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जन्मदिन पर दिनचर्या उज्जैन में [सुबह की “जबेली”] भाग १

    उज्जैन आकर बहुत ही सुकून महसूस होता है, जो राहत यहाँ मिलती है वह कहीं और नहीं मिलती। बुजुर्गों ने सही ही कहा है कि “अपना घर अपना घर ही होता है, और परदेस परदेस !!”

    उज्जैन आते आते हमारी एक ऊँगली की चट पकने लगी थी, और उज्जैन आकर तो अपने पूरे शबाब पर थी, हम अपने फ़ैमिली डॉक्टर के पास गये कि चीरा लगाकर पट्टी कर दें पर उन्होंने एक देसी नुस्खा बता दिया। बर्फ़ को पीसकर कप में भरलें और फ़िर उसमें दिन में ४-५ बार अपनी ऊँगली को १० मिनिट तक रखें, अब तक हम यह नुस्खा ३ बार दोहरा चुके हैं, तो दर्द कम नहीं हुआ परंतु सूजन जरुर थोड़ी कम हो गई है, जब दस मिनिट बाद ऊँगली बाहर निकालते हैं तो ऐसा लगता है कि ऊँगली कें अंदर कोई तेजी से दौड़ रहा है, जो कि शायद पीप रहता है। ऐसा लगता है कि मेरी उँगली कहीं दौड़ जायेगी।

    कल हमारा जन्मदिन था, पता नहीं क्यों पर रुटीन में ही दिन निकल गया, उज्जैन की हवा को महसूस करने और घर पर अपने माता पिता के साथ समय कैसे हवा हो गया पता ही नहीं चला।

    ३ अप्रैल की रात १२.०१ मिनिट पर पाबला जी का फ़ोन आ गया, और सबसे पहले उन्होंने हमें जन्मदिन की शुभकामनाएँ दी, हालांकि हमारी नींद में खलल पड़ चुका था परंतु हम पाबला जी का स्नेह और आशीर्वाद पाकर खुद को अभिभूत महसूस कर रहे थे। एकदम ब्लॉग जगत ने हमारी दुनिया ही बदल दी है या कहें कि हमारी एक आभासी दुनिया भी है जहाँ के लोग संवेदनशील हैं और एक दूसरे के सुखदुख में शामिल होने को तत्पर रहते हैं।

    फ़िर १२.२५ पर हमारी प्रिय बहना का फ़ोन आया जो कि मिस काल हो चुका था, तो हम वापिस से नींद के आगोश में जाने के पहले अपने प्रिय और दुष्ट मोबाईल फ़ोन को भी नींद के आगोश में सुला चुके थे, कि अब कोई भी प्रिय हमारी नींद में खलल न डाल पाये, और हम अपनी नींद पूरी कर सकें। आखिर पूरी लंबी नींद शरीर की बहुत ही सख्त जरुरत है।

    सुबह छ: बजे अपनी सुप्रभात हुई और फ़िर वहीं रुटीन, फ़्रेश हुए फ़िर फ़टाफ़ट सुबह की सैर के लिये निकल पड़े और अपनी ही कॉलोनी के चक्कर काटने लगे, बहुत दिनों बाद कोई ऐसी जगह देख रहे थे जहाँ कि मल्टीस्टोरी नहीं थीं, केवल खुला आसमान दिख रहा था। जो सुख महसूस हो रहा था, वह शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता।

    फ़िर वापिस आकर घर पर हमसे पूछा गया कि क्या खायेंगे ब्रेकफ़ास्ट में, हम तो हमेशा तत्पर रहते हैं अपने मनपसंदीदा पोहा जलेबी के नाश्ते के लिये। वैसे हमारी फ़रमाईश हमेशा पूरी होती है भले ही अनमने मन से, पर होती है। जलेबी लेने के लिये हम अपने बेटेलाल के साथ चल दिये बाजार अपनी बाइक पर, पुरानी उज्जैन में पर थोड़ी आगे सर्राफ़े पर जाकर पता चला कि आज सैयदना साहब का ९९ वाँ जन्मदिन है तो उसकी खुशी में बोहरा समाज का जुलूस निकल रहा है, फ़िर हमने सोचा कि चलो तेलीवाड़ा की तरफ़ से चला जाये परंतु वहाँ पर भी जुलूस से रास्ता बंद था, तो हमारे बेटेलाल को चिंता हो गई कि अब हमारी “जबेली” का क्या होगा !!! हमने कहा बेटा आज भोलागुरु की जलेबी नहीं खाने को मिलेगी आज हमें फ़्रीगंज जाकर श्रीगंगा की जलेबी खाना पड़ेगी। हमने अपनी बाइक मोड़ी और चल दिये फ़्रीगंज ….

    और अपने दोस्त की दुकान से अपने बेटेलाल की “जबेली” लेकर घर चल दिये। अब अगर यही मुंबई होता तो वहाँ इतना घूमना नहीं पड़ता था, केवल आपके पास दुकान का फ़ोन नंबर होना चाहिये और फ़ोन कर दो, कोई भी चीज चाहिये घर पर १५ मिनिट में हाजिर। पर उज्जैन में कल्पना करना भी मुश्किल है, कि फ़ोन पर जलेबी घर आयेगी 🙁

कुछ एडवान्टेज अगर मुंबई के हैं तो कुछ उज्जैन के भी हैं।

मोबाईल लेना है पर बहुत भ्रम है कि कौन सा लेना चाहिये… आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार है…..।

१ जनवरी से मोबाईल के क्षैत्र में क्रान्ति आने वाली है, क्योंकि १ जनवरी से नंबर पोर्टेबिलिटी शुरु होने जा रही है।

अभी हमारे पास टाटा इंडिकोम का मोबाईल और नंबर है पर अब हम एमटीएनएल की सर्विसेस लेना चाहते हैं, क्योंकि उनकी बात करने की दरें अभी सबसे कम है और इंटरनेट उपयोग करने के लिये भी।

अब सीडीएमए से जीएसएम में हमारा नंबर तो बदल जायेगा परंतु मोबाईल तो हमें नया खरीदना ही होगा, क्योकि अभी जो मोबाईल हमारे पास है वह केवल सीडीएमए टेक्नोलॉजी का है और जीएसएम का समर्थन नही करता है।

बजट – कम से कम, क्योंकि अपनी ही जेब हल्की होने वाली है  🙂

अब नया मोबाईल खरीदना है तो सोचा कि इसमे क्या क्या सुविधाएँ होनी चाहिये –

१. मोबाईल जीएसएम होना चाहिये
२. बैटरी बैक अप अच्छा होना चाहिये
३. इंटरनेट एकसेस कर सकते हों
४. ईमेल क्लाईंट संस्थापित कर सकते हों
५. कैमरा कम से कम २ मेगा पिक्सल होना चाहिये
६. लेपटॉप् से कनेक्ट करके इंटरनेट एक्सेस कर सकते हों
७. एफ़.एम. रेडियो
८. गाने सुन सकते हों
९. वोईस रिकोर्डर भी हो

१०. हिन्दी सपोर्ट कर सकता हो, अगर ब्लॉग उस पर लिख सकते हों तो सोने पे सुहागा, फ़िर तो मोबाईल से ही ब्लॉग ठेल दिया करेंगे 🙂

अगर ये चीजें हों तो अतिउत्तम –
१. ३जी तकनीक
२. वाई फ़ाई तकनीक
३. फ़ुल कीबोर्ड

अगर आप ऐसा कोई मोबाईल उपयोग करते हों या ऐसे मोबाईल के बारे में जानते हों तो कृप्या मार्गदर्शन करें। आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार है।

एमटीएनएल ने सबसे सस्ती मोबाईल टैरिफ़ प्लॉन बाजार में उतारा …. पर क्या ये मिस कॉल देने वाले सुधरेंगे…

सरकारी कंपनी एमटीएनएल ने आज मोबाईल के नये टैरिफ़ प्लान की घोषणा की जो कि अब तक के सर्विस प्रोवाईडर्स के दिये गये टैरिफ़ प्लान मे सबसे सस्ते हैं।

एमटीएनएल से एमटीएनएल – (०.५) आधा पैसा प्रति सैकंड

एमटीएनएल से दूसरे सर्विस प्रोवाईडर पर – १ पैसा प्रति सैकंड

जीपीआरएस प्रति १० के.बी. डाउनलोड का १ पैसा

अब इतनी सस्ती काल होने पर भी ये मिस कॉल देने वाले सुधरेंगे क्या या कॉल किया करेंगे। यह मानसिकता की बात है कि मेरे पैसे लग जायेंगे, अब आम आदमी को इस से ऊपर उठना होगा।

नंबर पोर्टेबिलिटी १ जनवरी २०१० से शुरु होने वाली है, पहले हम डोकोमो लेने की सोच रहे थे पर अब टैरिफ़ वार चल रहा है, अब एमटीएनएल का प्लान लेने की सोच रहे हैं।

शादी के पहले के प्यार भरे खत (Love Letters) फ़्री और लंबी मोबाईल काल्स में खो गये

जब मेरी शादी पक्की हुई थी, उस समय मोबाईल तो आ गये थे पर इनकमिंग पर भी चार्ज था और आऊटगोइंग बहुत महंगी थी। उस समय तो घर पर लेंडलाईन से भी आऊटगोइंग करने पर ज्यादा चार्ज था और आमदनी कम।

मेरी शादी पक्की होने के छ: महीने बाद हुई थी पर फ़ोन महंगा पड़ता था। खत का सहारा लेकर अपने दिल की बात एक दूसरे को पहुँचाते थे और उस समय ग्रीटिंग कार्ड को साथ में भेजने का फ़ैशन था। घंटों तक खत लिखते और फ़िर घंटों तक कार्ड गैलेरी में जाकर कार्ड चुनते और अपने दिलदार को भेजते। हम उनके खत का बड़ी ही बेसब्री से इंतजार करते थे और वो हमारे खत का। खत में अपने दिल के प्यार से भर देते और अपने दिलदार के खत को गुलाब के फ़ूल के साथ और कुछ अच्छे ग्रीटिंग कार्ड साथ में भेज देते। फ़िर वे खत हम बारबार पढ़कर कुछ नया पढ़ने की कोशिश करते थे।

आज की मोबाईल पीढ़ी खत के मिठास के बारे में क्या जाने वो तो बस दिन रात मोबाईल पर चिपके रहते हैं, और पल पल की जानकारी एक दूसरे से बांटते रहते हैं कि क्या कर रहे हो, ओफ़िस कैसे जा रहे हो, क्या खा रहे हो, क्या पी रहे हो इत्यादि इत्यादि। इन लोगों के पास इन यादों को सहेजने का कोई तरीका मौजूद नहीं है और हमारे पास आज भी वो यादें हमारे साथ हैं, जिसे कभी कभी हम आज भी पढ़ लेते हैं।