उज्जयिनी के लिये मेघदूतम़् में महाकवि कालिदास ने लिखा है –
प्राप्यावन्तीनुदयनकथाकोविदग्रामवृद्धाऩ़्
पूर्वोद्दिष्टामुपसर पुरीं श्रीविशालां विशालाम़् ।
स्वल्पीभूते सुचरितफ़ले स्वर्गिणां गां गतानां
शेषै: पुण्यैर्हतमिव दिव: कान्तिमत्खण्डमेकम़्॥
अनुवाद : – जहाँ के ग्रामों के वृद्ध जन उदयन की कथाओं के जानने वाले हैं, ऐसे अवन्ति प्रदेश को प्राप्त कर, पहले बतायी गयी, सम्पत्ति से सम्पन्न, उज्जयिनी नाम की नगरी में जाना, (जो) मानो पुण्य कर्मों के फ़ल के कम हो जाने पर पृथ्वी पर आये हुए स्वर्ग वालों के (देवताओं के) शेष पुण्यों के द्वारा लाया गया स्वर्ग का एक उज्जवल टुकड़ा है।
उदयनकथाकोविदग्रामवृद्धाऩ़् – कवि ने उदयन की कथा की और संकेत किया है। यह कथा मूल रुप से गुणाढ़्य की वृहतकथा में मिलती है, परन्तु यह ग्रन्थ पैशाची में लिखा है और अपने मूलरुप में आज अप्राप्य है। इसका संस्कृत अनुवाद सोमदेव ने कथासरित्सागर तथा क्षेमेन्द्र ने वृहत्कथा-मञ्जरी नाम से किया है। कथासरित्सागर में यह कथा लम्बक २ से ८ तक विस्तृत रुप से वर्णित है। संक्षेप में कथा इस प्रकार है – “पृथ्वी पर वत्स नाम का एक देश है, जिसमें कौशाम्बी नाम की नगरी है। वहां परीक्षित का पौत्र जनमेजय का पुत्र शतानीक राजा था। उसके सहस्त्रानीक नामक पुत्र था। सहस्त्रानीक की पत़्नी का नाम मृगावती था। उनके पुत्र का नाम उदयन था। उदयन ने उज्जैन के राजा चण्डमहासेन की पुत्री वासवदत्ता का अपहरण कर उससे विवाह किया। उसके बाद मगध के राजा प्रद्योत की पुत्री पद्मावती से विवाह कर लिया। उसके वासवदत्ता से एक पुत्र उत्पन्न हुआ जिसका नाम नरवाहनदत्त रखा।
इसके अतिरिक्त यह कथा भास के सवप्नवासवदत्तम़् तथा प्रतिज्ञायौगन्धरायणम़् नामक नाटकों में भी लगभग इसी रुप में मिलती है।
कितनी सुन्दर है यह मेघदूत की शब्द-आख्यान अदि की बातें । आभार ।
जानकारी पूर्ण !
विवेक भाई, ये कालिदासजी हम जैसे कूप-मंडूकों के लिए थोड़ी आसान हिंदी में नहीं लिख सकते थे क्या…वैसे एक राज़ की बात बताऊं, बचपन में और कोई भी पीरियड मिस चाहे कर देते थे, लेकिन जिस दिन गुरुजी कालिदास के बारे में पढ़ाते थे, उस दिन फुल अटैंडडेंस रहती थी…गुरुजी मिलन-विरह के किस्से ही इतने रस के साथ सुनाते थे