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पूर्वाग्रह होना अच्छा या बुरा

पूर्वाग्रह होना अच्छा या बुरा कैसा होता है, यह सभी लोग सोचते हैं क्योंकि यह एक बहुत अच्छी आदत नहीं, बल्कि बुरी आदत है। पहले अगर यह समझ लें कि पूर्वाग्रह क्या होता है तो बेहतर होगा, हम किसी के बारे में पहले से ही उसके आचरण, व्यवहार या कार्य के प्रति कोई भावना बना लें, वह पूर्वाग्रह कहलाता है। कई बार हम बिना मिले ही किसी के बारे में पढ़कर उसके बारे में सोच समझ लेते हैं, परंतु जब हम बात करते हैं, या मिलते हैं तो पूर्वाग्रह से ग्रसित होते हैं और कई बार हमारा पूर्वाग्रह गलत साबित होता है।

पूर्वाग्रह को हम घर में ही देख सकते हैं, अगर घर में दो बच्चे हैं एक अगर जल्दी समझ जाता है और ढंग से काम भी कर लेता है तो हम उसे होशियार की उपाधि दे देते हैं वहीं दूसरा बच्चा अगर उसी कार्य को देरी से समझकर करता है तो हमें उसे बेवकूफ या देर से समझनेवाले की उपाधि दे देते हैं। अगली बार कोई भी कार्य हो तो हम पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर पहले बच्चे को ही कहेंगे, जबकि हर व्यक्ति की अपनी विशेषता होती है, हो सकता है कि वह दूसरा बच्चा किसी ओर चीज में अच्छा हो जहाँ पहला बच्चा अच्छा न कर पाये।

पूर्वाग्रह हम लगभग हर रिश्ते में देख सकते हैं अपनी प्रोफेशनल लाईफ़ में भी देख सकते हैं, कई बार पूर्वाग्रह हम किसी की एक बात को पकड़कर बैठ जाते हैं और उसके आधार पर हम किसी भी व्यक्ति के साथ एक अजीब तरह का व्यवहार करने लगते हैं। यह भी तो हो सकता है कि जो आपको पूर्वाग्रह हो वह सही न हो, और उस व्यक्ति ने कार्य सीख लिया हो या फिर अपना व्यवहार ठीक कर लिया हो। परंतु हम मौक़ा ही नहीं देते, और हमेशा इस तरह के संवाद सुनने को मिलते हैं –

“मैंने तो पहले ही कहा था कि इसके बस की बात नहीं”

“मैंने तो पहले ही कहा था कि ये कुछ कर ही नहीं सकता”

“मुझे लगा ही था कि ये कुछ गड़बड़ कर सकता है”

“सोच ही रहा था कि अगर यह कार्य उसको देता तो सही प्रकार से हो जाता”

“काम देने के पहले ही लग रहा था कि तुम बहुत ढीले हो”

“तुम तो बेवकूफ हो बेवकूफ ही रहोगे, पता नहीं कब काम करना सीखोगे”

और भी पता नहीं क्या क्या संवाद हम अपने दैनिक जीवन में सुनते ही रहते हैं, कुछ संवाद शायद आपको अपनी याददाश्त में भी आ जायें और आप अपनी यादों में खो जायें।

कहने का मतलब केवल इतना ही है कि पूर्वाग्रह से ग्रसित न होकर हम एक बार ग़लत करने पर, उन्हें समझायें कि कैसे इस कार्य को अच्छे से कर सकते थे, या क्या गलती कर दी। और हमेशा ही दूसरा, तीसरा, चौथा …. मौक़ा देते रहें। नहीं तो सभी लोग वह कार्य कर ही नहीं पायेंगे, भले यह निजी जीवन की बात हो या प्रोफेशनल जीवन की।

आप भी टिप्पणी करके अपने विचार रखिये।

मानोगे तो परेशानी है, नहीं तो सब सामान्य है

परेशानी ऐसी चीज है, अगर किसी समस्या को बड़ी मानोगे तो बड़ी होगी, छोटी मानोगे तो छोटी, और न मानोगे तो न होगी। बस यह हमारा दिमाग़ है जो किसी भी कठिनाई को समस्या मान लेता है और फिर उस समस्या का समाधान न मिलने पर उसे परेशानी का नाम देकर अपने दिमाग़ में चिंता रूपी कीड़ा पाल लेता है। फिर वह कीड़ा दिन रात दिमाग़ में घूमता रहता है और बिना किसी बात के वह छोटी सी कठिनाई जो लगती है, पर दरअसल कई बार होती भी नहीं है, कीड़ा दिमाग़ में अपना भौकाल बनाये रखता है।

हमें वह कीड़ा उस कठिनाई से निपटने के लिये कोई समाधान न सुझाता है, परंतु उसकी जगह हमें वह कीड़ा नकारात्मक विचार हमारे ज़हन में भर देता है, कि अगर ऐसा हो गया तो, वैसा हो जायेगा, फिर वैसा और फ़लां को पता चल गया तो बस हो गया काम। इस तरह से हम अपनी कोई छोटी सी कठिनाई को पहले समस्या फिर परेशानी बना लेते हैं। कई बार हम अगर किसी बात को इग्नोर कर दें तो बहुत सी बातें कठिनाई नहीं बनतीं, जब कठिनाई नहीं होगी तो न समस्या होगी न परेशानी होगी।

कई कठिनाइयाँ समय के साथ अपने आप ही लुप्त हो जाती हैं और कई समय के साथ बढ़ती हैं, तो हमें पहले कठिनाई का प्रकार समझकर विश्लेषण कर लेना चाहिये, वह भी साफ़ मन व दिमाग़ से, पहली बात तो यह कि कठिनाई को कठिनाई न मानें, जीवन है तो कठिन तो होगा ही, कठिन होगा तो समस्या व परेशानी भी आनी ही हैं। इसलिये बेहतर है कि अपने दिमाग़ व मन को साफ़ रखें तथा जीवन की सोच को साधारण रखें।

दरअसल 99% समय होता यह है कि हम फ़ालतू की कोई बात दिल या दिमाग़ में धर लेते हैं और ख़ुद ही परेशानी बना लेते हैं। क्यों? क्योंकि हमारा दिमाग़ वाक़ई बहुत फ़ालतू होता है, एक साथ हज़ारों चीजें सोच सकता है और जिस चीज में उसे मज़ा आता है, वही बातें दिमाग़ के कोनों से टकराकर लौटकर वापिस आती है, तो इस फ़ालतू दिमाग़ को सबसे पहले आराम दें, अपने मन को तटस्थ रखें, इसके लिये थोड़ा सा ध्यान लगाकर बहुत जल्दी सफलता पाई जा सकती है। फ़ालतू की चीजों में अपना समय न गँवायें, कुछ अच्छा देखें, कुछ अच्छा पढ़ें, नई चीजें सीखें, देखें, भले न समझ आयें परंतु जब एक बार कुछ करने की इच्छा पर आपने विजय पा लिया तो, आप अपने एक नये रूप को जल्दी ही धरातल पर देखेंगे।