Monthly Archives: October 2010

काश.. कि मेरे बुलाने पर … मेरी कविता … विवेक रस्तोगी

काश..

कि मेरे बुलाने पर

तुम आते

केवल मुझसे मिलने आते

मेरे लिये

मेरे पास आते

ओर मैं और तुम

कहीं बैठकर

गहराईयों

से बातें करते

काश !

आईडीएफ़सी बॉन्ड के लिये फ़्री में डीमैट खाता १० वर्षों तक (Free Demat Account for 10 Years for IDFC Bonds)

    पिछले लेख आईडीएफ़सी दीर्घकालीन इंफ़्रास्ट्रक्चर बॉन्ड २०१० (IDFC Long Term Infrastructure Bond 2010) के बाद अब यह बॉन्ड बाजार में आ गया है।

    असित सी. मेहता के नितिन कुमावत ने बताया कि आईडीएफ़सी बॉन्ड के साथ उनकी कंपनी डीमैट अकाऊँट फ़्री में उपलब्ध करवा रही है, और अगले दस वर्षों तक कोई ए.एम.सी. शुल्क भी देय नहीं होंगे, बशर्ते उस डीमैट अकाऊँट में और कोई ट्रांजेक्शन न किया गया हो। वैसे यह डीमैट अकाऊँट साधारण ही होगा, एक बार खुलने के बाद आप इसमें अपने शेयर, ईटीएफ़ और म्यूच्यल फ़ंड के ट्रांजेक्शन भी कर सकते हैं, पर इस स्थिती में हर वर्ष लगने वाले ए.एम.सी. (AMC – Annual Maintenance Charges) देय होंगे, जो कि ब्रोंकिंग कंपनियों के नियमानुसार होंगे।

    पर अगर केवल आई.डी.एफ़.सी. बॉन्ड ही लेते हैं तो इस डीमैट अकाऊँट पर कोई शुल्क दस वर्षों के लिये देय नहीं होगा।

    ज्यादा जानकारी के लिये मुंबई के लोग असित सी. मेहता की ब्रांच में इन फ़ोन नंबरों (022 – 21730153, 21730540,2173041,2173042) पर बात करके यह बांड भी ले सकते हैं और डीमैट अकाऊँट भी खुलवा सकते हैं।

बस स्टॉप पर तीन लड़कियों की बातें

बस स्टॉप पर तीन लड़कियाँ बस के इंतजार में बैठी हुई थीं, सप्ताहांत की खुशी तो थी ही तीनों के चेहरे पर, साथ ही चुहलबाजी भी कर रही थीं।

तभी एक मोटर साईकिल स्टॉप के आगे आकर रुकी और वह लड़का किनारे जाकर रुक गया, हेलमेट उतारा और किसी का इंतजार करने लगा, बाईक भी कोई अच्छी सी ही लग रही थी, पर तभी उन तीनों लड़कियों की आवाज चहकने लगी, एक बोली “देख क्या बाईक है”, दूसरी बोली, “अरे नहीं मोडिफ़ाईड बाईक है, आजकल येइच्च फ़ैशन है, ओरिजिनल का जमाना नहीं है, जो पसंद आये लगा डालो”

सोचने लगा कि लड़कियाँ क्या क्या सोचती हैं, जिस बाईक की ओर लड़कों का ध्यान नहीं जाता वह बाईक लड़कियों की बातों का केन्द्र है।

तभी एक लड़की के मोबाईल पर फ़ोन आ गया, अब इधर की तरफ़ जो बातें सुनाई दे रही थीं, वे इस प्रकार थीं –

“किधर है तू”

“क्या बोलता है”

“अच्छा तू आरेला है मेरे कू लेने को”

तब समझ में आया कि लड़के का फ़ोन है।

“किधर मिलूँ, जिधर तू सिगरेट लेता है, पानी पुरी वाले खड़ेले हैं, अरे मैं उधरीच हूँ रे”

“तू आ न”

तभी एक लड़की की बस आ गई, वह तुरंत दौड़कर सड़क पर गई और बस स्टॉप तक आने का इंतजार करने लगी, जेब से कान कौवे (हैंड़्स फ़्री) निकाले और कान में ठूँस लिये, मुंबई की रफ़्तार में इन कानकौवों का बहुत महत्व है, आधी से ज्यादा मुंबई कानकौवे कान में ठूँसे हुए नजर आते हैं, केवल अपनी दुनिया में मस्त और व्यस्त”

फ़िर वो लड़की जिसका फ़ोन आया था, वह भी बॉय करके चल दी सड़क क्रॉस कर सिगरेट के ठिये पर, जहाँ उसका बॉय फ़्रेंड आने वाला है।

तीसरी लड़की वो भी शायद बस का ही इंतजार कर रही थी, परंतु जैसे ही ये दोनों लड़कियाँ गईं, वो वहाँ से उठकर पैदल ही चल दी, दूसरी तरफ़, समझ नहीं आया कि जब बस पकड़ने आये थे तो दो लड़कियाँ पैदल ही क्यों चली गईं।

वहीं ठिठोली करता हुआ एक समूह खड़ा था जिसमें दो लड़के और दो लड़कियाँ थे, लड़कियों के हाथ में सिगरेट थी और बिल्कुल नशा करने के अंदाज में मस्ती से सिगरेट के कश उड़ा रही थी.. हमारी आधुनिक संस्कृति..

आज घर आते आते बहुत सारी बसों पर एगॉन रेलिगेयर के जीवन बीमा वाले उत्पादों के विज्ञापन देखकर खुशी हुई कि चलो ये तो अच्छा काम हो रहा है।

आखिर इतना बड़ा सरकारी तंत्र रेल्वे कब सुधरेगा..

    गुस्सा होना स्वाभाविक है, जब आपको तत्काल कहीं जाना हो और टिकट न मिले, तो तत्काल का सहारा लेते हैं, रेल्वे ने यह सुविधा आईआरसीटीसी के द्वारा भी दे रखी है, परंतु ८ बजे सुबह जैसे ही तत्काल आरक्षण खुलता है वैसे ही इस वेबसाईट की बैंड बज जाती है, सर्विस अन- अवेलेबल का मैसेज इनकी वेबसाईट पर मुँह चिढ़ाने लगता है।

    कई बार तो बैंक से कई बार पैमेन्ट हो जाने के बाद भी टिकट नहीं मिल पाता है क्योंकि पैमेन्ट गेटवे से वापिस साईट पर आने पर ट्राफ़िक ही इतना होता है कि टिकट हो ही नहीं पाता है, वैसे अगर टिकट नहीं हुआ और बैंक से पैसे कट गये तो १-२ दिन में पैसे वापिस आ जाते हैं, परंतु समस्या यह है कि ऑनलाईन टिकट मिलना बहुत ही मुश्किल होता है।

    सुबह ८ बजे से ८.४५ – ९.०० बजे तक तो वेबसाईट पर इतना ट्राफ़िक होता है कि टिकट तभी हो सकता है जब आपकी किस्मत बुलंद हो। वैसे आज किस्मत हमारी भी बुलंद थी जो टिकट हो गया वरना तो हमेशा से खराब है, इसके लिये पहले भी जाने कितनी बार रेल्वे को कोस चुके हैं।

    करीबन २ महीने पहले से एजेन्टों के लिये व्यवस्था शुरु की गई कि वे लोग जिस दिन तत्काल खुलता है उस दिन ९ बजे से टिकट करवा सकेंगे याने कि सुबह ८ से ९ बजे तक केवल आमजनता ही करवा पायेगी, परंतु इनकी इतनी मिलीभगत है कि जब सीजन होता है तब इनके सर्वर ही डाऊन हो जाते हैं, न घर बैठे आप साईट से टिकट कर सकते हैं और न ही टिकट खिड़की से, पर जैसे ही ९ बजते हैं, स्थिती सुधर जाती है, ये सब धांधली नहीं तो और क्या है।

    टिकट खिडकी पर जाकर टिकट करवाना मतलब कि अपने ३-४ घंटे स्वाहा करना। सुबह ४ बजे से लाईन में लगो, तब भी गारंटी नहीं है कि टिकट कन्फ़र्म मिल ही जायेगा, लोग तो रात से ही अपना बिस्तर लेकर टिकट खिड़की पर नंबर के लिये लग जाते हैं, और टिकट खिड़की वाला बाबू अपने मनमर्जी से टिकट करेगा, उसका प्रिंटर बंद है तो परेशानी, उसके पास खुल्ले न हो तो और परेशानी, जब तक कि पहले वाले यात्री को रवाना नहीं करेगा, अगले यात्री की आरक्षण पर्ची नहीं लेगा, और जब तक कि ये सब नाटक होगा, बेचारा अगला यात्री उसको कोसता रहेगा क्योंकि तब तक उसे कन्फ़र्म टिकट नहीं वेटिंग का टिकट मिलेगा।

    क्या इतना बड़ा सरकारी तंत्र रेल्वे अपना आई.टी. इंफ़्रास्ट्रक्चर ठीक नहीं कर सकता है, या उसके जानकारों की कमी है रेल्वे के पास, तो रेल्वे आऊटसोर्स कर ले, कम से कम अच्छी सुविधा तो मिल पायेगी।

अब क्या चाहते हो तुम … मेरी कविता… विवेक रस्तोगी

अब

क्या चाहते हो तुम,

तुम्हारे लिये और क्या कर गुजरें

देखो तो सही

समझो तो सही,

क्या इतना कुछ काफ़ी नहीं है

अब बोलो भी,

आखिर क्या चाहते है तुम !!

मौन….?

(किसे कहना चाह रहे हैं, क्यों कहना चाह रहे हैं, उसकी ढूँढ़ जारी है, बाकी तो सबका अपना नजरिया है।)