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ब्लॉग के लिये विषय ही याद न रहना

मैं जब ब्लॉग लिखता हूँ तो ब्लॉग के लिये विषय कभी ढूँढ़ता नहीं, बल्कि उस समय जो भी मेरे मन मस्तिष्क में चल रहा होता है, उसी विचार पर ब्लॉग लिख देता हूँ। कई बार ऐसा भी होता है कि हम किसी विषय पर चिंतन कर रहे होते हैं और उससे निकलने के लिये हमें कई बार लिखना होता है तो वह खुद के विचार ब्लॉग के रूप में प्रकट होते हैं।

आज सुबह ऐसा हुआ कि मैं ध्यान में था, और विषय मेरे सामने से निकलने लगा, सोचा था कि उसी पर ब्लॉग लिखूँगा, परंतु हुआ यह कि जब ध्यान से उठा तब तक मैं उस विषय को ही भुला बैठा, तो ऐसा कई बार हो जाता है, कोई सामान्य सी बात भी याद नहीं आती है। मेरे साथ ऐसा कई बार हो चुका है, जैसे कि कुछ चीजें होती हैं जो हम कहीं लिखकर नहीं रखते, वह गोपनीय होती हैं, परंतु हमेशा ही हमारे जहन में रहती हैं, जैसे कि बैंक का लॉगिन आई डी, पासवर्ड, मेरे साथ कई बार ऐसा हुआ कि लॉगिन आईडी याद ही नहीं आता, फिर उस काम को मुझे टालना होता और थोड़ी देर बाद अपने आप ही याद आ जाता है, फिर उस काम को आगे कर पाता हूँ।
मुझे लगता है कि यह सामान्य प्रक्रिया है, और शायद सबके साथ होता है, जैसे कि कई बार मैं फोन या हैंड्सफ्री अपने आसपास ही कहीं रख देता हूँ, ढ़ूँढ़ता हूँ तो नहीं मिलते हैं, फिर परेशान होकर घर में भी सबसे पूछता हूँ, अंतत: पता चलता है कि मैं अपने पास रखा हुआ हूँ और बस वहीं न देखकर सारे घर में ढ़ूँढ़ रहा हूँ। यही जीवन में भी होता है, कई बार हममें ऐसे बहुत से अच्छे गुण होते हैं, या बातें होती हैं, जिन्हें हम जानते नहीं, परंतु हम उन्हें सीखने या पढ़ने के लिये बेताब होते हैं।
विषय की यात्रा की भी अपनी ही एक कहानी है, जैसे कि आप ब्लॉग के लिये विषय ही याद न रहना पर ही यह ब्लॉग लिख दिया।  मन में कई बातें कई बार एक साथ, तो कई बार एक के बाद एक अपने आप चुपके से आने लगती हैं, और उन पर हमारा कोई वश नहीं होता। कई बार हमें सामान्य घटना में भी कोई अच्छा भाव मिल जाता है और कई बार हम उस पर गौर ही नहीं करते। इस मन की राह बहुत कठिन है।
बताईयेगा कि आपके साथ भी कभी ऐसा हुआ है, या होता है, या होता ही रहता है।

लेखन और ब्लॉगिंग

पता है लिखना बहुतों के लिये बहुत दुश्कर कार्य होता है, और बहुतों के लिये बहुत ही आसान, कुछ लोग तो जब भी लिखना चाहते हैं, लिख ही लेते हैं, और वहीं कुछ लोगों को लिखने के लिये बहुत जोर लगाना पड़ता है, अंग्रेजी में कहे गये शब्द राईटर्स ब्लॉक को भी कई लोग आजकल उपयोग करने लगे हैं। मेरा तो खैर मानना यह है कि जब शब्द अंदर से निकलते हैं, आप तभी लिख सकते हैं, नहीं तो लिखना नामुमकिन ही है।

लेखन भी कई प्रकार के होते हैं, कोई लेख अच्छा लिख सकता है तो कोई कहानी, नाटक या उपन्यास, अब अपनी विधा के महारती होते हैं, बस जैसे जैसे लिखते जाते हैं तो उस विधा में उनका अनुभव गहराता जाता है और उसे लिखना उनके लिये बाँयें हाथ का खेल हो जाता है, दूसरे लोग सोचते ही रहते हैं कि यह लेखक कैसे इतना गहरा लिख लेता होगा, पर सही बताऊँ तो शायद लेखक भी इस सवाल का जवाब न दे पाये।

कुछ लोग अपने आपको लिखते हैं तो कुछ लोग अनुभव लिखते हैं, और वहीं कुछ लोग दूसरों को लिख देते हैं। मैं पता नहीं कैसे कहाँ कब से लिखने लगा, मुझे अब लिखना अच्छा लगता है, बचपन से ही टेपरिकॉर्डर पर कवितायें सुनते हुए बड़ा हुआ और फिर महाविद्यालयीन काल में कुछ कविताओं, नाटकों और रचनात्मक लेखन ने शायद मुझे लेखन के लिये प्रोत्साहित किया। परंतु असली लेखन तो मेरा ब्लॉगिंग से शुरू हुआ, जब ब्लॉग आये तो मैंने फिर से लिखना शुरू किया, पता नहीं लेखन में वो धार तब भी थी या नहीं, यही बात आज भी सोचता हूँ कि वह लेखन की धार आज भी है या नहीं।

पहले सीधे कम्पयूटर पर लिखा नहीं जाता था, तो पहले कॉपी पर लिखता था और फिर कम्प्यूटर पर टाईप करता था, परंतु धीरे धीरे आदत ऐसी बनी कि अब सीधे ही कीबोर्ड से लिखने में आनंद आने लगा और आदत भी पड़ गई, अब कागज पर लिखना बहुत कम हो गया है, अब तो लिखने के लिये टाईप करना भी जरूरी नहीं है, मोबाईल में बोलकर लिखा जा सकता है, वहीं अब तो लेपटॉप में भी बोलकर लिखा जा सकता है, और सबसे बड़ी बात इसके लिये किसी प्रोग्राम को पहले की तरह ट्रेंड नहीं करना पड़ता है, अब तो प्रोग्राम ट्रेंड होते हैं और बढ़िया से टाईप करते हैं।

अब जिस विषय पर अच्छी पकड़ होती है, खासकर वित्त पर, उसमें तो मैं कई लेख केवल बोलकर ही लिख लेता हूँ, परंतु जैसे यह ब्लॉग लिख रहा हूँ तो इसे तो मुझे टाईप ही करना पड़ रहा है, क्योंकि यह भावनायें सीधे दिल से निकल रही हैं, यह लिखने के लिये मुझे कुछ सोचना नहीं पड़ रहा है, यहाँ तो बस उँगलियाँ अपने आप ही लिखे जा रही हैं। आप भी कैसे लिख पाते हैं, इस पर टिप्पणी करके जरूर बताईयेगा। हालांकि यह जरूर बता दूँ कि ब्लॉगर लेखक नहीं होता है, केवल ब्ल़ॉगर ही होता है, और मैं भी अपने आपको लेखक नहीं ब्लॉगर ही मानता हूँ, लेखन एक अलग विधा है और ब्लॉगिंग एक अलग विधा है।

ब्लॉग लेखन के लिये मेकबुक एयर लेपटॉप को चुनने की प्रक्रिया

ब्लॉग लिखते हुए १२ वर्ष से ज्यादा हो गये, परंतु अब मेकबुक एयर खरीदा है, शुरूआत में मेरे पास डेस्कटॉप था, फिर मेरा पहला लेपटॉप सोनी वायो था, और उसके बाद लेनेवो का लेपटॉप, जिसे अभी लगभग ३ वर्ष ही हुए हैं। लेनेवो के लेपटॉप में ऐसी कोई बड़ी समस्या नहीं है, अभी तक चल रहा था, विन्डोज १० का कोई एक अपडेट २३ महीने पहले आया, जिसके कारण मेरा लेपटॉप हैंग होने लग गया। क्योंकि मेरे लेपटॉप में ४ जीबी रैम और ५०० जीबी की हार्डडिस्क है, तो पता चला कि कोई प्रोसेस ही ज्यादा मैमोरी ले रही है और इसके कारण हमारा लेपटॉप बहुत धीमा चल रहा है। तब तक मैं वीडियो भी केमेस्टेशिया पर बनाता था। जो कि विन्डोज के लिये एक बेहतरीन उपलब्ध सॉफ्टवेयर है।

लाईनिक्स मैं हालांकि बहुत वर्षों से उपयोग कर रहा हूँ, परंतु वीडियो बनाने के लिये लाईनिक्स का उपयोग करने की शुरूआत मैंने अभी पहली बार की, सबसे पहले उबन्टू 16.04 LTE का इंस्टालर डाऊनलोड किया जो कि पेनड्राईव पर लोड करके, पेनड्राईव से बूट किया और फिर उबन्टू संस्थापित किया। Ubuntu 16.04 तक मिनिमाईज, मैक्जिमाईज और क्लोज का बटन उल्टे हाथ की तरफ था, जिससे विन्डोज को उपयोग करने वाले लोगों के लिये बहुत परेशानी थी। २४ दिन बाद ही Ubuntu 18.04 LTE के अपग्रे़ड उपलब्ध होने का मैसेज आया। हमने हाथों हाथ अपग्रेड कर लिया, यहाँ Ubuntu ने विन्डोज वाले लोगों के लिये मिनिमाईज, मैक्जिमाईज और क्लोज का बटन सीधे हाथ की ओर दे दिया, तो अब सबसे ब़ड़ी परेशानी खत्म हो चुकी थी।

अब विन्डोज १० केवल हमारे लिये प्रिंट निकालने के लिये ही काम आने लगा, वह भी कई बार रिस्टार्ट करने के बाद, हमने अपने लेपटॉप का १८० जीबी लाईनिक्स को दिया और बाकी का विन्डोज के पास ही रहने दिया, लाईनिक्स ने ऑटोमेटिक प्रिंटर तो संस्थापित कर लिया, परंतु प्रिंट नहीं निकला, प्रिंट निकालने की समस्या खड़ी हो गई, बहुत बार गूगल किया और प्रिंटर संस्थापित किया, परंतु सफलता नहीं मिली। टर्मिनल में कमांड लिखने में बहुत परेशानी होती है, परंतु हमें उतनी परेशानी महसूस नहीं होती है। हमने बहुत कोशिश की, परंतु कुछ हुआ नहीं। उल्टा गड़बड़ ये हो गई कि लेपटॉप का माइक और स्पीकर चलना बंद हो गया।

वीडियो रिकार्डिंग के लिये हम लाईनिक्स में काजम Kazam का उपयोग करते हैं, जो कि सीधे ही .mp4 फार्मेट में वीडियो फाईल सेव कर देता है, और वीडियो की रेन्डरिंग भी नहीं करनी पड़ती। इसी से ही स्क्रीनशॉट भी ले सकते हैं, या फिर Screenshot सॉफ्टवेयर का उपयोग भी किया जा सकता है। अब बहुत परेशना की बात हो गई थी, क्योंकि हमारा फाईनेंशियल बकवास यूट्यूब चैनल है और इस चैनल पर हम हर सप्ताह २ वीडियो डालते हैं, एक रविवार को और एक बुधवार को। लेपटॉप बहुत भारी भी है, साथ ही बैटरी लाईफ भी कम है। हमने बहुत शोध किये और अंतत: पाया कि हमारी सारी समस्याओं का एक ही समाधान है, कि हम या तो लाईनिक्स बेस्ड लेपटॉप पर शिफ्ट हो जायें या फिर एप्पल के मेकबुक एयर पर। इस लेपटॉप में एक और समस्या हुई कि स्क्रीन पर ब्लैक डॉट्स आ गये हैं, तो स्क्रीन ज्यादा दिन नहीं चलेगी, और न ही यह लेपटॉप एक्सचेंज में जायेगा, क्योंकि यह फिजिकल डैमेज माना जाता है।

लाईनिक्स के लेपटॉप भी SSD HDD के साथ 42 हजार के आसपास पड़ रहा था, और उसकी बैटरी लाईफ भी कम थी, ज्यादा से ज्यादा ३४ घंटे, परंतु वहीं मैक एयर की बैटरी लाईफ १२ घंटे और वजन १ किलो कम याने कि १.३९ किेलो, जबकि लाईनिक्स वाले लेपटॉप का वजन २.६ किलो। फेसबुक पर स्टेटस डालकर अपने मित्रों से राय ले ली गई, और जीत मैकबुक एयर की ही हुई, क्योंकि मैकबुक की लाईफ भी अच्छी है, और हमारे सारे काम भी हो जायेंगे, तो फ्लिपकार्ट पर आखिरी दिन की सैल में हमने मैकबुक एयर खरीद लिया, एप्पल स्टोर पर ६३ हजार का था, और फ्लिपकार्ट पर ५५ हजार का और क्रेडिट कार्ड का १०% इंस्टेंट डिस्काऊँट मिलाकर हमें लगभग ५१ हजार का पड़ा, अभी लेपटॉप को आने में २ सप्ताह हैं। फ्लिपकार्ट की डिलिवरी बहुत देरी से होती है, पर और कोई चारा ही नहीं था। अब हमारा मैकबुक एयर आ जाये, फिर हम उसके अनुभव भी साझा करेंगे।

TVS Jupiter की फेक्टरी विजिट “ज्यादा का फायदा”

बेटा बड़ा हो रहा है और घरवाली को भी आजकल बाहर जाने के लिये किसी साधन की जरूरत महसूस होती है, क्योंकि पहले तो हम हर जगह ले जाते थे, पर अब हमारा समय ऑफिस में ज्यादा निकलता है तो अब एक दोपहिया वाहन की जरूरत महसूस जरूर होती है, जिसे बेटा और घरवाली दोनों चला सकें, सारे दोपहिया वाहन देखे, पसंद आया TVS Jupiter।

तभी हमें इंडीब्लॉगर की तरफ से TVS Jupiter की फेक्टरी में जाने के लिये मौका भी मिल गया, जिसमें केवल हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं के ब्लॉगरों को बुलाया गया था। हम बैंगलोर के प्रसिद्ध ट्रॉफिक से होते हुए TVS Jupiter की फेक्टरी होसुर पहुँचे। जब हम फेक्टरी पहुँचे तो वहाँ की हरियाली देखकर मंत्रमुग्ध हो गये, चारों तरफ फेक्टरी की इमारतों के बीच जगह जगह कतार से लगे पेड़ और लंबे फैले घास के मैदान।

Bloggers in BUS

 

 

 

 

 

 

 

 

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ब्लॉगिंग (Blogging) के 10 वर्ष पूर्ण.. बहुत सी बातें और बहुत सी यादें

    आज से ठीक पाँच वर्ष पूर्व हमने अपने पाँच वर्ष पूर्ण होने पर यह पोस्ट लिखी थी और अब हमें ब्लागिंग (Blogging) में दस वर्ष पूरे हो गये हैं, आज यह  1100 वीं पोस्ट है और हमारे लिये यह जादुई आँकड़ा है, और उससे कहीं ज्यादा प्रतिक्रियाएँ मिली हैं। ब्लॉगिंग जब शुरू की थी तब हिन्दी कंप्यूटर पर लिखना इतना मुश्किल नहीं था पर हाँ सीमित साधनों के चलते वेबसाईट पर लिखना बहुत ही कठिन था । पर आज ये देखकर खुशी होती है कि हिन्दी में लिखने के लिये बहुत सारे साधन उपलब्ध हैं यहाँ तक कि अब तो मोबाईल पर हिन्दी को बोलकर भी टाइप किया जा सकता है, तो जिसको टाइप करना न भी आता हो वह भी अब ब्लॉगिंग कर सकता है।
    समय की कमी बहुत ही तेजी से होती जा रही है, पहले हम कंप्यूटर पर इंटरनेट बंद रखते थे कि ब्लॉग लिखना है नहीं तो अपना दिमाग किसी और तरफ चला जायेगा, पर अब मोबाईल ने तो जीवन का अधिकतम समय ले लिया है, हम अपना अधिकतम समय मोबाईल को देते हैं और कई कार्यों को करने से छोड़ देते हैं, ब्लॉगिंग के लिये लेखन के लिये समर्पित होना पड़ता है और अपने तात्कालिक प्रतिक्रिया वाली मनोदशा से बाहर आना पड़ता है।
कुछ अनुभव जो हमने 2 वर्ष पहले ब्लॉगिंग के लिये लिखे थे, हालांकि ये भी अधूरे ही रहे –

ब्लॉगिंग (Blogging) की शुरूआत के अनुभव (भाग १)

ब्लॉगिंग (Blogging) की शुरूआत के अनुभव (भाग २)

ब्लॉगिंग की शुरूआत के अनुभव (भाग ३)

कुछ और पोस्टें मैंने ब्लॉगिंग पर लिखी हैं तो वे ब्लॉगर या ब्लॉग लेबल पर क्लिक करके पढ़ी जा सकती हैं।
हिन्दी ब्लॉगिंग के क्षैत्र में एक से एक धुरंधर ब्लॉगर थे पर मैंने देखा है कि अधिकतर पुराने ब्लॉगर अपने ब्लॉग से थोड़ी दूरी बना चुके हैं या फिर फेसबुक पर अपने तात्कालिक विचारों को रखकर ही इति कर लेते हैं, जैसे कि पहले ब्लॉग में चिंतन मनन करके लिखा जाता था, कुछ या बहुत कुछ तात्कालिक लेखन भी होता था, आजकल बहुत ही कम दिखता है, ब्लॉग पढ़ने वाले पहले केवल ब्लॉगर थे, और सोचते थे कि बहुत सारे पाठक गूगल या किसी और सर्च इंजिन से हमारे ब्लॉग पर कभी न कभी तो आयेंगे । अब ब्लॉग लिखो तो ब्लॉगरों के पास पढ़ने का समय नहीं है या उनकी रूचि खत्म हो चुकी है या फिर ब्लॉग पर टिप्पणी करना उनको ठीक नहीं लगता है, जैसे मानव सभ्यता का विकास हुआ है और हम प्रगति करते जा रहे हैं वैसे ही यहाँ की भी हालत हो गई होगी, हम यही सोचते हैं।
    हिन्दी ब्लॉगिंग ने दम तो नहीं तोड़ा है, हिन्दी ब्लॉग अच्छी खासी मात्रा में अब उपलब्ध हैं। एक और बात है कि हमारे हिन्दी ब्लॉगिंग में ब्लॉगर ऐसी कोई तकनीक का उपयोग नहीं करते हैं जिससे सर्च इंजिन को ढ़ूँढ़ने में आसानी हो, और ब्लॉग पढ़ने वाले पाठकों की आवृत्ति बढ़े। कुछ ही गिने चुने ब्लॉगर नई तकनीकों का उपयोग कर पा रहे हैं, या तो समय की उपलब्धता न होने के कारण या फिर कम तकनीकी ज्ञान । बहुत सारे ब्लॉगर किसी एस.ई.ओ. टूल का उपयोग नहीं करते हैं, शौक शौक में अपनी वेबसाईट तो हमने भी खरीद ली पर अभी तक अपने इस ब्लॉग को नहीं ले जा पाये हैं, कई बार कोशिश करी, कभी किसी तकनीकी उलझन में उलझ गये या फिर कभी हमारे ब्रॉडबैंड ने धोखा दे दिया। कई नये और पुराने ब्लॉगर अपनी अपनी वेबसाईट पर चले जरूर गये हैं पर बहुत ही कम ब्लॉगरों ने अपनी होस्टिंग अच्छे से की हुई है, जिससे उनका लिखा हुआ सर्च इंजिन में अवतरित हो। अधिकतर ने केवल अपने ब्लॉग रिडाइरेक्ट किये हुए हैं, जिससे केवल उनका पता बदला है पर अंदर से घर वही पुराना है।
हिन्दी में ब्लॉगिंग के बहुत सारे सितारे हैं और कई सितारों से या तो मैं मिल चुका हूँ या फिर फोन पर तो बात हो ही चुकी है। हिन्दी ब्लॉगिंग के कारण संसार के कई लोगों से इस आभासी और अप्रत्यक्ष दुनिया के माध्यम से मिल चुका हूँ, और हिन्दी माध्यम होने के कारण बहुत से ब्लॉगरों से आत्मीय संबंध भी स्थापित हुए और अभी तक हैं। अपने फेसबुक पर या गूगलप्लस पर अधिकतर मित्र ब्लॉगिंग क्षैत्र से ही हैं और शायद वे ही लिखी गई अधिकतर पोस्टों को लाईक करने वाले या फिर टीप देने वाले होते हैं।
    जब मैंने ब्लॉगिंग शुरू की थी तब मैं उज्जैन में था, फिर दिल्ली, मुँबई, बैंगलोर, चैन्नई, हैदराबाद और अब गुड़गाँव में हैं, मैंने इस दौरान लगभग सभी जगह ब्लॉगरों से मुलाकात भी की, कुछ ब्लॉगर बहुत ही मिलनसार होते हैं और कुछ नहीं मिलना चाहते हैं, यह व्यक्तिगत मामला है। खैर मैंने तो बहुत से ब्लॉगरों को अपने विचारों के साथ ही खड़ा पाया और जो नहीं भी थे उनसे भी प्यार और सम्मान पाया। पता नहीं इतना प्यार और सम्मान के लिये मैं कैसे आभार प्रकट करूँ।
    मैंने इस दौरान कई तरह के विषयों पर लेखन किया पर कभी अपने ब्लॉग को एक ही विषय का नहीं बना पाया, बस एक ही बात उल्लेखनीय है कि किसी भी विषय पर लिखा हिन्दी भाषा में लिखा। यह पोस्ट लिखते हुए भी बहुत सारे खलल हैं पर लिखना ही है तो भी जीवन के अशांतिपूर्ण वातावरण से थोड़ा सा समय शांतिपूर्वक ब्लॉग पोस्ट लिखने के लिये निकाल ही लिया। मैं जानता हूँ कि बहुत सी बातें यहाँ मैं करने से चूक रहा हूँ पर मैं वे सब बातें भी लिखना चाहता हूँ, अगर अगले कुछ दिनों में समय मिला तो जरूर इस पर बहुत कुछ लिखने की इच्छा रखता हूँ।

भारत में पहली बार सोशल बैंकिंग जिफि बैंक खाता

    भारत में बैंकों के इतिहास में पहली बार कोटक महिन्द्रा बैंक ने इंडीब्लॉगरों के मध्य सोशल बैंकिंग पर आधारित अपना पहला उत्पाद 23 मार्च को बाजार में उतारा । जिसका नाम जिफि #JIFI दिया गया है । ट्विटर पर इसे #JifiIsHere के टैग से देखा जा सकता है । जिफि खाता खुलवाने के लिए फेसबुक एकाऊँट का होना जरूरी आवश्यकता है। जिफि एकाऊँट का निमंत्रण पाने के लिए ईमेल या फेसबुक लॉगिन का उपयोग करना होता है।
    सोशल बैंकिंग में  बैंक की सारी नई जानकारियाँ जिफि बैंक खाताधारक अपने ट्विटर हैंडल पर सीधे पा सकता हैं, बैंक जिफि ग्राहकों को डाइरेक्ट मैसेज से जानकारी भेजेगी, जिससे जिफि ग्राहक की जानकारी पूर्णरूप से गोपनीय रहेगी । जिफि ग्राहक बैंक को सीधे ट्विट करके अपने खाते की जानकारी ले सकते हैं । तो जिफि ग्राहकों के लिए अपना बैलेंस जानना भी केवल एक ट्विट करने भर की दूरी पर है।
    जिफि ग्राहक अपना एकाऊँट एक्टिवेट करने के बाद अपने ट्विटर हैंडल को जिफि डेशबोर्ड से जोङना है, इस सुविधा का लाभ वे सभी जिफि ग्राहक उठा सकते हैं जिनके पास ट्विटर एकाउँट है।

ट्विटर पर ट्विट करके जिफि ग्राहक  निम्न जानकारियाँ पा सकते हैं

–    बैलेंस जानना, आखिरी तीन ट्रांजेक्शन, पिछले तीन महीने के स्टेटमेंट ईमेल पर मँगाना, किसी चेक के स्टेटस की जानकारी, नई चेकबुक का लिए आवेदन, पास के एटीएम एवं शाखा के बारे में जानकारी, नेट बैंकिंग एवं फोन बैंकिंग का पिन बदलना, ऐसे ही क्रेडिट कार्ड के बारे में जानकारी पा सकते हैं। यहीं पर जिफि ग्राहक अपने रैफेरल और रिवार्ड पॉइंट्स के बारे में भी जान सकते हैं।
    अगर आपका ट्विटर एकाउँट हैक भी हो जाये तो kotakjifi.com पर लॉगिन करके ट्विटर एकाउँट हैंडल हटा दें।
    500 रू. के ऊपर के हर ऑनलाइन ट्रांजेक्शन पर 25 पॉइंट्स मिलेंगे और हर रैफेरल पर 250 सोशल पॉइंट्स मिलेंगे। जिफि ग्राहक मोबाईल एप्प से भी बैंकिंग कर सकते हैं। जिफि बैंक एकाऊँट में सबसे अच्छी बात है कि 25 हजार के ऊपर का बैलेन्स अपने आप फिक्सड डिपोजिट बन जायेगी।
    तो इंतजार किस बात का, kotakjifi.com पर लॉगिन कीजिये और जिफि ग्राहक बनिये ।
    Indiblogger.in को इस बेहतरीन अनुभव का साक्षी बनाने के लिए  धन्यवाद ।

ब्लॉगिंग की शुरूआत के अनुभव (भाग ३)

हमने २००५ में कृतिदेव फ़ोंट(kruti dev Font)  से विन्डोज ९५ (Windows 95) में ब्लॉग लेखन (blog writing)  की शुरूआत की थी, उस समय और भी प्रसिद्ध फ़ोंट (Famous font) थे, पर हमें क्या लगभग सभी को कृतिदेव (Kruti Dev Font) ही पसंद आता था। इधर कृतिदेव (Kruti Dev Font) में लिखते थे और इंटरनेट पर प्रकाशित करने की कोशिश भी करते थे, परंतु कई बार इंटरनेट की रफ़्तार बहुत धीमी होने के कारण, पोस्टें अपने कंप्यूटर में ही रह जाती थीं।
कृतिदेव (Kruti Dev Font) में लिखा पहले हमने ईमेल में कॉपी पेस्ट करके अपने दोस्त को भेजा, तो उन्हें पढ़ने में नहीं आया, तब पता चला कि उनके कंप्यूटर में कृतिदेव फ़ोंट (Kruti Dev Font) ही नहीं है, जब उन्होंने कृतिदेव फ़ोंट (Kruti Dev Font) को संस्थापित किया और फ़िर से ईमेल को खोला और उसकी कुछ सैटिंग इनटरनेट एक्स्प्लोरर ब्राऊजर में की, तब जाकर वे ईमेल को पढ़ने में सफ़ल रहे, हमारे लिये तो यह भी एक बहुत बड़ी उपलब्धि था, आखिर हमने अपनी मातृभाषा हिन्दी में पहली बार ईमेल लिखा था, और जो पढ़ा भी गया।
इधर साथ ही ब्लॉगर पर अपना ब्लॉग बनाने की कोशिश भी जारी थी, एक तो इन्टरनेट की दुनिया के लिये हम नये नवेले थे और दूसरी तरफ़ कोई बताने वाला नहीं था, क्योंकि ब्लॉगिंग में किसी का ध्यान ही नहीं था, कुछ भी करने के लिये रूचि का होना बहुत जरूरी है, उस समय लोग अधिकतर सायबर कैफ़े (Cyber cafe) में याहू के पब्लिक चैट करने के लिये जाते थे, जो कि उस समय काफ़ी प्रसिद्ध था। Your asl please !!! यह उनका पहला वाक्य होता था।
ब्लॉगर प्लेटफ़ॉर्म का पता भी हमें किसी ब्लॉग के एक्स्टेंशन से मिला था, जो कि हमने लायकोस और नेटस्केप सर्च इंजिन में जाकर ढूँढ़ा था, जब ब्लॉग बनाने पहुँचे तो ब्लॉगर ने हमारे पते के लिये ब्लॉग का पता पूछा, उस समय हम अपना उपनाम कल्पतरू लगाना बेहद पसंद करते थे, और इसी नाम से कई कविताएँ अखबारों में प्रकाशित भी हो चुकी थीं, सो हमने अपने ब्लॉग का नाम कल्पतरू ही रखने का निश्चय किया।
पहली पोस्ट को हमने कई प्रकार से लिखा, कई स्टाईल में लिखा, पेजमेकर में डिजाईन बनाकर लिखा, कोरल फ़ोटोशाप में अलगर तरीके से लिखा, पर पेजमेकर और कोरल की फ़ाईल्स ब्लॉगर अपलोड ही नहीं करता था, और ना ही कॉपी पेस्ट का कार्यक्रम सफ़ल हो रहा था, आखिरकार हमने वर्ड में लिखा हुआ पहला ब्लॉग लेख कॉपी करके ब्लॉगर के कंपोज / नये पोस्ट के बक्से में पेस्ट किया, जिसमें भी हम उसकी फ़ॉर्मेटिंग वगैराह नहीं कर पाये। पर आखिरकार २८ जून २००५ को हमने अपना पहला ब्लॉग लेख प्रकाशित कर ही दिया, हालांकि उस समय हमें ब्लॉग पर केवल हिन्दी लिखने के लिये आये थे, क्योंकि हमारे सामने यह एक बहुत बड़ी बाधा थी, और अपने आप से वादा भी था, कि आखिर इन्टरनेट पर हिन्दी कैसे लिखी जा रही है, और हम इसे लिखकर बतायेंगे भी, तो पहली पोस्ट किसी अखबार में छपी एक छोटी सी कहानी थी जो हमने टाईप करके प्रकाशित की थी।
उस समय पहली पोस्ट पर कोई टिप्पणी नहीं आई थी, पर अगली पोस्ट जो कि हमने १२ जुलाई २००५ को लिखी थी, जिसे अगस्त में पढ़ा गया, और पहली टिप्पणी थी देबाशीष की, जिसमें उन्होंने हमें बताया था कि फ़ीड में कुछ समस्या है, तो वापिस से सारी पोस्टें सुधारनी होंगी। फ़िर नितिन बागला और अनूप शुक्ल जी की टिप्पणी आई। अनूप जी की टिप्पणी से हमें बहुत साहस बँधा कि चलो कोई तो है जो अपने को झेलने को तैयार है, उनकी पहली टिप्पणी हमारे ब्लॉग पर थी “स्वागत है आपका हिंदी ब्लागजगत में । पत्थर पर लिखी जा सकने योग्य रचनाओं की प्रतीक्षा रहेगी।”
जारी…

ब्लॉगिंग की शुरूआत के अनुभव (भाग २)

ब्लॉगिंग की शुरूआत के अनुभव (भाग १)

    हम उन बैंक अधिकारी के साथ अपने मित्र के सायबर कैफ़े गये, जहाँ रोज शाम वे इन्टरनेट का उपयोग करने जाते थे, उन्होंने हमें सबसे पहले गूगल में खोजकर हिन्दी के बारे में बताया, फ़िर हिन्दी में कुछ लेख भी पढ़वाये, अब याद नहीं कि वे सब कोई समाचार पत्र थे या कुछ और, बस यह याद है कि किसी लिंक के जरिये हम पहुँचे थे, और वह शायद हिन्दी की शुरूआती अवस्था थी । हिन्दी लिखने के लिये कोई अच्छा औजार भी उपलब्ध नहीं था।

    तब तक हमारा 486 DX2 दगा दे चुका था, यह कम्प्यूटर लगभग हमारे पास ४-५ वर्ष चला, और हमने फ़िर इन्टेल छोड़ दिया, और ए एम डी का एथलॉन प्रोसेसर वाला कम्प्यूटर ले लिया, कीबोर्ड हालांकि नहीं बदला वह हमने अपने पास मैकेनिकल वाला ही रखा, क्योंकि मैमरिन कीबोर्ड बहुत जल्दी खराब होते थे और उसमें टायपिंग करते समय टका टक आवाज भी नहीं आती थी, तो लगता ही नहीं था कि हम कम्प्यूटर पर काम भी कर रहे हैं, एँटर की भी इतनी जोर से हिट करते थे कि लगे हाँ एँटर मारा है, जैसे फ़िल्म में हीरो एन्ट्री मारता है।

    उस समय लाईवजनरल, ब्लॉगर, टायपपैड, मायस्पेस, ट्रिपोड और याहू का एक और प्लेटफ़ॉर्म था, अब उसका नाम याद नहीं आ रहा Sad smile है। फ़िर उन्हीं बैंक अधिकारी के साथ ही हम सायबर कैफ़े जाने लगे और हिन्दी के बारे में ज्यादा जानने की उत्सुकता ने हमें उनका साथ अच्छा लगने लगा, पर इसका फ़ायदा यह हुआ कि अब वे शाम रंगीन हमारे साथ हिन्दी के बारे में जानने और ब्लॉगिंग प्लेटफ़ॉर्म को जानने में करने लगे। सारे लोग यही सोचते थे कि देखो ये लड़का तो गया हाथ से अब यह भी अपनी शामें सायबर कैफ़े में रंगीन करने लगा है।

    परंतु उस समय इन्टरनेट की रफ़्तार इतनी धीमी थी कि एक घंटा काफ़ी कम लगता था और उस पर हमारी जिज्ञासा की रफ़्तार और सीखने की उत्कंठा बहुत अधिक थी। हमने बहुत सारे ब्लॉगिंग प्लेटफ़ॉर्म देखे परंतु ब्लॉगर का जितना अच्छा और सरल इन्टरफ़ेस था उतना सरल इन्टरफ़ेस किसी ब्लॉगिंग प्लेटफ़ॉर्म का नहीं था । हमने वर्डप्रेस का नाम इस वक्त तक सुना भी नहीं था।

    काफ़ी दिनों की रिसर्च के बाद क्योंकि इन्टरनेट की रफ़्तार बहुत धीमी थी और अपनी अंग्रेजी भी बहुत माशाअल्ला थी, तो इन दोंनों धीमी रफ़्तार के कार्यों से ब्लॉगिंग की दुनिया में आने में देरी हुई, तब तक गूगल करके हम बहुत सारे हिन्दी ब्लॉगिंग कर रहे ब्लॉगरों को पढ़ने लगे थे, उस समय चिट्ठाग्राम, अक्षरविश्व जैसी महत्वपूर्ण वेबसाईस होस्ट की गई थीं, जिससे बहुत मदद मिलती थी, और उस समय कुछ गिने चुने शायद ८०-९० ब्लॉगर ही रहे होंगे। आपस में ब्लॉगिंग को बढ़ावा देते, टिप्पणियाँ करते, लोगों को कैसे ब्लॉगिंग के बारे में बताया जाये, इसके बारे में बात करते थे। उस समय हम सोचते थे कि कम से कम रोज एक वयक्ति को तो हम अपने ब्लॉग के बारे में बतायेंगे। जिससे पाठक तो मिलना शुरू होंगे।

जारी..

ब्लॉगिंग की शुरूआत के अनुभव (भाग १)

    बरसों बीत गये इस बात को पर आज भी ऐसा लगता है कि सारे परिदृश्य बस अभी बीते हैं, किसी चलचित्र की भांति आँखों के सामने चल रहे हैं, जब मुझे घर पर 486 DX2 जेनिथ कंपनी का कम्प्यूटर घर पर दिला दिया गया था, जिसका मुख्य उद्देश्य था, अपनी क्षमताओं को अच्छी तरह से परखना और निखारना।
    साथ ही उस समय कम्प्यूटर घर पर होना बहुत ही विलासिता की बात मानी जाती थी, तो खाली समय का सदुपयोग हमने प्रोजेक्ट वर्क के जरिये कमाने के लिये भी करना फ़ैसला किया था, जिसमें जन्म कुँडली, हिन्दी एवं अंग्रेजी में थिसिस और भी बहुत सारे कार्य जो उस समय विन्डोज ३.११ पर कर सकते थे। विन्डोज ९५ उस समय बस बाजार में आया ही था, पर हमारे पास केवल ५१२ एम.बी. रेम थी, जिस पर विन्डोज ९५ रो धोकर चल जाता था, पर हाँ रेड हैट लाईनिक्स जबरदस्त चलता था। इसी काल में हमने अक्षर हिन्दी का वर्डस्टार जैसा टूल था, इस्तेमाल करना शुरू किया और हिन्दी की टायपिंग का जबरदस्त किया, फ़िर कृतिदेव वगैराह फ़ोन्ट में विन्डोज में टायपिंग भी करी।
    घर पर इन्टरनेट नहीं था, तो मित्रों का सहारा था, जिन मित्रों के पास इन्टरनेट होता था, उनके पास जाकर याहू, लायकोस और ईमेल.कॉम खोलकर कुछ सीखने की कोशिश करते थे, हालांकि उस दौर में क्या सीखना है, कैसे सीखना है, यह बताने वाला भी कोई नहीं था, बस इतना पता था कि अपना ईमेल अकाऊँट होना बहुत जरूरी है। तो लगभग सारे ईमेल प्रदाताओं पर हमारे ईमेल अकाऊँट हैं। और वही सारे अकाऊँट अधिकतर हमारे पास हैं, पर अब जो अधिकतर उपयोग करते हैं वह है जीमेल, जो कि काफ़ी बाद में आया और हॉटमेल, याहू, यूएसए.नेट, इंडियाटाईम्स, इन्डिया.कॉम जैसे प्रदाताओं को पानी पिला दिया।
    इस समय तक हमें ब्लॉगिंग की ए बी सी डी भी पता नहीं थी, और यह बात है १९९५-१९९७ के बीच की । तब हम कम्प्य़ूटर का अधिकतम उपयोग प्रोग्रामिंग, अकाऊँटिंग, खेलने या टायपिंग के लिये ही किया करते थे, उस समय पता ही नहीं था कि किसी वेबसाईट पर लिखा भी जा सकता है, अपने विचार छापे भी जा सकते हैं।
    कुछ वर्ष बाद हमें पता चला कि हिन्दी का इन्टरनेट पर बहुत उपयोग हो रहा है, एक बैंक के अधिकारी थे, जो रोज अपनी शाम सायबर कैफ़े में रंगीन करने जाते थे, हम इसी कारण उनसे थोड़ा दूर ही रहते थे। और वो हमें रोज ही पकड़ने की कोशिश करते थे, कि कुछ अच्छी सी वेबसाईट दिखा दो, कुछ सिखा दो, हम कुछ ना कुछ बहाना बनाकर खिसक लेते थे, एक दिन उनसे बातें हो रही थीं, तो बैंक के मैनेजर बोले अरे यार तुम बंदे की पूरी बात तो सुन लो, कुछ नई चीज सीखना चाहता है, समझना चाहता है, तो हम उनके साथ सायबर कैफ़े में जाने को राजी हुए, क्योंकि सायबर कैफ़े भी हमारे दोस्त का ही था, तो थोड़ा अजीब लगता था । तब उन्होंने हमें बताया कि इन्टरनेट पर हिन्दी कैसे लिखी जाती है, हमें लगा यह बंदा क्या मजाक कर रहा है । बोला कि चलो हम तुमको हिन्दी में लिखा हुआ दिखाते हैं, हमने देखा तो मुँह खुला रह गया, जैसे हमने दुनिया का आठवां आश्चर्य देख लिया हो। अब उनकी जिज्ञासा यह थी कि हिन्दी में लिखते कैसे हैं और वेबसाईट पर कैसे डालते हैं, इस समय तक हमारे घर पर इन्टरनेट आ चुका था। पर इन्टरनेट बहुत मंद गति से चलता था।
जारी..

ब्लॉगिंग के ९ वें वर्ष में प्रवेश..

आज दोपहर २.२२ समय को हमें ब्लॉग लिखते हुए ८ वर्ष पूर्ण हो जायेंगे और सफ़लता पूर्वक ९ वें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं। इन ८ वर्षों में बहुत से अच्छे दोस्त ब्लॉगिंग के कारण मिले हैं, केवल ब्लॉगिंग के कारण ही लगभग हर शहर में कहने के लिये अपनी पहचान है।

४-५ वर्ष पहले जब मुंबई में थे तब बहुत से ब्लॉगरों से मिलना हुआ फ़िर बैंगलोर के ब्लॉगरों से भी मिलना हुआ ।

बीते वर्षों में हमने कविताएँ, संस्मरण, आलोचनाएँ, जीवन के अनुभव, विचार, वित्त विषय पर लेखन ऐसी बहुत सारे विविध विषयों पर लेखन सतत जारी रहा। कभी लेखन में विराम लग जाता तो कभी लेखन क्रम में चलता रहता।

आज लगता है वाकई क्या हम अच्छा लिखते हैं, जो इतने सारे लोग पढ़ रहे हैं या केवल मजबूरी में पढ़ रहे हैं। सोचते हैं कि अब कुछ जरूरी चीजें जो छूट गई हैं, उन पर ध्यान दिया जाये, ब्लॉगिंग और फ़ेसबुक से थोड़ा किनारा किया जाये।