कुछ बातें कवि कालिदास और मेघदूतम़ के बारे में – २२

त्रिपुरविजय: – पुराणों के अनुसार मय नामक राक्षस ने आकाश, अन्तरिक्ष और पृथ्वी पर सोने, चाँदी, और लोहे के तीन नगर बनाये थे। त्रिपुर में स्थित होकर विद्युन्माली, रक्ताक्ष और हिरण्याक्ष देवताओं को सताने लगे। इसके बाद देवताओं ने शिव से प्रार्थना की। शिव ने देवताओं की प्रार्थना से उन दैत्यों पर वाणों की वर्षा की, जिससे वह निष्प्राण होकर गिर पड़े। मय राक्षस ने त्रिपुर में स्थित सिद्धाऽमृत रस

के कूप में उन्हें डाल दिया, इससे वे पुन: जीवन धारण करके उन देवताओं को पीड़ित करने लगे। तब फ़िर विष्णु और ब्रह्मा ने गाय और बछ्ड़ा बनकर त्रिपुर में प्रवेश करके उस रसकूपाऽमृत को पी लिया, तदन्तर शिव ने मध्याह्न में त्रिपुर-दहन किया।



हंसद्वारम़् – पौराणिक प्रसिद्धि के अनुसार वर्षा ऋतु में हंस मानसरोवर जाने के लिये क्रौञ्च रन्ध्र में से होकर जाया करता हैं। इसी कारण इसे ’हंस द्वार’ कहा जाता है।


भृगुपतियशोवर्त्म – परशुराम भृगु ने कुल में प्रमुख पुरुष माना जाता है, इसलिये इसे भृगुपति या भृगद्वह कहा जाता है। क्रौञ्चारन्ध्र को परशुराम के यश का मार्ग कहा जाता है। इस विषय में दो कथाएँ प्रचलित हैं –
१. जब परशुराम शिव से धनुर्विद्या सीख कर आ रहे थे तो उन्होंने कौञ्च पर्वत को बींधकर अपना मार्ग बनाया था, इसलिये क्रौञ्चरन्ध्र को परशुराम के यश का मार्ग कहते हैं।
२. जब परशुराम कैलाश पर शिव से धनुर्विद्या सीख रहे थे, तब एक दिन कार्तिकेय की क्रौञ्च भेदन की कीर्ति की ईर्ष्या के कारण परशुराम ने क्रौञ्च भेदन किया। कारण चाहे जो हो, किन्तु इस कार्य को करके परशुराम की संसार में कीर्ति फ़ैल गयी थी।


क्रौञ्चरन्ध्रम़् – महाभारत में इसे मैनाक पर्वत का पुत्र बताया गया है। इसकी भौगोलिक स्थिती अस्पष्ट है।


तिर्यगायामशोभी – क्रौञ्च पर्वत का छिद्र छोटा है और मेघ बड़ा है; अत: उस छिद्र में से मेघ नहीं निकल पायेगा।  उसमें से निकलने के लिये उसके तिरछा होकर जाने की कल्पना कवि ने विष्णु के वामन अवतार से की है। तिरछा होने पर उसका आकार लम्बा हो जायेगा, जिससे वह विष्णु के फ़ैले हुए पैर के समान प्रतीत होगा।

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