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भारत में गरीब और अमीरों के लिये कानून की सजा अलग अलग क्यों है ? (Why difference

    आज सुबह ही कहीं पढ़ रहा था कि न्यूजीलैंड के धुरंधर क्रिकेटर क्रिस कैनर्स जब से मैच फिक्सिंग के मामले में फँसे हैं तो उनकी आर्थिक हालात खराब है और उनका सामाजिक रूतबा भी अब सितारों वाला नहीं रहा, आजकल क्रिस ट्रक चलाकर और बस अड्डों को साफ करके अपनी आजीविका चला रहे हैं और वैसा ही मामला अगर भारत में देखा जाये तो दो सितारे खिलाड़ियों पर मैच फिक्सिंग के आरोप लगे थे, अब उनमें से एक सांसद हैं और दूसरे क्रिकेट मैचों की कमेंट्री करते हैं, उन्हें ना आर्थिक नुक्सान हुआ और न ही उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा मिट्टी में मिली, जबकि क्रिस और भारत के उन दो खिलाड़ियों का अपराध एक ही था ।
     अभी हाल ही में कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए सेना से कहा है कि आपने लगभग 50 अफसरों को आर्मी कोटे की पिस्तौल को बाजार में बेचने पर केवल रू. 500 का जुर्माना लगाया है, तो हम उस गरीब आदमी को क्या जबाब दें तो केवल रू. 10 चुराने के लिये जेल की हवा खाता है, और जुर्म साबित होने के बाद सजा भी भुगतता है, क्या सेना के अफसरों का जुर्म ज्यादा संगीन नहीं है, और सजा बहुत ही मामूली नहीं है ?
    दो बड़े जुर्म मुझे यह याद दिलाते हैं कि जुर्म राजनीति के प्रश्रय में ही होता है और दोनों का आपस में भाईचारा है, दोनों एक दुसरे के बिना नहीं रह सकते हैं, अगर इन दोनों में से कोई एक परेशान होता है तो वे जनता के सामने ही आपस में सहयोग करते हैं, और हमारे भारत की बेचारी जनता केवल इसलिये देखती रहती है क्योंकि उनके पास देखने के अलावा और कोई चारा नहीं है, कानून व्यवस्था को पालन कराने वाले लोग भी इन लोगों के साथ काम करते हुए देखे जा सकते हैं, चारों और कानून टूट रहे हैं, और इसमें सभी की मिलीभगत है ।
    पहला – उज्जैन के महाविद्यालय में म.प्र. पर शासन करने वाले राजनैतिक दल की छात्र इकाई के कुछ लोग एक प्रोफेसर की हत्या कर देते हैं, और बहुत हो हल्ला मचता है, वैसे तो प्रशासन कुछ करने में रूचि नहीं रख रहा था, पर जब राष्ट्रीय स्तर के मुख्य धारा के मीडिया हाऊसों ने चिल्लाना शुरू किया तो शासन ने कड़ाई बरतते हुए दिखावे का ढ़ोंग किया और सबको 2-3 वर्ष तक जेल के अंदर रखा और बाहर गवाहों ओर सबूतों को कमजोर किया जाता रहा और आखिरकार वे संदेह के लाभ में बरी हो गये, दीगर बात यह है कि इसी बीच तत्कालीन मुख्यमंत्री इन सबसे मिलने जेल गये, आज इनमें से कई सरकारी सहायता प्राप्त महकमों मे उच्च पदों पर आसीन हैं, जो कि उनकी छबि के अनुरूप तो कतई नहीं है।
     दूसरा – कुछ लड़के मिलकर एक पहलवान टाईप दादा की हत्या कर देते हैं, और सब फरार हो जाते हैं, सारे लड़के अभिजात्य वर्ग के परिवारों से हैं और उन सबके परिवार में उनके पिता एक राजनैतिक दल से सारोकार रखते हैं, पास के एक गाँव से दो बस भरकर इन लड़कों को और इनको परिवार को सबक सिखाने के लिये आते हैं और ये गाँव वाले इतने सभ्य कि पड़ौसियों को कुछ भी नहीं कहा, बस उन हत्यारे लड़कों को पीटने और मारने के उद्देश्य से आये थे, और उनके घर में घुसकर घर का सामान बाहर फेंक देते हैं, और पड़ोसियों के पूछने पर कहते हैं कि अगर हमने ये आज नहीं किया तो फिर इनका कोई कुछ बिगाड़ नहीं पायेगा, क्योंकि शासन, पुलिस सब इनकी जेब में है, ये लड़के ही आगे चलकर हमारे नेता बन जायेंगे, तो उन सारे लड़कों मे जनता के डर के मारे खुद को पुलिस के हवाले कर दिया, और वे सब 1-2 साल में बरी हो गये, सारे लड़के आज राजनेता हैं, कोई भी प्रशासन संबंधित कार्य करवाना हो, ये लोग चुटकी में काम करवाने वाले सफेदपोश दलाल हो गये हैं।
    यहाँ बस हारा तो केवल कानून, मैं जानता हूँ कि ऐसे कई किस्से हैं और मैं लिखना भी चाहता हूँ, पर लिखने का भी कोई फायदा नहीं, क्योंकि कानून अपने दायरे में रहकर काम करता है और ये लोग बिना दायरे के । कब ये कानून अमीरों और गरीबों के लिये एक होगा, इसके लिये राजनैतिक इच्छशक्ति की दरकार है, पर ये राजनेता ऐसा होने नहीं देंगे क्योंकि इनकी असली ताकत तो कानून तोड़ना और तोड़ने वालों से ही है।

झगड़ा न करना डर नहीं, समझदारी है (Don’t Fight, its understanding not fear)

    कल ऑफिस जाते समय एक लाल बत्ती पर हम रुके हुए थे, बगल में थोड़ी जगह खाली थी, और उसके बाद फिर एक कार खड़ी हुई थी, हम आराम से सुबह सुबह के उल्लासित जीवन का दर्शन कर रहे थे, कई सारे लोग आज भी सुबह पूजा करते हैं और उसके बाद तिलक लगाकर ही घर से निकलते हैं, लाल, पीला, सफेद रंग के तिलक अमूमन देखने को मिलते हैं, किसी के माथे पर गोल तो किसी के माथे पर लंबा टीका लगा हुआ दिखता है, तिलक या टीका कौन सी ऊँगली से लगाया जाये, इसके ऊपर कुछ दिनों पहले पढ़ रहा था, तो उसमें हर उँगली का अलग अलग महत्व बताया गया था, जैसे कि मध्यमा से तिलक लगाने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं, और अनामिका से तिलक लगाने पर शत्रुओं का नाश होता है, शायद यह ज्ञान हमारे पूर्वजों के पास रहा हो, परंतु अब लोग इन सब विषयों में रूचि नहीं लेते हैं तो इस तरह से यह ज्ञान भी लुप्त होता जायेगा।
महिला चालक
 
    सुबह ऑफिस जाते समय कुछ लोग हर्षित प्रफुल्लित रहते हैं, और कुछ लोग तनाव में, तनाव भले ही फिर कल के अधूरे काम को हो या फिर ऑफिस देरी से जाने का, पर कुछ लोग तनाव में ही जीने लगते हैं, लाल बत्ती पर भी ऐसे लोगों को हार्न बजाते हुए देखा जा सकता है, हार्न बजाने की स्टाईल भी अलग अलग होती हैं, उससे भी कई बार उनके तनाव का स्तर पता चलता है, जो हार्न को देर तक एक साथ दबाकर रखे और फिर बार बार हार्न को दबाकर छोड़े निश्चित ही उसके तनाव का स्तर बहुत ही ज्यादा है, और मैं समझता हूँ ऐसे तनावग्रस्त व्यक्ति को ऑफिस की बजाय घर वापिस चला जाना चाहिये।
    
    
    कुछ लोग हमेशा ही मोबाईल पर बात करते हुए दिखते हैं, पता नहीं कितनी बातें करते हैं इनकी बातें ही कभी खत्म नहीं होतीं हैं, कार चलाते वक्त भी एक हाथ में स्टेरिंग रहेगा और एक हाथ में मोबाईल और जब गियर बदलना होता है तो मोबाईल को कान और कंधों के बीच दबा लेते हैं, ऐसा लगता है जैसे कि उनकी गर्दन को किसी ने जोर से दबाकर कंधे से लगा दिया हो, मैंने अधिकतर ही कार चलाते हुए स्त्रियों को मोबाईल का उपयोग करते हुए देखा है, और कार की तेज रफ्तार को पाने के लिये बेचारे एक्सीलेटर को बेरहमी से कुचलते हुए भी…
लाल बत्ती पर सोचता हुआ व्यक्ति
    ओह बात जहाँ से शुरू हुई वह तो पूरी हुई ही नहीं, उस खाली जगह में एक मैडम जी अपनी बिल्कुल नई चमचमाती हुई गाड़ी घुसाने की असफल सी कोशिश में लगी हुईं थीं, उनके स्टेरिंग को सँभालने के तरीके से ही पता चल रहा था कि अभी नई नई चालक हैं और कुछ भी कर सकती हैं, हम अपने बैकमिरर से उनकी नाकाम कोशिश देख ही रहे थे, हम उन्हें चाहकर भी जगह नहीं दे सकते थे क्योंकि हमारी गाड़ी भी फँसी हुई खड़ी थी और कोई आगे करने की गुँजाईश भी नहीं थी, तभी बगल से आवाज आई तो देखा कि उन मैडम ने हमारी खड़ी कार में आगे आने के चक्कर में खरोंचे मार दी हैं, जो कि हमको साईज मिरर से दिख रहा था, और वो मैडम अब अपनी चालक सीट पर से उचक उचक कर हमारी कार पर आई खरोंच देखने की कोशिश कर रही थीं, हम अपने दिमाग को शांत करने की पूरी कोशिश कर रहे थे, गुस्सा तो बहुत जोर का आ रहा था परंतु सोचा कि गुस्सा करके हासिल क्या होगा, और हम अपनी सीट बेल्ट को हथकढ़ी मानकर जकड़कर बैठ गये।
    
    दरअसल हमारे एक पारिवारिक मित्र हैं, जो कि आगरा में रहते हैं और वे डॉक्टर दंपत्ति हैं, अभी हाल ही में जब हम आगरा गये थे तब उनसे मिलने जाना हुआ, अपने व्यस्त जीवन से कुछ समय उन्होंने हमारे लिये निकाला, और खूब बातें हुईं, तब उनकी यह नसीहत हमें बहुत अच्छी लगी कि कार में कोई टक्कर मार जाये तो भी चुपचाप बैठे रहो, क्योंकि हमें पता नहीं कि दूसरा किस मूड में हो और क्या आदमी है, पता चला कि मारपीट में अपना ही नुक्सान हो गया, चलो सामने वाले से कोई मारपीट न हो, झगडा ही हो गया तो अपने दस मिनिट भी खराब हुए और पता चला कि अपना रक्तचाप भी बढ़ गया तो वही अपना नुक्सान हो गया, यह डर नहीं समझदारी है ।

हेल्थी हार्ट पैकेज और अस्पताल से आई बीमारी (Healthy Heart Package and got Fever)

शनिवार को ह्रदय के लिये हेल्थी हार्ट पैकेज के लिये हमने 2 सप्ताह पहले से ही अस्पताल से बुकिंग करवा रखी थी, 12-14 घंटे खाली पेट आने के लिये कहा गया था और जिस दिन न खाना हो उसी दिन खूब खाने पीने की इच्छा होती है। इस पैकेज में लिपिड प्रोफाइल, ईसीजी, टीएमटी एवं डॉक्टर का परामर्श शामिल था। यह पैकेज गुङगाँव शहर के तथाकथित अच्छे अस्पतालों में शुमार पारस अस्पताल मे था, इसके पहले यही चैकअप 1 वर्ष पहले बैंगलोर में वहाँ के जानेमाने क्लीनिक वीटालाईफ में करवाया था, तो वीटालाईफ ने पूरा चैकअप करनें में लगभग 1 घंटे से भी कम समय लिया थी, हम यहाँ भी यही सोच कर गये थे कि फटाफट चैकअप हो जायेगा, तो अन्य काम निपटा लेंगे।
सुबह 8.45 पर हम पारस अस्पताल में घुसे, अस्पताल की भव्यता देखते हुए लगा कि हमें यहाँ अच्छी सुविधाएँ मिलेंगी, हम जब स्वागतकक्ष पर पहुँचे तो बिना अभिवादन ही, हमें बताया गया कि आपका आज का पैकेज के लिये कोई बुकिंग नहीं है, (अहसान जताते हुए) पर फिर भी हम आपका पैकेज ले रहे हैं, और हमें कहा गया कि आप बेसमेंट वाले तल पर चले जाइये वहाँ केवल जाँच वालों के लिये स्वागत कक्ष है, हम दूसरे स्वागत कक्ष में आये तो उन्होंने एक फॉर्म भरने को दिया गया कि यह रजिस्ट्रेशन फॉर्म है, इस वक्त समय हुआ था लगभग सुबह 9 बजे, और फॉर्म भरने के बाद हमें बैठने के लिये कह दिया गया, हम बैठ गये, लगभग 9.30 बजे एस.एम.एस. आया कि हम अब पारस अस्पताल के रजिस्टर्ड पैशेन्ट (कस्टमर) हो गये हैं। लगभग 10 बजे हमें लिपिड प्रोफाईल के लिय रक्त निकालने के लिये बुलाया गया, हम कहे भई ये दिल्ली है, अभी एक घंटे में तो केवल रक्त की ही जाँच हुई है, अब ईसीजी और टीएमटी में पता नहीं कितना समय ये लोग लगायेंगे, हमें कहा गया कि अब आपके ईसीजी और टीएमटी टेस्ट ऊपर वाले तल पर होंगे।

हम चले ऊपर वाले तल पर, वहाँ पर हर तरफ अफरा तफरी का माहौल था, हम वहाँ के स्वागत कक्ष पर जाकर बोले कि ईसीजी और टीएमटी जाँच कहाँ होंगी तो हम बतायी हुई दिशा के कमरे की और बढ़ चले, वहाँ नर्स ने हमें बैठाकर रक्तचाप जाँचा और रजिस्टर में हमारा नंबर चढ़ाती हुई बोलीं कि आप बैठ जाईये और डॉक्टर से पहले परामर्श कर लीजिये, अब हम कल शाम के भूखे, भूखे पेट आदमी का दिमाग बहुत जल्दी घूमता है, शायद यह बात अस्पताल वालों को पता नहीं, 15 मिनिट बाद ही हम धड़धड़ाते हुए टीएमटी वाले रूम में घुस गये और डॉक्टर से पूछा कि कितना समय लगेगा, तो उन्होंने इत्मिनान से हमारा कागज देखते हुए कहा कि कम से कम 2 घंटे और लगेंगे, और तीन घंटे से कुछ खाया हुआ नहीं होना चाहिये, हमने कहा अब तो 11.30 हो चुके हैं और हमने कल शाम 7 बजे से कुछ नहीं खाया है, तो डॉक्टर बोला कि हम कुछ नहीं कर सकते इतना समय तो लगेगा ही, हमने कहा कि हमें बहुत जोर से भूख लगी है हम तो खाना खाने जा रहे हैं, तो वे बोले कि ठीक है फिर आप 3 बजे दोपहर को आ जाईये, हमने कहा कि वो सब तो ठीक है, यह बताईये कि जब हम सुबह से आये हैं तो पहला नंबर तो हमारा आना चाहिये, आप लोग पैसे तो फाईव स्टार वाले लेते हो और सुविधओं के नाम पर सब गोल, हमने उन्हें बताया कि पिछले वर्ष ही हमने बैंगलोर में यही चैकअप करवाया था पर उनके यहाँ सारा सिस्टम ऑटोमैटिक था, और केवल एक घंटे में सारे चैकअप हो चुके थे, तो बोला कि इसके लिये यह सही जगह नहीं, आप प्रशासन विभाग के पास जाकर बाद करिये।
खैर हम घर के लिये निकले तो एक और आश्चर्य था कि गाड़ी की पार्किंग के लिये 20 रू. शुल्क वसूला गया, पार्किंग शुल्क अस्पताल में यह हमने पहली बार देखा, पता नहीं इस बदलती दुनिया में और क्या क्या देखना बाकी रह गया है, सुविधाओं के नाम पर शुल्क और सुविधाएँ गायब । घर गये जमकर बिरयानी खाई और आराम किया, फिर से 3 बजे अस्पताल पहुँचे तो देखा कि दरवाजे के बीचों बीच जवान डॉक्टर लोग गप्पें हाँक रहे हैं, और आने वाले लोगों को परेशानी हो रही है, हमने तुरंत वहाँ खड़े डॉक्टरों से बोला कि आपको हँसी ठट्ठा करना ही है तो साईड में होकर करिये, यह आपका कॉलिज नहीं है, कि कहीं पर भी खड़े होकर हँसी ठट्ठा करने लग गये, वहीं पास में प्रशासनिक विभाग का कोई बंदा खड़ा था, वह हमें घूर कर देख रहा था, वहीं वे सारे डॉक्टर नजरों को नीचे झुकाकर तत्परता से गायब हो गये।

हमने अपनी बची हुई जाँच ईसीजी और टीएमटी करवाया, ईसीजी के समय पर्दा खिंचा रहने का फायदा भी उठाया और मोबाईल से एक सेल्फी ले लिया, घर आते समय ही दिमाग का सूचना तंत्र शरीर गिरा होने की सूचना दे रहा था, लगा कि सुबह से कुछ ज्यादी ही थकान हो गयी होगी, इसलिये या फिर मर्दानी फिल्म देखकर सर चढ़ गया है, घऱ आकर शाम को हॉलीवुड वाली अवतार आ रही थी, तब जाकर मूड ठीक हुआ, पर हमारे थर्मामीटर ने बताया कि तापमान 99.8 है जो कि सामान्य से ज्यादा था, तो यह हैल्थी हार्ट पैकेज का उपहार था, क्योंकि अस्पताल में हाइजीनिक वातावरण नहीं था।

अब 5 दिन हो गये हैं अभी भी बुखार है, और भी जाँचें करवा ली हैं, सब सामान्य है, केवल वाइरल है, बस दवाई लेकर ऑफिस जा रहे हैं।

मित्र के लिये बैंक से ऋण (Bank loan for friend)

    मित्र के साथ मिलकर बैंक से ऋण (Loan from bank with friend) लेना या मित्र के लिये बैंक से ऋण लेना (Loan from bank for friend), दोनों ही किसी मुसीबत के लिये निमंत्रण हो सकते हैं। थोड़े समय पहले हमारे एक सहकर्मी ने हमसे इस बाबत बात की, और कहा कि उन्होंने बैंक से १० वर्ष पहले प्रधानमंत्री रोजगार योजना (Pradhamantri Rojgar Yojna) में एक लाख रूपये का ऋण लिया था, ऋण पूरा मित्र “अजय” के नाम पर था, परंतु पीछे वास्तविकता में उनके मित्र “बिजय” उस व्यापार जिसके लिये ऋण लिया गया था, बराबर के हिस्सेदार थे, केवल बैंक में “अजय” के नाम से ऋण लिया गया, जबकि “बिजय” का नाम कहीं भी नहीं था। दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे, दोनों को एक दूसरे पर बहुत यकीन था।
    दोनों अपना अपना काम करने लगे, व्यापार थोड़ा चल निकला,  फ़िर “अजय” को ठीकठाक सी नौकरी मिल गई, तो “अजय” ने “बिजय” को व्यापार की बागडोर थमाई और नौकरी में चले गये। जब तक “अजय” व्यापार में साथ था तब तक ऋण का मासिक भुगतान समय पर बैंक को होता रहा, परंतु जैसे ही “अजय” नौकरी के लिये गया, “बिजय” ने बैंक की ऋण अदायगी बंद कर दी। बैंक के रिकार्ड में उनका ऋण खाता निष्क्रिय की श्रेणी में आकर एन.पी.ए. (Non Performing Asset) घोषित कर दिया गया।
    पहले बैंक ने “अजय” से संपर्क किया और प्रधानमंत्री रोजगार योजना के अंतर्गत लिया गया ऋण चुकाने की बात कही, तो “अजय” ने बैंक को कहा कि मैंने तो कब से व्यापार से नाता तोड़ लिया है और अब मेरा मित्र “बिजय” उस व्यापार को चला रहा है, तो बैंक ने कहा “ऋण तो आपके नाम से है, “बिजय” के नाम से नहीं है, आप हमारा पैसा हमें लौटा दीजिये” ।
    “अजय” परेशान हो गया कि आखिर “बिजय” को यह क्या हो गया जो उसने हमारे अपने व्यापार को जमाने लिये गये ऋण को नहीं चुकाया, जबकि व्यापार अच्छा चल रहा है, जब उसने “बिजय” से बात करने की कोशिश की, पहले तो “बिजय” फ़ोन पर ही नहीं आया, चूँकि “अजय” की नौकरी घुमंतु वाली थी, कभी इस शहर कभी उस शहर। छुट्टियों में “अजय” घर गया और “बिजय” से मिला तो “बिजय” बड़ी ही रूखाई से पेशा आया और कहा ऐसा है कि ऋण तुमने लिया तो मैं क्यों भरूँ, ऋण तो तुमको ही भरना पड़ेगा, मेरे नाम पर ऋण थोड़े ही है, “अजय” यह सुनकर रूआंसा हो गया।
    “अजय” ने “बिजय” से बात करके समस्या का हल निकालने की पूरी कोशिश करता रहा, “बिजय” को लग रहा था कि ऋण चुकाना केवल “अजय” की जिम्मेदारी है, परंतु जब “अजय” ने समझाया कि हमने साझेदारी में व्यापार शुरू किया था, तो तुम भी तो ऋण के साझेदार हुए, “बिजय” को बात समझ आ गई और वह आधा ॠण भरने को तैयार हो गया, अब “अजय” फ़िर परेशान था, क्योंकि उसने तो व्यापार में से एक पैसा भी नहीं लिया था, फ़िर भी उसे आधा ऋण चुकाने के लिये बाध्य होना पड़ रहा है, “अजय” को पता था कि “बिजय” वह आधा ऋण के पैसे निकालने में ही उसके पसीने छुड़ा देगा। और बैंक “अजय” के पीछे पड़ी हुई थी।
    यही वह समय था, जब “अजय” मुझसे मिला और इस बाबत अपनी राय माँगी, हमने कहा “बिजय” को ऋण देने के लिये राजी तो तुमको ही करना पड़ेगा, नहीं तो आधा ऋण फ़ालतू में तुमको अपनी जेब से भरना पड़ेगा, अब “अजय” ने फ़िर से “बिजय” से बात की, व्यापार को छोड़कर मैं तो नौकरी में चला गया था, तो पूरा ऋण तुम्हें ही चुकाना होगा, अब इस बात पर “बिजय” उखड़ गया। “बिजय” बोला एक तो ऋण तुम्हारे नाम पर है, फ़िर भी मैं आधा ऋण चुकाने को तैयार हो गया हूँ और अब तुम पूरा का पूरा मेरे ऊपर डालना चाहते हो।
    खैर “अजय” ने हमसे कहा कि मैं बात को ज्यादा तूल नहीं देना चाहता हूँ, मैं आधी रकम जो कि लगभग पैंतीस हजार होती है मैं बैंक को चुका देता हूँ और बाकी की मेरा मित्र “बिजय” चुका देगा, “अजय” ने बैंक से सैटलमेंट किया कि हम केवल मूल ऋण चुका पायेंगे, ब्याज की राशि माफ़ की जाये, तो बैंक इस बात के लिये राजी हो गया और कुल सत्तर हजार के ऋण में से आधी रकम “अजय” ने बैंक को चुका दी और बाकी की रकम “बिजय” को चुकानी थी, बिजय ने अजय को पोस्ट डेटेड चेक देकर कहा कि इन तारीखों में मेरे भुगतान आने हैं, तुम बैंक में लगा देना। “बिजय” ने दस हजार के तीन चेक दिये थे, और तीनों के तीनों बाऊँस हो गये, और इसी बीच “अजय” को “बिजय” ने बाकी के पांच हजार रूपये नकद में दे दिये।
    बैंक वालों ने “अजय” का पीछा नहीं छोड़ा और कहा कि हमारा पूरा पैसा चाहिये तुम्हारी साझेदारी तुम्ही जानो, हमारे लिये तो कर्जदार तुम हो और तुम हमारा पूरा पूरा ऋण चुकाओ, नहीं तो हम तुम्हारा केस अब वसूली के लिये कलेक्टर कार्यालय को भेज रहे हैं। वहाँ से कुर्की के आदेश भी निकल सकते हैं। “अजय” घबरा गया, उसने फ़िर से “बिजय” से बात की और चेक बाऊँस होने के कारण नकद रूपये देने की बात कहीं, अब बिजय अजय को थोड़े थोड़े करके नकद रूपये देकर ऋण चुका रहा है।
    इस बात से एक अनुभव मिलता है कि कभी भी अगर साझे में कोई भी काम करो तो ऋण भी साझेदारी में ही होना चाहिये, फ़िर चाहे कोई कितना भी अच्छा दोस्त हो या रिश्तेदार हो, ऐसे कार्यों में सहानुभूति से कार्य नहीं लेना चाहिये और व्यवहारिकता से सोचना चाहिये, पैसा निकालने में जान निकल जाती है और कानून डंडा लेकर आपके पीछे पड़ा रहता है।
    बेहतर है कि या तो साझे में ॠण ना लें या लें तो उसके बराबर दस्तावेज हों, वैसे ही कभी मित्र या रिश्तेदार की मदद करने के लिये कोई ऋण ना लें, अन्यथा परेशानी का सामना आपको ही करना पड़ेगा। एक बार मना करके बुराई मिलती है तो इतनी सारी आने वाली परेशानियों से वह बुराई बेहतर है।

नामांकन आपके परिवार के लिये बहुत जरूरी है.. (Nomination is very important for your family)

    अपने निवेश और संपत्ति के लिये उत्तराधिकारी की घोषणा आपके जीवन में महत्वपूर्ण कार्यों में से एक होता है। इसके बारे में कुछ ही लोगों, निवेशकों को पता है, नामांकन के ना होने (उत्तराधिकारी घोषित ना होने की दशा में) किन किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है यह भी बहुत कम लोगों को पता है। यहाँ पर कुछ अच्छी बातें उन निवेशकों के लिये जो अपने निवेशों के लिये उत्तराधिकारी घोषित कर अपनी और अपने प्यारों की जिंदगी को बेहतर बनाना चाहते हैं।
    जिंदगी अनिश्चितताओं पर चलती है और इसी कारण नामांकन आपके अपने परिवार के लिये आराम है, जिससे ऐसी किसी भी परिस्थिती के बाद परिवार आपके निवेशों को आराम से पा सके, जो निवेश आपने अपने प्यारों दुलारों के लिये किया है, वह निवेश आराम से उन तक पहुँच भी सके। नामांकन उनके लिये केवल अच्छा ही नहीं बहुत अच्छा होगा, जब उनको आपके निवेश की अधिक आवश्यकता होगी, या खर्चे के लिये पैसों की या फ़िर आपके प्यारों के लिये उस धन / रकम को अपने नाम पर करना होगा, तो नामांकन होने की दशा में उनको बहुत ही कम यानि कि ना के बराबर औपचारिकता निभाना होगी। नामांकन ना होने की दशा में आपके निवेशों तक पहुँचने के लिये आपके अपने परिवार को पूरी कानूनी कार्यवाहियों से गुजरना पड़ेगा। जो कि उनके लिये सिरदर्द तो होगा ही, साथ में उतना ही परेशानी वाला रास्ता भी होगा। और जब आपके परिवार को धन की आवश्यकता होगी तो वे धन होने की स्थिती में भी इसका उपयोग नहीं कर पायेंगे।
nomination    नामांकन बहुत आसान प्रक्रिया है, नामांकन प्रपत्र लगभग हर दस्तावेज के अंत में होता है, जिसमें निवेशक को अपने उत्तराधिकारी की जानकारी भरना होती है जैसे कि नाम, रिश्ता, पता, फ़ोन नंबर, कई जगह एक गवाह की जरूरत होती है, पर आजकल अधिकतर आप सीधे नामांकन कर सकते हैं, एक प्रतिलिपी आप अपने पास रख सकते हैं या फ़िर अपनी निवेश डायरी में नोट कर लें। जिन लोगों ने यह सुविधा नहीं ली है, वे लिखित में एक पत्र देकर नामांकन करवा सकते हैं। नामांकन करना बहुत ही सरल कार्य है।
    याद रखें, आपके लिये नामांकन करने का प्रावधान हमेशा खुला हुआ है, आप कभी भी नामांकन कर सकते हैं, आप विशेषकर इन निवेशों में जरूर नामांकन का उपयोग करें –
१. बैंक में बचत खाता / सावधि जमा खाता ( Saving Account/ Fixed Deposit)
२. बीमा  (Insurance Policy)
३. शेयर एवं म्यूचयल फ़ंड (Shares and Mutual Funds)
४. अन्य जमा जैसे कंपनी डिपोजिट, पीपीएफ़., पीएफ़ (Company Fixed Deposit, Public Provident Fund, Provident Fund)
    वैसे तो साधारणतया: खाता खोलते समय नामांकन की औपचारिकताunomination को पूरा करवा लिया जाता है, परंतु अगर खाता खोलते समय नामांकन नहीं कर पाये हों तो नामांकन बाद में कभी भी किया जा सकता है। आप बाद में नामांकन को बदल भी सकते हैं और हटा भी सकते हैं। और यह केवल वही निवेशक कर सकता है, जिसने नामांकन किया था ।
    अगर आप नामांकन में एक से ज्यादा उत्तराधिकारी बनाना चाहते हैं तो यह भी संभव है, केवल उन उत्तराधिकारियों के सामने उनके हिस्से के प्रतिशत को बता दीजिये।
नाबालिग, ट्रस्ट, सरकार, स्थानीय अधिकारी, गैर निवासियों को भी उत्तराधिकारी बनाया जा सकता है।
उत्तराधिकारियों को धन प्राप्त करने के लिये क्या करना होगा ?
१. सभी बैंकों एवं संस्थाओं में मृत्यु प्रमाण पत्र की एक मूल और एक जेरॉक्स दें ।
२. केवायसी के लिये सही उत्तराधिकारी के प्रमाण पत्र प्रस्तुत करें।
३. अगर निवेश की रकम एक लाख रूपये से ज्यादा है तो संस्था इन्डिमिनिटी बांड की मांग कर सकती हैं।
४. नामांकन ना होने की दशा में संस्थाओं द्वारा वसीयत मांगी जा सकती है, उत्तराधिकार प्रमाणपत्र, अन्य वारिसों से अनापत्ति प्रमाण पत्र की जरूरत होगी।

PMP, CBAP, ISTQB कौन सा सर्टिफ़िकेशन करना चाहिये ।

    आजकल बहुत सारे प्रोफ़ेशनल सर्टिफ़िकेशन बाजार में उपलब्ध हैं, जैसे कि प्रोजेक्ट मैनेजर के लिये PMP, बिजनेस अनालिस्ट के लिये CBAP, टेस्टिंग वालों के लिये ISTQB की बाजार में बहुत ज्यादा डिमांड है। सारे लोगों का प्रोफ़ाईल बिल्कुल यही नहीं होता है, कुछ ना कुछ अलग होता है और वे इसी सोच विचार में रहते हैं कि कौन सा सर्टिफ़िकेशन करें, और सही तरीके से बाजार में कोई बताने वाला भी नहीं होता है।

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    अब PMP को ही लें, यह सर्टिफ़िकेशन प्रोजेक्ट मैनेजर के लिये जरूर है, परंतु उतना ही मतलब का बिजनेस अनालिस्ट के लिये भी है, कई जगह बिजनेस अनालिस्ट प्रोजेक्ट मैनेजर का काम भी करता है और प्रोजेक्ट प्लॉनिंग करता है। PMP सर्टिफ़िकेशन केवल IT प्रोजेक्ट मैनेजर के लिये ही नहीं होता है, यह हरेक जगह, हर प्रोजेक्ट मैनेजर के लिये होता है, फ़िर भले ही वह मैन्यूफ़ेक्चरिंग इंडस्ट्री हो या रियल इस्टेट इंडस्ट्री या फ़िर ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री।

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    PMP के बारे मे सोचा जाता है कि यह IT प्रोजेक्ट मैनेजर्स के लिये सर्टिफ़िकेशन बनाया गया है, परंतु यह सर्टिफ़िकेशन दरअसल प्रोजेक्ट मैनेजर्स को प्रोसेस, बजट और रिसोर्स मैनेजमेंट इत्यादि सिखाता है, किस तरह से प्रोजेक्ट को सही दिशा में ले जाया जाये, क्या चीजें जरूरी हैं, अगर सही तरह से रिपोर्टिंग होगी तो रिस्क उतनी ही कम होगी।

    वैसे ही अन्य सर्टिफ़िकेशन हैं, CBAP बिजनेस अनालिस्ट के फ़ंक्शन को समझाता है, और ISTQB टेस्टिंग के बेसिक फ़ंक्शन से लेकर एडवांस लेवल तक के तौर तरीके सिखाता है। जिससे किसी भी प्रकार के प्रोजेक्ट के लिये सही तरह से प्लॉनिंग करने में मदद तो मिलती ही है, साथ ही सही तरीके से कैसे डॉक्यूमेन्टेशन किया जाये, यह भी पता चलता है। जिससे प्रोजेक्ट के डॉक्यूमेंट अच्छे बनते हैं और ट्रांजिशन में परेशानी नहीं आती है।

    इन सारे सर्टीफ़िकेशन में पहले का अनुभव जरूरी होता है, तो पहले जाँचें कि आप कौन से सर्टिफ़िकेशन के लिये फ़िट हैं। आपका अनुभव कौन से सर्टिफ़िकेशन के लिये उम्दा है और वह सर्टिफ़िकेशन आपमें वैल्यू एड कर रहा है। इन सर्टिफ़िकेशनों की फ़ीस ज्यादा नहीं होती, परंतु इन सर्टिफ़िकेशन्स से आप अपना काम अच्छे से कर पायेंगे, आपके काम की क्वालिटी अपने आप दिखेगी।

    naukriनई नौकरी के लिये बाजार में उतरेंगे तो ये सर्टिफ़िकेशन बेशक आपके लिये नई नौकरी की ग्यारंटी ना हों, पर नई नौकरी के लिये पासपोर्ट जरूर साबित होंगे, अगर किसी एक पद के लिये १०० लोग दौड़ में हैं और सर्टिफ़िकेशन केवल ५ लोगों के पास, तो उन ५ लोगों के चुने जाने की उम्मीदें बाकी के उम्मीदवारों से अधिक होगी, आपकी प्रतियोगिता उन ५ लोगों से होगी ना कि पूरे १०० लोगों से । अपनी अपनी फ़ील्ड और कार्य के अनुसार अपना सर्टिफ़िकेशन चुनिये और अपने भविष्य का निर्माण कीजिये।

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आधुनिक शिक्षा अध्ययन .. (Ways of Modern Education..)

    शिक्षा अध्ययन करने के तरीकों में भारी बदलाव आ गया है । पहले अध्ययन के लिये कक्षा में जाना अनिवार्य होता था, पर अब तकनीक ने सब बदल कर रख दिया है। अधिकतर अध्यापन अब ऑनलाइन होने लगा है। किताबों की जगह पीडीएफ फाईलों ने ले ली है।

  ईबुक्स  पहले जब किताबों से पढ़ते थे तब कौन से लेखक की किताब अच्छी है, उसके लिए किसी न किसी पर निर्भर रहना पड़ता था, या फिर अध्यापक ही मार्गदर्शन करते थे। विद्यार्थियों के लिए शिक्षक से परे कोई जहाँ नहीं था। किताब पढ़ने के बाद ही उपयोगिता का पता चल पाता था। जिससे कई बार समय की कमी हो जाती थी,  पर साथ ही ज्ञान बढ़ता था।

    आजकल अध्ययन में फटाफट वाला दौर चल रहा है, जिसमें विद्यार्थियों को पता होता है कि उन्हें क्या पढ़ना है, कितना पढ़ना है, किसे पढ़ना है। विद्यार्थी उससे ज्यादा पढ़ना ही नहीं चाहते हैं। ऑनलाइन सब कुछ उपलब्ध है। हालांकि पढ़ने के लिये पहले से ज्यादा सुविधाएँ उपलब्ध हैं, एक ही विषय को अलग तरीकों से, ज्यादा माध्यमों से पढ़ा जा सकता है। ज्यादातर नोट्स बनाने की जरूरत नहीं, केवल बुकमार्क किया और कभी भी सुविधानुसार उपयोग कर लिया।

    पहले अनुक्रमणिका से पृष्ठ संख्या देखकर पृष्ठ पलटाते हुए पहुँचते थे, अब तो पीडीएफ फाईलों में केवल क्लिक करके पहुँचा जा सकता है, पहले किसी भी शब्द या वाक्यों को खोजना दुरूह हो जाता था, पर अब पीडीएफ फाईलों में खोजने का कार्य बहुत सरल हो गया है।

    पहले कक्षा में नियत  समय पर जाकर विद्यार्थियों के आने के बाद हीआधुनिक माध्यम पढ़ाई शुरू हुआ करती थी, पर अब सबकुछ वर्चुअल उपलब्ध है, पाठ्यक्रम ईलर्निंग के माध्यमों का उपयोग कर रहे हैं, वीडीयो ऑडियो का शिक्षा में महत्व बढ़ने लगा है, ईबुक्स का प्रचलन तेजी से बड़ा है। अब इन ईबुक्स, ऑडियो, वीडियो के लिये टेबलेट्स भी उपलब्ध हैं, भारत में कई संस्थान अब टेबलेट के जरिये पढ़ाई करवा रहे हैं। ऑनलाईन माध्यम से सबको फ़ायदा हुआ है, अध्यापकों और विद्यार्थियों के बीच तालमेल और अच्छा हुआ है।

    भारत के अध्यापक कई देशों के लिये ऑनलाईन ट्यूशन भी पढ़ाते हैं, कई अध्यापक स्काईपी से पढ़ा रहे हैं, तो कई अध्यापक गूगल हैंग आऊट का भरपूर उपयोग कर रहे हैं, उनके अपने खुद के फ़ेसबुक पेजेस भी हैं जहाँ विद्यार्थी आपस में  बात तो करते ही हैं, वहीं अपनी समस्याओं को आपस में सुलझाने की अच्छी कोशिशें देखी जा सकती हैं।

    अभी कुछ दिन पहले एक संस्था के ट्विट्स भी देखे, जहाँ पर १४० शब्दों की सीमा में ही विषय के बारे में कहने की कोशिश की गई है या फ़िर उत्तर को कई ट्विट्स में दिया गया है, इस तरह से तकनीक का पढ़ाई में भरपूर उपयोग हो रहा है।

ईलर्निंग    किसी भी विषय पर यूजर कंटेन्ट चाहिये तो स्क्रिब्ड हमेशा उपलब्ध है, जहाँ पर बहुत से अनछुए कंटेन्ट मिल जायेंगे, बहुत सी प्रेजेन्टेशन थोड़े फ़ेर बदल के बाद उपयोग में ली जाने वाली मिल जायेंगी। अगर आपको कोई किताब खरीदनी है तो आप गूगल बुक्स पर उसका प्रिव्यू देखकर अपना निर्णय ले सकते हैं।

    आशा है कि हमारे भारत के संस्थान आधुनिक तकनीक का अच्छे से फ़ायदा उठायें और भारत की उन्नति में मुख्य भुमिका का निर्वाहन करें।

खाद्य सुरक्षा बिल / घोटाला / रेटिंग एजेन्सियाँ / जीडीपी / फ़ायदे

    कोल स्कैम घोटाला २६ लाख करोड़ का हुआ (विश्लेषकों के अनुसार), सरकार (सीएजी) के अनुसार १.८६ लाख करोड़ नंबर सामने आया । नया खाद्य सुरक्षा बिल के लिये जो राशि सरकार ने उजागर की है वह है १.२५ लाख करोड़ रूपये जो कि सरकार के ऊपर भार है, मतलब यह देखिये कि भारत के ६१ करोड़ लोगों के लिये १.२५ करोड़ रूपये भारी पड़ रहे हैं, परंतु कोलगेट घोटाला जो कि इससे कहीं ज्यादा था तब सारी रेटिंग एजेंसियाँ चुप बैठी थीं, तब हमारा जीडीपी पर पड़ने वाला फ़र्क क्या इन रेटिंग एजेंसियों को समझ नहीं आ रहा था । जब जनता के लिये सरकार खर्च कर रही है तो रेटिंग एजेंसियों को लगने लगा कि इससे भारत में कुछ हद तक सुधार की गुंजाइश है तो एकदम से “रेटिंग गिर सकती है” का बयान आ गया।

    हालांकि सरकार का कहना है कि जीडीपी १% तक कम हो सकती है परंतु यह सरकारी आँकड़ा है, अगर सही तरीके से इस आँकड़े को देखा जाये तो यह आँकड़ा ३% के भी ऊपर है, जो कि भारतीय अर्थव्यवस्था पर एक बहुत बड़ा बोझ होगा। क्या रेटिंग एजेन्सियों ने कभी भारत में हुए बड़े घोटालों से होने वाली हानि का आकलन हमारी अर्थव्यवस्था के लिये किया है, अगर नहीं तो वाकई इसके पीछे की वजह जानने वाली है। क्यों हमारे भारत के बड़े बड़े घोटालों का आर्थिक विश्लेषण कर रेटिंग कम नहीं की गई, क्या इसका कुछ हिस्सा इन रेटिंग एजेन्सियों की जेब में भी जाता है ?

    जितने भी बड़े बड़े घोटाले हुए हैं, वे पिछले ९ वर्ष में प्रतिवर्ष ३% जीडीपी के घोटाले हुए हैं, अगर हमारा लक्ष्य ५.२% है तो वह आराम से ३% ज्यादा होता और हम ८.२% के जीडीपी की रफ़्तार से बढ़ रहे होते । रूपये की गिरते साख के चलते यही लक्ष्य ४.८% पर फ़िर से निर्धारित किया गया है। हालांकि जितने भी वित्तीय आँकड़े बताये जाते हैं वे सब एक बहुत बड़े आंकलन पर दिये जाते हैं, जिसकी तह में कोई नहीं जाना चाहता। क्या हमारी अर्थव्यवस्था की वाकई कोई बेलेन्स शीट है। कम से कम हमें पता तो चले कि इतना पैसा अगर टैक्स से सरकारी खजाने में आ रहा है तो वह खर्च किधर हो रहा है।

    सरकारी खजाने के खर्च से जीडीपी पर सीधा असर पड़ता है। अब इस १.२५ लाख करोड़ के खाद्य बिल से कितना फ़ायदा गरीब लोगों को मिलता है, वह तो भविष्य ही बतायेगा, और कितना फ़ायदा इन गरीब लोगों के हाथों में अन्न पहुँचाने वालो को होगा यह भी भविष्य ही बतायेगा। वाकई अन्न गरीबों तक पहुँचता है या फ़िर एक नया खाद्य घोटाले की नींव सरकार ने रखी है।

    परंतु अगर वाकई ईमानदारी से इस योजना को लागू किया जाता है और पूरा का पूरा पैसे का फ़ायदा गरीबों तक पहुँचता है, तो इसके फ़ायदे भी बहुत हैं, यह कुपोषण से लड़ने में मददगार होगा, सरकार पर स्वास्थ्य योजनाओं के मद में किये जाने वाले खर्च में आश्चर्यजनक रूप से कमी आयेगी। स्वास्थ्य सुविधाएँ और भी बेहतर हो सकेंगी, स्तर अच्छा होगा। निम्न स्तर के व्यक्ति भी अच्छे स्वास्थ्य के चलते बेहतर कार्य कर सकेंगे, बुनियादी स्तर की शिक्षा का फ़ायदा ले सकेंगे। अपनी मेहनत करके भारत के विकास में अतुलनीय योगदान दे सकेंगे।

रूपये की विनाशलीला देखने के लिये तैयार हैं ?

    आजकल सब और चर्चा में डॉलर और रूपया है और जब से रूपया १०० रूपया पौंड को पार किया है तब से पौंड भी चर्चा में है। कल ही एक परिचित से बात हो रही थी, तो वे कहने लगे कि हमारे भारत पर तो ब्रिटिश का शासन था फ़िर हमारे ऊपर यह डॉलर क्यों हावी है, हमारे विनिमय तो पौंड में होना चाहिये। हमने उन्हें समझाया कि डॉलर को विश्व में मानक मुद्रा का दर्जा मिला हुआ है, डॉलर से लड़ने के लिये यूरोपीय देशों ने यूरो मुद्रा की शुरूआत की थी, नहीं तो उन्हें सब जगह डॉलर से उस देश की मुद्रा का विनिमय करना पड़ता था। अब उन्हें यूरो मुद्रा का विनिमय यूरोपीय देशों में नहीं करना पड़ता है।

    डॉलर क्यों पटकनी दे रहा है रूपये को, यह समझने की कोशिश करें तो लुब्बा लुआब यह है कि हमने आयात ज्यादा किया और निर्यात कम किया, याने कि विदेशी मुद्रा जो कि मानक मुद्रा डॉलर है वह हमारे खजाने से ज्यादा गई और मानक मुद्रा डॉलर हमारे खजाने में कम आई, खैर इस बात का ज्यादा मायने भी नहीं है क्योंकि डॉलर हमारे रूपये के मुकाबले अभी ओवररेटेड है, अगर वाकई असली दाम इसका देखा जाये तो लगभग २० रूपये होना चाहिये। और डॉलर अभी तीन गुना ज्यादा दाम पर व्यापार कर रहा है।

Rupees vs USD

USD Vs INR

    हमारी जीडीपी याने कि सकल घरेलू उत्पाद लगातार कम होती जा रही है, हमने पिछले ९ वर्षों में  मान लो कि रत्न आभूषण ५०० अरब डॉलर के आयात किये और लगभग ३५० करोड़ के रत्न आभूषण हमने निर्यात किये तो हमें पिछले ९ वर्षों में लगभग १५० करोड़ का विशुद्ध घाटा हुआ है। इसी प्रकार पेट्रोलियम और गैस में जमकर घाटा हुआ है, कुछ अंदरूनी कलह के कारण और कुछ व्यापारिक प्रतिष्ठानों की जिद के कारण । भारत विश्व में उत्पादित सोने और पेट्रोल के बहुत बड़े भाग  का उपयोग करता है।

    स्वतंत्रता के बाद से भारत का रूपया कभी राजनैतिक कारणों से तो कभी व्यापारिक कारणों से तो कभी आर्थिक नीतियों से मात खाता आया है, हमारे भारत के पास बेहतरीन काम करने वाले लोग हैं, बेहतरीन वैज्ञानिक हैं, पर उन्हें भारत के लिये उपयोग करने के लिये ना ही राजनैतिक इच्छाशक्ति है और ना ही आर्थिक जगत की इच्छाशक्ति है। अगर कुछ और बड़ी कंपनियाँ भारत की बाहर व्यापार करने लगें तो डॉलर की नदियों का मुख भारत की और होगा।

    अधिकतर अंतर्राष्ट्रीय कंपनियाँ अपने लाभ का एक बड़ा हिस्सा मानक मुद्रा याने कि डॉलर में विनिमय कर भेज देती हैं। हम भारतवासियों को भी समझना होगा कि हमें घरेलू उत्पादों का ज्यादा उपयोग करना चाहिये, जिन उत्पादों से डॉलर बाहर जा रहा है, उन उत्पादों को उपयोग करने से बचना चाहिये।

    मुद्रा गिरने से हमारे भारत के आर्थिक हालात बेहद खराब हो सकते हैं, इसका सीधा असर बैंक में बड़े बड़े ऋण पर पड़ेगा, बाहर पढ़ने वाले विद्यार्थियों पर पड़ेगा ये दो बड़े भार होंगे हमारी अर्थव्यवस्था पर, वैसे ही राष्ट्रीयकृत बैंकें ४ % से ज्यादा एन.पी.ए. याने कि जो ऋण डूब चुके हैं, से लड़ रही हैं, और अब यह व्यक्तिगत मुश्किलें बड़ाने वाला दौर होगा, अर्थव्यवस्था पर इसका सीधा असर कुछ ही दिनों में दिखना शुरू हो जायेगा, जब पेट्रोलियम पदार्थों के भाव आसमान छूने लगेंगे तो इसका सीधा असर हमारी दैनिक उपयोग की वस्तुओं पर पड़ते देर नहीं लगेगी। जब रूपया ३३% गिर चुका है तो अब पेट्रोलियम के भाव में ३३% की तेजी का अंदाजा लगा ही सकते हैं। सरकार भी कब तक राजनैतिक कारणों से रूपये के गिरने के कारण महँगाई से जनता को बचा पायेगी, और अगर यह भार जनता पर नहीं डाला गया तो भारत के खजाने पर सीधा असर पड़ेगा।

    हमारा कैश इन्फ़्लो तो उतना ही रहने वाला है वह तो डॉलर के महँगे होने से या रूपये के गिरने से ज्यादा नहीं होने वाला है, तो अब भविष्य के संकेत ठीक नहीं है, जितनी बचत अभी तक कर लेते थे, अब वह बचत भी बहुत कम होने वाली है। अभी भी अगर इस पर नियंत्रण नहीं पाया गया तो रूपये की विनाशलीला देखने के लिये तैयार रहना होगा।

घर बैठे, शेयर बाजार से कमायें २५००० से ७५००० रूपये–क्या है यह !! (Earn 25000 to 75000 per month from Share Market, How ?)

    बाजार में कई वर्षों से देख रहे हैं, लोग / कंपनियाँ आती हैं और दावा करती हैं कि एस.एम.एस. और ईमेल के द्वारा हम दिन में इतने कॉल देंगे, और इससे आप शेयर बाजार से बहुत सारा धन कमा सकते हैं । शेयर बाजार में लोग इनके चंगुल में फ़ँस भी जाते हैं, क्योंकि सभी लोग जल्दी से जल्दी धन कमा लेना चाहते हैं। पर अगर किसी से पूछो कि धन कमाकर क्या करेंगे तो उनके पास केवल जबाब होता है कि ऐश करेंगे, ऐश में क्या करेंगे वे नहीं बता पाते हैं।
    हम अपने मुख्य बिंदु पर बात करते हैं, क्या वाकई एस.एम.एस. / ईमेल पर आई टिप्स से पैसा कमाया जा सकता है ? शायद हाँ भी और नहीं भी !! इसका जबाब वाकई बहुत मुश्किल है, बाजार में सबसे मुख्य होता है समय के साथ चलना, जिसने जरा सी भी चूक की, फ़िर भले ही वह एक मिनिट की ही हो, उसे भरपूर घाटा उठाना पड़ सकता है और हो सकता है कि इस गलती से उसे भरपूर फ़ायदा भी मिल जाये।
    एस.एम.एस. में मुख्यत: इक्विटि (Equity) के नाम के साथ खरीदने या बेचने का रेट भेजा जाता है, टार्गेट भेजा जाता है और स्टॉप लॉस भेजा जाता है। लोग केवल टार्गेट पर ध्यान देते हैं स्टॉप लॉस कभी भी नहीं लगाते हैं, कम से कम मैंने तो बहुत ही कम लोगों को स्टॉप लॉस का उपयोग करते देखा है। जो समझदार होते हैं वे इन एस.एम.एस. टिप्स को लेते जरूर हैं, परंतु अपने अनुभव से अपने पैसे को बाजार में लगाते हैं। क्योंकि ये एस.एम.एस. भेजने वाली कंपनियाँ बहुत छोटे छोटॆ अक्षरों में अपने दस्तावेजों में लिखती हैं, कि होने वाली लाभ या हानि की जिम्मेदारी कंपनी की नहीं होगी, यह निवेशक (Investor) का व्यक्तिगत निर्णय है। कंपनी लीगल तरीके से साफ़ बच निकलती हैं।
    आजकल कई कंपनियाँ ट्विटर और फ़ेसबुक पर भी अपडेट कर रही हैं, परंतु जरूरत है अपने अनुभव से ही निवेश करने की, ये कंपनियाँ तो निवेशक (Investor) से मोटी रकम (Charges) वसूलती हैं और अलग हो जाती हैं, परंतु निवेशक (Investor) इनके बिछाये जाल में फ़ँस जाता है। कई समाचार पत्रों में हमने विज्ञापन देखा है कि “घर बैठे, शेयर बाजार से कमायें २५००० से ७५००० रूपये” (Earn 25000 to 50000 per month from Share Market, How ?), परंतु यह इतना आसान भी नहीं है, जितना कि विज्ञापन पढ़ने के बाद लगता है।
    सेबी को अब इन कंपनियों के मोबाईल कॉल और एस.एम.एस. खंगालने की आजादी मिली है, अब देखते हैं कि सेबी कैसे बहुत सारी छद्मवेशी कंपनियों पर क्या कार्यवाही करती है, जो कि बिना किसी विश्लेषण (Analysis) के निवेशकों (Investors) को चूना लगा रही हैं, वैसे भी अगर इन कंपनियों को बाजार की इतनी जानकारी होती है तो खुद ही फ़्यूचर ऑप्शन (Future Options) में पैसा (Fund) लगाकर धन कमा लें, क्यों बाजार में जानकारी बेचें ? कुछ लोग फ़ँस जाते हैं और कुछ लोग इनके चंगुल से बचे रहते हैं ।
    आगे इस बारे में कोई भी कदम उठायें तो सोच समझ कर उठायें, किसी की कॉल १०० प्रतिशत सही नहीं हो सकती, क्योंकि वह बाजार में इतना सारा धन लगाकर किसी भी एक शेयर को ऊपर नीचे नहीं कर सकता है यह केवल और केवल व्यक्तिगत निवेशक (Investor) के लिये जोखिम (Risk) है।