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व्हाइट लेबल एटीएम जीवित रहने के लिए संघर्ष कर रहे हैं (White Label ATMs for Rural Area facing difficulty)

    व्हाइट लेबल एटीएम के ऑपरेटर्स बैंकों से वसूली जाने वाली इंटरचेंज फीस बढ़ाना चाहते हैं  पहले हम देखते हैं कि व्हाइट लेबल एटीएम क्या होते हैं एक एटीएम डेस्कटॉप, जिसका आकार एक कॉफी बनाने वाली मशीन के जितना होता है जो कि किसी भी किराना स्टोर पर लगाया जा सकता है।  यह एटीएम बैटरी द्वारा चलता है और इस आविष्कार को व्हाइट लेबल एटीएम ऑपरेटर्स लगातार परिष्कृत कर रहे हैं। गाँव में “नो फ्रिल्स” खाते खोलने के बावजूद इन व्हाइट लेबल एटीएम ऑपरेटर्स को एटीएम की लागत निकालने में पसीने आ रहे हैं।

 

 
    ऑपरेटर्स इंटरचेंज फीस 15 रूपये से 18 रुपये हर ट्रांजेक्शन पर करना चाहते हैं। व्हाइट लेबल एटीएम मशीनें नान बैंकिंग कंपनियों द्वारा लगाई जा रही हैं। जब भी खाताधारक उनके एटीएम से ट्रांजेक्शन करता है तो नॉन बैंकिंग कंपनियाँ बैंकों से हर ट्रांजेक्शन के शुल्क लेते हैं। सन 2013 में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने  7 नॉन बैंकिंग कंपनियों को व्हाइट लेबल एटीएम लगाने के लाइसेंस दिये हैं –

 

1. बीटीआई पेमेंट

2. टाटा कंयूनिकेशंस पेमेंट सोलुशंस
3. प्रिज्म पेमेंट 
4. मुथूट फाइनेंस
5. श्री इंफ्रास्ट्रक्चर 
6. रिद्धि सिद्धि बुलियन 
7. वक्रांगी लिमिटेड 

 

 
    आने वाले समय में तीन और कंपनियों को लाइसेंस दिया जा सकता है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के अनुसार इन कंपनियों को केवल छोटे शहरों एवं गाँवों में ही एटीएम लगाने की अनुमति होगी और इसके बदले व्हाइट लेबल एटीएम ऑपरेटर 15 रुपये की इंटरचेंज फीस बैंक से प्राप्त करेंगे जो कि हर ट्रांजेक्शन के ऊपर बैंक को देनी होगी।

 

 
    अब सरकार द्वारा प्रधानमंत्री जनधन योजना में छोटे शहरों एवम गाँवों में खाते खोले जा रहे हैं जो कि व्हाइट लेबल एटीएम के लिये मध्यम अवधि में प्राणदायक सिद्ध होंगे। प्रधानमंत्री जनधन योजना में भविष्य में बहुत से खाते खुलेंगे लेकिन व्हाइट लेबल एटीएम ऑपरेटर्स के लिए कम मात्रा मेँ ट्रांजेक्शन एक सर दर्द ही साबित होगा क्योंकि कुछ जगहों पर तो जनसंख्या कुछ हजारों में भी नहीं होगी पर व्हाइट लेबल एटीएम नकद निकालने के लिए उन जगहों के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं जहाँ पर बैंकें उपलब्ध नहीं हैं । बिना एसी, बिना किराए, बिना सिक्योरिटी गार्ड और बिना सुरक्षा अधिकारी के कम से कम 2000 ट्रांजेक्शन एक महीने में होने पर ही ऑपरेटर्स के लिए फायदा हे अभी व्हाइट लेबल ऑपरेटर्स बिल पेमेंट ओर मोबाइल रिचार्ज सुविधाओं का लाभ नहीं दे रहे हैं हालांकि उनके स्क्रीन पर विज्ञापन देख रहे हें व्हाइट लेबल एटीएम ऑपरेटर्स नये एटीएम धीमी गति से लगा रहे हैं क्योंकि गाँव में नकद निकालने की निरंतरता अभी बहुत ज्यादा नहीं है व्हाइट लेबल एटीएम ऑपरेटर को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने लाइसेंस इसलिए दिया क्यूंकि बैंक उन जगहों पर अपने एटीएम नहीं लगाना चाहते हैं।

 

 
    रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने नॉन बैंकिंग कंपनियों को लाइसेंस इस शर्त पर दिया है कि वे तीन वर्ष में 9000 एटीएम लगायेंगे नॉन बैंकिंग कंपनियों को एटीएम तब भी लगाने होंगे जबकि वे देख रहे हैं की उन मशीनों पर जितने ट्रांजेक्शन होना चाहिए उतने ट्रांजेक्शन नहीं हो रहे हैं यह उनके लिए घाटे का सौदा सिद्ध होगा ।

 

 
    नॉन बैंकिंग कंपनियाँ अगर थोडा बहुत फायदा अभी बना सकती हैं तो केवल दो तरीके से पहला रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया यह प्रतिबंध हटा ले कि केवल स्पांसर बैंक एटीएम में कैश भरेगा दूसरा व्हाइट लेबल एटीएम को जितना भी नगद प्राप्त होगा वे उस नगद को वापस एटीएम में उपयोग कर पायेंगे। इस समय एक फुल लोडेड एटीएम पर लगभग 30 हजार रुपए महीना खर्च होता है जिसे की बीस हजार रुपए प्रति महिना तक तक लाया जा सकता है ।

इसे आशा नहीं निराशा होना चाहिए (Wrong Treatment of Typhoid)

    हमारे बेटेलाल बहुत दिनों से बीमार थे हमने कई डॉक्टरों को दिखाया जिसमे एक डॉक्टर के क्लीनिक का नाम आशा मल्टीस्पेशिलिटी था उन्होंने सीधे ही टाइफाइड बताकर स्लाईन चढ़ा दीं और हमें कहा कि आपके बेटेलाल को टाइफाइड है जब ब्लड कल्चर और बाकी के टेस्ट करवाए तो प्राथमिक रूप से पता चला की टाईफाई नेगेटिव है फिर हमने कहा गया कि आप मलेरिया की दवाई शुरु करिए हमने उन्हें मना कर दिया हमने कहा जब रिपोर्ट में कुछ आया ही नहीं है, मलेरिया की निगेटिव है तो फिर हम क्यों मलेरिया की दवाई शुरु करें हमने यह पहला डॉक्टर देखा जो कि खुद ही फोन करके हमें रिपोर्ट के बारे में बता रहा था
 
    पर डॉक्टर हमें कहते रहे की टाइफाइड के लक्षण हैं हमने सोचा डाक्टर अपने व्यवसाय में पूर्णत: निष्पक्ष होता है और भगवान समान होता है तो हमने कोई प्रश्न नहीं किया और उनका अंधानुरण किया लेकिन एक दिन शाम को चार बजे डॉक्टर का फोन आया कि ब्लड कल्चर की फाइनल रिपोर्ट आ गई है और उसमें टाइफाइड पॉजिटिव आया है तो आप एकदम अभी से बेटेलाल को अस्पताल में भर्ती करवा दीजिए क्यूंकि बहुत ही सीवियर इंफेक्शन आया है।
 
    हम घबराए हुए ऑफिस से घर आए और बीच में से रिपोर्ट कलेक्ट करते हुए आए उस रिपोर्ट को हमने आपने कुछ डॉक्टर मित्रों  को whatsapp किया और
उनसे पूछा कि क्या वाकई टाइफाइड पॉजिटिव है तो हमारे सारे मित्रोँ ने कहा ब्लड कल्चर की फाइनल रिपोर्ट में
 टाइफाइड का नामोनिशान नहीं है केवल वायरल इंफेक्शन हे तो कहीं किसी अस्पताल में भर्ती करवाने की जरुरत नहीं है बेटेलाल को जो खाने की इच्छा हो वो खिलाओ और उनका ध्यान रखो आशा मल्टीस्पेशलिटी क्लीनिक के बाद हमने एक तीसरे डॉक्टर को भी दिखाया जो कि हमें बहुत अच्छे लगे उन्होंने हमें कहा कि केवल एंटीबायोटिक्स चालू रखें बाकी सब ठीक है और इन रिपोर्ट को तो कचरे के डब्बे में डाल दें कुछ डॉक्टरों ने हमारे प्रोफेशन को बदनाम करके रखा हे उनमें से यह एक डॉक्टर है आगे से इस तरह के डॉक्टर से बच्चों को और अपने को दूर रखें
    अब हमारे बेटेलाल बिल्कुल ठीक हैं आज से फिर से  स्कूल जाना शुरु किया है अबहुत ही अच्छा महसूस कर रहे हैं उनके शरीर का तापमान भी साधारण है जो कि पिछले 12 दिन 103 रहा अब हमें भी थोड़ी राहत महसूस हुई है बस एक ही सवाल मन में है कि कोई भी प्रोफेशनल केवल पैसों के लिए क्या अपने ग्राहकों को धोखा दे सकता है और ऐसे लोगों की दुकान कितने दिन चला सकती है ।

भारत में गरीब और अमीरों के लिये कानून की सजा अलग अलग क्यों है ? (Why difference

    आज सुबह ही कहीं पढ़ रहा था कि न्यूजीलैंड के धुरंधर क्रिकेटर क्रिस कैनर्स जब से मैच फिक्सिंग के मामले में फँसे हैं तो उनकी आर्थिक हालात खराब है और उनका सामाजिक रूतबा भी अब सितारों वाला नहीं रहा, आजकल क्रिस ट्रक चलाकर और बस अड्डों को साफ करके अपनी आजीविका चला रहे हैं और वैसा ही मामला अगर भारत में देखा जाये तो दो सितारे खिलाड़ियों पर मैच फिक्सिंग के आरोप लगे थे, अब उनमें से एक सांसद हैं और दूसरे क्रिकेट मैचों की कमेंट्री करते हैं, उन्हें ना आर्थिक नुक्सान हुआ और न ही उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा मिट्टी में मिली, जबकि क्रिस और भारत के उन दो खिलाड़ियों का अपराध एक ही था ।
     अभी हाल ही में कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए सेना से कहा है कि आपने लगभग 50 अफसरों को आर्मी कोटे की पिस्तौल को बाजार में बेचने पर केवल रू. 500 का जुर्माना लगाया है, तो हम उस गरीब आदमी को क्या जबाब दें तो केवल रू. 10 चुराने के लिये जेल की हवा खाता है, और जुर्म साबित होने के बाद सजा भी भुगतता है, क्या सेना के अफसरों का जुर्म ज्यादा संगीन नहीं है, और सजा बहुत ही मामूली नहीं है ?
    दो बड़े जुर्म मुझे यह याद दिलाते हैं कि जुर्म राजनीति के प्रश्रय में ही होता है और दोनों का आपस में भाईचारा है, दोनों एक दुसरे के बिना नहीं रह सकते हैं, अगर इन दोनों में से कोई एक परेशान होता है तो वे जनता के सामने ही आपस में सहयोग करते हैं, और हमारे भारत की बेचारी जनता केवल इसलिये देखती रहती है क्योंकि उनके पास देखने के अलावा और कोई चारा नहीं है, कानून व्यवस्था को पालन कराने वाले लोग भी इन लोगों के साथ काम करते हुए देखे जा सकते हैं, चारों और कानून टूट रहे हैं, और इसमें सभी की मिलीभगत है ।
    पहला – उज्जैन के महाविद्यालय में म.प्र. पर शासन करने वाले राजनैतिक दल की छात्र इकाई के कुछ लोग एक प्रोफेसर की हत्या कर देते हैं, और बहुत हो हल्ला मचता है, वैसे तो प्रशासन कुछ करने में रूचि नहीं रख रहा था, पर जब राष्ट्रीय स्तर के मुख्य धारा के मीडिया हाऊसों ने चिल्लाना शुरू किया तो शासन ने कड़ाई बरतते हुए दिखावे का ढ़ोंग किया और सबको 2-3 वर्ष तक जेल के अंदर रखा और बाहर गवाहों ओर सबूतों को कमजोर किया जाता रहा और आखिरकार वे संदेह के लाभ में बरी हो गये, दीगर बात यह है कि इसी बीच तत्कालीन मुख्यमंत्री इन सबसे मिलने जेल गये, आज इनमें से कई सरकारी सहायता प्राप्त महकमों मे उच्च पदों पर आसीन हैं, जो कि उनकी छबि के अनुरूप तो कतई नहीं है।
     दूसरा – कुछ लड़के मिलकर एक पहलवान टाईप दादा की हत्या कर देते हैं, और सब फरार हो जाते हैं, सारे लड़के अभिजात्य वर्ग के परिवारों से हैं और उन सबके परिवार में उनके पिता एक राजनैतिक दल से सारोकार रखते हैं, पास के एक गाँव से दो बस भरकर इन लड़कों को और इनको परिवार को सबक सिखाने के लिये आते हैं और ये गाँव वाले इतने सभ्य कि पड़ौसियों को कुछ भी नहीं कहा, बस उन हत्यारे लड़कों को पीटने और मारने के उद्देश्य से आये थे, और उनके घर में घुसकर घर का सामान बाहर फेंक देते हैं, और पड़ोसियों के पूछने पर कहते हैं कि अगर हमने ये आज नहीं किया तो फिर इनका कोई कुछ बिगाड़ नहीं पायेगा, क्योंकि शासन, पुलिस सब इनकी जेब में है, ये लड़के ही आगे चलकर हमारे नेता बन जायेंगे, तो उन सारे लड़कों मे जनता के डर के मारे खुद को पुलिस के हवाले कर दिया, और वे सब 1-2 साल में बरी हो गये, सारे लड़के आज राजनेता हैं, कोई भी प्रशासन संबंधित कार्य करवाना हो, ये लोग चुटकी में काम करवाने वाले सफेदपोश दलाल हो गये हैं।
    यहाँ बस हारा तो केवल कानून, मैं जानता हूँ कि ऐसे कई किस्से हैं और मैं लिखना भी चाहता हूँ, पर लिखने का भी कोई फायदा नहीं, क्योंकि कानून अपने दायरे में रहकर काम करता है और ये लोग बिना दायरे के । कब ये कानून अमीरों और गरीबों के लिये एक होगा, इसके लिये राजनैतिक इच्छशक्ति की दरकार है, पर ये राजनेता ऐसा होने नहीं देंगे क्योंकि इनकी असली ताकत तो कानून तोड़ना और तोड़ने वालों से ही है।

माँ के संस्कार के एक छोटे संवाद का जब मैं साक्षी बना (Sanskar in Child by Mother)

    कल भी बेटेलाल की तबियत में कोई खास फर्कनहीं पड़ा, आज सातवां दिन है जब लगातार 103 बुखार आ रहा था, सारे टेस्ट नेगेटिव थे, पर डॉक्टर ने अपने अनुभव के आधार पर टायफाईड का ईलाज शुरू कर दिया, विडाल और ब्लड कल्चर टेस्ट कल करवाये हैं जिससे क्या बीमारी है इसकी पुष्टि हो जायेगी। हमने भी इस बारे में ज्यादा विरोध नहीं किया, क्योंकि जो जिस बात का विशेषज्ञ होता है, तो उसे उसका काम करने देना चाहिये, ये हमारा दृढ़ विश्वास कहिये या फिर बेबकूफाना हरकत, पर हम अपनी जगह कायम है, ये टेस्ट वगैरह की सुविधा तो अब उपलब्ध है, पहले के जमाने में भी तो टायफाईड से निपटा जाता था, केवल विश्वास के भरोसे ही तो मरीज डॉक्टर के पास जाते थे, और हम भी विश्वास के भरोसे ही जाते हैं, भले ही दुनिया में चीजें बदल गयी हैं पर जरूरी चीज विश्वास है, उस पर आज भी सब यकीन करते हैं, नहीं तो दुनिया में कोई भी कार्य न हों।

     जब डॉक्टर ने कहा कि अभी दो बोतल चढ़ा देते हैं और इंजेक्शन लगा देते हैं, तो हमने कहा जैसा आपको उचित लगे करिये बस हमारे बेटेलाल को ठीक कर दीजिये, हाथ से टेस्ट करने के लिये खून निकाला गया, तो बेटेलाल ने बहुत नाटक किये, कि सुईं लगेगी, दर्द होगा, पर उसे मनाया गया और बताया कि चींटी काटने जितना भी दर्द नहीं होगा, और बेटेलाल ने आराम से खून निकलवा लिया।

     डॉक्टर मैडम ने बहुत ही प्यार से बेटेलाल से बात की, तो हमारे बेटेलाल आ गये बिल्कुल लाड़ में और अच्छे से बात करने लगे, शायद यह भी डॉक्टरी शिक्षा का एक अहम हिस्सा होता होगा, जिसमें मरीज की मनोस्थिती को अपने अनुकूल बनाने का प्रशिक्षण दिया जाता होगा, जिससे मरीज उनसे खुलकर बतिया सके।
     डॉक्टर अब तक कम से कम 4-5 बार हमारे बेटेलाल से चॉकलेट खाने के बारे में पूछ चुकी थीं, और हमारे बेटेलाल उन्हें बारबार मना कर रहे थे, आखिरकार डॉक्टर ने चॉकलेट बेटेलाल को दे दी तो बेटेलाल ने चॉकलेट लौटाते हुए कहा कि मुझे नहीं चाहिये, पर डॉक्टर ने कहा कि कोई बात नहीं चॉकलेट अपने पास रख लो और बाद में खा लेना, पर फिर भी बेटेलाल ने कहा कि नहीं चाहिये, शायद इस बात का डॉक्टर को बुरा जरूर लगा होगा, मैं अपने ऊपर लेकर यह बात सोचता हूँ तो शायद मुझे भी लगता या फिर अगर इस मनोस्थिती से प्रशिक्षण मिलता या अनुभव के आधार पर बुरा भी नहीं लगता।
 
जब उस प्रोसीजर रूम से डॉक्टर बाहर चली गईं तो माँ बेटे के संवाद शुरू हुआ –
 
 माँ – बेटा ऐसे डॉक्टर को चॉकलेट के लिये मना क्यों किया ?
 बेटेलाल – मुझे नहीं खानी थी, इसलिये मैंने मना कर दिया !!
 माँ – पर, सोचो कि उन्हें कितना बुरा लगा होगा ?
 बेटेलाल – (कुछ सोचते हुए) नहीं लगा होगा
माँ – नहीं बेटे, ऐसे किसी को भी सीधे मना करोगे, तो उसे बुरा नहीं लगेगा ??
 बेटेलाल – पर मुझे अभी चॉकलेट नहीं खानी, तो मैं क्यों जबरदस्ती ले लूँ
 माँ – आप डॉक्टर से चॉकलेट ले लेते, उनको थैंक्स फॉर चॉकलेट कहते, और चॉकलेट अपने पास रख लेते तो उनको कितना अच्छा लगता, आपने सीधे मना किया तो उन्हें कितना बुरा लगा होगा, कोई भी आपको ऐसे सीधे मना करता है तो आपको भी तो बुरा लगता है, तो अब आगे से हमेशा ध्यान रखना |
 बेटेलाल – ठीक है मम्मी अब मैं ध्यान रखूँगा |
    मैं पीछे खड़े होकर माँ बेटे का संवाद सुन रहा था, सोच रहा था कि यही छोटे छोटे पाठ कहीं न कहीं जीवन में अहम भूमिका निभाते हैं, जिन्हें हम संस्कार कहते हैं, आज मैं भी सुईं के साथ जाते हुए संस्कार को देख रहा था।

झगड़ा न करना डर नहीं, समझदारी है (Don’t Fight, its understanding not fear)

    कल ऑफिस जाते समय एक लाल बत्ती पर हम रुके हुए थे, बगल में थोड़ी जगह खाली थी, और उसके बाद फिर एक कार खड़ी हुई थी, हम आराम से सुबह सुबह के उल्लासित जीवन का दर्शन कर रहे थे, कई सारे लोग आज भी सुबह पूजा करते हैं और उसके बाद तिलक लगाकर ही घर से निकलते हैं, लाल, पीला, सफेद रंग के तिलक अमूमन देखने को मिलते हैं, किसी के माथे पर गोल तो किसी के माथे पर लंबा टीका लगा हुआ दिखता है, तिलक या टीका कौन सी ऊँगली से लगाया जाये, इसके ऊपर कुछ दिनों पहले पढ़ रहा था, तो उसमें हर उँगली का अलग अलग महत्व बताया गया था, जैसे कि मध्यमा से तिलक लगाने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं, और अनामिका से तिलक लगाने पर शत्रुओं का नाश होता है, शायद यह ज्ञान हमारे पूर्वजों के पास रहा हो, परंतु अब लोग इन सब विषयों में रूचि नहीं लेते हैं तो इस तरह से यह ज्ञान भी लुप्त होता जायेगा।
महिला चालक
 
    सुबह ऑफिस जाते समय कुछ लोग हर्षित प्रफुल्लित रहते हैं, और कुछ लोग तनाव में, तनाव भले ही फिर कल के अधूरे काम को हो या फिर ऑफिस देरी से जाने का, पर कुछ लोग तनाव में ही जीने लगते हैं, लाल बत्ती पर भी ऐसे लोगों को हार्न बजाते हुए देखा जा सकता है, हार्न बजाने की स्टाईल भी अलग अलग होती हैं, उससे भी कई बार उनके तनाव का स्तर पता चलता है, जो हार्न को देर तक एक साथ दबाकर रखे और फिर बार बार हार्न को दबाकर छोड़े निश्चित ही उसके तनाव का स्तर बहुत ही ज्यादा है, और मैं समझता हूँ ऐसे तनावग्रस्त व्यक्ति को ऑफिस की बजाय घर वापिस चला जाना चाहिये।
    
    
    कुछ लोग हमेशा ही मोबाईल पर बात करते हुए दिखते हैं, पता नहीं कितनी बातें करते हैं इनकी बातें ही कभी खत्म नहीं होतीं हैं, कार चलाते वक्त भी एक हाथ में स्टेरिंग रहेगा और एक हाथ में मोबाईल और जब गियर बदलना होता है तो मोबाईल को कान और कंधों के बीच दबा लेते हैं, ऐसा लगता है जैसे कि उनकी गर्दन को किसी ने जोर से दबाकर कंधे से लगा दिया हो, मैंने अधिकतर ही कार चलाते हुए स्त्रियों को मोबाईल का उपयोग करते हुए देखा है, और कार की तेज रफ्तार को पाने के लिये बेचारे एक्सीलेटर को बेरहमी से कुचलते हुए भी…
लाल बत्ती पर सोचता हुआ व्यक्ति
    ओह बात जहाँ से शुरू हुई वह तो पूरी हुई ही नहीं, उस खाली जगह में एक मैडम जी अपनी बिल्कुल नई चमचमाती हुई गाड़ी घुसाने की असफल सी कोशिश में लगी हुईं थीं, उनके स्टेरिंग को सँभालने के तरीके से ही पता चल रहा था कि अभी नई नई चालक हैं और कुछ भी कर सकती हैं, हम अपने बैकमिरर से उनकी नाकाम कोशिश देख ही रहे थे, हम उन्हें चाहकर भी जगह नहीं दे सकते थे क्योंकि हमारी गाड़ी भी फँसी हुई खड़ी थी और कोई आगे करने की गुँजाईश भी नहीं थी, तभी बगल से आवाज आई तो देखा कि उन मैडम ने हमारी खड़ी कार में आगे आने के चक्कर में खरोंचे मार दी हैं, जो कि हमको साईज मिरर से दिख रहा था, और वो मैडम अब अपनी चालक सीट पर से उचक उचक कर हमारी कार पर आई खरोंच देखने की कोशिश कर रही थीं, हम अपने दिमाग को शांत करने की पूरी कोशिश कर रहे थे, गुस्सा तो बहुत जोर का आ रहा था परंतु सोचा कि गुस्सा करके हासिल क्या होगा, और हम अपनी सीट बेल्ट को हथकढ़ी मानकर जकड़कर बैठ गये।
    
    दरअसल हमारे एक पारिवारिक मित्र हैं, जो कि आगरा में रहते हैं और वे डॉक्टर दंपत्ति हैं, अभी हाल ही में जब हम आगरा गये थे तब उनसे मिलने जाना हुआ, अपने व्यस्त जीवन से कुछ समय उन्होंने हमारे लिये निकाला, और खूब बातें हुईं, तब उनकी यह नसीहत हमें बहुत अच्छी लगी कि कार में कोई टक्कर मार जाये तो भी चुपचाप बैठे रहो, क्योंकि हमें पता नहीं कि दूसरा किस मूड में हो और क्या आदमी है, पता चला कि मारपीट में अपना ही नुक्सान हो गया, चलो सामने वाले से कोई मारपीट न हो, झगडा ही हो गया तो अपने दस मिनिट भी खराब हुए और पता चला कि अपना रक्तचाप भी बढ़ गया तो वही अपना नुक्सान हो गया, यह डर नहीं समझदारी है ।

हेल्थी हार्ट पैकेज और अस्पताल से आई बीमारी (Healthy Heart Package and got Fever)

शनिवार को ह्रदय के लिये हेल्थी हार्ट पैकेज के लिये हमने 2 सप्ताह पहले से ही अस्पताल से बुकिंग करवा रखी थी, 12-14 घंटे खाली पेट आने के लिये कहा गया था और जिस दिन न खाना हो उसी दिन खूब खाने पीने की इच्छा होती है। इस पैकेज में लिपिड प्रोफाइल, ईसीजी, टीएमटी एवं डॉक्टर का परामर्श शामिल था। यह पैकेज गुङगाँव शहर के तथाकथित अच्छे अस्पतालों में शुमार पारस अस्पताल मे था, इसके पहले यही चैकअप 1 वर्ष पहले बैंगलोर में वहाँ के जानेमाने क्लीनिक वीटालाईफ में करवाया था, तो वीटालाईफ ने पूरा चैकअप करनें में लगभग 1 घंटे से भी कम समय लिया थी, हम यहाँ भी यही सोच कर गये थे कि फटाफट चैकअप हो जायेगा, तो अन्य काम निपटा लेंगे।
सुबह 8.45 पर हम पारस अस्पताल में घुसे, अस्पताल की भव्यता देखते हुए लगा कि हमें यहाँ अच्छी सुविधाएँ मिलेंगी, हम जब स्वागतकक्ष पर पहुँचे तो बिना अभिवादन ही, हमें बताया गया कि आपका आज का पैकेज के लिये कोई बुकिंग नहीं है, (अहसान जताते हुए) पर फिर भी हम आपका पैकेज ले रहे हैं, और हमें कहा गया कि आप बेसमेंट वाले तल पर चले जाइये वहाँ केवल जाँच वालों के लिये स्वागत कक्ष है, हम दूसरे स्वागत कक्ष में आये तो उन्होंने एक फॉर्म भरने को दिया गया कि यह रजिस्ट्रेशन फॉर्म है, इस वक्त समय हुआ था लगभग सुबह 9 बजे, और फॉर्म भरने के बाद हमें बैठने के लिये कह दिया गया, हम बैठ गये, लगभग 9.30 बजे एस.एम.एस. आया कि हम अब पारस अस्पताल के रजिस्टर्ड पैशेन्ट (कस्टमर) हो गये हैं। लगभग 10 बजे हमें लिपिड प्रोफाईल के लिय रक्त निकालने के लिये बुलाया गया, हम कहे भई ये दिल्ली है, अभी एक घंटे में तो केवल रक्त की ही जाँच हुई है, अब ईसीजी और टीएमटी में पता नहीं कितना समय ये लोग लगायेंगे, हमें कहा गया कि अब आपके ईसीजी और टीएमटी टेस्ट ऊपर वाले तल पर होंगे।

हम चले ऊपर वाले तल पर, वहाँ पर हर तरफ अफरा तफरी का माहौल था, हम वहाँ के स्वागत कक्ष पर जाकर बोले कि ईसीजी और टीएमटी जाँच कहाँ होंगी तो हम बतायी हुई दिशा के कमरे की और बढ़ चले, वहाँ नर्स ने हमें बैठाकर रक्तचाप जाँचा और रजिस्टर में हमारा नंबर चढ़ाती हुई बोलीं कि आप बैठ जाईये और डॉक्टर से पहले परामर्श कर लीजिये, अब हम कल शाम के भूखे, भूखे पेट आदमी का दिमाग बहुत जल्दी घूमता है, शायद यह बात अस्पताल वालों को पता नहीं, 15 मिनिट बाद ही हम धड़धड़ाते हुए टीएमटी वाले रूम में घुस गये और डॉक्टर से पूछा कि कितना समय लगेगा, तो उन्होंने इत्मिनान से हमारा कागज देखते हुए कहा कि कम से कम 2 घंटे और लगेंगे, और तीन घंटे से कुछ खाया हुआ नहीं होना चाहिये, हमने कहा अब तो 11.30 हो चुके हैं और हमने कल शाम 7 बजे से कुछ नहीं खाया है, तो डॉक्टर बोला कि हम कुछ नहीं कर सकते इतना समय तो लगेगा ही, हमने कहा कि हमें बहुत जोर से भूख लगी है हम तो खाना खाने जा रहे हैं, तो वे बोले कि ठीक है फिर आप 3 बजे दोपहर को आ जाईये, हमने कहा कि वो सब तो ठीक है, यह बताईये कि जब हम सुबह से आये हैं तो पहला नंबर तो हमारा आना चाहिये, आप लोग पैसे तो फाईव स्टार वाले लेते हो और सुविधओं के नाम पर सब गोल, हमने उन्हें बताया कि पिछले वर्ष ही हमने बैंगलोर में यही चैकअप करवाया था पर उनके यहाँ सारा सिस्टम ऑटोमैटिक था, और केवल एक घंटे में सारे चैकअप हो चुके थे, तो बोला कि इसके लिये यह सही जगह नहीं, आप प्रशासन विभाग के पास जाकर बाद करिये।
खैर हम घर के लिये निकले तो एक और आश्चर्य था कि गाड़ी की पार्किंग के लिये 20 रू. शुल्क वसूला गया, पार्किंग शुल्क अस्पताल में यह हमने पहली बार देखा, पता नहीं इस बदलती दुनिया में और क्या क्या देखना बाकी रह गया है, सुविधाओं के नाम पर शुल्क और सुविधाएँ गायब । घर गये जमकर बिरयानी खाई और आराम किया, फिर से 3 बजे अस्पताल पहुँचे तो देखा कि दरवाजे के बीचों बीच जवान डॉक्टर लोग गप्पें हाँक रहे हैं, और आने वाले लोगों को परेशानी हो रही है, हमने तुरंत वहाँ खड़े डॉक्टरों से बोला कि आपको हँसी ठट्ठा करना ही है तो साईड में होकर करिये, यह आपका कॉलिज नहीं है, कि कहीं पर भी खड़े होकर हँसी ठट्ठा करने लग गये, वहीं पास में प्रशासनिक विभाग का कोई बंदा खड़ा था, वह हमें घूर कर देख रहा था, वहीं वे सारे डॉक्टर नजरों को नीचे झुकाकर तत्परता से गायब हो गये।

हमने अपनी बची हुई जाँच ईसीजी और टीएमटी करवाया, ईसीजी के समय पर्दा खिंचा रहने का फायदा भी उठाया और मोबाईल से एक सेल्फी ले लिया, घर आते समय ही दिमाग का सूचना तंत्र शरीर गिरा होने की सूचना दे रहा था, लगा कि सुबह से कुछ ज्यादी ही थकान हो गयी होगी, इसलिये या फिर मर्दानी फिल्म देखकर सर चढ़ गया है, घऱ आकर शाम को हॉलीवुड वाली अवतार आ रही थी, तब जाकर मूड ठीक हुआ, पर हमारे थर्मामीटर ने बताया कि तापमान 99.8 है जो कि सामान्य से ज्यादा था, तो यह हैल्थी हार्ट पैकेज का उपहार था, क्योंकि अस्पताल में हाइजीनिक वातावरण नहीं था।

अब 5 दिन हो गये हैं अभी भी बुखार है, और भी जाँचें करवा ली हैं, सब सामान्य है, केवल वाइरल है, बस दवाई लेकर ऑफिस जा रहे हैं।

रामायण के सीताजी स्वयंवर के कुछ प्रसंग (Some context of Sitaji Swyvamvar from Ramayana)

    आज सुबह रामायण के कुछ प्रसंग सुन रहे थे, बहुत सी बातें अच्छी लगीं और शक भी होता कि वाकई में रामायण में ऐसा लिखा हुआ है या ये अपने मन से ही किसी चौपाई का अर्थ कुछ और बताकर जनता को आकर्षित कर रहे हैं, अगर हमें ये जानना है कि सब बातें सत्य है या नहीं तो उसके लिये रामायण पाठ करना होगा, और उसकी हर गूढ़ बात को समझना होगा, यहाँ जानने से तात्पर्य रामायण सुनाने वाले पर प्रश्न चिह्न लगाना नहीं है बल्कि श्रद्धालुओं को सहज ही सारी बातें स्वीकार करने से है, क्योंकि श्रद्धालुओं को उस ग्रंथ का ज्ञान नहीं है।
 
जो बातें अच्छी लगीं, उसके बारे में –
 
    जब रामजी अपने भाईयों के साथ सीताजी के स्वयंवर में पहुँचे, तो जैसा कि सर्वविदित है कि सीताजी के स्वयंवर में भगवान परशुराम के धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ानी थी, जब जग के सारे राजा धनुष ही नहीं उठा पाये, तो प्रत्यंचा की तो बात दूर की रही, तब रामजी को उनके गूरूजी ने कहा- जाओ राम इस धनुष को उठाओ और तोड़ दो, इस धनुष ने कई सरों को झुका दिया है, इसलिये इस धनुष का टूटना जरूरी है, और भगवान राम ने धनुष को खिलौने की तरह तोड़ दिया।

    धनुष टूटते ही बहुत हो हल्ला हुआ, और स्वयंवर की शर्त के मुताबिक सीताजी को रामजी को वरमाला पहनानी थी, यहाँ पर एक और बात अच्छी लगी कि पहले के जमाने में केवल वरमाला हुआ करती थी और केवल स्त्री ही पुरूष को माला पहनाकर वर लिया करती थी, उस समय आज की तरह वधुमाला को प्रचलन नहीं था, कि वधु भी वर को माला पहनाये, पहले जब स्त्री माला पुरूष के गले में पहनाती थी तो उसे वरमाला या जयमाला कहा जाता था, कई चीजें कालांतर में हमारी सांस्कृतिक व्यवस्था में जुड़ती गईं।

जब सीताजी रामजी की तरफ जयमाला लेकर बढ़ रही थीं तब सीताजी ने मन ही मन प्रार्थना की – प्रभु, कोई ऐसा प्रसंग उपस्थित करें कि मैं आपको जयमाला पहना पाऊँ, तभी सीताजी ने लक्ष्मण की तरफ देखा और आँखों में ही प्रार्थना की कि रामजी लंबे हैं तो कुछ ऐसा उपक्रम करें कि मैं आसानी से रामजी को जयमाला पहना दूँ, लक्ष्मणजी ने आँखों में ही सीता माँ की आज्ञा स्वीकार कर ली और जब सीताजी रामजी के करीब आईं, तभी लक्ष्मणजी रामजी के चरणों में गिर पढ़े, जैसे ही रामजी लक्ष्मणजी को उठाने के लिये झुके, उसी समय सीताजी ने रामजी को जयमाला पहनाकर वरण कर लिया, रामजी ने लक्ष्मणजी से पूछा – लक्ष्मण चरण वंदन का यह भी कोई समय है, तो लक्ष्मणजी का जबाब था – प्रभू, बड़े भैया के चरण वंदन के लिये कोई समय तो निर्धारित नहीं है, चरण वंदना तो दिन में कभी भी और कितनी भी बार की जा सकती है, बात सही है और हमें भी अपने जीवन में यह अपनाना चाहिये।

मित्र के लिये बैंक से ऋण (Bank loan for friend)

    मित्र के साथ मिलकर बैंक से ऋण (Loan from bank with friend) लेना या मित्र के लिये बैंक से ऋण लेना (Loan from bank for friend), दोनों ही किसी मुसीबत के लिये निमंत्रण हो सकते हैं। थोड़े समय पहले हमारे एक सहकर्मी ने हमसे इस बाबत बात की, और कहा कि उन्होंने बैंक से १० वर्ष पहले प्रधानमंत्री रोजगार योजना (Pradhamantri Rojgar Yojna) में एक लाख रूपये का ऋण लिया था, ऋण पूरा मित्र “अजय” के नाम पर था, परंतु पीछे वास्तविकता में उनके मित्र “बिजय” उस व्यापार जिसके लिये ऋण लिया गया था, बराबर के हिस्सेदार थे, केवल बैंक में “अजय” के नाम से ऋण लिया गया, जबकि “बिजय” का नाम कहीं भी नहीं था। दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे, दोनों को एक दूसरे पर बहुत यकीन था।
    दोनों अपना अपना काम करने लगे, व्यापार थोड़ा चल निकला,  फ़िर “अजय” को ठीकठाक सी नौकरी मिल गई, तो “अजय” ने “बिजय” को व्यापार की बागडोर थमाई और नौकरी में चले गये। जब तक “अजय” व्यापार में साथ था तब तक ऋण का मासिक भुगतान समय पर बैंक को होता रहा, परंतु जैसे ही “अजय” नौकरी के लिये गया, “बिजय” ने बैंक की ऋण अदायगी बंद कर दी। बैंक के रिकार्ड में उनका ऋण खाता निष्क्रिय की श्रेणी में आकर एन.पी.ए. (Non Performing Asset) घोषित कर दिया गया।
    पहले बैंक ने “अजय” से संपर्क किया और प्रधानमंत्री रोजगार योजना के अंतर्गत लिया गया ऋण चुकाने की बात कही, तो “अजय” ने बैंक को कहा कि मैंने तो कब से व्यापार से नाता तोड़ लिया है और अब मेरा मित्र “बिजय” उस व्यापार को चला रहा है, तो बैंक ने कहा “ऋण तो आपके नाम से है, “बिजय” के नाम से नहीं है, आप हमारा पैसा हमें लौटा दीजिये” ।
    “अजय” परेशान हो गया कि आखिर “बिजय” को यह क्या हो गया जो उसने हमारे अपने व्यापार को जमाने लिये गये ऋण को नहीं चुकाया, जबकि व्यापार अच्छा चल रहा है, जब उसने “बिजय” से बात करने की कोशिश की, पहले तो “बिजय” फ़ोन पर ही नहीं आया, चूँकि “अजय” की नौकरी घुमंतु वाली थी, कभी इस शहर कभी उस शहर। छुट्टियों में “अजय” घर गया और “बिजय” से मिला तो “बिजय” बड़ी ही रूखाई से पेशा आया और कहा ऐसा है कि ऋण तुमने लिया तो मैं क्यों भरूँ, ऋण तो तुमको ही भरना पड़ेगा, मेरे नाम पर ऋण थोड़े ही है, “अजय” यह सुनकर रूआंसा हो गया।
    “अजय” ने “बिजय” से बात करके समस्या का हल निकालने की पूरी कोशिश करता रहा, “बिजय” को लग रहा था कि ऋण चुकाना केवल “अजय” की जिम्मेदारी है, परंतु जब “अजय” ने समझाया कि हमने साझेदारी में व्यापार शुरू किया था, तो तुम भी तो ऋण के साझेदार हुए, “बिजय” को बात समझ आ गई और वह आधा ॠण भरने को तैयार हो गया, अब “अजय” फ़िर परेशान था, क्योंकि उसने तो व्यापार में से एक पैसा भी नहीं लिया था, फ़िर भी उसे आधा ऋण चुकाने के लिये बाध्य होना पड़ रहा है, “अजय” को पता था कि “बिजय” वह आधा ऋण के पैसे निकालने में ही उसके पसीने छुड़ा देगा। और बैंक “अजय” के पीछे पड़ी हुई थी।
    यही वह समय था, जब “अजय” मुझसे मिला और इस बाबत अपनी राय माँगी, हमने कहा “बिजय” को ऋण देने के लिये राजी तो तुमको ही करना पड़ेगा, नहीं तो आधा ऋण फ़ालतू में तुमको अपनी जेब से भरना पड़ेगा, अब “अजय” ने फ़िर से “बिजय” से बात की, व्यापार को छोड़कर मैं तो नौकरी में चला गया था, तो पूरा ऋण तुम्हें ही चुकाना होगा, अब इस बात पर “बिजय” उखड़ गया। “बिजय” बोला एक तो ऋण तुम्हारे नाम पर है, फ़िर भी मैं आधा ऋण चुकाने को तैयार हो गया हूँ और अब तुम पूरा का पूरा मेरे ऊपर डालना चाहते हो।
    खैर “अजय” ने हमसे कहा कि मैं बात को ज्यादा तूल नहीं देना चाहता हूँ, मैं आधी रकम जो कि लगभग पैंतीस हजार होती है मैं बैंक को चुका देता हूँ और बाकी की मेरा मित्र “बिजय” चुका देगा, “अजय” ने बैंक से सैटलमेंट किया कि हम केवल मूल ऋण चुका पायेंगे, ब्याज की राशि माफ़ की जाये, तो बैंक इस बात के लिये राजी हो गया और कुल सत्तर हजार के ऋण में से आधी रकम “अजय” ने बैंक को चुका दी और बाकी की रकम “बिजय” को चुकानी थी, बिजय ने अजय को पोस्ट डेटेड चेक देकर कहा कि इन तारीखों में मेरे भुगतान आने हैं, तुम बैंक में लगा देना। “बिजय” ने दस हजार के तीन चेक दिये थे, और तीनों के तीनों बाऊँस हो गये, और इसी बीच “अजय” को “बिजय” ने बाकी के पांच हजार रूपये नकद में दे दिये।
    बैंक वालों ने “अजय” का पीछा नहीं छोड़ा और कहा कि हमारा पूरा पैसा चाहिये तुम्हारी साझेदारी तुम्ही जानो, हमारे लिये तो कर्जदार तुम हो और तुम हमारा पूरा पूरा ऋण चुकाओ, नहीं तो हम तुम्हारा केस अब वसूली के लिये कलेक्टर कार्यालय को भेज रहे हैं। वहाँ से कुर्की के आदेश भी निकल सकते हैं। “अजय” घबरा गया, उसने फ़िर से “बिजय” से बात की और चेक बाऊँस होने के कारण नकद रूपये देने की बात कहीं, अब बिजय अजय को थोड़े थोड़े करके नकद रूपये देकर ऋण चुका रहा है।
    इस बात से एक अनुभव मिलता है कि कभी भी अगर साझे में कोई भी काम करो तो ऋण भी साझेदारी में ही होना चाहिये, फ़िर चाहे कोई कितना भी अच्छा दोस्त हो या रिश्तेदार हो, ऐसे कार्यों में सहानुभूति से कार्य नहीं लेना चाहिये और व्यवहारिकता से सोचना चाहिये, पैसा निकालने में जान निकल जाती है और कानून डंडा लेकर आपके पीछे पड़ा रहता है।
    बेहतर है कि या तो साझे में ॠण ना लें या लें तो उसके बराबर दस्तावेज हों, वैसे ही कभी मित्र या रिश्तेदार की मदद करने के लिये कोई ऋण ना लें, अन्यथा परेशानी का सामना आपको ही करना पड़ेगा। एक बार मना करके बुराई मिलती है तो इतनी सारी आने वाली परेशानियों से वह बुराई बेहतर है।

नामांकन आपके परिवार के लिये बहुत जरूरी है.. (Nomination is very important for your family)

    अपने निवेश और संपत्ति के लिये उत्तराधिकारी की घोषणा आपके जीवन में महत्वपूर्ण कार्यों में से एक होता है। इसके बारे में कुछ ही लोगों, निवेशकों को पता है, नामांकन के ना होने (उत्तराधिकारी घोषित ना होने की दशा में) किन किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है यह भी बहुत कम लोगों को पता है। यहाँ पर कुछ अच्छी बातें उन निवेशकों के लिये जो अपने निवेशों के लिये उत्तराधिकारी घोषित कर अपनी और अपने प्यारों की जिंदगी को बेहतर बनाना चाहते हैं।
    जिंदगी अनिश्चितताओं पर चलती है और इसी कारण नामांकन आपके अपने परिवार के लिये आराम है, जिससे ऐसी किसी भी परिस्थिती के बाद परिवार आपके निवेशों को आराम से पा सके, जो निवेश आपने अपने प्यारों दुलारों के लिये किया है, वह निवेश आराम से उन तक पहुँच भी सके। नामांकन उनके लिये केवल अच्छा ही नहीं बहुत अच्छा होगा, जब उनको आपके निवेश की अधिक आवश्यकता होगी, या खर्चे के लिये पैसों की या फ़िर आपके प्यारों के लिये उस धन / रकम को अपने नाम पर करना होगा, तो नामांकन होने की दशा में उनको बहुत ही कम यानि कि ना के बराबर औपचारिकता निभाना होगी। नामांकन ना होने की दशा में आपके निवेशों तक पहुँचने के लिये आपके अपने परिवार को पूरी कानूनी कार्यवाहियों से गुजरना पड़ेगा। जो कि उनके लिये सिरदर्द तो होगा ही, साथ में उतना ही परेशानी वाला रास्ता भी होगा। और जब आपके परिवार को धन की आवश्यकता होगी तो वे धन होने की स्थिती में भी इसका उपयोग नहीं कर पायेंगे।
nomination    नामांकन बहुत आसान प्रक्रिया है, नामांकन प्रपत्र लगभग हर दस्तावेज के अंत में होता है, जिसमें निवेशक को अपने उत्तराधिकारी की जानकारी भरना होती है जैसे कि नाम, रिश्ता, पता, फ़ोन नंबर, कई जगह एक गवाह की जरूरत होती है, पर आजकल अधिकतर आप सीधे नामांकन कर सकते हैं, एक प्रतिलिपी आप अपने पास रख सकते हैं या फ़िर अपनी निवेश डायरी में नोट कर लें। जिन लोगों ने यह सुविधा नहीं ली है, वे लिखित में एक पत्र देकर नामांकन करवा सकते हैं। नामांकन करना बहुत ही सरल कार्य है।
    याद रखें, आपके लिये नामांकन करने का प्रावधान हमेशा खुला हुआ है, आप कभी भी नामांकन कर सकते हैं, आप विशेषकर इन निवेशों में जरूर नामांकन का उपयोग करें –
१. बैंक में बचत खाता / सावधि जमा खाता ( Saving Account/ Fixed Deposit)
२. बीमा  (Insurance Policy)
३. शेयर एवं म्यूचयल फ़ंड (Shares and Mutual Funds)
४. अन्य जमा जैसे कंपनी डिपोजिट, पीपीएफ़., पीएफ़ (Company Fixed Deposit, Public Provident Fund, Provident Fund)
    वैसे तो साधारणतया: खाता खोलते समय नामांकन की औपचारिकताunomination को पूरा करवा लिया जाता है, परंतु अगर खाता खोलते समय नामांकन नहीं कर पाये हों तो नामांकन बाद में कभी भी किया जा सकता है। आप बाद में नामांकन को बदल भी सकते हैं और हटा भी सकते हैं। और यह केवल वही निवेशक कर सकता है, जिसने नामांकन किया था ।
    अगर आप नामांकन में एक से ज्यादा उत्तराधिकारी बनाना चाहते हैं तो यह भी संभव है, केवल उन उत्तराधिकारियों के सामने उनके हिस्से के प्रतिशत को बता दीजिये।
नाबालिग, ट्रस्ट, सरकार, स्थानीय अधिकारी, गैर निवासियों को भी उत्तराधिकारी बनाया जा सकता है।
उत्तराधिकारियों को धन प्राप्त करने के लिये क्या करना होगा ?
१. सभी बैंकों एवं संस्थाओं में मृत्यु प्रमाण पत्र की एक मूल और एक जेरॉक्स दें ।
२. केवायसी के लिये सही उत्तराधिकारी के प्रमाण पत्र प्रस्तुत करें।
३. अगर निवेश की रकम एक लाख रूपये से ज्यादा है तो संस्था इन्डिमिनिटी बांड की मांग कर सकती हैं।
४. नामांकन ना होने की दशा में संस्थाओं द्वारा वसीयत मांगी जा सकती है, उत्तराधिकार प्रमाणपत्र, अन्य वारिसों से अनापत्ति प्रमाण पत्र की जरूरत होगी।

PMP, CBAP, ISTQB कौन सा सर्टिफ़िकेशन करना चाहिये ।

    आजकल बहुत सारे प्रोफ़ेशनल सर्टिफ़िकेशन बाजार में उपलब्ध हैं, जैसे कि प्रोजेक्ट मैनेजर के लिये PMP, बिजनेस अनालिस्ट के लिये CBAP, टेस्टिंग वालों के लिये ISTQB की बाजार में बहुत ज्यादा डिमांड है। सारे लोगों का प्रोफ़ाईल बिल्कुल यही नहीं होता है, कुछ ना कुछ अलग होता है और वे इसी सोच विचार में रहते हैं कि कौन सा सर्टिफ़िकेशन करें, और सही तरीके से बाजार में कोई बताने वाला भी नहीं होता है।

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    अब PMP को ही लें, यह सर्टिफ़िकेशन प्रोजेक्ट मैनेजर के लिये जरूर है, परंतु उतना ही मतलब का बिजनेस अनालिस्ट के लिये भी है, कई जगह बिजनेस अनालिस्ट प्रोजेक्ट मैनेजर का काम भी करता है और प्रोजेक्ट प्लॉनिंग करता है। PMP सर्टिफ़िकेशन केवल IT प्रोजेक्ट मैनेजर के लिये ही नहीं होता है, यह हरेक जगह, हर प्रोजेक्ट मैनेजर के लिये होता है, फ़िर भले ही वह मैन्यूफ़ेक्चरिंग इंडस्ट्री हो या रियल इस्टेट इंडस्ट्री या फ़िर ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री।

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    PMP के बारे मे सोचा जाता है कि यह IT प्रोजेक्ट मैनेजर्स के लिये सर्टिफ़िकेशन बनाया गया है, परंतु यह सर्टिफ़िकेशन दरअसल प्रोजेक्ट मैनेजर्स को प्रोसेस, बजट और रिसोर्स मैनेजमेंट इत्यादि सिखाता है, किस तरह से प्रोजेक्ट को सही दिशा में ले जाया जाये, क्या चीजें जरूरी हैं, अगर सही तरह से रिपोर्टिंग होगी तो रिस्क उतनी ही कम होगी।

    वैसे ही अन्य सर्टिफ़िकेशन हैं, CBAP बिजनेस अनालिस्ट के फ़ंक्शन को समझाता है, और ISTQB टेस्टिंग के बेसिक फ़ंक्शन से लेकर एडवांस लेवल तक के तौर तरीके सिखाता है। जिससे किसी भी प्रकार के प्रोजेक्ट के लिये सही तरह से प्लॉनिंग करने में मदद तो मिलती ही है, साथ ही सही तरीके से कैसे डॉक्यूमेन्टेशन किया जाये, यह भी पता चलता है। जिससे प्रोजेक्ट के डॉक्यूमेंट अच्छे बनते हैं और ट्रांजिशन में परेशानी नहीं आती है।

    इन सारे सर्टीफ़िकेशन में पहले का अनुभव जरूरी होता है, तो पहले जाँचें कि आप कौन से सर्टिफ़िकेशन के लिये फ़िट हैं। आपका अनुभव कौन से सर्टिफ़िकेशन के लिये उम्दा है और वह सर्टिफ़िकेशन आपमें वैल्यू एड कर रहा है। इन सर्टिफ़िकेशनों की फ़ीस ज्यादा नहीं होती, परंतु इन सर्टिफ़िकेशन्स से आप अपना काम अच्छे से कर पायेंगे, आपके काम की क्वालिटी अपने आप दिखेगी।

    naukriनई नौकरी के लिये बाजार में उतरेंगे तो ये सर्टिफ़िकेशन बेशक आपके लिये नई नौकरी की ग्यारंटी ना हों, पर नई नौकरी के लिये पासपोर्ट जरूर साबित होंगे, अगर किसी एक पद के लिये १०० लोग दौड़ में हैं और सर्टिफ़िकेशन केवल ५ लोगों के पास, तो उन ५ लोगों के चुने जाने की उम्मीदें बाकी के उम्मीदवारों से अधिक होगी, आपकी प्रतियोगिता उन ५ लोगों से होगी ना कि पूरे १०० लोगों से । अपनी अपनी फ़ील्ड और कार्य के अनुसार अपना सर्टिफ़िकेशन चुनिये और अपने भविष्य का निर्माण कीजिये।

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