Tag Archives: बोल वचन

मुंबई में हवस, हो सकता है कि गलती लड़्की की ही हो।

सीन १ – ऑफ़िस से निकलते हुए

    ऑफ़िस से निकले, गलियारे से होते हुए पैसेज में आये, वहाँ चार लिफ़्ट हैं बड़ी बड़ी, २५ लोग तो आराम से आ जायें इतनी बड़ी, पर हम साधारणतया: आते जाते समय सीढ़ियों का ही इस्तेमाल करते हैं, जिससे मन को शांति रहती है कि चलो कुछ तो व्यायाम हो गया। जैसे ही पैसेज में पहुँचे तो एक लिफ़्ट का इंडिकेटर नीचे जाने का इशारा कर रहा था, और हम लिफ़्ट के लोभ में उसमें सवार हो लिये।

    लिफ़्ट से नीचे जाते समय एक सुविधा होती है कि कोई न कोई पहले से रहता है तो ग्राऊँड फ़्लोर का बटन नहीं दबाना पड़ता है, जबकि इसके उलट ऊपर जाना हो तो बटन दबा है या नहीं अपने फ़्लोर का ध्यान रखना पड़ता है।

    जैसे ही लिफ़्ट में पहुँचे तो देखा कि एक लड़की पहले से थी, मोबाईल हाथ में और मोबाईल का हेंड्स फ़्री कान में लगा हुआ, किसी गाने का आनंद उठा रही थी, हमने एक नजर देखा और लिफ़्ट के कांच में अपने को निहारने लगे कि कितने मोटे हो गये हैं, बाल बराबर हैं या नहीं, तो ध्यान दिया कि वो लड़की टकाटक हमारी ओर देखे जा रही थी, बस हमें शरम आ गई, वैसे ये कोई विशेष बात नहीं है, विपरीत लिंगी आकर्षण में सब देखते हैं।

    पर मुंबई में लोगों की नजरें बहुत खराब होती हैं, आप नजर से पहचान सकते हैं कि साधारण तरीके से देख रहा है या हवस की नजर से, कोई भी कैसा भी हो बस हवस का शिकार होता है, फ़िर भले ही वो नजर की हवस हो या मन को तृप्त करने की।

सीन २ – बस को पकड़ने की जद्दोजहद

    हम सबकुछ भूलकर ऑटो लेने निकल पड़े, तो बस स्टॉप से होकर गुजरे थोड़ा आगे सिग्नल है लिंक रोड का, जिस पर शाम के समय लम्बा ट्राफ़िक रहता है, बसें एक के पीछे एक लगी रहती हैं, एक बस स्टॉप पर नहीं रुकी और एक लड़का और एक लड़की उस बस के पीछे दौड़ने लगे, क्योंकि आगे सिग्नल था और बस की गति कम थी और जैसे तैसे बस में सवार हो लिये, लड़के और लड़की ने जमकर सुनाई कंडक्टर को, इतने मॆं उसके पीछे वाली बस से एक लड़की उतरी और आगे वाली बस में चढ़ने की कोशिश में दौड़ने लगी, परंतु जब तक चढ़ पाती सिग्नल हरा हो गया और बस की गति तेज हो गई और इस चक्कर में वह चढ़ नहीं पाई।

    उसके बाद उसने बस न पकड़ पाने और अपनी नादानी में पहले तो अपना पैर पटका और फ़िर एक हाथ की हथेली पर दूसरे हाथ से मुक्का बनाकर बस न पकड़ पाने की असफ़लता प्रदर्शित की, जब उसे ध्यान आया कि वह सड़क पर यह कर रही है तो सकपकाकर आसपास देखा तो पाया कि हम उसकी गतिविधियों को देख रहे हैं, तो मुस्करा उठी और हम भी।

सीन ३ – हो सकता है कि गलती लड़्की की ही हो।

    ऑटो में घर जा रहे थे कि एस.वी.रोड मलाड पर एक नजारा देखा, मोटर साइकिल पर एक लड़का बैठा था और एक लड़की उसके पास में खड़ी थी, लड़के ने लड़की की सूट की कॉलर पकड़ रखी थी और दूसरे हाथ से घूँसा दिखा रखा था।

    तो ऑटो वाला बोला कि इस लड़के को लोग अभी जम कर पिटेंगे तभी इसको समझ में आयेगा। तो मैं बोला कि तुम ये क्यों सोचते हो कि लड़के की गलती होगी हो सकता है कि लड़की सड़क पर बीच में चल रही होगी और लड़का बाईक से गिरते हुए या उसकी दुर्घटना होने से बच गया होगा, इसलिये गुस्सा हो रहा होगा। ऑटो वाला बोला परंतु ऐसा थोड़े ही होता है।

    मैंने उसको बोला कि स्कूटर और ट्रक की टक्कर में लोग बेचारे ट्रक वाले को ही मारते हैं, क्यों क्योंकि स्कूटर छोटी गाड़ी है, पर गलती तो स्कूटर की भी हो सकती है ना !! तो बोलता है कि हाँ साहब बराबर बोलते हैं। हो सकता है कि गलती लड़्की की ही हो।

बैंकें काटापिटी वाले चेक नहीं लेंगी

    यह समाचार शायद सब ने हाल ही में अखबारों में पढ़ा होगा कि बैंकें काटापिटी वाले चेक नहीं लेंगी, पर क्या आपको पता है यह केवल दिल्ली के लिये है, जहाँ कि क्लियरिंग के लिये चेक ट्रंकेशन सिस्टम (CTS) लागू किया गया है, और अभी यह केवल दिल्ली में ही लागू है अब आगामी दिनों में CTS चैन्नई में शुरु होने वाला है, फ़िर यह नियम चैन्नई के लिये भी लागू होगा।

    और किसी शहर में अगर आपको कोई परेशान करे फ़िर वह वित्तीय संस्थान ही क्यों न हो, आप बैंकिग ओम्बड्समैन से शिकायत कर सकते हैं, क्योंकि यह नियम अभी केवल और केवल दिल्ली के लिये है, और जल्दी ही केवल चैन्नई के लिये।

बैंकों के बारे में ज्यादा जानकारी के लिये मेरे ब्लॉग पर जाने के लिये यहाँ चटका लगाईये।

९वीं कक्षा में चुंबन, 7 वर्ष के भतीजे के दोस्त की गर्लफ़्रेंड [kiss in 9th Class, Grilfriend of 7 year old boy]

    आज सुबह दिन की शुरुआत कोई खास नहीं थी पर फ़िर भी कुछ लम्हें लिखना चाहूँगा, सुबह ऑफ़िस के लिये घर से निकले तो बहुत तेज बारिश शुरु हो गई, और हम ऑटो लेकर निकल पड़े ऑफ़िस की ओर। रास्ते में याद आ गई पुरानी कुछ बातें जो कि एक साथी के साथ हमने की थीं। समाज मॆं दो चीजों के बारे में खुलकर बात नहीं की जाती है, एक है पैसा और दूसरा है काम (Sex), हम थोड़ी बहुत कोशिश कर रहे हैं कि पैसे के बारे में खुलकर बातें हों जैसे कि और विषयों पर होती है, एक बार हमने अपने एक साथी के साथ “काम” के ऊपर भी खुलकर बात करने की कोशिश की।
हमने सीधे पूछा कि “तुम्हारी कोई गर्लफ़्रेंड है”,
मित्र बोला “नहीं आजकल तो कोई नहीं है, पर पहले ९ रह चुकी हैं।”
मैंने पूछा “तुमने पहली बार कितनी उम्र में लड़की का चुंबन लिया था”
तो वह शरमा गया और बोला “बोस कोई लफ़ड़ा है तुम मेरी पोलपट्टी लेकर मेरे से कोई काम करवाने वाले हो”
मैंने कहा “नहीं भई मैं तो बस ऐसे ही पूछ रहा हूँ।”
तो बोला “मैं जब ९ वीं क्लास में पढ़ता था तब पहली बार एक लड़की का चुँबन लिया था”
मैंने फ़िर से धैर्य के साथ पूछा “क्या साथ मॆं पढ़ती थी ?”
मित्र बोला “नहीं, दो साल छोटी थी, और घर पर आना जाना था, सामने की बिल्डिंग में रहती थी”
मैंने पूछा “चुंबन कहाँ लिया था, स्कूल में या घर में या कहीं और ?”
अब तो वो और सशंकित हो गया, फ़िर बोला “बोस जरुर कोई लफ़ड़ा है !!”
मैंने कहा “अरे मैं तो बस ऐसे ही पूछ रहा हूँ, कि मैं अपनी जिंदगी में कितना पीछे रहा हूँ और हमारी आज की पीढ़ी क्या कर रही है ?”
तब बोला “घर में चुंबन लिया था”
और फ़िर आज की युवा पीढ़ी के लिये बोलता है कि “अपने भतीजे के साथ बाजार गये थे, तो बाजार में भतीजे की सहपाठिन मिल गई, उसने हाय हैलो किया और मम्मी से बोला कि “मम्मी ये मेरे दोस्त की गर्लफ़्रेंड है”, और उनका भतीजा दूसरी कक्षा में पड़ता है।
फ़िर बोला “हमने तो ९ वीं में चुंबन लिया था, पार आज कल की पीढ़ी में यह ५-६ कक्षा में ही हो जाता है”
हमें आश्चर्य होने लगा कि हम शायद अब बहुत ही बूढ़े हो गये हैं, इसलिये हमने शादी के पहले चुंबन नहीं लिया यार फ़िर हम किसी और ही सभ्यता में रहते थे।
अब आप बताईये आपने पहली बार चुंबन कब लिया था 🙂

मेरे घर में चोरी और भारत के लोकतंत्र का मजाक नक्सलवादियों का भारत बंद आज

    आज सुबह सुबह घर (उज्जैन) से माताजी का फ़ोन आया कि बेटा आज एक दुर्घटना हो गई, तुम्हारा कमरे में पीछे से चोर घुस गये और लॉकर में से समान ले गये। अब हम सुबह सुबह नींद में कुछ समझ ही नहीं पाये ।

    फ़िर पूरा वाकया बयान किया कि सुबह पौने पाँच बजे पापाजी उठे तो हमारे कमरे में उन्हें खटपट की आवाज आई, चूँकि हम वहाँ रहते नहीं हैं तो हमारा कमरा बाहर से बंद ही रखा जाता है। तो पापाजी ने  आवाज लगाई कि अंदर कौन है, तो कुछ जबाब नहीं आया, और चोर/चोरों ने बाहर से तीनों दरवाजों की कुण्डी भी लगा दी थी, फ़िर पापाजी ने किरायेदार को मोबाईल करके बुलाया और बाहर से दरवाजे खोले गये। फ़िर पीछे जाकर देखा जहाँ हमारेक मरे की खिड़की थी और जहाँ से कमरे में चोर लोहे की मजबूत जाली को मोड़कर और खिड़की खोलकर घुसे थे, फ़िर कमरे का मुआयना किया तो लॉकर तोड़ा गया था जो कि लोहे की अलमारी में था। कागज सुरक्षित थे, बस जो पर्स था उसका सारा समान गायब था अब उसमें क्या था याद करने की कोशिश की तो थोड़ा बहुत समान याद आया, और हाँ नकद याद था तो सब मिलाकर याद बन पड़ा कि लगभग १५-२० हजार का समान होगा, चाँदी का समान था अब चाँदी का भाव भी तो आसमान छू रहा है।

    वैसे तो उज्जैन में घर असुरक्षित हो गये हैं, चोर पूरी तरह से सक्रिय हैं, पुलिस के पास बराबर हफ़्ता पहुँच जाता होगा ये हमें उम्मीद है। अब सोचा जा रहा है कि घर में सिक्योरिटी सिस्टम लगा दिया जाये।

    वैसे हमने घर पर कहा है कि पुलिस में चोरी की रिपोर्ट जरुर दर्ज करवायें।

    सुबह सुबह हमने टीवी न्यूज देखी कि बारिश के क्या हाल हैं क्योंकि रात भर मुंबई में भारी बरसात हुई है, परंतु टीवी तो अपने किस्मत के सितारे में ज्यादा व्यस्त थे, तभी नीचे बस दो ही ब्रेकिंग न्यूज थीं ।

१. पंजाब हरियाणा में बारिश का कहर

२. नक्सलियों ने आज भारत बंद की घोषणा की, गृह मंत्रालय ने अलर्ट जारी किया।

    तो उपरोक्त दोनों में हमारे भारत बंद वाले शूरवीर कहाँ हैं, बाहर सड़क पर निकलें और बाढ़ में फ़ँसे लोगों की मदद करें और नक्सलियों से सामना करें।

भारत बंद करने से क्या होगा ? जिम्मेदार लोगों को बंद करो ! मैं इसका विरोध करता हूँ !!

    भारत बंद को राजनैतिक दलों ने जनता को अपनी ताकत बताने का हथियार बना दिया है, और टी.वी. पर देखकर ही पता चल रहा था कि राजनीति में अब केवल और केवल गुंडों का ही अस्तित्व है, क्या आम आदमी ऐसा कर सकता है ??

पुतला बनाकर जलाना

टायर जलाना बीच सड़क पर

डंडा लेकर लहराना

इत्यादि

शायद आपका जबाब भी होगा “नहीं”, पर क्यों और ये लोग कौन हैं जो ये सब कर रहे हैं –

    आम आदमी तो बेचारा अपने घर में दुबका बैठा अपनी रोजी रोटी की चिंता कर रहा था और ये बदमाशी करने वाले लोग राजनैतिक दलों के आश्रय प्राप्त लोग हैं, जिन्हें अगर २-४ लठ्ठ पड़ भी गये तो उसकी भी सारी व्यवस्था इन दलों ने कर रखी है। टी.वी. पर फ़ुटेज दिखाये जा रहे थे लोग डंडे खा रहे थे पर बड़े नेता ४-५ पंक्ति पीछे मीडिया को चेहरा दिखा रहे हैं, फ़िर ब्रेकिंग न्यूज भी आ जाती है कि फ़लाने नेता प्रदर्शन करते गिरफ़्तार, सब अपने को बचा रहे हैं, बस भाड़े के आदमी पिट रहे हैं।

    जो राष्ट्र का एक दिन का नुकसान इन दंगाईयों ने किया, उसकी भरपाई कैसे होगी ? जो हम लोगों के कर से खरीदी गई या बनाई गई सार्वजनिक वस्तुओं की तोड़ फ़ोड़ की गई है, उसका हर्जाना क्या ये खुद भरने आयेंगे ? आम आदमी को सरेआम बेईज्जत करना, क्या ये राजनैतिक दलों को शोभा देता है, (जैसा कि टीवी फ़ुटेज में दिखाया गया, बोरिवली में लोकल से उतारकर लोगों को चांटे मारे गये)। तो इन राजनैतिक पार्टियों को बंद का साफ़ साफ़ मतलब समझा देना था। बंद महँगाई के खिलाफ़ नहीं था बंद था अमन के खिलाफ़, बंद था शांति के खिलाफ़, बंद था आम आदमी के खिलाफ़।

    अगर इन राजनैतिक दलों को वाकई काम करना है तो कुछ ऐसा करते जिससे एक दिन के लिये महँगाई कम हो। अपनी गाड़ियों से सब्जियाँ और दूध भिजवाते तो लागत कम होती और आम आदमी को एक दिन के लिये महँगाई से राहत मिलती। ऐसे बहुत से काम हैं जो किये जा सकते हैं, पर इन सबके लिये इनकी अकल नहीं चलती है।

शायद इस बंद का समर्थन हम भी करते अगर इसका कोई फ़ायदा होता, हमारे फ़ायदे –

सब्जी ५०-८० रुपये किलो है वो १०-२० रुपये किलो हो जायें।

दाल १००-१६० रुपये किलो हैं वो ४०-५० रुपये किलो हो जायें।

दूध ३० – ३९ रुपये लीटर है वो १५-२० रुपये लीटर हो जाये।

पानी बताशे १५ रुपये के ६ मिलते हैं, वो ५-६ रुपये के ६ हो जायें। 🙂

    भले ही पेट्रोल, डीजल और गैस के भाव बड़ें वो सहन कर लेंगे पर अगर आम जरुरत की चीजें ही इतनी महँगी होंगी तो जीना ही मुश्किल हो जायेगा, पेट्रोल डीजल नहीं होगा तो सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल किया जा सकता है। सरकार हड़ताल करने वाले राजनैतिक दलों की भी थी और भविष्य में भी आयेगी परंतु क्या इन लोगों ने महँगाई कम करने के लिये कोई कदम उठाया ? नहीं क्यों इसका कारण इनको भारत बंद के पहले जनता को बताना चाहिये था, और ये भी बताना चाहिये था कि सरकार कैसे महँगाई कम कर सकती है ? आखिर ये भी तो सरकार चलाना जानते हैं। कैसे करों को कम किया जा सकता है, कैसे कमाई बढाई जा सकती है, फ़िर ये भारत बंद से क्या हासिल होगा ?   कुछ नहीं बस जनता को अपनी शक्ति प्रदर्शन दिखाने के ढ़ोंग के अलावा और कुछ नहीं है ये भारत बंद ।

“भारत बंद – मैं इसका विरोध करता हूँ”

स्वास्थ्य के लिये शुल्क बिना सोचे समझे और वित्तीय प्रबंधन के लिये सोच समझकर ? [ Fees for Health and Wealth]

    आपमें से कितने लोग ऐसे हैं जो कि स्वास्थ्य के लिये शुल्क सोच समझकर देते हैं, अगर शुल्क ज्यादा होता है तो तकाजा करते हैं या डॉक्टर को बिना दिखाये वापिस आ जाते हैं, एक भी नहीं ? आश्चर्य हुआ !!! आखिर आप अपने स्वास्थ्य के लिये कोई जोखिम नहीं लेना चाहते हैं, आप हमेशा अच्छे डॉक्टर को ही चुनेंगे, भले ही उनके यहाँ कितनी भी भीड हो, नहीं, पर क्यों ??

    जब स्वास्थ्य प्रबंधन के लिये आप इतना खर्च कर सकते हैं तो अपने वित्तीय प्रबंधन के लिये क्यों नहीं ?? ओह मुझे लगता है कि यहाँ आपको लगता है कि आप बहुत ही विद्वान हैं और अपने धन को बहुत अच्छे से प्रबंधन कर रहे हैं, आपसे अच्छा प्रबंधन कोई कर ही नहीं सकता है, ये वित्तीय प्रबंधन करने वाले लोग तो फ़ालतू का शुल्क ले लेते हैं, या फ़िर अगर कोई वित्तीय प्रबंधक ज्यादा शुल्क लेता है तो कम शुल्क वाले वित्तीय प्रबंधक को ढूँढ़ते हैं। नहीं ??

जैसे स्वास्थ्य के लिये कोई समझौता नहीं करते हैं फ़िर वित्तीय प्रबंधन के लिये कैसे करते हैं ?

जैसे स्वास्थ्य के लिये कोई तकनीकी ज्ञान आपके पास नहीं है, वैसे ही वित्तीय प्रबंधन के लिये है ?

जैसे स्वास्थ्य के लिये आप अपने चिकित्सक को सभी परेशानियाँ बता देते हैं, क्या वैसे ही वित्तीय प्रबंधक को अपनी सारी आय, खर्च, जमा और ऋण बताते हैं ?

क्या आपने कभी सोचा है कि कम शुल्क देकर आप अपने पैर पर ही कुल्हाड़ी मार रहे हैं, जी हाँ, क्यों ?

अगर वित्तीय प्रबंधक ने गलत सलाह दे दी तो ? आपके वित्त की ऐसी तैसी हो जायेगी ।

    और अगर ज्यादा शुल्क वाला अच्छा वित्तीय प्रबंधन करता है तो शुल्क थोड़ा ज्यादा लेगा परंतु आपको वित्तीय रुप से सुरक्षित कर देगा, और यकीन मानिये कि आप सोच भी नहीं सकते आपके वित का इतनी अच्छी तरह से प्रबंधन कर देगा। क्योंकि आपको आज के बाजार के बहुत सारे उत्पाद पता ही नहीं होंगे और होंगे भी तो कैसे कार्य करते हैं, उसका पता नहीं होगा।

एक छोटी सी बात –

    अगर आपके शहर में ४ चिकित्सक हैं, और आपके घर में कोई बीमार पड़ गया, तो आप किस चिकित्सक को दिखायेंगे, आप शहर में नये हैं, तो दवाई की दुकान पर पूछेंगे या फ़िर अपने आस पड़ौस में पूछताछ करेंगे। आपको पता चलेगा कि ३ चिकित्सक तो ऐसे ही हैं पर जो चौथा चिकित्सक है, उसके हाथ में जादू है, उसकी फ़ीस भले ही ज्यादा है परंतु उसका ईलाज बहुत अच्छा है। तो आप उस ज्यादा फ़ीस वाले चिकित्सक के पास जाना पसंद करेंगे।

    परंतु वित्तीय प्रबंधक चुनते समय ऐसा बिल्कुल नहीं है, क्योंकि सब कहीं न कहीं पढ़ लिखकर अपने आप को ज्ञानी समझने लगते हैं, कि हमें वित्तीय प्रबंधक की कोई जरुरत ही नहीं है, और खुद ही प्रबंधन करके अपने वित्त को बढ़ने में बाधा बन जाते हैं। पहले पता कीजिये कि कौन अच्छा प्रबंधन करता है, शुल्क कितना है ये आप मत सोचिये क्योंकि अगर वित्तीय प्रबंधन अच्छे से हो गया तो शुल्क बहुत भारी नहीं होता है। 

    वित्तीय प्रबंधन के लिये सर्टिफ़ाईड फ़ाईनेंशियल प्लॉनर को बुलायें, जैसे हमारे देश में सी.ए., सी.एस. होते हैं वैसे ही सी.एफ़.पी. होते हैं, जो कि भारत सरकार द्वारा अंतर्राष्ट्रीय मापद्ण्डों पर दिया जाने वाला सर्टिफ़िकेट है। ये लोग वित्तीय प्रबंधन में विशेषज्ञ होते हैं, और भारत में यह तीन वर्ष पहले ही शुरु हुआ है। इसमें भविष्य बहुत ही अच्छा है इसके बारे में तो बहुत से लोगों को पता ही नहीं है, और तीन वर्ष में केवल १००४ सी.एफ़.पी. (CFP) ही बाजार में आ पाये हैं।

सी.एफ़.पी. (CFP) के अंतर्जाल के लिये यहाँ चटका लगाईये।

    तो अब आपको फ़ैसला करना है कि आपको अपने वित्त का प्रबंधन वित्तीय चिकित्सक से करवाना है या फ़िर जैसा अभी तक चल रह है वैसे ही करना है। अपनी सोच बदलिये और जमाने के साथ नये उत्पादों में निवेश कर अपने वित्त को नई उँचाईयों पर पहुँचाइये।

डॉक्टर इतना नगदी कैसे मैनेज करते होंगे ? बेटा अस्पताल से वापिस घर आया, फ़िर कुछ अनुभव, [Back to Home, My experience]

   २९ जून को रात १० बजे बेटे को अस्पताल में भर्ती करवाने के बाद फ़िर अस्पताल के अनुभव, ओह मन कड़वा हो जाता है।
    बेटा बिना मम्मी के सोता नहीं है, मम्मी से ज्यादा लगाव है तो मम्मी को ही रुकना था हम अस्पताल की कार्यवाही करके घर आकर सो गये। पर बेटा अस्पताल में और हम घर में सो रहे थे तो हमें भी नींद नहीं आयी, सुबह ५ बजे ही नींद खुली हम तैयार होकर फ़िर अस्पताल की ओर दौड़ पड़े। अस्पताल पहुँचकर पता चला कि बेटा और बेटे की मम्मी दोनों ही रातभर सो नहीं पाये, रात को सिलाईन चढ़ने के कारण, हाथ सीधा ही पकड़कर रखना था और बेटे को सिलाईन की आदत तो थी नहीं, तो उसे अजीब सा लग रहा था।
    हमने कहा जाओ तुम घर जाओ और बेटे को मैं देख लूँगा, सो जाओ नहीं तो तबियत खराब हो जायेगी। बेटे की मम्मी भी घर गयी थोड़ी देर सोयी भीं पर ज्यादा नींद नहीं आयी और खाना बनाकर लौट आयीं। हमने कहा कि चलो कोई बात नहीं, इधर ही बेटे के पास सो जाओ।
    किसी तरह दूसरा दिन खत्म हुआ ३ सिलाईन और ४ इंजेक्शन एँटीबायोटिक्स के लग चुके थे। दिन खत्म होते होते तो हमारे बेटेलाल ने चिल्लाना शुरु कर दिया कि हाथ में दर्द हो रहा है जहाँ सिलाईन लगी थी, पर सूजन कहीं भी नहीं थी, हमने कहा कि नाटक मत करो, ये तो होगा ही। घर पर खाना नहीं खाओगे तो सिलाईन से ऊर्जा मिलेगी। अब सोच लो कि घर पर खाना खाना है या ये सिलाईन चढ़वानी है।
    बस कल रात १ जुलाई को अस्पताल से छुट्टी मिल गई, एँटीबायोटिक्स का पूरा कोर्स भी हो गया। उम्मीद है कि अब यह ठीक रहेगा।
    पिछले चिठ्ठे में जो बातें उठायीं थीं वह सब सही निकलीं, हमने ये अनुभव किया कि डॉक्टर इलाज बहुत अच्छा करता है पर जहाँ मरीज को भर्ती करवाने की बात आती है, वह राक्षस जैसा हो जाता है, अब हमने यह निर्णय लिया है कि इलाज तो इन्हीं डॉक्टर के यहाँ करवायेंगे पर अगर कभी फ़िर से भर्ती करने के लिये बोला तो दूसरे डॉक्टर के पास ले जायेंगे। शायद भर्ती करने की जरुरत ही न हो, पर उसकी भूख को शांत करने के लिये केवल हम ही क्यों शिकार बनें ? और जितने भी आसपास के बच्चे के अभिभावक हैं और जिन्हें हम जानते हैं कि ये सब उसी डॉक्टर से इलाज करवाते हैं। उनहें भी जागरुक करने का जिम्मा हमने लिया है, कि जिससे हम थर्ड ओपिनियन नहीं ले पाये पर वो लोग ले पायें।
    जी हाँ थर्ड ओपिनियन, मैंने सबकी टिप्पणियों को पढ़ा और मैं सभी को धन्यवाद ज्ञापित करना चाहूँगा मेरा हौसला अफ़जाई करने के लिये और बेटे के स्वास्थय लाभ के लिये। ये जो था ये सेकंड ओपिनियन ही था और अब आगे से निश्चय किया है कि थोड़ा सा अपना ज्ञान चिकित्सा के क्षैत्र में भी होना चाहिये जिससे कोई बेबकूफ़ न बना सके, क्योंकि जितनी भी डॉक्टरों की दुकान लगी हैं, सब लूटने की ही दुकानें हैं। मैं यह एक जनर्लाइज स्टेटमेंट दे रहा हूँ क्योंकि गेहूँ के साथ तो घुन भी पिसता है।
   अब एक सवाल जो तीन दिन के मंथन के बाद मेरे वित्तीय प्रबंधन वाले मस्तिष्क में घूमड़ रहा है, कि डॉक्टर के पास इतना नगदी आता है, तो यह कैसे मैनेज करते होंगे और अगर इस प्रोफ़ेशनल फ़ीस को आयकर में नहीं दिखाते होंगे तो यह तो काला धन हो गया। फ़िर इसे सफ़ेद कैसे करते होंगे। क्या हमारी सरकार का ऐसा कोई नियंत्रण है जिससे यह काला धन ज्यादा होने से रोका जा सके ?

हमने थोड़े से अतिरिक्त समय में लाभ उठाया और सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” जी की कविश्री की कविताओं का आनंद लिया।

मेरे बेटे की खराब तबियत में मेरे विचार और घटनाक्रम। क्या डॉक्टर एकाधिक व्यक्तित्व विकार के शिकार होते हैं ? [ Doctor’s with Multiple Disability Disorder ?]

    कल मेरे बेटे की तबियत कुछ ज्यादा ही खराब हो गयी, जैसे ही शाम को मैं घर पहुँचा तो पता चला कि ये दोपहर से सो ही रहा है और कुछ खाया भी नहीं है। आज लगातार पाँचवा दिन है जबकि बुखार कम नहीं हुआ है और १०२ चल रहा है। मैंने तुरन्त ही बच्चे के विशेषज्ञ डॉक्टर को फ़ोन लगाया और पूछा कि कब कहाँ मिलेंगे। और तुरन्त ही उनके नर्सिंग होम लेकर चल दिये।

    इन डॉक्टर के यहाँ हमारा बेटे को हम लगातार दिखाते रहे हैं, उन्होंने अपनी जाँच पूरी की और तुरन्त ही रक्त और मूत्र जाँच के आदेश दे दिये। और लेब को तुरन्त रिपोर्ट देने का बोला। हम कुछ समयांतरल के बाद वापिस डॉक्टर के पास पहुँचे तो वो बोले कि WBS कम है, और टायफ़ाईड होने की संभावना है, कमजोरी बहुत ज्यादा है। इसलिये इसी समय बालक को भर्ती करवा दीजिये।

    उनका बोलना था कि हमारा कलेजा मुँह को आ गया कि जरा सी जान और अस्पताल में भर्ती, हमने कहा क्या घर पर रहकर चिकित्सा नहीं हो सकती है, डॉक्टर बोले हो सकती है पर क्यों जोखिम लें, पहले ही इतनी कमजोरी है और ज्यादा कमजोरी हो गयी तो। हम क्या बोल सकते थे। चुपचाप अपनी गर्दन हिलाई और घर पर फ़ोन लगाया कि तैयार हो जाओ, अस्पताल में भर्ती करवाना है।

   जब हमें डॉक्टर ने बोला था कि भर्ती करवा दो तो हमें डॉक्टर का चेहरा शैतान को होता दिखा था कि उसके मुँह पर अचानक बोलते बोलते ही कान बड़े हो गये हैं, मुँह बड़ा हो गया है, सिर पर दो सींग उग आये हैं, नाक बड़ी हो गयी है और दाँत बाहर को राक्षस जैसे निकल आये हैं।

    हम तो हमेशा से डॉक्टर को भगवान का रुप मानते हैं, परंतु कभी कभी लगता है कि नहीं ये लोग एकाधिक व्यक्तित्व विकार का शिकार होते हैं, तभी तो पल में अपनी बातों से मरीज और मरीज के परिवार का विश्वास जीत लेते हैं और फ़िर उनकी जेब काटने लगते हैं।

    हमारे जो डॉक्टर हैं, वे लगभग हमारी ही उम्र के होंगे, और अभी अभी नया नर्सिंग होम खोला है, और मुंबई में दो जगह नर्सिंग होम हैं। घरवाले भी सोचते होंगे कि वाह हमारे बेटे ने क्या व्यवसाय जमाया है। मुझे लगता है कि मेरा डॉक्टर पर ज्यादा विश्वास है और भगवान पर तो अटूट विश्वास है। और ये सब बातें न जाने क्यों मेरे दिलोदिमाग में आ गई हैं।

    शायद एकदम से मेरी पितृग्रंथी को चोट लगी हो, या फ़िर अस्पताल में खराब अनुभवों से। उम्मीद है कि इलाज कर रहे डॉक्टर हिन्दी ब्लॉग नहीं पढ़ते होंगे और उन्हें बुरा भी नहीं लगेगा। अब हम जा रहे हैं हमारे बेटॆ के पास कल से उसे दो इंजेक्शन और १ सिलाइन चढ़ चुकी है, हमारी घरवाली रातभर से सोई नहीं है, अब हम जा रहे हैं अपने लख्तेजिगर के पास…

ब्लॉगिंग में ५ वर्ष पूरे अब आगे… कुछ यादें…कुछ बातें… विवेक रस्तोगी

    आज से ठीक ५ साल पहले  मैंने अपना ब्लॉग बनाया था और आज ही के दिन पहली पोस्ट दोपहर २.२२ पर “छाप”  प्रकाशित की थी, हालांकि उस पर एक भी टिप्पणी नहीं आयी, फ़िर एक माह बाद जुलाई में एक और पोस्ट लिखी “नया चिठ्ठाकार” जिस पर आये ४ टिप्पणी, जिनमें देबाशीष और अनूप शुक्ला जी प्रमुख थे, एक स्पाम टिप्पणी भी थी, वह आज तक वहीं है क्योंकि उस समय हमें स्पाम क्या होता है पता नहीं था 🙂

   फ़िर नारद, अक्षरग्राम शुरु हुए, शायद आज के नये हिन्दी ब्लॉगरों ने जीतू भाई की पुरानी पोस्टें नहीं पढ़ी होंगी अगर पढ़ेंगे तो आज भी तब तक हँसेंगे कि पेट में बल ने पढ़ जायें, छोटी छोटी बातों को इतने रसीले और चुटीले तरीके से लिखा है कि बस !!

    उस समय के कुछ चिठ्ठाकारों में कुछ नाम ओर याद हैं, ईस्वामी, मिर्चीसेठ, रमन कौल, संजय बेंगाणी, उड़नतश्तरी, अनुनाद सिंह, उनमुक्त, रवि रतलामी। और भी बहुत सारे नाम होंगे जो मुझे याद नहीं हैं, पर लगभग सभी का सहयोग रहा है इस सफ़र में और मार्गदर्शन भी मिला।

    अभी तक कुल ५३५ पोस्टें लिख चुके हैं, हालांकि पोस्टों की रफ़्तार पिछले वर्ष से बढ़ी है, और उम्मीद है कि आगे भी कुछ सार्थक ही लिख पायेंगे।

    मैंने अपने लिये जो विषय चुने हैं, वे हैं वित्तीय उत्पाद पर लेखन, वित्तीय प्रबंधन पर लेखन, बीमा क्षैत्र पर लेखन जिन विषयों पर उनके विशेषज्ञों को भी लिखने में संकोच होता है वह भी हिन्दी में, तो मैंने एक छोटी सी कोशिश शुरु की है, इसमें मेरी सराहना की है कमल शर्मा जी ने, मेरे लेखों को मोलतोल.इन के खास फ़ीचर में स्थान देकर।

    इस ५ वर्ष के सफ़र में तकनीक और ब्लॉगरों को बदलते देखा है, पहले जब २००५ में मैंने हिन्दी चिठ्ठाकारी शुरु की थी, मुझे थोड़ा सा याद है कि मैं शायद ८० वाँ हिन्दी ब्लॉगर था, वो भी इसलिये कि उस समय शुरुआती दौर में माइक्रोसॉफ़्ट ने शुरुआती १०० हिन्दी ब्लॉगरों की एक सूची अपने अंतर्जाल पर लगायी थी, अब वह लिंक मेरे पास नहीं है, गुम गया है अगर किसी के पास हो तो जरुर बताइयेगा। मुझे अच्छा लगता था कि अब अंतर्जाल पर हिन्दी भी शुरु हो चुकी है और जल्दी ही अपना पराक्रम दिखायेगी, हमारे भारत के लोगों के लिये संगणक एक साधारण माध्यम हो जायेगा, क्योंकि अंग्रेजी सबकी कमजोरी है। परंतु यह हिन्दी आंदोलन इतनी तेजी से नहीं चला और न ही अंतर्जाल कंपनियों ने हिन्दी को इतना महत्व दिया पर अब भारतीय उपभोक्ताओं को रिझाने के लिये हिन्दी की दिशा में कार्य शुरु किया गया है, या यूँ कहें बहुत अच्छा काम हुआ है।

    पहले कृतिदेव फ़ोंट में हिन्दी में लिखते थे फ़िर ब्लॉगर.कॉम पर आकर उसे कॉपी पेस्ट करते थे, इंटरनेट कनेक्शन ब्रॉडबेन्ड होना तो सपने जैसा ही था, एक पोस्ट को छापने में कई बार तो १ घंटा तक लग जाता था। अब पिछले २ वर्षों से हम हिन्दी लिखने के लिये बाराह का उपयोग करते हैं, फ़ोनोटिक कीबोर्ड स्टाईल में। पहले जब हमने लिखना शुरु किया था तो संगणक पर सीधा लिखना संभव नहीं हो पाता था, पहले कागज पर लिखते थे फ़िर संगणक पर टंकण करते थे, पर अब परिस्थितियाँ बदल गई हैं, अब तो जैसे विचार आते हैं वैसे ही संगणक पर सीधे लिखते जाते हैं, और छाप देते हैं। अब कागज पर लिखने में परेशानी लगती है, क्योंकि उसमें अपने वाक्यों को सफ़ाई से सुधारने की सुविधा नहीं है, पर संगणक में कभी काट-पीट नहीं होती, हमेशा साफ़ सुथरा लिखा हुआ दिखाई देता है।

    इतने समय अंतराल में केवल यही सीखा है कि अपने लिये लिखो जैसे अपनी डायरी में लिखते हो, अब अपने पाठकों के लिये भी लिखो जो चिठ्ठे पर भ्रमण करने आते हैं। अब देखते हैं कि यह चिठ्ठाकारी का सफ़र कब तक अनवरत जारी होगा।

“चिठ्ठाकारी चलती रहे” [Happy Blogging]

नवभारत टाइम्स मुंबई ने हिन्दी के अपमान करने का जैसे फ़ैसला ले लिया है ?

आज सुबह जैसे ही हिन्दी का अखबार संडे नवभारत टाइम्स ( जो कि रविवारीय नवभारत टाइम्स  होना चाहिये) आया तो पहले पेज के मुख्य समाचारों को देखकर ही हमारा दिमाग खराब हो गया।
आप भी कुछ बानगी देखिये –

१. बातचीत में पॉजिटिव रुख (२६/११ के आरोपियों के वॉइस सैंपल देने की पाक ने भरी हामी)
२. २६/११ का वॉन्टेड जिंबाब्वे से गिरफ़्तार
३. धारावी ने कलप ने की खुदकशी
४. यूएस सक्सेस में इलाहाबादी हाथ

अब बताइये इनका क्या किया जाये, जैसे हिन्दी का अपमान करने की ही ठान रखी है, इस अखबार ने।
क्या हिन्दी को समर्पित लोगों की कमी है, भारत में, या फ़िर नवभारत टाइम्स हिन्दी अखबार को लेकर पाठकों के प्रति प्रतिबद्ध नहीं हैं। ये तो पाठकों के साथ सरासर धोखा है। ऐसी हिन्दी का मैं सरासर विरोध करता हूँ।
अगर कोई मेरी बात को उनके प्रबंधन तक पहुँचाये तो शायद प्रबंधन भी नींद से उठे।