ऐसे ही कुछ भी, कहीं से भी यात्रा वृत्तांत भाग – ३ [हिन्दी ब्लॉग की मार्केटिंग]

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    तभी सीहोर स्टेशन आ गया और डॉक्टर साहब प्लेटफ़ार्म पर अपनी मिसेज के लिये आईसक्रीम लेने चल दिये। वे बोलीं कि हमें तो स्ट्राबेरी पसंद है, तो बस डॉक्टर साहब स्ट्राबेरी आईसक्रीम ले आये उनके लिये, आखिर १४ वीं सालगिरह जो थी शादी की।
    दूसरी तरफ़ मवाली युगल की पत्नि जी किसी बात पर अपने शौहर से नाराज होकर ट्रेन की खिड़की की ओर आलथी पालथी मार कर बैठी थीं, तो उनके शौहर ने बाहर से जाकर खिड़की से पूछा कि क्या खाओगी, आईसक्रीम या कोल्डड्रिंक। वो बोली कि कुछ नहीं खाऊँगी, एक बार बोला ना समझ में नहीं आता कि नहीं खाना। अभी थोड़ी देर पहले ही खाना खाया है ना। पर शौहर बार बार पूछ रहा था कि क्या खाओगी और वो बार बार उसकी बेईज्जती कर रही थी बड़े प्यार से। और वो बेचारा प्यार में अपनी बेईज्जती सहे जा रहा था।
    मिसेज डॉक्टर ने अपनी आईसक्रीम खत्म करने के बाद बोलीं कि इस आईसक्रीम को खाने के बाद तो मेरा जी खराब हो रहा है, तो मिसेज मवाली बोली कि अच्छा हुआ कि मैंने आईसक्रीम नहीं खाई। हम भी मन ही मन सोच रहे थे कि चलो अपनी भी इच्छा हो रही थी, पर आईसक्रीम नहीं खाई अच्छा हुआ।
    तभी डॉक्टर साहब के फ़ैमिली फ़्रेन्ड की मिसेज भी आ गईं तो जगह की कमी को देखते हुए डॉक्टर साहब निकल लिये अपने मित्र के पास जो कि ४-५ कंपार्टमेंट दूर ही बैठे हुए थे और उन्हें ललितपुर जाना था। तो महिलाओं की बातें शुरु हुईं, शिक्षा पर फ़िर रहन सहन पर और फ़िर फ़ैशन पर। पर जैसे ही उनकी वे मित्र आई थीं, हम उनको देखते रहे और पहचानने की कोशिश करते रहे कि इनको कहाँ देखा है पर हमें याद नहीं आ रहा था। जब वे चलीं गई तो हमने मिसेज डॉक्टर से पूछा कि ये कौन थीं, तब उन्होंने परिचय दिया तो हमने बाकी की जानकारी उनको बता दी। तो वे बोलीं कि अरे आप तो उनको बहुत अच्छे से जानते हैं। हम इसलिये पहचान नहीं पाये क्योंकि हम उनसे लगभग १३ वर्ष पहले मिले थे।
    भोपाल आ चुका था और गर्मी के गरम गरम थपेड़े अभी भी कम नहीं हुए थे, हमने अपने टकले से टोपी को हटा लिया तो मवाली भाईसाहब बोले कि ये क्या, तो अपुन बोले कि ये अपना हेयर श्टाईल है। वे बोले मगर हेयर है किधर, मैं बोला अपना तो ऐसाइच है क्या !! 😀
    अब तक डॉक्टर साहब अपनी ठंडी रखने वाली २ लीटर वाली बोतल में २ बिसलरी उलट चुके थे, और जैसे ही ट्रेन चलने लगी गटागट १ लीटर पी लिये, और फ़िर से पानी की तिकड़म शुरु कर दी गई।
    भोपाल से ट्रेन चली तो डॉक्टर साहब के मित्र वे भी डॉक्टर साहब थे, मैं उनको देखते ही पहचान गया परंतु वे नहीं पहचाने । अब जरुरी तो नहीं न कि आप किसी को पहचान जायें और वो भी आपको पहचान जाये। हमने उनको याद दिलाया कि फ़लां वर्ष में आपका क्लीनिक वहाँ था और हम आपके पास आते थे, तब जाकर थोड़ा उन्होंने याद करने की कोशिश की, पता नहीं उसमें वे कितना सफ़ल हुए। ये डॉक्टर साहब ने बी.ए.एम.एस., एम.डी, एम.ए. (फ़िलोसफ़ी) और भी पता नहीं २-४ डिग्रियां और पढ़ रखी थीं, और उज्जैन में वे वक्ता और अच्छे विचारक के रुप में जाने जाते हैं और धनवंतरी आयुर्वेदिक महाविद्यालय में व्याख्याता हैं। सभी वेद पुराण और दर्शनों के मर्मज्ञ हैं, बहुत सारी बातें उनसे हुईं। उन्होंने स्वामी रामदेव जी से भी मिलने के किस्से सुनाये। उन्होंने बताया कि वे साहित्य पढ़ने के बहुत शौकीन हैं और आज भी साहित्य पढ़ते ही रहते हैं, और लगातार पढ़ने के कारण पढ़ने की रफ़्तार भी बड़ गय़ी है। हमने उन्हें ब्लॉग लिखने के लिये प्रेरित किया कि आप जैसे ज्ञानी व्यक्ति के विचार पढ़ना सबको अच्छा लगेगा, और अगर तकनीकी मदद की जरुरत हो तो हमें बताइयेगा। अब ब्लॉग लेखन पर उनसे बराबर फ़ॉलोअप लेंगे। अब हमने तो हिन्दी ब्लॉगिंग करने के लिये बहुत मार्केटिंग की, हिन्दी एग्रीगेटर्स अपने ब्लॉग के बारे में बताया। अब देखते हैं कि क्या परिणाम होता है।
    वैसे जब भी हम यात्रा में होते हैं तो हिन्दी ब्लॉग की मार्केटिंग जरुर करते हैं, अब पाठक तो लाने ही पड़ेंगे। कुछ इस तरह के प्रयास भी करना होंगे।

12 thoughts on “ऐसे ही कुछ भी, कहीं से भी यात्रा वृत्तांत भाग – ३ [हिन्दी ब्लॉग की मार्केटिंग]

  1. पाठक तो आते है जी , लेकिन घटिया पोस्ट देखकर निराश हो जाते है , परेशान मत होना आप, आपकी पोस्ट कि बात नहीं कर रहा हूँ मै. मै तो हर जगह झगडे वाली पोस्टो कि बात कर रहा हूँ.

  2. @आशीषजी – वैसे एक बात तो है अगर पोस्ट घटिया हो तो भी लोग आ ही जाते हैं, कि देखें आखिर कितना घटिया लिखा है, परेशान ब्लॉगर क्यों हो, परेशान होगा पाठक, अरे नहीं आप परेशान न हों, मैं आपकी बात नहीं कर रहा हूँ।

  3. वाह,

    बहुत रोचक यात्रा वर्णन है। आज पिछले दोनो पोस्ट भी फुरसत से पढा।

    सबसे बढके तो वो आपका बिना हेयर के हेयर स्टाईल 🙂

    बढिया है।

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