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बिस्तर पर कैसे और किसके साथ नींद में होते हैं, नींद को कभी जाना है ?

बिस्तर पर लगभग गिरा ही था और नींद के आगोश में पूरी तरह से खो चुका था, चादर की वह सल वैसी ही रही, जैसी पहले थी, और बस वह सल के साथ बिस्तर पर ढ़ह चुका था। जब नींद आती है तो वह सोने की जगह नहीं देखती। एक समय था जब बिस्तर पर एक भी सल हो मजाल है, परंतु आज इतने वर्षों में जिंदगी के इतने सारे रंग और रास्ते देखने के बाद थकान इतनी बड़ चली है कि उसे उस सल का भी ध्यान नही रहा जिससे उसे हमेशा से चिढ़ रही है।
बचपन में उसने पढ़ा था कि भगवान राम या भरत अब याद नहीं, इतने नाजुक थे कि एक बार बिस्तर पर लंबा सा बाल पड़ा रह गया था तो उनके शरीर पर लाल रंग की रेखा उभर आई थी, खैर उभर तो इसलिये ही आई होगी कि वे भी भरपूर नींद के आगोश में थे। अगर तकलीफ़ होती तो उठकर बाल नहीं हटा देते।
इसलिये मानना है कि नींद जिंदगी का सबसे बड़ा नशा है, किसी के पास कितनी भी दौलत आ जाये परंतु वह बिना नींद के रह नहीं सकता, उसे नींद लेना बहुत जरूरी है।
कुछ लोग ऐसे होते हैं जो बिस्तर पर तभी जाते हैं जब नींद आ रही होती है और बिस्तर पर लेटते ही नींद के आगोश में खो जाते हैं, हमारे हिसाब से तो वे बहुत ही खुशकिस्मत लोग होते हैं, क्योंकि हमें ऐसा लगता है कि ऐसे लोग अपना पूरा काम निपटाने के बाद इतमिनान से चिंतन करके पूरी तरह सोने की मानसिक चेतना के साथ जाते हैं।
कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो कि बिस्तर पर तो चले जाते हैं क्योंकि सोने का समय हो गया है, परंतु नींद उनकी आँखों से कोसों दूर होती है, तरह तरह के नायाब नुस्खे अपनाते हैं नींद बुलाने के लिये परंतु नींद है कि आने का नाम ही नहीं लेती, हमें ऐसा लगता है कि ऐसे लोग दो प्रकार के हो सकते हैं एक वे जिनके पास कोई काम नहीं होता और थकान नहीं होती और दूसरे वे जिनको आज और कल दोनों की बहुत ज्यादा चिंता रहती है और उसी चिंता में घुले जाते हैं।
कुछ लोग उसके जैसे होते हैं, जो कि काम के बोझ के मारे होते हैं जो मजदूरों की तरह काम करते हैं और घर के लिये निकलने पर पूरी नींद में होते हैं, ये काम को बेहतरीन तरीके से करते हैं, परंतु इनके पास काम इतना होता है कि खुद के लिये सोचने का समय ही नहीं होता बस ये सोचते हैं कि नींद लेकर शरीर को रिचार्ज कर लिया जाये और अगले दिन के लिये ऊर्जा इकठ्ठी कर ली जाये।
अब वह बोल रहा था कि कम से कम बिस्तर की सल तो निकाल कर सोयेगा, नहीं तो उसे रात में २ बजे उठकर वह सल हटाना पड़ती है, मैं सोच रहा था क्या नींद में भी इतना अनुशासन जरूरी है ?

प्रोड़क्टिव मेन अवर्स बर्बाद और आभिजात्य वर्ग की मानसिक मजदूरी

अभी दो दिनों से कार्यालय जा रहे हैं, नहीं तो घर से ही काम कर रहे थे। इन दो दिनों में आना जाना और कई लोगों से मिलना हुआ।

घर से काम करने में यह तो है कि घर पर परिवार को समय ज्यादा दे पाते हैं, परंतु काम करने में थोड़ी बहुत अड़चनें भी आती हैं, खैर हमेशा परिवार के साथ रहते हैं, और आने जाने का लगभग २ घंटे का समय भी बचता है, जो कि कहीं और निवेश कर दिया जाता है।

कल जब बस स्टॉप पर बस पकड़ने के लिये खड़े थे तो ऐसा लगा कि सदियाँ बीत गईं हैं सफ़र किये हुए, और बस का इंतजार और बस के इंतजार में खड़े लोग पता नहीं कितने सारे प्रोड़क्टिव मेन अवर्स बर्बाद हो रहे थे और हम कुछ कर नहीं सकते थे, केवल देख सकते थे। व परिवार को जो समय दिया जा सकता है, वह भी कम्यूटिंग में निकल जाता है।

कोई भाग रहा है कोई दौड़ रहा है, कोई मुस्करा रहा है कोई टेंशन में है, सबकी अपनी अपनी दुविधाएँ हैं तो सबके अपने अपने सुख दुख हैं।

रोजी रोटी जो न कराये वह कम है, एक लड़की अपने मित्र का एस.एम.एस. पढ़ पढ़कर दुखी हो रही है, उसके ब्वॉय फ़्रेंड ने एस.एम.एस. में कहा है कि मैं तुम्हारे लिये बहुत सारा समय निकाल सकता हूँ परंतु मेरी और भी प्रायोरिटीज हैं, प्लीज समझा करो और मुझसे ज्यादा एक्स्पेक्ट मत करो, मैं सोचने लगा कि वाह लड़के भी आजकल इतना साफ़ साफ़ मैसेज भेजने की हिम्मत रखते हैं।

नहीं तो हम तो सोचते थे कि केवल लड़कियाँ ही साफ़ साफ़ बोलती हैं 🙂 खैर जब लिफ़्ट के पास होते हैं तो सबके हाथों में मोबाईल देखते हैं, अधिकतर आई फ़ोन लिये दिखते हैं, तो अपने ऊपर कोफ़्त होती है कि अपन इतने आधुनिक क्यों ना हुए.. और जिनके पास ब्लैक बैरी है तो पता चल जाता है कि कंपनी ने दिया है कि बेटा २४ घंटे खाते पीते उठते जागते चलते फ़िरते काम करते रहो। इससे यह तो समझ में आ गया कि आई फ़ोन वाला वर्ग विलासिता भोगी हो सकता है और ब्लैक बैरी वाला अच्छे कपड़ों में मानसिक मजदूर।

अच्छा है कि अपन अभी इन दोनों वर्गों से दूर हैं, या भाग रहे हैं, पहले जब कंपनी लेपटॉप देती थी तो लगता था कि २४ घंटे मजदूरी के लिये दे रही है, परंतु धीरे धीरे अब समय बदल गया है और अब सबको ही लेपटॉप ही दिया जाता है, अब डेस्क्टॉप का जमाना लद गया।

खैर आभिजात्य वर्ग की मानसिक मजदूरी कितने लोग देख पाते होंगे पता नहीं, जो ब्लैकबैरी और लेपटॉप में उलझा रहता है।

अपने निवेशित म्यूचयल फ़ंडों की प्रगति देखते रहें [Tracking your Mutual Funds)

अपने म्यूचयल फ़ंड के परिणामों को देखते रहें –

आपके द्वारा निवेशित म्यूचयल फ़ंड का स्टेटमेंट तो आपको नियमित रूप से मिलता ही होगा, जो कि फ़ंड हाऊस के द्वारा सीधे भेजा जाता है। सभी फ़ंड हाऊस अपने सभी निवेशकों को स्टॆटमेंट नियमित रूप से भेजते हैं, अभी हर फ़ंड हाऊस अपने अपने निवेशकों को स्टेटमेंट भेजते हैं, जल्दी ही नियामक द्वारा लिये गये निर्णय के अनुसार अब सारे म्यूचयल फ़ंड के स्टेटमेंट एक ही साथ मिल जाया करेंगे, मतलब कि अलग अलग म्यूचयल फ़ंड हों तब भी आपको एक ही स्टेटमेंट मिलेगा। जिससे निवेशक को अपने निवेश परिणामों को देखने में और रखने में आसानी होगी।

Track your mutual funds

आप अपने निवेश किये गये म्यूचयल फ़ंडों की एन.ए.वी. AMFI की वेब साईट www.amfindia.com पर देख सकते हैं। आप और भी बहुत सारी वेब साईटों पर एन.ए.वी. देख सकते हैं।

आप एन.ए.वी. और उससे संबंधित जानकारी दो प्रमुख रजिस्ट्रारों की वेबसाईट पर भी देख सकते हैं।

कार्वे – www.karvymfs.com

काम्स – CAMS – www.camsonline.com

सभी फ़ंड हाऊस की अपनी वेबसाईट होती है, जहाँ आप अपने निवेशित फ़ंडों के बारे में तो जानकारी ले ही सकते हैं, साथ ही अपने निवेश को के प्रगति भी देख सकते हैं।

इंडियाप्लाजा की अच्छे ऑफ़रों पर घटिया सर्विसेस (Bad services on Great offers by Indiaplaza.com)

लगभग एक सप्ताह होने आया इंडियाप्लाजा से ईमेल पर एक ऑफ़र आया था, और ऑफ़र बहुत अच्छा लगा, मैंने सोचा कि इससे अच्छी डील और कहीं नहीं मिलेगी, तो फ़टाफ़ट ऑनलाईन ऑर्डर कर दिया।

इसके पहले भी कई अन्य साईटों पर ऑनलाईन ऑर्डर कर चुके हैं, तो उसका अनुभव पहले से ही था, उसके मुकाबले इंडियाप्लाजा के साथ खरीदारी का अनुभव बहुत ही खराब रहा।

जैसे ही हमने भुगतान किया एक नया पेज खुला जिस पर ट्रांजेक्शन रिफ़ेरेन्स नंबर दिया गया, यह तो अच्छा हुआ कि हमने उसे पीडीएफ़ बनाकर सहेज लिया, जो कि मैं अधिकतर ऑनलाईन ट्रांजेक्शन करने के बाद करता हूँ, और तब तक सहेज कर रखता हूँ जब तक कि समान मुझे मिल नहीं जाता है। इधर ट्रांजेक्शन पूरा हुआ नहीं कि हमने सोचा कि अब ईमेल से संपूर्ण जानकारी भेज दी गई होगी। परंतु कोई ईमेल इंडियाप्लाजा की तरफ़ से नहीं आया। हमने सोचा शायद थोड़ी देर बाद आयेगा, परंतु ईमेल न आना था और न ही आया ।

दो दिन पहले एक ईमेल इंडियाप्लाजा से ईमेल आया कि शिपिंग में देरी हो रही है और कल शिपिंग होगी, हमने सोचा कि चलो इंडियाप्लाजा वालों ने इतना तो ध्यान रखा कि देरी के लिये ईमेल लिख दिया। खैर अभी तक तो हमें समान नहीं मिला है और न ही कोई अन्य ईमेल देरी के लिये मिला है।

अगर किसी अन्य ऑनलाईन साईट पर ऑर्डर किया होता तो वे बिल के साथ साथ कूरियर का रिफ़रेन्स नंबर भी ईमेल कर देते हैं। जिससे आप कूरियर ऑनलाईन ट्रेक कर सकते हैं।

उम्मीद है कि एक दो दिन में समान मिल जाना चाहिये, आगे टिप्पणी में बताते हैं कि कब समान आता है।

बैंकों के अकाऊँट नंबर पोर्टेबिलिटी भारतीय रिजर्व बैंक के लिये आसान नहीं होगी (Bank Account Number Portability will not be easy task for RBI)

बैंकों के अकाऊँट नंबर पोर्टेबिलिटी भारतीय रिजर्व बैंक के लिये आसान नहीं होगी, यह बैंकों के लिये तकनीकी रूप से बहुत बड़ी चुनौती होगा, अभी बैंकें जितने भी सॉफ़्टवेयरों का उपयोग कर रही हैं, उसमें बैंकें अकाऊँट नंबर में अधिकतम अंकों का उपयोग कर रही हैं, और एक और व्यवहारिक समस्या है कि कई बैंकों में एक ही अकाऊँट नंबर अभी पाया जा सकता है।
बैंक पोर्टेबिलिटी
अभी बैंकों के अकाऊँट नंबर यूनिक नहीं हैं, इसलिये यह भारतीय रिजर्व बैंक के लिये बड़ी समस्या होगी, और व्यवहारिक तौर पर उतना आसान भी नहीं है। ऐसा लगता भी नहीं कि इस बैंक अकाऊँट नंबर पोर्टेबिलिटी का कोई फ़ायदा होने वाला है, क्योंकि अकाऊँट कोई सा भी हो या खाता नंबर कोई सा भी हो, बैंक का नाम तो बदल ही जायेगा।
कुछ और बातें भी हैं, खाताधारक का बैंक बदलने पर IFSC  कोड भी बदल जायेगा, जिससे उसे NEFT & RTGS में समस्या होगी, इसके लिये खाताधारक को सभी जगह बैंकों के नाम भी बदलने होंगे।
बैंकों के अकाऊँट नंबर पोर्टेबिलिटी बहुत ही मुश्किल साबित होगा भारतीय रिजर्व बैंक के लिये, क्योंकि अभी भारतीय बैंकों में अकाऊँट नंबर में अधिकतम १६ नंबर तक का उपयोग किया जाता है, और उन नंबरों से कैसे भी तकनीकी तौर पर दूसरी बैंकों के साथ मैपिंग करना बहुत मुश्किल है।
भारतीय वित्त बाजार में केवल अकाऊँट नंबर से काम नहीं चलता है, वहाँ बैंक का नाम भी देना जरूरी होता है, और तो और कोर बैंकिंग सुविधा के बावजूद ग्राहक से शाखा की जानकारी ली जाती है, जबकि वह ग्राहक उस शाखा का ग्राहक ना होकर बैंक का ग्राहक है।
मोबाईल नंबर और बैंक अकाऊँट नंबर पोर्टिबिलिटी दोनों ही बहुत अलग चीज हैं, जब से मोबाईल आया है क्या आपको कभी अपने किसी भी फ़ार्म पर यह बताने को कहा जाता है कि मोबाईल कौन सी कंपनी का है और कौन सा सर्विस प्रोवाईडर है, नहीं ना, परंतु बैंकों के लिये ऐसा नहीं है। अगर आप डीमैट खाता भी खुलवाने जायेंगे तो वहाँ फ़ॉर्म पर बैंक का नाम, शाखा, IFSC  कोड और अकाऊँट नंबर सभी जानकारी ली जायेगी।
अब देखते हैं कि भारतीय रिजर्व बैंक क्या निर्णय लेती है, वैसे अगर यह निर्णय आया भी तो फ़िर बैंकिंग क्षैत्र में तकनीकी तौर पर भारी फ़ेरबदल की जरूरत होगी।

क्या ब्लॉग / नेट से पैसे कमाना वाकई आसान है ? (Earning money by Blog / Net is really Simple ?)

    क्या वाकई घर से काम (Work from home) करने के पैसे मिल सकते हैं, कुछ डाटा एन्ट्री (Data Entry) जॉब्स या फ़िर कोई ऐड क्लिक या फ़िर कोई सर्वे। सब माया का मकड़जाल लगता है, और जितना विज्ञापन में सरल दिखाया जाता है उतना सरल होता भी नहीं है।
      अभी कुछ दिन से एक हमारे नॉन-टेकी मित्र पीछे पड़े हैं कि यार इंटरनेट पर तो खजाना है, लोग कितना कमा रहे हैं और तुम हो कि ना तुम कमा रहे हो और ना ही हमें कमाने के गुर सिखा रहे हैं। हमने तो मजाक में कह भी दिया “भई अगर तुमको खजाना नजर आता है तो तुम लूट लो, देखो हमें तो यह पता है कि हाँ कमा सकते हैं, परंतु कैसे ? यह नहीं पता” । और जो कोई कमा भी रहा है तो वो कैसे और कितना कमा रहा है नहीं बताता । अपने यहाँ भारतियों में एक पेटदर्द की बीमारी है कि अगर उसकी कमाई पर कोई अंतर ना भी पड़ रहा हो तो भी वह बतायेगा नहीं कि कैसे कमाई की जा रही है, बिल्कुल वैसे ही ये नेट की कमाई का चक्कर है। वैसे यह सेवा बहुत से लोग मोटी सी फ़ीस लेकर भी करते हैं, परंतु उनके साथ भी यही है कि फ़ीस तो ले ही लेते हैं और काम भी अच्छा नहीं करते हैं, अरे भई अगर उन्हें भी पैसा कमाना आता नेट से तो वे ये काम ही क्यूँ करते, अपनी साईट बनाकर ही नहीं कमाते।
    इतना कहने के बावजूद भी वे हमारे पीछे पड़े हैं, बताओ भई कहाँ से कैसे कमाया जाता है, लोग विज्ञापन लगाकर हजारों डॉलर कमा रहे हैं, हमने भी कहा भई अगर हमें पता होता तो तुमको जरूर बता देते।
    फ़िर कुछ दिनों बाद गूगल पर माथापच्ची करके आये और बोले कि ये देखो भारत के टॉप १० ब्लॉगर जो कि हजारों डॉलर कमा रहे हैं, ये देखिये Top 10 Indian blogger, highest earning bloggers । अब हम क्या बतायें कि भले ही आईटी में हैं परंतु इस तकनीक से अंजान हैं । और उस भले मानस को समझाया कि अपने भारतीय अगर कुछ करते हैं तो किसी से साझा नहीं करते। खुद पानी पीने के लिये खुद ही कुआँ खोदना पड़ता है, अब हम पढ़ते हैं और फ़िर बताते हैं कि कैसे कमाई की जा सकती है।
    मित्रों अगर कोई अपने ब्लॉग से कमा रहे हों और अगर बताना चाहते हों तो बतायें, शायद हम अपने मित्र की मुश्किल दूर कर सकें। उनके लिये समस्या है कि अंग्रेजी में हाथ कमजोर है और इस बाबत हिन्दी में बहुत ही कम लेख (content) हैं, जिससे कि कोई नॉन-टेकी व्यक्ति सीख सके। इंतजार है… किसी के जबाब का, नहीं तो हम तो पढ़ ही रहे हैं, अब मित्र है उसके लिये तो भई सब करना पड़ेगा।

एक सीट की हार से तूफ़ान का अंदाजा लगाईये..नहीं तो बहुत देर हो जायेगी

    सरकार की तरफ़ से बयान आया है कि केवल एक सीट की हार से सरकार की कार्यप्रणाली आंकना ठीक नहीं है। चलो हम भी इस बात से सहमत हैं कि एक सीट की हार से किसी की हार जीत का पैमाना तय नहीं होता है, परंतु जनता का रूख लगता है कि कांग्रेस भांप नहीं पा रही है, कि उनका सफ़ाया तय है, क्योंकि जो भ्रष्टाचार के खिलाफ़ मुहीम चल रही है उसमें कांग्रेस सबसे बड़ा रोड़ा अटका रही है, अभी लोकपाल बिल पास करना केवल उनके पाले में आता है।

    अण्णा की टीम और अण्णा खुद कांग्रेस के विरोध में सड़क पर उतर आये हैं, और जो नकारात्मक दृष्टिकोण जनता के बीच में रख रहे हैं, उसे कांग्रेस को सकारात्मक दृष्टिकोण में बदलना असंभव नजर आ रहा है। मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री जिन्होंने १० वर्ष शासन किया और तानाशाही जैसा माहौल पैदा कर दिया। तब मजबूरी में जनता को भाजपा को चुनना पड़ा, उस समय मध्यप्रदेश में भाजपा की स्थिती ऐसी थी कि वह किसी को भी कोई सी भी सीट से टिकट दे देती तो वह जीत जाता। और यह हुआ भी, उस समय भी इन मुख्यमंत्रीजी ने हाईकमान को कहा था कि कांग्रेस की जीत तय है, जबकि सतही स्तर की सुगबुगाहट ये भांप ही नहीं पाये। और जनता ने कांग्रेस को धूल चटाकर इतिहास रच दिया। तब इन मुख्यमंत्री महोदय ने चुनाव के पहले बोला था कि अगर कांग्रेस हार गई तो वे अगले १० वर्ष तक कोई चुनाव नहीं लड़ेंगे।

    अब ये बेचार चुनाव तो लड़ नहीं सकते क्योंकि जनता के बीच में बोल दिया था, और मध्यप्रदेश में कांग्रेस का बंटाढ़ार करने के बाद अब आजकल ये बेबी बाबा के मुख्य सलाहकार हैं, और अब ये केन्द्र स्तर पर कांग्रेस की लुटिया डुबाने में भरपूर योगदान दे रहे हैं, और तो और कांग्रेस में इनसे एक से एक बड़े वाले हैं जो कि लुटिया डुबाने में नंबर १ की होड़ में हैं।

    यह कह दिया जाये कि लोकपाल बिल को न लाने से कांग्रेस अपने ताबुत में आखिरी कील ठोंक रहा है तो गलत नहीं होगा। अब भ्रष्टाचार पर इस लोकपाल बिल से कितना अंकुश लगेगा यह तो बिल पारित होने के बाद लागू होने पर ही पता चलेगा और तब इसमें शायद व्यवहारिक सुधारों की दरकार होगी।

पिटने को तैयार रहें, भारत में अराजकता पैर पसार चुकी है ।

कल पटियाला हाऊस कोर्ट के सामने जो भी हुआ अन्ना के समर्थकों के साथ उससे प्रशासन और भारत सरकार का संदेश साफ़ है कि आम जनता और अन्ना के समर्थक पिटने को तैयार रहें, वे सीधे नहीं पीट सकते हैं तो कुछ गुंडे जिनको सरकार ने शह दी है या फ़िर उनके ही हैं, वे जनता को पीट सकते हैं, और इसका सीधा मतलब है कि भारत में अराजकता पैर पसार चुकी है।

अब जनता या तो पिटने को तैयार रहे या फ़िर प्रशासन और इन गुंडों के खिलाफ़ खुद ही लठ्ठ लेकर तैयार रहे। क्योंकि प्रशासन की जाँच का हश्र तो सभी जानते हैं, जाँच चलती रहेगी और इन गुंडों पर केस चलते रहेंगे।

नाम भी श्रीराम का लिया है, वे श्रीराम जो कि समाज के लिये आदर्श हैं, मर्यादा पुरूषोत्तम हैं, पिता के वचन के लिये वनवास स्वीकार लिया । धिक्कार है ऐसे लोगों पर जो श्रीराम के नाम पर सेना का निर्माण कर रहे हैं और श्रीराम के नाम का गलत उपयोग कर रहे हैं।

ऑनलाईन भुगतान के लिये ग्राहक का विश्वास रेल्वे ने दिया है (Railway created faith in consumers for online payment and delivery)

    ऑनलाईन भुगतान आम आदमी ने कब से करना शूरू किया ? और आम आदमी को नेटबैंकिंग और ऑनलाईन भुगतान पर विश्वास कैसे हुआ ?  आजकल जो आम आदमी आराम से विश्वास से  बेधड़क ऑनलाईन नेटबैंकिंग और क्रेडिट कार्ड से भुगतान कर रहा है, पता है इसके लिये रेल्वे विभाग का बहुत बड़ा हाथ है ।
    रेल्वे ने ऑनलाईन टिकट की सुविधा देकर उपभोक्ता सेवा के क्षैत्र में क्रांति पैदा कर दी और आम ग्राहक को विश्वास दिलवाया कि अगर ऑनलाईन भुगतान किया जाये तो उसका टिकट उसे मिल जायेगा, रेल्वे ने वादा किया कि दो दिन में टिकट अगर आपको घर पर मिल जायेगा तो रेल्वे ने अपना वादा निभाया और ग्राहक के विश्वास को जीत लिया।
    ऑनलाईन खरीदी करने पर ग्राहक को समय पर सेवा उपलब्ध होने का जो विश्वास रेल्वे ने ग्राहकों को दिया, इस विश्वास का फ़ायदा भारत के लगभग सभी वेबसाईटों को मिला और ग्राहक ऑनलाईन खरीदी करने में विश्वास करने लगे। इस ईलेक्ट्रॉनिक भूगतान का आँकड़ा अगर देखा जाये तो अविश्वसनीय है, जिस तेजी से ई-भुगतान बढ़ता जा रहा है वह लगभग सभी के लिये अच्छा है, क्योंकि इसमें होने वाला खर्चा काफ़ी कम है और चूँकि इसमें मानवीय हस्तक्षेप नहीं है तो इसमें त्रुटि होने की संभावनाएँ  भी काफ़ी कम हैं।
    रेल्वे आम उपभोक्ता के लिये एक जरूरी सुविधा है और ई-टिकट के लिये रेल्वे ने अलग से शुल्क लेना शुरू किया जो कि आम उपभोक्ता की मजबूरी है, क्योंकि अगर वह रेल्वे स्टेशन जाकर टिकट लेगा तो उसका खर्चा उस शुल्क से कहीं ज्यादा है और उसके लिये उसे रेल्वे स्टेशन जाना होगा, पर ई-टिकटिंग में उपभोक्ता अपने घर पर ही अंतर्जाल की मदद से टिकट कर सकता है।
    ऑनलाईन खरीदी के लिये रेल्वे ने जो मॉडल पेश किया वह बहुत ही सराहनीय है, परंतु ऑनलाईन खरीदी करने पर रेल्वे ने जो अतिरिक्त शुल्क लगाया वह थोड़ी ज्यादती है, रेल्वे का मानवीय हस्तक्षेप कम हो गया और जो रेल्वे खिड़की पर जो ऑनलाईन ग्राहकों का आना कम हुआ उसका फ़ायदा उन ऑनलाईन ग्राहकों को नहीं दिया गया।
    ऑनलाईन खरीदी करने वाले ग्राहकों को कुछ अतिरिक्त सुविधा देनी चाहिये जैसे कि अगर कुछ प्रतिशत की छूट देनी चाहिये जिससे वे ग्राहक वापिस से रेल्वे की खिड़की पर ना जायें और जो ग्राहक रेल्वे खिड़की पर जाते हैं वे भी ऑनलाईन ग्राहक बन जायें। रेल्वे को साथ ही टोल फ़्री सुविधा भी देनी चाहिये जैसे कि आजकल की सभी ऑनलाईन पोर्टल्स दे रहे हैं।
    रेल्वे को मेरी तरफ़ से बहुत बहुत धन्यवाद है कि ग्राहकों का विश्वास ऑनलाईन भूगतान के प्रति जमाया।

पारिवारिक समय का कत्ल कर रहे है अंतर्जाल और फ़ेसबुकिया दोस्त (Facebook and Internet are killing family time)

    अभी कुछ समय से अपने ऊपर ही विश्लेषण कर रहा हूँ कि एक बार लेपटॉप पर कुछ थोड़ा सा कार्य लेकर बैठे तो कार्य तो खत्म हो गया, किंतु बाकी का समय फ़ेसबुक, ट्विटर या ब्लॉग पढ़ने में निकल जाता है, और यह समय किस तेजी से भागता है, यह तो सिस्टम ट्रे की घड़ी और सामने दीवार पर लगी घड़ी दोनों बताते रहते हैं।

    वर्षों पहले बचपन की सुनहली तस्वीर सामने आती है, जब न बुद्धुबक्सा था न अंतर्जाल तक पहुँचाने वाला ये तकनीकी यंत्र नहीं था, तब लगभग सभी परिवार अपने आप में बेहद मजबूती से बंधे हुए थे, और सबको एक दूसरे के दुख सुख का अहसास होता था, पता होता था। सामाजिक मूल्यों की परिभाषा अलग होती थी और अब सामाजिक मूल्यों की परिभाषा में बदलाव सहज ही देखा जा सकता है।

    कल फ़ेसबुक पर बहुत सारे दोस्तों को जो कि केवल फ़ेसबुक दोस्त थे, जो इसलिये बना लिये गये थे कि उनके और हमारे कुछ कॉमन दोस्त थे, हटा रहे थे। दोस्तों की इतनी भीड़ देखकर दंग था और उनके द्वारा जारी किये गये स्टेटसों को भी देखकर, कुछ तो केवल अपनी भड़ास ही निकाल रहे थे और कुछ केवल समय का कत्ल कर रहे थे, तो हमने सोचा कि ऐसे समय का कत्ल करने वाले दोस्तों से पीछा छुड़ाना ज्यादा ठीक होगा, ठीक है थोड़ा सा अपना पारिवारिक समय का कत्ल होगा।

    पीछा छुड़ाने से यह फ़ायदा तो होगा जो वाकई में दोस्त हैं उनके दुख सुख में शामिल तो हो सकेंगे उनकी वर्तमान गतिविधियों को देख तो सकेंगे। कल इतने समय फ़ेसबुक पर शायद पहली बार मैंने वक्त गुजारा और देखा कि कुछ लोग तो केवल दोस्त बनाने की होड़ में लगे हैं और सार्वाधिक दोस्त बनाने की होड़ में लगे हैं। केवल अपने मन को तृप्त करने के लिये ?

    समय आ गया है कि थोड़ा अपने समय का कत्ल करके ऐसी चीजों से बचा जाये और बेहतरीन समय प्रबंधन कर परिवार को उचित समय दिया जा सके।