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किताबें पढ़ना छोड़ो ऑडियोबुक सुनना शुरू करें

मेरी आदत बचपन से ही किताबें पढ़ने की थी, पापाजी शासकीय वाचनालय से हर सप्ताह ही दो तीन किताबें लाते थे और उनको पढ़ने के बाद फिर दूसरे सप्ताह वापिस से दे तीन किताबें घर में होती थीं, इस तरह से घर में हर महीने ही लगभग बारह से पंद्रह किताबें पढ़ी जाती थीं, और यही मुख्य कारण रहा मुझे किताबें पढ़ने का चस्का लगना का। लगभग सभी की आदत किताब पढ़ने की होती है किताबों में कहानियां लेख उपन्यास सब कुछ आता है जो कि मनोरंजन के लिए पढ़ी जाती हैं। 

किताब पढ़ने के लिए बहुत सारा समय हमें निकालना पड़ता है और कई बार हम किताब पढ़ते पढ़ते कुछ और सोचने लगते हैं कई बार शब्द बड़े बड़े होकर दिखने लगते हैं, तो कई बार शब्द दिखने ही बंद हो जाते हैं। पहले मैं बहुत किताबें पढ़ता था, अमेजॉन से फ्लिपकार्ट से बहुत सारी किताबें खरीदी और पढ़ीं,फिर किताबों के अंबार से परेशान हो गया और किंडल खरीद लिया। फिर किंडल पर किताबें पढ़ने लगा। किंडल एक आधुनिक यंत्र है, जिस पर किताबें पढ़ी जा सकती हैं और बहुत सारी किताबें एक साथ रखी जा सकती हैं तो उससे मेरी किताबें रखने की समस्या का समाधान तो हो गया, लेकिन कुछ सुविधायें भी मिलने लगीं जैसे कि अगर किसी शब्द का मतलब मुझे समझ में नहीं आ रहा है तो मैं उस पर क्लिक करके रखूँगा, तो उसका मतलब किंडल मुझे बता देगा तो इससे यह मुझे और ज्यादा सुविधाजनक लगने लगा। 

लेकिन सारी समस्या समय की थी कि इतना समय कहाँ से निकाला जाए कि रोज ही किताबों को पढ़ पाऊँ, फिर मैंने अमेजॉन ऑडिबल का सब्सक्रिप्शन लिया लेकिन वहाँ समस्या यह थी कि वहां पर हिंदी की किताबें कम हैं और अंग्रेजी की ज्यादा और हम ठहरे हिंदी मातृभाषा वाले। फिर हमने स्टोरी टेल एप्प का नाम सुना तो स्टोरी टेल में बहुत सी किताबें हिंदी ऑडियो बुक के रूप में उपलब्ध हैं। हमने पहले1 महीने का ट्रायल लिया और फिर उसके बाद में 1 महीने के लिए अब ₹299 का भुगतान कर रहे हैं और किताबों को सुन रहे हैं। तो किताबों को सुनने के लिए समय बहुत सारा निकल आता है। मैं लगभग रोज ही एक घंटा घूमने जाता हूँ, तो एक घंटा आराम से साथ में किताबें भी सुनता रहता हूँ। ऑफिस आने-जाने के समय में भी किताबें सुन लेता हूँ, तो इससे मुझे लगभग रोज 3 से 4 घंटे का समय किताबों को सुनने का मिल जाता है कई किताबें और कहानियां मुफ्त में भी उपलब्ध हैं, जिन्हें की पॉडकास्ट में सुना जा सकता है तो उसके लिए आपको गूगल पॉडकास्ट एप्प फोन में इंस्टॉल करना होगा और हिंदी कहानियों का पॉडकास्ट ढूँढना होगा इसके ऊपर मैं एक अलग से ब्लॉग लिखूँगा, जिसमें मैं पॉडकास्ट की खूबियों के बारे में बात करूँगा।

बस किताबों को सुनते वक्त आपको यह ध्यान रखना है कि अगर आप कहीं और व्यस्त हैं तो किताबों को सुनना रोक दें, नहीं तो कुछ हिस्सा कहानी को छूट जाता है, अगर किताब सुनते सुनते ही कुछ सोचने के लिये, ठहरने के लिये समय चाहिये तो अपनी किताब को थोड़ा रोक दें, क्योंकि यह स्वाभाविक प्रक्रिया है, जब भी हम किताब पढ़ते हैं तब भी हम उसे अपने से संबद्ध करके कुछ न कुछ सोचते ही हैं, या कोई नया प्लान बनाने लगते हैं। केवल किताब ग्रहण करने का माध्यम बदला है, पर प्रक्रिया तो वही चलेगी।आप भी देखिये कि अगर आपको किताबें सुनना अच्छा लगे। बस असुविधा यह है कि अभी ऑडियोबुक के तौर पर बहुत बड़ी संख्या में किताबें उपलब्ध नहीं हैं, पर उम्मीद है कि जल्दी ही बहुत सी किताबें ऑडियोबुक के तौर पर भी बाजार में आने लगेंगी, जैसे की अभी नई किताब आई थी ‘ओघड़’, लेखक ने ही इस किताब की ऑडियोबुक में आवाज दी है, तो यह किताब और भी जबरदस्त बन गई है।

आयकर भरते हम सरकारी बंधुआ मजदूर

इस बार जब आयकर विभाग का रिटर्न भरने की प्रक्रिया में था, तो भरा गया आयकर देखकर बहुत कोफ्त हुई, कमाते हम साल भर के 12महीने हैं, सरकार का उस कमाई में कोई योगदान नहीं, न हमें अच्छी पढ़ाई दी, न हमें अच्छे रोजगार के अवसर दिये। हम जैसे तैसे संघर्ष करके यहाँ तक पहुँचे। अब जब आयकर का हिसाब लगाकर देखते हैं तो पता चलता है कि हम अपने लिये केवल 9 माह कमाते हैं, और बाकी के 3 महीने यानि कि जनवरी से मार्च तक सरकारी बंधुआ मजदूर हैं। क्योंकि हमारी 3महीने की कमाई सरकार आयकर के रूप में हमसे ले लेती है। न देने का कोई ऑप्शन भी नहीं है, कि सरकार कहे, हम ये सुविधायें नहीं दे पा रहे हैं तो आपको आयकर भरने की जरूरत नहीं है।

हर कोई सरकारी बंधुआ मजदूर है, भले 1 दिन का हो या 4-5महीने का, कोई एक दिन की कमाई का आयकर चुका रहा है तो कोई 4-5 माह की कमाई का आयकर चुका रहा है। मैं भी मन लगाकर अब 9 महीने ही काम कर पाता हूँ, बाकी के 3 महीने अनमने मन से काम करता हूँ, क्योंकि यह कमाई मैं अपने और अपने घरवालों के लिये नहीं बल्कि सरकार के लिये कर रहा हूँ। दुखी तो हर कोई है, परंतु हर कोई लिख नहीं पाता।

आयकर के साथ ही जमाने भर के सेसलगा दिये जाते हैं, अभी स्वास्थ्य और शिक्षा के लिये 4%का कर लगाया गया है, तो भी हमें न स्वास्थ्य की सुविधायें हैं न शिक्षा की सुविधायें हैं, अगर हमें स्वास्थ्य और शिक्षा सरकार नहीं दे सकती है तो कम से कम हमें उतनी रकम की छूट आयकर में मिलनी ही चाहिये, जितनी हम इन मदों में खर्च कर रहे हैं। अगर हम निजी क्षेत्र से स्वास्थ्य और शिक्षा लेते हैं तो भी सरकार हमसे उस पर GSTवसूल करती है, इस तरह से अगर सही हिसाब लगाया जाये तो व्यक्ति अपनी आय का कम से कम 50-60% कमाई का हिस्सा किसी न किसी तरह के कर देने में ही खर्च कर देता है।

सरकारी नौकरी वाले चाकरों के तो हाल ओर भी बुरे हैं, वे तो अपने मौलिक अधिकार का भी उपयोग नहीं कर सकते, कोई भी सरकारी नौकरी वाला अपनी अभिव्यक्ति का स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उपयोग नहीं कर पाता है, अगर कोई अपने मौलिक अधिकार का प्रयोग करता भी है तो उसे इसकी कीमत नौकरी की आँच से चुकानी पड़ती है, साथ ही कई अन्य नुक्सान भी हो सकते हैं।

भले कोई आयकर देता हो या न परंतु आप कोई भी समान खरीदें उस पर कोई न कोई टैक्स तो जरूर देते हैं, हर कोई सरकारी बंधुआ मजदूर है, भले ही आप सेवानिवृत्त हो जायें और कमाई के हिस्से पर जीवनभर आयकर भी दें, फिर उस कमाई में से बचत से हो रही ब्याज की आय पर भी आयकर दें, तो जब तक जिंदा हैं, तब तक आयकर तो देना ही है। इस तरह से मुझे तो कई बार लगता है कि हम केवल कुछ दिन या महीनों के ही बंधुआ मजदूर नहीं हैं बल्कि जीवन भर हम बंधुआ मजदूरी ही कर रहे हैं।

लेखन और ब्लॉगिंग

पता है लिखना बहुतों के लिये बहुत दुश्कर कार्य होता है, और बहुतों के लिये बहुत ही आसान, कुछ लोग तो जब भी लिखना चाहते हैं, लिख ही लेते हैं, और वहीं कुछ लोगों को लिखने के लिये बहुत जोर लगाना पड़ता है, अंग्रेजी में कहे गये शब्द राईटर्स ब्लॉक को भी कई लोग आजकल उपयोग करने लगे हैं। मेरा तो खैर मानना यह है कि जब शब्द अंदर से निकलते हैं, आप तभी लिख सकते हैं, नहीं तो लिखना नामुमकिन ही है।

लेखन भी कई प्रकार के होते हैं, कोई लेख अच्छा लिख सकता है तो कोई कहानी, नाटक या उपन्यास, अब अपनी विधा के महारती होते हैं, बस जैसे जैसे लिखते जाते हैं तो उस विधा में उनका अनुभव गहराता जाता है और उसे लिखना उनके लिये बाँयें हाथ का खेल हो जाता है, दूसरे लोग सोचते ही रहते हैं कि यह लेखक कैसे इतना गहरा लिख लेता होगा, पर सही बताऊँ तो शायद लेखक भी इस सवाल का जवाब न दे पाये।

कुछ लोग अपने आपको लिखते हैं तो कुछ लोग अनुभव लिखते हैं, और वहीं कुछ लोग दूसरों को लिख देते हैं। मैं पता नहीं कैसे कहाँ कब से लिखने लगा, मुझे अब लिखना अच्छा लगता है, बचपन से ही टेपरिकॉर्डर पर कवितायें सुनते हुए बड़ा हुआ और फिर महाविद्यालयीन काल में कुछ कविताओं, नाटकों और रचनात्मक लेखन ने शायद मुझे लेखन के लिये प्रोत्साहित किया। परंतु असली लेखन तो मेरा ब्लॉगिंग से शुरू हुआ, जब ब्लॉग आये तो मैंने फिर से लिखना शुरू किया, पता नहीं लेखन में वो धार तब भी थी या नहीं, यही बात आज भी सोचता हूँ कि वह लेखन की धार आज भी है या नहीं।

पहले सीधे कम्पयूटर पर लिखा नहीं जाता था, तो पहले कॉपी पर लिखता था और फिर कम्प्यूटर पर टाईप करता था, परंतु धीरे धीरे आदत ऐसी बनी कि अब सीधे ही कीबोर्ड से लिखने में आनंद आने लगा और आदत भी पड़ गई, अब कागज पर लिखना बहुत कम हो गया है, अब तो लिखने के लिये टाईप करना भी जरूरी नहीं है, मोबाईल में बोलकर लिखा जा सकता है, वहीं अब तो लेपटॉप में भी बोलकर लिखा जा सकता है, और सबसे बड़ी बात इसके लिये किसी प्रोग्राम को पहले की तरह ट्रेंड नहीं करना पड़ता है, अब तो प्रोग्राम ट्रेंड होते हैं और बढ़िया से टाईप करते हैं।

अब जिस विषय पर अच्छी पकड़ होती है, खासकर वित्त पर, उसमें तो मैं कई लेख केवल बोलकर ही लिख लेता हूँ, परंतु जैसे यह ब्लॉग लिख रहा हूँ तो इसे तो मुझे टाईप ही करना पड़ रहा है, क्योंकि यह भावनायें सीधे दिल से निकल रही हैं, यह लिखने के लिये मुझे कुछ सोचना नहीं पड़ रहा है, यहाँ तो बस उँगलियाँ अपने आप ही लिखे जा रही हैं। आप भी कैसे लिख पाते हैं, इस पर टिप्पणी करके जरूर बताईयेगा। हालांकि यह जरूर बता दूँ कि ब्लॉगर लेखक नहीं होता है, केवल ब्ल़ॉगर ही होता है, और मैं भी अपने आपको लेखक नहीं ब्लॉगर ही मानता हूँ, लेखन एक अलग विधा है और ब्लॉगिंग एक अलग विधा है।

फेसबुकवीरों को पाक से युद्ध चाहिये

आज कई फेसबुकवीरों को भद्दे वाक्य कहते सुन रहा हूँ, कि तुम तो कुत्तों की मौत मरोगे, कीड़े की मौत मरोगे, कांग्रेसी हो, अरे भई सबका अपना मत है। भले आप कितना चाहो पर सीमा पर लड़ाई करने की अपनी एक क्वालिफिकेशन है, जो तुम्हारे पास नहीं है, तुम्हारी क्वालीफिकेशन नहीं होने के कारण ही तो तुम जो हो, वही काम कर रहे हो।

ये बंदूकें बहुत रोमांच पैदा करती हैं, जब २४ घंटे ३६५ दिन जब सैनिक बिना थके अपनी ड्यूटी करता है, तो वे सारे हालात उस सैनिक को ही पता होते हैं। कुर्सी पर टिककर ८ घंटे बैठ नहीं सकते, औऱ चले हैं सीमा पार युद्ध करने की बात करने।

सैनिकों को तपाकर सीमा पर लड़ाई के लिये तैयार किया जाता है, यह मैंने सीधे NCC के आर्मी अटैचमैंट कैंप में देखा था, ग्रेनेडियर्स के साथ बहुत कुछ सीखऩे का मौका मिला था। इन फेसबुक वीरों को ग्रेनेडियर्स क्या होता है औऱ उनकी रेजीमेंट ने कितने परमवीर चक्र जीते हैं, क्यों उनको इतने परमवीर चक्र मिले, ये सब पता नहीं होगा।

बस इनको तो उचकने से मतलब है, युद्ध उन्माद है, और हर क्षैत्र में तबाही लाता है, केवल एक दिन का युद्ध पूरे राष्ट्र को दस वर्ष पीछे ले जाता है। सोशल मीडिया के दौर में यह देखने को मिल रहा है कि जनता सरकार के ऊपर युद्ध थोपना चाह रही है। और उस युद्ध से न पाकिस्तान खत्म होगा न नेस्तनाबूद होगा, केवल दोनों पक्षों का भारी नुक्सान होगा, औऱ चीन चुपचाप नहीं बैठा रहेगा, उसका भारी निवेश पाकिस्तान में है व हम भी चीन से एक सीमा पर सामना करते हैं।

उऩ्माद में मत आईय़े, बहकाने में न आईय़े, अपनी अक्ल लगाईये, सरकार और सेना को अपना काम करने दीजिये। आपसी संबंध मधुर रखिये। यह पोस्ट केवल इसलिये लिखी गई है कि आप अपने दोस्तों से युद्ध न करिये, क्योंकि आपको सीमा पर लड़ाई का मौका नहीं मिल रहा है।

अमेरिका का व्यापार जो अब बाहर जा रहा है केवल H1B वीजा न देने के कारण

दुनिया में बहुत कुछ बदल रहा है, पर उस बदलाव का लोगों को अहसास ही नहीं होता है, जो जोर शोर से बाहर आता है, केवल वही पता चलता है।
 
ट्रम्प ने H1B के लिये बहुत सी सख्तियाँ की हैं, तो असर सीधे उनके व्यापार पर दिखाई दे रहा है। अमेरिका के नंबर एक बैंक के पास काम करने के लिये तकनीकी और विषय विशेषज्ञ लोगों की भयंकर कमी है, और जो हैं वे काम को सँभाल नहीं पा रहे हैं। कंपनियों या बैंकों का मुख्य काम होता है व्यापार बढ़ाना और उनके मालिक लोग यह सुनिश्चित भी करते हैं।

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जीवन बहुत अनिश्चितताओं से भरा है और मृत्यु अटल है

जीवन बहुत अनिश्चितताओं से भरा है, कब जीवन की साँस रुक जाए और स्वर्गीय हो जायें पता ही नहीं।

इस जीवन को भरपूर ऊर्जा के साथ जियें और अच्छे लोगों में अपना नाम दर्ज करवायें कि लोग आपसे मिलना पसन्द करें।

एक बार इस दुनिया से चले गए तो कोई याद करने वाला भी नहीं होता। बस जब तक इस जहान में उपस्थिति है, तब तक ही लोग पूछ रहे हैं।

गाड़ी घोड़ों, घरबार, धन्धापानी का ज्यादा टेंशन न पालें, कुछ समय आत्मकेंद्रित भी रहें, स्वार्थी बनें, और केवल अपने लिये कुछ समय अपने आपको और अपने परिवार को दें।

न किसी को बुरा बोलें और न ही ऐसे बोल बोलें कि किसी का दिल दुखे। बस इस बात का ख्याल करें, अच्छी बातें बच्चों को पढ़ायें, बच्चे बात सुने न सुने, पर उन्हें टोका मारना न भूलें, एक दिन आयेगा, वे जरूर सुनेंगे।

ऐसे ही दिलोदिमाग में कुछ विचार घुमड़ आये जिनका शब्दांकन यहाँ कर दिया।

ध्यान रखिये कि –

मृत्यु अटल है
यकीन मानिये
जीवन इसीलिये ही आह्लादित है।

जब तक साँसें चल रही हैं तब तक आनंदित रहें, प्रसन्न रहें, स्वस्थ रहें। भरपूर जीवन का मजा लें।

उपरोक्त पैरा पर फेसबुक पर सुरेश चिपलूनकर जी ने टिप्पणी दी थी कि –

आज श्मशान घाट गए थे क्या??

ऐसे विचार वहीं पर आते हैं…
और घर आते ही खत्म भी हो जाते हैं… 😀

और हमने प्रतिउत्तर में कहा –

नहीं चक्रतीर्थ और ओखलेश्वर के अलावा शायद कहीं और जाना ही नहीं हुआ। परन्तु आज मन खिन्न था और मैं उसकी गहराई में उतरा हुआ था, एक 7 साल पहले के किसी के दर्दनाक स्टेटस को पढ़कर। और भी बहुत से कारण थे।

उदासी के बहुत से कारण होते हैं, व्यक्ति कब दार्शनिक हो जाये कुछ पता नहीं, कब किस बात से मन खिन्न हो जाये, उसका भी पता नहीं। बस किसी भी दशा में हमें नकारात्मक नहीं होना है, हमेशा ही सकारात्मक ऊर्जा से जीवन में आगे बढ़ते जाना है। अपनी दृष्टि हमेशा ही ऐसे लक्ष्य पर रखना है जिसे सुनकर दुनिया आप पर हँसे, ऐसे स्वप्न देखिये, तभी आप इस दुनिया में कोई चमत्कार कर पायेंगे। मन में बस बातों को ठान लें और उसके लिये जी जान लगा दें, रात दिन एक कर दें तो आप भी देखेंगे कि वह लक्ष्य आपके लिये कोई बहुत ज्यादा कठिन नहीं होगा।

अच्छी सेहत के लिये कम से कम १०,००० कदम चलिये, पैर में तकलीफ न हो तो धीरे धीरे दौड़िये, जब पसीन बहेगा तो उसका आनंद केवल आप उठा पायेंगे, उस पसीने के सुख की अनुभूति के लिये आप दौड़िये। रक्तचाप, मधुमेह और मोटापा तो अपने आप ही भाग जायेंगे। पर यह सब करने के पहले आप मन से स्वस्थ रहें।

रोज एक घंटा अच्छी किताब पढ़ने की आदत डालें, या आजकल तो बहुत अच्छे पॉडकॉस्ट आ रहे हैं, उन्हें सुनें, वे भी किताबों के समान ही हैं। बस जीवन को सरल और सरस रखें।

भारत में संसद और विधानसभा के सत्र

हर देश के विकास में संसद और विधानसभा का बहुत महत्व होता है, वैसे ही भारत में संसद और विधानसभा के सत्र का महत्व है। सांसद १५ लाख लोगों का प्रतिनिधित्व करता है, और वैसे ही विधायक अपने क्षैत्र का प्रतिनिधित्व करता है।
हमारी संसद ३६५ दिन में केवल ७० दिन कार्य करती है, और कई रिकमंडेशंस में कहा गया है कि कम से कम संसद को १२० दिन कार्य करना चाहिये। हम इस मामले में बहुत पीछे हैं, अमेरिका में संसद १५० दिन और कई यूरोपीय देशों में संसद का औसत १३५ दिन है।
 
हमारे यहाँ भारत में किसी भी मुद्दे पर गहन विश्लेषण और बहस नहीं की जाती है, भले ही एक राजनैतिक दल की बहुमत वाली सरकार हो।
 
वैसे ही राज्य की विधानसभा ३६५ दिन में मात्र ३० दिन कार्य करती है, और कई कई रिकमंडेशंस में कहा गया है कि इन्हें कम से कम ७० दिन तो कार्य करना ही चाहिये, जिससे मुद्दों पर अच्छे से बातें हो सकें।
 
हालांकि संसद में कई समितियाँ होती हैं जो कोई भी प्रस्ताव संसद में आने के पहले बहस और गहन विश्लेषण करती हैं, पर वह सारा डिस्कसन ऑफ द रिकॉर्ड होता है, संसद में बहस न होने के कारण कई अच्छी राय आने से रह जाती हैं।
 
अगर आपकी भी राय है कि किसी विधेयक पर, तो आप भी ईमेल करके राय व्यक्त कर सकते हैं। PRS नाम का छोटा सा एप है, जहाँ सरकार के सारे कार्य की जानकारी आपको इस छोटे से एप पर मिल जाती है, और यह किसी भी प्रकार की निजी जानकारी नहीं माँगती है।
 
आपका सांसद कितना काम का है, वह आप MPTRACK वेबसाईट पर जाकर देख सकते हैं, कि उसने कितने दिन संसद की कार्यवाही में हिस्सा लिया है और कितने प्रश्न पूछे हैं, व कितने मुद्दों पर अपनी राय दी है।
 
सांसद या विधायक का कार्य सड़कों को ठीक करवाना या बिजली नहीं आ रही है तो ठीक करवाना नहीं है, बल्कि भारत के विकास में किये जाने वाले कार्यों पर सतत अपनी राय देना और चल रहे कार्यों को कैसे और अच्छे से किया जा सकता है, उसको अच्छे से सदन में उठाना है।
 
तो देर किस बात की है, PRS एप डाऊनलोड कीजिये और नये विधेयकों पर अपनी राय देना शुरू कीजिये। हम घोड़े को पानी तक लेकर जा सकते हैं, परंतु पानी तो घोड़े को खुद ही पीना होगा।
 
MPTRACK वेबसाईट पर जाकर आप अपने MP के बारे में जानकारी देखिये और अगर वह सतत योगदान नहीं कर रहा है तो आप उन्हें अपनी राय बताईये, जो कि वे संसद सदन में रख सकते हैं।

मुझे मेरी चुनी हुई सरकार से क्या चाहिये

सरकार हर ५ वर्ष में बनती है, और सारे राजनैतिक दल अपने अपने घोषणा पत्र लेकर जनता के सामने आते हैं, परंतु कोई भी जनहित वाले वायदे नहीं करता। मेरी तरफ से कुछ बिंदु हैं, जिन पर राजनैतिक दलों को ध्यान देना चाहिये और भारत के विकास की बातें न करके अलसी विकास करना चाहिये, ये सारी बातें बहुत ही बुनियादी हैं, जो कि हर भारतीय को मिलनी चाहिये और यह चुनी हुई सरकार का प्राथमिक कर्त्तव्य होना चाहिये।

मुझे मेरी चुनी हुई सरकार से क्या चाहिये –
1. सर्वसुविधायुक्त स्वास्थ्य सुविधाओं वाले क्लिनिक और अस्पताल (सरकारी)
2. सर्वसुविधायुक्त विद्यालय जहाँ शिक्षक भी उपलब्ध हों (सरकारी)
3. सर्वसुविधायुक्त महाविद्यालय जहाँ शिक्षक भी उपलब्ध हों (सरकारी)
4. सार्वजनिक परिवहन के साधन (अभी हैं पर उसमें तो पैर रखने की हिम्मत नहीं पड़ती)(सरकारी)
5. सड़कें अच्छी हों, व नालियाँ साफ हों।
6. स्वच्छ भारत कागज से निकलकर बाहर आये।
7. किसी का भी ऋण माफ न करें, किसानों और लघु उद्योगों की दशा सुधारने की दिशा में ठोस कदम उठाये जायें, विलफुल डिफॉल्टर और अमीर लोगों के NPA तुरत वसूल किये जायें।
8. युवाओं को भविष्य के मार्गदर्शन के लिये शैक्षणिक संस्थानों का गठन किया जाये। जब स्किल होगा तो नौकरी और व्यापार अपने आप कर लेंगे।
9. सरकार में हर मंत्री को सम्बंधित विभाग की परीक्षा करवानी चाहिये, जिससे यह तय हो कि मंत्री अच्छे से विभाग संभाल पायेंगे।
10. जनता को उपरोक्त सुविधाएँ न दे पाने की दशा में, लिए गये सारे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों को जनता को रिफंड करना चाहिये।

आने वाले दिनों में और भी बिंदुओं को जोड़ा जा सकता है, आपके पास भी ऐसे कोई बिंदु हैं तो टिप्पणी में बताईये, हम जोड़ देंगे।

अभिवादन हमारी संस्कृति हमारी परंपरा

रोज सुबह घूमने निकलता हूँ तो कई जाने जाने पहचाने चेहरे रोज ही दिखते हैं, पर कुछ ही लोग गुड मॉर्निंग कह कर अभिवादन करते हैं। हमारी परंपरा रही है कि सुबह हम लोग जय श्री कृष्णा करते थे, जय श्रीराम कहा करते थे। Continue reading अभिवादन हमारी संस्कृति हमारी परंपरा

परीक्षा में असफल होना भी ठीक है

अभी दसवीं और बारहवीं के परीक्षा परिणाम आ चुके हैं और जिन बच्चों के 99% या उससे ज्यादा हैं, हम उनके परीक्षा परिणामों पर उत्सव भी मना चुके हैं। उनकी सफलता के लिए उनको बधाई का हक तो है ही, पर ऐसे बहुत सारे बच्चे भी हैं जो इतने नंबर नहीं ला सके और कुछ बच्चे ऐसे भी हैं जिन्हें उम्मीद से कम नंबर मिले, और कुछ बच्चे परीक्षा में असफल भी हुए हैं। परीक्षा परिणाम कुछ भी रहा हो, परंतु यह समय है अपने दिमाग को शांत और स्थिर रखने का और आगे बढ़ने के लिए तैयार होने का। Continue reading परीक्षा में असफल होना भी ठीक है