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आधुनिक शिक्षा अध्ययन .. (Ways of Modern Education..)

    शिक्षा अध्ययन करने के तरीकों में भारी बदलाव आ गया है । पहले अध्ययन के लिये कक्षा में जाना अनिवार्य होता था, पर अब तकनीक ने सब बदल कर रख दिया है। अधिकतर अध्यापन अब ऑनलाइन होने लगा है। किताबों की जगह पीडीएफ फाईलों ने ले ली है।

  ईबुक्स  पहले जब किताबों से पढ़ते थे तब कौन से लेखक की किताब अच्छी है, उसके लिए किसी न किसी पर निर्भर रहना पड़ता था, या फिर अध्यापक ही मार्गदर्शन करते थे। विद्यार्थियों के लिए शिक्षक से परे कोई जहाँ नहीं था। किताब पढ़ने के बाद ही उपयोगिता का पता चल पाता था। जिससे कई बार समय की कमी हो जाती थी,  पर साथ ही ज्ञान बढ़ता था।

    आजकल अध्ययन में फटाफट वाला दौर चल रहा है, जिसमें विद्यार्थियों को पता होता है कि उन्हें क्या पढ़ना है, कितना पढ़ना है, किसे पढ़ना है। विद्यार्थी उससे ज्यादा पढ़ना ही नहीं चाहते हैं। ऑनलाइन सब कुछ उपलब्ध है। हालांकि पढ़ने के लिये पहले से ज्यादा सुविधाएँ उपलब्ध हैं, एक ही विषय को अलग तरीकों से, ज्यादा माध्यमों से पढ़ा जा सकता है। ज्यादातर नोट्स बनाने की जरूरत नहीं, केवल बुकमार्क किया और कभी भी सुविधानुसार उपयोग कर लिया।

    पहले अनुक्रमणिका से पृष्ठ संख्या देखकर पृष्ठ पलटाते हुए पहुँचते थे, अब तो पीडीएफ फाईलों में केवल क्लिक करके पहुँचा जा सकता है, पहले किसी भी शब्द या वाक्यों को खोजना दुरूह हो जाता था, पर अब पीडीएफ फाईलों में खोजने का कार्य बहुत सरल हो गया है।

    पहले कक्षा में नियत  समय पर जाकर विद्यार्थियों के आने के बाद हीआधुनिक माध्यम पढ़ाई शुरू हुआ करती थी, पर अब सबकुछ वर्चुअल उपलब्ध है, पाठ्यक्रम ईलर्निंग के माध्यमों का उपयोग कर रहे हैं, वीडीयो ऑडियो का शिक्षा में महत्व बढ़ने लगा है, ईबुक्स का प्रचलन तेजी से बड़ा है। अब इन ईबुक्स, ऑडियो, वीडियो के लिये टेबलेट्स भी उपलब्ध हैं, भारत में कई संस्थान अब टेबलेट के जरिये पढ़ाई करवा रहे हैं। ऑनलाईन माध्यम से सबको फ़ायदा हुआ है, अध्यापकों और विद्यार्थियों के बीच तालमेल और अच्छा हुआ है।

    भारत के अध्यापक कई देशों के लिये ऑनलाईन ट्यूशन भी पढ़ाते हैं, कई अध्यापक स्काईपी से पढ़ा रहे हैं, तो कई अध्यापक गूगल हैंग आऊट का भरपूर उपयोग कर रहे हैं, उनके अपने खुद के फ़ेसबुक पेजेस भी हैं जहाँ विद्यार्थी आपस में  बात तो करते ही हैं, वहीं अपनी समस्याओं को आपस में सुलझाने की अच्छी कोशिशें देखी जा सकती हैं।

    अभी कुछ दिन पहले एक संस्था के ट्विट्स भी देखे, जहाँ पर १४० शब्दों की सीमा में ही विषय के बारे में कहने की कोशिश की गई है या फ़िर उत्तर को कई ट्विट्स में दिया गया है, इस तरह से तकनीक का पढ़ाई में भरपूर उपयोग हो रहा है।

ईलर्निंग    किसी भी विषय पर यूजर कंटेन्ट चाहिये तो स्क्रिब्ड हमेशा उपलब्ध है, जहाँ पर बहुत से अनछुए कंटेन्ट मिल जायेंगे, बहुत सी प्रेजेन्टेशन थोड़े फ़ेर बदल के बाद उपयोग में ली जाने वाली मिल जायेंगी। अगर आपको कोई किताब खरीदनी है तो आप गूगल बुक्स पर उसका प्रिव्यू देखकर अपना निर्णय ले सकते हैं।

    आशा है कि हमारे भारत के संस्थान आधुनिक तकनीक का अच्छे से फ़ायदा उठायें और भारत की उन्नति में मुख्य भुमिका का निर्वाहन करें।

जीवन के तीन सच

क्राउड मैनेजमेंट

    बेटेलाल के मनोरंजन के लिये पास ही गये थे, तो पता चला कि उस जगह वहीं पास के आई.टी. पार्क का सन्डे फ़ेस्ट चल रहा है और प्रवेश भी केवल उन्हीं आई.टी.पार्क वालों के लिये था, पार्किंग फ़ुल होने के कारण, पार्किंग आई.टी.पार्क में करवाई गई, वहाँ पर भी अव्यवस्था का बोलबाला था, साधारणतया: आई.टी. पार्क में क्राऊड मैनेजमेंट अच्छा होना चाहिये, परंतु मैंने आज तक किसी भी आई.टी. पार्क में क्राऊड मैनेजमेंट ठीक नहीं देखा, सब पढ़े लिखे तीसमारखाँ होते हैं, जो अपने से ऊपर किसी को समझते ही नहीं और अपने से ज्यादा हाइजीनिक भी, भले ही घर में कैसे भी रहते हों, परंतु बाहर तो हमेशा दिखावा जरूरी होता है। भले ही समझदारी कम हो, परंतु आई.टी. पार्क के गेट में प्रवेश करते ही समझदारी कुछ ज्यादा ही विकसित हो जाती है। हमसे हमारा वाहन जबरन आई.टी.पार्क में खड़ा करवाया गया और चार गुना शुल्क वसूला गया। खैर हम तो जल्दी ही वहाँ से निकल लिये, बहुत दिनों बाद कार्पोरेट्स इमारतों के बीच में खुद को असहज महसूस कर रहा था ।

    इतने सबके बाद सोच रहा था कि उज्जैन में सिंहस्थ के दौरान प्रशासन का क्राउड मैनेजमेंट बहुत अच्छा रहता है, वाकई तारीफ़ के काबिल।

गर्लफ़्रेंड

    सुबह कुछ समान लेकर आ रहा था कि बीच में एक जगह रुकना पड़ा, कार खड़ी थी और एक बाईक कुछ ऐसे आकर रुकी कि हमें भी मजबूरन रुकना पड़ा, बंदा जो बाईक चला रहा था, उसने हेलमेट नहीं पहनी थी, और जबरदस्त ब्रेक लगाकर रुकी थी, पीछे सीट पर कन्या थी, कन्या बोली – “क्या हुआ ?” बंदा बोला “हेलमेट के लिये !!” और भी कुछ बोला था जो सुनाई नहीं दिया, शायद “आपसे सुबह के प्रवचन सुनने के बाद सोचा कि अभी मेनरोड आने से पहले ही हेलमेट लगा ली जाये”, कन्या बोली “ओह्ह!! मॉय गॉड, तो आप पर मेरे कटु वचन कब से असर करने लगे”, तो इतना समझ में आया कि बंदा कभी बीबी की बात तो मानता नहीं है, इसलिये वह जरूर उसकी गर्लफ़्रेंड होगी ।

पहचान

    एक नौजवान जोड़ा हमारे फ़्लेट के सामने वाले फ़्लेट में रहता था, उनकी छत खुली हुई थी, जिस पर अधिकतर उनकी शाम बीतती थी, बस उनके साथ समस्या यही थी कि वह केवल एक कमरा था, खैर नये शादीशुदा थे तो शादी के बाद भी बैचलरों जैसा मजा लूट रहे थे, पर जैसे ही नई जिम्मेदारी उनके सर पर आई, उन्हें एकदम से मकान बदलना पड़ा।

    कोई  बातचीत हम लोगों के बीच नहीं थी, केवल एक खामोश पहचान थी, चेहरों की पहचान, यहाँ तक कि मुस्कान भी नहीं अगर कभी हम मुस्करा भी दिये तो वे सपाट चेहरे के रहते थे, तो हमें लगा कि उन्हें पहचान बढ़ाना ठीक नहीं लगता, हमने भी अपनी तरफ़ से पहचान बढ़ाने का उपक्रम बंद कर दिया, इसी बीच उन्होंने कार ली, बिल्कुल नई कार, जिसे रखने के लिये मकान मालिक के घर में जगह ऐसी थी कि अगर मकान मालिक की कार निकालनी हो तो उन्हें अपनी कार निकालनी पड़ेगी याने की रेल के डब्बे की स्टाईल में, तो रोज सुबह ६ बजे उनके रिवर्स मारने की संगीत की आवाज सुनाई देने लगती थी, खुद से ही दोनों पति पत्नि ने कार सीखी और फ़िर रात को उनकी पत्नी थोड़ा बायें थोड़ा दाहिने कहकर कार को मकान में पार्क करवाती थीं। हमें लगा कि उन्होंने कार केवल अंदर और बाहर करने के लिये ही ली है क्योंकि वे लोग कार से कहीं और जाते ही नहीं थे।

    खैर उन्होंने मकान बदल लिया, फ़िर काफ़ी दिनों तक दिखे नहीं, हम भी बैंगलोर से बाहर थे अब काफ़ी दिनों बाद बैंगलोर में आना हुआ तो आमना सामना हो गया, वे अपनी जिम्मेदारी को गोद में लेकर आ रहे थे, तो देखकर हम थोड़ी देर तो असमंजस में थे कि ये वही बंदा है पर तुरंत ही उसकी और से एक मुस्कान आई तो हमने भी एक मुस्कान पलट कर फ़ेंक दी और इस तरह से मुस्कान की पहचान तो हो ही गई।

खाद्य सुरक्षा बिल / घोटाला / रेटिंग एजेन्सियाँ / जीडीपी / फ़ायदे

    कोल स्कैम घोटाला २६ लाख करोड़ का हुआ (विश्लेषकों के अनुसार), सरकार (सीएजी) के अनुसार १.८६ लाख करोड़ नंबर सामने आया । नया खाद्य सुरक्षा बिल के लिये जो राशि सरकार ने उजागर की है वह है १.२५ लाख करोड़ रूपये जो कि सरकार के ऊपर भार है, मतलब यह देखिये कि भारत के ६१ करोड़ लोगों के लिये १.२५ करोड़ रूपये भारी पड़ रहे हैं, परंतु कोलगेट घोटाला जो कि इससे कहीं ज्यादा था तब सारी रेटिंग एजेंसियाँ चुप बैठी थीं, तब हमारा जीडीपी पर पड़ने वाला फ़र्क क्या इन रेटिंग एजेंसियों को समझ नहीं आ रहा था । जब जनता के लिये सरकार खर्च कर रही है तो रेटिंग एजेंसियों को लगने लगा कि इससे भारत में कुछ हद तक सुधार की गुंजाइश है तो एकदम से “रेटिंग गिर सकती है” का बयान आ गया।

    हालांकि सरकार का कहना है कि जीडीपी १% तक कम हो सकती है परंतु यह सरकारी आँकड़ा है, अगर सही तरीके से इस आँकड़े को देखा जाये तो यह आँकड़ा ३% के भी ऊपर है, जो कि भारतीय अर्थव्यवस्था पर एक बहुत बड़ा बोझ होगा। क्या रेटिंग एजेन्सियों ने कभी भारत में हुए बड़े घोटालों से होने वाली हानि का आकलन हमारी अर्थव्यवस्था के लिये किया है, अगर नहीं तो वाकई इसके पीछे की वजह जानने वाली है। क्यों हमारे भारत के बड़े बड़े घोटालों का आर्थिक विश्लेषण कर रेटिंग कम नहीं की गई, क्या इसका कुछ हिस्सा इन रेटिंग एजेन्सियों की जेब में भी जाता है ?

    जितने भी बड़े बड़े घोटाले हुए हैं, वे पिछले ९ वर्ष में प्रतिवर्ष ३% जीडीपी के घोटाले हुए हैं, अगर हमारा लक्ष्य ५.२% है तो वह आराम से ३% ज्यादा होता और हम ८.२% के जीडीपी की रफ़्तार से बढ़ रहे होते । रूपये की गिरते साख के चलते यही लक्ष्य ४.८% पर फ़िर से निर्धारित किया गया है। हालांकि जितने भी वित्तीय आँकड़े बताये जाते हैं वे सब एक बहुत बड़े आंकलन पर दिये जाते हैं, जिसकी तह में कोई नहीं जाना चाहता। क्या हमारी अर्थव्यवस्था की वाकई कोई बेलेन्स शीट है। कम से कम हमें पता तो चले कि इतना पैसा अगर टैक्स से सरकारी खजाने में आ रहा है तो वह खर्च किधर हो रहा है।

    सरकारी खजाने के खर्च से जीडीपी पर सीधा असर पड़ता है। अब इस १.२५ लाख करोड़ के खाद्य बिल से कितना फ़ायदा गरीब लोगों को मिलता है, वह तो भविष्य ही बतायेगा, और कितना फ़ायदा इन गरीब लोगों के हाथों में अन्न पहुँचाने वालो को होगा यह भी भविष्य ही बतायेगा। वाकई अन्न गरीबों तक पहुँचता है या फ़िर एक नया खाद्य घोटाले की नींव सरकार ने रखी है।

    परंतु अगर वाकई ईमानदारी से इस योजना को लागू किया जाता है और पूरा का पूरा पैसे का फ़ायदा गरीबों तक पहुँचता है, तो इसके फ़ायदे भी बहुत हैं, यह कुपोषण से लड़ने में मददगार होगा, सरकार पर स्वास्थ्य योजनाओं के मद में किये जाने वाले खर्च में आश्चर्यजनक रूप से कमी आयेगी। स्वास्थ्य सुविधाएँ और भी बेहतर हो सकेंगी, स्तर अच्छा होगा। निम्न स्तर के व्यक्ति भी अच्छे स्वास्थ्य के चलते बेहतर कार्य कर सकेंगे, बुनियादी स्तर की शिक्षा का फ़ायदा ले सकेंगे। अपनी मेहनत करके भारत के विकास में अतुलनीय योगदान दे सकेंगे।

रूपये की विनाशलीला देखने के लिये तैयार हैं ?

    आजकल सब और चर्चा में डॉलर और रूपया है और जब से रूपया १०० रूपया पौंड को पार किया है तब से पौंड भी चर्चा में है। कल ही एक परिचित से बात हो रही थी, तो वे कहने लगे कि हमारे भारत पर तो ब्रिटिश का शासन था फ़िर हमारे ऊपर यह डॉलर क्यों हावी है, हमारे विनिमय तो पौंड में होना चाहिये। हमने उन्हें समझाया कि डॉलर को विश्व में मानक मुद्रा का दर्जा मिला हुआ है, डॉलर से लड़ने के लिये यूरोपीय देशों ने यूरो मुद्रा की शुरूआत की थी, नहीं तो उन्हें सब जगह डॉलर से उस देश की मुद्रा का विनिमय करना पड़ता था। अब उन्हें यूरो मुद्रा का विनिमय यूरोपीय देशों में नहीं करना पड़ता है।

    डॉलर क्यों पटकनी दे रहा है रूपये को, यह समझने की कोशिश करें तो लुब्बा लुआब यह है कि हमने आयात ज्यादा किया और निर्यात कम किया, याने कि विदेशी मुद्रा जो कि मानक मुद्रा डॉलर है वह हमारे खजाने से ज्यादा गई और मानक मुद्रा डॉलर हमारे खजाने में कम आई, खैर इस बात का ज्यादा मायने भी नहीं है क्योंकि डॉलर हमारे रूपये के मुकाबले अभी ओवररेटेड है, अगर वाकई असली दाम इसका देखा जाये तो लगभग २० रूपये होना चाहिये। और डॉलर अभी तीन गुना ज्यादा दाम पर व्यापार कर रहा है।

Rupees vs USD

USD Vs INR

    हमारी जीडीपी याने कि सकल घरेलू उत्पाद लगातार कम होती जा रही है, हमने पिछले ९ वर्षों में  मान लो कि रत्न आभूषण ५०० अरब डॉलर के आयात किये और लगभग ३५० करोड़ के रत्न आभूषण हमने निर्यात किये तो हमें पिछले ९ वर्षों में लगभग १५० करोड़ का विशुद्ध घाटा हुआ है। इसी प्रकार पेट्रोलियम और गैस में जमकर घाटा हुआ है, कुछ अंदरूनी कलह के कारण और कुछ व्यापारिक प्रतिष्ठानों की जिद के कारण । भारत विश्व में उत्पादित सोने और पेट्रोल के बहुत बड़े भाग  का उपयोग करता है।

    स्वतंत्रता के बाद से भारत का रूपया कभी राजनैतिक कारणों से तो कभी व्यापारिक कारणों से तो कभी आर्थिक नीतियों से मात खाता आया है, हमारे भारत के पास बेहतरीन काम करने वाले लोग हैं, बेहतरीन वैज्ञानिक हैं, पर उन्हें भारत के लिये उपयोग करने के लिये ना ही राजनैतिक इच्छाशक्ति है और ना ही आर्थिक जगत की इच्छाशक्ति है। अगर कुछ और बड़ी कंपनियाँ भारत की बाहर व्यापार करने लगें तो डॉलर की नदियों का मुख भारत की और होगा।

    अधिकतर अंतर्राष्ट्रीय कंपनियाँ अपने लाभ का एक बड़ा हिस्सा मानक मुद्रा याने कि डॉलर में विनिमय कर भेज देती हैं। हम भारतवासियों को भी समझना होगा कि हमें घरेलू उत्पादों का ज्यादा उपयोग करना चाहिये, जिन उत्पादों से डॉलर बाहर जा रहा है, उन उत्पादों को उपयोग करने से बचना चाहिये।

    मुद्रा गिरने से हमारे भारत के आर्थिक हालात बेहद खराब हो सकते हैं, इसका सीधा असर बैंक में बड़े बड़े ऋण पर पड़ेगा, बाहर पढ़ने वाले विद्यार्थियों पर पड़ेगा ये दो बड़े भार होंगे हमारी अर्थव्यवस्था पर, वैसे ही राष्ट्रीयकृत बैंकें ४ % से ज्यादा एन.पी.ए. याने कि जो ऋण डूब चुके हैं, से लड़ रही हैं, और अब यह व्यक्तिगत मुश्किलें बड़ाने वाला दौर होगा, अर्थव्यवस्था पर इसका सीधा असर कुछ ही दिनों में दिखना शुरू हो जायेगा, जब पेट्रोलियम पदार्थों के भाव आसमान छूने लगेंगे तो इसका सीधा असर हमारी दैनिक उपयोग की वस्तुओं पर पड़ते देर नहीं लगेगी। जब रूपया ३३% गिर चुका है तो अब पेट्रोलियम के भाव में ३३% की तेजी का अंदाजा लगा ही सकते हैं। सरकार भी कब तक राजनैतिक कारणों से रूपये के गिरने के कारण महँगाई से जनता को बचा पायेगी, और अगर यह भार जनता पर नहीं डाला गया तो भारत के खजाने पर सीधा असर पड़ेगा।

    हमारा कैश इन्फ़्लो तो उतना ही रहने वाला है वह तो डॉलर के महँगे होने से या रूपये के गिरने से ज्यादा नहीं होने वाला है, तो अब भविष्य के संकेत ठीक नहीं है, जितनी बचत अभी तक कर लेते थे, अब वह बचत भी बहुत कम होने वाली है। अभी भी अगर इस पर नियंत्रण नहीं पाया गया तो रूपये की विनाशलीला देखने के लिये तैयार रहना होगा।

भारत की आधारभूत समस्याएँ और उसके समाधान.. सैनिटरी नैपकीन और पानी

    बहुत दिनों से सोच रहा हूँ रिवर्स माइग्रेशन के लिये, रिवर्स माइग्रेशन मतलब कि अपने आधार पर लौटना, जहाँ आप पले बढ़े जहाँ आपके बचपन के साथीगण हैं,  देशांतर गमन शायद ठीक शब्द हो। लौटकर जाना बहुत बड़ा फ़ैसला नहीं है, पर लौटकर वापिस वहाँ अपना समय किस तरह से समाज के लिये लगायें, यह एक कठिन फ़ैसला है। अभी पिछले दिनों जब मैं अपने कुछ व्यावसायिक मित्रों से अपने गृहनिवास में बात कर रहा था, जब मैंने उनको अपना मन्तव्य बनाया तो एक मित्र ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा “बोस सब उज्जैन वापिस आकर समाज सेवा ही करना चाहते हैं, एक दिन ऐसा आयेगा कि सब समाजसेवक ही होंगे, सेवा करवाने वाले कम”, उस मित्र की बात वाकई बहुत दिलचस्प लगी, अगर इतने लोग सेवा करने वाले उपलब्ध हैं पर कर नहीं पा रहे हैं तो उनको बस एक नई दिशा देने की जरूरत है।
    कुछ समय बाद ही इंडीब्लॉगर ने फ़्रेंकलिन टेंपलटन इन्वेस्टमेन्ट्स के साथ “द इंडिया काँरवा” प्रस्तुत किया जिसमें अपने विचार उन वक्ताओं के लिये देने थे जिन्होंने बिल्कुल सतही तौर पर समाज के साथ काम किया और टेडेक्स गेटवे मुंबई दिसम्बर २०१२ में उन्होंने अपने विचार रखे। उनके विचार सुनकर अपने तो दिमाग के सारे दरवाजे खुल गये, हम सोच रहे थे कि करें क्या ? परंतु यहाँ तो लोग आधारभूत समस्याओं से ही सामना कर रहे हैं, उनके लिये कुछ बड़ा करने से पहले, उनकी आधारभूत समस्याओं को समझा जाये और उस पर कार्य किया जाये।
    अरुनाचलम मुरुगनाथम मेरे लिये नया नाम था, परंतु जब मैंने इनकी कहानी सुनना शुरू कि जो इतनी दिलचस्प थी, कि मैं इनके कार्य करने और कुछ करने की जिद से बहुत प्रभावित हुआ, अरुनाचलम में शुरू से ही कुछ करने की इच्छा थी, जिस तरह से उन्होंने महिलाओं के लिये सैनिटरी नैपकीन का अविष्कार किया, जिससे महिलाएँ अपने खुद के लिये यह आधारभूत सुविधा पा सकें, जिस तरह से उनके किये गये अविष्कार से जितनी बड़ी आबादी को यह लाभ मिल सकेगा, कितने ही लोगों को रोजगार मिल सकेगा, सैनिटरी नैपकीन की बात महिलाएँ तो क्या पुरूष भी दबे शब्दों में बात करते हैं पर अरुनाचलम नें यही बात मंच तक लाई और इसके लिये कार्य कर इतनी महँगी चीज को बिल्कुल ही पहुँच वाले दामों में भारत की महिलाओं को उपलब्ध करवाया।
अरुनाचलम मुरुगनाथम की दिलचस्प यात्रा आप यहाँ सुन सकते हैं।
सिन्थिया कोनिग ने भारत की सबसे आधारभूत समस्या और सबसे भारी समस्या को समझा और उसका एक अच्छा, हल्का सा समाधान भी दिया। जैसा कि हम सब लोग जानते हैं भारत की सबसे बड़ी समस्या है पानी, जो कि सहजता से उपलब्ध नहीं है और जहाँ उपलब्ध है वहाँ से घर लाने में कितने श्रम की जरूरत होती है, आज भी गाँवों में महिलाएँ सिर पर पानी ढो़कर लाती हैं, और पानी बहुत भारी होता है। इसके लिये सिन्थिया कोनिग ने एक रोलर का अविष्कार किया जो कि ड्रम के आकार का है और पानी भरने के बाद उसे आसानी से खींचा जा सकता है, पानी अधिक मात्रा में लाया जा सकता है और सबसे बड़ी बात कि इसकी कीमत गाँव वालों की पहुँच में है मात्र ९७५ – १००० रूपये।
सिन्थिया कोनिक का दिलचस्प व्याख्यान यहाँ सुन सकते हैं, कैसे उन्होंने भारी पानी को हल्का कर दिया।
सुप्रियो दास, अच्छे खासे इंजीनियर थे, परंतु कुछ करने की इच्छाशक्ति ने उन्हें अपने खुद के लिये काम करने के लिये प्रेरित किया, और उन्होंने बहुत सारे अविष्कार भी किये, जिसमें उनका सबसे अच्छा और अधिकतर जनता को फ़ायदा पहुँचाने वाला है, जिम्बा !! जब सुप्रियो दास ने देखा कि हमारे यहाँ केवल अच्छा पीने लायक साफ़ पानी ना मिलने के कारण ही हजारों मौतें रोज हो रही हैं, उन्होंने इसके लिये बहुत शोध किया और पाया कि पर्याप्त मात्रा में क्लोरीन नहीं मिलाया जा रहा है या बहुत ही सस्ता क्लोरीन उपलब्ध ही नहीं है और अगर है भी तो कम या ज्यादा होने से नुकसानदायक है, तब उन्होंने जिम्बा उत्पाद बनाया जो कि पानी के स्रोत पर ही लगा दिया जाता है तो जहाँ से लोग पानी लेते हैं, उन्हें पर्याप्त मात्रा में क्लोरीन मिला हुआ पानी मिल रहा है, जिससे आश्चर्यजनक तरीके से जहाँ भी प्रयोग हुए अच्छे नतीजे मिले और सबसे बड़ी बात कि इस यंत्र में कोई भी ऐसी चीज नहीं लगी कि वह खराब हो सके।
सुप्रियो दास की क्लोरीन की कहानी, कैसे पानी को पीने लायक बनाया
    इन तीन अविष्कारों से मैं बहुत प्रभावित हुआ, अगर कुछ करने की ठान लो तो कुछ भी असंभव नहीं है, बस काम करना है यह सोच हमारी दृढ़ होनी चाहिये।
    यह पोस्ट फ़्रेंकलिन टेंपलटन द्वारा आयोजित टेडेक्स गेटवे मुंबई २०१२ में आयोजित “द इंडिया काँरवा” में कुछ महत्वपूर्ण सामाजिक और आधारभूत समस्यों से प्रेरित होकर लिखी गई है। Franklin Templeton Investments partnered the TEDxGateway Mumbai in December 2012.

एक मुलाकात कल परसों में प्रसिद्ध हुए नेता और बरसों से प्रसिद्ध अभिनेता खाज साहब से

एक मुलाकात कल परसों में प्रसिद्ध हुए नेता और बरसों से प्रसिद्ध अभिनेता खाज साहब से –

प्रश्न – खाज साहब आपके मुंबई में १२ रूपये वाली थाली के बयान ने आपको रातोंरात प्रसिद्धी दी है, आप क्या सोचते हैं ?

उत्तर – अरे भई, हमने कोई गलत बयानबाजी थोड़े ही कर दी है, १२ रूपये की थाली मुंबई में मिलती है, इसलिये बता दिया है, अब इसमें नेता के रूप में प्रसिद्धी वाली तो कोई बात ही नहीं है, आखिर जनता को पता तो चलना चाहिये कि १२ रूपये में भी थाली मिलती है और मुंबई में आसानी से गुजारा कर सकते हैं।

प्रश्न – खाज साहब जनता १२ रूपये वाली थाली के रेस्टोरेंट के पते माँग रही है, आप कब तक  ये पते जनता को मुहैया करवायेंगे ?

उत्तर – देखिये नेता का काम है बताना कि हाँ भई १२ रूपये में थाली उपलब्ध है, बाकी उपलब्ध कहाँ कहाँ है वह काम या तो नौकरशाहों का होता है या फ़िर जनता खुद इतना काम भी नहीं कर सकती, देखिये हमारी उपलब्धि कि हमने जनता को इतनी मूलभूत चीज बताई जो जनता को भी पता नहीं थी, आप भी क्या बेकार के प्रश्न लेकर आये हैं।

प्रश्न – खाज साहब आपके कांपीटिशन में दिल्ली में एक और नेता ने बताया कि दिल्ली में ५ रूपये में थाली मिलती है, आप इसके बारे में क्या कहना चाहते हैं?

उत्तर – अब देखिये विपक्ष का काम ही यही होता है कि पक्ष का मुद्दा चुरा लें और उसे अपना बतायें, अब हमने इतनी मेहनत से १२ रूपये की थाली का मुद्दा बनाया तो वे ५ रूपये की थाली बताने लगे, अब हद है भई चोरी की । फ़ालतू में कन्ट्रोवर्सी करते हैं ।

प्रश्न – खाज साहब लोग कह रहे हैं जब १२ रूपये में थाली मिलती है तो मनेरगा में ज्यादा पैसा देकर आप लोग क्यों देश को डुबा रहे हो ?

उत्तर – मनेरगा में मेहनत करके पैसा मिलता है, इसीलिये स्कीम का नाम भी मनेरगा रखा गया है कि नाम से ही पता चले कि मेहनत करो और पैसा ले जाओ, अब जो मेहनत करेगा उसको तो सरकार को भी ज्यादा पैसे देना पड़ेंगे ना, नहीं तो कोई काम करने को तैयार ही नहीं होगा, अब हम गाँव का तो बता नहीं सकते कि वहाँ १२ रूपये की थाली मिलती है या नहीं ?

प्रश्न – खाज साहब जनता बोल रही है कि १२ रूपये की थाली के लिये सरकार जनता को स्टाम्प पेपर पर लिखकर अगले ३०-४० वर्ष की गारंटी दे और थाली नहीं मिलने की दशा में बीमा का प्रावधान हो ।

उत्तर – गारंटी !!! गारंटी किस चीज की है, हर जगह लिखा रहता है कि फ़ैशन के इस दौर में गारंटी की इच्छा ना करें, फ़िर अरे हम कोई कपड़े थोड़े ही पहना रहे हैं, हम तो केवल थाली की बात कर रहे हैं, जब वह मिलती है तो मिलती है, उसमें गलत बात क्या है, स्टाम्प पेपर क्या होता है जब हमारी सरकार ६० से ज्यादा  वर्षों से चल रही है तो जनता को भरोसा होना चाहिये । अब एक तो सरकार १२ रूपये में थाली उपलब्ध करवा रही है और ऊपर से जनता को बीमा भी करवा कर दे, खुद करवा लें, सरकार के ऊपर किसी प्रकार की कोई बंदिश नहीं है।

प्रश्न – खाज साहब आखिरी सवाल, क्या आपने कभी १२ रूपये की थाली खाई है ?

उत्तर – ये लो, हम तो बीते वर्षों से जब भी केंटीन में जाते हैं तो वहाँ १० रूपये से भी कम की थाली में खा लेते हैं, फ़िर भी हमारी दरियादिली देखिये कि हमने जनता को १२ रूपये की थाली बताई है।

हमनाम ने ऋण लिया और HSBC एवं ABN AMRO RBS परेशान कर रही हैं हमें !!

    दो वर्ष पहले मैं मुंबई से बैंगलोर शिफ़्ट हुआ था, नयी कंपनी नया माहौल था, अपने सारे बैंको, क्रेडिट कार्ड और जितने भी जरूरी चीजें थीं सबके पते  भी बदलवाये, मोबाईल का नया पोस्टपैड कनेक्शन लिया। बस इसके बाद से एक परेशानी शुरू हो गई।

    बैंगलोर शिफ़्ट हुए २ महीने ही हुए थे और एक दिन हमारा मोबाईल बजने लगा, ऑफ़िस में थे, बात हुई, सामने से बताया गया कि हम कोर्ट पुलिस से बोल रहे हैं और आपके खिलाफ़ हमारे पास समन है, क्योंकि आपने बैंकों के ऋण नहीं चुकाये हैं, हमने पूछा कि कौन से बैंकों के ॠण नहीं चुकाये हैं, क्या आप बतायेंगे ? हमें बताया गया कि हमने कुछ साल पहले बहुत सारी बैंकों से बैंगलोर से ऋण लिये हैं और उसके  बाद चुकाये नहीं गये हैं। हमने कहा कि हमारा नाम आप सही बता रहे हैं परंतु हम वह नहीं हैं, जिसे आप ढूँढ़ रहे हैं, फ़िर उन्होंने अपना पता, कंपनी का नाम मुंबई का पुराना पता, जन्मदिनांक आदि पूछा और कहा कि माफ़ कीजियेगा “आप वे व्यक्ति नहीं हैं !!” ।

    फ़िर लगभग एक वर्ष निकल गया अब HSBC बैंक से कोई सज्जन हमारे घर पर आये और अभी तक वे लगभग ३ बार आ चुके हैं और कहते हैं कि कुछ ३६,००० रूपये क्रेडिट कार्ड के बाकी हैं, हमारी घरवाली ने तुरत कहा कि पहली बात तो हमारी आदत नहीं है किसी बाकी की और दूसरी बात HSBC में कभी हमने कोई एकाऊँट नहीं खोला और क्रेडिट कार्ड नहीं लिया। और वह व्यक्ति तीनों बार चुपचाप चला गया।

     अब आज ABN AMRO RBS से घर के नंबर पर फ़ोन आने लगे कि आपने बैंक से ७ लाख ७२ हजार रूपये का लोन लिया था जो कि अभी तक बकाया है,

हमने पूछा – “यह लोन हमने कब लिया है ?”

जबाब मिला – “यह लोन आपने २००८ में लिया है ?”

हमने पूछा – “क्या आप बता सकते हैं कि यह लोन किस शहर से लिया गया है ?”

जबाब मिला – “बैंगलोर से लिया गया है”

हमने पूछा – “क्या आपने वेरिफ़ाय किया है कि मैं ही वह व्यक्ति हूँ, जिसने लोन लिया है ?”

जबाब मिला – “विवेक रस्तोगी ने लोन लिया है”

हमने कहा – “इसका मतलब यह तो नहीं कि मैं ही वह व्यक्ति हूँ जिसने लोन लिया है ।”

कुछ जबाब नहीं मिला ।

हमने कहा आप एक काम करें हमें बकाया का नोटिस भेंजे हम आपको कोर्ट में निपटेंगे।

तो सामने बैंक से फ़ोन रख दिया गया ।

    अब हम चाहते हैं कि यह मामला बैंकिग ओम्बडसमैन के सामने रखा जाये और इन बैंकों से पूछा जाये कि किसी भी समान नाम के वयक्ति को परेशान करने का इनके पास क्या आधार है ? क्योंकि इस प्रकार के फ़ोन आना और किसी व्यक्ति का घर पर आना कहीं ना कहीं मानसिक प्रताड़ना है।

    हम भी बैंकिंग क्षैत्र में पिछले १४ वर्षों से सेवायें दे रहे हैं, और जहाँ तक हमारी जानकारी है उसके अनुसार हमेशा बकाया ऋण वालों को हमेशा पैनकार्ड या उसके पते की जानकारी वाले प्रमाण से ट्रेस किया जाता है। क्या इन बैंकों (HSBC & ABN AMRO RBS) के पास इतनी भी अक्ल नहीं है कि पहले व्यक्ति को वेरिफ़ाय किया जाये। वैसे हमने अभी सिबिल (CIBIL) की रिपोर्ट भी निकाली थी, क्योंकि हम एक लोन लेने का सोच रहे थे, तो उसमें अच्छा स्कोर मिला। ये बैंकें सिबिल (CIBIL) से हमारा रिकार्ड भी छान सकती हैं।

    हम इन दोनों बैंकों (HSBC & ABN AMRO RBS) को चेतावनी देते हैं कि अगर अब हमारे पास या तो कोई फ़ोन आया या फ़िर कोई व्यक्ति घर पर बिना हमें वेरिफ़ाय करे आया तो हम इनकी शिकायत बैंकिंग लोकपाल से करने वाले हैं, और न्यायिक प्रक्रिया अपनाने पर बाध्य होंगे।

हम लोकतंत्र के ऊपर गर्व कब कर पायेंगे।

    जनता का गुस्सा उबल रहा है, जनता क्रोध में उफ़न रही है, पर हमारी सरकार है कि सो रही है । सरकार को जनता को गंभीरता से लेना कभी आया ही नहीं है, यह गुण इन्हें अंग्रेजों से विरासत में मिला है। शनिवार को जो भी कुछ विजय चौक और इंडिया गेट पर हुआ है उससे तो यही साबित होता है कि हम लोकतंत्र में नहीं रहते हैं, हम अब भी अंग्रेजी मानसिकता के गुलाम हैं।

    नहीं चाहिये हमें ऐसी सरकार जो हमारे लोकतंत्र के हक को हमसे छीने, जिन लोगों को अपनी भाषा की मर्यादा और अपने ऊपर ही संयम नहीं हैं वो क्या जनता को इसकी सीख दे रहे हैं। जब जनता सड़क पर आती है तो क्रांतियाँ होती हैं। जनता सड़क पर अपना मौलिक अधिकार के लिये है, ना कि सरकार का विरोध करने के लिये सड़क पर उतरी है।

    फ़िर भी सरकार अपनी पूरी ताकत इस जनता के ऊपर लठ भांजने में और आंसू गैस के गोले छोड़ने में लगा रही है। क्या बलात्कार जैसे जघन्य अपराध के खिलाफ़ अपनी आवाज उठाना अपराध है ? क्या ये लोग वाकई कानून तोड़ रहे हैं ? क्या ये हिंसक तरीके से प्रतिरोध कर रहे हैं ?

    शरम आती है मुझे कि मैं ऐसे लोकतंत्र का नागरिक हूँ और ऐसी सरकार इस लोकतंत्र को चला रही है। केवल कहने के लिये लोकतंत्र है, बाकी सब अंग्रेज तंत्र है, अंग्रेजों की बर्बरता के सारे गुण लोकतंत्र को चलाने वालों के जीन में रचे बसे हुए हैं, जनता के बीच जाकर उनकी बात सुनकर लोकतंत्र को मजबूत बनाने वाले कहते हैं कि हमारी भी लड़कियाँ हैं, हमें भी भय है, कितनी हास्यास्पद बात है। सारी पुलिस तो लोकतंत्र के इन कथित चालकों और परिवारों की सुरक्षा में लगी है।

    लोकतंत्र में वोट देने का अधिकार होता है जिससे आप अपने नेता का चुनाव कर सकते हैं और सरकार बना सकते हैं, परंतु ऐसे लोकतंत्र का को कोई मतलब नहीं है जहाँ जनता की आवाज को दबाया जाये और कुचला जाये।

    आज मन बहुत दुखी है, सुबह पुलिस  विजय पथ और इंडिया गेट से प्रदर्शनकारियों को अपनी तथाकथित ताकत दिखाकर कहीं अज्ञात स्थान पर ले गई है, सरकार और पुलिस इतने डरे हुए क्यों हैं, उनकी तो केवल कानून में बदलाव की माँग है, वो पुलिस या सरकार को भारत छोड़कर जाने को तो नहीं कह रहे हैं।

    पता नहीं कि हम लोकतंत्र के ऊपर गर्व कब कर पायेंगे।

मैले मन, बेशर्मी की चादर, उच्चशिक्षितों से तो अनपढ़ अच्छॆ ?

    रोज सुबह अपने ऑफ़िस जाते समय एक जगह ट्रॉफ़िक ऐसा होता है, जहाँ कोई सिग्नल नहीं है, और मुख्य सड़क है । यह ट्रॉफ़िक जाम एक मुख्य सिग्नल से मात्र ५०-१०० मीटर दूर ही है, परंतु पुलिस के भी मात्र एक या दो जवान ही होते हैं जो शायद वह नियंत्रित नहीं कर सकते क्योंकि उन्हें वह मुख्य सिग्नल संभालना भारी पड़ता है, वे भी बेचारगी की अवस्था में देखते रहते हैं।

    सब जल्दी जाने के चक्कर में ट्रॉफ़िक के सारे नियम कायदे कानून ताक पर रखकर बीच सड़क पर लोगों का रास्ता रोककर खड़े होते हैं। जितने भी लोग अपने दोपहिया और चारपहिया वाहन लेकर खड़े होते हैं वे सब तथाकथित आईटी की बड़ी बड़ी कंपनियों में काम करने वाले, पढ़े लिखे और उच्चशिक्षित लोग होते हैं। इन उच्चशिक्षित लोगों को नियम की अवहेलना करना और दुखी कर जाता है।

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ये दो फ़ोटो मैंने अपने मोबाईल से लिये हैं..

   कई बार सोचता हूँ कि इनसे पूछा जाये कि क्या आप पढ़े लिखे हैं ? क्या आपको परिवार ने संस्कार दिये हैं, अगर नियम पालन करवाने वाले बेबस हैं तो क्या आप भी संसद में बैठे नेताओं जैसी असंसदीय कार्यों में लिप्त होना चाहेंगे ? क्या आप वाकई में शिक्षित हैं ? क्या आपके विद्यालय / महाविद्यालय में यही सिखाया जाता है ? क्या आप अपने बच्चे को भी यही सब सिखाना चाहेंगे ?

    पर मन की कोफ़्त मन में ही दबी रह जाती है, आज की भागती दौड़ती जिंदगी में सबके मन मैले हो चुके हैं, और बेशर्मी की चादर ओढ़ रखी है। चेहरे पर गलत करने की कोई शर्म नजर नहीं आती । बेशर्मी से बीच सड़क पर खड़े होकर दूसरी ओर के वाहनों को नहीं निकलने देते हैं और खुद न आगे जा सकते हैं और ना पीछे जा सकते हैं।

    इन पढ़े लिखे नौजवन और नवयुवतियों को देखकर ऐसा लगता है कि अच्छा है कि लोग अनपढ़ ही रहें, पढ़ने लिखने के  बाद भी अगर नियम पालना नहीं आयें तो ऐसी पढ़ाई लिखाई किस काम की ?

    यही लोग जब दूसरे देशों में जाते हैं तो भीगी बिल्ली बन जाते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि यहाँ अगर नियम तोड़ा तो कोई बचाने वाला नहीं है और भारत में नियम हैं जरूर मगर तोड़ने के लिये । अगर हम जिस तरह से प्रगति कर रहे हैं उसी तरह से अपने दिमाग और दिल को भी उन्नति की राह पर ले चलें तो कमाल हो जाये। भारत में लोग किसी भी नियम की परवाह नहीं करते।

जगह – ब्रुकफ़ील्डस से महादेवपुरा जाते हुए आईटीपीएल सिग्नल के बाद ५०-१०० मीटर के बीच, बैंगलोर

आत्मसंकल्प या बलपूर्वक

किसी भी कार्य को करने के लिये संकल्प चाहिये होता है, अगर संकल्प नहीं होगा तो कार्य का पूर्ण होना तय नहीं माना जा सकता है। जब भी किसी कार्य की शुरूआत करनी होती है तो सभी लोग आत्मसंकल्पित होते हैं, कि कार्य को पूर्ण करने तक हम इसी उत्साह के साथ जुटे रहेंगे।

परंतु असल में यह बहुत ही कम हो पाता है, आत्मसंकल्प की कमी के कारण ही दुनिया के ५०% से ज्यादा काम नहीं हो पाते, फ़िर भले ही वह निजी कार्य हो या फ़िर व्यापारिक कार्य । कार्य की प्रकृति कैसी भी हो, परंतु कार्य के परिणाम पर संकल्प का बहुत बड़ प्रभाव होता है।

कुछ कार्य संकल्प लेने के बावजूद पूरे नहीं कर पाने में असमर्थ होते हैं, तब उन्हें या तो मन द्वारा हृदय पर बलपूर्वक या हृदय द्वारा मन पर बलपूर्वक रोपित किया जाता है। बलपूर्वक कोई भी कार्य करने से कार्य जरूर पूर्ण होने की दिशा में बढ़ता है, परंतु कार्य की जो मूल आत्मा होती है, वह क्षीण हो जाती है।

उदाहरण के तौर पर देखा जाये कि अगर किसी को सुबह घूमना जरूरी है तो उसके लिये आत्मसंकल्प बहुत जरूरी है और व्यक्ति को अपने आप ही सुबह उठकर बाग-बगीचे में जाना होगा और संकल्पपूर्वक अपने इस निजी कार्य को पूर्ण करना होगा। परंतु बलपूर्वक भी इसी कार्य को किया जा सकता है, जिम जाकर, जहाँ ट्रेडमिल पर वह चढ़ जाये और केवल पैर चलाता जाये तो उसका घूमना जरूर हो जायेगा, परंतु मन द्वारा दिल पर बलपूर्वक करवाया गया कार्य है। किंतु वहीं बाग-बगीचे में घूमने के लिये आत्मसंकल्प के बिना घूमना असंभव है, क्योंकि तभी व्यक्ति के हाथ पैर चलेंगे। जब हाथ पैर चलेंगे, उत्साह और उमंग होगी तभी कार्य पूर्ण हो पायेगा।

कार्य पूर्ण होना जरूरी है, फ़िर वह संकल्प से हो या बलपूर्वक क्या फ़र्क पढ़ता है, संकल्प से कार्य करने पर आत्मा प्रसन्न रहती है, परंतु बलपूर्वक कार्य करने से आत्मा हमेशा आत्म से बाहर निकलने की कोशिश करती है।