अपनी कॉफ़ी खत्म करने के बाद वापिस से कस्टम फ़्री के लंबे से हॉल में फ़िर से घूमने लगे, थोड़ी देर बाद थक गये तो सोचा चलो अपने दिये गये द्वार के पास ही बैठा जाये, बीच में एक जगह सिगरेट की कसैली गंध आ रही थी, आस पास देखा तो समझ नहीं आया कि कहाँ से आ रही है, फ़िर हमारे सहकर्मी जो कि हमारे बहुत अच्छॆ मित्र भी हैं, उन्होंने इशारे में सिगरेट की गुमटी जैसी चीज दिखाई, बस अंतर यह था कि यह गुमटी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डॆ के अंदर है, उसके पीछे ही काँच का एक केबिन बना हुआ है, जहाँ लगभग ६ बड़े ऐश ट्रे रखे हुए थे और उस छोटे से धूम्रपान कक्ष में कई लोग धूम्रपान कर रहे थे । लोगों ने अपने सुविधा अनुसार कैसी कैसी चीजें इजाद कर ली हैं ।
जहाँ हमारा द्वार था, वही एक कोने में ३ सीटें खाली थी, जिस पर हम दोनों जाकर पसर लिये, जब हम वहाँ बैठे तो उसी समय कुछ मलेशियन युवतियाँ भी उस सीट की और बढ़ीं थीं, परंतु हमे विराजमान होते देख दूसरी और मुड़ गईं । थोड़ी देर बाद ही एयर इंडिया की कोई फ़्लाईट उड़ने वाली थी तो एयर इंडिया का स्टॉफ़ वॉकी टॉकी लेकर नाम लेकर पुकार रहा था, हवाई अड्डे पर द्वार के पास यह आम बात है ।
उसी दिन से सऊदी में रमजान शुरू हो चुका था और भारत में एक दिन बाद शुरू होने वाला था, इसलिये उमराह करने वाले लोगों की संख्या ज्यादा थी, अधिकतर लोग सफ़ेद कपड़ों में दिखाई दे रहे थे, उमराह (एक तरह से तीर्थयात्रा) करने वाले लोग अपने कपड़ों में अलग ही नजर आ जाते हैं। चूँकि हमारी यह फ़्लाईट मुँबई से सीधी जेद्दाह की थी, इसलिये मुस्लिम धर्मालुओं की संख्या हमें ज्यादा ही दिखाई दे रही थी, बिजनेस के सिलसिले में हमें तो केवल २५-३० लोग ही जाते दिखे, बाकी सब उमराह करने वाले थे।
हमारी फ़्लाईट की उद्घोषणा हुई, उद्घोषणा पहले अंग्रेजी और फ़िर हिन्दी में हुई, हिन्दी में उद्घोषणा सुनकर बहुत खुशी हुई। अपना बोर्डिंग पास लेकर हम भी द्वार पर जा पहुँचे, बोर्डिंग पास का एक टुकड़ा अपने पास रखने के बाद और सुरक्षा टैग पर सील देखने के बाद हमें विमान की और जाने वाली एयरलाईंस की बस में चढ़ा दिया गया, और उसी रास्ते से वापिस हवाईपट्टी पर ले जाने लगे जिस रास्ते से शटल आई थी । और इस बस में बैठने के लिये मात्र ६-८ सीटें होती हैं और बाकी लोगों को केवल खड़ा होना होता है। हमने सोचा देखो जब इमिग्रेशन के लिये छोड़ा था तो कितनी इज्जत के साथ शटल से लेकर गये थे और अब बस में खड़ा करके ले जा रहे हैं।
बस में सब भेड़ बकरियों जैसे ठूँस दिये जाते हैं और कई लोग थे जो पहली बार ही हवाई यात्रा कर रहे थे और कई लोग थे जो पहली बार अंतर्राष्ट्रीय हवाई यात्रा कर रहे थे, अधिकतर उमराह वाले थे, बस में हमारे पास ही दो तीन परिवार खड़े थे जो कि फ़ोन पर अपनी सलामती की खबर दे रहे थे और लोगों की दुआ ले रहे थे क्योंकि वाकई मक्का जाना सबकी किस्मत में कहाँ होता है।
कई बार खालिस उर्दू ही कानों में सुनाई देती थी, उर्दू का अपना ही एक अदब है एक लहजा है और एक शालीनता है।
हवाई पट्टी पर हमारी बस पहुँच चुकी थी और हम बस से उतरने ही वाले थे कि पता चला कि अभी तक हवाई जहाज का उडानदल पहुँचा नहीं है, उडान दल भी हमारी बस में से आगे के दरवाजे से उतरा और हमें बताया गया कि लगभग ५ मिनिट इंतजार कीजिये और दल ने हवाई जहाज में जाकर पहले आना समान रखा और जो भी प्राथमिक औपचारिकताएँ होती हैं वे पूरी करीं और फ़िर ग्राऊँड स्टॉफ़ को निर्देशित किया गया कि यात्रियों को भेजा जाये।
जब सीढ़ियों से विमान में चढ़ रहे थे तो विमान के बड़े पंखे और बड़े प्रोपेलर देखते ही बनते थे, प्रोपेलर पर स्पष्ट रूप से लिखा गया था कि प्रोपेलर के आगे किसी भी मानव का खड़ा होना निषेध है, अब अपन कोई वैज्ञानिक तो है नहीं, हो सकता है कि ये प्रोपेलर में इतनी ताकत होती हो कि वह मानव को अपने अंदर खींच ले । विमान में दोनों तरफ़ दरवाजे होते हैं, मतलब आगे और पीछे की तरफ़, परंतु उस दिन संसाधनों की कमी के वजह से एक ही दरवाजा आगे वाला खोला गया था।
विमान के अंदर पहुँचे तो विमान देखकर लगा कि यह तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर की सेवा नहीं है, क्योंकि इसके पहले भी हम वाया दुबई होकर एक यात्रा कर चुके थे, तो अब हम स्पष्ट रूप से अंतर कर सकते थे। खैर अपना समान रखा और अपनी खिड़की वाली सीट सँभाली, खिड़की वाली सीट का अपना ही एक महत्व होता है, चाहे बच्चा हो या वृद्ध सबको खिड़की वाली सीट ही चाहिये होती है।
थोड़ी देर बाद टीवी स्क्रीन अवतरित हुई जिसमें लगभग एक ही पंक्ति के १६ लोग देख सकते थे, और आवाज सुनने के लिये अपनी सीट पर हेडफ़ोन को लगाना था, और फ़िल्म “कहानी” शुरू हुई, हालांकि हमने फ़िल्म देखी हुई थी परंतु करने के लिये और कुछ था भी नहीं सोचा चलो एक बार और देख ली जाये, फ़िर खाना भी साथ में खा लिया गया। और फ़िल्म खत्म होने के बाद और कुछ करने के लिये था ही नहीं, तो मजबूरी में सो लिया गया।
रात ११.४० अरब समय से हम जेद्दाह पहुँच चुके थे और उस समय भारत में लगभग सुबह २.१० हो रहे थे, हमने तब तक अपनी अरब की सिम अपने मोबाईल में लगा ली थी और घर पर फ़ोन करके बता दिया कि हम सही सलामत पहुँच गये हैं।
हवाई अड्डे पर इंतजार और शटल जेद्दाह यात्रा भाग १ (Mumbai Airport & Shuttle Jeddah Travel Part 1)
इमिग्रेशन, सुरक्षा जाँच और अपने घर के परांठे जेद्दाह यात्रा भाग २ [Security, Immigration and Home made Parathe Jeddah Travel Part 2]
इमिग्रेशन, १२० की रफ़्तार, अलग तरह की कारें और रमादान महीना– जेद्दाह यात्रा भाग–४ (Immigration, Speed of 120Km, Different type of Cars and Ramadan Month Jeddah Travel–4)