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श्रवण कुमार और दिल्ली की मिट्टी का कमाल

आज ताऊ के ब्लाग पर कलयुगी श्रवण पढ़ा तो एक वाक्या याद आ गया दिल्ली में श्रवण कुमार का।

दिल्ली वाले कृपया बुरा न मानें वैसे मैं भी नार्थ इंडियन हूँ और मुंबई में रहते हुए लगभग ४ साल पूर्ण हुए हैं।

दिल्ली में एक मित्र से वार्तालाप चल रहा था और हम सामाजिक मुद्दों पर बात कर रहे थे कि मुंबई और दिल्ली में क्या भिन्नता है। दिल्ली में कोई भी तबके का व्यापारी हो वो ग्राहक को लूटने का प्रयत्न करता है, जैसे आटो वाले, फ़लवाले, इलेक्ट्रानिक दुकानवाले इत्यादि। ऐसा नहीं है कि मुंबई में लूट नहीं है परंतु दिल्ली के मुकाबले तो बहुत कम है पर फ़िर भी लूट तो लूट ही है। फ़िर भी मुंबई का आम आदमी आत्म अनुशासित है पर दिल्ली का नहीं क्यों ??

साउथ इंडिया की श्रंखला का एक प्रसिद्ध होटल करोलबाग में है और वहाँ पर साउथ इंडियन आँख बंद करके जाते हैं और अगर कमरा खाली नहीं भी होता है तो घंटों तक खाली होने का इंतजार करते रहेंगे पर किसी और होटल में जाना पसंद नहीं करेंगे। क्योंकि उन्हें साउथ इंडियन होटल पर विश्वास है परंतु दिल्ली वालों पर नहीं और अगर तब भी को कमरा खाली नहीं होता है तो जो भी वहाँ आते हैं उन लोगों को वो साउथ इंडियन होटल वाले ही दूसरे होटल में कमरा आरक्षित करके देते हैं।

कहते हैं कि जब श्रवण कुमार अपने अंधे माता पिता को कंधे पर पालकी में ले जा रहे थे तो जैसे ही श्रवण कुमार का दिल्ली में आगमन हुआ उन्होंने अपने माता पिता से घुमाने का किराया मांगा तो उनकी माताजी ने कहा चल बेटा आगे चल तुम्हें हम आगे किराया दे देंगे और थोड़ी सी मिट्टी अपने हाथों में लेकर अपने पास रख ली। जब मथुरा पहुंचे तो श्रवण कुमार से उनकी माता ने कहा कि कितना किराया चाहिये तब श्रवण कुमार ने कहा कैसा किराया क्योंकि वो तो सब भूल गये थे। फ़िर वो मिट्टी को रखकर उनकी माता बोली अब इस पर खड़े हो और बताओ तो झट से फ़िर श्रवण कुमार ने फ़िर किराया मांगा। यह सब दिल्ली की मिट्टी का कमाल है।

ISKCON में भक्ति के रंग

ISKCON में भक्ति के रंग अगर आप देखना चाहते हैं तो आप आइये ग्रांट रोड, मुंबई ईस्कान मंदिर में, जहाँ भागवतम व गीता जी की गंगा प्रवाहित होती है व कृष्ण भक्ति के अलग अलग रंग देखने को मिलते हैं ।

MP3 प्लेयर की मुंबई में ढूंढ |

कल हम MP3 प्लेयर को ढूंढने निकले, मुंबई में अपने आँफिस जोगेश्वरी से ओर रुख किया अल्फा के लिये जो कि विले पार्ले में कूपर हाँस्पिटल के पास है, तो कल हम बेस्ट यानि के मुंबई की बस में बैठकर रवाना हुए ओर लम्बे ट्राफिक जाम में फँस गये व ४५ मिनिट में पहुँच ही गये अगर लोकल से जाते तो ७ मिनिट ही लगते पर हमें भी तो जूहू चौपाटी की बस मिल गई थी, तो हम फिसल गये| कूपर से पूछ कर हम अल्फा पहुँचे तो वहाँ ३ अल्फा मिले, अल्फा १ में इलेक्ट्रानिक आइटम मिलते हैं, अल्फा २ में घर से संबंधित और अल्फा ३ में मेकअप और मोबाईल मिलते हैं| इन दुकानों पर कस्टम का सामान मिलता है ऐसा हमें किसी ने बताया इसलिये यहाँ थोड़ा सस्ता समान मिलता है, पर जिस ब्रांड का MP3 प्लेयर हमें लेना था वे लोग रखते ही नहीं| तो अपनी निगाहें घुमाके हम वापस अपनी लोकल पकड़ने के लिये चल दिये|

मुंबई का माल इन आर्बिट

परसों हम घूमने के लिये मलाङ के इन आर्बिट माल गये तो जो मित्र हमारे साथ थे उन्होंने हमें बताया कि ये एशिया का दूसरा सबसे बड़ा माल है | ३ मंजिला माल बहुत ही बड़ी जगह में फैला हुआ है, और इतनी बड़ी कार पार्किंग हमने पहली बार देखी | और फिर माल में मा….ल आह! आह!…अहा! कहने को शब्द नहीं है | बाकी शापिंग माल में तो सभी ब्रांडेड आइटम थे जो कि जितना महँगे से महँगा बेच सकते हैं बेच रहे हैं , खरीदने वाले खरीद रहे हैं और हम केवल देख कर आ रहे हैं…. | वहाँ चटोरों के लिये तीसरा माला स्पेशल बनाया गया है पर यहाँ पर वही चटोरा बन सकता है जिसकी जेब बहुत भारी हो, और खाली होने को तरस रही हो | तो भाईलोग अपन ने ५४९ का पिज्जा छोड़कर बाहर ठेले पे चटकारे ले लेकर पानी पूरी, मुंबईया भेल और रगड़ा पेटिस चटकाया | फिर लोकल पकड़कर छू हो गये |

मुंबई की लाइफ ला…..

आजकल मुंबई की लोकल के धक्के खा रहे हैं, व वेस्टर्न लाइन में भगवान क्या क्या नहीं देखना पड्ता शायद लोगों को घर पर समय नहीं मिलता या फिर घर नहीं मिलता ये सब करने के लिये जो सार्वजनिक करते हैं, चुम्मा चुम्मी तो आम है कोई देखता ही नहीं है ओर हमारे शहर में हो तो क्या हल्ला मचे ! जूहू बीच जाइये समुन्दर का नजारा तो अहा ! व पीछे बीच का नजारा आह! आह! अहा! क्या करुँ शब्द नहीं मिल रहे हैं| देखिये भैया यहाँ क्या क्या होता है नहीं हम देखते हैं ओर आप सबको बतायेंगे |