पिछली पोस्ट पर “यादों के मौसम” का “तुझसे बिछुड़कर जिंदा है, जान बहुत शर्मिंदा है” ये गीत सुनवाया था, तब श्री पंकज सुबीर जी ने “जब हिज्र की शब पानी बरसे, जब आग का दरिया बहने लगे..” की फ़रमाईश की तो आज सुनिये यह गाना –
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व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा योजना (यूनाईटेड इंडिया इंश्योरेन्स) का विश्लेषण (Personal Accidental policies review of United India)
पिछले लेख व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा, क्या आपके साथ दुर्घटना नहीं हो सकती [Personal Accident Insurance Policy]
के बाद विचार आया कि कुछ व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा योजनाओं का विश्लेषण भी दिया जाये तो पाठकों को व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा योजना के बारे में ज्यादा जानकारी मिलेगी और वे अच्छी योजना का चयन भी कर पायेंगे।
यूनाईटेड इंडिया इंशयोरन्स कंपनी की व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा योजना ( PA Policy)
किसी व्यक्ति को शारीरिक हानि के लिये आकस्मित घातक परिस्थितियों के लिये (दुर्घटना और चोट के कारण) सुरक्षा प्रदान करते हैं।
१२ वर्ष से ७० वर्ष तक की उम्र तक सुरक्षा प्रदान करते हैं, ७० वर्ष की उम्र में स्वास्थ्य परीक्षण होता है, वैसे ८० वर्ष तक भी सुरक्षा प्रदान करते हैं।
बीमा अवधि के दौरान घातक दुर्घटना होने पर इस प्रकार निर्देश हैं –
मृत्यु | बीमित राशि का १००% |
स्थायी संपूर्ण विकलांगता | बीमित राशि का १००% |
दो अंगों की हानि / दोनों आँखें या कोई एक अंग और एक आँख | बीमित राशि का १००% |
किसी एक अंग / एक आँख की हानि | बीमित राशि का ५०% |
स्थायी आंशिक विकलांगता | निर्भर करता है % बीमित राशि और योजना के अनुसार |
अस्थायी संपूर्ण विकलांगता | १% हर सप्ताह बीमित राशि का, अधिकतम ३००० रुपयों तक, अधिकतम १०० सप्ताह के लिये |
अतिरिक्त बीमा शुल्क देकर, बीमित दावा राशि का २५% तक का चिकित्सा व्यय, या १०% बीमित राशि तक योजना में सम्मिलित की जा सकती है।
बीमित व्यक्ति के लिये योजना में अधिकतम दो आश्रित बच्चों के लिये शिक्षा राशि का भी प्रबंध है। दुर्घटना के बाद शव को दुर्घटना के स्थान से लाने के लिये किया गया खर्च भी सम्मिलित होता है (योजना के नियम और शर्तों के अनुसार)
योजना के नवीनीकरण पर ५% बीमित राशि का आकर्षक संचयी लाभ दिया जाता है, बीमित राशि हर वर्ष ५% अधिक हो जाती है हर वर्ष अगर बीमा दावा न किया गया हो, (अधिकतम बीमित राशि के ५०% तक), बिना अतिरिक्त बीमा शुल्क दिये।
योजना में क्या सुरक्षा सम्मिलित नहीं है –
क्षतिपूर्ति राशि विकलांगता के लिये एक ही अवधि में एक ख्ंड से ज्यादा का फ़ायदा नहीं दिया जाता है, जो कि अधिकतम बीमित राशि हो सकती है।
कोई ओर भुगतान, बीमित राशि का ५०%/१००% बीमा दावा करने के बाद ।
कोई ओर दावा, समान अवधि में जो कि बीमित राशि से जयादा होता हो।
आत्महत्या, अपराध में मृत्यु, शराब/ड्रग्स से प्रभावित दुर्घटना मृत्यु / चोट।
गर्भावस्था से संबंधित कोई भी दावा।
युद्ध और परमाणु खतरों से।
बीमा शुल्क राशि
दस लाख रुपये के दुर्घटना बीमा के लिये लगभग १००० रुपये सालाना है।
तुझसे बिछुड़कर जिंदा है, जान बहुत शर्मिंदा है – एक गीत … मेरी पसंद
मेरा सपना मेरी डायरी मेरी जिंदगी
अपना सपना पूरा होने में पता नहीं कितना समय लगेगा, या देखते हैं सपना, सपना ही रह जाता है क्या जिंदगी में मौका नहीं मिलेगा, पर अगर जिंदगी में मौका मिलता भी है तो किस्मत उसे छीन लेती है। पता नहीं ये मौका वापस कब मिलता है । इंतजार है….
सिगरेटियों के नित्यकर्म और उनके धुएँ [Cigratte Smokers Routine)
कभी कभी सिगरेट से नफ़रत होती थी, कि ये कहीं अंदर तक नुकसान कर रही है, पर तन्हाई का एक अकेला दोस्त केवल और केवल सिगरेट ही थी, कहीं अगर २ मिनिट भी इंतजार करना होता तो फ़ट से एक सिगरेट सुलगा लेते और कसैला धुआँ मुँह में लेकर अंदर अंतड़ियों तक ले जाते, पता नहीं अंदर अंतड़ियों की क्या दशा होती होगी, जब फ़क से इतना सारा धुआँ इतनी रफ़्तार से उनमें जाता होगा।
कई बार तो गुस्सा भी आता कि क्यों में इस सड़ी सी चीज का गुलाम हूँ जो कि सफ़ेद कागज में लिपटी हुई मौत है, जिसमें तंबाखू और पता नहीं क्या कैमिकल मिला होगा, पर बस केवल अपनी जिद और अपना मन की करने के लिये पिये जा रहा था मैं तो, कोई मजा नहीं, कोई कसैलापन नहीं, सब साधारण सा हो रहा था, पर सिगरेट पीते देखकर शायद दुनिया को लगता होगा कि मैं कोई असाधारण कार्य कर रहा हूँ, मुझे कभी नहीं लगा !!
जो लोग आज भी सिगरेट पीते हैं, मैं उन्हें देखता हूँ तो ऐसा लगता है कि अभी तक ये अपनी कमजोरी से जीत नहीं पाये हैं, सुबह चाय के साथ तलब, फ़िर ऑफ़िस पहुँचते ही चाय के साथ तलब, फ़िर थोड़ा काम किया न किया कोई सिगरेटिया मिल गया तो उसका साथ निभाने की तलब, बस इस तरह सिगरेटियों को बुरा न लग जाये इसके लिये सिगरेट पीते जाना और अपने जीवन के नित्यकर्म में शामिल कर लेना, और धीरे धीरे अपनी कुंठा को दबाना।
सिगरेट पीना केवल उत्कंठा से जनित होती है, जो कि किसी भी कारण से हो सकती है, गम को दबाने का बहाना देना या खुशी को जाहिर करने का या फ़िर दोस्तों या लड़कियों के सामने झांकीबाजी जमाने का, बहुत सारे कारण हो सकते हैं, जब अकेले सिगरेट पीते हैं तो ४ कश लगाने के बाद सिगरेट जल्दी खत्म होने का इंतजार और फ़िल्टर तक आने के पहले ही सिगरेट को अपने पैरों तले रौंद कर चल देते हैं।
कई सिगरेटिये देखे हैं, जो सिगरेट पैर से नहीं बुझाते, बोलते हैं कि पवित्र अग्नि है, वो सिगरेट के ठूँठ को दीवार से रगड़ कर बुझा देते हैं, कुछ नाली में डालकर चल देते हैं, तो कुछ ऐसे ही जलती हुई सिगरेट के ठूँठे को फ़ेंककर चल देते हैं।
सिगरेट पीने वाले अपने होठों की भी बहुत परवाह करते हैं कि फ़िल्टर तक आने के पहले ही फ़ेंक देते हैं, इस कार्य में कोई लापरवाही नहीं बरतते, नहीं तो फ़िल्टर तक याने कि ठूँठ तक सिगरेट पीने से होठ काले हो जाते हैं, कईयों के देखे हैं हमने तो। आखिर १०० डिग्री का तापमान होता है।
अगर कोई जरुरी कार्य कर रहा होता है और बीच में कोई मित्र फ़ोन करकर बोल दे कि चलो एक सिगरेट साथ में पी लें तो वह सब जरुरी कार्य छोड़कर चल देता है संगति देने, ऐसे सिगरेटिये दोस्तों की दोस्ती भी बहुत पक्की होती है जैसे बिल्कुल लंगोटिया यार, या दाँतकाटी रोटी।
क्यों हमें धन के लिये कार्य करना पड़ता है ? क्या हमारे बुजुर्गों ने सही निवेश नहीं किया था ?
समाज में देखा होगा कि नौकरी पेशा व्यक्ति केवल और केवल धन के लिये ही कार्य करता है, अगर वह कार्य करना बंद कर दे तो उसकी मासिक आय रुक जाती है, और उसकी जरुरतें पूरी नहीं हो पायेंगी।
क्या गलत है ? मैं यह सोच रहा हूँ, मेरे दादा भी पैसे के लिये कार्य करते थे, मेरे पापा भी और अब मैं भी !! इसका मतलब कि जितना कमाया वह बहुत कम था ऐसा तो नहीं ?
नहीं !! मुझे लगता है कि हमारे बुजुर्गों ने कमाया पर सही तरीके से निवॆश नहीं किया, जिसके कारण हमें आज भी पैसे के लिये कार्य करना पड़ रहा है, मैं बुजुर्गों को कोस नहीं रहा हूँ केवल अपनी बात रख रहा हूँ।
अगर सही तरीके से निवॆश किया जाता तो मुझे अपना भविष्य चुनने की आजादी होती और मैं किसी थियेटर में कार्य कर रहा होता या कहीं नदी किनारे बैठकर कविता लिख रहा होता।
आज भी वक्त है हमारे खुद के लिये कि हम चेत जायें और अपनी भविष्य की पीढ़ी को वो देने की कोशिश करे जो हमें नहीं मिला, कम से कम उनको तो धन के लिये कार्य नहीं करना पड़े और वे अपने मनोनुकूल अपनी राह चुन सकें नहीं तो उनकी भी जिंदगी केवल धन कमाने में निकल जायेगी।
ये मेरे विचार हैं और आजकल ये प्रश्न बहुत ही तेजी से धाड़धाड़ करके दिमाग में कौंधता रहता है ।
गपोड़ी बेटेलाल की गप्प के किस्से ३१०७२०१०
इटेलियानो पास्ता सचित्र (Iteliano Pasta with Pictures)
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समान –
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पास्ता – २०० ग्राम
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प्याज – २
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शिमला मिर्च – १
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टमाटर – ४
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हरी प्याज – १
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बटर – ३ चम्मच
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चीज – २ क्यूब
सारी सब्जियों को मनपसंद आकार में काटकर, बटर में १ मिनिट तक गुलाबी कर लें और फ़िर सब्जियों को भी डाल दें और नमक डाल दें।
पास्ता को पकाने के लिये पहले १-२ लीटर पानी में नमक और १ चम्मच तेल डालकर उबाल लीजिये और जब पानी उबल जाये तो उसमें पास्ता डालकर १०-१२ मिनिट तक पका लें फ़िर पानी नितार कर इस पास्ता को बनी हुई सब्जी में डाल दें और चीज को किसकर डाल दें, नमक स्वादानुसार डाल लें। अगर टमाटर सॉस डालना है तो वो भी डाल सकते हैं, तैयार हो गया इटेलियानो पास्ता।
पकाने का समय – १०-१२ मिनिट
३० मिनिट में डिलेवरी देने वाले फ़्रेंचाईजी से लेने से अच्छा हमें खुद ही बनाना अच्छा लगा और पूरे ३० मिनिट भी नहीं लगे समान खरीदने, सब्जी काटने और बनाने में।
कुल लागत – लगभग ६०-६५ रुपये ३-४ लोगों के लिये अच्छी मात्रा में। और अगर बहुराष्ट्रीय कंपनी को ऑर्डर देते तो बिल होता कम से कम २४० रुपये और पास्ता की मात्रा भी कम। यम्मी यम्मी बना पास्ता।
अंधेरी में ज्ञान पाने के लिये मुंबई के २ २ मिनिट की कीमत बारिश के बीच जद्दोजहद …. विवेक रस्तोगी
आज अंधेरी में जागोइन्वेसटर पाठक मिलन था, समय तय किया गया था सुबह १० बजे से दोपहर २ बजे तक । क्लास रुम का जितना भी खर्च आना था वह सबको साझा करना था। सही मायने में वित्तीय प्रबंधन शिक्षा के लिये यह मुंबई में शुरु किया गया एक प्रयास है। जागोइन्वेस्टर.कॉम ब्लॉग मनीष चौहान लिखते हैं।
तो सुबह ९ बजे घर से निकल पड़े थे क्योंकि अंधेरी पहुँचने में पुरे ४५ मिनिट का अनुमान लगाया था। ९ बजे नहीं निकल पाये हम निकल पाये ९.०५ बजे घर से और हाईवे तक पैदल बस स्टॉप पर ९.०८ बजे पहुँच गये। वहाँ जाकर बोरिवली स्टेशन की बस पकड़ी, हमारा अनुमान था कि लगभग ९.१७ बजे तक हम बोरिवली स्टेशान पहुँच जायेंगे।
बोरिवली से कांदिवली ३ मिनिट, कांदिवली से मालाड ४ मिनिट, मलाड से गोरेगांव ४ मिनिट, गोरेगांव से जोगेश्वरी ६ मिनिट और जोगेश्वरी से अंधेरी लगभग ३ मिनिट लगता है, याने कि बोरिवली से अंधेरी २० मिनिट लगते हैं।
और फ़िर हमें टिकट भी लेना था क्योंकि हम रोज लोकल ट्रेन में तो जाते नहीं हैं, हमारे पास रेलकार्ड है, जिसे कि रेल्वे स्टेशन पर लगे टर्मिनल से फ़टाफ़ट टिकट लिया जा सकता है। हमने रिटर्न टिकट लिया मतलब बोरिवली से अंधेरी जाने का और वापस बोरिवली आने का।
फ़िर वहीं लगे उद्घोषणा टीवी पर देखा कि ९.२१ की चर्चगेट स्लो तीन नंबर प्लेटफ़ॉर्म और ९.२५ की चर्चगेट फ़ास्ट दो नंबर प्लेटफ़ार्म पर थी। हम फ़टाफ़ट दौड़ते हुए २-३ प्लेटफ़ॉर्म पर पहुँचे और ब्रिज से ही देखा कि ९.२१ की ट्रेन तो नदारद थी लगा कि चली गई परंतु भीड़ देखकर और इंडिकेटर पर ९.२१ का समय देखकर अंदाजा लगाया कि ट्रेन लेट है। हमें तो अंधेरी तक ही जाना था तो हम ९.२५ की लोकल में चढ़ लिये।
सेकंड क्लॉस के डिब्बे में बहुत दिन बाद चढ़े थे, अरे लोकल में ही बहुत दिनों बाद चढ़े थे और पीक समय था पर शनिवार होने के कारण चढ़ने को मिल गया था। अंदर घुसते ही पीछे से धक्का पड़ा और आवाज आई “अंदर दबा के चलो …. ” “भाईसाहब जरा धक्का मारकर !!!”, हम हाथ में छाता और अपनी किताब कापी पकड़े भीड़ में दुबके खड़े थे, जो गेट पर खड़े थे वो हर स्टॆशन पर दरवाजे की जनता का बराबर तरीके प्रबंधन कर रहे थे, “ए कांदिवली वालों को चढ़ने दे रे, जगह दे रे…”, “ऐ मालाड चलो आओ रे, ऐ इस तरफ़ से नहीं चढ़ने का” “ चल दबाके अंदर होले…”
फ़िर जोगेश्वरी निकला और हम भी गेट के पीछे की भीड़ में लाईन में खड़े हो लिये और आगे वाले से पूछ कर आश्वस्त हो लिये “अंधेरी….” तो उसने धीरे गर्दन “हाँ” में हिला दी, और बाहर बारिश अपने पूरे जोरों से शुरु हो चुकी थी, ऐसी बारिश मुंबई के लिये थोड़ी अच्छी नहीं होती क्योंकि मुंबई में बारिश का पानी भर जाता है।
जैसे ही अंधेरी स्टेशन आया तो आवाज आई “ऐ चल उड़ी मार उड़ी…” और जब तक ट्रेन स्टेशन पर रुकती तब तक तो हम भी प्लेटफ़ॉर्म पर थे। बारिश पूरे जोरों पर थी, हमने एक ओर पाठक से ९.४५ पर मिलना तय किया था, अंधेरी स्टेशन के एक्सिस बैंक के ए.टी.एम. के पास, वो हैं आशुतोष तिवारी जो कि हिन्दी ब्लॉगर भी हैं उनका ब्लॉग है मेरी अनुभूतियाँ । जोरों की बारिश में हम चल दिये अपने गंतव्य की ओर।
वहाँ जाकर ४ घंटॆ कैसे निकल गये पता ही नहीं चला, गजेन्द्र ठाकुर जो कि सी.एफ़.पी. भी हैं, उन्होंने म्यूचयल फ़ंड पर इतनी अच्छी जानकारियाँ जुटाई थीं, कि समय का पता ही नहीं चला। अब अगली मीटिंग का दिन २८ अगस्त का है जिसमें एस.आई.पी., एस.टी.पी और एस.ड्ब्ल्यू.पी. पर जानकारी साझा की जायेगी।
झाबुआ कॉलेज जाते समय दो तालाब और भी बहुत सारी यादें…. मेरे किस्से … विवेक रस्तोगी
कॉलेज में पहले वर्ष में ही कॉलेज की हवा लग गयी, झाबुआ जी हाँ यह मध्यप्रदेश में एक आदिवासी क्षैत्र है और यहाँ के भील भिलाले बहुत प्रसिद्ध हैं। पहले भी एक पोस्ट लिखी है यहाँ चटका लगाकर देख सकते हैं “झाबुआ के भील मामा”।
अपने कॉलेज जाते समय बीच में दो तालाब पड़ते थे, पहला तालाब तो हमारे घर के पास ही था और उसमें पानी थोड़ा कम होता था, केवल बरसात में पुरा जाता था। दूसरा तालाब हमारे कॉलेज के पास था जिसे पार करने के बाद ही कॉलेज जाया जा सकता था। बहुत ही सुन्दर दृश्य बनता था, और खासकर बारिश में तो कहने ही क्या, पुल के ऊपर एक फ़ीट पानी बहता था और कॉलेज आने जाने वाले रेलिंग के सहारे तालाब पार किया करते थे। तालाब में कमल के फ़ूल खिला करते थे कभी कोई कमल पास में खिल गया तो हम उसे ऐसे ही तोड़ लिया करते थे।
दूर से ही तालाब का पुल दिखाई पड़ता था, वहीं दूर से ही कोई हरे,नीले रंग की स्कर्ट पहनी हुई लड़की दिखाई देती, तो साईकिल और तेज कर देते, पता है पास जाकर देखते कि भील जा रहा है, वहाँ के भील लोगों का पहनावा है यह, शाल को लँगी जैसा लपेट लेंगे और दूर से ऐसा लगेगा कि लड़की जा रही है, पास जाकर देखा तो भील मामा।
एक शेर अर्ज किया करते थे –
“दूर से देखा तो लगा हेमामालिनी बाल हिला रही है,
पास जाकर देखा तो पता चला कि भैंस पूँछ हिला रही है।”
वहीं पास में भील कमल की जड़ याने कि कमलककड़ी वहीं से तोड़कर बेचते थे। कमल में लक्ष्मीजी रहती हैं, इसलिये हम कमल को बहुत पसंद किया करते थे, एक हमारा मित्र था नाम उसका भी कमल था, बस काला था तो हमने उसका नाम कालिया रख दिया था, और हम लोग कहते थे कमल कालिया, काला पड़ने की भी कहानी है, झाबुआ आने के पहले उसके पिताजी खरगोन में रहते थे, और खरगोन निमाड़ में आता है, कहते हैं निमाड़ की गर्मी में अच्छे अच्छे जल जाते हैं, इतनी झुलसती हुई गर्मी होती है निमाड़ में।
कॉलेज के इस तालाब के एक किनारे शायद मंदिर था और दूसरे किनारे सर्किट हाऊस था, फ़िर थोड़े आगे जाने पर बायीं तरफ़ आदिवासी होस्टल था और फ़िर कॉलेज, कॉलेज के गेट के पहले एक रास्ता बायीं तरफ़ जाती थी जो कि गोपाल कॉलोनी का शार्टकट था और मेन रोड से बसें और अन्य परिवहन साधन रानापुर की ओर जाते थे, आगे कहाँ जाते थे वह हमें अब याद नहीं आ पा रहा है।
कॉलेज के गेट में प्रवेश करते ही पार्किंग के लिये दो स्टेंड बने हुए थे जिसमें शेड भी लगे थे, और आगे जाने पर “शहीद चंद्रशेखर आजाद” की प्रतिमा लगी थी, और हमारे कॉलेज का नाम है “शहीद चंद्रशेखर आजाद महाविद्यालय, झाबुआ”, फ़िर कॉलेज की इमारत और पीछे की ओर बड़ा मैदान। जहाँ पर हम एन.सी.सी. की परेड किया करते थे फ़िर बाद में करवाते थे। बहुत सी यादें जुड़ी हुई हैं।
शहीद चंद्रशेखर आजाद को मेरा नमन