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माँ के संस्कार के एक छोटे संवाद का जब मैं साक्षी बना (Sanskar in Child by Mother)

    कल भी बेटेलाल की तबियत में कोई खास फर्कनहीं पड़ा, आज सातवां दिन है जब लगातार 103 बुखार आ रहा था, सारे टेस्ट नेगेटिव थे, पर डॉक्टर ने अपने अनुभव के आधार पर टायफाईड का ईलाज शुरू कर दिया, विडाल और ब्लड कल्चर टेस्ट कल करवाये हैं जिससे क्या बीमारी है इसकी पुष्टि हो जायेगी। हमने भी इस बारे में ज्यादा विरोध नहीं किया, क्योंकि जो जिस बात का विशेषज्ञ होता है, तो उसे उसका काम करने देना चाहिये, ये हमारा दृढ़ विश्वास कहिये या फिर बेबकूफाना हरकत, पर हम अपनी जगह कायम है, ये टेस्ट वगैरह की सुविधा तो अब उपलब्ध है, पहले के जमाने में भी तो टायफाईड से निपटा जाता था, केवल विश्वास के भरोसे ही तो मरीज डॉक्टर के पास जाते थे, और हम भी विश्वास के भरोसे ही जाते हैं, भले ही दुनिया में चीजें बदल गयी हैं पर जरूरी चीज विश्वास है, उस पर आज भी सब यकीन करते हैं, नहीं तो दुनिया में कोई भी कार्य न हों।

     जब डॉक्टर ने कहा कि अभी दो बोतल चढ़ा देते हैं और इंजेक्शन लगा देते हैं, तो हमने कहा जैसा आपको उचित लगे करिये बस हमारे बेटेलाल को ठीक कर दीजिये, हाथ से टेस्ट करने के लिये खून निकाला गया, तो बेटेलाल ने बहुत नाटक किये, कि सुईं लगेगी, दर्द होगा, पर उसे मनाया गया और बताया कि चींटी काटने जितना भी दर्द नहीं होगा, और बेटेलाल ने आराम से खून निकलवा लिया।

     डॉक्टर मैडम ने बहुत ही प्यार से बेटेलाल से बात की, तो हमारे बेटेलाल आ गये बिल्कुल लाड़ में और अच्छे से बात करने लगे, शायद यह भी डॉक्टरी शिक्षा का एक अहम हिस्सा होता होगा, जिसमें मरीज की मनोस्थिती को अपने अनुकूल बनाने का प्रशिक्षण दिया जाता होगा, जिससे मरीज उनसे खुलकर बतिया सके।
     डॉक्टर अब तक कम से कम 4-5 बार हमारे बेटेलाल से चॉकलेट खाने के बारे में पूछ चुकी थीं, और हमारे बेटेलाल उन्हें बारबार मना कर रहे थे, आखिरकार डॉक्टर ने चॉकलेट बेटेलाल को दे दी तो बेटेलाल ने चॉकलेट लौटाते हुए कहा कि मुझे नहीं चाहिये, पर डॉक्टर ने कहा कि कोई बात नहीं चॉकलेट अपने पास रख लो और बाद में खा लेना, पर फिर भी बेटेलाल ने कहा कि नहीं चाहिये, शायद इस बात का डॉक्टर को बुरा जरूर लगा होगा, मैं अपने ऊपर लेकर यह बात सोचता हूँ तो शायद मुझे भी लगता या फिर अगर इस मनोस्थिती से प्रशिक्षण मिलता या अनुभव के आधार पर बुरा भी नहीं लगता।
 
जब उस प्रोसीजर रूम से डॉक्टर बाहर चली गईं तो माँ बेटे के संवाद शुरू हुआ –
 
 माँ – बेटा ऐसे डॉक्टर को चॉकलेट के लिये मना क्यों किया ?
 बेटेलाल – मुझे नहीं खानी थी, इसलिये मैंने मना कर दिया !!
 माँ – पर, सोचो कि उन्हें कितना बुरा लगा होगा ?
 बेटेलाल – (कुछ सोचते हुए) नहीं लगा होगा
माँ – नहीं बेटे, ऐसे किसी को भी सीधे मना करोगे, तो उसे बुरा नहीं लगेगा ??
 बेटेलाल – पर मुझे अभी चॉकलेट नहीं खानी, तो मैं क्यों जबरदस्ती ले लूँ
 माँ – आप डॉक्टर से चॉकलेट ले लेते, उनको थैंक्स फॉर चॉकलेट कहते, और चॉकलेट अपने पास रख लेते तो उनको कितना अच्छा लगता, आपने सीधे मना किया तो उन्हें कितना बुरा लगा होगा, कोई भी आपको ऐसे सीधे मना करता है तो आपको भी तो बुरा लगता है, तो अब आगे से हमेशा ध्यान रखना |
 बेटेलाल – ठीक है मम्मी अब मैं ध्यान रखूँगा |
    मैं पीछे खड़े होकर माँ बेटे का संवाद सुन रहा था, सोच रहा था कि यही छोटे छोटे पाठ कहीं न कहीं जीवन में अहम भूमिका निभाते हैं, जिन्हें हम संस्कार कहते हैं, आज मैं भी सुईं के साथ जाते हुए संस्कार को देख रहा था।