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दिल्ली मेट्रो (Delhi Metro) में सभ्य तरीके से सौन्दर्यपान

कल जब हम मेट्रो में मण्डी हाऊस से आ रहे थे तो हम बैठे हुए थे और वो तीन लड़्कियाँ अपनी अलहड़ जवानी में मस्त राजीव चौक से मेट्रो में आयी और हमारे सामने ही खड़ी हो गयीं जिसमें से दो ने जीन्स टीशर्ट और एक ने काटन का बरमूडा मिलेट्री वाला और काली टीशर्ट बिना स्लीवस की पहनी हुई थी, तभी इस लड़की ने अपनी सहेली को मेरी पैरों की तरफ़ इशारा करके कुछ कहा, तो पास वाले अंकल ने भी मेरे पैरों की तरफ़ देखा, चूँकि मेरी गोद में मेरा लेपटाप बेग था इसलिये मैं देख नहीं पाया कि वे क्या देख रहे हैं, फ़िर वह लाल टीशर्ट वाली लड़की मेरे पैरों की तरफ़ झुकी और मेट्रो का टोकन उठाया जो कि शायद चढ़ते समय गिर गया होगा और फ़िर वो काली वाली लड़की मेरी आँखों में देखकर हँस दी। एक पल तो लगा कि पता नहीं ये लोग किस कार्य को अंजाम देने की कोशिश कर रहे हैं पर पल भर में मेट्रो के टोकन ने सब साफ़ कर दिया।

मेट्रो में एसी अपनी फ़ुलस्पीड में चल रहा था हमें भी भरी गर्मी में मेट्रो में ठंड लग रही थी, हालांकि कुछ देर पहले ही दिल्ली में बारिश हुई थी और साथ में ओले भी गिरे थे पर मौसम गरम था सुहाना नहीं था। और वह बरमूडे वाली लड़की जो अपनी अलहड़ता में डूबी हुई थी उसके हाथ के रोएँ एसी के ठंडक के कारण खड़े हो गये थे, जो कि कोई भी दूर से देख सकता था। वह हँस रही थी तो उसके गाल में गड्डे पड़ रहे थे बहुत ही मासूम और खूबसूरत लग रही थी। सभ्य तरीके से हम सौन्दर्यपान कर रहे थे कि तभी हमारा स्टेशन आ गया और हम अपनी सीट से खड़े हो गये तो हमारी सीट पर कब्जा करने के लिये पास में खड़े लड़्के लपके और वो तीनों लड़कियाँ भी, दोनों एक एक सीट पर कब्जा करने में कामयाब हो गये और हम मेट्रो से निकल लिये।

हालांकि हमारे मन और दिल में कोई गंदगी नहीं है, पर सुन्दरता किसी भी रुप में आपके सामने आ सकती है चाहे वह आदमी, औरत या बच्चा हो। वैसे तो हमें इस जहान में अपनी घरवाली और अपना बच्चा ही सबसे सुन्दर लगते हैं पर कभी कभी बाहरी सौन्दर्य भी दिख जाता है जिसमें हमारी सहमति नहीं होती पर देखना पड़ता है। लालसा सभी के मन में होती है पर हमारे सामाजिक बंधनों ने सभी को सभी प्रकार से मुक्त होने के लिये जकड़ रखा है। कोई भी सौन्दर्यपान करने से नहीं चूकता है भले ही वह बच्चा, बच्ची, जवान लड़का, लड़की या बूढ़ा हो, जीवन का सत्य है।