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बेटेलाल का लाइसेंस बैंगलोर में

बेटेलाल का लर्निंग लाइसेंस के बाद टेस्ट और परमानेंट लाइसेंस इतनी आसानी से बन गया कि पता ही नहीं चला।

बेटेलाल जैसे ही अप्रैल में घर आये, हमने कहा कि लर्निंग लाइसेंस ले लो, और गाड़ी चलानी शुरू करो, बाईक और कार दोनों। पर वे केवल बाइक के लिये ही राजी थे, कहने लगे कि अभी कार की जरूरत नहीं है, पर बाईक की बहुत जरूरत पड़ती है। बिना गियर वाली बाइक तो हर कोई चला लेता है, पर गियर वाली बाइक की अपनी मुश्किलें होती हैं।

खैर बेटेलाल को बाईक पहले भी चलानी आती थी, पर प्रेक्टिस की जरूरत थी, तो करने लगेज रोज gym भी बाईक से जाने लगे, कल का टेस्ट बुक करवाया था, rto जाकर बस कागज वेलिडेशन करवाया और फोटो खींची गई, फिर सीधे टेस्ट हो गया। हमने पूछा भी कि पास या फेल, वे बोले कि sms आयेगा।

बेटेलाल तो जेब में पैसे रखकर ले गये थे और वहीं खड़े होकर कहने लगे कि इस आदमी ने अभी अभी 500 के 2 नोट कमाने का मौका गँवा दिया, उन्होंने कहीं तो ऑनलाइन पढा था कि रिश्वत देनी पड़ती है, तो हमने भी मना नहीं किया, कि तुम ये भी ट्राय कर लो।

पर गजब हुआ हम घर पहुँचे 2 बजे और 3 बजे sms आ गया कि pass हो गये, क्या ही झूम झूमकर खुश हुए, उनकी दादी जी कहने लगीं कि इतनी खुशी तो 12वीं पास होने की भी नहीं हुई थीं, बेटेलाल बोले ये मेरे कॉन्फिडेंस की exam था। और 10 मिनिट बाद ही ड्राइविंग लाइसेंस ऑनलाइन वर्शन भी आ गया।

अब बेटेलाल को भी यकीन हो गया कि कुछ काम खुद से करवा लो तो ही ठीक रहता है, हमने भी यही सिखाया की न रिश्वत लो न दो।

कोरोना के काल में बच्चों के सर्वांगीण विकास पर असर

कोरोना वायरस का यह समय केवल स्वास्थ्य के लिये ही नहीं, बल्कि जीवन के बहुत से पहलुओं के लिये सही नहीं है। यह कोरोना काल बेहद कठिन है, जिसे निकालना बहुत कष्टप्रद है। कोरोना के डर से न केवल बड़े, बूढ़े बल्कि बच्चे भी प्रभावित हो रहे हैं। बच्चों के लिये यह दौर बहुत कठिन हो रहा है, बच्चों का सर्वांगीण विकास चारदीवारी में सिमट कर रह गया है। बच्चा शुद्ध हवा के लिये भी तरस गया है।

बच्चों के लिये कोरोना बहुत कष्टप्रद साबित होता जा रहा है, बच्चों का बालपन सामाजिक तौर पर घुलने मिलने का होता है, इससे ही उन्हें समाज की बहुत सी बातों का पता चलता है, व बच्चे सामाजिक होते हैं। अब बच्चों को न पढ़ाई के लिये विद्यालय जाना है, न खेलने के लिये मैदान में, और जब बाहर जाना ही नहीं है तो दोस्तों से मिलने, उनसे बात करने की तो बात ही छोड़ दीजिये। बच्चे अपने मन की बात, दिल की बात आख़िर किस से कहें, दोस्त लोग होते हैं तो वे हँसी मज़ाक़ भी करते हैं, मस्तियाँ भी करते हैं, परंतु घर की चार दीवार में क़ैद होकर कौन मस्ती कर पाया है, स्वच्छंद हो पाया है।

बच्चों का अधिकतर समय कमरे के किसी एक कोने में अपने टेबल कुर्सी पर लेपटॉप, मोबाईल पर ऑनलाइन कक्षा में ही बीत जाता है, फिर उन पर गृहकार्य का भी दवाब होता है, कोई बच्चों की मनोदशा समझना नहीं चाहता, किसी के पास समय नहीं है। बच्चों में अब इस प्रकार की दिनचर्या को जीने की आदत सी हो गई है। बच्चों में अब सामाजिकता भी ख़त्म होती जा रही है। बच्चों में प्रश्न पूछने की कला, उत्तर देने की कला जो बच्चों के बीच किसी विद्यालय के कक्ष में आती है वह कभी भी मोबाईल या लेपटॉप के सामने विकसित होने की संभावना नहीं है।

न विद्यालय इस बात के लिये चिंतित हैं और न ही शिक्षक, वे तो बस अपनी कक्षा पूर्ण करके अपने कर्त्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं। बच्चों में प्रतियोगी भाव भी तभी आता है जब बच्चे एक दूसरे को देखते हैं। बच्चे आपस में ही बहुत कुछ सीखते हैं, जिसे घर में नहीं सिखाया जा सकता है, परंतु यह इन बच्चों का दुर्भाग्य कहें या ख़राब समय कि उनकी इस बालावस्था में कोरोना आया है। बच्चों में यह समय कहीं न कहीं बहुत गहरे उनके दिमाग़ में पूरी ज़िंदगी बैठी रहेगी। बच्चे जब बड़े भी हो जायेंगे, तो बहुत से व्यवहारिक परिवर्तन होंगे, कुछ अच्छे होंगे तो कुछ नहीं, यह तो अब भविष्य ही बतायेगा।

फुरसती आदमी

बेटेलाल से अक्सर बहुत सी बातें होती रहती हैं, और वे खुलकर अपने विचार लगभग हर मुद्दे पर रखते हैं, हाँ अभी परिपक्वता नहीं है, पर समय के साथ वह भी आ ही जायेगी, परंतु इतना तो सीख ही लिया है कि अपनी राय किस तरह बनाना चाहिये व अपनी बात को दमदार तरीक़े से कैसे रखा जाये। यही आज के दौर में ही नहीं हमेशा ही ज़रूरी रहा है। हर चीज में नैसर्गिक प्रतिभा हो ज़रूरी नहीं, परंतु कुछ प्रतिभा तो हर किसी में होती हैं, बस हमें उन्हें ढूँढना होता है और फिर निखारना होता है। कई विषयों पर बात हो सकती है, कुछ ऐसे भी विषयों पर बात होती है जिसके बारे में हमें पता नहीं होता, तो हम उनकी बात सुनते रहते हैं और जब सवाल पूछते हैं तो बेटेलाल इधर उधर देखने लगते हैं। अधिकतर बार उनके पास जबाब नहीं होता, तो अगली बार ज़्यादा तैयारी के साथ आते हैं।
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ऐसे ही खाना पकाने पर बेटेलाल के साथ बात चल रही थी, कि किस तरह से खाने में बेहतर स्वाद लाया जा सकता है। जब से लॉकडाऊन लगा है तब से बेटेलाल पाककला में रूचि लेने लगे थे, क्योंकि बाहर से तो कुछ आ नहीं सकता है, खैर हमने तो अब तक बाहर से खाना नहीं मँगवाया, तो घर में ही पिज़्ज़ा, बर्गर, पास्ता और भी जाने क्या क्या बनाने लगे, अब हालत यह है कि वे कहते हैं कि रेस्टोरेंट से अच्छा खाना तो मैं घर में बना लेता हूँ, अब क्यों बाहर जाकर खाना खाना, या बाहर से मँगवाकर खाना, अब तो हम ही पकायेंगे। पर समस्या यह है कि अभी पढ़ाई में भी बहुत समय देना होता है, क्योंकि यही एक दो वर्ष जीवन की दशा दिशा तय करेंगे, तो अब उनको खाना बनाने के लिये हम मना करते हैं, कि तुम पढ़ाई कर लो, खाना बनाने का शौक़ बाद में पूरा कर लेना।
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बात करते करते अचानक ही बेटेलाल बोल पड़े, कौन इतना फुरसती आदमी रहा होगा, जिसने पहले गेहूँ दाल चावल ढूंढें होंगे, फिर पकाने का तरीका, फिर सब्जी मसाला, मतलब कि कच्चा ही खा लेते। उदाहरण के तौर पर रोटी के लिये बोले, पहले गेहूँ उगाओ फिर उसके दाने निकालो, फिर पीसकर आटा बनाओ, फिर पानी मिलाकर आटा गूंथो, फिर बेलकर रोटी बनाओ फिर आग पर पकाओ, इतनी लंबी प्रोसेस बनाने या ढूँढने में कितना लंबा समय लगा होगा।
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ऐसे ही मटर पसन्द नहीं हैं तो कहते हैं कि कौन फुरसती आदमी था जिसने फली छीलकर खाई होगी, और फिर पकाकर भी खाई होगी, अगर वो छीलकर न खाई होती तो ये जंगली फली ही रहती।

क्या आप घर में किताबें पढ़कर सुनाते हैं

यह एक बहुत बड़ा प्रश्न है कि क्या आप घर में किताबें पढ़कर सुनाते हैं, हालाँकि मैं यह भी जानता हूँ कि कई घरों में तो किताबों का नामोनिशान नहीं मिलता है क्योंकि धीरे धीरे किताब पढ़ने की आदत ख़त्म होती जा रही है। किताब पढ़ने की आदत किसी को परिवार से मिलती है तो किसी को दोस्तों से तो किसी को किसी ओर को देखकर मिलती है। कोई बोर होता है तो किताब पढ़ना शुरू करता है, तो कोई किसी एक किताब को पढ़ना शुरू करता है तो फिर वहाँ उद्घृत किसी ओर किताब को भी उत्सुकतावश पढ़ने लगता है, किताब पढ़ने के दौर कई प्रकार से शुरू होते हैं।

मेरी किताब पढ़ने का दौर सरकारी वाचनालय से लाई गई किताबों से शुरू हुआ था, कई किताबें अपने कोर्स में पढ़ीं, कई दोस्तों ने बताईं, कई नाटक, एकांकी, कविताओं को सीखने के चक्कर में पढ़ीं, बस इस तरह कब यह पढ़ने के शौक़ लग गया पता ही नहीं चला। फिर धीरे धीरे जब कविताओं को पढ़ना शुरू किया तो पहले किताब ख़रीदने के लिेये पैसे नहीं होते थे, तो अपने पास एक रजिस्टर रखता था, उस पर जो कवितायें पसंद आती थीं, उन्हें लिख लेता था, अब खैर वह रजिस्टर मेरे पास नहीं है, शायद उज्जैन में घर पर हो या फिर रद्दी में बेच दिया गया हो।

जब बेचा थोड़ा बड़ा हुआ तब मैं बहुत सी किताबें पढ़ता रहता था, फिर एक बार किताब पढ़ रहा था तो बेटेलाल ने कहा कि जरा हमें भी पढ़कर सुनाओ कि ऐसा क्या इस किताब में लिखा है, जो इतना मगन होकर पढ़ रहे हो। फिर हमने ऐसी कई किताबें पढ़ीं और सुनाईं। सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय‘ कृत शेखर एक जीवनी के दोनों किताबें जब हमने पढ़कर सुनाईं जो कि तक़रीबन १९४१ व १९४४ याने कि ७० -७५ वर्ष पहले लिखी गई थीं, परंतु आज भी उनकी बातें मानस पर वैसी ही अंकित होती हैं जैसी उस समय होती होंगी, मानवीय प्रतिक्रिया, बालपन की प्रतिक्रिया में आज भी कोई अंतर नहीं हुआ।

किताबें पढ़कर सुनाने का एक फ़ायदा यह हुआ कि हमें पढ़कर सुनाने को मिलता था तो हमारा उच्चारण अच्छा हुआ, बोलना धाराप्रवाह हुआ, परिवार को सुनने का यह फ़ायदा हुआ कि जब वे सुनते थे तो कई बार हमें बीच में रोककर पूछते थे कि इस शब्द का या वाक्य का क्या अर्थ हुआ, या फिर वे भी उस बात पर अपने क़िस्से सुनाने लगते थे, या फिर कभी हमसे ही पूछा जाता था, कि डैडी कभी आपके साथ भी ऐसा हुआ है क्या। इस प्रकार हम लोग जाने अनजाने अपने कई अनुभव एक दूसरे के साथ शेयर करते रहते थे, जो कि हमेशा ही हमारी यादों में अंकित रहेगा। वे पल जो हमने साथ में बिताये, कभी हम एक दूसरे के हाथों में हाथ लिये, कभी किसी के पैर को तकिया बनाये, कभी किसी रोमांचक मोड़ पर कोई बिस्तर पर ही ज़ोर से उचक लेता, इस प्रकार के कई पल हमने साथ में बिताये। यहाँ तक कि कई बार तो कोई पैराग्राफ़ इतना अच्छा लगा कि उसे दोबारा पढ़ने की फरमाईश होती। इस सबसे जो हमें मिला वह मिला अपने परिवार के साथ अमूल्य वक़्त जो हमने कई वर्ष ऐसे ही साथ में बिताया।

क्या आपने भी कभी अपने परिवार के साथ ऐसे वक़्त बिताया है, या फिर अब बिताना चाहेंगे, ज़रूर बताइयेगा।

 

लॉकडाउन में बेटेलाल

लॉकडाउन में बेटेलाल ने जमकर खाना बनाने का लुत्फ उठाया है, केवल वीडियो देखकर, थोड़ी अपनी अक्ल लगाकर जो पारंगत हुए हैं, काबिले तारीफ है।

खाना बनाना बहुत आसान नहीं है, इसमें सबसे मुश्किल है खाना बनाने के लिये अपने आप को तैयार करना। खाना बनाना दरअसल केवल महिलाओं का ही काम समझा जाता है, पर बेटेलाल कहते हैं कि जो स्वाद मेरे हाथ का होगा, वह किसी और के हाथ में नहीं, ध्यान रखना। वाकई स्वाद तो है।

आटा गूँथना भी रख स्किल है, रोटी, पराँठे, पूरी, बाटी, बाफले, मैदा सबको अलग अलग तरह से गूँथा जाता है। पर बेटेलाल अब इन सबमें परफेक्ट हो चुके हैं। उन्हें नान बहुत पसंद है, जिस दिन खाने की इच्छा होती है सबसे पूछ लेते हैं, फिर नान और पनीर की सब्जी बनाते हैं।

यही हाल इनका गेमिंग में है, पब्जी में पता नहीं कौन सी रैंकिंग हो गई है,चेस खेलने का शौक है तो पता नहीं कहाँ कहाँ के चेस के मैच देखते रहते हैं, फिर यूट्यूब के वीडियो, मूवीज और वेबसिरिज में लगे रहते हैं। पढाई जिस दिन मूड होता है किसी एक विषय का पूरा चेप्टर निपटा देते हैं। वीडियो में भी कुछ अलग ही देखते हैं, जैसे शार्क टैंक और भी कई एंटरप्रेन्योरशिप के कुछ अलग अलग।

रोको टोको मत बस, जो करना चाहते हैं करने दो, हम कहे, करो भई करो, इन सबका भी कुछ विधान ही होगा।

बारिश, अल्लू अर्जुन और फेसबुक ट्विटर

कल ऑफिस पहुँचे तो उसके बाद जो बारिश शुरू हुई, तो शाम को घर आने तक चलती ही रही। आने में तो हम रैनकोट पहनकर आये, परंतु फिर भी थोड़ा बहुत भीग लिये थे। घरपर निकलने के पहले ही फोन करके कह दिया था कि आज शाम को तो पकौड़ा पार्टी करेंगे, और बरसात का आनंद लेंगे। घर पहुँचे थोड़ा बहुत ट्रॉफिक था, पर 18 किमी बाईक से चलने में डेढ़ घंटा लगना मामुली बात है। कार से जाना नामुनकिन जैसा है, पहले तो दोगुना समय लगेगा और फिर पार्किंग नहीं मिलेगी, एक बार गये थे तो तीन घंटे जाने में लगे थे, पार्किंग नहीं मिली थी तो घर पर आकर वापिस से पार्किंग करनी पड़ी थी। जिसको बताया वो हँस हँसकर लोटपोट था कि तुमने कार से जाने की हिम्मत कैसे जुटाई। Continue reading बारिश, अल्लू अर्जुन और फेसबुक ट्विटर

सुबह के मन का आलस या जिद बहुत खतरनाक होते हैं।

हर रोज हम जो काम करते हैं, वह निरंतर करने की इच्छा कभी कभी नहीं होती है, हम उस क्रम को किसी न किसी बहाने तोड़ना चाहते हैं। सुबह के मन का आलस या जिद बहुत खतरनाक होते हैं। सुबह उठकर कई बार ऐसा लगता है कि आज फिर काम पर जाना है, खाना बनाना है या स्कूल जाना है। मतलब कि जो भी काम हम नियमित रूप से कर रहे हैं, उस क्रम को हम तोड़ना चाहते हैं। इसे आलस कहें या जिद कहें, पर यह होता सबको है। यकीन मानिये कि आपको अगर यह नहीं होता तो आप असाधारण मानव है। Continue reading सुबह के मन का आलस या जिद बहुत खतरनाक होते हैं।

NDTV बड़ा ही देशद्रोही चैनल है

NDTV बड़ा ही देशद्रोही चैनल है, भले हिंदी वाला हो या अंग्रेजी वाला, आज अभी थोड़ी देर पहले अंग्रेजी वाले चैनल पर झारखंड में भूख से हुई कुछ मौतों पर कार्यक्रम आ रहा था, जिसमें सरकार से जुड़ा हर आदमी बेशर्मी से कह रहा था, कि सब प्राकृतिक मौत हैं। और मरने वाले ने दाल भात भी खाया व परिवार के लोग 2-3 हजार महीना कमाते हैं, लोगों का कहना है कि आधार कार्ड लिंक नहीं हुआ है तो उन्हें राशन की दुकान से राशन नहीं मिल रहा। इस पर भी केंद्र और राज्य के बयान विरोधाभासी हैं।

किसी को कोई क्लिएरिटी नहीं है, गरीब मर रहे हैं, देखकर मन अजीब सा हो रहा है। मानवीयता को शर्मसार करने वाले लोग आज भी हैं।

बेटेलाल साथ बैठकर देख रहे थे, वे ख़ुद ये सब देखकर द्रवित थे, उनको राशन कार्ड के बारे में नहीं पता, तो उनको बताया कि राशन कार्ड से क्या होता है और क्यों जरूरी है। ये भी बताया कि जितने रूपये चॉकलेट और आइस्क्रीम एक महीने में खर्च कर देते हो, उतने में तो एक परिवार का महीने भर का राशन आ जाता है।

वे अवाक रह गये!!

पॉकीमोन गो Pokémon Go

Pokémon Go
Pokémon Go

पॉकीमोन गो Pokémon Go एक खेल है जो कि मोबाईल फोन पर खेला जाता है, पिछले कुछ समय से उस खेल में मोबाईल गेमिंग की दुनिया में तहलका मचा रखा है। आधिकारिक तौर पर भारत में भी अब गूगल प्ले स्टोर पर पॉकीमोन गो खेल उपलब्ध है। इस खेल को नियान्टिक इनकार्पोरेशन नाम की कंपनी ने बनाया है और इस खेल को ऑफिशियली 6 जुलाई 2016 को रिलीज किया गया था।

पॉकीमोन गो Pokémon Go को एन्ड्रॉयड और एप्पल दोनों पर खेला जा सकता है, यह खेल फ्री है आप इसे डाऊनलोड कर सकते हैं यह 84.4 एम.बी. का है। इस खेल को खेलने के लिये आपको जीपीएस और डाटा कनेक्शन दोनों ही चाहिये होता है और कई बार यह खेल आपका कैमरा भी उपयोग करता है। यह खेल लोकेशन बेस होने के कारण रियल फीलिंग देता है।

इस खेल को खेलने के पहले आपको अपने आपको रजिस्टर करना होता है, आप अपने जीमेल खाते से भी लॉगिन कर सकते हैं। उसके बाद आपको पॉकीमोन स्टॉप पर से बॉल और अंडे लेने होते हैं और जब भी आप पैदल घूमते हैं तो आपको मोबाईल पर पॉकीमोन दिखते हैं तो आपको उन पॉकीमोन को बॉल फेंककर पकड़ना होता है और कई जगहों पर इनके जिम भी होते हैं।

इसमें कई तरह के पॉकीमोन होते हैं जो कि आपको पकड़ने होते हैं और इस खेल में कई लेवल हैं, जो कि आपको पॉइंट्स और पॉकीमोन के आधार पर बढ़ते हैं। जितना आप पैदल चलेंगे उतने ज्यादा पॉइंट्स आपको मिलते जायेंगे और आपके पॉकीमोन शक्तिशाली होते जायेंगे।

Gameplay screenshots of Pokémon Go
Gameplay screenshots of Pokémon Go

तो यह तो आप समझ ही गये होंगे कि पॉकीमोन खेल में चलना बहुत पड़ता है, अगर आप वाहन पर हैं तो एकदम से आपको चेतावनी मिल जायेगी कि आप वाहन चलाते समय पॉकीमोन गो नहीं खेलें, और अपने आस पास का ध्यान रखें। बेहतर है कि जब भी आप इस खेल को खेलें अपने आसपास भी ध्यान रखें और सावधानी पूर्वक खेलें।

विदेश में कई तरह की दुर्घटनायें हो चुकी हैं कि पॉकीमोन गो खेलते खेलते ही हाईवे और सड़कों पर आ गये और भयानक दुर्घटनाओं का शिकार हो चुके हैं। कई लोग आपस में टकरा चुके हैं और कई लोगों की मौत भी हो चुकी है। ध्यान रखें कि खेल मनोरंजन के लिये बनाया गया है, परंतु मनोरंजन जान से ज्यादा कीमती नहीं है।

कई देश पॉकीमोन गो Pokémon Go को खेलने के लिये अपने नागरिकों के लिये चेतावनी जारी कर चुके हैं और कई शहरों में इस खेल को खेलने के लिये प्रतिबंध की भी बात की गई है। कई सार्वजनिक स्थानों पर पॉकीमोन गो खेलने के प्रतिबंध के बोर्ड लगाये गये हैं।

इस खेल के बारे में वर्ष 2014 में पहली बार सोचा गया था और 2016 में जब पॉकीमोन गो को रिलीज किया गया तो केवल कुछ ही देशों में इस खेल को डाऊनलोड के लिये दिया गया, धीरे धीरे जब कंपनी अपने सर्वरों को स्टेबल करने लगी तो उन्होंने अपना विस्तार बढ़ाना शुरू किया, 7 जुलाई 2016 को जब पॉकीमोन गो को बाजार में उतारा गया तो निन्टेन्डो कंपनी के शेयर 10 प्रतिशत बढ़ गये थे और 14 जुलाई तक तो शेयरों के भाव में 50 प्रतिशत का उछाल देखा गया, क्योंकि यह खेल रातोंरात प्रसिद्ध हो चुका था। इस तरह का कोई और खेल मोबाईल गेमिंग की दुनिया में पहली बार उतारा गया था।

मरना क्या होता है, अजीब सा प्रश्न है

मरना क्या होता है, अजीब सा प्रश्न है, परंतु बहुत खोज करने वाला विषय भी है क्योकि सबको केवल जीवन का अनुभव होता है, मरने का नहीं। सोचता हूँ कि काश मरने का अनुभव रखने वाले भी इस दुनिया में बहुत से लोग होते तो पता रहता कि क्या क्या तकलीफें होती हैं, जीवन से मरने के दौरान किन पायदानों से गुजरना पड़ता है। जैसे जीवन के दर्द होते हैं, शायद मरने के भी कई दर्द होते होंगे, जैसे हम कहते हैं कि वह तो अपनी किस्मत पैदा होने के साथ ही लिखवा कर लाया है, तो वैसे ही शायद मरने के बाद के भी कुछ वाक्य होते होंगे, कि मरने के समय ही अपनी किस्मत लिखवा कर लाया है।

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