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CBSE ने OTBA को बंद करने की घोषणा कर दी है।

OTBA याने कि Open Text Based Assessment जो कि Central Board of Secondary Education (CBSE) ने दो वर्ष पूर्व शुरू किया था। अब इस सत्र से CBSE ने OTBA को बंद करने की घोषणा कर दी है।

OTBA को 9 व 11 वीं के छात्रों के लिये शुरू किया गया था, OTBA के बारे में जानकारी इस प्रकार है – Continue reading CBSE ने OTBA को बंद करने की घोषणा कर दी है।

रोजमर्रा की 5 चीजें जिनका उपयोग हमें तुरंत बंद कर देना चाहिये।

रोजमर्रा की 5 चीजें जिनका उपयोग हमें तुरंत बंद कर देना चाहिये।

ऐसी 5 चीजें जिनका उपयोग हम रोज करते हैं, हमें उनका उपयोग बंद कर देना चाहिये।

  1. प्लास्टिक स्ट्रॉ एवं चम्मच – अभी तक प्राप्त जानकारी से पता चलता है कि समुद्र में प्राप्त 80 प्रतिशत कबाड़ा प्लास्टिक का होता है, जिसमें प्लास्टिक स्ट्रॉ भी शामिल है। प्लास्टिक स्ट्रॉ की जगह काँच की स्ट्रॉ का उपयोग करें, काँच की स्ट्रॉ खरीदें, उपयोग करें, धोयें और वापिस से उपयोग करें, इससे आप कार्बन फुटप्रिट्स में को कम करने में मदद ही करेंगे। साथ ही अपने घर में बड़े लोगों को समझायें कि मसालदानी वगैराह में प्लास्टिक की चम्मच की जगह, लकड़ी की चम्मच का उपयोग करें, लकड़ी की चम्मच ज्यादा दिन भी चलेगी।

    प्लास्टिक स्ट्रॉ एवं चम्मच
    प्लास्टिक स्ट्रॉ एवं चम्मच
  2. माईक्रोबीड्स वाले टूथपेस्ट या त्वचा की रक्षा करने वाले उत्पाद – अधिकतर टूथपेस्ट वाली कंपनियाँ अपनी पैकिंग में माईक्रोबीड्स वाले ऐसे तत्वों का उपयोग करती हैं जिन्हें प्राकृतिक तरीके से नहीं सड़ाया जा सकता या नष्ट नहीं किया जा सकता है। इससे ही लगभग 8 टन कचरा समुद्र में पहुँचता है। इस तरह के उत्पाद को खरीदने के पहले उनकी सामग्री को पढ़ लें और पर्यावरण अनुकूल उत्पाद ही उपयोग करें।

    माईक्रोबीड्स वाले टूथपेस्ट
    माईक्रोबीड्स वाले टूथपेस्ट
  3. स्टीरोफोम उत्पाद – पॉलीस्टीरीन से बनने वाले ये उत्पाद, पेट्रोलियम आधारित प्लास्टिक जो का नॉन बॉयोडिग्रेडेबल है और उसके स्वास्थ्य पर नुक्सान ज्यादा हैं। स्टीरोफोम आधारित उत्पाद कटोरी, प्लेटों का उपयोग हम लोग अपनी पार्टियों में करते हैं। इसकी जगह हमें पर्यावरण अनुकूल उत्पादों याने कि बाँस, पेड़ की छाल या फिर पत्तों का उपयोग करना चाहिये।

    स्टीरोफोम
    स्टीरोफोम
  4. लकड़ी की चॉपस्टिक – खाना खाने के आनंद के लिये हम लोग लकड़ी की चॉपस्टिक का उपयोग करते हैं, परंतु हर साल लगभग 5.70 करोड़ (ग्रीनपीस के अनुसार आँकड़े) चॉप्स्टिक का उपयोग किया जाता है, सोचिये कि कितने सारे पेड़ इसके लिये काटने पड़ते हैं। इन चॉप्सिटकों का उपयोग न करें और इसकी जगह स्टील के काँटे या चम्मच का ही उपयोग करें।

    लकड़ी की चॉपस्टिक
    लकड़ी की चॉपस्टिक
  5. पॉलीथीन के थैले – प्लास्टिक के ये थैले नष्ट नहीं होते हैं, उनको ऐसे ही कचरे के साथ कचरा क्षैत्र में जमीन में दबा दिया जाता है और जब कचरे को नष्ट करने के लिये जलाया जाता है तो इससे जहरीली गैसें निकलती हैं और जो कि प्रदूषण भी बड़ाती हैं। कपड़े या जूट का थैला खरीदें जिसे कि बार बार उपयोग किया जा सके और प्लॉस्टिक थैले के लिये मना कर दें। इससे कम से कम थोड़ी बहुत तो हमारे फेफड़ों और धरती को राहत मिलेगी।

    पॉलीथीन के थैले
    पॉलीथीन के थैले

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पॉकीमोन गो Pokémon Go

Pokémon Go
Pokémon Go

पॉकीमोन गो Pokémon Go एक खेल है जो कि मोबाईल फोन पर खेला जाता है, पिछले कुछ समय से उस खेल में मोबाईल गेमिंग की दुनिया में तहलका मचा रखा है। आधिकारिक तौर पर भारत में भी अब गूगल प्ले स्टोर पर पॉकीमोन गो खेल उपलब्ध है। इस खेल को नियान्टिक इनकार्पोरेशन नाम की कंपनी ने बनाया है और इस खेल को ऑफिशियली 6 जुलाई 2016 को रिलीज किया गया था।

पॉकीमोन गो Pokémon Go को एन्ड्रॉयड और एप्पल दोनों पर खेला जा सकता है, यह खेल फ्री है आप इसे डाऊनलोड कर सकते हैं यह 84.4 एम.बी. का है। इस खेल को खेलने के लिये आपको जीपीएस और डाटा कनेक्शन दोनों ही चाहिये होता है और कई बार यह खेल आपका कैमरा भी उपयोग करता है। यह खेल लोकेशन बेस होने के कारण रियल फीलिंग देता है।

इस खेल को खेलने के पहले आपको अपने आपको रजिस्टर करना होता है, आप अपने जीमेल खाते से भी लॉगिन कर सकते हैं। उसके बाद आपको पॉकीमोन स्टॉप पर से बॉल और अंडे लेने होते हैं और जब भी आप पैदल घूमते हैं तो आपको मोबाईल पर पॉकीमोन दिखते हैं तो आपको उन पॉकीमोन को बॉल फेंककर पकड़ना होता है और कई जगहों पर इनके जिम भी होते हैं।

इसमें कई तरह के पॉकीमोन होते हैं जो कि आपको पकड़ने होते हैं और इस खेल में कई लेवल हैं, जो कि आपको पॉइंट्स और पॉकीमोन के आधार पर बढ़ते हैं। जितना आप पैदल चलेंगे उतने ज्यादा पॉइंट्स आपको मिलते जायेंगे और आपके पॉकीमोन शक्तिशाली होते जायेंगे।

Gameplay screenshots of Pokémon Go
Gameplay screenshots of Pokémon Go

तो यह तो आप समझ ही गये होंगे कि पॉकीमोन खेल में चलना बहुत पड़ता है, अगर आप वाहन पर हैं तो एकदम से आपको चेतावनी मिल जायेगी कि आप वाहन चलाते समय पॉकीमोन गो नहीं खेलें, और अपने आस पास का ध्यान रखें। बेहतर है कि जब भी आप इस खेल को खेलें अपने आसपास भी ध्यान रखें और सावधानी पूर्वक खेलें।

विदेश में कई तरह की दुर्घटनायें हो चुकी हैं कि पॉकीमोन गो खेलते खेलते ही हाईवे और सड़कों पर आ गये और भयानक दुर्घटनाओं का शिकार हो चुके हैं। कई लोग आपस में टकरा चुके हैं और कई लोगों की मौत भी हो चुकी है। ध्यान रखें कि खेल मनोरंजन के लिये बनाया गया है, परंतु मनोरंजन जान से ज्यादा कीमती नहीं है।

कई देश पॉकीमोन गो Pokémon Go को खेलने के लिये अपने नागरिकों के लिये चेतावनी जारी कर चुके हैं और कई शहरों में इस खेल को खेलने के लिये प्रतिबंध की भी बात की गई है। कई सार्वजनिक स्थानों पर पॉकीमोन गो खेलने के प्रतिबंध के बोर्ड लगाये गये हैं।

इस खेल के बारे में वर्ष 2014 में पहली बार सोचा गया था और 2016 में जब पॉकीमोन गो को रिलीज किया गया तो केवल कुछ ही देशों में इस खेल को डाऊनलोड के लिये दिया गया, धीरे धीरे जब कंपनी अपने सर्वरों को स्टेबल करने लगी तो उन्होंने अपना विस्तार बढ़ाना शुरू किया, 7 जुलाई 2016 को जब पॉकीमोन गो को बाजार में उतारा गया तो निन्टेन्डो कंपनी के शेयर 10 प्रतिशत बढ़ गये थे और 14 जुलाई तक तो शेयरों के भाव में 50 प्रतिशत का उछाल देखा गया, क्योंकि यह खेल रातोंरात प्रसिद्ध हो चुका था। इस तरह का कोई और खेल मोबाईल गेमिंग की दुनिया में पहली बार उतारा गया था।

TATA Hexa टाटा हैक्सा भविष्य की एसयूवी

हमने बैंगलोर में टाटा हैक्सा Tata Hexa कार के एक्सपीरियंस सेंटर  #hexaexperience  पर जाकर कार का अनुभव लिया। कार पहली नजर में देखने पर ही भा गई। टाटा की यह कार एसयूवी कारों में बहुत ही जल्दी अपनी पैठ बना लेगी। कार के प्रारूप को देखकर ही हम कार की परिकल्पना करने वाले लोगों की दाद देने लगे। हमने सबसे पहले स्वागत के काऊँटर पर जाकर अपने को और अपने परिवार को पंजीकृत किया, उन्होंने सभी के हाथ में बैंड पहना दिये। हमसे फॉर्म भरवाया गया और ड्राईविंग लाईसेंस की कॉपी भी ली गई, क्योंकि हमने कार चलाने की इच्छा प्रकट की थी। Continue reading TATA Hexa टाटा हैक्सा भविष्य की एसयूवी

जबरदस्त किताब का नाम है “दिल्ली दरबार”

बहुत दिनों बाद कोई जबरदस्त किताब पढ़ने के मिली और उस जबरदस्त किताब का नाम है “दिल्ली दरबार” (Dilli Darbaar) लेखक हैं सत्य व्यास। जब कोई किताब अमूमन हम पढ़ते हैं तो हमारी घरवाली और बेटेलाल हमारे पास आकर बैठ जाते हैं और हमें उनको सुनानी पड़ती है। हमें पता नहीं कि ऐसा क्यों करते हैं ये लोग, लगता है कि पढ़ने में आलस करते हैं, जब हम कहते हैं कि तुम लोग पढ़ने लिखने के आसली, तो हमें कहते हैं मक्खन लगाते हुए कि नहीं वो आप पढ़ते अच्छा हो। खैर हम पहले दिन 60-61 पन्ने पढ़ के सुना दिये। Continue reading जबरदस्त किताब का नाम है “दिल्ली दरबार”

#BergerXP IndiBlogger Meet बर्जर पैंट्स की नयी इन्नोवेटिव तकनीक

बर्जर पैंट #BergerXP मैंने इसका नाम बरसों पहले सुना था, शायद 25 वर्ष पहले, और तब से ही हमारे घर में हम बर्जर पैंट का ही इस्तेमाल करते हैं। करीबन 15 वर्ष पहले घर की मरम्मत करवाई गई थी, उसके बाद हमने अपने पैंटर को कहा कि अब इतना अच्छा काम करवाया है, अब अच्छा सा पैंट कर दो कि घर अच्छा लगे। उन्होंने ही हमें सुझाया कि बर्जर पैंट्स का सिल्क पैंट का उपयोग करो, अभी अभी ही बाजार में आया है और बहुत ही अच्छा है। एक बार कर लो और फिर जब भी दीवाल गंदी लगे, धो लो। तबसे हमारे यहाँ घर में हमेशा ही जब भी पैंट होता है, हम बर्जर पैंट्स के सिल्क पैंट का ही उपयोग करते हैं।

bergerxp badge
bergerxp badge

इस बार की बर्जर पैंट्स इंडीब्लॉगर मीट #BergerXP IndiBlogger Meet में शामिल होने का मौका मिला। ब्लॉगर मीट का आयोजन ललित अशोक होटल में किया गया, और जब मीट में पहुँचे तो कई ब्लॉगर पहले से ही पहुँच चुके थे। कई ब्लॉगर्स से पहली बार ही मिलना हुआ और कई ब्लॉगर्स से पहले भी मिलना हो चुका था। कल फरीदा रिजवान से सबसे पहले मिला वे 21 वर्ष से स्तन कैंसर के स्टैज 3 कैंसर की सर्वाइवर हैं और उनका फोटो मैंने रेसीडेंसी रोड पर एक सिग्नल पर लगा हुआ देखा था, तो उन्हें बधाई भी दी।

इसके बाद बर्जर पैंट्स इंडीब्लॉगर मीट की वॉल पर फोटो भी खींचे गये और 251 लाईक वाली एक इन्सटॉग्राम की फ्रेम भी बहुत घूम रही थी। बर्जर पैंट्स इंडीब्लॉगर मीट की शुरूआत लजीज खाने से हुई, और फिर सैशन शुरू होने के पहले ही हॉल में एक गुब्बारा और एक धागा दे दिया गया। बैठने के बाद सबसे पहले कहा गया कि अब खड़े हो जाओ और फिर शुरू हुआ एक वार्मअप सैशन जिससे कि ब्लॉगर्स सो न जायें और फिर गुब्बारे को फुलाकर धागे से बाँधने को कहा गया। असली खेल तो अब बताया कि सब लोग अपने गुब्बारे के धागे को अपने पैरों में बाँध लें और फिर एक दूसरे के गुब्बारे को फोड़ें, अगर आपका गुब्बारा फूट गया है तो आप नहीं फोड़ सकते और जिसने अपना गुब्बारा सबसे आखिरी तक बचा लिया, वह विजेता। खैर हम गुब्बारे को ज्यादा देर तक नहीं बचा पाये।

बर्जर पैंट्स इंडीब्लॉगर मीट में सबसे अच्छी बात यह लगी कि बिना स्लाईड के ही कंपनी की एवं पैंटिंग इंडस्ट्री की सारी जानकारी बहुत ही आसान शब्दों में दे दी गई। बताया गया कि पैंट करने के पहले क्या क्या करना होता है और इसके लिये बर्जर पैंट्स ने बहुत सी मशीनों को हमारी सुविधा के लिये बाजार में उतारा है। हमें तो सबसे अच्छी मशीन लगी घिसाई करने वाली, इससे घिसाई के बाद जो कण उड़ते हैं और पूरे सामान को गंदा करते हैं और साथ ही हमारे शरीर के अंदर भी चले जाते हैं तथा इससे कई बार हमें खाँसी की समस्या भी हो जाती है, तो इस मशीन में एक पाईप लगा है, जिससे घिसाई की 80-90 प्रतिशत धूल मशीन में ही चली जाती है और प्रदूषण भी नहीं फैलता है।

बर्जर पैंट्स की लगभग सारी ही मशीनों के बारे में हमने समझा और जाना, साथ ही हमें समझ आया कि तेजी से बर्जर पैंट्स का व्यापार इन नयी इन्नोवेटिव तकनीक का उपयोग करने से और भी बड़ेगा। पिछले साल लगभग 1.5 लाख इन्क्वायरी आई थीं, जिसमें से लगभग 90 हजार घरों की विजिट की गई और 15 हजार घरों ने बर्जर पैंट्स की इस सुविधा का लाभ उठाया। इस वर्ष यह आँकड़ा 20 प्रतिशत से अधिक हो चुका है, जो कि पिछले वर्ष 10 प्रतिशत था। बर्जर पैंट्स कंपनी फोर्ब्स इंडिया की सूचि में सातवें स्थान पर है जो कि अपने आप ही एक सकारात्मक बात है। पैंटिंग के बारे में ज्यादा जानकारी जानना चाहते हैं तो बर्जर पैंट्स की वेबसाईट पर जाकर जानकारी ले सकते हैं।

इस #BergerXP IndiBlogger Meet में मुझे #BergerXP ने मुझे Social Media Kingpin of the Day! भी चुना।

बर्जर पैंट्स इंडीब्लॉगर मीट
बर्जर पैंट्स इंडीब्लॉगर मीट

छोटी और बड़ी सोच के अंतर

जो लोग छोटे पदों पर होते हैं उन्हें ज्यादा क्यों नहीं दिखाई देता और जो लोग बड़े पदों पर होते हैं वे ज्यादा लंबी दूरी का क्यों देख पाते हैं। वो कहते हैं न कि सोच ही इंसान के जीवन का नजरिया बदल देती है। पर यहाँ समस्या सोच की नहीं है समस्या है पहुँच की, आप जितनी ऊँचाई पर होंगे उतना ज्यादा देख पाओगे, और धरातल पर केवल धरातल की चीजें ही दिखाई देंगी। पता नहीं कब सोचते सोचते यह विचार मेरे जहन में कौंध आया और मन ही मन इस बात पर शोध चलता रहा। समझ जब आया जब रोज की तरह ऑफिस जा रहा था। उस समझ में एक और समझ आ गई कि क्यों और किस तरह लोगों से बचकर चलना चाहिये, कैसे लोग आपको जगह देते हैं और कैसे आपकी जगह लेकर आपसे आगे बढ़ जाते हैं और हम केवल देखते ही रह जाते हैं।

हमारा जीवन और जीवन में होने वाली घटनाएँ बिल्कुल सामान्य यातायात की तरह हैं, जहाँ सड़क पर दूर दूर तक अवरोध हैं और हमें उन अवरोधों को एक एक करके पार करना है।

अगर हम पैदल होंगे तो हमें दिखाई देने वाले अवरोध और रास्ते पूर्णत धरातल पर होंगे, पर पैदल चलने वाले के लिये फुटपाथ बना है, और पैदल चलने वाला सड़क पर भी चल सकता है। जब पैदल चलने वाला फुटपाथ पर चलता है तो उसका अनुभव धरातल से जुड़ा होता है, वह आसपास की हर घटना या चीजों को बहुत ही करीब से देख रहा होता है या महसूस कर रहा होता है और यही जमीनी अनुभव कहलाता है, यही हम अगर व्यावसायिक भाषा में कहें तो जो लोग बुनियादी कार्य कर रहे हैं उन्हें पर तरह का अनुभव होता है।

अगर हम साईकिल या मोटर साईकिल पर होंगे तो हम फुटपाथ पर नहीं चल सकते हमें सड़क पर ही चलना होगा, अनावृत होने से कार, जीप, बस और ट्रक का भी सामना करना होगा। यहाँ भी बाईक सवार को उतना ही दिखाई देगा जितना कि वह बाईक से देख सकता है, अब ये निर्भर करता है कि किस रफ्तार की मशीन उसकी बाईक में लगी है, वह कितनी तेजी से दूरी तय कर सकती है, उसे कितने अच्छे से अपना वाहन चलाना आता है और कैसे अपने से बड़े वाहनों के बीच जगह बनाते हुए अपने गंतव्य तक पहुँचता है। बाईक वाले पैदल चलने का दर्द समझ सकते हैं क्योंकि वे भी कभी कभी पैदल चलते हैं या फिर वे अभी अभी बाईक सवार बने हों या फिर भूल भी सकते हैं अगर वे लंबे समय से बाईक सवार हैं।

कार जीप वाले लोग अपने आसपास के वाहनों का ध्यान जरूरी रखेंगे नहीं तो उनके साथ साथ ही दूसरे का भी ज्यादा नुक्सान हो सकता है, उन्हें दूसरे से ज्यादा अपने वाहन की ज्यादा चिंता होती है। जैसे कि लोग खुद के सम्मान की ज्यादा चिंता करते हैं, और दूसरे से थोड़ी दूरी हमेशा बनाये रखते हैं, क्योंकि टकराव हमेशा ही बुरा होता है, टकराव से हमेशा ही बुरा प्रभाव पड़ता है। कार सवार को जमीनी अनुभव से गुजरे हुए समय हो गया होता है और बाईक का अनुभव उसके लिये हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता है।

तो कहने का मतलब इतना ही है कि जब तक जमीनी तौर पर जुड़कर काम करते हैं तो आप उन सब चीजों को बहुत अच्छे से समझ सकते हैं और हमेशा ही अपने से बड़े वाहनों या पदों पर बैठे हुए व्यक्ति से या तो डरेंगे या उनकी स्थिति को समझने की कोशिश करेंगे, परंतु जैसे ही जमीनी स्तर से ऊपर उठते हैं वैसे ही इंसान बदल जाता है और वैसे ही उसके देखने की दिशा बदल जाती है।

उम्मीद है बात जो कहना चाह रहा था, पहुँच गई होगी, नहीं तो हम टिप्पणियों में भी बात आगे बढ़ा सकते हैं।

मरने के पहले और मरने के बाद क्या करना चाहते हो ?

मरने के पहले और मरने के बाद क्या करना चाहते हो ?

मरने के पहले –

है न अजीब सवाल, एक ऐसा सवाल जिसका उत्तर शायद किसी के पास भी तैयार नहीं, मृत्यु हमारे जीवन में कोई बीमारी नहीं है, यह भी जीवन की एक विशेषता है। अंग्रेजी में इसे ऐसे कहना ठीक होगा Death is not a Bug its feature of Life. Continue reading मरने के पहले और मरने के बाद क्या करना चाहते हो ?

रिलायंस जिओ का टेलीकॉम युद्ध

आज सुबह रिलायंस जिओ के प्लॉन समाचार पत्र में पढ़े तो देखकर ही दिमाग चकरघिन्नी हो गया। अब लगा कि रिलायंस जिओ, आईडिया एयरटेल की दुकानों पर भारी पड़ने वाला है, और रिलायंस जिओ का टेलीकॉम युद्ध शुरू हो गया है जो बाकी के सभी ऑपरेटर्स को बहुत भारी पड़ने वाला है, क्योंकि जिओ का सारा इन्फ्रास्ट्रक्चर नया है और उनकी कॉस्ट कम है, और बाकी के लोग हाथी हो चुके हैं। यहाँ तक कि इनके प्लॉन से अब ब्रॉडबैंड कंपनियों तक की बैंड बजने की उम्मीद है।

परसों ही ऑफिस के केन्टीन में लाईन से बैठे मोबाईल ऑपरेटर्स के डेस्कों पर गया और पूछने लगा कि अभी जो प्लॉन है, उससे मेरा काम नहीं चल रहा है। ज्यादा वाला प्लॉन बता दो, जिसमें लोकल और एस.टी.डी. दोनों ज्यादा हों, डाटा जितना है उतना ही चलेगा।

पहली डेस्क वोदाफोन जो अभी मेरा नेटवर्क ऑपरेटर है –

उनके प्लॉन देखे, तो कोई प्लॉन जमा ही नहीं, कहीं न कहीं कोई न कोई ट्रिक, ज्यादा कॉल्स तो डाटा प्लॉन में कमी, और डाटा ज्यादा तो कॉल में कमी। हमने कहा यार तुम लोग तो लूटने में ही लगे हो, और कितना निचोड़ोगे जनता को, Continue reading रिलायंस जिओ का टेलीकॉम युद्ध

बच्चों के शरीर के विकास के लिये न्यूट्रिशियन्स

लगभग सभी माता पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे हरेक चीज में आगे हैं फिर चाहे वह पढ़ाई लिखाई हो या खेल हो। यह बात मुझे अच्छी तरह से तब समझ में आई जब मैं पिता बना। बच्चों को अपनी उम्र के मुताबिक, बच्चों के शरीर के विकास के लिये न्यूट्रिशियन्स सही मात्रा में मिलें, हमें इसका ध्यान रखना जरूरी है। बच्चों का शारीरिक विकास ठीक तरीके से हो रहा है उसके लिये कुछ चीजें बहुत महत्वपूर्ण हैं, जैसे कि शारीरिक विकास के पड़ाव, इन्फेक्शन से लड़ने के लिये इम्यूनिटी (शारीरिक प्रतिरोधक क्षमता) और उम्र के हिसाब से होने वाली सक्रियता। तो बच्चों को चाहिये एक सम्पूर्ण स्वस्थ आहार जो कि शारीरिक क्रियाकलापों की सक्रियता में मदद करे।

एक सम्पूर्ण स्वस्थ आहार जिससे बच्चे को सही मात्रा में कार्बोहाईड्रेट, प्रोटीन्स, फैट्स और विटामिन मिलते हैं। वैसे भी छोटे बच्चों के लिये घर में बना भोजन ही न्यूट्रीशियन्स का मुख्य स्रोत होता है। परंतु आजकल लगभग सभी माता पिता की यही शिकायत होती है कि बच्चा कुछ चुनी हुई चीजें ही खाता है, हमारी आधुनिक जीवन के जीने के तरीका भी बच्चों को चुनी हुई चीजों को खाना सिखलाता है जैसे कि आजकल की भागती दौड़ती जिंदगी में हम जंक फूट, रेडी टू ईट फूड खाते हैं, खाने की क्वालिटी के साथ समझौता करते हैं, मिलावटी खाना खाते हैं, वह सभी चीजें खाते हैं जो नहीं खाना चाहिये और इसी कारण बच्चों को सही मात्रा में न्यूट्रीशियन्स नहीं मिल पा रहे हैं।

बच्चों को सारी चीजें खाने की आदत डालनी चाहिये खासकर घर में बनी चीजों की चाहे जैसे कि रोटी दाल, दाल चावल, दाल खिचड़ी, हरी सब्जियाँ, बिरयानी, दाल बाटी, लिट्टी चोखा। साथ ही बच्चों को ज्यादा कैलोरी वाली चीजें भी खिलानी चाहिये जैसे कि पनीर, मिठाईयाँ, काजू करी, हरेक चीज में घी दीजिये, अंडा पीली बॉल के साथ खाना है। क्योंकि बच्चे ज्यादा खेलते हैं तो उनको ज्यादा कैलोरी की जरूरत भी होती है। आप देख सकते हैं अपने बच्चों को कि वो एक जगह तो बैठेंगे ही नहीं और हमेशा इधर से उधर घूमते ही रहेंगे।

अगर बच्चा खाने में मीनमेख निकालता है तो इसका मतलब भी यही है कि वह कुछ चीजें या तो खाना ही नहीं चाहता है या फिर उनको उस समय खाने से बचना चाहता है। इसके लिये बच्चों को अपने साथ बातों में लगाकर उनको खाना खिलायें, हो सके तो कभी कभार अपने हाथों से खिलायें, प्यार से बात करके खिलायें। हर बार डाँटने या मारने से काम नहीं चलेगा।

एक बात और ध्यान रखें कि केवल खाने से ही सब कुछ बच्चों को नहीं मिल जायेगा, उसके लिये उन्हें कुछ अतिरिक्त चीजें सीमित मात्रा में भी साथ में देनी होंगी, सप्लीमेंट जैसे कि हॉर्लिक्स ग्रोथ + जो कि बच्चों को शारीरिक विकास में न्यूट्रीशियन्स की कमी को पूरा कर भरपूर सहयोग करता है।

पर ध्यान रखें सप्लीमेंट केवल भोजन में न मिलने वाले न्यूट्रीशियन्स की कमियों को पूरा करता है। सप्लीमेंट को भोजन के रूप में नहीं खाया जा सकता है। हमें यह भी नहीं भूलना नहीं चाहिये कि सबसे ज्यादा न्यूट्रीशियन्स घर के खाने में ही मिलते हैं, बाजार के खाने में नहीं मिलते हैं। सप्लीमेंट को हमेंशा डॉक्टर की सलाह से ही लेना ठीक रहता है।