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झगड़ा न करना डर नहीं, समझदारी है (Don’t Fight, its understanding not fear)
महिला चालक |
लाल बत्ती पर सोचता हुआ व्यक्ति |
हेल्थी हार्ट पैकेज और अस्पताल से आई बीमारी (Healthy Heart Package and got Fever)
हम चले ऊपर वाले तल पर, वहाँ पर हर तरफ अफरा तफरी का माहौल था, हम वहाँ के स्वागत कक्ष पर जाकर बोले कि ईसीजी और टीएमटी जाँच कहाँ होंगी तो हम बतायी हुई दिशा के कमरे की और बढ़ चले, वहाँ नर्स ने हमें बैठाकर रक्तचाप जाँचा और रजिस्टर में हमारा नंबर चढ़ाती हुई बोलीं कि आप बैठ जाईये और डॉक्टर से पहले परामर्श कर लीजिये, अब हम कल शाम के भूखे, भूखे पेट आदमी का दिमाग बहुत जल्दी घूमता है, शायद यह बात अस्पताल वालों को पता नहीं, 15 मिनिट बाद ही हम धड़धड़ाते हुए टीएमटी वाले रूम में घुस गये और डॉक्टर से पूछा कि कितना समय लगेगा, तो उन्होंने इत्मिनान से हमारा कागज देखते हुए कहा कि कम से कम 2 घंटे और लगेंगे, और तीन घंटे से कुछ खाया हुआ नहीं होना चाहिये, हमने कहा अब तो 11.30 हो चुके हैं और हमने कल शाम 7 बजे से कुछ नहीं खाया है, तो डॉक्टर बोला कि हम कुछ नहीं कर सकते इतना समय तो लगेगा ही, हमने कहा कि हमें बहुत जोर से भूख लगी है हम तो खाना खाने जा रहे हैं, तो वे बोले कि ठीक है फिर आप 3 बजे दोपहर को आ जाईये, हमने कहा कि वो सब तो ठीक है, यह बताईये कि जब हम सुबह से आये हैं तो पहला नंबर तो हमारा आना चाहिये, आप लोग पैसे तो फाईव स्टार वाले लेते हो और सुविधओं के नाम पर सब गोल, हमने उन्हें बताया कि पिछले वर्ष ही हमने बैंगलोर में यही चैकअप करवाया था पर उनके यहाँ सारा सिस्टम ऑटोमैटिक था, और केवल एक घंटे में सारे चैकअप हो चुके थे, तो बोला कि इसके लिये यह सही जगह नहीं, आप प्रशासन विभाग के पास जाकर बाद करिये।
हमने अपनी बची हुई जाँच ईसीजी और टीएमटी करवाया, ईसीजी के समय पर्दा खिंचा रहने का फायदा भी उठाया और मोबाईल से एक सेल्फी ले लिया, घर आते समय ही दिमाग का सूचना तंत्र शरीर गिरा होने की सूचना दे रहा था, लगा कि सुबह से कुछ ज्यादी ही थकान हो गयी होगी, इसलिये या फिर मर्दानी फिल्म देखकर सर चढ़ गया है, घऱ आकर शाम को हॉलीवुड वाली अवतार आ रही थी, तब जाकर मूड ठीक हुआ, पर हमारे थर्मामीटर ने बताया कि तापमान 99.8 है जो कि सामान्य से ज्यादा था, तो यह हैल्थी हार्ट पैकेज का उपहार था, क्योंकि अस्पताल में हाइजीनिक वातावरण नहीं था।
अब 5 दिन हो गये हैं अभी भी बुखार है, और भी जाँचें करवा ली हैं, सब सामान्य है, केवल वाइरल है, बस दवाई लेकर ऑफिस जा रहे हैं।
मित्र के लिये बैंक से ऋण (Bank loan for friend)
नामांकन आपके परिवार के लिये बहुत जरूरी है.. (Nomination is very important for your family)
PMP, CBAP, ISTQB कौन सा सर्टिफ़िकेशन करना चाहिये ।
आजकल बहुत सारे प्रोफ़ेशनल सर्टिफ़िकेशन बाजार में उपलब्ध हैं, जैसे कि प्रोजेक्ट मैनेजर के लिये PMP, बिजनेस अनालिस्ट के लिये CBAP, टेस्टिंग वालों के लिये ISTQB की बाजार में बहुत ज्यादा डिमांड है। सारे लोगों का प्रोफ़ाईल बिल्कुल यही नहीं होता है, कुछ ना कुछ अलग होता है और वे इसी सोच विचार में रहते हैं कि कौन सा सर्टिफ़िकेशन करें, और सही तरीके से बाजार में कोई बताने वाला भी नहीं होता है।
अब PMP को ही लें, यह सर्टिफ़िकेशन प्रोजेक्ट मैनेजर के लिये जरूर है, परंतु उतना ही मतलब का बिजनेस अनालिस्ट के लिये भी है, कई जगह बिजनेस अनालिस्ट प्रोजेक्ट मैनेजर का काम भी करता है और प्रोजेक्ट प्लॉनिंग करता है। PMP सर्टिफ़िकेशन केवल IT प्रोजेक्ट मैनेजर के लिये ही नहीं होता है, यह हरेक जगह, हर प्रोजेक्ट मैनेजर के लिये होता है, फ़िर भले ही वह मैन्यूफ़ेक्चरिंग इंडस्ट्री हो या रियल इस्टेट इंडस्ट्री या फ़िर ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री।
PMP के बारे मे सोचा जाता है कि यह IT प्रोजेक्ट मैनेजर्स के लिये सर्टिफ़िकेशन बनाया गया है, परंतु यह सर्टिफ़िकेशन दरअसल प्रोजेक्ट मैनेजर्स को प्रोसेस, बजट और रिसोर्स मैनेजमेंट इत्यादि सिखाता है, किस तरह से प्रोजेक्ट को सही दिशा में ले जाया जाये, क्या चीजें जरूरी हैं, अगर सही तरह से रिपोर्टिंग होगी तो रिस्क उतनी ही कम होगी।
वैसे ही अन्य सर्टिफ़िकेशन हैं, CBAP बिजनेस अनालिस्ट के फ़ंक्शन को समझाता है, और ISTQB टेस्टिंग के बेसिक फ़ंक्शन से लेकर एडवांस लेवल तक के तौर तरीके सिखाता है। जिससे किसी भी प्रकार के प्रोजेक्ट के लिये सही तरह से प्लॉनिंग करने में मदद तो मिलती ही है, साथ ही सही तरीके से कैसे डॉक्यूमेन्टेशन किया जाये, यह भी पता चलता है। जिससे प्रोजेक्ट के डॉक्यूमेंट अच्छे बनते हैं और ट्रांजिशन में परेशानी नहीं आती है।
इन सारे सर्टीफ़िकेशन में पहले का अनुभव जरूरी होता है, तो पहले जाँचें कि आप कौन से सर्टिफ़िकेशन के लिये फ़िट हैं। आपका अनुभव कौन से सर्टिफ़िकेशन के लिये उम्दा है और वह सर्टिफ़िकेशन आपमें वैल्यू एड कर रहा है। इन सर्टिफ़िकेशनों की फ़ीस ज्यादा नहीं होती, परंतु इन सर्टिफ़िकेशन्स से आप अपना काम अच्छे से कर पायेंगे, आपके काम की क्वालिटी अपने आप दिखेगी।
नई नौकरी के लिये बाजार में उतरेंगे तो ये सर्टिफ़िकेशन बेशक आपके लिये नई नौकरी की ग्यारंटी ना हों, पर नई नौकरी के लिये पासपोर्ट जरूर साबित होंगे, अगर किसी एक पद के लिये १०० लोग दौड़ में हैं और सर्टिफ़िकेशन केवल ५ लोगों के पास, तो उन ५ लोगों के चुने जाने की उम्मीदें बाकी के उम्मीदवारों से अधिक होगी, आपकी प्रतियोगिता उन ५ लोगों से होगी ना कि पूरे १०० लोगों से । अपनी अपनी फ़ील्ड और कार्य के अनुसार अपना सर्टिफ़िकेशन चुनिये और अपने भविष्य का निर्माण कीजिये।
आप इस पोस्ट का वीडियो भी देख सकते हैं –
आधुनिक शिक्षा अध्ययन .. (Ways of Modern Education..)
शिक्षा अध्ययन करने के तरीकों में भारी बदलाव आ गया है । पहले अध्ययन के लिये कक्षा में जाना अनिवार्य होता था, पर अब तकनीक ने सब बदल कर रख दिया है। अधिकतर अध्यापन अब ऑनलाइन होने लगा है। किताबों की जगह पीडीएफ फाईलों ने ले ली है।
पहले जब किताबों से पढ़ते थे तब कौन से लेखक की किताब अच्छी है, उसके लिए किसी न किसी पर निर्भर रहना पड़ता था, या फिर अध्यापक ही मार्गदर्शन करते थे। विद्यार्थियों के लिए शिक्षक से परे कोई जहाँ नहीं था। किताब पढ़ने के बाद ही उपयोगिता का पता चल पाता था। जिससे कई बार समय की कमी हो जाती थी, पर साथ ही ज्ञान बढ़ता था।
आजकल अध्ययन में फटाफट वाला दौर चल रहा है, जिसमें विद्यार्थियों को पता होता है कि उन्हें क्या पढ़ना है, कितना पढ़ना है, किसे पढ़ना है। विद्यार्थी उससे ज्यादा पढ़ना ही नहीं चाहते हैं। ऑनलाइन सब कुछ उपलब्ध है। हालांकि पढ़ने के लिये पहले से ज्यादा सुविधाएँ उपलब्ध हैं, एक ही विषय को अलग तरीकों से, ज्यादा माध्यमों से पढ़ा जा सकता है। ज्यादातर नोट्स बनाने की जरूरत नहीं, केवल बुकमार्क किया और कभी भी सुविधानुसार उपयोग कर लिया।
पहले अनुक्रमणिका से पृष्ठ संख्या देखकर पृष्ठ पलटाते हुए पहुँचते थे, अब तो पीडीएफ फाईलों में केवल क्लिक करके पहुँचा जा सकता है, पहले किसी भी शब्द या वाक्यों को खोजना दुरूह हो जाता था, पर अब पीडीएफ फाईलों में खोजने का कार्य बहुत सरल हो गया है।
पहले कक्षा में नियत समय पर जाकर विद्यार्थियों के आने के बाद ही पढ़ाई शुरू हुआ करती थी, पर अब सबकुछ वर्चुअल उपलब्ध है, पाठ्यक्रम ईलर्निंग के माध्यमों का उपयोग कर रहे हैं, वीडीयो ऑडियो का शिक्षा में महत्व बढ़ने लगा है, ईबुक्स का प्रचलन तेजी से बड़ा है। अब इन ईबुक्स, ऑडियो, वीडियो के लिये टेबलेट्स भी उपलब्ध हैं, भारत में कई संस्थान अब टेबलेट के जरिये पढ़ाई करवा रहे हैं। ऑनलाईन माध्यम से सबको फ़ायदा हुआ है, अध्यापकों और विद्यार्थियों के बीच तालमेल और अच्छा हुआ है।
भारत के अध्यापक कई देशों के लिये ऑनलाईन ट्यूशन भी पढ़ाते हैं, कई अध्यापक स्काईपी से पढ़ा रहे हैं, तो कई अध्यापक गूगल हैंग आऊट का भरपूर उपयोग कर रहे हैं, उनके अपने खुद के फ़ेसबुक पेजेस भी हैं जहाँ विद्यार्थी आपस में बात तो करते ही हैं, वहीं अपनी समस्याओं को आपस में सुलझाने की अच्छी कोशिशें देखी जा सकती हैं।
अभी कुछ दिन पहले एक संस्था के ट्विट्स भी देखे, जहाँ पर १४० शब्दों की सीमा में ही विषय के बारे में कहने की कोशिश की गई है या फ़िर उत्तर को कई ट्विट्स में दिया गया है, इस तरह से तकनीक का पढ़ाई में भरपूर उपयोग हो रहा है।
किसी भी विषय पर यूजर कंटेन्ट चाहिये तो स्क्रिब्ड हमेशा उपलब्ध है, जहाँ पर बहुत से अनछुए कंटेन्ट मिल जायेंगे, बहुत सी प्रेजेन्टेशन थोड़े फ़ेर बदल के बाद उपयोग में ली जाने वाली मिल जायेंगी। अगर आपको कोई किताब खरीदनी है तो आप गूगल बुक्स पर उसका प्रिव्यू देखकर अपना निर्णय ले सकते हैं।
आशा है कि हमारे भारत के संस्थान आधुनिक तकनीक का अच्छे से फ़ायदा उठायें और भारत की उन्नति में मुख्य भुमिका का निर्वाहन करें।
खाद्य सुरक्षा बिल / घोटाला / रेटिंग एजेन्सियाँ / जीडीपी / फ़ायदे
कोल स्कैम घोटाला २६ लाख करोड़ का हुआ (विश्लेषकों के अनुसार), सरकार (सीएजी) के अनुसार १.८६ लाख करोड़ नंबर सामने आया । नया खाद्य सुरक्षा बिल के लिये जो राशि सरकार ने उजागर की है वह है १.२५ लाख करोड़ रूपये जो कि सरकार के ऊपर भार है, मतलब यह देखिये कि भारत के ६१ करोड़ लोगों के लिये १.२५ करोड़ रूपये भारी पड़ रहे हैं, परंतु कोलगेट घोटाला जो कि इससे कहीं ज्यादा था तब सारी रेटिंग एजेंसियाँ चुप बैठी थीं, तब हमारा जीडीपी पर पड़ने वाला फ़र्क क्या इन रेटिंग एजेंसियों को समझ नहीं आ रहा था । जब जनता के लिये सरकार खर्च कर रही है तो रेटिंग एजेंसियों को लगने लगा कि इससे भारत में कुछ हद तक सुधार की गुंजाइश है तो एकदम से “रेटिंग गिर सकती है” का बयान आ गया।
हालांकि सरकार का कहना है कि जीडीपी १% तक कम हो सकती है परंतु यह सरकारी आँकड़ा है, अगर सही तरीके से इस आँकड़े को देखा जाये तो यह आँकड़ा ३% के भी ऊपर है, जो कि भारतीय अर्थव्यवस्था पर एक बहुत बड़ा बोझ होगा। क्या रेटिंग एजेन्सियों ने कभी भारत में हुए बड़े घोटालों से होने वाली हानि का आकलन हमारी अर्थव्यवस्था के लिये किया है, अगर नहीं तो वाकई इसके पीछे की वजह जानने वाली है। क्यों हमारे भारत के बड़े बड़े घोटालों का आर्थिक विश्लेषण कर रेटिंग कम नहीं की गई, क्या इसका कुछ हिस्सा इन रेटिंग एजेन्सियों की जेब में भी जाता है ?
जितने भी बड़े बड़े घोटाले हुए हैं, वे पिछले ९ वर्ष में प्रतिवर्ष ३% जीडीपी के घोटाले हुए हैं, अगर हमारा लक्ष्य ५.२% है तो वह आराम से ३% ज्यादा होता और हम ८.२% के जीडीपी की रफ़्तार से बढ़ रहे होते । रूपये की गिरते साख के चलते यही लक्ष्य ४.८% पर फ़िर से निर्धारित किया गया है। हालांकि जितने भी वित्तीय आँकड़े बताये जाते हैं वे सब एक बहुत बड़े आंकलन पर दिये जाते हैं, जिसकी तह में कोई नहीं जाना चाहता। क्या हमारी अर्थव्यवस्था की वाकई कोई बेलेन्स शीट है। कम से कम हमें पता तो चले कि इतना पैसा अगर टैक्स से सरकारी खजाने में आ रहा है तो वह खर्च किधर हो रहा है।
सरकारी खजाने के खर्च से जीडीपी पर सीधा असर पड़ता है। अब इस १.२५ लाख करोड़ के खाद्य बिल से कितना फ़ायदा गरीब लोगों को मिलता है, वह तो भविष्य ही बतायेगा, और कितना फ़ायदा इन गरीब लोगों के हाथों में अन्न पहुँचाने वालो को होगा यह भी भविष्य ही बतायेगा। वाकई अन्न गरीबों तक पहुँचता है या फ़िर एक नया खाद्य घोटाले की नींव सरकार ने रखी है।
परंतु अगर वाकई ईमानदारी से इस योजना को लागू किया जाता है और पूरा का पूरा पैसे का फ़ायदा गरीबों तक पहुँचता है, तो इसके फ़ायदे भी बहुत हैं, यह कुपोषण से लड़ने में मददगार होगा, सरकार पर स्वास्थ्य योजनाओं के मद में किये जाने वाले खर्च में आश्चर्यजनक रूप से कमी आयेगी। स्वास्थ्य सुविधाएँ और भी बेहतर हो सकेंगी, स्तर अच्छा होगा। निम्न स्तर के व्यक्ति भी अच्छे स्वास्थ्य के चलते बेहतर कार्य कर सकेंगे, बुनियादी स्तर की शिक्षा का फ़ायदा ले सकेंगे। अपनी मेहनत करके भारत के विकास में अतुलनीय योगदान दे सकेंगे।
रूपये की विनाशलीला देखने के लिये तैयार हैं ?
आजकल सब और चर्चा में डॉलर और रूपया है और जब से रूपया १०० रूपया पौंड को पार किया है तब से पौंड भी चर्चा में है। कल ही एक परिचित से बात हो रही थी, तो वे कहने लगे कि हमारे भारत पर तो ब्रिटिश का शासन था फ़िर हमारे ऊपर यह डॉलर क्यों हावी है, हमारे विनिमय तो पौंड में होना चाहिये। हमने उन्हें समझाया कि डॉलर को विश्व में मानक मुद्रा का दर्जा मिला हुआ है, डॉलर से लड़ने के लिये यूरोपीय देशों ने यूरो मुद्रा की शुरूआत की थी, नहीं तो उन्हें सब जगह डॉलर से उस देश की मुद्रा का विनिमय करना पड़ता था। अब उन्हें यूरो मुद्रा का विनिमय यूरोपीय देशों में नहीं करना पड़ता है।
डॉलर क्यों पटकनी दे रहा है रूपये को, यह समझने की कोशिश करें तो लुब्बा लुआब यह है कि हमने आयात ज्यादा किया और निर्यात कम किया, याने कि विदेशी मुद्रा जो कि मानक मुद्रा डॉलर है वह हमारे खजाने से ज्यादा गई और मानक मुद्रा डॉलर हमारे खजाने में कम आई, खैर इस बात का ज्यादा मायने भी नहीं है क्योंकि डॉलर हमारे रूपये के मुकाबले अभी ओवररेटेड है, अगर वाकई असली दाम इसका देखा जाये तो लगभग २० रूपये होना चाहिये। और डॉलर अभी तीन गुना ज्यादा दाम पर व्यापार कर रहा है।
USD Vs INR
हमारी जीडीपी याने कि सकल घरेलू उत्पाद लगातार कम होती जा रही है, हमने पिछले ९ वर्षों में मान लो कि रत्न आभूषण ५०० अरब डॉलर के आयात किये और लगभग ३५० करोड़ के रत्न आभूषण हमने निर्यात किये तो हमें पिछले ९ वर्षों में लगभग १५० करोड़ का विशुद्ध घाटा हुआ है। इसी प्रकार पेट्रोलियम और गैस में जमकर घाटा हुआ है, कुछ अंदरूनी कलह के कारण और कुछ व्यापारिक प्रतिष्ठानों की जिद के कारण । भारत विश्व में उत्पादित सोने और पेट्रोल के बहुत बड़े भाग का उपयोग करता है।
स्वतंत्रता के बाद से भारत का रूपया कभी राजनैतिक कारणों से तो कभी व्यापारिक कारणों से तो कभी आर्थिक नीतियों से मात खाता आया है, हमारे भारत के पास बेहतरीन काम करने वाले लोग हैं, बेहतरीन वैज्ञानिक हैं, पर उन्हें भारत के लिये उपयोग करने के लिये ना ही राजनैतिक इच्छाशक्ति है और ना ही आर्थिक जगत की इच्छाशक्ति है। अगर कुछ और बड़ी कंपनियाँ भारत की बाहर व्यापार करने लगें तो डॉलर की नदियों का मुख भारत की और होगा।
अधिकतर अंतर्राष्ट्रीय कंपनियाँ अपने लाभ का एक बड़ा हिस्सा मानक मुद्रा याने कि डॉलर में विनिमय कर भेज देती हैं। हम भारतवासियों को भी समझना होगा कि हमें घरेलू उत्पादों का ज्यादा उपयोग करना चाहिये, जिन उत्पादों से डॉलर बाहर जा रहा है, उन उत्पादों को उपयोग करने से बचना चाहिये।
मुद्रा गिरने से हमारे भारत के आर्थिक हालात बेहद खराब हो सकते हैं, इसका सीधा असर बैंक में बड़े बड़े ऋण पर पड़ेगा, बाहर पढ़ने वाले विद्यार्थियों पर पड़ेगा ये दो बड़े भार होंगे हमारी अर्थव्यवस्था पर, वैसे ही राष्ट्रीयकृत बैंकें ४ % से ज्यादा एन.पी.ए. याने कि जो ऋण डूब चुके हैं, से लड़ रही हैं, और अब यह व्यक्तिगत मुश्किलें बड़ाने वाला दौर होगा, अर्थव्यवस्था पर इसका सीधा असर कुछ ही दिनों में दिखना शुरू हो जायेगा, जब पेट्रोलियम पदार्थों के भाव आसमान छूने लगेंगे तो इसका सीधा असर हमारी दैनिक उपयोग की वस्तुओं पर पड़ते देर नहीं लगेगी। जब रूपया ३३% गिर चुका है तो अब पेट्रोलियम के भाव में ३३% की तेजी का अंदाजा लगा ही सकते हैं। सरकार भी कब तक राजनैतिक कारणों से रूपये के गिरने के कारण महँगाई से जनता को बचा पायेगी, और अगर यह भार जनता पर नहीं डाला गया तो भारत के खजाने पर सीधा असर पड़ेगा।
हमारा कैश इन्फ़्लो तो उतना ही रहने वाला है वह तो डॉलर के महँगे होने से या रूपये के गिरने से ज्यादा नहीं होने वाला है, तो अब भविष्य के संकेत ठीक नहीं है, जितनी बचत अभी तक कर लेते थे, अब वह बचत भी बहुत कम होने वाली है। अभी भी अगर इस पर नियंत्रण नहीं पाया गया तो रूपये की विनाशलीला देखने के लिये तैयार रहना होगा।