लॉकडाऊन में बैंगलोर से कोझिकोड 400 किमी मित्र की यात्रा बाईक से परिवार के पास पहुँचने के लिये –
आज सुबह मित्र से बात हो रही थी, वे कालिकट केरल के रहने वाले हैं, कालिकट को कोझिकोड़ भी कहा जाता है। उनका परिवार लॉकडाऊन के पहले ही घर चला गया था, और इसी बीच अचानक ही लॉकडाऊन लग गया, और मित्र यहीं रह गये।
घर से काम चालू हो गया, वैसे तो उन्हें खाना बनाना आता था, परंतु जब रोज़ सुबह शाम खाना ऑफिस के काम के साथ बनाना पड़े तो बहुत मुश्किल होती है।फिर एक दिन ऐसा भी आया कि आलस के कारण और काम ज़्यादा होने के कारण कुछ बना नहीं पाये, तब जाकर उन्होंने सोचा कि जब भी फ़ुरसत हो और खाना बनाने का मूड हो, कुछ न कुछ बनाकर रख लो, जिससे घर में खाने के लिये कुछ न कुछ हमेशा रहे। साथ ही वे कुछ इंस्टैंट फ़ूड भी ले आये, मैगी वग़ैरह।
तो एक और मित्र केरल के पालक्कड़ से हैं, उनके साथ भी यही समस्या थी, पर लॉकडाउन के चलते परिवार के पास घर नहीं जा पा रहे थे। दोनों के साथ एक ही समस्या थी कि दोनों की कारें इनके गृहनगर में ही खड़ी थीं, लॉकडाऊन के पहले परिवार को छोड़ने गये थे तो वहीं कार छोड़ आये थे। इन दोनों ने आपस में बात की और कहा कि बाईक से ही चलते हैं, दोनों ने ई-पास के लिये आवेदन दिया था और पिछले बुधवार को गुरूवार को यात्रा करने के लिये उन्हें ई-पास मिल गया, पालक्कड़ वाले मित्र गुरूवार सुबह निकल गये अपनी बाईक से और अच्छे से घर पहुँच भी गये (हालाँकि मेरी बात इनसे नहीं हो पायी, जैसे कालिकट वाले मित्र ने बताया)
कालिकट वाले मित्र ने बताया कि बुधवार को काम ज़्यादा था और उस वजह से नींद पूरी नहीं हो पायी, इसलिये गुरूवार को नहीं निकले, गुरूवार को दोपहर से ही सो गये, जिससे नींद पूरी हो जाये और शुक्रवार को सुबह 5 बजे निकलने का प्लॉट किया, इसके पहले अपनी 15 वर्ष पुरानी बजाज पल्सर बाईक को सर्विस सेंटर लेकर पहुँचे और ज़रूरी मरम्मत करवाई।
साथ में लेपटॉप बैग, पानी व खाने का समान, क्योंकि रास्ते में किसी भी रेस्टोरेंट में नहीं रूकना था। सारा सामान बाईक की पीछे वाली सीट पर बाँधकर चल दिये। केरल जाने के बैंगलोर से दो रास्ते हैं एक जो कि मधुमलई जंगल क्षेत्र से होकर जाता है, अभी लॉकडाऊन में बंद कर दिया है, दूसरा रास्ता लगभग 50 किमी लंबा है।बैंगलोर से कोझिकोड़ की दूरी अब उनके लिये 400 किमी की थी।
सुबह यात्रा शुरू करने के बाद 50 किमी के बाद ही उनकी कमर में दर्द शुरू हो गया, तब उन्हें हमारी बहुत याद आई मेरे पास बाईक के लिये एयर फ्लोटर सीट है जिससे पीठ में दर्द नहीं होता, हमने उनसे कहा भी कि अगर जाना था, तो मेरी सीट ले जानी थी, वे बोले यह तो तब याद आया जब कमर में दर्द हुआ, फिर उन्होंने निर्णय लिया कि हर 50 किमी के बाद 10 मिनिट का आराम करेंगे और फिर से बाईक चलायेंगे। इस प्रकार वे लगभग 12 बजे कर्नाटक केरल बॉर्डर पर पहुँच गये, कर्नाटक बॉर्डर पर उन्होंने अपना ई-पास दिखाया और उन्हें केरल में जाने दिया।
केरल की बॉर्डर शुरू होते ही पहला चेकपोस्ट पड़ा, जहाँ पर उनसे पूछताछ हुई और ई-पास देखा गया, फिर कहा कि बाईक साइड में लगाओ, स्वास्थ्य की जाँच हुई और सेनेटाईजेशन स्टेशन में उनकी बाईक लगवाई गयी, और बाईक को अच्छे से सेनेटाईज किया गया, और कहा कि अब दो मिनिट के बाद बाईक को आप शुरू कर सकते हैं। बहुत सारे दिशा निर्देश दिये गये।
वहाँ से लगभग 15-20 मिनिट बाद निकले तो फिर से 100 मीटर के बाद एक और चेकपोस्ट आ गई, वहाँ फिर से उनके स्वास्थ्य की जाँच हुई, और पूछताछ हुई, कि क्यों जा रहे हो वग़ैरह वग़ैरह, फिर वहाँ से उनको स्वास्थ्य अधिकारी, डॉक्टर, अस्पताल, खाद्य विभाग इत्यादि कई लोगों के नंबर दिये गये, कि उनसे संपर्क करके मदद ली जा सके, और उन्हें कहा गया कि आपको 7 दिन के क्वारेंटाईन में रहना है। और उसके बाद उन्हें एक Red Card दिया गया कि आपको अब हर चेकपोस्ट पर यह दिखाना है, खाना आपको रोज़ घर पर पहुँचाया जायेगा, रोज़ आपके पास फ़ोन करके आपसे आपके स्वास्थ्य की जानकारी ली जायेगी। यह चेकपोस्ट थी वायनाड की, और वायनाड में प्रशासन ने ध्यान रखा कि कोई भी वायनाड की सीमा में न रूके, लगातार प्रशासन ने इस बात का ध्यान रखा।
मित्र शाम लगभग 5 बजे कोझिकोड़ पहुँच गये, हमने उनसे पूछा कि रास्तेभर बारिश नहीं मिली तो उन्होंने बताया कि कोझिकोड़ में प्रवेश के पहले ही देखा कि ज़बरदस्त बारिश होकर चुकी थी, पेड़ गिरे हुए हैं और सड़क पर भी थोड़ा पानी था।
हमने पूछा कि कितने लोग बैंगलोर से जा रहे थे और आ रहे थे, तो वे बोले कि कहीं रूकने की जगह तो नहीं थी, और किसी से बात भी नहीं करनी थी, तो साफ़ साफ़ पता नहीं, परंतु चेकपोस्ट पर देखकर लग रहा था कि केवल वे अकेले ही यह रोमांचक यात्रा करने वाले नहीं हैं, बल्कि कई हैं, क्योंकि उनको सभी गाड़ियों के नंबर बैंगलोर के ही दिख रहे थे। वे बता रहे थे कि एक बंदे ने एक्टिवा पर ही 2-3 सूटकेस टेप से अच्छे से बाँध रखे थे, इतनी टेप लगा रखी थी कि सूटकेस हिल भी नहीं सकते थे, बस चलाने वाला आराम से बैठा था। मौसम भी अच्छा था, बहुत ज़्यादा धूप भी नहीं थी, इसलिये ज्यााद दिक़्क़त नहीं हुई।
उन्होंने खाने के पैकेट के लिये सरकारी अमले को मना कर दिया था, बावजूद इसके उन्हें लगातार खाना घर पहुँचाया जा रहा है, रोज़ फ़ोन करके तीन अलग अलग सरकारी अमले के लोग उनका हाल-चाल पूछते हैं। इतना सुनने के बाद लगा कि वाक़ई अगर सरकार कुछ करना चाहे तो बहुत कुछ कर सकती है। हमने अपने मित्र को सुरक्षित पहुँचने की शुभकामनायें दीं।