से है। कहीं-कहीं चण्डेश्वरस्य पाठ भी मिलता है। इसका अर्थ है – चण्डस्य ईश्वर: अर्थात चण़्उ नाम के गण स्वामी। यक्ष का मेघ से आग्रह है कि वह उज्जयिनी में स्थित शिव के महाकाल मन्दिर में अवश्य जाये। महाकाल को देखकर मुक्ति मिल जाती है, ऐसा भी प्रसिद्ध है –
Category Archives: Uncategorized
ताऊ.इन पर मेरा याने कि विवेक रस्तोगी का साक्षात्कार आज दोपहर ठीक ३.३३ पर और एक छोटी सी बात
के उपर लिखने की सोच रहा हूँ। कोई जानकार व्यक्ति कृपया मुझे बतायें कि पुस्तक के कुछ अंश प्रकाशित करना कहीं किसी कॉपीराईट का उल्लंघन तो नहीं है और अगर है तो कृपया उसका रास्ता मुझे बतायें।
कुछ बातें कवि कालिदास और मेघदूतम़ के बारे में – १२
तो नायक उसे प्रसन्न करने के लिए मीठी-मीठी बातें बनाते हैं। साहित्य दर्पण में खण्डिता नायिका का लक्षण इस प्रकार किया है –
मुंबई में नहीं सुधरा तो वो आदमी कहीं भी नहीं सुधर सकता – एक ऑटो वाले का डायलॉग
कहते हुए शर्म आती है कि पंद्रह सालों से ऑटो चला रहे हैं पर इस जगह हम आज तक नहीं आये हैं।” बस वो ऑटो वाला उचक पड़ा कि कुछ लोग बोलते हैं कि हमने मुंबई का कोना कोना छान लिया है परंतु अपने कमरे के बगल में कौन रहता है उसका नाम भी नहीं पता होता है।
कुछ बातें कवि कालिदास और मेघदूतम़ के बारे में – ११
पूर्वोद्दिष्टामुपसर पुरीं श्रीविशालां विशालाम़् ।
शेषै: पुण्यैर्हतमिव दिव: कान्तिमत्खण्डमेकम़्॥
मिश्रधन की शक्ति देखिये इस दुनिया का आठवां आश्चर्य – एक कहानी (Power of Compounding – 8TH WONDER OF THE WORLD – A Tale)
कुछ बातें कवि कालिदास और मेघदूतम़ के बारे में – १०
निर्विन्ध्या भी तरंगों के चलने से शब्द करते हुये पक्षियों की पंक्तियों से, पत्थरों पर लड़खड़ा कर बहने से अर्थात मदमाती चाल से तथा बार बार भँवरों के प्रदर्शन से अपने नायक मेघ को प्रणय का निमन्त्रण दे रही है।हाव भाव के द्वारा ही प्रेमिका प्रेमी को प्रणय का प्रथम वचन कहती है, मुख से नहीं बोलती, अपितु इस प्रकार अंग प्रदर्शन करती है ये ही उसके प्रणय वचन है।
क्या मेरे दिन अच्छे चल रहे हैं, कुछ समझ में नहीं आ रहा आप ही बतायें…
पर साथ ही कहा कि अगर आपका बच्चा किसी के संपर्क में नहीं आया है तो यह एक साधारण फ़्लू ही है। हम भी सोचे कि तीन दिन तो बीमारी का असर होता ही है, एक – दो दिन बाद देखते हैं।
कुछ बातें कवि कालिदास और मेघदूतम़ के बारे में – ९
करती थीं। वेश्याएँ अपने शरीर पर इत्र आदि सुगन्धित द्रव्य इतनी मात्रा में लगाती थीं कि जिससे उस पर्वत की कन्दराएँ सुगन्धित हो उठती थीं।
उज्जयिनी – उज्जयिनी प्राचीन काल में अवन्ति देश की राजधानी थी, यह शिप्रा नदी के तट पर स्थित है और यहाँ पर महाकाल शंकर का मन्दिर है। अनेक स्थलों पर इसे राजा विक्रमादित्य की राजधानी भी कहा गया है। इसे विशाला तथा अवन्ति भी कहते हैं। मोक्ष प्रदान करने वाली सात पुरियों में इसकी भी गणना की गयी है –
अयोध्या मथुरा मायाकाशी काञ्ची ह्मवन्तिका।
पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिका:॥
इस प्रकार इस श्लोक से प्रकट होता है कि कालिदास का उज्जयिनी के प्रति विशेष झुकाव है; क्योंकि मेघ के सीधे मार्ग में उज्जयिनी नहीं आती है, फ़िर भी यक्ष उससे आग्रह करता है कि तू उज्जयिनी होकर अवश्य जाना, भले ही तेरा मार्ग वक्र हो जाये।
उज्जयिनी का वर्णन – उज्जयिनी की सुन्दरियाँ शाम को महलों पर खड़ी होती हैं या घूमती हैं। (यक्ष मेघ से कह रहा है -)जब तुम्हारी बिजली चमकेगी तो उनकी आँखें भय के कारण चञ्चल हो उठेंगी, अत: यदि तुमने इन दृश्य को नहीं देखा तो वास्तव में तुम जीवन के वास्तविक आनन्द से वञ्चित रह जाओगे।
कुछ बातें कवि कालिदास और मेघदूतम़ के बारे में – ८
करती हैं। यक्ष मेघ से उन कुञ्जों को देखकर आनन्द लेने का संकेत करता है।