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ओलम्पिक खेलों में भारत का स्थान एवं प्रदर्शन 2012(Performance of India in Olympics Games 2012)

    भारत ओलम्पिक खेलों की पदक तालिका में 55 वें स्थान पर रहा। 2012 के ओलम्पिक में हमें प्राप्त 6 पदक – दो रजत और चार कांस्य – अब तक के हमारे इतिहास में सर्वाधिक हैं। यदि कोई चाहे तो इस तथ्य से भी राहत महसूस कर सकता है कि 2008 में बीजिंग ओलम्पिक में प्राप्त पदकों से यह दुगुने हैं। इस उपलब्धि पर मैं भी अन्य भारतीयों की तरह प्रसन्नता महसूस कर रहा हूँ।
   अत: लंदन में इन सभी 6 पदकों – विजय कुमार को शूटिंग में रजत, फ्री स्टाइल कुश्ती में रजत जीतने वाले सुशील कुमार, शूटिंग में गगन नारंग द्वारा कांस्य, महिला बॉक्सिंग में कांस्य जीतने वाली एम सी मेरीकॉम (मणिपुरी मां जो राष्ट्र की प्रशंसा का पात्र इसलिए बनी कि उसने दिखा दिया कि वह स्वर्ण पदक जीतने की क्षमता रखती है), योगेश्वर दत्त द्वारा कुश्ती में कास्य, और महिला बैडमिंटन सिंग्लस में 22 वर्षीया हैदराबाद की साइना नेहवाल जिसने अपनी प्रतिभा, साहस और दृढ़ इरादे से करोड़ों भारतीयों का दिल जीता, द्वारा कांस्य पदक – जीतने वालों को मेरी हार्दिक बधाई। साइना ने प्रदर्शित किया कि वह बैडमिंटन में चीन के एकाधिकार को चुनौती देने की निश्चित रूप से क्षमता रखती है।
लंदन में दिए गए कुल 962 पदकों में से भारत केवल 0.06 प्रतिशत ही जीत पाया। वस्तुत: अब तक के हुए ओलम्पिक खेलों में भारत मात्र 26 पदक ही जीत पाया है।

 

गांधी के सपनों का भारत क्या आज है ? (India of My Dreams ?)

mere sapno kaa bharat

कुछ दिनों पहले एक पोस्टऑफ़िस जाना हुआ और वहाँ पर गांधी के सपनों का भारत का एक पोस्टर लगा हुआ था, जिसका हमने फ़ोटू लिया और पढ़ा और पोस्ट मास्टर साब को हमने धन्यवाद दिया कि आपने बैंगलोर में हिन्दी मॆं पोस्टर लगाया हुआ है। गांधी का सपना पढ़कर (सही में पहली बार पढ़ा था) आँखों में रोष छा गया। जो गांधी का सपना था, सब उसका उलट है आज उनके सपनों के भारत में।

आज भी गरीब लोग यह महसूस नहीं करते हैं कि भारत उनका देश है, जिसके निर्माण में उनकी आवाज का महत्व है।

ऊँचे और नीचे वर्गों में भेद और विविध संप्रदायों में पूरा मेलजोल होगा, यह भी बिल्कुल उलट ही है।

भारत में अस्पृश्यता या शराब और दूसरी नशीली चीजों के अभिशाप के लिये कोई स्थान नहीं हो सकता। एक चौराहे से दूसरी चौराहे के बीच २ या उससे ज्यादा शराब की दुकानें देखी जा सकती हैं और नशीली चीजें तो खुलेआम उपलब्ध हैं।

स्त्रियों को वही अधिकार होंगे जो पुरुषों के होंगे। शेष सारी दुनिया के साथ हमारा सम्बन्ध शान्ति का होगा। यह भी गांधी का सपना ही रह गया।

कब सच होगा भारत को आजादी दिलाने वाले गांधी का सपना ।

या फ़िर अपनों की गुलामी और गुंडागर्दी से आजादी के लिये फ़िर एक असली गांधी की दरकार है।