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कुछ मधुमेह के बारे में – मधुमेह रोगी आम भी खा सकते हैं

कल एक पोस्ट लिखी थी रेडियो पर दिये जा रहे भद्दे से कार्यक्रमों के बारे में, दरअसल रेडियो के बारे में लिखने बैठा था कुछ और पर लिख कुछ और ही गया। जब लिखने बैठो तो ऐसा ही होता है, खैर आज बात मैं करूँगा सही मुद्दे की, दो दिन पहले ऑफिस से जल्दी निकलना हुआ तो विविध भारती स्टेशन पर डॉक्टर से मिलिये कार्यक्रम आ रहा था जिसमें वे मधुमेह के बारे में बात कर रहे थे, आजकल मेरी कार के एफ.एम. सिस्टम में विविध भारती स्टेशन ही बाई डिफॉल्ट होता है। Continue reading कुछ मधुमेह के बारे में – मधुमेह रोगी आम भी खा सकते हैं

एफ.एम. रेडियो की टीआरपी बढ़ाते भद्दे से कार्यक्रम

   आजकल रेडियो पर भी काम की बात कम और बेकार की बातें ज्यादा होती हैं, कोई किसी को मुर्गा बनाता है तो कोई किसी का उल्लू बना रहा है और पूरी दुनिया के सामने उसका मजाक करके इज्जत का जनाजा अलग निकालते हैं। किसी किसी कार्यक्रम में तो केवल टूँ टूँ की ही  आवाज आती है और ये रेडियो वाले भी जानबूझकर पहला शब्द सुना देते हैं कि सुनने वाला खुद ही अंदाजा लगा ले कि कौन सी गाली बकी गई है, इन सबमें ऐसा नहीं कि लड़कियों और महिलओं से परहेज किया जाता है, जो लड़कियाँ और महिलाएँ गाली बकती हैं, उनसे बातों को और लंबा खींचा जाता है जिससे कि कार्यक्रम के श्रोताओं की संख्या बड़ती जाये और उनके इस तरह के कार्यक्रमों से उनकी टीआरपी बड़ती जाये।

   लगभग सारे एफ.एम. चैनलों में इस तरह के कार्यक्रमों की बाढ़ सी आई हुई है, और इन कार्यक्रमों को रिकार्ड करके ये लोग अब यूट्यूब चैनलों पर भी अपलोड कर रहे हैं, यूट्यूब चैनलों पर हिट्स से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये कार्यक्रमों कितने लोकप्रिय हो रहे हैं। कुछ ही एफ.एम. चैनलों पर बहुत ही अच्छी जानकारियों के बारे में बताया जाता है, कि कोई एन.जी.ओ. कितना अच्छा कार्य कर रहा है या फिर किसी एक व्यक्ति के द्वारा उठाये गये कदमों से समाज को कितना फायदा हो रहा है, सामाजिक कार्यों की प्रगति के बारे में कम ही बताया जाता है।

   इस तरह से हमें आजकल के श्रोताओं की मानसिक विकृति के बारे में भी समझ में आता है, आम जनता ऑफिस से घर आते जाते समय अपने आप को इस तरह के कार्यक्रमों में संलिप्त करके अपने आप को मनोरंजित भी महसूस करते होंगे। कई बार ऐसी परिस्थितियां भी आ जाती हैं कि उसमें या तो हमें एफ.एम. रेडियो चैनलों को बदलना पड़ता है या फिर रेडियो को बंद ही करना पड़ता है, कई बार अपने मूड को शायद हल्का महसूस करने के लिये सभी लोग इस तरह के कार्यक्रमों को सुनना पसंद करते हैं।

   एक बार शुरूआत में मैं भी एक कार्यक्रम सुन रहा था, हमारे बेटेलाल भी सुन रहे थे, उन्हें भी हँसी आ रही थी क्योंकि बातें ही मजेदार तरीके से की जा रही थीं, पर जब बार बार टूँ टूँ की आवाज आने लगी तो हमें समझ आया कि ये गालियों को मनोरंजन में मिश्रित करके कार्यक्रम करने का एक तरीका है, अब हालात यह है कि हम केवल कहानियाँ या गाने सुनने के लिये ही रेडियो बजाते हैं, इस तरह के फूहड़ कार्यक्रम आते ही रेडियो बंद कर दिया जाता है। हमारे बेटेलाल को भी टूँ टूँ की आवाज से बहुत बैचेनी होती है और हमें पूछते हैं कि डैडी यह क्या कह रहे हैं और हमारे पास कोई उत्तर नहीं होता है।

   एफ.एम. चैनलों से जितने गाने सुनने को मिलते हैं उतनी ही गालियाँ भी सुनने को मिलती हैं, अब हालात यह है कि रेडियो भी सोच समझ कर सुनना पड़ता है, जिससे कि हमें अपने परिवार के सामने ही शर्मिंदगी न उठानी पड़े । पता नहीं हमारे अधिकतर एफ.एम. चैनलों को अच्छे कार्यक्रम देने की समझ कब आयेगी।

लंबी पीड़ा से गुजरकर सुख में जाने की अभिव्यक्ति

दर्द का सुख

 

दर्द जिसे पीड़ा भी कहते हैं, दर्द हमेशा हमारे शरीर और मन को तकलीफ ही देता है, पर वह तकलीफ हमेशा ही किसी सुख की और बढ़ने का पहला कदम होता है। कोई भी हो हमेशा ही दर्द में कराहता ही है, कोई रोता है, कोई दर्द को आँसुओं में बहा देता है। काश कि आँसुओं के साथ हमारा दर्द भी बह जाता या जितने आँसु बाहर निकले, जितने दर्द से हम कराहें उतना दर्द कम होता जाये।

 

काश कि यह दर्द हम किसी को उधार दे सकते और हमारे आगे उधार लेने वालों की भीड़ लगी होती, अब तो सुख लेने के लिये भी भीड़ नहीं मिलती, लोग खुद सोचने पर मजबूर हैं कि यह सुख या दुख क्यों दे रहा है, जरूर इसमें मिलावट होगी नहीं तो कोई भी अपनी किसी भी चीज को ऐसे ही नहीं बाँट देता है।

 

दर्द से जब शरीर कराहता है तो सबके कराहने की भी अपनी अपनी वजहें होती हैं, कोई उसी दर्द में कम तो कोई अधिक कराहता है, सबकी दर्द सहने की क्षमता अलग अलग होती है, वैसे ही शरीर की पीड़ा जाने का सुख कोई हँसकर लेता है तो कोई अपनी आदत के अनुसार ही कराहता ही रहता है, किसी को इस सुख की वास्तविकता में अहसास होता है और किसी को केवल आभास होता है परंतु वह पीड़ा निरंतर ही बनी रहती है।

 

शरीर के दर्द की पीड़ा से भी जबर पीड़ा होती है मन की, जो घाव या जख्म किसी को दिखाई भी नहीं देते और न ही आदमी कराहता दिखाई देता है, बस वह तो अपनी ही दुनिया में खोया रहता है, चाहे कैसे भी सब तरफ से वह दर्द को हटाने के प्रयास करे पर अगर दर्द न हट पाने की स्थिती जैसा है तो फिर वह एक रोग जैसा हो जाता है। यह दर्द आदमी के जाने के साथ ही जाता है, जब तक दर्द मन में रहता है, मन को सालता रहता है, जख्म गहरे होते रहते हैं और तन प्रयाण के साथ ही यह पीड़ा खत्म होती है ।

 

मन के दर्द की पीड़ा अगर खत्म हो जाये तो उस दर्द का सुख देखते ही बनता है, मन और तन उत्सव करते हैं। पीड़ा चाहे मन की हो या तन की बस लंबी न हो और जल्दी ही वह पीड़ा खत्म होकर सुख प्रदान करे, यही हमारे मन की इच्छा है। लंबी पीड़ा से गुजरकर सुख में जाने की अभिव्यक्ति है यह।

जीवनशैली को प्रभावित करने वाले तीन बेहतरीन फीचर

जब से नयी तकनीक हमारे जीवन में आयी हैं फिर भले ही वे मनोरंजन के लिये हो या कार्य के लिये परंतु हमारे जीवन में निखार आया है। हमारे जीवनशैली भी तकनीक के अनुरूप बदल गयी है। पहले जिन चीजों की जरूरत हमें नहीं होती थी, वे सारी चीजें अब हमारे जीवन के लिये बेहद ही महत्वपूर्ण हो गयी हैं। अब उन तकनीकी चीजों के कार्य में बने रहने के लिये भी हमें उनसे जुड़ी बातों का ध्यान रखना पड़ता है। जैसे कि डी.टी.एच. रिजार्ज करवाना, मोबाईल रिचार्ज करवाना, या फिर अपने पोस्टपैड मोबाईल से कितने कॉल कर लिये हैं और कितने फ्री बचे हैं और कितना उपयोग कर सकते हैं। यह सब आधुनिक तकनीक ने जादुई छड़ी जैसा एक एप्प हमें दे दिया है, जिससे हम ये सारी चीजें कहीं भी याने कि घर, ऑफिस, बाजार या संडास कहीं पर भी बैठकर रिचार्ज कर सकते हैं, अपने मोबाईल कॉलिंग के उपयोग देख सकते हैं।

 

पहले जब टीवी आया था, तब हम लोग एँटीने को हिला हिलाकर छत से चिल्लाते थे, अब साफ दिखाई दे रहा है, पर तब भी कई बार हमें टीवी साफ दिखाई नहीं देता था, और चैनल एक ही आता था वो था दूरदर्शन । फिर धीरे धीरे अस्तित्व में केबल वाले आये और अपने साथ लाये चैनलों से उन्होंने सैंकड़ा पार कर दिया, हम एक चैनल वालों को सौ चैनल देखने को मिल जाये तो फिर क्या बात है, पर सबसे बड़ा भ्रम यही होता था कि कौन सा चैनल देखें, पता नहीं कितनी ही फिल्में हमने कितनी बार रिपीट की हैं, हमें लगता है कि हमने जिस बदलते तकनीकी युग को देखा है, जिया है, जो कि हमारे जीवन शैली को प्रभावित करता है, वह शायद ही अब आगे की पीढ़ी देख पायेगी, ऐसा नहीं है कि अब बदलाव नहीं है, बदलाव है, परंतु अब लगभग बहुत कुछ स्थिर सा हो चुका है, ठहर चुका है।

 

मोबाईल और डी.टी.एच. के लिये एयरटेल ने नई एप्प गूगल प्ले स्टोर पर लोकार्पण की है, यह एप्प अभी केवल एन्ड्रॉयड के लिये उपलब्ध होगी, आई फोन के आई ओएस के लिये अभी इसे आने में समय है। ज्यादा जानकारी यहाँ http://www.airtel.in/myairtel से भी ली जा सकती है।

 

सबसे पहले तो इस एप्प में अपना एयरटेल का नंबर रजिस्टर करवाना पड़ता है और फिर हम एप्प के अंदर पहुंच पाते हैं। मुझे ये तीन फीचर्स एप्प के बहुत अच्छे लगे जो कि मेरी लाईफ स्टाईल को सूट भी करती है –

 

  1. डी.टी.एच. रिचार्ज करवाना – जब मैंने डी.टी.एच. लिया था तब ऑनलाईन की भी सुविधा उपलब्ध नहीं थी, मोबाईल से रिचार्ज की तो बात ही छोड़ दें, तब बाजार से स्क्रेच कार्ड लाकर रिचार्ज करवाना होता था। अब इस एप्प से चुटकी में डी.टी.एच. रिचार्ज हो जाता है।
  2. मोबाईल रिचार्ज करवाना या बिल भरना – मेरे जीवन में सबसे बड़ी समस्या यही है कि एक पोस्टपैड और एक प्रीपैड नंबर है मेरे पास, और बस उनके बिल या रिचार्ज के दिन याद रखो, इस एप्प से अब मैं कम से कम मोबाईल से ही यह सारे काम कर सकता हूँ।
  3. अपने उपयोगों के बारे में जानकारी प्राप्त करना – पहले तो केवल अपने उपयोग तभी पता चलते थे जब बिल आता था, अब हमें इस एप्प से ही जानकारी मिल जाती है।

शादी में माँ के प्राकृतिक काले रंगे बाल

मैं माँ को बचपन से ही देखता आ रहा हूँ, हमेशा माँ अपने बालों का ख्याल बहुत अच्छे से ऱखती आती है, पहले शिकाकाई और आँवला के पावडर से बाल धोती थी, फिर शिकाकाई का साबुन आने लगा तो शिकाकाई के साबुन का उपयोग करने लगी, और फिर धीरे धीरे माँ के बालों का कालापन जाता रहा, और उम्र अपना रंग धीरे धीरे छोड़ने लगी, बाल भी पकने लगे, और फिर बालों में लगने वाली चीजों में भी बदलाव आने लगा। कभी जंगली मेंहदी तो कभी काली मेंहदी, और फिर हमेशा ही रिसर्च की जाने लगी कि बालों के लिये अच्छा क्या है।

मेंहदी लगाने से बालों का रंग काला तो नहीं होता था, परंतु लाल जरूर हो जाता था, जो कि देखने में ही अच्छा नहीं लगता था, फिर माँ ने बालों पर मेंहदी लगाना बंद कर दी और सफेद बाल माँ की उम्र को और बढ़ाकर बताने लगे, हम भी माँ को सफेद बालों में ही देखते रहते।

छोटे भाई की शादी के पहले ही हमने कह दिया था कि माँ अब तुमको बालों को रंगना ही होगा, तो मेंहदी लगाने के लिये तैयार हुईं, तो हमने मना कर दिया कि माँ हम लाल बालों में आप को देख नहीं पायेंगे, और मेंहदी से प्राकृतिक रंग भी नहीं आ पायेगा, तो अब आप कलर लगा लो, कलर से बिल्कुल प्राकृतिक रंग आ जायेगा और सबको भायेगा, आप सबके साथ फोटो में बहुत जँचोगी, जिससे यह शादी सबके लिये यादगार हो जायेगी, वैसे भी शादी का मौका बारबार कहाँ आता है, और फिर कब कहाँ फोटो खिंचाने वाले हैं, बस अब आप जल्दी से प्राकृतिक रंग जैसे काले बाल कर लो, मेरी पत्नी जी ने जैसे ही आज्ञा मिली, वैसे ही रंग लगाना शुरू कर दिया, इससे पहले कि माँ का मूड बदल जाये, और मात्र आधे घंटे में ही माँ का बुढ़ापा छिप गया था, माँ वापिस से अपनी उम्र से बहुत कम लगने लगी थी, हम सब बहुत खुश थे।

रिश्तेदारी से लोग आने लगे थे, माँ को देखकर सब बहुत ही खुश हो रहे थे, हमको भी माँ पर बहुत लाड़ प्यार आ रहा था, माँ ने हमारी बात जो मानकर अपने बालों को प्राकृतिक रंग में रंग लिया था, हमारा मान रख लिया था। हम हमेशा ही माँ के प्यार में रंगे रहते हैं, पर उस दिन माँ प्राकृतिक काले रंग के बालों में रंगी अलग ही आभा बिखेर रही थी ।

शादी के सारे कार्यक्रम अच्छे से हो गये, और माँ को भी काले बालों में अच्छा लगने लगा, माँ हमेशा ही अब अपने बालों का प्राकृतिक काले रंगों में रंगे रखती है, जिससे माँ को हम अपने आँखों से ही बुढ़ापे से वापिस आते देख रहे हैं। जब भी माँ अब कलर लगाने के लिये बैठती है, तो हमें वह शादी का दिन याद आ जाता है।

आजकल काले घने बालों के लिये एकबार का कलर भी आने लगा है, जो कि आप http://godrejexpert.com/single_used_pack.php यहाँ भी देख सकते हैं ।

कपिल देव की EKNAYILEAGUE

भारत में त्योहार तो बहुत होते हैं, पर क्रिकेट एक ऐसा त्योहार है जो कि भारत में लगभग हरेक दिन मनाया जाता है और भारत में क्रिकेट और कपिल देव के दीवानों की कमी नहीं है, भारत में क्रिकेट हर गली मोहल्ले में मिल जाता है। हर भारतीय का सपना होते है कि वह भारत की टीम के लिये क्रिकेट खेले, खैर हर किसी का सपना भी पूरा नहीं होता है। पर जब से अब IPL और ICL शुरू हुए हैं, तब से अधिक खिलाड़ियों को मौका मिलने लगा है। क्रिकेट की दीवानगी इस हद तक है कि लोग क्रिकेट के लिये कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं।कपिल देव भारत के एक ऐसे खिलाड़ी हैं जिन्होंने भारत को क्रिकेट विश्वकप जिताकर हर भारतीय को जैसे एवरेस्ट की चोटी पर पहुँचा दिया था। भारत के लिये कपिल देव पहले ऐसे कप्तान थे, जिन्होंने भारतीय क्रिकेट का परचम पूरे विश्व में फैला दिया था। कपिल देव हाल ही में ट्विटर पर आये हैं और http://www.eknayileague.com/ वेबसाईट शुरू की है जिसमें कपिल ने अपने वीडियो के माध्यम से मैसेज भी दिया है कि उनके ट्विटर हैंडल को फॉलो करें और ज्यादा से ज्यादा नई लीग के बारे में जानकारी पायें, कपिल देव ने ट्विटर पर कप्तान धोनी को बधाई दी है, सानिया मिर्जा, मार्टिना हिंगिस से भी ट्विटर पर मैसेज संप्रेषित किया है और बधाई भी दी है, वैसे ही भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी को भी उनके नेपाल भूकंप में सराहनीय मदद के लिये बधाई दी है।कपिल देव ने वीडियो में कहा भी है कि यह लीग दिल से खेलोगे तो हिट विकेट हो जाओगे, तो वे साफ बता रहे हैं कि यहाँ दिल से नहीं खेलना है, इस लीग में दिमाग से खेलना है, इस लीग में ट्विटर में उनके हैंडल और एक नई लीग के ट्विटर हैंडल #EKNAYILEAGUE @eknayileague का महत्वपूर्ण रोल होगा, शायद इस लीग में ट्विटर के जरिये हम यह लीग खेल पायेंगे, जिसमें कुछ सवालों के जबाब माँगे जायेंगे, और पूरे विश्व को उसमें खेलने की छूट होगी, यह एक तरह की ऑनलाईन लीग होनी चाहिये जिसमें कि लोग अपने रन अपने जबाबों से बना पायेंगे और जो जितने ज्यादा रन बनायेगा वह उस मैच में जीत जायेगा, यह रन उनके सवालों के जबाब पर निर्भर होना चाहिये।

कपिल देव ने कहा है कि क्रिकेटर कभी रिटायरमेंट नहीं लेता है, वह हमेशा खेलता रहता है, इससे भी लगता है कि वे और भी रिटायर्ड क्रिकेटरों को अपने साथ लेंगे और यह एक मजेदार खेल के रूप में पूरे विश्व की जनता के सामने आना चाहिये। हम तो केवल अंदाजा लगा सकते हैं अब तो कपिल देव ही बतायेंगे कि वाकई @eknayileague लीग क्या है, क्योंकि उन्होंने लगभग हर वीडियों में चुटीले अंदाज में कहा है, कि अगर आप दिल से खेलेंगे तो आप निश्चित ही हिट विकेट हो जायेंगे। हम भी इस नई लीग के लिये तैयार हैं और एक नई लीग के वेबसाईट पर जाकर अगर बता दे कि इस लीग में वाकई क्या होगा तो वह एक लाख रूपया जीत सकता है, कल ही कपिल देव से पाँच लोगों के मिलने का मौका मिला है, और साथ ही डिनर का भी, ऐसे मौके अविस्मरणीय होते हैं।

धर्म वैज्ञानिकों की मशीनों से मधुमेह को काबू में किया गया

धर्म वैज्ञानिकों के द्वारा किये जा रहे मधुमेह, कोलोस्ट्रोल, उच्च रक्तचाप की पिछली पोस्ट के बाद मुझसे कई मित्रों और पाठकों ने द्वारका आश्रम का पता और फोन नंबर के बारे में पूछा, मैं आश्रम गया जरूर था पर पता मुझे भी पता नहीं था, आज हमारे पास पता भी आ गया है और फोन नंबर भी उपलब्ध है।

 

उसके पहले एक बात और मैं साझा करना चाहूँगा कि हमारे मित्र मधुमेह के लिये आश्रम नियमित तौर से जा रहे थे और उन्हें काफी आराम भी है, पहले उनकी शुगर 180 के आसपास रहती थी, और कई बार की कोशिश के बाद ज्यादा से ज्यादा 145-148 तक आती थी, साधारणतया शुगर की मात्रा 140 होती है, आज उनकी शुगर 132 आयी तो वे भी बहुत खुश थे, हालांकि अभी दवाई भी जारी है, जहाँ तक मुझे याद है गुरू जी ने बताया था कि धीरे धीरे दवाई की मात्रा कम करते जायेंगे। फेसबुक पर भी एक टिप्पणी थी कि अगर कोई इंसुलिन वाला मरीज ठीक हुआ हो तो उसके बारे में बतायें, तो मैं मेरे मित्र चित्तरंजन जैन से आग्रह करूँगा कि वे इस बारे में पता कर सूचित करें।

 

इसी बाबद मेरे ऑफिस में एक सहकर्मी से स्लिप डिस्क की बात हो रही थी, कि उनकी बहिन को यह समस्या लगभग 2 वर्ष से है और पहले तो वे बिल्कुल भी पलंग से उठ भी नहीं पाती थीं, पर फिर उन्हें किसी से पता चला कि सोहना (हरियाणा में, गुड़गाँव से 40 कि.मी.) में कोई व्यक्ति देशी दवा से इलाज करता है और वो पैर की कोई नस वगैराह भी दबाता है, तो उनकी बहिन को कुछ ही दिन में बहुत आराम मिल गया, वे बता रही थीं कि उनकी बहिन अब घर में अपने सारे काम खुद ही कर लेती हैं, उनके लिये भी हमने पता किया था, तो हमें मित्र द्वारा सूचना दी गई कि स्लिप डिस्क वाली समस्या में भी किसी मरीज को काफी लाभ हुआ है।

 

बात यहाँ मानने या न मानने की तो है ही, क्योंकि जो लोग ईश्वर को नहीं मानते वे इसे वैज्ञानिक पद्धति का इलाज मानकर करवा सकते हैं, और जो ईश्वर को मानते हैं वे इस ईलाज के लिये बनाई गई मशीनों के लिये अपने वेद और पुराणों में वर्णित प्राचीन पद्धति को धन्यावाद दे सकते हैं।

 

द्वारका आश्रम का पता इस प्रकार से है –

 

धर्म विज्ञान शोध ट्रस्ट

द्वारिका”, नीलगंगा रोड,

लव-कुश कॉलोनी,

नानाखेड़ा,
उज्जैन (म.प्र)

Phone – धर्म वैज्ञानिक उर्मिला नाटानी 0734 42510716

 

Dharma Vigyan Shodh Trust

Dwarika”, Neelganga Road,

Lav-Kush Colony,

Nanakheda, Ujjain (M.P.)

Phone – Religious Scientist 0734 – 42510716

धर्म वैज्ञानिक जो बिना किसी दवा के मधुमेह, कोलोस्ट्रोल, उच्च रक्तचाप को ठीक कर रहे हैं

धर्म वैज्ञानिक नाम ही कुछ अजीब लगता है न, लगना भी चाहिये हमारे पूर्वज, ऋषि, महर्षियों ने जो भी नियम हमारे लिये बनाये थे, उन सबके पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक कारण जरूर होता है, बस उन कारणों को लोगों को नहीं बताया गया, केवल रीत बना दी गई और डर भी बैठा दिया गया कि अगर ऐसा नहीं करोगे तो अच्छा नहीं होगा। जो धर्म पर अध्ययन कर उसके पीछे वैज्ञानिक तथ्यों को ढ़ूँढ़ते हैं, इस बार के उज्जैन प्रवास के समय हमारे मित्र चित्तरंजन जैन ने हमें इस नई संस्था से अवगत करवाया, हम उन्हें बहुत ही अच्छी तरह से जानते हैं, जब तक कि वे खुद किसी चीज से संतुष्ट नहीं होते जब तक वे न तो किसी को कुछ बताते हैं और न ही दिखाते हैं।
इस बार हम शाम के समय उनकी दुकान पर बैठे हुए थे, तो उन्होंने हमसे पूछा कि अगर आप एक घंटा फ्री हों तो हम आपको नई जगह ले चलते हैं, जहाँ मैंने भी पिछले 7 दिन से जाना शुरू किया है, इस जगह आश्रम का नाम है द्वारिका, हम उनके साथ चल दिये, कि चलो हमारे पास एक घंटा है, और हम भी कुछ ज्यादा जानें इस आश्रम के बारे में। जाते जाते हमें हमारे मित्र ने बताया कि आपको तो पता ही है कि हमें मधुमेह की बीमारी है और यहाँ पर मात्र 30 दिन में मधुमेह को हमेशा के लिये खत्म करने की बात कही जाती है, कि उसके बाद कभी भी आपको मधुमेह के लिये दवाई लेनी ही नहीं होगी। उनके ईलाज की पद्धति चार चीजों पर आधारित है, चुँबक, प्रकाश, आकृति और मंत्र। आश्रम में खाने के लिये कोई दवाई नहीं दी जाती है, केवल उपरोक्त चार चीजों पर ही बीमारियों का ईलाज किया जाता है।
हमारे मित्र के साथ हम आश्रम में पहुँचे, वहाँ प्रथम तल पर सामने ही गुरू जी बैठे हुए थे, उनके पास ही हमारे पुराने मित्र मुन्नू कप्तान भी बैठे हुए थे, हमने सबको राम राम की, हमारे मित्र ने हमें कहा कि हम तो ईलाज के लिये जा रहे हैं, आपको भी अगर आजमाना है तो आ जाओ, हमें आजमाना तो नहीं था, परंतु देखना जरूर था, हम उनके साथ कमरे में गये वहाँ तीन पलंग लगे हुए थे, हरेक पलंग की छत पर कुछ आकृतियाँ बनायी हुईं थीं, जैसे कि पिरामिड, त्रिकोण इत्यादि और साथ ही वहाँ विभिन्न तरह के बल्ब लगाकर प्रकाश की व्यवस्था की गई थी, हमारे मित्र ने वहीं पर दीदी जी जो कि वहाँ सेवा देती हैं, उनसे एक थाली ली, जिसमें से कुछ काला सा तिलक अपनी नाभि मे लगाया और 7 तुलसा जी की पत्ती खाईं और फिर चुँबकीय बेल्ट अपनी कमर पर नाभि के ऊपर कस कर लेट गये, उन्हें 15-20 मिनिट अब उसी अवस्था में लेटे रहना था, पूरे आश्रम में मंत्र ध्वनि गुँजायमान थी। तो हम बाहर आकर गुरू जी के पास बैठ गये और उनसे बातचीत कर अपनी जिज्ञासा शांत करने की कोशिश करने लगे।
गुरूजी ने हमें पूरे आश्रम की मशीनों से अवगत करवाया, जिन्हें उन्होंने 31 वर्षों के शोध के बाद खुद ही तैयार किया था, और लगभग सभी मशीनें लकड़ी की ही बनी हुई था, जिसमें छत पर अलग अलग आकृतियाँ थीं, गुरूजी ने हमें मधुमेह, कोलोस्ट्रोल, उच्च रक्तचाप जैसी मशीनों के बारे में जानकारी दी, कि ये सब बीमारी हम केवल एक महीने में ठीक कर देते हैं, एक बार ठीक होने के बाद उन्हें कभी भी जीवनभर किसी दवाई का सेवन भी नहीं करना होगा। किसी को बुखार हो तो हम उसे केवल 15 मिनिट में ठीक कर देते हैं। किसी को तनाव है तो उसके लिये भी उनके लिये अलग मशीन है और उसके लिये भी मात्र 15 मिनिट लगते हैं। दोपहर बाद हमें भी तनाव तो था ही, परंतु वहाँ के माहौल से और मंत्रों से हमारा तनाव 5 मिनिट में ही दूर हो गया। 
हीमोग्लोबीन अगर कम है तो उसके लिये भी एक अलग यंत्र है, जिसके बारे में हमें बताया गया कि उसमें भी रोगी को रोज 15 मिनिट बैठना होता है और आश्चर्यजनक रूप से 2-4 दिन में ही लाभ दिखने लगता है, इसके पीछे गुरूजी ने बताया कि हमारी अस्थिमज्जा को ब्रह्मंडीय ऊर्जा के संपर्क से ठीक करते हैं, और उनकी सारी मशीनें व यंत्र इसी सिद्धांत पर कार्य करते हैं।
ईलाज के लिये कोई फीस नहीं है, बिल्कुल निशुल्क है, आश्रम की यह सुविधा मुख्य रूप से उज्जैन में ही उपलब्ध है, उज्जैन के अलावा उनके आश्रम इंदौर और इलाहाबाद में भी हैं। पिछले सप्ताह ही मित्र से बात हुई तो उन्होंने हमें बताया कि मधुमेह की जाँच में पता चला कि 15 प्रतिशत का फायदा है, और अब मानसिक शांति पहले से ज्यादा है, साकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह ज्यादा है।

कृपया पते के लिये इस पोस्ट को देखें ।

आसुस जेनफोन 2 से अपने स्मार्टफोन के अनुभव को चार चाँद लगायें

जब से स्मार्टफोन उपयोग करना शुरू किया है तब से अब तक हमने बहुत कुछ अनुभव किया और ऐसा लगता रहा कि काश हमारा यह अनुभव ओर अच्छा होता, हम जो भी चीज चाहें वह हमारे हिसाब से ही काम करे, कम्पयूटर की दुनिया में यह संभव है कि कुछ चीजों को अलग से लगाकर आप अपने अनुभव को अपने कार्य करने के तरीके को उत्कृष्ट बना सकते हैं, पर छोटे से मोबाईल की दुनिया में यह कठिन ही नहीं हमेशा मुझे नामुमकिन लगा, और अभी भी असंभव ही लगता है, कई बार ऐसा लगा कि काश मेरा विन्डोज फोन को मैं ऑपरेटिंग सिस्टम एन्ड्रॉयड भी संस्थापित कर पाता, हालांकि अभी तक यह मेरी सोच ही है, अभी तक यह हार्डवेयर डिपेन्डेन्ट होने के कारण संभव भी नहीं हो पाया है।

 

स्मार्टफोन में सबसे बड़ी समस्या है बैटरी बहुत ही जल्दी खत्म होती है, और 3जी चलाने पर तो ऐसा लगता है कि किसी ने बैटरी के पानी के सारे नल एकसाथ खोल दिये हैं, और फिर से बैटरी चार्ज करने में लगने वाला ज्यादा समय और ज्यादा परेशानी का सबब है। हमारा स्मार्टफोन हमेशा ही बहुत सारी एप्प से भरा रहता है और हम हमेशा कई सारी एप्प का उपयोग एक साथ करते हैं, तो हमारा स्मार्टफोन का उपयोग करने का अनुभव हमेशा ही खराब रहता है और हम देखते हैं कि हमारा स्मार्टफोन या तो धीमा काम करने लगा है या फिर हैंग हो गया है और हमेशा ही यह अनुभव तकलीफदेह होता है। हमेशा ही मेरा बेटा फोन पर गेम्स खेलने का शौकीन रहा है और हमेशा ही मुझे शिकायत करता है कि डैडी यह स्मार्टफोन बेकार है, हमेशा ही मेरे गेम्स खेलने के बीच में ही हैंग हो जाता है या फिर इसका वीडियो खराब हो जाता है, इसका वीडियो गड़बड़ा जाता है, क्योंकि इसकी रैम बहुत कम है।

 

मोबाईल के जमाने में सेल्फी तो बनती ही है, और अगर फ्रंट कैमरा ठीक न हो तो सेल्फी भी अच्छे नहीं आते हैं, और अब अलग से कैमरा ले जाने का जमाना भी नहीं है, अगर कहीं घूमने भी गये तो पूरा ट्रिप हम अब कैमरे से ही शूट करते हैं, इस काम के लिये हमारे मोबाईल का कैमरा भी अच्छा होना चाहिये, जिससे हमारी यादें आगे के लिये हम सहेज सकें।

 

मुझे ऐसा लगता है कि आसुस जेनफोन 2 मेरे स्मार्टफोन के अनुभव को एक नया ही अवतार देने में सक्षम है और इसके लिये ये पाँच मुख्य फीचर आसुस जेनफोन 2 के हैं –

 

  1. आसुस जेनफोन 2 में 4 जीबी रेम है तो मेरा गेमिंग अनुभव और वीडियो का अनुभव बहुत ही अच्छा होगा।
  2. बैटरी खत्म होने के बाद केवल 39 मिनिट में ही 60 प्रतिशत बैटरी चार्ज हो जायेगी। जिससे मेरी जिंदगी ज्यादा आसान हो जायेगी।
  3. अब मैं बिना फ्लेश के भी अँधेरे में साफ फोटो ले सकता हूँ, क्योंकि यह 400 प्रतिशत ज्यादा ब्राईटन के साथ रात में फोटो खींच सकता है।
  4. 2.3 GHz के प्रोसेसर से मेरे सारे एप्प बहुत ही तेज रिस्पाँस देंगे और मेरा स्मार्टफोन अनुभव बहुत ही उम्दा होगा। मेरा वीडियो भी अच्छा दिखेगा।
  5. रियर कैमरा 13 मेगा पिक्सल और फ्रंट कैमरा 5 मेगा पिक्सल होने से मेरे सेल्फी बहुत ही अच्छे और मेरे ट्रिप के सारे फोटो अच्छे आयेंगे।

 

तो बस अब मुझे है इंतजार आसुस जेनफोन 2 के लांच होने का, और मैं अपने स्मार्टफोन के अनुभव को और परिष्कृत कर सकूँगा।

स्पोर्ट शूज कैसे चुनें (How to select sport shoes)

    जीवन में स्वास्थ्य का अपना ही महत्व है, कहते हैं कि सुबह घूमने से हमेशा ही स्वास्थ्य अच्छा रहता है और सुबह घूमने से फेफड़ों को ताजी प्राणवायु मिलती है उसके लिये पता होना चाहिये कि How to select Sport Shoes। सुबह के समय की प्राणवायु में प्रदूषण की बहुत ही कम मात्रा होती है, जिससे हमारे फेफड़े सही तरीके से काम करते हैं। सुबह घूमने का उपर्युक्त समय साधारणतया: 5 बजे होता है, और सुबह की वायु में फूलों की खुश्बू वातावरण को सुगंधित भी कर देती है।
    घूमने के लिये हमेशा ही उपर्युक्त है कच्ची जमीन या घास, आजकल लगभग हर बगीचे में मिल ही जाती है, इससे हमारे पैरों के तलवों में ज्यादा दर्द नहीं होता है, अगर सीमेंट की पगडंडी बनी होती है तो हमारे पैरों के तलवों में दर्द होने लगता है और हम ज्यादा देर नहीं चल पाते हैं। चलने के लिये भी हमारे जूते बेहतरीन क्वालिटी के होने चाहिये जिससे हमारे तलवों में दर्द न हो। चलते चलते हमारे जूतों का शेप बिगड़ जाता है पर फिर भी हम जूते बदलना नहीं चाहते हैं। खेलने वाले जूते भी अलग अलग तरह के आते हैं, जिसमें रोज साधारण चलने के लिये, 5-8 कि.मी. रोज चलने के लिये, 10-12 कि.मी. चलने के लिये, सप्ताह में 3 दिन चलने के लिये, रोज 2-4 कि.मी., 5-8 कि.मी., 10-12 कि.मी., 15-18 कि.मी., 18-21 कि.मी. और मैराथन वाले 41 कि.मी. के दौड़ने के जूते उपलब्ध होते हैं और हमें पता ही नहीं होता है कि कौन सा जूता हमें पहनना चाहिये। साधारणतया हमें 10-12 कि.मी. चलने वाला जूता लेना चाहिये जिससे हम उस जूते को पहनकर थोड़ा दौड़ भी लें तो कोई फर्क नहीं पड़े।
    जूते का सोल केवल रबर वाला नहीं होना चाहिये, नहीं तो जूता बहुत ही जल्दी घिस जायेगा और फिर हमें नया जूता लेने की जरूरत होगी, तो हमेशा ध्यान रखें कि जूते का सोल नीचे से चारों और से बाईंड हो जिससे जूता आपको पूरा कम्फर्ट देगा और जल्दी खराब भी नहीं होगा। मैंने हमेशा स्पोर्ट शूज नेट वाले पहने पर इस बार मैंने सोचा कि बिना नेट ला जूता लूँगा। क्योंकि स्पोर्ट शूज को हमें हर छ महीने में बदल लेना चाहिये,
हमें जूते लिये हुए 6 महीने से ज्यादा हो गये थे और फिर तभी स्नैपडील पर प्यूमा के अच्छे जूतों को देखा तो हमने अपने आप को प्यूमा का स्पोर्ट शूज गिफ्ट कर दिया, अब हमारा प्रात भ्रमण हमारे नये जूते के साथ होता है। हमारे पैरों के तलवों को फिर से वही कम्फर्ट लेवल मिल गया है जो कि 6 महीने पहले हमें नये जूतों में मिला था। तो ताजा प्राणवायु लेना हमारे दिल की बात है जिसे पूरा किया स्नैपडील ने । दिल की डील स्नैपडील से।
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