर चीज सीखनी पड़ती है, फिर भले ही वह चाव से हो या मजबूरी में । हाँ एक बात है कि जब हमें कोई चीज नहीं आती तो हमें ऐसे  लगता है कि यह चीज सीखना कितना दुश्कर कार्य है और हमें उस चीज को सीखने में, जीवन में उतारने में अपने अंदर के डर से सामना करना पड़ता है। जो भी अपने अंदर के डर से जीत गया बस वही अपने जीवन में किसी भी कार्य में सफल हो पाया है। ऐसे ही माऊँटेन ड्यू का डर के आगे जीत है स्लोगन याद आ जाता है।

    हमें बैंगलोर में कभी भी कार की जरूरत महसूस नहीं हुई, वहाँ हम बाईक से ही काम चलाते थे, और बैंगलोर के व्यस्त यातायात में हमें ऐसा लगता था कि जो सफर हम बाईक से ऑफिस का 40 मिनिट में करते थे वही सफर कार से 2 घंटे में होता, तो हमने सोचा कि बाईक से ही काम चलाते हैं, पर हाँ कार को चलाते हुए लोगों देखकर उनकी हिम्मत की मन ही मन दाद देता था। सोचता था कि जब मुझे बाईक चलाने में इतना डर लगता है, तो कार चलाने के लिये इनको कितना डर लगता होगा।
    जब मैं इस वर्ष गुड़गाँव आया तो देखा कि मेरा ऑफिस हाईवे पर पड़ता है और बाईक से आना जाना बिल्कुल सुरक्षित नहीं है, तो कार लेना अब हमारी मजबूरी बन गया था, पर हमें चलानी आती नहीं थी और कार की जरूरत बहुत ज्यादा महसूस होने लगी थी । 
 डर के आगे जीत है का तमिल वीडियो
    हमने ड्राईविंग स्कूल से कार चलानी सीखी, पहले दिन हमारे ट्रेनर ने हमें जैसे ही ड्राईविंग सीट पर बैठने को कहा हमारा डर हम पर हावी होने लगा और हाथ काँपने लगे, तो ट्रेनर ने कहा कि आज और कल दो दिन आप केवल स्टेयरिंग व्हील और एक्सीलेटर पर ही चलाओगे, जब गाड़ी पहली बार शुरू की तो डर हम पर हावी हो रहा था, ऐसा लग रहा था कि जब केवल स्टेयरिंग व्हील और एक्सीलेटर सँभालने में ही इतनी मशक्कत है तो गियर बदलना, क्लच और ब्रेक कैसे करेंगे । साथ ही पीछे और बगल से आने वाले वाहनों का भी ध्यान रखना पड़ता है।
  तीसरे दिन से हमें ब्रेक भी सँभालने को दे दिया तो अब हमें स्टेयरिंग व्हील, एक्सीलेटर और ब्रेक तीनों चीजें सँभालना भारी पड़ने लगा, पर फिर भी हिम्मत को बाँधकर रखा और अपने डर को अपने पर हावी नहीं होने दिया। पाँचवे दिन से हमें गियर और क्लच भी सँभालने को दे दिया गया, अब हमें पूरी गाड़ी को अपने नियंत्रण में रखने की जिम्मेदारी थी, और केवल तीसरे गियर तक चलाने की परमीशन थी, हमने भी अपने डर को काबू में रखा और सोचा कि अगर डर गये तो कार कैसे चलायेंगे, 15 दिन हमने कार सीखी और सोलहवें दिन हमने अपनी कार की डिलीवरी ली और पहले ही दिन 40 किमी चलाई, दूसरे दिन ही कार एक जगह मोड़ते समय ठुक गई, पर हमने सोचा कि अभी डर गये तो कभी कार नहीं चला पायेंगे, हमने कार चलाना जारी रखा और सड़क के ऊपर कार चलाने के डर को मात दे दी अब तक हम कार लगभग 5500 किमी चला चुके हैं, जिसमें यमुना एक्सप्रेस हाईवे पर दो बार सफर के मजे भी ले चुके हैं, अधिकतम रफ्तार हमने 130 को छुआ है।
हम तो यही कह सकते हैं कि हिम्मत बाँधकर रखो तभी डर के आगे जीत है ।

दिल्ली के पास के वे पर्यटक स्थल जहाँ कम ही लोग जाते हैं (Tourist places near Delhi without crowd)

     बहुत दिनों से घूमने का कार्यक्रम बना रहे थे, बैंगलोर और मुँबई इतने समय रहकर आ गये परंतु आलस कहें या समय न मिल पाना कहें, घूमने नहीं जा पाये, अब गुड़गाँव आ गये हैं, यहाँ भी आये हुए 6 महीने हो आये हैं, परंतु यहाँ आकर कार खरीद लेने से कहीं भी घूमना फिरना आसान हो गया है, दो बार तो आगरा, मथुरा और एक बार वृन्दावन हो आये हैं, और खैर दिल्ली तो मौका लगते किसी भी दिन निकल पड़ते हैं।

    अब वहाँ घूमने जाने की ज्यादा इच्छा भी नहीं रही जहाँ बहुत ज्यादा चहल पहल रहती हो और दिमाग को शांति नहीं मिलती है, अब सोचा है कि कहीं प्राकृतिक स्थानों पर जाकर  मानसिक शांति पाई जाये। तब हमने एयरबीएनबी की वेबसाईट पर जाकर उन जगहों पर रहने की जगह ढ़ूढ़ने के लिये यह वेबसाईट बहुत काम आई। 

    हमने सोचा कि किसी ग्रामीण क्षैत्र में भी हमे पर्यटन करना चाहिये, जहाँ हम अपने ग्रामीण जीवन की झलक ले सकें तो हमें यह जगह बहुत ही अच्छी लगी । Banni Khera -Farm Stay & activities बन्नीखेड़ा गुड़गाँव के पास रोहतक में है और किसी भी सप्ताहांत में जाया जा सकता है, यहाँ पर साईकिलिंग, खेती और भी बहुत सी गतिविधियाँ हैं, और प्रकृति के बीच भी है।

    हमें हिमाचल प्रदेश हमेशा से ही लुभाता रहा है, जैसा कि नाम से ही पता चलता है यहाँ हिम का आँचल है, और हिम याने कि बर्फ किसे अच्छी नहीं लगती, सभी को अच्छी लगती है, बादल बहुत ही नीचे पहाड़ों में भ्रमण करते हैं, चीड़ के ऊँचे ऊँचे वृक्ष और तेज हवाओं से उनसे आती आवाजें हमेशा से ही लुभाती रही हैं, जैसे पहले फिल्मों में हीरो हीरोइन इन्हीं पेड़ों के चारों और घूमकर गाना गाते थे, हमें जगह पसंद आयी कोटघर, धरती पर स्वर्ग KOTGARH,heaven on earth.

    उत्तराखंड में किसी गाँव में गाँववालों के साथ उनके मध्य रहना एक अलग ही अनुभव होगा यह सोचकर हमने लखवार जो कि देहरादून से मात्र दोसौ किमी. की दूरी पर है, का चयन किया। यहाँ पहाड़ों के मध्य देहाती परिवेश में रहने का लुत्फ उठाने के लिये A House in the Himalayas हमें हिमालय के पास लखवार बेहद जम रहा है।

    शिमला जाना किसे अच्छा नहीं लगता और ऊपर से यह हिमाचल प्रदेश की राजधानी भी है, शिमला की मॉल रोड बहुत प्रसिद्ध है, बस यहाँ सीजन में जाओ तो हर चीज महँगी मिलती है, हमें सोलन में यह जगह Shimla Affordable Luxury Flat Solan  रहने के लिय जमी क्योंकि यह एक तो हाईवे पर ही है और हैरीटेज पार्क यहाँ से मात्र 7 किमी है, कसौली 31 और शिमला केवल 45 मिनिट का रास्ता है।

    अगर हिमाचल में प्रकृति के बीच में न रहे तो वाकई हिमाचल घूमना अधूरा है, हिमाचल और हिमालय के प्राकृतिक वातावरण में अगर साहसिक कार्यों में  हिस्सा न लो तो यात्रा अधूरी ही होती है, वहाँ हमें यह Camp Roxx- Adventure Camp निजी कैम्प बहुत ही पसंद आया जिसमें कि उनका रूकने से लेकर खाने पीने एवं पर्यटन की छोटी से छोटी बातों का ध्यान रखा जाता है, यह नहान और शिमला के मध्य है, और कांगोजोड़ी जंगल में है।

    आप भी एयरबीएनबी से मेरे रैफरल से जुड़ सकते हैं और विश्व के बेहतरीन रहने के स्थानों को चयन कर सकते हैं।

मैं भी आम आदमी हूँ

      जी हाँ मैं भी आम आदमी हूँ, जो आम आदमी कहता है वह मुझे सीधे दिल पर लगता है, क्योंकि वे वाकई वही बातें करते हैं जो मुझ जैसे आम आदमी की जरूरत हैं। आजकल हल्ला काट रहे हैं कि केजरीवाल बिजनेस क्लाम में सफर कर दुबई गये, मैं ज्यादा गहराई में न जाते हुए केवल इतना कहना चाहूँगा कि अगर मुझे भी कोई अन्य बिजनेस क्लास का टिकट देगा तो मैं मना नहीं करूँगा, और खुशी खुशी बिजनेस क्लास का सफर तय करूँगा। हालांकि एक बार मैं भी एक बार एयर लाईंस की गलती के कारण बिजनेस क्लास में दुबई से मुँबई तक सफर कर चुका हूँ। पर अगर इकोनोमी में भी मुझे टिकट खरीद कर सफर करना हो तो कम से कम सौ बार सोचना पड़ता है। अगर केजरीवाल के किसी सम्मान के लिय बुलाया गया है तो या तो टिकट उन्होंने दिया है या फिर उनके किसी दोस्त ने स्पांसर किया है, तो इस बात पर हल्ला क्यों ?
    क्या हमारे विपक्षी दलों के नेता जो आरोप प्रत्यारोप भी बिजनेस क्लास में सफर नहीं करते हैं ? या वे यह नहीं देख पा रहे हैं कि आम आदमी कैसे विलास कर सकता है, भले ही वह स्पांसर हो ?
    विपक्षी दल आम आदमी पर पता नहीं कैसे कैसे आरोप लगाते रहते हैं, अभी सुबह ही एक केन्द्रीय सरकार के दल के एक नेता जी को बोलते सुना कि अगर बाहर से चुनाव लड़ने के लिये पैसा आयेगा तो फिर ये लोग बाहर के लोगों के लिये ही कार्य करेंगे ना कि भारत के लोगों के लिये, तो बहुत
ज्यादा पीछे जाने की जरूरत नहीं है, अभी जब लोकसभा के लिये चुनाव हुए थे तब भी भारत की बड़े दलों को बहुत सारा चंदा मिला था, तो वे अपने सोर्स बताने में क्यों कोताही बरत रहे हैं, अगर वे आम आदमी के जैसे वाकई ईमानदार हैं तो वे भी ऐसा करके बताये, जनता ने तो केवल एक अच्छी मछली के नाम पर वोट डाला है, पर अब देश को भुगतना तो पूरे तालाब की गंदी मछलियों को पड़ रहा है। अगर हमारे प्रधानमंत्री जी भारत के बाहर से निवेश ला रहे हैं तो भारतीय सरकार भी तो विदेशी निवेशकों के हितों को ध्यान रखते हुए कार्य करेगी, तो अपनी बातों को छुपाते हुए क्यों दूसरे पर आरोप जड़ा जा रहा है।

उज्जैन उज्जयिनी महाकाल महाकालेश्वर महामृत्युँजय जाप जल एवं दुग्ध अभिषेक भस्मारती दर्शन (Ujjain Mahakal Mahakaleshwar Mahamrityunjaya Jaap Bhasma Aarti)

    कालों का काल महाकाल के दर्शन करने उज्जैन दूर दूर से भक्त आते हैं, उज्जयिनी और अवन्तिका नाम से भी यह नगरी प्राचीनकाल में जानी जाती थी। स्कन्दपुराण के अवन्तिखंड में अवन्ति प्रदेश का महात्म्य वर्णित है। उज्जैन के मंगलनाथ मंदिर को मंगल गृह का जन्मस्थान माना जाता है, और यहीं से कर्क रेखा भी गुजरती है। महाकालेश्वर द्वादश ज्योतिर्लिंगों में दक्षिणमुखी होने के कारण प्रमुख स्थान रखता है, महाकालेश्वर मंदिर में अनेकों मंत्र जप जल अभिषेक एवं पूजा होती हैं। महाकालेश्वर में ही महामृत्युँजय जाप भी होता है।
महाकाल
महाकाल
 

महामृत्युँजय जाप –

    महामृत्युँजय जाप में महाकालेश्वर प्रशासन द्वारा 11,000 रू का शुल्क निर्धारित है, जिसमें पंडे 11 या 21 पंडितों से जाप करवाते हैं, मंत्र का जाप जिसके लिये किया जाता है उस व्यक्ति को या तो वहाँ उपस्थित रहना होता है या फिर फोन पर भी उस व्यक्ति से संकल्प ले लिया जाता है, जिस दिन सवा लाख मंत्र जाप पूरे होते हैं, उस दिन भी उस व्यक्ति से फोन पर ही जाप की पूर्णता करवा ली जाती है। जाप की पूर्णता के दिन पंडितों को दान दक्षिणा भी देना होती है। जब भी महामृत्युँजय जाप करवायें ध्यान रखें महाकाल मंदिर के काऊँटर पर ही रसीद कटवायें नहीं तो पंडे पुजारी आपकी जेब काट लेंगे।
 

महाकाल अभिषेक –

    जल एवं दुग्ध अभिषेक महाकालेश्वर को होते हैं, आप अपने साथ भी जल या दुग्ध ले जा सकते हैं या फिर मंदिर के पास ही दुकानों पर लोटों में जल व दुग्ध उपलब्ध रहता है, ध्यान रखें पोलिथीन की थैली से दूध या जल चढ़ाना मना है, इसलिये किसी बर्तन का ही उपयोग करें।
 

महाकाल भस्मारती दर्शन –

    महाकालेश्वर में रोज सुबह 4 बजे भस्मारती होती है, जिसमें भस्म से महाकाल ज्योतिर्लिंग को स्नान करवाया जाता है, पूरे ब्रह्मांड में राजा महाकाल ही भस्म से नहाते हैं, भस्मारती का उद्देश्य महाकालेश्वर का सुबह जागरण होता है, भस्मारती के लिये ऑनलाइन बुकिंग की सुविधा उपलब्ध है जिसका कोई शुल्क नहीं है, भस्मारती के पहले हरिओम जल चढ़ाना है तो आपको शुद्ध होकर धोती पहनकर लोटे में जल लेकर जाना होता है, अगर बहुत भीङ है तो ध्यान रखें कि सुबह थोङा जल्दी लाईन में लगें, क्योंकि आजकल लगभग 2000 दर्शनार्थियों को प्रवेश दिया जाता है। कोशिश करें कि ऑनलाईन ही आप भस्मारती की बुकिंग करवा लें, अगर न करवा पायें तो मंदिर के काऊँटर पर फॉर्म जमा करवाकर भी भस्मारती का पास ले सकते हैं, ऑनलाईन बुकिंग के बाद पास का प्रिंट जरूर ले लें और साथ में अपना एवं साथ के दर्शनार्थियों के मौलिक (original) फोटो आई.डी. जरूर रख लें, भस्मारती में फोटो आई.डी. के बिना प्रवेश नहीं दिया जाता है।
महाकालेश्वर जायें और अगर भस्मारती के दर्शन नहीं किये तो ये जान लें कि महाकालेश्वर का जागृत स्वरूप देखने से आप वंचित रह गये।

मोक्षप्रदा तीर्थ नगरी उज्जयिनी (Ujjain is the place of Salvation)

    तीर्थ शब्द का शास्त्रीय व्युत्पत्ति है – तीर्यते अनेनेति अथवा तरति पापादिकं यस्मादिति जिससे पापादि से मुक्ति मिलती है। अथवा जिससे पार किया जाये। इनके अनुसार तीर्थ का अर्थ है पार करने वाला । पापादि से छुड़ानेवाले नदी, सरोवर, मन्दिर, पवित्र-स्थल, दिव्यभूमि आदि तीर्थ कहे जाते हैं। इनमे स्नान-दान, दर्शन, स्पर्शन, अवलोकन-आवास आदि से पवित्रता प्राप्त होती है, ये भगवत्प्राप्ति में सहायक होते हैं तथा इनके सम्पर्क से मनुष्य के पाप अज्ञातरूप से नष्ट हो जाते हैं। तीर्थों की पुण्यता क्यों है ? इसके बारे में कहा गया है कि
प्रभावातत्भुताद् भूमेः सलिलस्य च तेजसा।
परिग्रहान्मुनीनां च तीर्थानां पुण्यता स्मृता।।
    भूमि के अद्भुत प्रभाव से, जल के तेज से तथा मुनिगणों के परिग्रह से तीर्थों की पुण्यता होती है।
    तीर्थ अनेक प्रकार के कहे गये हैं उनमें भूमि से सम्बद्ध पुण्यस्थान भौमतीर्थ और भगवान के दिव्य-विग्रहों का वास जहाँ हो वे नित्यतीर्थ कहलाते हैं।
    उज्जयिनी इस दृष्टि से भौमतीर्थ भी है और नित्यतीर्थ भी। क्योंकि इसकी भूमि में सृष्टि के आरम्भकाल से ही दिव्य पावन-कारिणी शक्ती रही है। इस भूमि की पुण्यवत्ता के कारण ही यहाँ दिव्य देव-विग्रहों का, विश्णुदेहोद्भूता शिप्रा आदि अन्य नदियों का और तपस्वी-सन्तों का निवास रहा है। यही क्यों ? स्कन्दपुराण के अनुसार तो यहाँ पद-पद पर तीर्थ विराजमान हैं। अवन्ति-खण्ड में यह भी कहा गया है कि महाकाल-वन स्वयं भगवान शिव ने वास किया था, अतः उनके प्रभाव से यहाँ की समस्त भूमि नित्यतीर्थ बन गई । वायुपुराण, लिड्गपुराण, वराहपुराण आदि भी उनसे साक्षात् सम्बन्ध है।

कुतुबमीनार से मेट्रो का रोज का सफर

ऐसे तो रोज ही कई किस्से होते हैं लिखने के लिये, आजकल रोज ही मेट्रो से आना जाना होता है, आते समय अब कुतुबमीनार से मेट्रो बन के चलने के कारण वहीं से अधिकतर आना होता है, सब अपने अॉफिस से थके मांदे निकले हुए दिखते हैं, सब के शक्ल से ही बारह बजे नजर आते हैं ।
हुडा सिटी सेंटर से आने वाली मेट्रो में जबरदस्त भीङ होती है, और जिनको लंबा सफर तय करना होता है वे कुतुबमीनार पर उतरकर, वहीं से बनकर चलने वाली मेट्रो के लिये उतरकर गेट के सामने ही खङे हो जाते हैं, जिससे जो अगली मेट्रो बनकर चलेगी, उसमें बैठने की जगह मिल जायेगी।
 
कुतुबमीनार मेट्रो स्टेशन की और सङक पार करके आना भी अपने आप में एक बङा चैलेन्ज होता है, हालांकि व्यस्त सङक होने के बावजूद भी, स्टेशन की और आने के लिये विशेषत: सिग्नल लगा रखा है। मेट्रो स्टेशन के प्लेटफॉर्म पर जाना भी अच्छी भली कवायद होती है। सुरक्षा का लिये स्कैनिंग मशीन से रोज ही दो बार अपने को और बैग को गुजरना पङता है। फिर आजकल सीढियों की जगह स्केलेटर्स का उपयोग ज्यादा होने लगा है, कई बार तो लिफ्ट का भी बेधङक उपयोग कर लेते हैं।
 
राजीव चौक पर इंसान भेष बदलकर यहाँ थोङी देर के लिये जानवर बन जाता है, वरना वाकई कम जगह में चढना उतरना आसान नहीं है, फिर भी हमें मुँबई लोकल का अनुभव है, उसके आगे मेट्रो के आगे बहुत सोफिस्टिकेटेड लगा, एसी में पसीना नहीं आता और लोकल में हर तरफ इंसानों के पसीने की भिन्न तरह की बदबू झेलना पङती थी । कम से कम यहाँ यह व्यथा तो नहीं है। 
 
शाम को घर तक आते आते गर्मी के मारे थककर बेहाल हो चुके होते हैं, कदम हैं कि उठने का नाम नहीं लेते, और आँखें खुलने में भी थकान महसूस कर रही
होती हैं, जब तक हम सफर को खत्म नहीं कर देते तब तक यह उपक्रम चलता ही रहेगा।