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नवभारत टाईम्स में हिन्दी की हिंग्लिश… आज तो हद्द ही कर दी..

नवभारत टाईम्स ही क्या बहुत सारे हिन्दी समाचार पत्र अपने व्यवसाय और पाठकों के कंधे पर बंदूक रखते हुए जबरदस्त हिंग्लिश का उपयोग कर रहे हैं। पहले भी कई बार इस बारे में लिख चुका हूँ, हिंग्लिश और वर्तनियों की गल्तियाँ क्या हिन्दी अखबार में क्षम्य हैं।

मैं क्या कोई भी हिन्दी भाषी कभी क्षमा नहीं कर सकता। सभी को दुख ही होगा।

आज तो इस अखबार ने बिल्कुल ही हद्द कर दी, आज के अखबार के एक पन्ने पर “Money Management” में एक लेख छपा है, देखिये –

एनपीएस में निवेश के लिये दो विकल्प हैं। पहला एक्टिव व दूसरा ऑटो अप्रोच, जिसमें कि PFRDA द्वारा अप्रूव पेंशन फ़ंड में इन्वेस्ट किया जा सकता है। इस समय साथ पेंशन फ़ंद मैनेजमेंट कंपनियां जैसे LIC,SBI,ICICI,KOTAK,RELIANCE,UTI  व IDFC हैं। एक्टिव अप्रोच में निचेशक इक्विटी (E), डेट (G) या बैलेन्स फ़ंड (C ) में प्रपोशन करने का निर्णय लेने की स्वतंत्रता होती है। इन्वेस्टर अपनी पूरी पेंशन वैल्थ G असैट क्लास में भी इन्वेस्ट कर सकता है। हां, अधिकतम 50% ही E में इन्वेस्ट किया जा सकता है। जिनकी मीडियम रिस्क और रिटर्न वाली अप्रोच है वे इन तीनों का कॉम्बिनेशन चुन सकते हैं। वे, जिन्हें पेंशन फ़ंड चुनने में परेशानी महसूस होती है वे ऑटो च्वॉइस इन्वेस्टमेंट ऑप्शन चुन सकते हैं।…

अब मुझे तो लिखते भी नहीं बन रहा है, इतनी हिंग्लिश है, अब बताईये क्या यह लेख किसी हिन्दी लेखक ने लिखा है या फ़िर किसी सामान्य आदमी ने, क्या इस तरह के लेखक ही समाचार पत्र समूह को चला रहे हैं।

द्वारा अप्रूव पेंशन फ़ंड में इन्वेस्ट किया जा सकता है। इस समय साथ पेंशन फ़ंद

क्या हिन्दी अखबार पढ़ना बंद कर देना चाहिये.. समझ ही नहीं आता है कि हिन्दी है या हिंग्लिश.. असल हिन्दी क्या खत्म हो जायेगी.. ?

अभी कुछ दिनों पहले एक चिट्ठे पर किसी अखबार के बारे में पढ़ा था कि पूरी खबर ही लगभग हिंग्लिश में थी, शायद कविता वाचक्नवी जी ने लिखा था, अच्छॆ से याद नहीं है। अभी  लगातार नवभारत टाईम्स में भी यही हो रहा है।
मसलन कुछ मुख्य समाचार देखिये –
१. इंडिया का गोल्डन रेकॉर्ड
२. विमान की इमरजेंसी लैंडिंग
३. पानी सप्लाई दुरुस्त करने में जुटे रिटायर्ड इंजिनियर
४. गेम्स क्लोजिंग सेरेमनी में म्यूजिक, मस्ती और नया एंथम
 
अब कुछ अंदर के पन्नों की खबरें –
१. सलमान पर इनकम टैक्स चोरी का आरोप (अपीलेट आदेश को हाईकोर्ट की चुनौती)
२. साइलेंस जिन के नियमों पर पुलिस लेगी फ़ैसला
३. कॉर्पोरेट्स को मिलेगी इंजिनियरिंग कॉलेज खोलने की इजाजत (’सेंटर ऑफ़ एक्सिलेंस’ के जरिए स्किल्ड वर्कफ़ोर्स की उम्मीद)
४. बच्चों को अपना कल्चर बताना है।
अब अगर यही हाल रहा तो पता नहीं हमारी नई पीढ़ी हिन्दी समझ भी पायेगी या नहीं, क्या हिन्दी के अच्छे पत्रकारों का टोटा पड़ गया है, अगर ऐसा ही है तो हिन्दी चिट्ठाकारों को खबरें बनाने के लिये ले लेना चाहिये। कम से कम अच्छी हिन्दी तो पढ़ने को मिलेगी और चिट्ठाकारों के लिये नया आमदनी का जरिया भी, जो भी चिट्ठाकार समाचार पत्र समूह में पैठ रखते हैं, उन्हें यह जानकारी अपने प्रबंधन को देनी चाहिये। महत्वपूर्ण है हिन्दी को आमजन तक असल हिन्दी के रुप में पहुँचाना।

नवभारत टाइम्स मुंबई ने हिन्दी के अपमान करने का जैसे फ़ैसला ले लिया है ?

आज सुबह जैसे ही हिन्दी का अखबार संडे नवभारत टाइम्स ( जो कि रविवारीय नवभारत टाइम्स  होना चाहिये) आया तो पहले पेज के मुख्य समाचारों को देखकर ही हमारा दिमाग खराब हो गया।
आप भी कुछ बानगी देखिये –

१. बातचीत में पॉजिटिव रुख (२६/११ के आरोपियों के वॉइस सैंपल देने की पाक ने भरी हामी)
२. २६/११ का वॉन्टेड जिंबाब्वे से गिरफ़्तार
३. धारावी ने कलप ने की खुदकशी
४. यूएस सक्सेस में इलाहाबादी हाथ

अब बताइये इनका क्या किया जाये, जैसे हिन्दी का अपमान करने की ही ठान रखी है, इस अखबार ने।
क्या हिन्दी को समर्पित लोगों की कमी है, भारत में, या फ़िर नवभारत टाइम्स हिन्दी अखबार को लेकर पाठकों के प्रति प्रतिबद्ध नहीं हैं। ये तो पाठकों के साथ सरासर धोखा है। ऐसी हिन्दी का मैं सरासर विरोध करता हूँ।
अगर कोई मेरी बात को उनके प्रबंधन तक पहुँचाये तो शायद प्रबंधन भी नींद से उठे।

भगवान और गूगल – रिश्ते इंटरनेट युग में (God & Google – Relationships in Internet Age)..

बहुत दिनों बाद मुझे कल मुंबई लोकल से सफ़र करने का सुअवसर मिला, मौका था एक सेमिनार में जाने का “God & Google – Relationships in Internet Age”, जो इस्कॉन चौपाटी राधा गोपीनाथ मंदिर में था और वक्ता थे इडाहो (idaho, USA) से आये  राधिका रमण प्रभु याने कि डॉ. रवि गुप्ता। वो पूरी दुनिया में सबसे युवा भारतीय विद्वान हैं जिन्होंने मात्र २१ वर्ष की उम्र में डॉक्टरेट पूरा किया, हैं, जिन्हें मानव मनोविज्ञान और व्यवहार का बहुत गहरा ज्ञान है।

सेमिनार में भगवान और गूगल में अंतर बताया गया क्योंकि आज दोनों ही सर्वव्यापी हैं, जैसे भगवान सब जगह है वैसे ही गूगल भी सभी जगह है, परंतु फ़िर भी गूगल भगवान क्यों नहीं है और इस इंटरनेट युग में अपने सामाजिक संबंधों को कैसे मजबूत बनायें, कैसे अपनी भावनाओं को व्यक्त करें।

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अगर आपको भी इस सेमिनार का आडियो सुनना है तो यहाँ चटका लगाईये।

हिन्दी समाचार पत्र “नवभारत टाईम्स” की आंग्लभाषा के प्रति प्रेम की बानगी देखिये कि पूरा एक पेज ही आंग्लभाषा में शुरु कर दिया…

    आज सुबह हिन्दी समाचार पत्र “नवभारत टाईम्स” जब अपने फ़्लेट का दरवाजा खोल कर उठाया तो कुछ अलग लगा। साईड में एक विज्ञापन टाईप का बक्सा मुँह चिढ़ा रहा था, जिसका शीर्षक था – trendz2day. और क्या लिखा था आप भी पढ़िये –

“बदलते जमाने के साथ निखरती जिंदगी में सबसे खुशगवार महक है नई-नई सुविधाओं से लैस गैजेट्स, टेक्नोलॉजी और ट्रेंड्स की उतनी ही तेजी से बदलती दुनिया। इसी दुनिया की विविधताभरी दिलचस्प झलक अब आपको हम लगातार दिखाते रहेंगे, अपनी नई पहल trendz 2 day के जरिये । चूंकि इस दुनिया की सुविधाजनक भाषा इंग्लिश ही है, इसलिए इस हिस्से का किस्सा भी इंग्लिश में – खास आपके लिए।”

    अब भला इन टाईम्स ग्रुप वालों को कौन समझाये कि भले ही आंग्लभाषा दुनिया की सुविधाजन भाषा है तो क्या हम भी उसे ही अपना लें अपनी मातृभाषा छोड़कर। अगर हिन्दी का समाचार पत्र है तो सभी चीजें केवल हिन्दी भाषियों के लिये ही होनी चाहिये, यहाँ सुविधा का ध्यान नहीं रखना चाहिये। जिसे इस तरह की चीजें पढ़ने का शौक होगा उसके लिये इस प्रकार का बहुत सारी सामग्री मौजूद है “दुनिया की सुविधाजनक भाषा में”। हाँ अगर टाईम्स यही पेज हिन्दी में शुरु करता तो एक सार्थक पहल होती कि हिन्दी भाषियों के लिये “दुनिया की सुविधाजनक भाषा” की सामग्री वह हिन्दी भाषा में उपलब्ध करवाता। शायद इसमें उसे बहुत मेहनत लगती और जो आदमी बेकार बैठे थे उनसे काम नहीं ले पाते और नये आदमियों को काम के लिये लेना नहीं पड़ा हो। पता नहीं क्या सोच है इसके पीछे।

    हिन्दी समाचार पत्र प्रेमियों के लिये तो यह एक तमाचे से कम नहीं है, और मैं इसका विरोध करता हूँ।

ये महेश भूपति क्रिकेटर कब से बन गये… मुझे तो नहीं पता … पर क्या आपको पता है… कि नवभारत टाईम्स ने …

आज के नवभारत टाईम्स में पेज नं १० पर एक समाचार है कि “लारा-भूपति लंदन में”। और इसमें लिखा है कि लारा दत्ता का नाम क्रिकेटर महेश भूपति के साथ जोड़ा जाने लगा। अब इस समाचार पत्र में किसे बताया जाये कि महेश भूपति क्रिकेट नहीं खेलते हैं वो टेनिस के खिलाड़ी हैं।

अब इन समाचार पत्र के हिन्दी शुरवीरों की क्या कोई सामान्य ज्ञान की परीक्षा लेने का साहस रखता है, नहीं !!!

बहुत दिनों से गलत खबरें पढ़ते रहे हैं पर आज फ़िर रुकते नहीं बना कि गलत खबर पढ़ते भी नहीं बन रही है, क्या ये टाईम्स ग्रुप का सिन्ड्रैला अखबार केवल हिन्दी के दिखावे के लिये प्रकाशित होता है, या वाकई हिन्दी के लिये गंभीर है, अगर कोई भी हिन्दी भाषी इस समाचार पत्र को पढ़ेगा तो वह इतनी गलतियां इसकी प्रकाशित सामग्री में निकाल सकता है कि इनको शर्म से डूब मरना चाहिये।

लगता है कि नवभारत टाइम्स ने न सुधरने की कसम खा रखी है या ये लोग हिन्दी को मजाक समझते हैं..

बहुत दिनों से नियमित ही मात्राओं की गलतियाँ, नवभारत टाइम्स में देखने को मिलती हैं पर लगातार दो दिन गलतियाँ मतलब नवभारत टाइम्स में ही कहीं कोई समस्या है, ये लोग हिन्दी को गंभीर रुप से नहीं लेते हैं और बिना प्रूफ़ रीडिंग के प्रिंट प्रोडक्शन में डाल देते हैं।
कल के नवभारत टाइम्स में मुख्य पृष्ठ में “राहुल की सादगी”

समाचार में “स्तिथि” लिखा है जब कि “स्थिति” होना चाहिये और आज भारत के क्रिकेट मैच जीतने पर मुख्य पृष्ठ पर फ़ोटो प्रकाशित किया है “विनिंग बोलिंग”, इसमें “आशिष नेहरा” लिखा है जबकि सही तरीके से पृष्ठ ९ खेल समाचार पर “आशीष नेहरा” लिखा गया है, एक बार नहीं कई बार लिखा गया है। अगर यह त्रुटि है तो इसके लिये जिम्मेदारी तय की जाना चाहिये। क्योंकि हिन्दी भाषियों के लिये मुंबई में और कोई विकल्प भी नहीं है।

हम तो दैनिक भास्कर, नईदुनिया और दैनिक जागरण का यहाँ आने का इंतजार कर रहे हैं। क्योंकि हिन्दी समाचार पत्र प्रकाशित करना इनके लिये मजबूरी नहीं वरन उनका पेशा है और हिन्दी के मानक का बहुत ध्यान रखते हैं।

नवभारत टाइम्स से (NBT)- दूसरे पैराग्राफ़ में लिखा है “महाराष्ट्र के कोंकण बेल्ट में ७ जून को मौसम ने दस्तखत दे दी, लेकिन उसकी गति थम गई।“ अब आप ही बताईये सही वाक्य क्या होगा।

नवभारत टाइम्स हिन्दी मुम्बई संस्करण के मुख्य पृष्ठ पर हिन्दी की गल्तियां अब रोज ही होने लगी हैं, पता नहीं इसके एडिटर क्या एडिट करते हैं।

अभी हाल ही की गलती देखिये शनिवार २० जून २००९ की, मुख्य पृष्ठ पर एक समाचार छपा था – “सिर्फ़ ३० दिनों के लिये बचा है पानी”। इसमें दूसरे पैराग्राफ़ में लिखा है “महाराष्ट्र के कोंकण बेल्ट में ७ जून को मौसम ने दस्तखत दे दी, लेकिन उसकी गति थम गई।“, अब भला बताईये क्या यह सही है क्या इसे ऐसा नहीं होना चाहिये था – “महाराष्ट्र के कोंकण बेल्ट में ७ जून को मौसम ने दस्तक दे दी, लेकिन उसकी गति थम गई।“

अब ब्लाग पर तो हम भाषा को सही तरीके से लिखने का प्रयत्न करते हैं पर क्या एक जिम्मेदार अखबार की जिम्मेदारी नहीं है सही हिंदी लिखने की।